Monday, 28 January 2013

पदम् सम्मान : जूते घिसने से नहीं बेचने से मिलता है !


ज बात पदम् सम्मानों की ! लोग इस सम्मान के लिए सालों साल जूते घिसते रहते हैं, फिर भी निराश होना पड़ता है। वैसे अंदर की बात कुछ और है, उन्हें पता नहीं है कि पदम् सम्मानों के लिए जूते घिसना जरूरी नहीं है, बल्कि जूता बेचना जरूरी है। मैं पहले  ही समझ रहा था कि ये बात आपकी समझ में आसानी से नहीं आएगी। चलिए बता देता हूं कि सम्मान का क्राइट एरिया दिल्ली में कैसे तय किया जाता है। अब देखिए ना तमाम बड़े बड़े खिलाड़ी हैं, जिन्हें आज तक पदम् सम्मान मिलना तो दूर, उनका जिक्र तक नहीं हुआ। जबकि क्रिकेटर्स  को कीनिया के खिलाफ शतक बनाते ही सबसे पहले जूते बेचने का विज्ञापन मिल जाता है। अब चैनलों पर दिन भर जूता बेचता जब कोई खिलाड़ी दिखाई देता है तो दिल्ली के अफसरों और नेताओं को भी लगता है कि यार ये खिलाड़ी तो बड़ा पापुलर है । ये खेल में उसके योगगान को नहीं देखते, बस उसके हाथ में जूता देखने पदम सम्मानों में नाम शामिल कर देते हैं।
अब इस बार के सम्मान को ही ले लीजिए, लोग उंगली उठा रहे हैं। कह रहे हैं इन्हें देना चाहिए था, उन्हें नहीं देना चाहिए था। मजेदार बात तो ये है कि जिन्हें नहीं मिला वो तो नाराज हैं ही, जिन्हें मिला वो भी नाराज हैं। बहरहाल मुझे लगता है कि शटलर साइना नेहवाल और शूटर गगन नारंग को इस बार जरूर पदम सम्मान से नवाजा जाना चाहिए था, दोनों ने ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन किया है। लेकिन सरकारी सूची में इन दोनों का नाम ना देखकर मैं ही क्या पूरा देश हैरान रह गया। मेरा दावा है कि अगर देश में मतदान करा लिया जाए कि इन दोनों को सम्मान मिलना चाहिए या नहीं, तो मुझे लगता है कि सौ फीसदी लोगों का एक  ही जवाब होगा कि इन्हें सम्मान जरूर देना चाहिए। ऐसे में अगर इन दोनों खिलाड़ियों ने नाराजगी जताई है तो इसमे गलत कुछ नहीं है।

हम सब ना पहलवान सुशील कुमार को भूले हैं और ना ही उनके योगदान को भुलाया जा सकता है। सुशील ने लगातार दो ओलंपिक में पदक जीत कर देश का गौरव बढ़ाया है। उन्हें 2011 में पद्मश्री दिया गया था। हम सबको उम्मीद थी कि इस बार उन्हें पद्म भूषण से नवाजा जाएगा, लेकिन उनका नाम शामिल नहीं किया गया। पता चला है कि खुद खेल मंत्रालय ने उनके नाम की सिफारिश की थी, फिर भी उनके  नाम को शामिल  नहीं किया गया। अब सुशील तो देश के लिए पदक जीतने के लिए जूता घिसते रहते हैं, अब वो  जूता बेचते तो हैं नहीं, तो भला उनके नाम को कैसे शामिल किया जाता। मैं सचिन का सम्मान करता हूं लेकिन देखिए ना उन्हें "भारत रत्न" देने के लिए इस सरकार ने आनन-फानन में नियमों में बदलाव कर दिया। हालाकि ये अलग बात है कि अब सचिन को भारत रत्न देने की मांग ठंडी पड़ चुकी है, लेकिन सुशील जैसे खिलाड़ियों के लिए सरकार गूंगी बन जाती है।

देश  की विभिन्न भाषाओं में 20 हजार से ज्यादा गाना गाने वाली पार्श्वगायिका एस जानकी का नाम इतनी देर में पदम् सम्मान की सूची  में शामिल किया गया तो वो नाराज हो गईं। उन्होंने इस सम्मान को लेने से ही इनकार कर दिया। मुझे लगता है कि उनका गुस्सा जायज है और उन्होंने सरकार की आंख खोलने के लिए सम्मान को ठुकरा कर ठीक ही किया। लेकिन जानकी मेम तो गुस्सा जताकर हल्की हो गईं। पर सरकार के कारिंदों ने जो कुछ सदाबहार हीरो स्व. राजेश खन्ना के साथ किया है उसके लिए तो इन्हें जितना भी दंड दिया जाए वो कम है। राजेश खन्ना ने कई साल तक  देश और दुनिया में अपने करोंडो प्रशंसकों के दिलों पर राज किया, लेकिन उन्हें तब सम्मान देने का फैसला लिया गया जब  वो इस सम्मान को हासिल करने के लिए खुद इस  दुनिया में नहीं हैं। मेरा सवाल है कि राजेश खन्ना को सम्मानित करने में इतनी देरी क्यों की गई ? क्या आपको  नहीं लगता कि इसके लिए जिम्मेदारी तय कर दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

सच बताऊं ये राष्ट्रीय सम्मान धीरे धीरे अपनी गरिमा को खोते जा रहे हैं। इसकी वजह और कुछ नहीं बल्कि सम्मान में सियासत का घुसना है। अब देखिए ना ये अपने ही देश में  संभव  है कि दो कौड़ी के नेता जिनका कोई सम्मान नहीं, वो ही सम्मान पाने वालों की सूची तैयार कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। मैं शहर और शिक्षिका का नाम नहीं लूंगा, लेकिन एक सच्ची घटना बताता हूं। कुछ साल पहले की बात है एक शिक्षिका ने पता नहीं कैसे जोड़ तोड़ करके अपना नाम राष्ट्रपति पुरस्कार की सूची में शामिल करा लिया। शिक्षक दिवस पर उक्त  शिक्षिका को सम्मान दिया जाना था। इस पूरी प्रक्रिया में स्थानीय प्रशासन को शुरू में विश्वास में ही नहीं लिया गया, बाद में जब पुरस्कार देने की तारीख नजदीक आई तो उस शिक्षिका के बारे में स्थानीय प्रशासन से एक रिपोर्ट मांगी गईं। अब  जिलाधिकारी हमारे परिचित थे, उन्होंने मुझे बताया कि फलां शिक्षिका को राष्ट्पति सम्मान मिलना है, मुझसे रिपोर्ट मांगी गई है।

ओह! कसम से नाम सुनकर मैं हैरान रह गया। जिलाधिकारी को मैने कहा कि आपको सही सही रिपोर्ट भेजनी चाहिए। बेचारे नौजवान थे, कहने लगे श्रीवास्तव जी क्यों  मुझे  मुश्किल में डालने की बात कर रहे हैं। बताइये इस शिक्षिका ने अगर अपना नाम शामिल करा लिया है तो ऐसे ही तो कराया नहीं होगा, जाहिर है उसके संपर्क बहुत ऊपर तक होंगे, मेरा  इसके बारे में खिलाफ रिपोर्ट देना ठीक नहीं रहेगा। वो काफी देर  तक मेरे साथ माथापच्ची करते रहे, बाद में तय हुआ कि इस टीचर की रिपोर्ट के साथ कई और नाम भेज देते हैं, जो वाकई इस सम्मान के काबिल हैं। मुझे भी लगा कि ये ठीक है, उन्होंने ऐसा किया और सम्मान को लेकर विवाद की स्थिति बन गई और किसी भी नाम  को शामिल नहीं किया गया। ये सब  देखने के बाद लगता है कि राष्ट्रीय सम्मान भी मकसद खोते जा रहे हैं।  बहरहाल इस मामले में सरकार को गंभीर होना पड़ेगा।


34 comments:

  1. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. प्रश्न तो उठेंगें ही....अगर कुछ बेचने से ही सम्मान मिलता है तो सुशील को तो मिल ही नहीं सकता , उन्होंने शराब बेचने से मना जो किया था ....

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    1. बिल्कुल सहमत हूं, सही कहा आपने..
      आभार

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  3. सम्मान का हकदार वही हो जो उसके काबिल हो,और समय रहते दिया जाय,,,

    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  4. ये सब ऊपरी हिसाब-किताब हैं आम आदमी कैसे समझे!

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  5. बहुत सही कहा आपने!
    रेवड़ियाँ बनाने वालों के लिए नहीं खाने वालों के लिए बनती हैं!

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    1. सहमत हूं सर,
      अभी तक तो यही हो रहा है

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  6. हालाँकि मुझे आपकी तरह अंदर की ख़बरें तो नहीं मालूम लेकिन अगर हम भारत रत्न पाने वालों की फेहरिस्त देखें तो भी सरकार की दोगली नीति की एक रूपरेखा तो नजर आ ही जाती है -
    आपने नेहरु को भारत रत्न १९५५ में दिया , चलिए ठीक है , लेकिन फिर हिन्दुस्तान को एक करने वाले सरदार पटेल को ये सम्मान १९९२ में क्यूँ दिया (राजीव गांधी के भी बाद), जबकि हर कोई जानता है कि ये सरदार पटेल ही थे जिनकी वजह से 565 छोटे-बड़े प्रान्तों ने या तो भारत या पाकिस्तान में विलय होने का निश्चय किया , जिस सोमनाथ मंदिर को हम आज देखते हैं , ये भी उन्हीं की देन है |
    इसी तरह आजाद भारत के सबसे कर्मठ प्रधानमंत्री में से एक शास्त्री जी को भी उनके मरणोपरांत १९६६ में ये सम्मान मिला |
    और नेता जी सुभाष को भी जनता के भारी दबाव के बाद उनके मरणोपरांत(कथित) १९९२ में ये सम्मान प्रस्तावित किया गया |
    जबकि इन सबसे पहले राजीव गाँधी , इंदिरा गांधी आदि जाने कितनों को ये सम्मान उनके कार्यकाल में ही दिया जा चुका था |
    (मैंने यहाँ सिर्फ वो ही लिखा है , जितना मैं सोचता/जानता हूँ , संभव है कि ये गलत भी हो |)

    सादर

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    1. अंदर की खबर तो अलग है,
      लेकिन आप जिस दिॆशा में सोच रहे हैं, वो बिल्कुल सही है
      शुक्रिया भाई

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  7. पद्म-मीनिया भी गजब, लगते देखी रेस ।

    कहीं हर्ष तो दुःख कहीं, कहीं गजब की ठेस ।

    कहीं गजब की ठेस, कहीं जूतियाँ घिसाती ।

    बेचारा यह देश, नहीं वह हस्ती पाती ।

    आया पहला दौर, लगा जो शतक कीनिया ।

    पद्म विभूषण पाय, मिटाते पद्म मीनिया।।

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  8. मेरी सोच अनुसार तो ये ख़िताब राजेश खन्ना जी को जीते जी मिल जाना चाहियें था | खैर देर आए दुरुस्त आए |

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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    1. सच कहूं तो पोस्ट ही इसीलिए लिखा...
      आभार

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  9. इस देश का यारों क्या होगा
    जो देश कभी था दुनिया का गहना

    जहाँ रि्श्वतें खायी जाती हैं
    सम्मान खरीदे जाते हैं
    निर्दोष ही मारे जाते हैं
    दोषियों को ताज पहनाये जाते हैं
    यहाँ पिटती जनता लाठियों से
    और घोटालेबाज ही परचम लहराते हैं
    इस देश का यारों क्या होगा
    जो देश कभी था दुनिया का गहना


    जहाँ अब नारी ना गौरव पाती है
    ना पहले सी पूजी जाती है
    उसकी अस्मिता ही उधेडी जाती है
    दोषी नाबालिग बन बच जाता है
    वहाँ कैसे कोई उम्मीद करे
    जहाँ कानून भी बेबस नज़र आता है
    इस देश का यारों क्या होगा
    जो देश कभी था दुनिया का गहना


    आज दुनिया में सिर शर्म से झुक जाता है
    जब भारत का जुबाँ पर नाम आता है
    ये वो ही देश है जहाँ घिनौने कुकृत्य अंजाम पाते हैं
    ये सुन विदेशी नाक भौं सिकोडे जाते हैं
    जहाँ सरकार लाचार नज़र आती है
    कानून के आगे गूंगी, अंधी और बहरी नज़र आती है
    इस देश का यारों क्या होगा
    जो देश कभी था दुनिया का गहना



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    1. शुक्रिया वंदना जी
      आपकी रचना का क्या कहना
      बहुत सुंदर

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  10. सही कहा आप नेआज कल राष्ट्रीय सम्मान भी मकसद खोते जा रहे हैं।

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  11. आज के रास्ट्रीय सम्मान देने वाला संघ भी भेद-भाव की निति अपना रहा है,उचित लोगो लो सम्मान मिल नही पता है। देश के कितने ही महान खिलाडी इस पुरस्कार से वंचित रह गये है।

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    1. जी मै आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं..

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  12. जब दोहरी निति अपनाई जायेगी तो कई प्रश्न भी उठेंगे !!

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  13. अँधा बांटे रेवड़ी.....
    बड़े दुःख की बात है राजेश खन्ना अपने जीते जी ये सम्मान नहीं पा सके...सटीक अभिव्यक्ति...आभार...

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  14. अँधा बांटे रेवड़ी जिसे पाकर अँधा खुश हो जाए..

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  15. जिस तरह सम्मान के लिए जोड़ तोड़ और धांधली हो रही है वो दिन दूर नहीं जब सम्मान के असली हकदार सम्मान लेने से मना कर देंगे इसी तरह वे खुद को सम्मान के काबिल साबित कर पाएंगे।

    सम्मान का सम्मान बचाने के लिए एक स्पष्ट गाइड लाइन होना बहुत जरूरी है और इसे निर्धारित करने के लिए सक्षम और ईमानदार कमिटी भी ( मुश्किल है लेकिन शायद अब तक असंभव नहीं)

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  16. राष्ट्रीय सम्मान में सियासत और राजनीति का घुसना सच में दुखद स्थिति है लेकिन यह नई बात नहीं. पुरस्कार के आधार पर सम्मान की बात यूँ भी अब गले नहीं उतरती; एक उदाहरण देकर आपने इसे और भी स्पष्ट किया है. सार्थक लेख के लिए बधाई.

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  17. आपकी इस रिपोर्टिंग के बाद से तो समझ आ ही गया कि ...सब गोलमाल है :(

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।