Wednesday 24 October 2012

बीजेपी को नए अध्यक्ष की तलाश !


बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गड़करी अब भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिर गए हैं। गडकरी भले कहें कि वो किसी भी जांच का सामना करने को तैयार हैं, लेकिन नैतिकता की दुहाई देने वाले गडकरी को अब पार्टी का अध्यक्ष पद तुरंत छोड़ देना चाहिए । वैसे तो संघ चाहता था कि गड़करी को पार्टी के अध्यक्ष पद का दूसरा कार्यकाल भी दिया जाए, इसके लिए रास्ता भी बना दिया गया, लेकिन जिस तरह से नितिन के ऊपर गंभीर आरोप लगे हैं, उससे उन्हें दूसरी बार अध्यक्ष बनाना पार्टी के लिए आत्महत्या करने जैसा होगा। संघ भी अब इतनी आसानी से उन्हें दूसरा कार्यकाल देने को तैयार नहीं होगा। अगर बीजेपी को 2014 में कांग्रेस के भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाना है तो उसे गड़करी को ना सिर्फ अध्यक्ष पद बल्कि जांच  होने तक पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखाना ही होगा। जानकार  तो यहां तक  कह रहे हैं कि पार्टी में नए अध्यक्ष की तलाश भी शुरू हो गई है।

एक-एक कर आजकल नेताओं का असली चेहरा जनता के सामने आने लगा है। बीजेपी  अध्यक्ष किसानों की जमीन हथियाने के आरोपों से पहले ही घिरे थे, इसी बीच अब एक और विवाद उनके नाम जुड़ गया है। ये आरोप हल्का फुल्का नहीं है, बल्कि एक अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया है कि उनकी कंपनी को घाटे से उबारने के लिए आईआरबी कंपनी ने 164 करोड़ रुपये का लोन दिया। आपको हैरानी होगी कि ये वही कंपनी है जिसे महाराष्ट्र में तमाम कार्यों का ठेका दिया गया, और ये ठेके उस समय दिए गए, जब गडकरी वहां के लोकनिर्माण मंत्री थे। आरोप तो ये भी है कि लोन में दिए गए पैसे का स्रोत भी साफ नहीं है।

इस खुलासे के बाद बीजेपी नेताओं की बोलती बंद है। आरोप है कि 16 अन्य कंपनियों के एक समूह के गडकरी की कंपनी में शेयर हैं। लेकिन इन 16 कंपनियों के जो डायरेक्टर हैं, उनके नाम का खुलासा होने से गड़करी का असली चेहरा जनता के सामने आ गया है। आपको हैरानी होगी कि उनका ड्राइवर जिसका नाम मनोहर पानसे, गडकरी का एकाउंटेंट पांडुरंग झेडे, उनके बेटे का दोस्त श्रीपाद कोतवाली वाले और निशांत विजय अग्निहोत्री ये सभी इन विवादित कंपनियों के डायरेक्टर हैं। ताजा जानकारी के अनुसार गड़करी के नियंत्रण वाली पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड 64 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही थी । 30 मार्च 2010 को आइडियल रोड बिल्डर्स यानी आईआरबी ग्रुप की फर्म ग्लोबल सेफ्टी विजन ने उसे 164 करोड़ रुपये लोन दिया। आईआरबी ग्रुप को 1995 से 1999 के बीच महाराष्ट्र में तमाम सरकारी ठेके दिए गए। उस दौरान गडकरी ही लोक निर्माण मंत्री थे। आईआरबी ने पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड के तमाम शेयर भी खरीदे। मसला वही सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता का लगता है।

गडकरी महाराष्ट्र के लोक निर्माण मंत्री थे तो आईआरबी को भारी मुनाफा हुआ और जब गडकरी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए तो उनकी घाटे की कंपनी को उबारने के लिए वही आईआरबी सामने आ गई। इसके बाद भी गडकरी दावा कर रहे हैं कि वे जांच के लिए तैयार हैं। वो ये भी कह रहे हैं कि 14 महीने पहले कंपनी के चेयरमैन के पद से इस्तीफा दे चुके हैं। उनके पास अब कंपनी के केवल 310 शेयर हैं जिनकी कीमत महज 3100 रुपये है। सच तो ये है कि देश की जनता गोरखधंधे की बारीकियों में नहीं जाना चाहती। मोटी-मोटी बात लोगों के समझ में आती है। यानि गड़करी के घाटे वाली कंपनी को कोई भी 164 करोड़ रुपये लोन यूं ही तो देने वाला नहीं है, जाहिर उसने कुछ अपना फायदा देखा होगा। आईआरबी को जो फायदा हुआ है, अब वो भी सबके सामने है, यानि गड़करी के लोक निर्माण मंत्री रहते हुए उसे बहुत सारे कामों के ठेके मिले।

इस खुलासे के बाद गड़करी खेमा सफाई देने में जुट गया है। कहा जा रहा है कि वो  हर तरह की जांच का सामना करने को तैयार हैं। बीजेपी का ये भी दावा है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है, अगर बीजेपी अध्यक्ष की कंपनी में कुछ भी गडबड़ है तो वो उसकी जांच करा लें। हालांकि राजनीतिक स्तर पर कुछ भी कहा जाए, पर अहम सवाल ये है कि पूर्ति ग्रुप को आईआरबी या ग्लोबल सेफ्टी विजन ने लोन किस मद से दिया। मसलन पैसे का स्रोत क्या है ? 2009 के रिकॉर्ड बताते हैं कि पूर्ति में निवेश करने वाली 16 कंपनियों में चार ही लोग ही घूम-घुमाकर डायरेक्टर के पद पर हैं। नितिन गडकरी के बेटे निखिल को 22 फरवरी 2011 को पूर्ति का एमडी बनाया गया था। ऐसे में ये कहना कहां तक ठीक है कि गडकरी का कंपनी से रिश्ता नाममात्र का है।

जब राजनीति के किसी पूर्णकालिक कार्यकर्ता की जगह कारोबारी दिमाग के लिए जाने जाने  वाले गडकरी को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था, तो आरएसएस की वजह से ही उन पर ज्यादा सवाल नहीं उठ पाए थे। इस बीच पार्टी में पहले ही एक खेमा नितिन को अध्यक्ष पद का दूसरा कार्यकाल दिए जाने के खिलाफ था, अब गड़करी के खिलाफ गंभीर आरोप लगने से उन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाना पार्टी के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक माहौल बना हुआ है, अगर बीजेपी को 2014 में कांग्रेस को दिल्ली से उखाड़ फेंकना है, तो उसे ये साहस भी दिखाना होगा कि वो वाकई भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। इसके लिए कोई कितने बड़े पद पर क्यों ना हो, उसे बाहर का रास्ता दिखाने में कोई हिचक नहीं है।

अगर बात बीजेपी के अंदर चल रहे घटनाक्रम की करें, तो एक तपका चाहता है कि नितिन गड़करी को तत्काल अध्यक्ष पद से हटा दिया जाना चाहिए। इस समय हिमाचल के साथ ही गुजरात में भी विधान सभा के चुनाव चल रहे हैं। बीजेपी के लिए गुजरात बहुत ही अहम है। दोनों ही राज्यों में पार्टी अध्यक्ष को चुनाव प्रचार के लिए जाना है। अब सवाल उठता है कि गड़करी जब खुद गंभीर आरोपों का सामना कर रहे है तो वो सरकार के भ्रष्टाचार की बात भला कैसे कर सकते हैं। हिमाचल में कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह को कटघरे में खड़ा करना भी उनके लिए आसान नहीं होगा। इन हालातों में अगर नितिन गडकरी का दो एक दिन में त्यागपत्र हो जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।  पता चला है कि चुनावों को  देखते हुए इस मामले  में संघ पर भी जल्दी फैसला लेने का दबाव बढ़ रहा है। पार्टी और संघ के भीतर नए अध्यक्ष के मसले पर मथन भी शुरू हो चुका है। हालांकि अभी इस मामले में पार्टी का कोई भी नेता कुछ भी बोलने  को तैयार नहीं है।

वैसे भी बीजेपी में चाल, चरित्र और चेहरे की बात अब पुरानी हो गई। आप ये भी कह सकते हैं कि बात पुरानी नहीं बल्कि खत्म हो गई है। अगर कोई मुझसे पूछे कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है, तो मैं पार्टी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेई और लाल कृष्ण आडवाणी को ही कटघरे में खड़ा करुंगा। आप हमारी बात से सहमत होंगे बीजेपी को मजबूत बनाने में इन्हीं दोनों नेताओं की मेहनत रही है, लेकिन ये पार्टी को संघ के चंगुल से बाहर नहीं निकाल पाए। यही वजह है कि आज पार्टी में ना अनुशासन है, ना मजबूती है ना ईमानदारी और ना ही पार्टी के प्रति समर्पण। देश जानता है कि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गड़करी संघ की पसंद है, सच कहूं तो उन्हें पार्टी पर थोपा गया है, क्योंकि वो पार्टी में बहुत जूनियर हैं। सच्चाई तो ये है कि उन्हें अध्यक्ष बनाया ही नहीं जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें दूसरा कार्यकाल दिए जाने का रास्ता बनाया दिया गया। बहरहाल अब उनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं और अगर बीजेपी 2014 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करना चाहती है तो उसे गड़करी को बाहर करना ही होगा।


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Friday 19 October 2012

चारो खाने चित "टीम केजरीवाल"

खुलासा सप्ताह मना रही टीम अरविंद केजरीवाल फिलहाल चारो खाने चित हो गई है। वजह और कुछ नहीं बल्कि केजरीवाल समेत उनके अहम सहयोगियों पर नेताओं से कहीं ज्यादा गंभीर आरोप लगे हैं। हैरानी इस बात पर है कि खुद केजरीवाल की भूमिका पर भी उंगली उठी है। इसे ही कहते हैं " सिर मुड़ाते ही ओले पड़े "। अरे भाई कितने दिनों से एक ही बात समझा रहा हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर कभी भी ईमानदारी की इमारत खड़ी नहीं हो सकती है। इसलिए पहले खुद को साफ सुथरा दिखना भर ही काफी नहीं है बल्कि अपने काले कारनामों को बंद कर जनता के बीच माफी मांगना होगा। अगर जनता माफ कर देती है, फिर आप दूसरों पर उंगली उठाने की कोशिश करें। बताइये अपना दामन साफ किए बगैर खुलासा सप्ताह मनाने लगे। अब केजरीवाल को भी जवाब देना होगा कि क्यों वो सब कुछ जानते हुए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के मामले में खामोश रहे। उनके सहयोगी प्रशांत भूषण को कैसे हिमांचल में चाय बगान की वो जमीन आवंटित हो गई, जो नियम के तहत सामान्य व्यक्ति को नहीं हो सकती। महाराष्ट्र की अंजलि दमानिया ने कैसे खेती की जमीन लेकर बिल्डरों को बेचा और मोटा मुनाफा कमाया ?

खुलासा सप्ताह की शुरुआत सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा से हुई। चूंकि मैं काफी दिनों तक मुरादाबाद में अमर उजाला अखबार से जुड़ा रहा हूं। इसलिए जब वाड्रा पर आरोप लगा तो मुझे कत्तई हैरानी नहीं हुई। मैं इस परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। दो दिन बाद केजरीवाल के निशाने पर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद आ गए। आरोप लगा कि विकलांगो के नाम पर सरकारी रकम की बंदरबाट की गई। कांग्रेस पर काफी हमला कर चुके थे, लिहाजा अरविंद पर ये आरोप ना लगे कि वो बीजेपी के इशारे पर सब कर रहे हैं, इसलिए अपनी छवि जनता में बनाए रखने के लिए उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी निशाने पर लिया। नितिन पर आरोप लगाया तो गया, पर कमजोर तथ्यों को लेकर उन्हें घेरने की कोशिश हुई, इसलिए बीजेपी को ये मुश्किल में नहीं डाल पाए। गडकरी के मामले मे तो मैं ये भी कह सकता हूं कि केजरीवाल ने मीडिया और देश को गुमराह किया। उन्होंने तथ्यों को गलत ढंग से रखा, लगा कि जमीन के अधिग्रहण के मामले की उन्हें जानकारी ही नहीं है। वैसे भी नितिन गडकरी को ये जमीन बेची नहीं गई है। सरकार ने उन्हें सिर्फ 11 साल के लिए लीज पर दी है।

खैर एक के बाद एक खुलासे से केजरीवाल को लग रहा था कि उनका सियासी ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। लेकिन पूरी टीम तब बैक फुट पर आ गई, जब केजरीवाल समेत अहम सदस्यों पर भी गंभीर आरोप लगे। अच्छा इसमें केजरीवाल तो आरोप को खारिज भी नहीं कर सकते, क्योंकि उन पर किसी राजनीतिक दल ने आरोप नहीं लगाया है, बल्कि उन्हें महाराष्ट्र के एक पूर्व आईपीएस वाई पी सिंह ने कटघरे में खड़ा किया है। वाई पी सिंह को  पूरा देश जानता है कि वो एक ईमानदार पुलिस अधिकारी रहे हैं, उन्होंने देखा कि मौजूदा सिस्टम में ईमानदारी से नौकरी करना संभव नहीं है तो नौकरी ही छोड़ दी। महाराष्ट्र के पूरे सिचाई घोटाले के मामले की जानकारी केजरीवाल को उन्होंने ही दी। केजरीवाल को जो अभिलेख और जानकारी दी गई थी, उसमें शरद पवार का लवासा प्रोजेक्ट भी शामिल था। लेकिन केजरीवाल ने मीडिया के सामने अधूरे तथ्य रखे और गडकरी को ही निशाने पर लिया, पवार का उन्होंने नाम तक नहीं लिया। जबकि वाईपी सिंह ने जो अभिलेख केजरीवाल को दिए थे, उसमें सिर्फ शरद पवार ही नहीं बल्कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले, भतीजे अजित पवार समेत कुछ और लोगों का काला चिट्ठा था। अब सवाल उठता है कि आखिर केजरीवाल पर ऐसा क्या दबाव था कि उन्होंने पवार फैमिली का नाम तक नहीं लिया।  अब केजरीवाल की भूमिका की जांच कहां होगी और कौन करेंगा ?

इंडिया अगेंस्ट करप्सन की एक और सदस्या अंजलि दमानिया की बात कर लें। टीवी कैमरे पर पानी पी पी कर नेताओं को कोस रही दमानिया का चेहरा भी दागदार निकला। आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि पर आरोप लगा है कि किसानों की ज़मीन खरीद कर उस ज़मीन का उपयोग बदलवा कर ऊंचे दामों में बेचा। अग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने खुलासा किया है कि  अंजलि दमानिया ने 2007 में करजत के खरवंडी गांव में सात एकड़ ज़मीन खरीदी, इसके ठीक बाद इस जमीन का उपयोग बदलने की अर्जी दे दी। हालांकि ज़मीन बेचने वाले किसानों का दावा है कि दमानिया ने उनसे कहा था कि वो यहां खेती करेंगी, लेकिन उन्होंने ज़मीन का लैंड यूज चैंज करा दिया और 39 प्लॉट काट दिए। उन्हें ज़मीन का इस्तेमाल बदलने की इजाज़त रायगढ़ के कलेक्टर ने दी थी। लैंड यूज बदलते ही दमानियां भी बदल गईं और उन्होंने पूरी जमीन एसवीवी डेवलपर्स को दे दी, जिसमें दमानिया भी डारेक्टर हैं। आरोप है कि  कुल 39 प्लॉट काटे गए जिनमें से सैंतीस प्लॉट अलग अलग लोगों को मोटे दाम में बेचा गया।

इतना ही नहीं दमानियां जमीनों की जिस तरह से खरीद फरोख्त करती हैं, उससे तो नहीं लगता है कि वो सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनका काम बिल्डर जैसा ही दिखाई दे रहा है। कहा जा रहा है कि दमानिया ने करजत के जिस खरवंडी गांव में ज़मीन खरीदी, उसके बगल के गांव कोंदिवाड़े में भी उन्होंने 30 एकड़ जमीन खरीद ली। वहां बन रहे कोंधाणे बांध के खिलाफ दमानिया ने इसी साल अप्रैल में पीआईएल दायर की। आरोप तो ये भी है कि केजरीवाल अंजलि दमानिया की जमीन बचाने के लिए ही आरोप लगा रहे हैं। दरअसल अंजलि ने पिछले वर्ष जून में महाराष्ट्र में सिंचाई विभाग को एक पत्र लिखा था कि कोंधाने-करजाट बांध में उनकी जमीन अधिगृहीत न की जाए। इसकी जगह बांध को 700 मीटर आगे शिफ्ट कर दिया जाए जहां आदिवासियों की जमीन है। अंजलि की मौजूदा लड़ाई इसी से संबंधित है। अब अंजलि के मामले का खुलासा हो जाने के बाद स्थानीय प्रशासन ने सभी मामलों की जांच शुरू कर दी है।

टीम केजरीवाल के एक और सहयोगी प्रशांत भूषण का मामला भी कम गंभीर नहीं है। हिमाचल प्रदेश में प्रशात भूषण की सोसायटी को चाय बगान के लिए आरक्षित जमीन दे दी गई। भूषण ने कागड़ा जिले के पालमपुर में 2010 में करीब साढ़े चार हेक्टेयर जमीन खरीदी है। ये जमीन कुमुद भूषण एजुकेशन सोसाइटी के नाम है। प्रशांत भूषण ही इस सोसाइटी के सचिव हैं। ये जमीन यहां कॉलेज खोलने के नाम पर ली गई थी। 2010 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बाकायदा धारा-118 के तहत ये जमीन खरीदने की इजाजत भी दी है। इस जमीन पर कुछ बिल्डिंग बन गई हैं और कुछ का काम चल रहा है। सवाल ये उठता है कि हिमांचल में आम आदमी तो जमीन भी नहीं खरीद सकता, फिर भूषण की सोसायटी को वो जमीन कैसे मिल गई जो चाय बगान के लिए आरक्षित थी ? जाहिर है कि उनकी पहुंच का ही नतीजा है। अगर भूषण को हिमाचल में वो जमीन मिल सकती है जो चाय बगान के लिए है, और जहां कोई निर्माण तक नहीं किया जा सकता। अपनी पहुंच का फायदा उठाने वाले ऐसे लोग दूसरों पर कैसे कीचड़ उछाल सकते हैं, इनमें इतना नैतिक बल आता कहां से है ? भूषण जी की जमीन पर केजरीवाल खामोश क्यों है ? नितिन गड़करी को तो जमीन सिर्फ 11 साल की लीज पर मिली है, तो हाय तौबा मचा रहे हैं।

इंडिया अंगेस्ट करप्सन के एक और हिमायती हैं मयंक गांधी। नाम के साथ गांधी शब्द जुड़ा है तो हम सबको उम्मीद थी कि चलिए कम से कम मयंक यहां ऐसे सदस्य है,जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं कि वो गलत नहीं करेंगे। अब गांधी जी भी आरोपों के घेरे में है। वो भी ऐसे वैसे आरोप नहीं हैं, जमीन की धांधली की शिकायत है। कहा जा रहा है कि पहले तो उन्होंने एक एनजीओ बनाया। एनजीओ के नाम पर सरकारी जमीन ली और वो भी सस्ते में। लेकिन बाद में उन्होंने इस जमीन को अपने रिश्तेदारों को बेच दिया। ये सब क्या है भाई गांधी जी।

इसीलिए कहते हैं कि शीशे के मकान में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए। अब देखिए ना लगभग पूरी टीम ही चोरी चकारी में घिरती नजर आ रही है। फिलहाल आज केजरीवाल साहब शाम को घर से बाहर निकले और कहा कि तीन लोगों की एक कमेटी बना दी है, वो हमारे सदस्यों के मामले की जांच करेंगे और अगर ये दोषी होंगे तो इन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा। हाहाहहाहाह कमाल है केजरीवाल साहब। पहले तो ये बताइये कि कमेटी किसने बनाई है ? जब आपने ही कमेटी बनाई है और आप सब पर आरोप है तो कैसे मान लिया जाए कि कमेटी आपकी सही जांच करेगी ? अच्छा पार्टी तो अभी बनी भी नहीं है तो इन लोगों को किस पार्टी से निकाल देंगे आप ?  अगर वाकई आपको अपने सदस्यों की जांच चाहिए तो जैसे दूसरों के मामले में जांच की मांग करते हैं, वैसे ही सरकार से मांग कीजिए की जांच कराए।

महत्वपूर्ण ये है कि आपकी बनाई कमेटी को कोई अधिकार हासिल  है नहीं। ऐसे में ये टीम जांच कैसे कर पाएगी। टीम को जांच के लिए सरकारी अभिलेखों  की भी  जरूरत  होगी। अब सरकारी अधिकारी आपकी बनाई टीम को सरकारी अभिलेख भला क्यों दिखाएंगे ? मान लीजिए अगर टीम प्रशांत भूषण की जांच करती है तो उसे सरकारी अभिलेख में ये देखना होगा कि जो जमीन चाय बगान के लिए आरक्षित थी, वो जमीन ही भूषण को दी गई है। अब भूषण जी तो आपको ये अभिलेख टीम को दिखाने वाले नहीं है, इसके लिए तहसील में अभिलेखों की जांच करनी  होगी। जांच का ये विषय भी होगा कि कैसे जमीन दी गई, किसके आदेश पर जमीन दी गई, नियमों की अनदेखी  कैसे की  गई। ये बात प्रशांत टीम  को बताएंगे ? अंजलि  के मामले  को ले लें, उनके मामले में भी सरकारी अभिलेखों  की जरूरत होगी। ये टीम कैसे सरकारी अधिकारियों और अभिलेखों को तलब कर पाएगी। कृषि की जमीन का किन हालातों  में लैंड यूज बदला  गया, इसमें कौन कौन से नेता  अफसर जिम्मेदार थे, ये कौन बताएगा। केजरीवाल  साहब देश को गुमराह  मत कीजिए। 

एक सवाल  आप  से  पूछता हूं  केजरीवाल साहब । अगर आप बिना जांच के कानून मंत्री का  इस्तीफा मांग सकते हैं,  तो बिना जांच के अपने सदस्यों को टीम से बाहर क्यों  नहीं  कर सकते ?  मैं कहता  हूं  कि गंभीर आरोप लगा  है, ऐसे में  कम से कम अपने सहयोगियों को तो  टीम से बाहर करने की  हिम्मत दिखाइये। ये कह कर आप बच नहीं  सकते  कि आपने जांच टीम बना दी है, कल को साबित  हो जाए कि  हां लोगों ने गडबड़ी की है तो आप अपना पुलिस स्टेशन  बनाकर कहें कि उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी गई है। फिर अपनी अदालत और जेल भी बना लीजिए। वैसे  भी आप ने ऐलान  किया है कि आप  मनमोहन सिह को आप अपना  प्रधानमंत्री मानते ही नहीं है। मतलब  साफ है कि देश के लोकतंत्र में आपको  यकीन ही नहीं रह गया है। समानांतर व्यवस्था चलाने  के हिमायती  हैं, तो फिर दिखावा क्यों ?  बनाइये संसद, पुलिस स्टेशन, अदालत और जेल। 

बहरहाल नेताओं पर आरोप लगता है तो हमें उतनी हैरानी नहीं होती, क्योंकि आज लोग नेताओं के बारे में बात तक करना पसंद नहीं करते। हालत ये है कि भले ही नेताओं पर आरोप ही लगे कि उन्होंने करप्सन किया है, फिर भी हम बिना जांच के ही मान लेते हैं कि हां नेता है तो जरूर किया होगा। लेकिन करप्सन के खिलाफ बड़ी बड़ी बातें करने वाले जब ऐसे मामले में शामिल होते हैं तो देश का भरोसा टूटता है। मैं देख रहा हूं कि इंडिया अगेंस्ट करप्सन से जितने लोग भी जुड़े हैं, सभी के अपने एनजीओ की अलग अलग दुकान है। आमतौर पर सभी  अपने  एनजीओ से मोटा माल बनाने में लगे  हैं।  कुतर्क से सच  को नहीं दबाया  जा सकता, सच पारदर्शी  होता है,  जिसे जनता देख रही है। इस सवाल  का क्या जवाब  है आपके पास कि जो लोग  भी शुरू से आपके साथ  जुड़े थे, एक एक कर सब अलग हो गए। वजह क्या है कि अलग  हुए ज्यादातर लोगों को अरविंद केजरीवाल से ही शिकायत  है। बेचारे अन्ना को ये कहने  को क्यों  मजबूर  होना पड़ा की अब टीम केजरीवाल ना उनके नाम का इस्तेमाल करेगी  और ना  ही चित्र का। अगर अन्ना ऐसा कहते हैं तो आसानी से समझा  जा सकता  है कि दाल  में कुछ काला  जरूर है।


Tuesday 16 October 2012

मंत्री के काबिल नहीं रहे सलमान ...

 आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को अब पद पर बने रहने का अधिकार नहीं रह गया है। भाई आपको हो क्या गया है ? हर किसी को धमकी देते फिर रहे हैं, पत्रकार को कोर्ट में देख लेने की धमकी, अरविंद टीम को फर्रुखाबाद में देख लेने की धमकी। एक मंत्री अगर ऐसा कहे कि फर्ऱूखाबाद चले तो जाएंगे, लेकिन लौटने का भी इंतजाम कर लीजिए। ये क्या बात है ? क्या कहना चाहते हैं मंत्री जी, क्या आप ये कह रहे हैं कि जो आपके काले कारनामों की पोल खोलेगा उसकी आप सुपारी दे देंगे ? जो बात कहते हुए आपको देश ने सुना है, उसके बाद तो आप एक मिनट भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहने के काबिल नहीं है। ऐसी धमकी देने वाले की जगह जेल होती है। बिना किसी लाग लपेट के आपको तत्काल देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। वैसे भी जांच में जो प्राथमिक सूचनाएं उत्तर प्रदेश से मिल रही हैं, उससे आपका गोरखधंधा सामने आता जा रहा है।  
कानून मंत्री सलमान खुर्शीद साहब फिलहाल बुरे फंस गए। बेचारे अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार बैठे। खुर्शीद साहब आपको तो हम सब सुलझा हुआ नेता समझते हैं, पर आप भी वही निकले। ( जब तक मामला कोर्ट में है तब तक मैं आपको भ्रष्ट नहीं कह रहा।) पर एक बात बताऊं इस मामले में जितने कागजात मीडिया के पास हैं, उससे तो आप के खिलाफ स्टोरी बनती ही थी और आजतक ने अगर आपको कटघरे में खड़ा किया तो मैं समझता हूं कि कोई गल्ती नहीं की। वैसे सलमान जी एक बात बताइये, आप भी जानते हैं कि जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फैंकते। आपको ये राय किसने दे दी कि घर पर मीडिया को बुलाकर तेज आवाज में बात कर उनकी आवाज दबाने की कोशिश करो। क्या जरूरत थी प्रेस कान्फ्रेंस में पत्रकारों पर भारी पडने का प्रयास करने की। देखिए ना जो खबर एक दो दिन चल कर हट जाती, वो आज तक चल रही है और उसमें आपकी कितनी फजीहत हो रही है।

वैसे सलमान साहब सब जानते हैं कि चाहे आपका ट्रस्ट हो या फिर किसी और का। कहीं ईमानदारी नहीं है, इसीलिए तो जब नेताओं ने कहा कि लोकपाल के दायरे में नेताओं को डालो तो एनजीओ को भी शामिल कर दो। तो बड़े बड़े लोगों की हवा निकल गई थी, खुद अरविंद केजरीवाल ने भी इसका विरोध किया। बाद में सफाई दी गई कि उन एनजीओ को इसमें शामिल किया जाए जो सामाजिक कार्यों के लिए सरकार से पैसे लेते हैं। देश में 40 फीसदी से ज्यादा ऐसे एनजीओ हैं, जिन्हें विदेशों से पैसा मिलता है। उन्हें लगा कि वो ऐसा बोल कर बच सकते हैं, क्योंकि इस पैसे का दुरुपयोग होता ही है। सरकारी पैसे लेने वाले जो एनजीओ हैं उसमें 90 फीसदी एनजीओ नेताओं और अफसरों की पत्नियों के नाम है। नेता और अफसर अपनी पत्नी को एनजीओ का कर्ताधर्ता बनाकर सरकारी पैसे की लूट करते हैं। ये बात किसी से छिपी नहीं है, इसलिए इस पर ज्यादा चर्चा करना ही बेकार है।

आइये सलमान खुर्शीद साहब से ही बात की जाए। दरअसल सलमान जी देश में चोर वही है जो पकड़ा जाए। गुस्सा मत हो जाइयेगा, पर ये सच्चाई है कि आप पकड़ गए। आपके ट्रस्ट का कच्चा चिट्ठा सार्वजनिक हो चुका है। इसलिए अब ये कहना कि सब कुछ अच्छा भला है तो इस बात को कोई नहीं मानने वाला। सच बताऊं मुझे लगा कि आप लंदन से दिल्ली आने पर जब देखेंगे कि पूरा माहौल आपके खिलाफ है, तो आप कुछ ऐसा निर्णय लेगे, जिससे आपकी किरकिरी होने से बच जाए। आदमी कितना भी बड़ा क्यों ना हो, लेकिन जब वो बेईमानी में फंस जाता है तो उसके लिए आंख मिलाकर बात करना संभव नहीं रहता है। ऐसे में मुझे नहीं पता कि आप किसकी सलाह पर मीडिया से दो दो हाथ करने को तैयार हो गए और प्रेस कान्फ्रेंस में आस्तीन चढ़ाने लगे। सलमान साहब सच में आपने एक अच्छा मौका गवां दिया। आप कह सकते थे कि ये सारा मामला दो तीन साल पुराना है, मैं मंत्री बनने के बाद ट्रस्ट के काम में ज्यादा वक्त नहीं दे पाया। मीडिया ने जो भी आरोप लगाए हैं, मैं चाहूंगा कि उसकी जांच सरकार भी करे और मैं भी करुंगा। दोषी लोग बख्शे नहीं जाएंगे। इससे सांप भी मर जाता और लाठी भी बची रहती। पर आपने उल्टा किया, हालत ये हो गई कि मीडिया ने आपकी जितनी किरकिरी नहीं की, उससे ज्यादा तो आपने अपने आचरण से करा ली।

अच्छा अभी भी आप हास्यास्पद काम कर रहे हैं। मानहानि का मुकदमा दिल्ली, मुंबई और लंदन में कर रहे हैं। अखबारों में पढ़ा कि आपने दो सौ करोड़ रुपये की मानहानि का दावा  ठोका है। मैं सोचता था कि आप जैसे नेताओं के मान सम्मान की कोई कीमत नहीं लगा सकता, देश दुनिया में आपका नाम है। लेकिन आपने खुद ही अपने सम्मान की कीमत लगा दी, इसीलिए सब कह रहे हैं कि आपकी कीमत लगाई जा सकती है। खैर मेरा मानना है कि आप सैकड़ों अदालत में मामला दायर करते, लेकिन कीमत टोकन मनी एक रुपया रखते तो आपका सम्मान बहुत ज्यादा बढ़ जाता। सलमान साहब आप वकील हैं, ज्यादा बेहतर कानून समझते हैं। आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि आप कई कोर्ट में मामला दर्ज कर मीडिया हाउस पर अनैतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ये तो टीवी टुडे ग्रुप है, कोई हल्का फुल्का ग्रुप होता तो उसका संपादक अब तक आपके चरणों में आ गया होता। आपकी कार्रवाई में इसी अहम की बू आ रही है। अच्छा एक सवाल मेरा भी है, एक ओर आप खुद सरकार को पत्र लिख रहे हैं कि पूरे मामले की जांच करा ली जाए, दूसरी ओर मानहानि का मामला भी दायर कर रहे हैं। अगर जांच रिपोर्ट में ये बात साबित हो जाए कि आपकी संस्था में भ्रष्टाचार हुआ है, तो फिर किस बात की मानहानि। ऐसे में पहले तो जांच रिपोर्ट का इंतजार आप भी कर लेते, उसके बाद कोर्ट जाते। लेकिन साहब आप तो मंत्री है, जांच रिपोर्द में जो लिखा होगा, वो आपको पहले ही पता है, इसीलिए तो जांच की बात भी कर रहे हैं और मानहानि का मुकदमा भी। 

सलमान साहब एक शिकायत है आपसे। आप बहुत पुराने नेता हैं और उत्तर प्रदेश में काफी समय तक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, मेरा मानना है कि आपको प्रेस कान्फ्रेंस में अपने व्यवहार पर चेक लगाना चाहिए था। आमतौर पर जब आदमी के पास किसी बात का जवाब नहीं होता है, या उसकी कोई चोरी पकड़ जाती है तो वो सामने वाले पर तेज आवाज में बोलकर हावी होने की कोशिश करता है। इसीलिए ना " चोरी और सीनाजोरी " की कहावत ज्यादा सुर्खियों में रहती है।  हो सके तो प्रेस कान्फ्रेंस की सीडी किसी मीडिया हाउस से मंगवा लें, और खुद देंखे कि उस दौरान आप कैसे लग रहे थे। वैसे भी जिस अंदाज में आप प्रेस कान्फ्रेंस में पत्रकार भाई को कोर्ट में देख लेने की चुनौती दे रहे थे, उससे यही मैसेज जा रहा था कि आप कानून मंत्री हैं और उसकी ताकत पत्रकार नहीं समझ रहे हैं।  
लक्ष्मण रेखा तो पत्रकार ने भी लांघी ...

मेरा मानना है कि हमें जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट में अंतर करना ही होगा। सलमान की प्रेस कान्फ्रेंस में जिस अंदाज में पत्रकार भाई नजर आए उसे भी सभ्य समाज में हम जायज नहीं ठहरा सकते। सलमान और उनकी पत्नी को अगर इस विषय पर कोई जवाब देना होता तो वो पहले ही दे देते। डेढ़ महीने से मीडिया हाउस इस स्टोरी पर काम कर रहे था। उनके पास कोई जवाब था ही नहीं। इसलिए वो फर्जीवाडा करते रहे। लेकिन प्रेस कान्फ्रेस में चैनल जानबूझ कर कहें या शरारतन हंगामे की स्थिति पैदा करने गया था, क्योंकि  जिस तरह से प्रेस कान्फ्रेस मे उस मीडिया हाउस के लगभग दर्जन भर पत्रकार और कैमरामैन थे, उससे ही ये लग गया कि कुछ होने वाला है। फिर एक कैमरा सलमान पर, दूसरा कैमरा पत्रकार पर लगा हुआ था। जब सलमान खुर्शीद बोल रहे थे, उस समय भी चैनल ने दो फ्रेम बनाया, मकसद साफ था, वो जनता को मैसेज दे रहे थे कि यहीं रहें हमारे पत्रकार जी कुछ करने वाले हैं। सलमान के व्यवहार की तो मैं निंदा कर चुका हूं, लेकिन पत्रकार के व्यवहार और अंदाज दोनों की जितनी निंदा की जाए वो कम है।


एक जरूरी सूचना :-

मित्रों आपको पता है कि मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा हूं। दिल्ली में रहने के दौरान सियासी गलियारे में जो कुछ होता है, वो तो मैं सबके सामने बेबाकी से रखता ही रहता हूं और उस पर आपका स्नेह भी मुझे मिलता है। अब लगता है कि आप में से बहुत सारे लोग टीवी न्यूज तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियां नहीं समझ पाते होगें। मैने तय किया है कि अब आपको मैं टीवी फ्रैंडली बनाऊं। मसलन टीवी के बारे में आपकी जानकारी दुरुस्त करुं, गुण दोष के आधार पर बताऊं कि क्या हो रहा है, जबकि होना क्या चाहिए। इसमें मैं आपको इंटरटेंनमेंट चैनल को लेकर भी  उठने वाले सवालों पर बेबाकी से अपनी राय रखूंगा। मेरी नजर प्रिंट मीडिया पर भी बनी रहेगी। इसके लिए मैने  एक नया ब्लाग बनाया है, जिसका नाम है TV स्टेशन ...। इसका URL है।   http://tvstationlive.blogspot.in । मुझे उम्मीद है कि मुझे इस नए ब्लाग पर भी आपका स्नेह यूं ही मिता रहेगा।    


Saturday 13 October 2012

ज्योतिष यानि मीठा जहर ...


न में एक सवाल हमेशा उठता रहता है कि क्या किस्मत में जो लिखा है वो होकर रहेगा ? या उसे बदला जा सकता है ? मेरी राय तो स्पष्ट है कि जो कुछ होना है, जब होना है वो होकर रहेगा। मुझे लगता है कि ऐसा मानने वाला सिर्फ मैं ही नहीं हूं, बल्कि देश में एक बड़ा तपका भी यही मानता है। लेकिन देश में कुछ लोग हैं जिन्हें लगता है कि ज्योतिष से सब कुछ पलक झपकते ही मनमाफिक किया जा सकता है। मसलन ज्योतिषाचार्य अगर चाहे तो विधाता के लिखे भाग्य को भी बदल सकता है। अब मेरा सवाल है, क्या आप भी ऐसा ही समझते हैं कि ज्योतिषी विधाता के लिखे भाग्य को उलट पलट कर सकता है? क्या वो गति को रोक सकता है ? क्या वो समय में परिवर्तन ला सकता है ? आपके जीवन के अशुभ फलों को क्या कोई टोना टोटका करके शुभ में बदल सकता है? जब हम ज्योतिष पर चर्चा करते हैं तो ऐसे ही तमाम सवाल खुद बखुद सामने आ खड़े होते हैं।

दरअसल कुछ तथाकथित अनाड़ियों ने इस ज्योतिष विज्ञान की ऐसी तैसी कर दी और इसे एक व्यवसाय बना डाला है। यानि लाभ हानि को वो शुभ अशुभ के रूप में देखने लगे हैं। वैसे हो सकता है कि मेरी जानकारी अधूरी हो, पर जहां तक मैं समझता हूं ज्योतिष भी वेदों जितनी ही प्राचीन है। इसके गणित के हिस्से के बारे में बहुत साफ साफ कहा जा सकता है,  क्योंकि वेदों में इसकी स्पष्ट गणना मौजूद है। वैसे प्राचीन समय में खगोलीय पिंडों, ग्रह और नक्षत्रों के अध्ययन के विषय को ही ज्योतिष माना जाता था, लेकिन अब इसे लोगों के जीवन  के विश्लेषण विषय तक सीमित कर संकीर्ण बना दिया गया है। यही वजह है कि ये बहुत कुछ अविश्वसनीय लगने लगा है। अच्छा अनाड़ियों और अपात्रों की वजह से ज्योतिष की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है।

हालत ये हो गई है कि तमाम लोग ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने लगे हैं। ये दो चार विधि विधान बताकर दावा करते हैं कि मनुष्य का भाग्य चमका सकते हैं। मैं कई जगह ये बात पढ़ चुका हूं कि अगर विधि के विधान को बदला जा सकता, तो भगवान श्रीराम को 14 साल के लिए वनवास पर नहीं जाना पड़ता। भगवान राम के साथ मइया सीता और लक्ष्मण भी वनवास न भोगते। अगर विधाता का लिखा बदला ही जाता तो महाभारत का युद्ध कत्तई ना होता। सती माता पार्वती जी भला सती कैसे हो जातीं। श्री गणेश जी का सिर न कटता। भगवान विष्णु जी का सिर धड़ से अलग भी नहीं हो सकता था। आपको पता है ना ब्रह्मा जी का एक सिर धड़ से अलग न होता तो आज वे पंचमुखी होते। लक्ष्मी जी विष्णु जी को छोड़कर न जातीं । भगवान विष्णु को घोड़े का सिर न लगाना पड़ता। ये सवाल उठना तो स्वाभाविक है ना। जो ईश्वर सब कुछ कर सकते हैं वो तो विधान भी बदल देते। अगर विधि के विधान के लिखे को बदलने की क्षमता ईश्वर में होती, तो क्या ये सब घटनाएं हो सकती थीं ? मुझे तो लगता है बिल्कुल नहीं।

मेरा आशय आप समझ गए होंगे, यानि विधि के विधान को खुद ईश्वर भी नहीं बदल सकते, फिर एक साधारण आदमी भला इसे कैसे बदल सकता है? जो हमेशा छल-कपट का सहारा लेता है, वो कैसे किसी के भाग्य को बदलने दावा कर सकता है? सच बताऊं ! अगर आप कहते हैं कि आप का भाग्य किसी ज्योतिषी ने बदल दिया है, तो ये एक बहुत बड़ी भूल है। क्योंकि ये तो पहले से तय है तो जो होना है। हां ज्योतिष को एक मार्गदर्शक के रुप मे लेते हैं तो ठीक है, ये एक सच्चा मित्र हो सकता है। वरना ज्योतिष एक जहर है और इससे बड़ा दुश्मन आपका कोई नहीं हो सकता। मेरी व्यक्तिगत राय में तो ज्योतिष और त्योतिषी दोनों मीठे जहर के समान हैं, जिसके भी जीवन में ये घुल जाते हैं, उसे कहीं का नहीं छोड़ते। ज्योतिष भय प्रधान है जो मुख्य कर्म में हमेशा बाधक बनता है। मैं देखता हूं कि ज्योतिषी हमेशा राय देते हैं आप ये करो, ये मत करो,  ऐसा करो, वैसा ना करो, इससे आपका भाग्य बदल जाएगा। मैं मानता हूं कि ईश्वर के विधान को कोई नहीं बदल सकता। मेरा तो यही मानना  है कि आज शनि, राहू, मंगल, केतु आदि ग्रहों का भय दिखाकर ज्योतिषी महज अपने झूठ और फरेब का कारोबार चला रहे हैं।

यहां आपको ये भी बता दूं कि नोबेल पुरस्कार विजेता डा. वेंकटरमन रामा कृष्णन ने पूरे ज्योतिष शास्त्र को ही फर्जी बता दिया है। उनका कहना है कि ये सिर्फ सलाहों की शक्ति पर आधारित है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है। हालाकि उनके इस बयान के बाद काफी विवाद हुआ, लेकिन वो अपनी बात पर आज भी कायम हैं। अच्छा आप सब एक बात बताइये । भगवान ने आदमी की किस्मत भी कहां कहां लिख दी है। कोई हाथ की रेखा देख कर भूत भविष्य बताता है, कोई मस्तक की रेखाओं से किस्मत बता देता है। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि क्या वाकई हाथ और मस्तक पर आदमी की किस्मत का लेखा जोखा है।

एक और अहम बात। आज कल अपात्र ज्योतिषाचार्यों से तो मुश्किल है ही, फर्जी कुंडली  का भी जोर है। पांच फीसदी लोग ही ऐसे होंगे जिन्होंने अपने बच्चों की कुंडली उनके जन्म के तुरंत बाद बनवाई होगी। वरना तो कई साल गुजर जाने के बाद लोग कुंडली  बनवाते हैं, जिसमें समय वगैरह अनुमान के मुताबिक होता है। आपको पता  होना चाहिए कि ज्योतिष के गणित में सेकेंड के हजारवें हिस्से की भी गणना होती है, ऐसे में अगर आपके जन्म का समय एक सेकेंड भी गलत बताया तो वो कुंडली बेमानी है। ऐसी ही कुंडली पर ज्योतिषाचार्य बड़ी बड़ी बातें करते हैं।

अब सवाल ये है कि आखिर हमारा भला कौन कर सकता है ? फिलहाल इसका जवाब तो एक ही है। ईश्वर ही हमारा भला कर सकते हैं। प्रभु को याद करें वो भी मन से, तब तो सब शुभ-शुभ ही होगा। वैसे आपने कभी सोचा है कि आप तो हजारों किलोमीटर का सफर तय करके जाते हैं माता वैष्णो देवी, कामाख्या देवी, विंन्ध्याचल देवी, मनसा देवी, महामाया देवी या ऐसे ही तमाम और मंदिर में देवी का दर्शन करने के लिए। लेकिन मूर्ति के सामने पहुंच कर हम सब हाथ जोड़कर आंखे बंद कर लेते हैं। आखिर ऐसा क्यों ? भाई अगर आप दर्शन करने गए हैं तो आंखे खोलकर दर्शन कीजिए। पर ऐसा  होता  नहीं है। आप ने कभी ये सोचा कि जब हम आंखे बंद कर लेते हैं तो फिर जाते कहां हैं ?  मैं बताता हूं। आंखे बंद करने के बाद  हम अपने ही भीतर जाते हैं। ऐसा क्यों ये भी जान लीजिए।

हम देवी की आरती गाते हैं तो एक लाइन पढ़ते हैं  " तुम  हो  एक अगोचर, सबके प्राण पती " यानि तुम ना दिखाई देने वाली ऐसी ताकत हो जो सबके प्राणों में विराजमान हो। इसीलिए हम आंखे बंद कर अपने ही भीतर जाते हैं। लिहाजा मन को शुद्ध रखिए और पूरी श्रद्धा से ईश्वर को याद  कीजिए। बस इसी से कल्याण तय है। मन को इधर उधर मत भटकने दीजिए, भगवान  के चरणों में मन लगाएं। ज्योतिषियों के चक्कर में जितना फंसेंगे उतना ही आप ईश्वर से दूर होते चले जाएंगे।

अच्छा आज ज्योतिषियों की भविष्यवाणी का हाल क्या  है, एक उदाहरण देता हूं। देश में करोड़ो लोग क्रिकेट के प्रेमी हैं। 23 सितंबर को टी 20 वर्ल्डकप में भारत और  पाकिस्तान का मुकाबला होना था। एक  ज्योतिषाचार्य ने फेसबुक वाल  पर लिखा कि  रात आठ बजे से 10.30 तक भारत का समय खराब  है। अब  बताइये मैच का फैसला  ही रात दस सवा दस के करीब  होना था, मतलब साफ की भारत की पराजय होनी है। लेकिन भारत  ने पाकिस्तान  को  बुरी तरह से हरा दिया। वाह रे ज्योतिष और ज्योतिषाचार्य..

मेरी आप बीती कहानी...

मैं गुवाहाटी में 1989 से 91 तक वहां के एक स्थानीय समाचार पत्र में काम कर रहा  था। उस दौरान मैं अक्सर माता कामाख्या देवी के दर्शन करने जाया करता था। यहां मेरी मुलाकात एक पहुंचे हुए औघड़ संत से हुई। माता में मेरी श्रद्धा को देखते हुए उन संत ने मुझे कुछ मंत्र देना चाहा। मुझसे पूछा बताओ तुम क्या चाहते हो। मैने कहा कि मुझे कुछ ऐसी चीज दें, जिससे मैं दूसरों की सेवा कर सकूं। इस पर उन्होंने मुझे पहले नजर झाड़ने का मंत्र दिया। फिर एक मंत्र दिया जिससे अगर लोगों के आधे सिर में  दर्द हो तो उसे मंत्र के जरिए ठीक किया जा सकता है। दो मंत्र के बाद मैने उनसे कहा कि बाबा हमारे गांव में अक्सर लोगों को सांप काट लेता है, मैं चाहता हूं कि वो मंत्र भी  दें, जिससे मैं ऐसे लोगों की मदद कर सकूं।

इस पर उन्होंने साफ मना कर दिया, कहा कि इस मंत्र  के साथ आप  न्याय नहीं कर  पाओगे। मतलब ये मंत्र जिसके पास होता है, उसे अगर पता भी चल जाए कि कहीं, कितनी भी दूर किसी को सांप ने काट लिया है, तो आंधी तूफान, बाढ की चिंता किए बगैर खुद वहां पहुंच कर पीड़ित व्यक्ति की मदद करनी होती है। अगर आप नहीं जाते हैं तो इस मंत्र का असर अपने आप खत्म हो जाता है। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं  कि ये कठिन काम है और आप नहीं कर सकते। सच कहूं तो मुझे भी लगा कि शायद मैं ये ना कर पाऊं और मैने वो मंत्र नहीं लिया। हैरानी इस बात की हुई कि मंदिर जाने  के दौरान रास्ते में दो साल तक जिस संत से मेरी हमेशा मुलाकात हुआ करती थी, दो मंत्र मुझे देने के बाद उनसे फिर कभी मुलाकात नहीं हुई, जबकि मैं मंदिर उसके बाद भी जाता रहा हूं।

इस बात का  जिक्र मैं  महज इसलिए कर रहा हूं कि आपको पता चल सके कि अगर आप अपने ज्ञान का दुरुपयोग करते हैं तो आपका ज्ञान स्वत: समाप्त हो जाता है। उसमें असर नहीं रह जाता है। खास बात तो ये कि आपको पता भी नहीं चलता कि आपका ज्ञान समाप्त हो चुका है। ऐसे में लोग दूसरों के लिए कुछ भी बातें करते रहें, उसका आभास तो होता नहीं, लेकिन जब मुश्किल अपने परिवार पर आती है, तब आदमी हैरान होता है कि आखिर मेरा ज्ञान बेअसर क्यों हो गया है, लेकिन तब तक तो काफी देर हो चुकी होती है।


एक जरूरी सूचना :-

मित्रों आपको पता है कि मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा हूं। दिल्ली में रहने के दौरान सियासी गलियारे में जो कुछ होता है, वो तो मैं सबके सामने बेबाकी से रखता ही रहता हूं और उस पर आपका स्नेह भी मुझे मिलता है। अब लगता है कि आप में से बहुत सारे लोग टीवी न्यूज तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियां नहीं समझ पाते होगें। मैने तय किया है कि अब आपको मैं टीवी फ्रैंडली बनाऊं। मसलन टीवी के बारे में आपकी जानकारी दुरुस्त करुं, गुण दोष के आधार पर बताऊं कि क्या हो रहा है, जबकि होना क्या चाहिए। इसमें मैं आपको इंटरटेंनमेंट चैनल को लेकर भी  उठने वाले सवालों पर बेबाकी से अपनी राय रखूंगा। मेरी नजर प्रिंट मीडिया पर भी बनी रहेगी। इसके लिए मैने  एक नया ब्लाग बनाया है, जिसका नाम है TV स्टेशन ...। इसका URL है।   http://tvstationlive.blogspot.in । मुझे उम्मीद है कि मुझे इस नए ब्लाग पर भी आपका स्नेह यूं ही मिता रहेगा।    
 





Wednesday 10 October 2012

नाना का नाम धो डाला खुर्शीद दंपत्ति ने ...

कांग्रेस का दिन ही खराब है। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा का मामला अभी ठंडा नहीं पडा है कि पार्टी के रसूखदार नेता कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की चोरी पकड़ी गई। अब तक जितने भी तथ्य सामने आए हैं, उसे देखते हुए सलमान को उनकी पत्नी सहित जेल में होना चाहिए। लेकिन मुश्किल ये है कि देश में अपराधियों को सजा कहां मिल पाती है, फिर अपराधी अगर नेता है तब तो सजा बहुत मुश्किल है, वो नेता अगर मंत्री है तब तो सजा का सवाल ही नहीं उठता। वैसे सच ये भी है कि नेता अक्सर खुद को समाजसेवी बताते हैं और कहीं वें सांसद या विधायक चुन लिए गए फिर तो उनके समाजसेवा का कद और बढ़ जाता है, किसी वजह से उन्हें मंत्री का ओहदा मिल गया तब तो वो खुदा बन जाते हैं। जनहित के नाम पर नंगा नाच करने वाले ऐसे ही दंपत्ति सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुइश खुर्शीद को बेनकाब किया आज तक ने अपने खास कार्यक्रम आपरेशन दृटराष्ट में।

आइये आपको बताते हैं इस मंत्री की कारस्तानी। पहले तो मंत्री जी ने अपने नाना यानि देश के राष्ट्रपति रहे जाकिर हुसैन के नाम से एक एनजीओ का गठन किया। इस एनजीओ का नाम है जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट। इसका पता मंत्री जी का निवास यानि 4, गुलमोहर एवेन्यू, जामियानगर, नई दिल्ली दर्ज है। ये पता देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का है। खुर्शीद ने अपने नाना की याद में ये ट्रस्ट बनाया। अब इस ट्रस्ट पर आरोप है कि विकलांग कल्याण के नाम पर सरकारी ग्रांट हड़पने के लिए तमाम जालसाजी की गई है। आपको हैरानी होगी कि गोरखधंधे में लिप्त जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष खुद सलमान खुर्शीद हैं और इसकी प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में उनकी पत्नी लुइस खुर्शीद है। 

दरअसल इस मामले का खुलासा हुआ उत्तर प्रदेश सरकार के एक गोपनीय पत्र के जरिए। ये पत्र यूपी सरकार ने भारत सरकार के सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय को लिखा था। इस पत्र से ही जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट के गोरखधंधे का खुलासा हो गया। अच्छा इसमें दो चार हजार रुपये नहीं पूरे 71 लाख रूपये डकार गए ये नेता। आपको पता ही है कि सलमान खुर्शीद केंद्र में कद्दावर नेता हैं। इसीलिए भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने खुर्शीद के ट्रस्ट को 71 लाख 50 हजार रुपये का भुगतान किया। इस पैसे से चलने फिरने में असमर्थ विकलांगों को व्हील चेयर दी जानी थी। इसके अलावा कम सुनने वालों को हियरिंग एड दिया जाना था। इन सामानों के वितरण का तरीका तो ये था कि  पहले वहां के डीएम को बताया जाता, जिले के कल्याण अधिकारी अपनी सूची भेजते, शिविर लगाया जाता, चीफ मेडिकल ऑफिसर शिविर में मौजूद होते और जिसे वो कहते उसे जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट तिपहिया या हियरिंग एड देता।

वैसे ये कार्रवाई तो तब की जाती जब इन नेताओं का मन साफ होता। इनका मकसद तो विकलांग कल्याण के नाम पर मिले पैसों को हड़पना था, लिहाजा किसी को कोई जानकारी नहीं दी गई। फर्रुखाबाद जहां सलमान खुर्शीद का कार्यक्षेत्र है, वहां के जिला कल्याण अधिकारी ने दावा किया कि उन्हें जाकिर हुसैन ट्रस्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद का दावा है कि फर्ऱूखाबाद में शिविर भी लगा, वहां विकलांगों को उपकरण भी बंटा, अफसरों को इसकी जानकारी भी दी गई। लेकिन यहां के सभी अफसरों ने ऐसी किसी जानकारी से इनकार कर दिया। इसी तरह मैनपुरी के अलावा कुछ और जिलों में भी इस ट्रस्ट के नाम पर गोरखधंधा किया गया।

हैरानी की बात तो ये है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को पिछले साल मई में ही इस बात की जानकारी मिल गई थी कि सलमान खुर्शीद की अगुवाई वाला ट्रस्ट ईमानदारी से काम नहीं कर रहा है। यहां से जो पैसे दिए जाते हैं उसकी बंदरबांट हो रही है, लेकिन जब मंत्री रसूखदार हों तो भला छोटे मोटे अफसर और कर्मचारी इनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत कैसे जुटा सकते थे। लिहाजा सब कुछ जानते हुए भी पैसों का भुगतान होता रहा। इस मामले की जानकारी के बाद आज तक ने अपनी टीम का जाल बिछाया और स्टिंग आपरेशन की योजना बनाई। इस आपरेशन में अफसरों की बेबसी खुफिया कैमरे पर दर्ज हुई। पता चला कि ट्रस्ट ने बड़े-बड़े अफसरों के फर्जी दस्तखत और मुहर लगाकर कागजों में कैंप लगाए, बेनामी लाभार्थियों की लिस्ट बनाई गई, पूरा पैसा हजम कर लिया गया।

जांच पड़ताल शुरू हुई तो पता चला कि सलमान खुर्शीद की अध्यक्षता वाले ट्रस्ट ने ना सिर्फ पैसा हड़पा, बल्कि इन्होंने अफसरों के फर्जी हस्ताक्षर, मुहर और पदनाम तक बना डाले। कुछ अफसरों ने भी कैमरे पर कहा कि उनके फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं। बताते हैं कि शिकायत मिलने सरकार ने भी 17 जिलों के जिलाधिकारी से रिपोर्ट तलब की। जब जिलों से जांच की रिपोर्ट आने लगी को सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट की कलई खुल गई। पता चला कि लाभार्थियों को मदद मिली या नहीं इसकी तस्दीक करने वाली सरकारी टेस्ट रिपोर्ट में भी जमकर कलाकारी की गई। इटावा से आई रिपोर्ट में सीएमओ के दस्तखत जाली थे, बुलंदशहर से रिपोर्ट आई कि विकलांग कल्याण अधिकारी का दस्तखत भी फर्जी है और मुहर भी। और तो और बुलंदशहर में जिस चिकित्सा अधीक्षक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का ज़िक्र है वो तो वजूद में ही नहीं है। सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट ने शाहजहांपुर में फर्जी ब्लॉक भी बना डाला।

बहरहाल ये बात तो साफ हो चुकी है कि कांग्रेस के कद्दावर नेता और कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी इस मामले में पूरी तरह जिम्मेदार है। नैतिकता का तकाजा यही है कि सलमान खुद अब सरकार से हट जाएं, लेकिन मनमोहन सिंह की अगुवाई वाले में मंत्रिमंडल तो चोरों की फौज है, इसलिए भला अकेले सलमान ही क्यों इस्तीफा दें। हां सलमान ने विकलांगों यानि अपाहिज लोगों को पैसा हड़पा है, इसकी सजा कानून की अदालत में तो उन्हें मिल नहीं सकती है, क्योंकि वो खुद कानून मंत्री हैं। चलिए हम सब इंतजार करेंगे कि उन्हें भगवान की अदालत से सजा मिले।

एक जरूरी सूचना :-

मित्रों आपको पता है कि मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा हूं। दिल्ली में रहने के दौरान सियासी गलियारे में जो कुछ होता है, वो तो मैं सबके सामने बेबाकी से रखता ही रहता हूं और उस पर आपका स्नेह भी मुझे मिलता है। अब लगता है कि आप में से बहुत सारे लोग टीवी न्यूज तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियां नहीं समझ पाते होगें। मैने तय किया है कि अब आपको मैं टीवी फ्रैंडली बनाऊं। मसलन टीवी के बारे में आपकी जानकारी दुरुस्त करुं, गुण दोष के आधार पर बताऊं कि क्या हो रहा है, जबकि होना क्या चाहिए। इसमें मैं आपको इंटरटेंनमेंट चैनल को लेकर भी  उठने वाले सवालों पर बेबाकी से अपनी राय रखूंगा। मेरी नजर प्रिंट मीडिया पर भी बनी रहेगी। इसके लिए मैने  एक नया ब्लाग बनाया है, जिसका नाम है TV स्टेशन ...। इसका URL है।   http://tvstationlive.blogspot.in । मुझे उम्मीद है कि मुझे इस नए ब्लाग पर भी आपका स्नेह यूं ही मिता रहेगा।    
 

Monday 8 October 2012

राजनीति के जोकर बन रहे केजरीवाल !


पके दोनों हाथो में सोना भरा हो, फिर भी आपको उम्मीद हो कि दूसरी जगह जाने पर हीरा मिलना तय है। अब हाथ तो भरा हुआ है सोने से फिर हीरा कैसे ले पाएंगे? जाहिर है आपको सोने का मोह त्यागना होगा और हाथ खाली करके हीरे की ओर बढ़ना होगा। हीरे के लालच में अगर आपने सोने का त्याग कर दिया तो क्या आप समाज की नजरों में महान हो जाएंगे ? बिल्कुल नहीं। आपको दूसरा पक्ष भी देखना होगा कि उसने सोने को यूं ही नहीं फैंक दिया, उसने हीरे की लालच में फैंका। आप खुद सोचें कि अगर हाथ खाली ही नहीं रहेगा तो भला हीरा कैसे ले पाएंगे ? अब आप इस उदाहरण को सामने रखें और कथित सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के बारे में विचार कीजिए।

अरविंद केजरीवाल आयकर विभाग में नौकरी कर रहे थे, मुझे ठीक ठीक तो पता नहीं पर लाख डेढ लाख रुपये उन्हें वेतन मिलता होगा। अगर बेईमानी की जाए तो आमदनी बढ़ भी सकती है, लेकिन इसमें रिस्क भी है। तब केजरीवाल ने तय किया कि अब वो नौकरी नहीं करेंगे और स्वयं सेवी संस्था (एनजीओ) बनाकर काम करेंगे। बहरहाल संस्था बनी, कुछ काम आगे बढ़ा। विदेशों में संपर्क बनाया गया, अब संस्था को ठीक ठाक रकम भी बाहर से मिलने लगी। आयकर विभाग मे महीने भर काम करें तो महज लाख रुपये वेतन, यहां दुकान थोड़ी सी चल गई तो लाख रुपये वेतन देने की स्थिति बन जाएगी। इसलिए नौकरी छोड़कर यहां आकर उन्होंने कोई अहसान नहीं किया है, आयकर के मुकाबले  यहां कई गुना ज्यादा पैसा है। मुझे लगता है कि मेरी बात समझ में आ गई होगी।

लगे हाथ इस बात पर भी चर्चा कर लेते हैं कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि जिस अन्ना ने केजरीवाल को केजरीवाल बनाया, उनके इनकार करने के बाद भी राजनीतिक दल बनाने पर अरविंद अड़े रहे। वैसे इसके लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा। आपको याद होगा कि जिस समय जनलोकपाल बिल को लेकर आंदोलन चल रहा था। उसमें टीम अन्ना  नेता मंत्री, अफसर और कर्मचारी सभी को इसके दायरे में लाने की मांग कर रहे थी। इस पर राजनीतिक दलों ने शोर  मचाना शुरू किया और कहा कि जनलोकपाल के दायरे में एनजीओ को भी शामिल कर दिया जाए। एनजीओ का नाम उछलते ही तथाकथित समाजसेवियों के पैर तले जमीन ही खिसक गई। क्योंकि सबको पता है कि केजरीवाल के एनजीओ को विदेशों से मदद मिलती है। इन्हें लगा कि अगर जनलोकपाल में एनजीओ को शामिल किया गया तो अपनी भी पोल पट्टी खुल जाएगी, बस फिर क्या था उसका उपाय की तलाशा जाने लगा।

अरविंद में एक बात तो है कि वो जानते हैं कि क्या किया जाए जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। आपको  पता है कि देश में राजनीतिक दलों को भी ज्ञात अज्ञात जगहों से बड़ी मात्रा में चंदा मिलता है। राजनीतिक दल ये बताने को भी मजबूर नहीं है कि ये पैसा आखिर उनके पास आया कहां से। इसका कोई हिसाब नहीं देना होता है राजनीतिक दलों को। बस फिर क्या, अरविंद को लगा कि राजनीतिक दल बनाया जाना चाहिए और जितने भी पैसे जनलोकपाल बिल के लिए आंदोलन चलाने के लिए मिले हैं या फिर आज तक मिल रहे हैं उसे इसी राजनीतिक पार्टी के खाते में डाल दिया जाए। अब ये पैसा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा, क्योंकि राजनीतिक दल अगर उनसे हिसाब मांगने की बात करेंगे तो उन्हें अपनी पार्टी का भी हिसाब देना होगा। मसला साफ है चोर चोर मौसेरे भाई।

अरविंद दुनिया भर के लोगों से जवाब मांगते हैं, आज मैं एक सवाल पूछ रहा हूं। ये बड़ा सवाल है आखिर जिस अन्ना को आगे करके ये लड़ाई लड़ी गई, जिस अन्ना के 13 दिन के आमरण अनशन की वजह से सरकार घुटने टेकने को मजबूर हो गई। उस अन्ना को इन लोगों ऐसी क्या तकलीफ पहुंचाई जिससे उन्हें ये कहने को मजबूर होना पड़ा कि अरविंद और उनकी टीम अब उनकी तस्वीर तो क्या नाम भी इस्तेमाल नहीं करेगी। अन्ना के इस  रूख  से साफ था कि अरविंद या उनकी टीम ने उन्हें ऐसी गंभीर तकलीफ पहुंचाई है, जिससे मजबूर  होकर अन्ना इतना सख्त बयान मीडिया के सामने दे रहे हैं।

अच्छा इस टीम के बिखरने की वजह आज तक साफ नहीं है। अंदर से जो जानकारी  छन कर बाहर आ रही है, उससे पता चल रहा है कि चंदे के पैसे को लेकर टीम में बिखराब हुआ। इस मामले में टीम के ही कुछ सदस्यों ने अन्ना को कहा था कि पैसे के रखरखाव की व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए। सच तो ये है कि किरण वेदी भी इस बात से नाराज थीं कि चंदे के पैसे को लेकर पूरी तरह पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। ईमानदारी की बड़ी बड़ी बातें अरविंद केजरीवाल और उनके दो तीन सहयोगी करते हैं, लेकिन जितने लोग भी टीम से अलग हुए सबकी वजह अरविंद रहे और सबने चंदे के पैसे में गोरखधंधे का आरोप लगाया। केजरीवाल इस मामले में कुछ नहीं बोलते। अगर बोले  भी तो बस इतना ही कि  सारा हिसाब किताब वेबसाइट पर मौजूद है। अरे भाई हिसाब किताब तो बाबा रामदेव का भी उनकी साइट पर मौजद है, उनका भी दावा है कि सब कुछ ठीक है, पर क्या वाकई ठीक है ?

 हां अरविंद नैतिकता की बहुत ज्यादा बातें करते हैं। मैं पूछता हूं कि दो साल आप स्टडी लीव पर थे, इस दौरान आप सरकार से वेतन भी लेते रहे। लेकिन स्टडी लीव के बाद कम से कम जितने दिन नौकरी करनी चाहिए, वो आपने नहीं किया। इसके लिए जब आपको नोटिस देकर कहा गया कि दो साल का वेतन ब्याज समेत वापस करें। इस पर आपने पहले तो इनकार कर दिया, लेकिन सरकार का कड़ा रुख देखकर आपने नौ लाख रुपये का चेक प्रधानमंत्री के आवास पर भेज दिया। मुझे एक बात का जवाब चाहिए कि क्या प्रधानमंत्री के घर पर बकाये का भुगतान करने के लिए कोई विंडो है ? ये केजरीवाल की बीमारी है, जिसे आप अहम कह सकते हैं।

आपको पता है कि अरविंद का ये पूरा आंदोलन सोशल नेटवर्क साइट की देने है। आईएसी यानि इंडिया अगेंस्ट करप्सन की बेवसाइट का संचालन एक समय में वरिष्ठ पत्रकार शिवेंद्र चौहान करते थे। कहा जा रहा है कि अरविंद के एक सहयोगी ने साइबर एक्सपर्ट की मदद से अरविंद की नई वेबसाइट " फाइनल वार अगेंस्ट करप्सन " पर आईएसी के फेसबुक एकाउंट को जोड़कर फेसबुक से जुड़े सभी छह लाख सदस्यों को वहां शामिल कर दिया। इस पर शिवेंद्र ने फेसबुक को कानूनी कार्रवाई को पत्र लिखा, इसके बाद से आईएसी अब किरण बेदी के कब्जे वाली टीम के पास आ गई है। अरविंद की साइट पर अभी ज्यादा लोग नहीं है।

अरविंद की बात हो और मीडिया की बात न हो, ये संभव नहीं है। क्योंकि अरविंद मीडिया के बिना शून्य हैं। खैर मीडिया को अभी मजा आ रहा है। दरअसल आज की इलेक्ट्रानिक मीडिया का कोई सोच तो है नहीं, यहां पूरा खेल विजुअल का है। जितना ज्यादा देर ड्रामा, उतना अधिक कवरेज। वैसे भी अरविंदे के कुछ सहयोगी इलेक्ट्रानिक मीडिया की कमजोरी जानते हैं। उन्हें पता है कि अगर विजुअल कुछ हट कर नहीं होगा तो कोई पूछेगा ही नहीं। इसलिए आजकल पूरी टीम जोकर बनी हुई है। टोपी पहन कर जनता को टोपी पहना रहे हैं।

सच कहूं तो आज कल अरविंद जो कर रहे हैं उसे देखकर ही लगता है कि वो सियासत में प्राइमरी स्कूल के छात्र हैं। आप ही बताएं कि अगर एक पेड़ को हरा भरा  रखना है तो पानी उसके जड़ में डालेंगे या फिर एक एक पत्ती को पानी में भिगोएंगे। अब देखिए बिजली बिल का भुगतान न करने वालों के कनेक्शन दिल्ली सरकार काट रही है। रोजाना सैकड़ों  की  संख्या में लोगों के कनेक्शन काटे जा रहे हैं और केजरीवाल साहब मीडिया के साथ एक व्यक्ति के घर पहुंच कर उसका कनेक्शन जोड़ देते हैं। दोनों का काम हो जाता है, मीडिया का भी और केजरीवाल साहब का भी। अब ये सब पागलपन नहीं है तो क्या है ? कह रहे हैं कि जिसकी बिजली काटी जाए, उन्हें फोन करे वो आकर जोड़ देगें। अरे भाई आप लाइनमैन हैं क्या कि सबकी बिजली जोड़ते फिरेंगे। आप राजनीति कर रहे हैं, सरकार को मजबूर कीजिए कि बेवजह किसी की बिजली काटी ही ना जाए।

बहरहाल देखा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल अपनी और आंदोलन की गंभीरता को खत्म करते जा रहे हैं। यही हालात रहा तो उनकी विश्वसनीयता का भी संकट खड़ा हो जाएगा। केजरीवाल को समझना होगा कि टीवी चैनल के पीछे खड़े होकर आंदोलन को बहुत दिन तक नहीं चलाया जा सकता। टीवी के लिए बड़ा से बड़ा आंदोलन एक पानी के बुलबुले की तरह है। अभी कोई दूसरा मामला आ गया, आप स्क्रिन से गायब हो जाएगे। केजरीवाल साहब कैमरे और सोशल नेटवर्क साइट कब आपको अनफ्रैंड कर दे विश्वास के साथ नहीं कह सकते।


एक जरूरी सूचना :-

मित्रों आपको पता है कि मैं इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडा हूं। दिल्ली में रहने के दौरान सियासी गलियारे में जो कुछ होता है, वो तो मैं सबके सामने बेबाकी से रखता ही रहता हूं और उस पर आपका स्नेह भी मुझे मिलता है। अब लगता है कि आप में से बहुत सारे लोग टीवी न्यूज तो देखते हैं, लेकिन इसकी बारीकियां नहीं समझ पाते होगें। मैने तय किया है कि अब आपको मैं टीवी फ्रैंडली बनाऊं। मसलन टीवी के बारे में आपकी जानकारी दुरुस्त करुं, गुण दोष के आधार पर बताऊं कि क्या हो रहा है, जबकि होना क्या चाहिए। इसमें मैं आपको इंटरटेंनमेंट चैनल को लेकर भी  उठने वाले सवालों पर बेबाकी से अपनी राय रखूंगा। मेरी नजर प्रिंट मीडिया पर भी बनी रहेगी। इसके लिए मैने  एक नया ब्लाग बनाया है, जिसका नाम है TV स्टेशन ...। इसका URL है।   http://tvstationlive.blogspot.in । मुझे उम्मीद है कि मुझे इस नए ब्लाग पर भी आपका स्नेह यूं ही मिता रहेगा।    


Saturday 6 October 2012

कालिख तो पुत ही गई सोनिया जी !



कांग्रेस अध्यक्ष खुद या उनकी टीम कितनी भी सफाई दे दे, लेकिन उनके दामाद राबर्ट वाड्रा पर जो गंभीर आरोप लगे हैं, उससे चहरे पर कालिख तो पुत ही गई है। अब इसे कितना भी  साफ कर लिया जाए, लेकिन इसका धब्बा आसानी से छूटने वाला नहीं है। अच्छा आज बुरी खबर सिर्फ कांग्रेस के लिए नहीं थी, बीजेपी के अध्यक्ष पर भी गंभीर आरोप लगे। सुबह न्यूज चैनलों पर बेचारे नीतिन गडकरी एक सिफारिसी पत्र को लेकर सफाई देते नजर आए, लेकिन शाम होते-होते सोनिया गांधी को भी अपने दामाद राबर्ट वाड्रा के बचाव में बयान जारी  करना पड़ा। यूं कहें कि आज का दिन दोनों ही बड़ी पार्टियों के लिए ठीक नहीं था, तो गलत नहीं होगा। आपको एक शेर सुना दूं, तो आगे लेख को समझना आसान हो जाएगा।

महसूस होता है ये दौरे तबाही है।
शीशे की अदालत है पत्थर की गवाही है।

अब आप खुद सोचें जब आरोप सत्ताधारी पार्टी अध्यक्ष के दामाद पर हो तो भला कैसे कोई जांच हो सकती है। अच्छा मान लीजिए की जांच होती भी है, कौन माई का लाल ईमानदारी से इस पूरे मामले की जांच कर सकता है ? ओह ! बाकी बातें बाद में करेंगे, पहले ये तो जान लीजिए कि " दामाद जी " पर आरोप क्या है। हां आरोप लगाने वाले हैं सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल और उनके दो सहयोगी पिता पुत्र शांतिभूषण और प्रशांत भूषण। आरोप गंभीर है, इसलिए सावधानी से पढिएगा। रियल स्टेट की बड़ी कंपनी डीएलएफ ने राबर्ट को 65 करोड़ रुपये बिना ब्याज और बिना जमानत पर लोन दिया. अब हंसिएगा नहीं, इसी कंपनी से लोन लेकर राबर्ट ने उसी से यानि डीएलएफ से ही प्रापर्टी खरीद ली। आरोप ये भी है कि राबर्ट ने कई कंपनियां बनाईं,  इस कंपनी में एक समय प्रियंका गांधी भी डारेक्टर थीं लेकिन बाद में वो यहां से हट गईं। आरोप लगाया गया है कि राबर्ट ने सिर्फ 50 लाख रुपये इन्वेस्टमेंट किया और उसके बाद डीएलएफ से 65 करोड़ रुपये ले लिए। ये सभी  प्रापर्टी 2007 से  2010 के बीच खरीदी गई है। चलिए आप भी जान लीजिए कि ये प्रापर्टी है कहां कहां।  ( ये अरविंद और प्रशात की जानकारी के आधार पर ) 

1. दिल्ली के साकेत में हिल्टन होटल में 50 फीसदी शेयर खरीदा ।
2. गुड़गांव में दस हजार वर्गफुट का मकान 89 लाख में खरीदा।
3. डीएलएफ मग्नोलिया में सात फ्लैट खरीदे 5.2 करोड़ में।
4. डीएलएफ कैपिटल ग्रीन्स में एक फ्लैट खरीदा पांच करोड़ में।
5. दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में 1.2 करोड़ का एक फ्लैट खरीदा।
6. बीकानेर में 161 एकड़ जमीन खरीदी 1.02 करोड़ में डीएलएफ अर्लियास
7. छह और जमीनें खरीदीं बीकानेर में 2.43 करोड़ की.
8. मानेसर में जमीन खरीदी 15.38 करोड़ में.
9. पलवल में जमीन खरीदी 42 लाख रुपये की.
10. हयातपुर में दो जमीनें खरीदी गईं चार करोड़ में.
11. हसनपुर में 76 लाख की जमीन खरीदी गई.
12. हरियाणा के मेवात में 95 लाख की जमीन खरीदी गई.
13. 69 लाख में एक अन्य जमीन खरीदी गई. 

इन आरोंपों के बाद टीम ने कहा कि अब सवाल उठता है कि अगर बिल्डर इस हद तक मदद कर रहा है तो आखिर उसको क्या फायदा हो रहा है ? इसका भी जवाब खुद इसी टीम ने दिया। कहा गया है कि इसके एवज में दिल्ली और हरियाणा की सरकार ने डीएलएफ को फायदा पहुंचाया है और औने पौने दाम में जमीने दी हैं। एक आम आदमी के तौर पर अगर आप पूरे मसले को देखें तो इसी नतीजे पर पहुंचेगे कि भाई दाल में कुछ तो काला जरूर है, वरना ये कैसे हो सकता है कि पहले कोई बिल्डर आप को कौड़ी के भाव प्रापर्टी दे और फिर कौड़ी भर दाम भी चुकाने के लिए इंट्रेस्ट फ्री लोन भी दे दे। मित्रों अगर आपके इलाके में कोई ऐसा बिल्डर हो तो मुझे जरूर बताइयेगा, मुझे भी फ्लैट चाहिए, कम दाम पर और बिना ब्याज के लोन से।

इसीलिए मै कहता हूं कि बात तो सही है कि एक बिल्डर आखिर राबर्ड पर इतना मेहरबान क्यों है? इसका जवाब पहले तो खुद राबर्ट को देना चाहिए, क्योंकि आरोप सीधे उन्हीं पर है। अगर ये मान लिया जाए कि राबर्ट इसलिए निशाने पर हैं क्योंकि वो सोनिया गांधी के दामाद है, तो सोनिया जी को ही कैमरे के सामने आना चाहिए और हर मुद्दे पर साफ साफ  बात करनी चाहिए। खैर दामाद पर आरोप लगने से आज कांग्रेस खेमें में हड़कंप मच गया। आमतौर पर टीवी की बहस से नेता पीछा छुड़ाते हैं, वो सामने आना ही नहीं चाहते। लेकिन आज तो गजब हो गया। कांग्रेस के जिस नेता के यहां भी मीडिया से फोन गया, सब ने  बिना ना नुकुर किए बहस में शामिल होने के लिए हां किया। जबकि  आप सब जानते हैं वाड्रा राजनीति में नहीं है, लेकिन उनके बचाव में पूरी पार्टी कदमताल करती नजर आई। 

 बहरहाल सोनिया जी मुझे पता है कि आपको मेरे सलाह की कोई जरूरत नहीं है। आपके पास तो सलाहकारों की पूरी टीम है। फिर मैं कहना चाहता हूं कि आप पार्टी और परिवार दोनों की मुखिया हैं। पार्टी में एक के बाद एक कई नेताओं के भ्रष्टाचार का खुलासा हो  चुका है, इससे पार्टी की काफी छीछालेदर हुई है। प्लीज परिवार को बचा लीजिए, इस मामले  में या तो हमेशा की तरह खामोश रहिएगा या फिर सही बात जनता के सामने रखिएगा। अगर आंख मूंद कर आप दामाद के साथ खड़ी हुई तो वाकई मुश्किल होगी।

वैसे कम तो गडकरी भी नहीं

वैसे आज सुबह कांग्रेस फ्रंट फुट पर खेल रही थी। कांग्रेस आफिस में रहने वाले हाई फाई नेता राष्ट्रीय महासचिव जनार्दन व्दिवेदी ने बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी को कटघरे में खड़ा किया। वैसे सच ये है कि नीतिन गडकरी का मामला भी कम गंभीर नही है। एक ओर तो बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक दल महाराष्ट्र में सिचाई घोटाले को लेकर बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं, लेकिन पर्दे के पीछे कुछ अलग ही खेल चल रहा है। यानि अपनी कमीज सफेद बताने वाले नेता विवादित ठेकेदारों के पैसे का भुगतान कराने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे थे। इसके लिए बकायदा उन्होंने सरकार को चिट्ठी तक लिखी है। कांग्रेस ने आज वही चिट्ठी सार्वजनिक कर बीजेपी अध्यक्ष को घेरने की कोशिश की।

गड़करी के मामले को समझने के लिए थोडा आपको पीछे चलना होगा। आपको मालूम होगा कि विदर्भ में तमाम किसान आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्या की एक वजह ये भी बताई जा रही है कि पैसा खर्च होने के बाद भी किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंचा। यानि इन बांधो और नहर का कोई फायदा नहीं किसानों को नहीं हुआ। इससे सरकार ने विवादित ठेकेदारों का भुगतान रोक दिया। अब बीजेपी अध्यक्ष को वैसे तो किसानों की मुश्किलों को सबसे ऊपर रखना चाहिए था, क्योंकि वहां किसान लगातार आत्महत्या कर रहे थे। लेकिन नीतिन गडकरी को विवादित ठेकेदारों के भुगतान की फिक्र ज्यादा सता रही थी, लिहाजा इसके लिए वो पत्र लिखकर सरकार पर दबाव बना रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि इस हेरा-फेरी में एनसीपी, बीजेपी और कांग्रेस तीनों पार्टियां मिली हुई हुई हैं। अगर ठेका पाने वालों में बीजेपी और कांग्रेस के लोग थे तो ठेका देने वालों में एनसीपी के मंत्री शामिल थे। ठेका हासिल करने वालों में नितिन गडकरी के करीबी और राज्यसभा सांसद अजय संचेती का नाम प्रमुख है।

बहरहाल नीतिन गडकरी के मामले की सच्चाई क्या है यो तो वही जानें, लेकिन एक बड़ी पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर अगर उनकी चिट्ठी को देखा जाए तो मुझे लगता है कि उन्होने छोटा काम किया। बीजेपी को अपने  चाल चरित्र और चेहरे पर बहुत गर्व है। पार्टी नेता इस पर बहुत जोर दिया करते हैं, लेकिन मैं कह सकता हूं कि नीतिन गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी का चाल, चरित्र और चेहरा सब दागदार हो गया है। ऐसे में उन्हें अध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल देना मेरी समझ से तो परे है। हो सकता है कि इस पर अब पार्टी दोबारा विचार करे। वैसे भी गडकरी का कद इस पद के लायक ना पहले रहा है और ना आज है। 

बात अरविंद टीम की भी...

मुझे लगता है कि सोनिया गांधी के दामाद का नाम लेकर अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ी राजनीतिक भूल की है। या यूं कहें कि उन्होंने बर्रे की छत्ते में हाथ डाल दिया है। आप सब जानते हैं कि इस टीम में कुछ लोगों के एनजीओ हैं, जिन्हें विदेशी मदद मिलती है। आंदोलन के दौरान भी आरोप लगा था कि सामाजिक कार्यों के लिए ये लोग बाहर से पैसा लेकर देश में आराजकता फैला रहे हैं।  कांग्रेसी इस मामले  में खामोश बैठ जाएंगे, मुझे तो  ऐसा कत्तई नहीं लगता, इसलिए चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा टीम अरविंद को भी। 

Wednesday 3 October 2012

अन्ना की टोपी उछाल रहे अरविंद !


इये ! पहले एक लाइन में आपको खबर बता दूं फिर आगे की बात करुंगा। खबर ये है कि अरविंद केजरीवाल अब खुलकर राजनीति करेंगे। चौंकिए मत, मैने कुछ गलत नहीं कहा है। पहले वो अन्ना को आगे करके पीछे से राजनीति कर रहे थे, लेकिन बेचारे अपनी महत्वाकांक्षा को वो ज्यादा दिन रोक नहीं पाए। इसके लिए पहले अन्ना से अलग हुए और आज ऐलान कर दिया कि अब वो राजनीति करेंगे, यानि खुलकर राजनीति होगी। अच्छा इन्होंने राजनीति करने का फैसला खुशी से नहीं मजबूरी में लिया है। इनका कहना है कि देश में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया  है कि आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। सच्चाई आप सुनेगें ? मैं पहले भी बता चुका हूं कि आम आदमी भ्रष्टाचार से परेशान नहीं है, बल्कि वो भ्रष्टाचार में ईमानदारी खत्म हो जाने से परेशान है। मसलन आम आदमी चाहता है कि अगर उससे किसी काम के लिए पैसा लिया जाए तो फिर काम भी हो जाए, जबकि आज पैसा भी ले लेते हैं और काम भी नहीं करते हैं। इससे ज्यादा परेशान है आम आदमी। ऐसे में राजनीति करने की जो वजह बताई जा रही, मेरी नजर में वही हकीकत से दूर है।

अब अन्ना ने राजनीति में जाने से इनकार कर दिया तो अरविंद की अगुवाई में अन्ना की टोपी उछालने का काम शुरू हो गया। अन्ना गांधी टोपी पहनते हैं,  क्योंकि वो अपने जीवन में सदाचार और उच्च आचरण को मानने वाले हैं। सबको पता है कि अन्ना अरविंद के राजनीतिक पार्टी बनाने के फैसले से इतने नाराज है कि उन्होंने साफ कहा कि अरविंद उनकी तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करेंगे, उनके नाम का जिक्र नहीं करेंगे। इतनी सख्त बात अगर अन्ना ने कहा तो इसकी कोई ठोस वजह होगी। बहरहाल ये वजह तो साफ नहीं हो सकी लेकिन आज देखा गया कि अरविंद और उनके समर्थक पहने तो पैंट शर्ट हैं, लेकिन अन्ना को चिढ़ाने के लिए सबके सिर पर गांधी टोपी है। अब बड़ा सवाल ये है कि समर्थकों के सिर पर टोपी रखकर वो क्या साबित करना चाहते हैं, यही ना कि टोपी पहना कर हमने हजारों अन्ना पैदा कर दिए। खैर मेरी नजर में तो ये अन्ना की टोपी उछालने से ज्यादा कुछ नहीं है। आज तो अरविंद भी टोपी पहने नजर आए, पहले जब अन्ना  के साथ  होते  थे तो क्यों नहीं टोपी पहनते थे ?

इस बीच एक ओर अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का विजन डाक्यूमेंट जारी  कर बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे, वहीं उनके अहम सहयोगी कुमार विश्वास खुद को राजनीति से अलग रखने का ऐलान कर रहे थे। सवाल ये है कि अगर कुमार भी राजनीति के खिलाफ हैं तो वो यहां  क्या कर रहे हैं, अन्ना के साथ क्यों नहीं गए ? बहरहाल आने वाले  समय में इन सब बातों का खुलासा हो जाएगा। मैं आज भी कह सकता हूं कि टीम में चंदे के पैसे को लेकर एक भारी विवाद है। पहले जो पैसे जनता ने इन्हें दिया था वो भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के लिए था, राजनीति करने के लिए नही। लेकिन एक बार भी अरविंद ने आम आदमी से ये जानने की कोशिश नहीं की कि उनके पैसे से राजनीति की जाए तो जनता को कोई आपत्ति तो नहीं है। आज भी अरविंद ने कहा कि 'लोग हमें पैसा देंगे, वे अभियान चलाएंगे और चुनाव लड़ेगे।' पार्टी के नाम के सवाल पर उन्होंने ऐलान किया कि इसकी घोषणा नवंबर के आखिरी सप्ताह में करेंगे। इसके अलावा अरविंद ने अगले साल दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया।

इस दौरान अरविंद ने पार्टी का "विजन ड्राप्ट" भी पेश किया, जिसमें  खूब सारी लोक लुभावन बातें की गईं है। लेकिन सच कहूं तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। अव्यवहारिक  बातें करके ताली बटोरने की कोशिश भर है। ऐसी बातें तो आज के राजनीतिक दल भी  कहते रहते  हैं। एक ओर कहते हैं कि देश बहुत मुश्किल दौर में है। लेकिन इससे निपटने के जो उपाय बताए जा रहे हैं वो हास्यास्पद है। कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद कोई भी सांसद और विधायक लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं करेगा। अरविंद को पता होना चाहिए कि सांसद और विधायक अपनी गाड़ी में लाल बत्ती  लगा नहीं सकते। लालबत्ती  के प्रोटोकाल में वो शामिल नहीं है। कह रहे हैं उनके सांसद या विधायक सरकारी आवास नहीं लेगें। अच्छा सरकारी आवास नहीं लेगें तो रहेंगे कहां। अगर संसद सत्र के दौरान उन्हें महीने भर दिल्ली में रहना है तो वो यहां होटल में रहेंगे, इसका खर्चा कहां से आएगा? फिर सांसद- विधायक तो कोई जुगाड़ कर लेगें, लेकिन उनके क्षेत्र से आने वाली जनता कहां रहेगी ? इसीलिए कह  रहा हूं कि पूरी  बातें अव्यवहारिक है।

हां जनता को खुश करने के लिए कुछ और मीठी मीठी बातें की गई हैं। कहा गया है कि चूंकि पार्टी का उद्देश्य देश से भ्रष्टाचार मिटाना है, इसलिए इसका नियंत्रण सीधे जनता के हाथ में होगा। जनता वस्तुओं के दाम तय करेगी और भूमि अधिग्रहण जनता की इच्छा के अनुसार होगी। ड्राफ्ट में सबको शिक्षा और स्वास्थ्य मुहैया कराने का संकल्प व्यक्त किया गया है। इसमें राइट टू रिजेक्ट और राइट टू रिकॉल को पार्टी का मुख्य एजेंडा बताया गया है। किसानों के बारे में कहा गया है कि उन्हें फसलों का उचित दाम दिया जाएगा। देश में ये संदेश ना जाए कि लोकपाल की लड़ाई ये भूल गए, इसलिए ड्राप्ट में जनलोकपाल  का जिक्र है। यानि अगर सरकार में आए तो सख्त कानून बनाया जाएगा।

बहरहाल विजन डाक्यूमेंट में बातें तो बड़ी बड़ी की गई  हैं, पर इसे पूरा कैसे किया जाएगा, इसके बारे में कोई विजन नहीं है। हां अगर अरविंद की सरकार बनी तो मंहगाई खत्म कर देंगे, किसानों की उपज का वाजिब दाम देंगे, किसानों की जमीन उनकी मर्जी से अधिग्रहीत होगी, पार्टी  में लोकपाल होगा जो भ्रष्ट नेता को बाहर कर देगा। ऐसी ही ना जाने क्या क्या बातें की गई  हैं। लेकिन सारे काम तब होंगे जब अरविंद की सरकार बनेगी, पर सरकार कैसे  बनेगी ये साफ नहीं है। चलिए जी कुछ दिन और देखिए, ये क्या गुल खिलाते हैं। सच बताऊं इन्हें लगता है कि सड़क पर नंगा नाच ही राजनीति है, पर ऐसा नहीं है।