Sunday, 10 March 2013

जिसने सिर काटा उसे सिर पर बैठाया !

कुछ व्यक्तिगत कारणों से मेरा और मेरे मन का आपस में संपर्क ही कटा रहा, लिहाजा ना मैं ब्लाग लिख पाया और ना ही आपके ब्लागों तक पहुंच पाया। बहरहाल अब आगे बढ़ते हैं, व्यक्तिगत बातें सार्वजनिक मंच पर करके मैं आप सबको विषय से भटकाना नहीं चाहता, लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की निजी यात्रा में भारत के सरकारी रवैये को देखकर मुझसे रहा नहीं गया और दो शब्द लिखने चला आया, क्योंकि इससे सिर्फ मैं ही नहीं पूरा देश हैरान है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर सिर काटने वालों को सिर पर बैठाने की जरूरत सरकार को क्यों महसूस हुई ? अब देखिए है ना अजीब हालात हैं,   पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की यात्रा तो निजी बताई गई, लेकिन उन्होंने यहां रोटी-मुर्गा सरकारी तोड़ी। अच्छा ये भी नहीं कि वो सिर्फ अपने परिवार के साथ आए हों, बल्कि पूरे लाव-लश्कर मसलन उनकी टीम में कुल 48 लोग शामिल थे। बात आगे करूं इसके पहले विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को जितना भी कोसा जाए, मेरे खयाल से कम होगा। वैसे सेनाध्यक्ष विक्रम सिंह ने पाक प्रधानमंत्री के देश में रहने के दौरान ही चुनौती पूर्ण बातें कर देश का मान जरूर बढाया।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ का हफ्ते भर बाद यानि 16 मार्च को कार्यकाल खत्म हो रहा है। उन्होंने सोचा चलो चलते चलाते सरकारी विमान से अजमेर में गरीब नवाज के दरबार में मत्था टेक आएं। प्रोग्राम तो था कि बस अपने परिवार के साथ आएंगे, लेकिन जब चलने लगे तो पता चला कि दोपहर का भोजन भारत सरकार की ओर से है, फिर क्या था एक के बाद एक कुल 48 लोग सरकारी विमान में सवार हो गए। खैर पाकिस्तान को पता चलना चाहिए कि जब हम उनके आतंकवादी कसाब को कई साल तक चिकन और बिरयानी खिला सकते हैं, फिर प्रधानमंत्री राजा परवेज और उनके सिपाहसलारों को एक टाइम क्यों नहीं खिला सकते। वैसे हमारा दिल बड़ा है, हम तो ऐसा करते रहते हैं, क्योंकि हम " अतिथि देवो भव: " को मानने वाले हैं। हमारे नामचीन शायर वसीम बरेलवी भी कहते हैं कि ...

अल्लाह मेरे घर की बरकत ना चली जाए,
दो रोज से घर में कोई मेहमान नहीं है। 

लेकिन ये मेहमाननवाजी भारत सरकार को मंहगी पड़ गई। सीमा पर तैनात हमारे जवान का सिर काट ले जाने वाले पाकिस्तान को लेकर देश मे भड़का गुस्सा ठंडा नहीं पड़ा था कि हैदराबाद में सीरियल ब्लास्ट ने आग में घी डालने का काम किया। इसके बाद जब हमारे नेता पाकिस्तानी नेताओं के लिए रेड कारपेट बिछाते हैं तो देशवासियों की नाराजगी जायज ही है। यहां तक की दरगाह के दीवान जेनुअल आबेदीन ने पाकिस्तान प्रधानमंत्री को अपने हाथों से पारंपरिक सत्कार नवाजने से साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि सीमा पर तैनात जवानों के सिर काट ले जाने वाले देश के प्रमुख का वो सत्कार नहीं कर सकते। अजमेर दरगाह प्रमुख ने साफ ऐलान किया कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री राजा परवेज़ अशरफ़ का स्वागत नहीं किया जा सकता, हालाकि दरगाह में खादिमो की संस्था के मुताबिक दरगाह में कोई भी श्रदालु आ सकता है। लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि देश में कौमी एकता की इससे बड़ी मिसाल भला क्या हो सकती है?

सवाल उठा विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की भूमिका को लेकर। कहा गया कि जब प्रोटोकाल  के तहत अगर किसी देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष निजी दौरे पर आते है तो नौकरशाह यानि केंद्र सरकार में विदेश मंत्रालय या फिर किसी भी महकमें का सचिव स्तर का अधिकारी उनकी आगवानी कर सकता है। मेरा सवाल है कि अगर प्रोटोकाल में साफ साफ दर्ज है कि किसी अफसर को भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की आगवानी के लिए भेजा जा सकता था तो फिर दिल्ली में पूरा कामकाज छोड़कर विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को जयपुर क्यों भेजा गया ? जानकारी तो यहां तक है कि सलमान खुर्शीद की तैयारी तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को एयरपोर्ट पर जाकर रिसीव करने की थी, लेकिन जब उन्होंने देखा कि देश की मीडिया और आम जनता में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है तो बेचारे एयरपोर्ट जाने की हिम्मत नहीं  जुटा पाए और होटल में ही उनकी प्रतीक्षा करते रहे। अच्छा एक बात आप सबसे भी जानना चाहता हूं, आपको कैसा लगता है जब दुश्मन देश के नेता के साथ अपने देश का नेता पांच सितारा होटल में रोटी तोड़ने के बाद जनता के बीच में उसके साथ हाथ मिलाते हुए फोटो खिंचवाता है। मैं बताऊं, कसम से ऐसी गाली निकलती है, रहने दीजिए, मैं यहां लिख नहीं सकता।

खैर सलमान खुर्शीद के बारे में क्या कहूं, जब वो विकलांगों के नाम पर पैसा हड़प सकते हैं, तो फिर उनसे किसी तरह की उम्मीद करना बेमानी ही होगी। लेकिन सलमान साहब एक सवाल पूछना चाहता हूं.. जब आपके सामने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खाने की टेबिल पर बैठे  थे तो आपका पूरा ध्यान खाने पर ही लगा होगा। चिकेन, मटन, फिश, तरह तरह की सब्जियां, पांच तरह की दालें आदि आदि। सच बताइयेगा  कि एक बार भी आपके मन में शहीद सैनिक की विधवा की तस्वीर दिखाई दी। एक मिनट भी आपको लगा कि जिसके साथ आप लजीज खाना चटखारे लेते हुए खा रहे हैं, वो उस देश का प्रधानमंत्री है जो हमारे सैनिक का सिर काट ले गया। मुझे तो पक्का यकीन है कि आपके मन में ये बात बिल्कुल नहीं आई होगी। चलिए सैनिक की बात तो हो सकती है कि आपकी नजर में पुरानी हो गई हो, क्योंकि नेताओं की मेमोरी बहुत कमजोर होती है, लेकिन हैदराबाद में सीरियल ब्लास्ट तो आपको याद ही होना चाहिए। छोड़िए सलमान साहब नेता तो आप हैं हीं, कोशिश कीजिए कि आदमी भी बन जाएं, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जिस दिन आप आदमी बन गए ना उस दिन अच्छे नेता आप खुद बन जाएंगे।


बुरी - बुरी बातें बहुत हो गईं, कुछ अच्छी बातें भी कर लें। पहले तो मैं सेनाध्यक्ष विक्रम सिंह को सैल्यूट करना चाहता हूं। मुझे याद है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान से बेहतर संबंध बनाने की मंशा के साथ बस में सवार होकर वहां गए तो प्रोटोकाल के तहत उनकी  आगवानी में प्रधानमंत्री के साथ तीनों सेना प्रमुखों को भी वहां होना चाहिए था। पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तो वहां थे, पर सेना प्रमुख नहीं आए। अगर उस अपमान का जवाब पाकिस्तान को किसी ने दिया है तो मै कह सकता हूं कि आज सेनाध्यक्ष विक्रम सिंह ने दिया है। पहली बार हुआ होगा जब पडोसी देश (दुश्मन देश) का प्रधानमंत्री देश में था और हमारे सेना प्रमुख ने कहा कि " हमारे सैनिकों ने भी चूडियां नहीं पहन रखीं है, हम हर तरह से जवाब देने में सक्षम हैं और देंगें" । हालांकि सेना प्रमुख ने खुलकर तो विरोध नहीं किया, पर उनकी बात से साफ हो गया कि विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के लंच देने से वो भी खुश नहीं थे। उन्हें लगा कि अगर आज सख्त विरोध दर्ज नहीं किया गया तो ये नेता देश की ऐसी तैसी करने से नहीं चूकने वाले। सेना प्रमुख ने साफ कर दिया कि सलमान खुर्शीद का उनके साथ भोजन करना कूटनीतिक फैसला होगा, उनका नहीं। सेना प्रमुख ने सच कहूं सैनिकों के मन की बात कह दी।

वैसे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का जयपुर और अजमेर के आम नागरिकों ने भी जमकर विरोध किया। हालत ये हो गई कि बेचारे प्रधानमंत्री जिस रास्ते से दरगाह पहुंचे, वापसी में उन्हें रास्ता बदलना पडा। मुझे लगता है कि पहली बार ही ऐसा हुआ होगा कि दूसरे देश के प्रधानमंत्री को सुरक्षा कारणों से इधर उधर से लाना ले जाना पडा। खैर मुझे तो लगता है कि पाक प्रधानमंत्री का विरोध जायज था, उन्हें संदेश मिलना चाहिए कि देश जनता भी उनके देश की करतूतों से वाकिफ है और जरूरत पड़ने पर वो भी ना सिर्फ सड़क पर उतर सकती है, बल्कि किसी भी हद तक जा सकती है।



मित्रों !  मेरे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर भी आपका स्वागत है। यहां आपको मिलेगा कुंडा की घटना का सच। मतलब मैने बताने की कोशिश की है कि उस घटना को लेकर दरअसल पर्दे के पीछे चल क्या रहा है। मेरा तो मानना है कि लोगों को सीओ से कत्तई हमदर्दी नहीं रह गई, राजनेता उस परिवार की आड़ में वोट बैंक दुरुस्त करने में लगे हैं, बेगम साहिबा ने नौकरी पाने वालों  की इतनी लंबी सूची थमा दी है.. अब सबकुछ यहीं नहीं। आइये दूसरे ब्लाग पर..

लिंक भी दे रहा हूं..  http://tvstationlive.blogspot.in/2013/03/blog-post_10.html?showComment=1362986326233#c7175009973830449847





31 comments:

  1. bat ye hai ki dono taraf kee roti to yahi log todte hain .ab yahan valon ka jab man hoga vahan bhi jayenge .netalogon ki bat kar rahi hoon isliye ye unhen bhookha to nahi chhod sakte the n ."महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें"आभार मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं . आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ . ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .

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    1. उन्हें तो भूखा नहीं छोड़ सकते थे, सही है, पर उनके साथ खुद भोजन करने की क्या जरूरत थी ?

      संदेश देना चाहिए था कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर सख्त है..

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    1. भाई ANONYMOUS जी, आप कोई भी हों, मेरी प्रशंसा बिल्कुल ना करें। आपके लिए मेरे ब्लाग पर बिल्कुल जगह नहीं है।

      आप यहां आकर मेरे ब्लाग पर कमेंट के नाम पर अपने अश्लील बेवपेज का लिंक दे जाते हैं, ये काम आप कई बार कर चुके हैं।

      अब मेरा धैर्य जवाब दे रहा है, प्लीज मान जाएं। वरना मुझे देखना होगा कि साइबर क्राइम के तहत मैं क्या कार्रवाई कर सकता हूं।

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  3. rajniti ke rang hazaron, sab kuch hai nanga yaron

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  4. पता नहीं हम किस विचारधारा पर काम कर रहें हैं. विचारोत्तेजक आलेख.

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  5. बढ़िया है आदरणीय-
    शुभकामनायें
    हर हर बम बम

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  6. लटके झटके पाक हैं, पर नीयत नापाक |
    ख्वाजा के दरबार में, राजा रगड़े नाक |

    राजा रगड़े नाक, जियारत अमन-चैन हित |
    हरदम हावी फौज, रहे किस तरह सुरक्षित |

    बोल गया परवेज, परेशां पाकी बटके |
    सिर पर उत तलवार, इधर कुल मसले लटके ||

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  7. ऐसा लगता है कि इन नेताओं की रीढ़ की हड्डी है ही नहीं..लिचपिचा सा शासन तन्त्र है इनका!देश /देशवासियों का सम्मान इनके लिए कोई मायने नहीं रखता शायद.

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    1. सच कहा आपने, पूरी तरह सहमत हूं..

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  8. हाँ,अजमेर दरगाह प्रमुख की और उन सभी अजमेरवासियों की जिन्होंने खुल कर विरोध किया उनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.

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    1. जी इनकी तो वाकई तारीफ होनी चाहिए..
      आभार

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  9. जेनुअल आबेदीन को सलाम .जनरल विक्रम सिंह देश के सर्वोच्च शौर्य के प्रतीक है सलमान खुर्शीद जैसों को इन्हीं से कुछ दीन ईमान की दीक्षा ले लेनी चाहिए .बहुत बढ़िया प्रासंगिक आलेख .

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  10. आपका ये 'दो शब्द ' कितना कुछ कह जाता है.

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  11. भाई महेन्द्र जी ,मैं पेपर का समाचार नही पढ़ता ,आपके ब्लाग से आपका लेख पढ़ कर सब जान लेता हूँ | ये तारीफ़ नही ..आपके लेख में एक आम इमानदार ,सरल और सीधे हिन्दुस्तानी के दिल के सवाल का जवाब होता है |
    आपने एक अजनबी की टिप्पणी का जवाब जिस तरह दिया उसमें मेरा भी समर्थन है ये मैं भी भुगत चूका हूँ .बाकि सब कुछ आपने कह दिया ..मुझ जैसों की आवाज़ बन कर,बस आपकी इजाज़त से आप का टाइटल पूरा करना चाहता हूँ ....???
    |
    जिसने सिर काटा उसे सिर पर बैठाया !
    बैठ हमारे सर पे खुर्शीद को जूता लगाया.....

    खुश रहें ,निर्भीक रहें! शुभकामनायें!

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    1. ओह सर, पूरी कोशिश रहेगी की आपके इस भरोसे पर हमेशा खरा उतरूं।
      मुझे पक्का यकीन है कि आपका स्नेह और आशीर्वाद यूं ही मेरे लिए हमेशा सुरक्षित रहेगा।

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  12. ऐसी स्थित में सरकार के किसी मंत्री को उनसे नही मिलना चाहिए था,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

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    1. मेरा भी मानना यही है, कम से कम उन्हें सरकारी मेहमान तो बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए था।

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  13. आधा सच को अब पूरा सच कर दो महेंद्र जी ...क्यों कि यहाँ जो भी लिखा जाता है वो पूरा सच होता है :)

    हमें तो आज तक इन नेता की चाल और ढाल आज तक समझ ही नहीं आई ...कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं

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    1. हाहाहाहहा... नाम से क्या होगा, पर ये काफी कि आप सबका मैं भरोसा जीत सकूं।

      बहुत बहुत आभार

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  14. दरगाह के दीवान जेनुअल आबेदीन और सेनाध्यक्ष विक्रम सिंह को सैल्यूट!

    बहुत अच्छा लिखा है हमेशा की तरह.

    शुभकामनायें

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  15. क्या कहूँ , बस शर्म आ रही है |
    विक्रम सिंह जी का गुस्सा जायज है और उनके विरोध/चेतावनी का तरीका भी संतुलित और काबिलेतारीफ है | लेकिन उससे भी ज्यादा मैं तारीफ करना चाहूँगा जेनुअल आबेदीन जी की जिन्होंने मजहब के ऊपर मजहबी भाईचारे को वरीयता दी , ये वाकई एक अतुलनीय फैसला था |
    दोनों को नमन |

    ps-ये anonymous जी का कोई solution हो तो प्लीज मुझे भी बताइयेगा |

    सादर

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    1. शुक्रिया..

      भाई anonymous का तो बस यही है कि उसे प्रकाशित ना होने दें, जैसा मैं करता हूं..

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।