Sunday 3 February 2013

बीजेपी : डूबते को तिनके का सहारा !


देश की राजनीति और उसका चरित्र काफी कुछ बदल गया है। अब किसे नहीं पता है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो उनका प्रधानमंत्री कौन होगा ? ये फैसला 10 जनपथ ही करेगा, और अगर किसी तरह एनडीए के पक्ष में बहुमत हुआ तो प्रधानमंत्री का फैसला नागपुर यानि आरएसएस मुख्यालय ही तो करेगा। मुझे तो नहीं लगता कि इस बात में किसी को किसी तरह का कोई कन्फ्यूजन होना चाहिए। लेकिन देश में एक राजनीतिक मर्यादा बनी हुई थी, पहले चुनाव होता है, फिर नवनिर्वाचित सांसदों की बैठक में संसदीय दल का नेता चुना जाता है, जो राष्ट्रपति के यहां जाकर बताता है कि सांसदों ने उसे नेता चुनाव है, अब उसे सरकार बनाने का मौका दिया जाए। लेकिन अब तो चुने जाने वाले सांसदों का नेता चुनने का अधिकार पहले ही छीन लेने की साजिश चल रही है। मसलन अगर प्रधानमंत्री  कौन होगा, ये पहले ही तय हो जाए तो चुने हुए सांसदों से क्या मशविरा लिया जाएगा। खैर ये बड़ी बात नहीं है, ये तो राजनीतिक चरित्र में गिरावट का एक नमूना भर है।

आज देश की निगाह सबसे बड़े विपक्षी दल यानि बीजेपी पर लगी हुई है। ये वो पार्टी है जिसे अपने चाल चरित्र और चेहरे पर गुमान था। लेकिन ये चेहरा भी अब दागदार है। कुछ साल पहले बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण कैमरे पर पैसे लेते हुए पकड़े गए, उन्हें अध्यक्ष का पद गवांना पड़ा। अब कुछ ऐसा ही भ्रष्ट आचरण दिखा बीजेपी के दूसरे पूर्व अध्यक्ष नीतिन गड़करी का। हालांकि नागपुर तो उन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाने को लेकर उतावला था, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के अड़ जाने से गड़करी को ये पद छोड़ना पड़ा। इन दो अध्यक्षों ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया है। वैसे भी ईमानदारी से अगर बात की जाए तो गड़करी अध्यक्ष तो थे नहीं, वो एक पुतला भर थे, जिन्हें कुर्सी पर बैठाकर उनमें अध्यक्ष पद की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई थी। उनका काम नागपुर के आदेश को महज पार्टी के लोगों तक पहुंचाना भर था। ठीक उसी तरह जैसे बिग बास के शो में बिग बास एक लिखित आदेश दिया करते थे और वो पत्र घर का कोई एक सदस्य सबको सुना देता था। चलिए इस पर ज्यादा बात नहीं करते हैं, ये कह कर बात को खत्म करते हैं कि अब बीजेपी को चाल, चरित्र और चेहरे का दावा करना छोड़ देना चाहिए, क्योंकि असलियत सामने आ चुकी है।

यहीं छोटी सी बात नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह की कर ली जाए उसके बाद प्रधानमंत्री पद को लेकर छिड़ी बहस को आगे बढ़ाते हैं। राजनाथ सिंह सुलझे हुए नेता है, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन किसी भी बड़े मुद्दे को सुलझाने की क्षमता उनमें नहीं है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने पिछली बार उनकी बहुत छीछालेदर की। वो जो भी कहते वसुंधरा मानने से ही इनकार कर देतीं। बहरहाल वरिष्ठ नेताओं के सहयोग से किसी तरह बीच बचाव हो पाया था। इस बार अध्यक्ष बनते ही श्री सिंह ने वसुंधरा को उनकी मर्जी के मुताबिक पद देकर खुश कर दिया, जिससे बेवजह की मुश्किल से बचा जा सके। वैसे उन्हें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों बनने का मौका मिला, यहां तक कि वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लेकिन वो कभी भी यूपी में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी को जीत नहीं दिला सके। इसलिए वो किसी नेता को बहुत अधिकार के साथ आदेश नहीं दे सकते, क्योंकि आज तक राजनाथ अपनी सियासी जमीन को बहुत मजबूत नहीं बना पाए हैं।

वैसे सच यही है कि बीजेपी एक डूबते हुए जहाज से ज्यादा कुछ नहीं थी, लेकिन केंद्र में आजादी के बाद अब तक की सबसे भ्रष्ट और कमजोर सरकार की वजह से लोग एक बार फिर बीजेपी की ओर उम्मीद से देख रहे हैं। सब जानते हैं कि यूपीए (एक) में ही प्रधानमंत्री मनमोहन बुरी तरह फेल हो चुके थे, उनके कमजोर नेतृत्व की वजह से देश की अर्थव्यवस्था तो पटरी से उतरी ही, मंत्रिमंडल भी चोरों की जमात साबित हुई। जिसे देखो वही भ्रष्ट निकला। ऐसे में कांग्रेस को चाहिए था कि यूपीए (दो) में मनमोहन सिंह को सम्मानजनक तरीके से बाहर का रास्ता दिखा दे, लेकिन 10 जनपथ को मजबूत प्रधानमंत्री के बजाए कठपुतली प्रधानमंत्री ही शूट कर रहा था, इसलिए जनाब मनमोहन सिह की दोबारा लाटरी निकल गई। अगर सोनिया गांधी ने दूसरी बार मनमोहन के बजाए प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया होता तो आज तस्वीर बिल्कुल अलग होती। बहरहाल सरकार की भ्रष्ट करतूतों की वजह से ही देश में बदलाव का एक संदेश है। लोगों को लग रहा है चूंकि विपक्ष में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए प्रधानमंत्री तो बीजेपी का ही बनेगा।

नीतीश जी इस तस्वीर में आप ही हैं ना  ?
कहावत सुना ही है आप सबने कि डूबते को तिनके का सहारा। ऐसा ही कुछ बीजेपी में नरेन्द्र मोदी के साथ है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी की वापसी हो गई है, लेकिन कितनी मुश्किल थी ये वापसी, ये बात खुद नरेन्द्र मोदी जानते हैं। चूंकि इस चुनाव में मोदी का पूरा राजनैतिक कैरियर दांव पर लगा था, लिहाजा उन्होंने ये नहीं देखा कि उनका कौन सा उम्मीदवार भ्रष्ट है, किसकी छवि खराब है, किसके ऊपर गंभीर आपराधिक मामले हैं। मोदी ने सिर्फ ये देखा कि कौन आदमी चुनाव जीत सकता है। खैर नतीजा आ चुका है और हम कह सकते हैं कि जो जीता वही सिकंदर । इसलिए अब मोदी की, उनके भ्रष्ट मंत्रियों की, उनके दागी विधायकों की या फिर गुजरात में अधूरे विकास कार्यों की चर्चा करना बेमानी है। बीजेपी को लगता है  कि नरेन्द्र मोदी के सहारे वो दिल्ली में सरकार बना सकती है। पार्टी के दो चार बड़े नेता भले अपने बंगले के भीतर चुपचाप बैठे हों, पर पार्टी के 90 फीसदी नेताओं ने मोदी की चरणवंदना शुरू कर दी है, सभी जोर लगा रहे हैं कि पार्टी उन्हें तत्काल प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दे।

पार्टी के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी लग रहा है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर ही विवाद बना रहे थे तो ज्यादा बेहतर है, वरना सामान्य हालात होते तो उन्हें जिस तरह आनन- फानन में अध्यक्ष बनाया गया है, पार्टी में इसे लेकर भी बहस शुरू हो जाती, क्योंकि राजनाथ भी पार्टी में अविवादित नहीं हैं। बीजेपी में जिस तरह से राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है उससे साफ है कि जल्दी ही मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाएगा। इसके पहले उन अड़चनों को समाप्त कर रास्ता बनाने की कोशिश हो रही है। इसके लिए बीजेपी की संसदीय बोर्ड में नरेन्द्र मोदी को शामिल करने की कोशिश शुरू हो गई है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पार्टी के दूसरे मुख्यमंत्री इसका विरोध ना करें, इसलिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी बोर्ड में शामिल किया जा सकता है। मोदी की हिंदुत्व की छवि को भुनाने के लिए ही पार्टी चाहती है मोदी के नाम का ऐलान इलाहाबाद कुंभ मेले में साधु संतो से कराया जाए। खैर पार्टी ने तय कर लिया है कि मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, अब इसके ऐलान का तरीका क्या हो, इस पर ही चर्चा हो रही है।

इस फैसले में एक बड़ा मुद्दा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। ध्यान रखिएगा मुद्दा जेडीयू का नहीं है सिर्फ नीतीश कुमार का है। नीतिश को लगता है कि बिहार में मुस्लिम वोटों को अपने साथ बनाए रखने के लिए जरूरी है कि मोदी से दूरी बनाए रखें। चलिए नीतीश से सवाल करता हूं, क्योंकि वो मोदी को गुजरात दंगों के लिए दोषी मानते हैं। नीतीश जी ट्रेन की बोगी में आग लगाकर तमाम लोगों को आग के हवाले कर दिया गया था और उसके बाद पूरे गुजरात में दंगा भी भड़का। आप उस वक्त रेलमंत्री थे, अगर मोदी को जिम्मेदार मान रहे थे तो उसी समय आपने ऐसा दबाव क्यों नहीं बनाया कि मोदी से इस्तीफा लिया जाए ? और अगर बीजेपी इस्तीफा नहीं ले रही थी तो आप सरकार से क्यों नहीं अलग हो गए ? कहावत है गुड़ खाए गुलगुला से परहेज ! आज भी उसी बीजेपी की मदद से सरकार चला रहे हैं, अगर आपको लगता है कि मोदी से दूरी रहनी चाहिए तो आपको खुद गठबंधन तुरंत तोड़ देना चाहिए। नीतीश जी ये आप ही कर सकते हैं कि बाप से दोस्ती और बेटे से नाराजगी। हाहाहाहाहा।

मेरा मानना है कि नीतीश कुमार जितना विरोध कर रहे हैं उसकी वजह बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी हैं। उप मुख्यमंत्री होते हुए सुशील ने कभी पार्टी के पक्ष को या फिर नरेन्द्र मोदी के मामले में जिम्मेदारी के साथ बिहार में अपना पक्ष नहीं रखा। आज अगर वहां सुशील मोदी के बजाए किसी दूसरे नेता को उपमुख्यमंत्री बना दिया जाए तो नीतीश कुमार की भी बोलती बंद हो जाएगी। सच तो ये है कि सुशील मोदी ने बिहार बीजेपी को नीतीश कुमार के यहां गिरवी रख दिया है। बीजेपी के समर्थन से सरकार चला रहे हैं फिर भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा साधु संत या नागा से क्यों करेंगे ? लेकिन  बीजेपी ने भी जेडीयू को खरा खरा जवाब  दे दिया है कि साधु संत नहीं करेंगे तो क्या आतंकवादी हाफिज सईद करेगा। दोनों के बीच जिस तरह से बात चीत चल रही है उससे तो लगता है कि गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चलने वाला, लेकिन ये राजनीति है कहीं ये दोनो मिल कर खेल ना खेल रहे हों, कुछ नहीं कह सकते।

वैसे ये तो सही बात है कि अगर बीजेपी ने मोदी को आगे किया तो दूसरे दलों के लिए मुश्किल तो बढेगी। खासतौर पर बेचारे राहुल गांधी के जरूर पसीने छूट जाएंगे। मोदी जितने आक्रामक तरीके से अपनी बात रखते हैं राहुल इतनी जल्दी जल्दी लिखा हुआ पर्चा पढ भी नहीं पाते हैं। वैसे कांग्रेसी मेरी सलाह नहीं मानेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि अब सोनिया गांधी को अपने राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के बजाए शंकर सिंह बाघेला को बना लेना चाहिए। सभी  को पता है बाघेला ही मोदी के गुरु रहे हैं, ऐसे में मोदी की काट तो बाधेला के पास ही होगा।

चलते - चलते  

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32 comments:

  1. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-02-2013 को चर्चामंच-1145 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. जिसे भीआगे रखा जाय , जो भी आगे रखा जाय...देशहित तो देखें ... यही आशा है

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  3. जनाब मैं तो पूर्ण तरह से सहमत हूँ के इस बार बीजेपी ही आए | कांग्रेस का पत्ता तो साफ़ समझो अब | जितनी अति, लूटखसोट, महंगाई और निकम्मापन कांग्रेस ने इस दफा दिखा लिया वो बस हुआ है | जनता त्रस्त है पूरी तरह से | जूते मार मार कर इस सरकार को भागने को बैठी है | उम्मीद है आगे जो सरकार आएगी वो कुछ अच्छे दिन दिखाएगी | जानदार लेख लिखा आपने | आभार |

    Tamasha-E-Zindagi
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    1. हां बीजेपी अपने काम से नहीं बल्कि कांग्रेस की नाकामियों की वजह से दौड़ में शामिल हो गई है...

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    2. आप अपने ऐनक के काँच के भीतर से जो की पता नहीं
      उत्तल हैं की अवतल हैं अर्थात आप निकट दृष्टि दोषी है
      या दूर द्रष्टि दोषी जो भी हैं किंचित इनके द्वारा शासित
      प्रदेशों की तथा वहां के वासियों की स्थिति को देखिये
      यदि केंद्रीय सत्ता धारित दल की रेखा उनके कुकर्म के
      कारण छोटी हो गई है तो इसका अर्थ ये नहीं है की
      विपक्ष की रेखा बड़ी हो गई.....

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    3. भाषा की मर्यादा से आप बाहर चली गईं,क्या बात करूं..

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  4. Sundar vivechana ki hai aap ne,ak bat mai dekh rahi hu ki ab janta vikas ko bhi tarjih dene lagi hai aur anay samikarno ke tane bane thoda dhile hone lage hain,kya Modi Ji ki tisri jit me unke vikasbadi najriye ka bhi koe yogdan hai ya fir sabhi vahi karan hai jise jinka ullekh aap ne upar kiya hai?meri rajniti me koe dilchaspi nahi hai,Nitis ji ke bare me suna hai (sanchar madhymo se)ki bihar ki surat badal rahi hai!

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  5. प्रभावी प्रस्तुति |
    शुभकामनायें आदरणीय ||

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  6. नीतीश जी के लिए बेहतर है वह 2014 के चुनावों में लालू जी के सेकुलर डिब्बे में आरक्षण करा लें .ये पाकिस्तान सोच वाले लोग आज देश के लिए बड़ा खतरा है अच्छा खासा आदमी था कल तक

    बिहार को लालू कुराज से मुक्त कराया विकास के ऊपरले पायेदान पर लाया लेकिन अब सेकुलर हो गया है . ....बढ़िया प्रस्तुति .

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    1. वही तो सवाल है कि बीजेपी की मदद से सरकार चलाएंगे और मोदी से परहेज करेंगे। गुड खाएं गुलगुला से परहेज..

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  7. BJP bhi apne akele ke dam par to sarkaar bana nahi sakti..isliye PM jo bhi hoga uske hath to sahayak dalon ki doriyon se bandhe hi honge..aise me kisi bhi PM se sirf deshhit ya vikaas ki ummed karna bemani hai. sundar vivechna..

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    1. हां गठबंधन की मजबूरी तो होती ही है..

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  8. आपने सही कहा,,,,बीजेपी अपने काम से नहीं बल्कि कांग्रेस की नाकामियों की वजह से दौड़ में शामिल हो गई है...

    RECENT POST बदनसीबी,

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  9. अब देखना है कि ये सहारा क्या कमाल करता है .

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    1. जी, हम सब को इंतजार करना होगा इसके लिए

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  10. आपकी पोस्ट से राजनीति कि अन्दर कि काफी बातें पता चल जाती हैं देखिये आगे क्या होता है वैसे मोदी जी को ये चांस मिलना चाहिए इनकी भी आज़माइश हो जायेगी बहरहाल हार्दिक बधाई इस पोस्ट के लिए

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  11. अब नज़र २०१४ के चुनाव पर है ...देखते हैं आने वाले वक्त में क्या छिपा है

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    1. जी इसका इंतजार तो पूरे देश को है..

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  12. मुखौटे उतारना आसान नहीं है ...
    शुभकामनायें देश को !

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  13. ये तो सचमुच बहुत अंदर तक की खबर है | नितीश की तस्वीर तो अब उनके मोदी विरोधी बयानों को कॉमेडी सर्कस का चुटकुला बना देंगीं |
    मोदी के नाम पर सहमति तो लगभग तय है लेकिन देखना ये है कि भाजपा तो वही रहेगी न , अपाहिज-गृह-क्लेश में फंसी , अकेले मोदी कैसे इस पूरी तस्वीर को बदलते हैं |
    भाजपा की एक मजबूरी अटल जी भी हैं(शायद), उनकी छवि इतनी बुलंद थी कि आज तक भाजपा उनके साये से नहीं निकल पायी , आज भी भाजपा उनका असली उत्तराधिकारी नहीं ढूंढ पाई | जैसे एक हिट फिल्म के बाद डायरेक्टर पर और बड़ी हिट का दबाव होता है , वही दबाव भाजपा पर है लेकिन वो अटल से बड़ी तो छोडिये उनके बराबर की इमेज का भी बन्दा नहीं ढूंढ पाए | मोदी भी पहली बार अपने घर से बाहर निकलेंगे , देखते हैं क्या जादू चलेगा |
    कांग्रेस भी चुप नहीं बैठेगी ,(यकीन से तो नहीं लेकिन ये कसाब और अफजल गुरु को फांसी भी मुझे कांग्रेस की २०१४ की तैयारी लगती है), पूरी जान लगा देगी |
    मुलायम तो हैं ही गठबंधन के उस्ताद , उन्होंने यू.पी. की कुर्सी छोड़कर एक तो अखिलेश को लाइम लाईट दी और खुद दिल्ली के सफर पर निकल दिए , देखने लायक होगा २०१४ में उनका रोल |
    एक और पक्ष देखने वाला होगा , हम 'आप' को भी गिनती से बाहर नहीं कर सकते | कुछ तो उलटफेर ये भी करेंगे , हो सकता है अंडरडाग निकल आयें |
    कुल मिला के २०१४ चुनाव ऐतिहासिक होने वाले है |

    सादर

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।