Friday, 19 October 2012

चारो खाने चित "टीम केजरीवाल"

खुलासा सप्ताह मना रही टीम अरविंद केजरीवाल फिलहाल चारो खाने चित हो गई है। वजह और कुछ नहीं बल्कि केजरीवाल समेत उनके अहम सहयोगियों पर नेताओं से कहीं ज्यादा गंभीर आरोप लगे हैं। हैरानी इस बात पर है कि खुद केजरीवाल की भूमिका पर भी उंगली उठी है। इसे ही कहते हैं " सिर मुड़ाते ही ओले पड़े "। अरे भाई कितने दिनों से एक ही बात समझा रहा हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर कभी भी ईमानदारी की इमारत खड़ी नहीं हो सकती है। इसलिए पहले खुद को साफ सुथरा दिखना भर ही काफी नहीं है बल्कि अपने काले कारनामों को बंद कर जनता के बीच माफी मांगना होगा। अगर जनता माफ कर देती है, फिर आप दूसरों पर उंगली उठाने की कोशिश करें। बताइये अपना दामन साफ किए बगैर खुलासा सप्ताह मनाने लगे। अब केजरीवाल को भी जवाब देना होगा कि क्यों वो सब कुछ जानते हुए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के मामले में खामोश रहे। उनके सहयोगी प्रशांत भूषण को कैसे हिमांचल में चाय बगान की वो जमीन आवंटित हो गई, जो नियम के तहत सामान्य व्यक्ति को नहीं हो सकती। महाराष्ट्र की अंजलि दमानिया ने कैसे खेती की जमीन लेकर बिल्डरों को बेचा और मोटा मुनाफा कमाया ?

खुलासा सप्ताह की शुरुआत सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा से हुई। चूंकि मैं काफी दिनों तक मुरादाबाद में अमर उजाला अखबार से जुड़ा रहा हूं। इसलिए जब वाड्रा पर आरोप लगा तो मुझे कत्तई हैरानी नहीं हुई। मैं इस परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। दो दिन बाद केजरीवाल के निशाने पर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद आ गए। आरोप लगा कि विकलांगो के नाम पर सरकारी रकम की बंदरबाट की गई। कांग्रेस पर काफी हमला कर चुके थे, लिहाजा अरविंद पर ये आरोप ना लगे कि वो बीजेपी के इशारे पर सब कर रहे हैं, इसलिए अपनी छवि जनता में बनाए रखने के लिए उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी निशाने पर लिया। नितिन पर आरोप लगाया तो गया, पर कमजोर तथ्यों को लेकर उन्हें घेरने की कोशिश हुई, इसलिए बीजेपी को ये मुश्किल में नहीं डाल पाए। गडकरी के मामले मे तो मैं ये भी कह सकता हूं कि केजरीवाल ने मीडिया और देश को गुमराह किया। उन्होंने तथ्यों को गलत ढंग से रखा, लगा कि जमीन के अधिग्रहण के मामले की उन्हें जानकारी ही नहीं है। वैसे भी नितिन गडकरी को ये जमीन बेची नहीं गई है। सरकार ने उन्हें सिर्फ 11 साल के लिए लीज पर दी है।

खैर एक के बाद एक खुलासे से केजरीवाल को लग रहा था कि उनका सियासी ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। लेकिन पूरी टीम तब बैक फुट पर आ गई, जब केजरीवाल समेत अहम सदस्यों पर भी गंभीर आरोप लगे। अच्छा इसमें केजरीवाल तो आरोप को खारिज भी नहीं कर सकते, क्योंकि उन पर किसी राजनीतिक दल ने आरोप नहीं लगाया है, बल्कि उन्हें महाराष्ट्र के एक पूर्व आईपीएस वाई पी सिंह ने कटघरे में खड़ा किया है। वाई पी सिंह को  पूरा देश जानता है कि वो एक ईमानदार पुलिस अधिकारी रहे हैं, उन्होंने देखा कि मौजूदा सिस्टम में ईमानदारी से नौकरी करना संभव नहीं है तो नौकरी ही छोड़ दी। महाराष्ट्र के पूरे सिचाई घोटाले के मामले की जानकारी केजरीवाल को उन्होंने ही दी। केजरीवाल को जो अभिलेख और जानकारी दी गई थी, उसमें शरद पवार का लवासा प्रोजेक्ट भी शामिल था। लेकिन केजरीवाल ने मीडिया के सामने अधूरे तथ्य रखे और गडकरी को ही निशाने पर लिया, पवार का उन्होंने नाम तक नहीं लिया। जबकि वाईपी सिंह ने जो अभिलेख केजरीवाल को दिए थे, उसमें सिर्फ शरद पवार ही नहीं बल्कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले, भतीजे अजित पवार समेत कुछ और लोगों का काला चिट्ठा था। अब सवाल उठता है कि आखिर केजरीवाल पर ऐसा क्या दबाव था कि उन्होंने पवार फैमिली का नाम तक नहीं लिया।  अब केजरीवाल की भूमिका की जांच कहां होगी और कौन करेंगा ?

इंडिया अगेंस्ट करप्सन की एक और सदस्या अंजलि दमानिया की बात कर लें। टीवी कैमरे पर पानी पी पी कर नेताओं को कोस रही दमानिया का चेहरा भी दागदार निकला। आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि पर आरोप लगा है कि किसानों की ज़मीन खरीद कर उस ज़मीन का उपयोग बदलवा कर ऊंचे दामों में बेचा। अग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने खुलासा किया है कि  अंजलि दमानिया ने 2007 में करजत के खरवंडी गांव में सात एकड़ ज़मीन खरीदी, इसके ठीक बाद इस जमीन का उपयोग बदलने की अर्जी दे दी। हालांकि ज़मीन बेचने वाले किसानों का दावा है कि दमानिया ने उनसे कहा था कि वो यहां खेती करेंगी, लेकिन उन्होंने ज़मीन का लैंड यूज चैंज करा दिया और 39 प्लॉट काट दिए। उन्हें ज़मीन का इस्तेमाल बदलने की इजाज़त रायगढ़ के कलेक्टर ने दी थी। लैंड यूज बदलते ही दमानियां भी बदल गईं और उन्होंने पूरी जमीन एसवीवी डेवलपर्स को दे दी, जिसमें दमानिया भी डारेक्टर हैं। आरोप है कि  कुल 39 प्लॉट काटे गए जिनमें से सैंतीस प्लॉट अलग अलग लोगों को मोटे दाम में बेचा गया।

इतना ही नहीं दमानियां जमीनों की जिस तरह से खरीद फरोख्त करती हैं, उससे तो नहीं लगता है कि वो सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनका काम बिल्डर जैसा ही दिखाई दे रहा है। कहा जा रहा है कि दमानिया ने करजत के जिस खरवंडी गांव में ज़मीन खरीदी, उसके बगल के गांव कोंदिवाड़े में भी उन्होंने 30 एकड़ जमीन खरीद ली। वहां बन रहे कोंधाणे बांध के खिलाफ दमानिया ने इसी साल अप्रैल में पीआईएल दायर की। आरोप तो ये भी है कि केजरीवाल अंजलि दमानिया की जमीन बचाने के लिए ही आरोप लगा रहे हैं। दरअसल अंजलि ने पिछले वर्ष जून में महाराष्ट्र में सिंचाई विभाग को एक पत्र लिखा था कि कोंधाने-करजाट बांध में उनकी जमीन अधिगृहीत न की जाए। इसकी जगह बांध को 700 मीटर आगे शिफ्ट कर दिया जाए जहां आदिवासियों की जमीन है। अंजलि की मौजूदा लड़ाई इसी से संबंधित है। अब अंजलि के मामले का खुलासा हो जाने के बाद स्थानीय प्रशासन ने सभी मामलों की जांच शुरू कर दी है।

टीम केजरीवाल के एक और सहयोगी प्रशांत भूषण का मामला भी कम गंभीर नहीं है। हिमाचल प्रदेश में प्रशात भूषण की सोसायटी को चाय बगान के लिए आरक्षित जमीन दे दी गई। भूषण ने कागड़ा जिले के पालमपुर में 2010 में करीब साढ़े चार हेक्टेयर जमीन खरीदी है। ये जमीन कुमुद भूषण एजुकेशन सोसाइटी के नाम है। प्रशांत भूषण ही इस सोसाइटी के सचिव हैं। ये जमीन यहां कॉलेज खोलने के नाम पर ली गई थी। 2010 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बाकायदा धारा-118 के तहत ये जमीन खरीदने की इजाजत भी दी है। इस जमीन पर कुछ बिल्डिंग बन गई हैं और कुछ का काम चल रहा है। सवाल ये उठता है कि हिमांचल में आम आदमी तो जमीन भी नहीं खरीद सकता, फिर भूषण की सोसायटी को वो जमीन कैसे मिल गई जो चाय बगान के लिए आरक्षित थी ? जाहिर है कि उनकी पहुंच का ही नतीजा है। अगर भूषण को हिमाचल में वो जमीन मिल सकती है जो चाय बगान के लिए है, और जहां कोई निर्माण तक नहीं किया जा सकता। अपनी पहुंच का फायदा उठाने वाले ऐसे लोग दूसरों पर कैसे कीचड़ उछाल सकते हैं, इनमें इतना नैतिक बल आता कहां से है ? भूषण जी की जमीन पर केजरीवाल खामोश क्यों है ? नितिन गड़करी को तो जमीन सिर्फ 11 साल की लीज पर मिली है, तो हाय तौबा मचा रहे हैं।

इंडिया अंगेस्ट करप्सन के एक और हिमायती हैं मयंक गांधी। नाम के साथ गांधी शब्द जुड़ा है तो हम सबको उम्मीद थी कि चलिए कम से कम मयंक यहां ऐसे सदस्य है,जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं कि वो गलत नहीं करेंगे। अब गांधी जी भी आरोपों के घेरे में है। वो भी ऐसे वैसे आरोप नहीं हैं, जमीन की धांधली की शिकायत है। कहा जा रहा है कि पहले तो उन्होंने एक एनजीओ बनाया। एनजीओ के नाम पर सरकारी जमीन ली और वो भी सस्ते में। लेकिन बाद में उन्होंने इस जमीन को अपने रिश्तेदारों को बेच दिया। ये सब क्या है भाई गांधी जी।

इसीलिए कहते हैं कि शीशे के मकान में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए। अब देखिए ना लगभग पूरी टीम ही चोरी चकारी में घिरती नजर आ रही है। फिलहाल आज केजरीवाल साहब शाम को घर से बाहर निकले और कहा कि तीन लोगों की एक कमेटी बना दी है, वो हमारे सदस्यों के मामले की जांच करेंगे और अगर ये दोषी होंगे तो इन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा। हाहाहहाहाह कमाल है केजरीवाल साहब। पहले तो ये बताइये कि कमेटी किसने बनाई है ? जब आपने ही कमेटी बनाई है और आप सब पर आरोप है तो कैसे मान लिया जाए कि कमेटी आपकी सही जांच करेगी ? अच्छा पार्टी तो अभी बनी भी नहीं है तो इन लोगों को किस पार्टी से निकाल देंगे आप ?  अगर वाकई आपको अपने सदस्यों की जांच चाहिए तो जैसे दूसरों के मामले में जांच की मांग करते हैं, वैसे ही सरकार से मांग कीजिए की जांच कराए।

महत्वपूर्ण ये है कि आपकी बनाई कमेटी को कोई अधिकार हासिल  है नहीं। ऐसे में ये टीम जांच कैसे कर पाएगी। टीम को जांच के लिए सरकारी अभिलेखों  की भी  जरूरत  होगी। अब सरकारी अधिकारी आपकी बनाई टीम को सरकारी अभिलेख भला क्यों दिखाएंगे ? मान लीजिए अगर टीम प्रशांत भूषण की जांच करती है तो उसे सरकारी अभिलेख में ये देखना होगा कि जो जमीन चाय बगान के लिए आरक्षित थी, वो जमीन ही भूषण को दी गई है। अब भूषण जी तो आपको ये अभिलेख टीम को दिखाने वाले नहीं है, इसके लिए तहसील में अभिलेखों की जांच करनी  होगी। जांच का ये विषय भी होगा कि कैसे जमीन दी गई, किसके आदेश पर जमीन दी गई, नियमों की अनदेखी  कैसे की  गई। ये बात प्रशांत टीम  को बताएंगे ? अंजलि  के मामले  को ले लें, उनके मामले में भी सरकारी अभिलेखों  की जरूरत होगी। ये टीम कैसे सरकारी अधिकारियों और अभिलेखों को तलब कर पाएगी। कृषि की जमीन का किन हालातों  में लैंड यूज बदला  गया, इसमें कौन कौन से नेता  अफसर जिम्मेदार थे, ये कौन बताएगा। केजरीवाल  साहब देश को गुमराह  मत कीजिए। 

एक सवाल  आप  से  पूछता हूं  केजरीवाल साहब । अगर आप बिना जांच के कानून मंत्री का  इस्तीफा मांग सकते हैं,  तो बिना जांच के अपने सदस्यों को टीम से बाहर क्यों  नहीं  कर सकते ?  मैं कहता  हूं  कि गंभीर आरोप लगा  है, ऐसे में  कम से कम अपने सहयोगियों को तो  टीम से बाहर करने की  हिम्मत दिखाइये। ये कह कर आप बच नहीं  सकते  कि आपने जांच टीम बना दी है, कल को साबित  हो जाए कि  हां लोगों ने गडबड़ी की है तो आप अपना पुलिस स्टेशन  बनाकर कहें कि उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी गई है। फिर अपनी अदालत और जेल भी बना लीजिए। वैसे  भी आप ने ऐलान  किया है कि आप  मनमोहन सिह को आप अपना  प्रधानमंत्री मानते ही नहीं है। मतलब  साफ है कि देश के लोकतंत्र में आपको  यकीन ही नहीं रह गया है। समानांतर व्यवस्था चलाने  के हिमायती  हैं, तो फिर दिखावा क्यों ?  बनाइये संसद, पुलिस स्टेशन, अदालत और जेल। 

बहरहाल नेताओं पर आरोप लगता है तो हमें उतनी हैरानी नहीं होती, क्योंकि आज लोग नेताओं के बारे में बात तक करना पसंद नहीं करते। हालत ये है कि भले ही नेताओं पर आरोप ही लगे कि उन्होंने करप्सन किया है, फिर भी हम बिना जांच के ही मान लेते हैं कि हां नेता है तो जरूर किया होगा। लेकिन करप्सन के खिलाफ बड़ी बड़ी बातें करने वाले जब ऐसे मामले में शामिल होते हैं तो देश का भरोसा टूटता है। मैं देख रहा हूं कि इंडिया अगेंस्ट करप्सन से जितने लोग भी जुड़े हैं, सभी के अपने एनजीओ की अलग अलग दुकान है। आमतौर पर सभी  अपने  एनजीओ से मोटा माल बनाने में लगे  हैं।  कुतर्क से सच  को नहीं दबाया  जा सकता, सच पारदर्शी  होता है,  जिसे जनता देख रही है। इस सवाल  का क्या जवाब  है आपके पास कि जो लोग  भी शुरू से आपके साथ  जुड़े थे, एक एक कर सब अलग हो गए। वजह क्या है कि अलग  हुए ज्यादातर लोगों को अरविंद केजरीवाल से ही शिकायत  है। बेचारे अन्ना को ये कहने  को क्यों  मजबूर  होना पड़ा की अब टीम केजरीवाल ना उनके नाम का इस्तेमाल करेगी  और ना  ही चित्र का। अगर अन्ना ऐसा कहते हैं तो आसानी से समझा  जा सकता  है कि दाल  में कुछ काला  जरूर है।


36 comments:

  1. और पता नहीं कितने सच सामने खुल कर आएँगे ...

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  2. Badhiya,,, Bahut hi badhiya.

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  3. आधा सच...: चारो खाने चित "टीम केजरीवाल".......चारों खाने चित्त
    TV स्टेशन ...परमहेन्द्र श्रीवास्तव - 7 घंटे पहले
    आधा सच...: चारो(चारों )........ खाने चित (चित्त )............"टीम केजरीवाल": खुलासा सप्ताह मना रही टीम अरविंद केजरीवाल फिलहाल चारो(चारों )...... खाने चित्त हो गई है। वजह और कुछ नहीं बल्कि केजरीवाल समेत उनके अहम सहयोगियों पर नेत...

    आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है .वर्तनी के अशुद्धियाँ खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .?

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    1. हो सके तो अपने ज्ञान को जरा दुरुस्त कर लें। मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए आप यही सब करते रहते हैं। जिस शब्दकोष से आप हिंदी की वर्तनी के बारे में इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हैं, मैं भी उसे देखना चाहता हूं।

      चारो जैसे लिखा है वही ठीक है आप चारों बता रहे हैं जो गलत है।
      चित भी पूरी तरह दुरुस्त है, आप चित्त बता रहे हैं जो गलत है।

      मुझे नहीं पता कि आप इतनी सुबह कैसे पी लेते हैं और कमेंट जहां करना चाहिए वहां के साथ ना जाने कहां कहां कर आते हैं।

      वर्तनी की अशुद्धि नहीं खटकती है आपको, आंख बंद करके सब कुछ पढने और देखने से ऐसा ही होता है। खैर भाषा तो आपकी कभी सुधर ही नहीं सकती, अपने छोटो से आपका यही व्यवहार है कि उन्हें शराबी बताएं।

      लोगों में गलती निकालने के पहले जरा सौ बार सोच लिया कीजिए कि आप सही हैं या नहीं।

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    2. श्रीवास्तव जी आप अपना कर्म किए जाइये, मैं आपको नियमित पढ़ता हूं, आप जो सवाल उठा रहे हैं, उसका जवाब आना चाहिए। लेकिन जवाब तो तब दिया जाएगा , जब ये देने के लायक हों। इन लोगों का यही काम है, गंभीर लेखों में जाकर मात्रा और भाषा की खामियां गिनाते हैं और विषय पर बोलती बंद हो जाती है।
      शर्मा जी आपके ही ब्लाग पर ये सब नहीं करते, वो दूसरे ब्लागों पर भी प्रूफ की कमियां तलाशते हैं और ब्लागरों की खिल्ली उड़ाते हैं। इनका यही काम है।

      मैं भी ये जानना चाहता हूं कि अगर सलमान खुर्शीद से मांग हो सकती है कि वो बिना जांच के तुरंत इस्तीफा दे दें, ये अरविंद की टीम में जो लोग पकड़े गए हैं, इन्हें तो तुरंत टीम से बाहर करना चाहिए। लेकिन बाहर करेगा कौन ? केजरीवाल तो खुद ही फंस गए हैं।

      शायद आपको नहीं पता है अरविंद केजरीवाल मनीष सिसोदिया तो ये भी चाहते थे कि नगर निगम गाजियाबाद उन्हें टैक्स वसूली का ठेका दे दे। आप समाज सेवा करना चाहते हैं तो टैक्स वसूली के ठेका क्यों चाहते थे ? शहर में सफाई का अभियान चलाते, जिससे लोगों को राहत भी मिलती।

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    3. virendra ji ko mai kafi dino se soch rahi yhi ki javab du, par vo kuch bhi likh sakate hai liye chup thi. par aapne unahe theek se samjha diya..thanks ...

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    4. प्लीज आप दोनों लोग जो भी हैं, आपने मेरा समर्थन किया,इसके लिए मैं आभार। पर यहां आप अपनी पहचान के साथ आएं तो मुझे ज्यादा खुशी होगी। हम खुले मंच पर एक बात की चर्चा कर रहे हैं, कोई लड़ाई झगड़ा नहीं कर रहे हैं, इसलिए पहचान छिपाने को मैं ठीक नहीं समझता।

      हां मैं इस बात से सहमत हूं कि शर्मा जी जगह - जगह कुछ भी लिख सकते हैं। उन्हें दरअसल ये नहीं पता है कि बहुत सारे लोग गुगल में अंग्रेजी के जरिए हिंदी लिखते हैं। इसलिए छोटी मोटी हिंदी की गलती हो सकती है। लेकिन उनका खुद को ज्ञानी समझना और सार्वजनिक मंच पर ब्लागर को असम्मानित करने वाला व्यवहार रहता है।

      यहीं पर वो सही शब्द को गलत बता रहे हैं और कह रहे हैं कि लोग शराब पिए रहते हैं।

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    5. आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है .वर्तनी के अशुद्धियाँ खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .?

      कमेंट में ये तीन लाइने शर्मा जी की हैं। जरा गौर से देखिए कि तीन लाइनों में कितनी गल्ती है। पहला वाक्य विन्यास गलत है। इसे इस तरह लिखा जाना चाहिए.." भाई साहब आधा सच पूरे झूठ से ज्यादा ख़तरनाक है "

      फिर आपने लिखा वर्तनी के अशुद्धियां, ये भी पूरी तरह गलत है। " वर्तनी की " लिखा जाना चाहिए था।

      आगे आपने लिखा.... टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ? यहां अक्सर के बाद ये . लगाने की क्या जरूरत है। इसे नहीं लगाना चाहिए।

      आगे आप ने " चैनालिए " ये भी गलत है, चैनलिए लिखना चाहिए था।

      और " पिये " नहीं होता है शर्मा जी पीये होता है।

      तीन लाइन कमेंट शुद्ध लिख नहीं पाते और बड़ी बड़ी बातें करने कह दीजिए। मैं काम में व्यस्त रहता हू, इसलिए आपकी बातों को नजरअंदाज करता रहता हूं, पर मैने देखा कि वो आदमी ज्ञान दे रहा है जो तीन लाइन नहीं लिख पाता। इसलिए जरूरी हो गया आपको सही राह दिखाना। आप बडे़ हैं, सम्मान की भाषा लिखिए मैं उससे ज्यादा सम्मान दूंगा।


      मेरी बातें अगर आपको बुरी लगी हैं तो मुझे खेद भी है, लेकिन आपने मजबूर कर दिया कि आपको जवाब दिया जाना चाहिए।

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  4. कुतर्क से सच को नहीं दबाया जा सकता, सच पारदर्शी होता है, ek dam sahi baat hai lekin kitani baar bharosha dhokha kaayega kabhi kabhi lagta hai ye sab fijool hai ...:(

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  5. सच बयाँ करने की कोशिश ....अपनी जानकारी के अनुसार...बिना किसी का पक्ष लिए.. मीडिया वालों से येही उम्मीद रहती है ..हम जैसे आम आदमी को ???
    शुभकामनाएँ!

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  6. शीशे के मकान में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए , चूर चूर होने में वक़्त नहीं लगता

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    1. जी बिल्कुल सही
      लेकिन आदत से मजबूर

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  7. श्रीवास्तवजी काफी खोजी है आपका ब्लाग वो भी क्यो न हो आप मीडिया से जो जुडे है,काफी तथ्यपरक है आलेख,बस थोडी सी उत्त्कंठा है इस सम्बन्ध में यदि हो सके तो कुछ प्रकाश डाले--"खुलासा सप्ताह की शुरुआत सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा से हुई। चूंकि मैं काफी दिनों तक मुरादाबाद में अमर उजाला अखबार से जुड़ा रहा हूं। इसलिए जब वाड्रा पर आरोप लगा तो मुझे कत्तई हैरानी नहीं हुई। मैं इस परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं।" साभार

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    1. शुक्रिया

      जिस विषय पर आप इशारा कर रहे हैं, देखते हैं कभी विस्तार से उस पर भी बात करेंगे..

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  8. आज के इस बदलते परिवेश मे मीडिया का रोल काफी अहम भूमिका अदा करेगा।
    अगर मीडिया ही पक्षपात की राह पे चल पड़ा तो फिर कोई राह नहीं ।

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    1. आज हर आदमी मीडिया को नसीहत देने उतर आया है, मीडिया मे आत्ममंथन की क्षमता है, हम करते हैं।

      जब आदमी के पास कोई तर्क नहीं होता है तो वो यहां लेख की समीक्षा करने के बजाए लेखक की और उसके प्रोफेशन की समीक्षा करने लगता है।

      अच्छा होता राजपूत जी की आप लेख पर अपने विचार रखते। भीड़ में भेड चलते हैं। निष्पक्षता की बात मुझसे कर रहे हैं, इसी ब्लाग हर आदमी के बारे में लेख है और यहां तक की मीडिया को भी नहीं छोड़ा है मैने।

      कुछ लिखने के पहले सोचा कीजिए..

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  9. अब तो नेता नाम के किसी भी इंसान पर भरोसा करने का मन नहीं होता, सब एक जैसे दिखते हैं...

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    1. जी आपकी बात काफी हद तक सही है।

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  10. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  11. चारो खाने चित' ही सही शब्द है ....
    इसमें वर्तनी की कोई गलती नहीं ....
    चित्त .- मन
    चित- पीठ के बल या बेहोश

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    1. जी आपका बहुत बहुत आभार..

      जी वीरेंद्र कुमार शर्मा की आदत है, इस तरह की बातें करना। दरअसल वो यहां एक खास विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैसे विचारधारा भी उनके लिए सही शब्द नहीं है, क्योंकिं उनकी कोई विचारधारा नहीं है। वो व्यक्ति पूजक हैं।

      मैने देखा है कि जब मैं कांग्रेस के खिलाफ लिखता हूं तो मेरी प्रशंसा करते हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के बारे में तर्कपूर्ण बातें लिखता हूं तो पाठकों को भी गुमराह करने के लिए विषय को दूसरी ओर मोड़ने की कोशिश करते हैं।
      सब जानते हैं कि हिंदी भाषा में कई शब्दों को कई तरह से लिखा जाता है। " चारो खाने चित " ऐसे ही लिखा जाना सही है। उन्होंने लेख के शीर्षक पर ही सवाल एक साजिश के तहत खड़ा किया।

      फिर सबसे निम्न स्तर का काम ये रहा कि चैनल के लोगों को शराबी बता दिया। मतलब चैनल में सब काम शराब पीकर होता है।

      इनसे कोई ये पूछे की आप किस नशे में थे कि सही को गलत बता रहे थे। कहीं भी देख लीजिए, लोगों के लेख में छोटी मोटी गल्ती निकाल कर उसे सार्वजनिक मंच पर शर्मिंदा करते हैं।

      खैर उनका कर्म उनके साथ.....

      आप यहां आईं,आपका बहुत बहुत आभार

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  12. आधा सच भाई साहब पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है ."वर्तनी के अशुद्धियाँ "खटक रहीं हैं टी वी स्टेशनों पर अक्सर .ऐसा क्यों ?क्या चैनालिये पिए रहतें हैं .

    महेंद्र जी वर्तनी की अशुद्धियाँ ही होना चाहिए था .मंशा हमारी और हम सबकी यही रहनी चाहिए हम शुद्ध लिखें जहां तक संभव हो ,कोई गलती निकाले स्वागत करें .सीखें उससे .आखिर चिठ्ठा एक ऐसा अख़बार है

    जिसके सब कुछ हम ही हैं सम्पादक भी ,हाकर भी .दिल पे न लो दोस्त जो कुछ आपने खा सर आँखों पर अनुज हैं आप .

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    1. महेंद्र जी वर्तनी की अशुद्धियाँ ही होना चाहिए था .


      आपको अगर शर्मा जी का कमेंट समझ आ रहा हो तो जरा मुझे भी आसान शब्दों में बता दें।

      मैं यही बात कहता हूं कि शर्मा जी दूसरों को आइना दिखाने की कोशिश करते हैं, खुद क्या लिखते हैं, शायद पढ़ते नहीं है।

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  13. हरकीरत ' हीर'21 October 2012 21:27
    चारो खाने चित' ही सही शब्द है ....
    इसमें वर्तनी की कोई गलती नहीं ....
    चित्त .- मन
    चित- पीठ के बल या बेहोश

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    मुद्दा वर्तनी नहीं है महेंद्र जी ,हरकीरत जी ,

    वह तो प्रसंग वश कोई बात निकल आती है तो मैं कह देता हूँ लिखके इशारा कर देता हूँ .शुद्ध अशुद्ध रूप तो वर्तनी के माहिर ही बतला सकतें हैं या फिर

    आप जिसने थोड़ी बहुत हिंदी पढ़ी भी होगी .मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी हूँ .

    कोई अच्छा शब्द कोष देखिए रही बात माफ़ी की तो पहले वह सक्षमता हासिल कीजिए ,फिर आप से माफ़ी मांग लूंगा .फिलहार चारो चारो करोगे

    .........हुआं हुआं करोगे तो चारों तरफ से घिर जाओगे .माफ़ी तो मैं सरकार से भी नहीं मांगता आपको कुछ दे ही रहा हूँ .ले कुछ नहीं रहा आपसे .

    रही बात चित और पट्ट की पट्ट के वजन से चित्त लिखा जाता है .चित सचेत है चित्त नहीं .

    प्रभुजी मोरे औगुन चित न धरो .......


    पहली मर्तबा हुआ है इस देश में सरकार ही पूरी भ्रष्ट हो गई है .जिस मंत्री से आपका हाथ छू जाए वह भ्रष्ट निकलता है .ऐसी सरकार की मैं आलोचना

    करता हूँ तो आपको बुरा लगता है .क्या जिस पार्टी की सरकार है आप उसके सदस्य हैं ?हैं तो पार्टी छोड़ दो आप तो पत्रकार हैं ऐसा आसानी से कर सकतें

    हैं .

    इस गुलाम वंशी मानसिकता के साथ क्यों रह रहें हैं भारत धर्मी समाज में ?भारत का हित सोचो ."भ्रष्ट कांग्रेस का नहीं " असल मुद्दा वर्तनी नहीं है .भ्रष्ट

    सरकार है .

    और हाँ कविता और भाषा में दोनों रूप प्रचलित हैं कबीर भी कबिर भी .

    फिर दोहरा दूं कबीरा खड़ा ब्लॉग मेरा नहीं है मैं एक कन्ट्रीब्युटर हूँ प्रशासम नहीं हूँ इस ब्लॉग का .

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    1. माफी ईमानदार आदमी मांगता है। माफी कमजोर और कुतर्की नहीं मांग सकते। रही बात सक्षमता की तो आपकी तीन लाइनों में 75 गिनती गिना दी मैने।

      बहरहाल माफी अपने किए पर मांगनी चाहिए आपको.. आपने अपने छोटों को शराबी बताया। माफी इसलिए मांगनी चाहिए कि आपने सही को गलत ठहरा कर अपनी दूषित मानसिकता का परिचय दिया।

      आप इतने भोले बन कर बता रहे हैं कि ऐसे ही शुद्ध अशुद्ध की बातें करता हूं, जब आपने हिंदी पढ़ी नहीं है तो क्यों जहां तहां टांग अड़ा रहे हैं।

      रही बात मुझे सरकार का साथी बता रहे हैं, उससे साफ है कि आपका पढ़ाई लिखाई से कोई वास्ता है ही नहीं। वरना इसी ब्लाग में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राबर्ट वाड्रा, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय के बारे में जितनी सख्त भाषा में लेख है, मुझे लगता है कि सरकार के विरोधी भी इतनी सख्त भाषा में लेख नहीं लिखते होंगे।

      खैर आप व्यक्ति पूजा में लगे रहिए। किसी को कोई दिक्कत नहीं है।

      मेरा मकसद सिर्फ आपको आइना दिखाना था, वो दिखा दिया कि आप क्या हैं, कितना जानते हैं, आपका असली चेहरा क्या है। लेख कविता मत पढिए, वर्तनी की कमियां तलाशते रहिए।

      वैसे अच्छा होगा कि अपने से छोटों से बातचीत कैसे की जाती है, वो ठीक रखिए। दरअसल आपकी गल्ती नहीं है, जब आदमी देश छोड़कर बाहर जाता है तो सबसे पहले वो यहां की संस्कृति ही भूलता है, जो आप भूल चुके हो।

      माफी मांग लीजिए अपने किए पर अच्छी नींद आएगी।



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  14. बहरहाल नेताओं पर आरोप लगता है तो हमें उतनी हैरानी नहीं होती, क्योंकि आज लोग नेताओं के बारे में बात तक करना पसंद नहीं करते। हालत ये है कि भले ही नेताओं पर आरोप ही लगे कि उन्होंने करप्सन किया है, फिर भी हम बिना जांच के ही मान लेते हैं कि हां नेता है तो जरूर किया होगा। लेकिन करप्सन के खिलाफ बड़ी बड़ी बातें करने वाले जब ऐसे मामले में शामिल होते हैं तो देश का भरोसा टूटता है। मैं देख रहा हूं कि इंडिया अगेंस्ट करप्सन से जितने लोग भी जुड़े हैं, सभी के अपने एनजीओ की अलग अलग दुकान है।
    आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत और भी बहुत सी जानकारियां मिली आपके द्वारा लिखे लेख पढ़ना अच्छा लगता है बहुत कुछ जानने को मिलता है बहुत २ शुक्रिया |

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  15. आद वीरेंद्र जी ,
    आप बड़े हैं ..इसमें माफ़ी की बात कहाँ से आ गई ....?
    सही था तो कह दिया सही है ....गलती हर किसी से हो सकती है ...मुझ से भी होती है ...
    डॉ कौशलेन्द्र जी ने कई बार मेरी भी गल्तियाँ निकाली हैं , मैं उनका बुरा नहीं मानती
    कृपया अभद्र शब्द कहने से बचें ये हमारे ही चरित्र का परिचायक होते हैं .....

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  16. आपकी बात सही है..

    मैने इतना कुछ लिखा है, पहली बार इन्होंने ऐसा नहीं किया है। इनकी आदत में शुमार है गैरमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करना।

    तब जबाव देने को मैं मजबूर हो गया..

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।