आइये ! पहले एक लाइन में आपको खबर बता दूं फिर आगे की बात करुंगा। खबर ये है कि अरविंद केजरीवाल अब खुलकर राजनीति करेंगे। चौंकिए मत, मैने कुछ गलत नहीं कहा है। पहले वो अन्ना को आगे करके पीछे से राजनीति कर रहे थे, लेकिन बेचारे अपनी महत्वाकांक्षा को वो ज्यादा दिन रोक नहीं पाए। इसके लिए पहले अन्ना से अलग हुए और आज ऐलान कर दिया कि अब वो राजनीति करेंगे, यानि खुलकर राजनीति होगी। अच्छा इन्होंने राजनीति करने का फैसला खुशी से नहीं मजबूरी में लिया है। इनका कहना है कि देश में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। सच्चाई आप सुनेगें ? मैं पहले भी बता चुका हूं कि आम आदमी भ्रष्टाचार से परेशान नहीं है, बल्कि वो भ्रष्टाचार में ईमानदारी खत्म हो जाने से परेशान है। मसलन आम आदमी चाहता है कि अगर उससे किसी काम के लिए पैसा लिया जाए तो फिर काम भी हो जाए, जबकि आज पैसा भी ले लेते हैं और काम भी नहीं करते हैं। इससे ज्यादा परेशान है आम आदमी। ऐसे में राजनीति करने की जो वजह बताई जा रही, मेरी नजर में वही हकीकत से दूर है।
अब अन्ना ने राजनीति में जाने से इनकार कर दिया तो अरविंद की अगुवाई में अन्ना की टोपी उछालने का काम शुरू हो गया। अन्ना गांधी टोपी पहनते हैं, क्योंकि वो अपने जीवन में सदाचार और उच्च आचरण को मानने वाले हैं। सबको पता है कि अन्ना अरविंद के राजनीतिक पार्टी बनाने के फैसले से इतने नाराज है कि उन्होंने साफ कहा कि अरविंद उनकी तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करेंगे, उनके नाम का जिक्र नहीं करेंगे। इतनी सख्त बात अगर अन्ना ने कहा तो इसकी कोई ठोस वजह होगी। बहरहाल ये वजह तो साफ नहीं हो सकी लेकिन आज देखा गया कि अरविंद और उनके समर्थक पहने तो पैंट शर्ट हैं, लेकिन अन्ना को चिढ़ाने के लिए सबके सिर पर गांधी टोपी है। अब बड़ा सवाल ये है कि समर्थकों के सिर पर टोपी रखकर वो क्या साबित करना चाहते हैं, यही ना कि टोपी पहना कर हमने हजारों अन्ना पैदा कर दिए। खैर मेरी नजर में तो ये अन्ना की टोपी उछालने से ज्यादा कुछ नहीं है। आज तो अरविंद भी टोपी पहने नजर आए, पहले जब अन्ना के साथ होते थे तो क्यों नहीं टोपी पहनते थे ?
इस बीच एक ओर अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का विजन डाक्यूमेंट जारी कर बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे, वहीं उनके अहम सहयोगी कुमार विश्वास खुद को राजनीति से अलग रखने का ऐलान कर रहे थे। सवाल ये है कि अगर कुमार भी राजनीति के खिलाफ हैं तो वो यहां क्या कर रहे हैं, अन्ना के साथ क्यों नहीं गए ? बहरहाल आने वाले समय में इन सब बातों का खुलासा हो जाएगा। मैं आज भी कह सकता हूं कि टीम में चंदे के पैसे को लेकर एक भारी विवाद है। पहले जो पैसे जनता ने इन्हें दिया था वो भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के लिए था, राजनीति करने के लिए नही। लेकिन एक बार भी अरविंद ने आम आदमी से ये जानने की कोशिश नहीं की कि उनके पैसे से राजनीति की जाए तो जनता को कोई आपत्ति तो नहीं है। आज भी अरविंद ने कहा कि 'लोग हमें पैसा देंगे, वे अभियान चलाएंगे और चुनाव लड़ेगे।' पार्टी के नाम के सवाल पर उन्होंने ऐलान किया कि इसकी घोषणा नवंबर के आखिरी सप्ताह में करेंगे। इसके अलावा अरविंद ने अगले साल दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया।
इस दौरान अरविंद ने पार्टी का "विजन ड्राप्ट" भी पेश किया, जिसमें खूब सारी लोक लुभावन बातें की गईं है। लेकिन सच कहूं तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। अव्यवहारिक बातें करके ताली बटोरने की कोशिश भर है। ऐसी बातें तो आज के राजनीतिक दल भी कहते रहते हैं। एक ओर कहते हैं कि देश बहुत मुश्किल दौर में है। लेकिन इससे निपटने के जो उपाय बताए जा रहे हैं वो हास्यास्पद है। कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद कोई भी सांसद और विधायक लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं करेगा। अरविंद को पता होना चाहिए कि सांसद और विधायक अपनी गाड़ी में लाल बत्ती लगा नहीं सकते। लालबत्ती के प्रोटोकाल में वो शामिल नहीं है। कह रहे हैं उनके सांसद या विधायक सरकारी आवास नहीं लेगें। अच्छा सरकारी आवास नहीं लेगें तो रहेंगे कहां। अगर संसद सत्र के दौरान उन्हें महीने भर दिल्ली में रहना है तो वो यहां होटल में रहेंगे, इसका खर्चा कहां से आएगा? फिर सांसद- विधायक तो कोई जुगाड़ कर लेगें, लेकिन उनके क्षेत्र से आने वाली जनता कहां रहेगी ? इसीलिए कह रहा हूं कि पूरी बातें अव्यवहारिक है।
हां जनता को खुश करने के लिए कुछ और मीठी मीठी बातें की गई हैं। कहा गया है कि चूंकि पार्टी का उद्देश्य देश से भ्रष्टाचार मिटाना है, इसलिए इसका नियंत्रण सीधे जनता के हाथ में होगा। जनता वस्तुओं के दाम तय करेगी और भूमि अधिग्रहण जनता की इच्छा के अनुसार होगी। ड्राफ्ट में सबको शिक्षा और स्वास्थ्य मुहैया कराने का संकल्प व्यक्त किया गया है। इसमें राइट टू रिजेक्ट और राइट टू रिकॉल को पार्टी का मुख्य एजेंडा बताया गया है। किसानों के बारे में कहा गया है कि उन्हें फसलों का उचित दाम दिया जाएगा। देश में ये संदेश ना जाए कि लोकपाल की लड़ाई ये भूल गए, इसलिए ड्राप्ट में जनलोकपाल का जिक्र है। यानि अगर सरकार में आए तो सख्त कानून बनाया जाएगा।
बहरहाल विजन डाक्यूमेंट में बातें तो बड़ी बड़ी की गई हैं, पर इसे पूरा कैसे किया जाएगा, इसके बारे में कोई विजन नहीं है। हां अगर अरविंद की सरकार बनी तो मंहगाई खत्म कर देंगे, किसानों की उपज का वाजिब दाम देंगे, किसानों की जमीन उनकी मर्जी से अधिग्रहीत होगी, पार्टी में लोकपाल होगा जो भ्रष्ट नेता को बाहर कर देगा। ऐसी ही ना जाने क्या क्या बातें की गई हैं। लेकिन सारे काम तब होंगे जब अरविंद की सरकार बनेगी, पर सरकार कैसे बनेगी ये साफ नहीं है। चलिए जी कुछ दिन और देखिए, ये क्या गुल खिलाते हैं। सच बताऊं इन्हें लगता है कि सड़क पर नंगा नाच ही राजनीति है, पर ऐसा नहीं है।
सभी एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं और क्या कह सकते हैं
ReplyDeleteजी बिल्कुल
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteशुक्रिया रविकर सर
Deleteदिल-दिमाग में लोक-हित, राष्ट्रधर्म उत्थान ।
ReplyDeleteईमानदार बढ़ते गए, घटते अब बेईमान ।
घटते अब बेईमान, बुराई दूर करेंगे ।
सर्वोपरि है देश, गरीबी कष्ट हरेंगे ।
लेकिन सज्जन ढेर, जमा सब एक बाग़ में ।
अपना अपना ठूठ, अहम् है दिल दिमाग में ।।
जी ये बात भी सही है...
Deleteअन्ना टोपी पहन कर,कूद पड़े मैदान
ReplyDeleteराजनीति होती ऐसी,बन जाता शैतान,,,,,
सौ फीसदी सहमत
Deleteसच्चे में विश्वास की, दिखती कमी अपार ।
ReplyDeleteजलें तभी तो चार में, पूरे चूल्हे चार ।
पूरे चूल्हे चार, पार्टी बना मना लें ।
मिल झूठे हरबार, नई सरकार बना लें ।
अन्ना बाबा संत, इकट्ठा होंय अगरचे ।
होय देश खुशहाल, बोलबाला रे सच्चे ।
क्या कहने
Deleteबढिया
बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteअभी तो देखना है आगे क्या क्या होता है..?
ReplyDeleteजी बिल्कुल
Deleteमुझे भी इंतजार है
आपकी बहुत सी बातों से सौ फ़ीसदी असहमत ।
ReplyDelete"आम आदमी कीभ्रष्टाचार से परेशान नहीं है, बल्कि वो भ्रष्टाचार में ईमानदारी खत्म हो जाने से परेशान है। मसलन आम आदमी चाहता है कि अगर उससे किसी काम के लिए पैसा लिया जाए तो फिर काम भी हो जाए, जबकि आज पैसा भी ले लेते हैं और काम भी नहीं करते हैं। इससे ज्यादा परेशान है आम आदमी। " वाह वाह क्या दलील है महेंद्र जी , आम आदमी की हकीकत सिर्फ़ इतनी है कि आज उसके पास रोटी कपडा और मकान के लिए ही ठीक से पैसे नहीं हैं तो फ़िर पैसा लेकर काम हो जाने तक की नौबत ही कहां आती है , शायद यही वो दृष्टिकोण है जिसे लेकर लोग ये बातें कहते हैं कि इससे तो अच्छा है कि भ्रष्टाचार और घूसखोरी को वैधानिक दर्ज़ा दे दिया जाना चाहिए ।
आगे तमाम बातें जो भी अरविंद केजरीवाल के लिए उनकी पार्टी के लिए उनके तथाकथित घोषित एजेंडे के लिए कही हैं , हो सकता है कि कल को वो सौ फ़ीसदी सच ही हो जाएं , तो भी क्या अभी से उन सबका एकदम सीधा आकलन वो भी नकारात्मक , कुछ जल्दबाज़ी नहीं लगती । आप शायद ये भूल रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल या इन जैसे अन्य प्रशासक /अधिकारी भी बडे मज़े से अपनी राजपत्रित नौकरी में दिन रात पैसा बना के आपकी ऊपर वाली कैटेगरी में पैसे लेकर काम करते हुए देश के उत्थान में योगदान कर सकते थे , आखिर बांकी सब भी तो कर ही रहे हैं , तो फ़िर ऐसी क्या और कौन सी आफ़त आन पडी जो वे राजनीति में कूदने को उतारू हो गए । क्या एक अकेला व्यक्ति , अरविंद केजरीवाल , किरन बेदी , कुमार विश्वास , या स्व्यं अन्ना हज़ारे स्थिति को वैसा और बिल्कुल वैसे बदल सकते हैं जैसा वे कह रहे हैं या प्रयास कर रहे हैं , शायद नहीं । लेकिन वे फ़िर भी लड रहे हैं वो भी ज़मीनी लडाई । आम आदमी द्वारा दिए गए चंदे पर इतनी हायतौबा और हर चुनाव से पहले अरबों रुपए राजनीतिकि पार्टियों द्वारा वसूले जाने और फ़िर सत्ता में आने के बाद घोटालों से उसे मैनेज करने को आप बिल्कुल दरकिनार कर गए ।
बहरहाल सबका अपना अपना नज़रिया है । हम तो इसे मौजूदा परिस्थितियों में एक उभरते हुए विकल्प ( चाहे अंतत: असफ़ल ही सही ) , एक नई लडाई के रूप में ही देख रहे हैं एक आम आदमी की हैसियत से । एक पत्रकार के नज़रिए से नि:संदेह आपका अनुभव व तज़ुर्बा हमसे भिन्न व बेहतर होगा । हम देख सुन और गुन रहे हैं अभी , धैर्यपूर्वक । देखते हैं आगे क्या होता है । सामयिक लेखन के लिए आभार ।
अजय जी आपने लेख को इतने मन से पढा उसके लिए आभार..
Deleteआप मेरी बातों से सहमत नहीं है, मैं सम्मान करता हूं। विचारो में भिन्नता हो सकती है।
भ्रष्टाचार जड़ से खत्म होना चाहिए, इस मत का तो मै भी हूं और आप भी। इसे लेकर शायद कहीं भी मत भिन्नता नहीं होगी।
पर मेरा अभी भी यही मत है कि लोग भ्रष्टाचार से कहीं अधिक परेशान भ्रष्टाचार में ईमानदारी खत्म होने से हैं। लोग अपने काम को पूरा कराने के लिए आज भी आसान रास्ता तलाशते नजर आते हैं। उन्हें अगर पता चल जाए कि इस काम के लिए इस आदमी को अगर पैसे दे दिए जाएं तो काम हो जाएगा, तो वो आदमी चुपचाप पैसे देकर अपने काम करा लेता है, कहीं शोर भी नहीं मचाता। लेकिन आज भी लोगों को उस ईमानदार आदमी की तलाश रहती है जो पैसे लेकर गायब ना हो जाए, काम करा दे।
अजय जी ये कहने का आशय ये नहीं है कि मै भ्रष्टाचार का समर्थन कर रहा हूं, इसका मतलब सिर्फ लोगों को ये समझाना है कि आज देश मे भ्रष्टाचार में भी ईमानदारी नहीं रह गई है।
रही बात अरविंद के विजन डाक्यूमेंट की, तो मैं उसे अव्यवहारिक मानता हूं। अब कोई पार्टी कहे की आप मुझे जीत दिलाएं मैं देश को फिर सोने की चिड़िया बना दूंगा, रामराज ला दूंगा, दूध की नदिया बहा दूंगा। ये बात वास्तविकता के धरातल पर सही नहीं है। बातें प्रैक्टिकल होनी चाहिए। बस मेरा इतना ही कहना है।
एक बार फिर आपको धन्यवाद देना चाहूंगा कि आपने लेख को पढ़ा और अपने सुझाव रखे।
यही हकीकत है!
ReplyDeleteबढ़िया आलेख!
सर आपका बहुत बहुत आभार
Deleteमहेंद्र जी ...मैं आपकी बात से सहमत हूँ ...पूरा लेख पढ़ा ...एक बात मन में आ रही हैं ...अगर केज़रिवाल ..भ्रटाचार के खिलाफ है तो अन्ना का साथ क्यों छोड़ा ...उनके नाम का वो क्यों फायदा उठाना चाहते है ...अगर बात दम की है तो ...वो अपने नाम से ही आन्दोलन लेकर पहले दिन से सबके सामने क्यों नहीं आए ...अन्ना को आगे क्यों रखा ?
ReplyDeleteप्रश्न बहुत हैं ...पर सवाल एक ही समझ आता है ...कि ''राजनीति के मोह ने उन्हें भी अपने वश में कर लिया है ''....
जी बिल्कुल
ReplyDeleteमैं आपकी बातों से सहमत हूं
महेंद्र जी बहुत सुन्दर आलेख , लेकिन आश्चर्य आपको गालियाँ नहीं पड़ी :) .... वास्तव मै मै इस आन्दोलन में शुरू से ही साथ था ... यहाँ तक आर्थिक रूप से इस कदर योगदान दिया की मेरे जैसे आम युवक के लिए ये संभव नहीं था (इसके लिए मैंने व्यक्तिगत रूप से दर्जनों समझौते किये )
ReplyDeleteलेकिन इन सब की मंशा जब सामने आई , तो अरविन्द के मुह पर थूकने का मन करता है .. और मुझे कम से कम इतनी ख़ुशी जरुर है की मै अंध भक्त नहीं ...
ओह.. आपकी प्रतिक्रिया से ये लेख और सार्थक हो गया।
Deleteक्योंकि आप पहले इस आंदोलन से जुड़े थे और अब जो बात आप कह रहे हैं वो आपकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।
मैं शुरू से एक बात कहता आ रहा हूं आज फिर दोहरा रहा हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत नहीं खड़ी हो सकती।
यही वजह है कि यहां से एक एक कर सब लोग निकल गए।
माननीय महेंद्र श्रीवास्तव जी !किसी पार्टी को मान्यता देना न देना चुनाव आयोग का दायरा है .और उससे भी ऊपर जनता की अदालत है .जिस पार्टी को कुल मतों का एक न्यूनतम
ReplyDeleteनिर्धारित अंश प्राप्त नहीं होता है उसे चुनाव आयोग मान्यता नहीं देता है .लाल बत्ती की गाड़ियां हिन्दुस्तान के आम आदमी का रास्ता रोकके खड़ी हो
जातीं हैं .
यहाँ कैंटन छोटा सा उपनगर है देत्रोइत शहर का .दोनों वेन स्टेट काउंटी के तहत आते हैं .ओबामा साहब कब आये कब गए कहीं कोई हंगामा नहीं होता
,हिन्दुस्तान में तमाम
रास्ते रोक दिए जाते हैं जैसे कोई सुनामी आने वाली है .लाल बत्ती क्या पद प्रतिष्ठा का आपके लिए भी प्रतीक है ?केजरीवाल साहब अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए लाल
बत्ती का प्रावधान नहीं रखना चाहते तो आपको क्या आपत्ति है ?
प्रति रक्षा मंत्री रहते भी जार्ज साहब ने सिक्योरिटी नहीं रखी थी कोठी के बाहर .
केजरीवाल साहब के इस कदम से आपको क्या आपत्ति है .और वह मंद मति तो हमेशा ही सिक्योरिटी को बिना बताए कलावती के घर पहुंचता है .जिसे
आम आदमी से
खतरा है उसे सियासत का क्या हक़ है प्रजातंत्र में ?इस देश का आदर्श महात्मा गांधी रहे हैं .जो पैसिंजर ट्रेन से चलते थे .लाल बत्ती वाली गाड़ी नहीं थी
उनके पास .आप
केजरीवाल साहब से इतना क्यों आतंकित हैं .?
पार्टी को मान्यता देना न देना चुनाव आयोग के दायरे में है, ये बात किसे समझा रहे हैं, मैने क्या कुछ कहा इस मामले में.. खैर.
Deleteदूसरी बात लाल बत्ती की.. आप लेख पढ़ते नहीं है कुछ भी लिखते रहते हैं। मैने कहा है कि सांसल और विधायक को लालबत्ती लगाने का संवैधानिक अधिकार है ही नहीं। फिर केजरीवाल क्यों कह रहे हैं कि उनके सांसद विधायक लाल बत्ती इस्तेमाल नहीं करेंगे।
मेरे ख्याल से पहले लेख को पढिए और बातों को समझने की भी कोशिश कीजिए, लेकिन आप से ऐसी उम्मीद करना बेईमानी है।
अमेरिका की बात करके लोग अपने को बुद्धिजीवि की श्रेणी में रखने की कोशिश करते हैं.. अभी भारत अमेरिका नहीं है। भारत में कितने प्रधानमंत्रियों की हत्या हो चुकी है, वहां भी किसी बड़े नेता की आतंकवादी घटना में हत्या हुई है।
सोचता हूं कि आपकी बातों को जवाब देने का कोई मतलब नहीं, लेकिन मानव स्वभाव में खामिया होती ही हैं...
महेंद्र जी मै भी आपसे सहमत हूँ , राजनीति में उतरकर अरविन्द केजरीवाल ने आम जनता के साथ धोखा किया
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteकोई भी टोपी उछलने से अपना काम निकल जाता है तो बढ़िया है न..
ReplyDeleteहाहाहाह जी हां आप ऐसे भी ले सकती हैं इस बात को
Deleteसशक्त लेखन ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
DeleteNews for u
ReplyDeletehttp://www.bharatswabhimandal.org/
यहां भी कोई कम नहीं है।
ReplyDeleteसब एक से बढ़कर एक यहां भी हैं..
sarthak nd satik ....
ReplyDeleteआभार बहुत बहुत आभार
Deleteसार्थक लेख है हमेशा की तरह !
ReplyDeleteआभार ...
आभार सुमन दी
Deleteब्लॉग में देरी से आने की वजह से हर खबर से दूर हो गई थी ...आज पढ़ने के बाद
ReplyDeleteसच पर सच सामने आ रहे है ...गाँधी और अन्ना की टोपी का तो पहले से ही मज़ाक बनाया जा चुका है ....अब और क्या नया होगा वो देखना बाकि है ||
बस आगे आगे देखिए होता है क्या
Deleteअब गांधी टोपी ऐसे ही उछाली जाएगी