संजय दत्त ! ऐसा लग रहा है कि संजय दत्त का मामला आज देश की राष्ट्रीय समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है। हर तरफ से विचार आ रहे हैं, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, फिल्म देखने वाले, फिल्म न देखने वाले, पूर्व जज, वकील सबके अपने अपने तर्क हैं। सोशल मीडिया में भी जबर्दस्त बहस चल रही है। मेरे एक फेसबुक मित्र ने तो अपनी वाल पर लिखा कि अगर साजिद खान की पिक्चर "हिम्मतवाला" में अजय देवगन की जगह संजय दत्त होते तो अब तक देश की जनता ही उन्हें जेल के अंदर कर आई होती। बहरहाल बहस का मुद्दा ये है कि संजय को सजा हो या माफ कर दिया जाए? हर जगह अपनी टांग फंसा कर सुर्खियों में रहने वाले पूर्व जस्टिस मार्कडेय काटजू ने तो राष्ट्रपति और महाराष्ट्र के राज्यपाल को पत्र भी लिख दिया कि संजय को माफ कर दिया जाए। सच बताऊं तो जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, उससे तो ऐसा लग रहा है कि कोर्ट ने संजय के साथ बहुत नाइंसाफी की है। मैं तो इतना कनफ्यूज हो गया हूं कि समझ ही नहीं पा रहा हूं कि संजय दत्त को अभिनेता कहूं या फिर अपराधी । ये अलग बात है कि संजय खुद ही गाते रहे हैं कि नायक नहीं खलनायक हूं मैं...।
संजय दत्त के बारे में तो विस्तार से बात करूंगा, लेकिन पहले मैं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू की दो बातें कर लूं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव उन्हें लेकर ठीक नहीं है। पहले आपको एक वाकया याद दिला दूं। ये वही काटजू हैं जो कुछ समय पहले टीवी चैनलों पर इसलिए गुर्रा रहे थे कि सदाबहार अभिनेता राजेश खन्ना की मौत को चैनलों ने इतना ज्यादा क्यों दिखाया ? उनका सवाल था कि ऐसा क्या हो गया कि चैनल पूरे दिन राजेश खन्ना को लेकर खबरें दिखातें रहे। हो सकता है कि उनका सवाल उस समय जायज हो। आज काटजू साहब मैं आपसे पूछता हूं कि ऐसा क्या है संजय दत्त में जो आप माफीनामे की पैरवी कर रहे हैं। आप खुद कहते हैं कि मैं फिल्म नहीं देखता, संजय से आपकी कोई मुलाकात भी नहीं है, किसी ने आप से हमदर्दी की अपील भी नहीं की। फिर आप इसमें कहां से शामिल हो गए ? संजय दत्त के माफीनामे के लिए उनके परिवार के लोग या उनके प्रशंसक अपील करें तो बात समझ में आती है। लेकिन आप प्रशंसक भी नहीं, उसे जानते भी नहीं, लेकिन जहां तहां माफीनामे की चिट्टी ठोंकते चले जा रहे हैं।
मित्रों ! आपने कभी रामलीला देखी है, अगर देखी हो तो याद कीजिए। रामलीला में राम-रावण संवाद चल रहा हो, राम के वनवास का संवाद चल रहा हो, सीता हरण की कहानी चल रही हो या फिर राम को वन से वापस लेने भरत जंगल में आए हों। ऐसे गंभीर संवादों के दौरान भी अगर बाजी मार ले जाता है तो वो है तीन फिट का जोकर। जोकर कभी कुछ बोलकर लोगों में छा जाता है, अगर बोलने को कुछ नहीं रहता है तो अपनी हरकतों से जनता पर छा जाता है। काटजू साहब अन्यथा मत लीजिएगा, पर हर मामले में जब आपका बेतुका बयान आता है तो कसम से मुझे तो रामलीला के उसी तीन फिट के जोकर की याद सताने लगती है। और हां आप तो देश की 90 फीसदी आबादी को भेड़ बकरी के साथ ही ना जाने क्या क्या बोलते हैं। पर जब आपको मैं इसी तरह के बेतुके बयान देते सुनता हूं तो सच बताऊं उसी 90 फीसदी आबादी में आपको सबसे आगे खड़ा पाता हूं। लोकतंत्र में आपको यकीन नहीं है, आप वोट नहीं डालते, क्योंकि इसे बेमानी समझते हैं। फिर उसी बेमानी से चुनी हुई सरकार की कृपा से मिली कुर्सी पर जमें रहने में संकोच नहीं लगता आपको ? खैर एक लाइन कह कर आपकी बात खत्म करुंगा कि " कानून अंधा होता है, ये मैं पढ़ता आया हूं, लेकिन जज भी अंधा होता है ये देख रहा हूं " ।
जब से संजय को सजा सुनाई गई है, उसी दिन से एक खास तबका संजय को दी गई सजा माफ करने की अपील कर रहा है, लेकिन पहले आप उस घटना को याद कीजिए। 12 मार्च 1993 में मुंबई में एक-एक कर 13 धमाके हुए। इसमें 257 लोगों की मौत हो गई और 713 लोग घायल हो गए। इस मामले की सुनवाई के लिए बनी विषेश टाडा कोर्ट ने 12 लोगों को फांसी और 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। टाडा कोर्ट ने नवंबर 2006 में अवैध तरीके से 9 एमएम की पिस्टल और एके-56 राइफल रखने के आरोप में अभिनेता संजय दत्त को 6 साल की सजा सुनाई थी, लेकिन आपराधिक साजिश रचने के आरोप से बरी कर दिया था। संजय 18 महीने जेल में बिता चुके हैं। इस सजा के खिलाफ संजय दत्त की अपील खारिज हो गई और अब उन्हें महीने भर के भीतर जेल जाना होगा। इसी बीच उनकी बाकी सजा को माफ करने की आवाजें उठने लगी हैं, तर्क दिया जा रहा है कि संजय अपराधी नहीं हैं, संजय ने कोई गुनाह नहीं किया है, संजय ने जो कुछ किया है वो नादानी है।
अब बड़ा सवाल ये है कि न्यायालयों में कानून की धाराओं के तहत फैसला होगा या फिर भावनाओं को ऊपर रखा जाएगा। अगर भावनाओं के आधार पर फैसला लिया जाने लगा तो फिर तो कानून का राज खत्म हो जाएगा। वैसे संजय के साथ लोगों की सहानिभूति का मैं भी सम्मान करता हूं, लेकिन लोग उन परिवारों की भावनाओं का सम्मान क्यों नहीं करते, जिनके परिवार का कोई ना कोई सदस्य उस धमाके में मारा गया है। मीडिया में भी संजय को लेकर बहुत बहस चल रही है, मैं कहता हूं कि मीडिया जरा पीड़ित परिवार के घर के बाहर खड़ी हो और वहां से ये आवाज उठाए कि संजय या अन्य किसी की सजा माफ कर दी जानी चाहिए। जस्टिज काटजू से भी मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या उनमें ये हिम्मत है कि पीड़ित परिवारों से बात करें कि वो लोग ही संजय की सजा माफी की अपील राष्ट्रपति और गर्वनर से करें।
हालाकि अभी संजय की सजा माफी पर कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन दूसरे राज्यों में भी इसकी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है। पता चला है कि जम्मू-कश्मीर में आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार आरोपियों में काफी आक्रोश है। उनका कहना है कि अगर संजय दत्त को एके 56 रखने पर माफी दिए जाने की बात हो सकती है तो कश्मीरी युवकों के मामूली गुनाह पर माफी क्यों नहीं मिल सकती ? आपको बता दें कि जम्मू कश्मीर में कई युवा हैं जो मामूली अपराधों के लिए सलाखों के पीछे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बात चाहे एक पिता के इकलौते बेटे जोत सिंह की ही क्यों न हो जिसे मामूली अपराध के चलते गिरफ्तार कर लिया गया था, इनके बेटे को 2009 में पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार किया है और तब से इसके पिता टूट चुके हैं। वहीं एक दूसरे मामले में 21 साल के रोहित सिंह को 16 साल की उम्र में ही गिरफ्तार कर लिया गया और वो आज तक अदालतों के चक्कर काट रहा है। संजय दत्त का तो अपराध सिद्ध हो चुका है जबकी इन्हें केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया गया है।
आप कहेंगे कि मैं क्या चाहता हूं, संजय के मामले में मेरी क्या राय है ? मेरी राय भी आपसे अलग नहीं है। संजय को माफी मिल जाती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। मेरा मानना है कि वैसे भी देश में एक लाख से अधिक अपराधी खुल्ला घूम रहे हैं, संजय की सजा माफ होने के बाद ये संख्या एक लाख एक हो जाएगी, क्या फर्क पड़ता है। लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल कानून के राज की विश्वसनीयता की है। मसलन कोई प्रोडक्ट मार्केट में आता है तो लोग अभिनेता, अभिनेत्रियों या खिलाड़ियों को साथ लेकर उस प्रोडक्ट का प्रचार करते हैं। इसके एवज में ये अभिनेता या खिलाड़ी करोड़ों कमाते हैं। मेरा मानना है कि अगर आर्मस एक्ट के मामले में संजय सजा काटते हैं तो देश में एक संदेश जाएगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, देश में कानून सबके लिए बराबर है और देश का कानून सख्त भी है। संजय से पूरी हमदर्दी होने के बाद भी मैं यही कहूंगा कि अगर उसकी सजा माफ होती है तो देश में एक गलत संदेश जाएगा, इसके अलावा ये एक नजीर भी बन जाएगी। इसे आधार बनाकर आगे भी लोग सजा माफी की मांग करने लगेंगे।