मित्रों कुछ व्यक्तिगत कारणों से महीने भर से ज्यादा समय से मैं ब्लाँग पर समय नहीं दे पा रहा हूं। वैसे समय ना दे पाने की एक वजह मेरे निजी कारण तो हैं ही, लेकिन दूसरी बड़ी वजह रिलायंस जैसी कंपनी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना भी रहा है। पहले मैं MTS का डेटा कार्ड इस्तेमाल कर रहा था, पता चला कि इस कंपनी के तमाम जगहों पर लाइसेंस रद्द हो चुके हैं, लिहाजा ये कार्ड देश के एक बड़े हिस्से में काम करना ही बंद कर दिया। बाद में मैने कुछ मित्रों की सलाह पर रिलायंस का 3 जी डेटा कार्ड लिया, ये कार्ड दिल्ली में तो फिर भी ठीक काम करता है, लेकिन जैसे ही दूसरी जगह पहुंच जाइये, काम करना बंद कर देता है। इसके बाद तो बेवजह अंबानी बंधुओं के लिए मुंह से गाली निकलती है। पिछले महीने मैं 20 से 25 दिन लखनऊ में रहा हूं। अब बताइये देश के इतने बड़े राज्य की राजधानी लखनऊ में रिलायंस का डेटा कार्ड इसलिए काम नहीं कर रहा है, क्योंकि यहां 3 जी की सुविधा नहीं है। कुछ नहीं हो सकता इस शहर का। हैरानी इस बात की होती है कि अदब के इस शहर में हर चीज की मांग के लिए शोर मचते देखता हूं, पर तकनीकि खामियों को दूर करने या फिर नई तकनीक का लाभ शहर को मिले, इसके लिए ये शहर गूंगों-बहरों की बस्ती के अलावा कुछ भी नहीं है। खैर छोड़िए ! इस शहर पर उलझा रहूंगा तो जो बात कहने आया हूं, वो कहीं खो जाएगा। बहरहाल अब कोशिश होगी कि ब्लाँग पर नियमित बना रहूं, आप सबके ब्लाँग भी काफी समय से नहीं देख पाया हूं, वहां भी जाऊं !
आज बात की शुरूआत चटपटे नेता लालू यादव से। चारा घोटाले में आरोप सिद्ध हो जाने के बाद लालू यादव जेल चले गए। 17 साल से ये मामला न्यायालय में विचाराधीन था। अगर पिछले चार पांच साल को छोड़ दें तो इस मुकदमे के चलने के दौरान लालू बिहार और केंद्र की सरकार में अहम भूमिका निभा रहे थे। ये लोकतंत्र का माखौल ही है कि भ्रष्टाचार का आरोपी व्यक्ति यहां मंत्री बना बैठा रहता है। होना तो यही चाहिए कि जब तक नेता आरोपों से बरी ना हो जाए, उसे मंत्री, मुख्यमंत्री बिल्कुल नहीं बनाया जाना चाहिए। बहरहाल लालू यादव अब सही जगह पर हैं, उन्हें यहीं होना चाहिए। जो हालात हैं उसे देखकर हम कह सकते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट की चली तो आने वाले चुनावों के बाद संसद और विधानसभाओं की सूरत थोड़ी बदली हुई होगी। क्योंकि तब यहां भ्रष्ट, बेईमान, अपराधी, हत्यारे, बलात्कारी नहीं आ पाएंगे। अब देखिए शिक्षक भर्ती घोटाले मे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जेल चले गए, मेडीसिन खरीद घोटाले में रसीद मसूद जेल गए, चारा घोटाले में ही बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी जेल भेजे गए। खैर जो नेता अभी तक जेल जा रहे हैं, सच्चाई तो ये है कि अब वो राजनीति के हाशिए पर हैं, उनकी कोई खास पूछ रही नहीं अब सियासत मे। हालांकि लालू जरूर कोई भी करिश्मा करने की हैसियत रखते हैं। जेल जाने के दौरान लालू ने कहा "मैं साजिश का शिकार हो गया" । मुझे भी लगता है कि वो साजिश के शिकार हो गए। मेरा मानना है कि मायावती और मुलायम सिंह की तरह अगर लालू के पास भी 19 - 20 सांसद होते, तो यही सरकार और प्रधानमंत्री उनके तलवे चाटते फिरते। यूपीए (एक) की सरकार में लालू की हैसियत किसी से छिपी नहीं है।
बहरहाल इन दिनों घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा हैं। आपने देखा ना कि राहुल गांधी ने एक शिगूफा छोड़ा और खबरिया चैनलों से लेकर देश दुनिया के सारे अखबार राहुल की तस्वीरों से रंग गए। लेकिन मुझे चैनल और अखबारों की रिपोर्ट देखकर काफी हैरानी हुई । हैरानी इस बात पर हुई कि क्या इतना बड़ा फैसला सरकार ने कांग्रेस पार्टी की मर्जी के बगैर ले लिया गया ? अगर इस फैसले में पार्टी की राय थी तो सवाल उठता है कि क्या पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से इस मामले में कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया ? सवाल ये भी क्या राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाकर सिर्फ उनका कद बढ़ाया गया है, उनसे जरूरी मसलों पर कोई सलाह मशविरा नहीं की जाती है ! या फिर ये समझा जाए कि राहुल गांधी की विशेषता सिर्फ ये है कि वो गांधी परिवार में जन्में है, इसलिए उनका सम्मान भर है, उनकी राय पार्टी या सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखती ? यही वजह तो नहीं कि उनसे किसी मसले पर रायशुमारी नहीं की जाती। अरे भाई मैं एक तरफा बात किए जा रहा हूं, पहले मैं आपसे पूछ लूं कि मुद्दा तो आपको पता है ना ? बहुत सारे लोग सरकारी काम से बाहर या फिर निजी टूर पर रहते हैं, इसलिए हो सकता है कि उन्हें ना पता हो कि राहुल ने ऐसा क्या तीर चला दिया, पूरी व्यवस्था ही हिल गई है।
दरअसल आपको पता होगा कि 10 जुलाई 13 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधियों को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। इसमें कहा गया कि अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या इससे अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देश भर में स्वागत हुआ। कहा गया कि इससे राजनीति में सुचिता आएगी, अपराधी, भ्रष्ट नेताओं पर लगाम लगाया जा सकेगा। देश की आम जनता और विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुले मन से स्वागत किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से केंद्र की सरकार खुद को असहज महसूस करने लगी। सरकार को मालूम है कि अगर कोर्ट के आदेश का पालन हुआ तो केंद्र की ये सरकार किसी भी समय मुंह के बल जा गिरेगी, क्योंकि दो एक पार्टी को छोड़ दें तो ज्यादातर पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े कई मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं। वैसे भी पूरा देश जानता जानता है कि आज अगर केंद्र सरकार के हाथ में सीबीआई ना हो, तो ये सरकार कब का गिर चुकी होती। अगर मैं ये कहूं कि इस सरकार को सीबीआई चला रही है तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। इस सरकार को लूटेरे, चोर, भ्रष्ट नेताओं का आगे भी समर्थन लेना होगा, यही सोचकर अंदरखाने विचार मंथन शुरू हो गया।
मेरी तरह आप भी देख रहे होंगे कि जैसे-जैसे इस सरकार का कार्यकाल समाप्त होने को आ रहा है, अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का असली और बदसूरत चेहरा भी सामने आता जा रहा है। आमतौर पर मेरी आदत गाली गलौज करने की नहीं है, पर अब प्रधानमंत्री का नाम जब भी आता है, वाकई इनके लिए बहुत गाली निकलती है। पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि मनमोहन सिंह महज एक इंसानी शरीर का पुतला भर हैं, इनके भीतर अपना कुछ भी नहीं है। इस पुतले को अपने और अपने पद के मान, सम्मान, इमान किसी भी चीज की कोई चिंता नहीं है। बस कुर्सी पर बने रहने के लिए सब कुछ 10 जनपथ में गिरवी रख चुके हैं। कई बार मन में एक सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सचमुच अस्वस्थ हैं या फिर ऐड़ा बनकर पेड़ा खा रहे है, ये बात मैं समझ नहीं पा रहा हूं। अब देखिए ना दो दागी मंत्री अश्वनी कुमार और पवन बंसल से इस्तीफा लेने की बारी आई, तो पार्टी की ओर से ऐसा संदेश दिया गया कि सोनिया गांधी तो दोनों मंत्रियों को भगाना चाहती हैं, पर मनमोहन सिंह उन्हें चंड़ीगढ़ का होने की वजह से बचा रहे हैं। दोनो मंत्रियों के इस्तीफे का मामला तूल पकड़ रहा था, प्रधानमंत्री की किरकिरी हो रही थी, लेकिन पूरी पार्टी खामोश रही। बाद अचानक सोनिया गांधी 10 जनपथ से निकलीं और प्रधानमंत्री निवास यानि 7 आरसीआर पहुंच गईं। सोनिया के सख्त तेवर के बाद प्रधानमंत्री ने दोनों से इस्तीफा ले लिया ! दागी मंत्रियों को कौन बचा रहा था ? इस बात की जानकारी आज तक किसी को नहीं हुई।
अब एक बार फिर संदेश दिया जा रहा है कि चोरों, दागियों , अपराधियों, जेल में बंद नेताओं के मददगार हैं अपने प्रधानमंत्री। इन पर कुर्सी का ऐसा भूत सवार है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने के लिए अध्यादेश लाने से भी नहीं बाज आते। हुआ क्या, कल के लड़के ने प्रधानमंत्री की अगुवाई में लिए गए कैबिनेट के फैसले को "नानसेंस" कह कर संबोधित किया। राहुल ने ये कह कर कि " मेरी निजी राय में अध्यादेश बकवास है, इसे फाड़कर फैंक देना चाहिए" तूफान खड़ा कर दिया। बहरहाल राहुल की निजी राय के बाद जैसी हलचल देखी जा रही है, उससे प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट की हैसियत का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । वैसे एक बात है राहुल को जिसने भी ये सलाह दी वो है तो बहुत ही शातिर राजनीतिबाज ! जानते हैं क्यों ? सब को पता है कि इस समय राष्ट्रपति भवन में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल नहीं बल्कि महामहिम प्रणव दा हैं । मेरा दावा है कि इस अध्यादेश पर प्रणव दा एक बार में तो हस्ताक्षर बिल्कुल नहीं कर सकते थे ! सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के जरिए संभवत: ये संदेश भी उन्होंने सरकार तक पहुंचा दिया था। राष्ट्रपति भवन से अध्यादेश बिना हस्ताक्षर के वापस आता तो सरकार और कांग्रेस पार्टी और उसके नेता कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहते।
बीजेपी पहले से ही इसका विरोध कर रही थी। यहां तक की आडवाणी की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिलकर आग्रह भी कर चुका था कि इस अध्यादेश पर वो अपनी मुहर ना लगाएं। सच्चाई ये है कि राष्ट्रपति भवन और विपक्ष के तेवर से कांग्रेस खेमें में बेचैनी थी। सब तोड़ निकालने में जुट गए थे कि कैसे इस अध्यादेश को वापस लिया जाए। बताते हैं कि राहुल गांधी ने जिस तरह अचानक प्रेस क्लब पहुंच कर रियेक्ट किया, वो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि एक रणनीति के तहत राहुल को सामने किया गया। कांग्रेस नेताओं ने जानबूझ कर राहुल को कड़े शब्द इस्तेमाल करने को कहा। इस बात पर भी चर्चा हुई कि अपनी ही सरकार के खिलाफ कड़े तेवर दिखाने से प्रधानमंत्री नाराज हो सकते हैं, इतना ही नहीं यूपीए में शामिल घटक दल भी अन्यथा ले सकते हैं। इस पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने साफ किया कि ये एक ऐसा मुद्दा है कि इस पर कोई भी खुलकर सामने नहीं आ सकता। जो अध्यादेश का समर्थन करेगा, जनता उससे किनारा कर लेगी। राहुल अगर अपनी ही सरकार को "नानसेंस" कहते हैं तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। जहां तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाराजगी का सवाल है, कहा गया कि कई बार इससे भी गंभीर टिप्पणी उनके बारे में हो चुकी है और वो नाराज नहीं हुए। इस बार तो उनकी अगुवाई में इतना गंदा काम हुआ है कि इस मुद्दे पर नाराज हुए तो फिर कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे।
बताया जा रहा है कि सब कुछ तय हो जाने के बाद राहुल को तीन लाइन की स्क्रिप्ट सौंपी गई और कहा गया कि उन्हें ये याद करना है और आक्रामक तेवर में मीडिया के सामने रखना है। मीडिया के सवाल का जवाब नहीं देना है। अगर कोई सवाल हो भी जाए और जवाब देने की मजबूरी हो तो इसी बात को दुहरा देना है। बताया गया कि गंभीर मामला है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हमेशा की तरह इस बार भी बाहर हैं, इसलिए नपे तुले शब्दों में ही हमला होना चाहिए, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री को गुस्सा कम आता है, लेकिन जब आता है तो कुछ भी कहने से नहीं चूकते। वैसे मेरा एक सवाल है, प्रधानमंत्री जी विपक्ष ने आपको भ्रष्ट कहा तो नाराज हो गए, आपने संसद में कहाकि दुनिया के किसी दूसरे देश में प्रधानमंत्री को वहां का विपक्ष भ्रष्ट नहीं कहता है। आपकी बात सही है, लेकिन मुझे ये जानना है कि दुनिया के किसी दूसरे देश में अपनी ही पार्टी का नेता अपने प्रधानमंत्री को " नानसेंस " कहता है क्या ? प्लीज आप जवाब मत दीजिए, क्योंकि इसका आपके पास कोई जवाब है भी नहीं ।
चलते - चलते
मैं प्रधानमंत्री होता तो अमेरिकी से ही इस्तीफा भेजता और वहीं ओबामा से टू बीएचके का एक फ्लैट ले कर बस जाता, देशवासियों को अपना काला चेहरा नहीं दिखाता ।
आज बात की शुरूआत चटपटे नेता लालू यादव से। चारा घोटाले में आरोप सिद्ध हो जाने के बाद लालू यादव जेल चले गए। 17 साल से ये मामला न्यायालय में विचाराधीन था। अगर पिछले चार पांच साल को छोड़ दें तो इस मुकदमे के चलने के दौरान लालू बिहार और केंद्र की सरकार में अहम भूमिका निभा रहे थे। ये लोकतंत्र का माखौल ही है कि भ्रष्टाचार का आरोपी व्यक्ति यहां मंत्री बना बैठा रहता है। होना तो यही चाहिए कि जब तक नेता आरोपों से बरी ना हो जाए, उसे मंत्री, मुख्यमंत्री बिल्कुल नहीं बनाया जाना चाहिए। बहरहाल लालू यादव अब सही जगह पर हैं, उन्हें यहीं होना चाहिए। जो हालात हैं उसे देखकर हम कह सकते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट की चली तो आने वाले चुनावों के बाद संसद और विधानसभाओं की सूरत थोड़ी बदली हुई होगी। क्योंकि तब यहां भ्रष्ट, बेईमान, अपराधी, हत्यारे, बलात्कारी नहीं आ पाएंगे। अब देखिए शिक्षक भर्ती घोटाले मे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जेल चले गए, मेडीसिन खरीद घोटाले में रसीद मसूद जेल गए, चारा घोटाले में ही बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी जेल भेजे गए। खैर जो नेता अभी तक जेल जा रहे हैं, सच्चाई तो ये है कि अब वो राजनीति के हाशिए पर हैं, उनकी कोई खास पूछ रही नहीं अब सियासत मे। हालांकि लालू जरूर कोई भी करिश्मा करने की हैसियत रखते हैं। जेल जाने के दौरान लालू ने कहा "मैं साजिश का शिकार हो गया" । मुझे भी लगता है कि वो साजिश के शिकार हो गए। मेरा मानना है कि मायावती और मुलायम सिंह की तरह अगर लालू के पास भी 19 - 20 सांसद होते, तो यही सरकार और प्रधानमंत्री उनके तलवे चाटते फिरते। यूपीए (एक) की सरकार में लालू की हैसियत किसी से छिपी नहीं है।
बहरहाल इन दिनों घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा हैं। आपने देखा ना कि राहुल गांधी ने एक शिगूफा छोड़ा और खबरिया चैनलों से लेकर देश दुनिया के सारे अखबार राहुल की तस्वीरों से रंग गए। लेकिन मुझे चैनल और अखबारों की रिपोर्ट देखकर काफी हैरानी हुई । हैरानी इस बात पर हुई कि क्या इतना बड़ा फैसला सरकार ने कांग्रेस पार्टी की मर्जी के बगैर ले लिया गया ? अगर इस फैसले में पार्टी की राय थी तो सवाल उठता है कि क्या पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से इस मामले में कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया ? सवाल ये भी क्या राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाकर सिर्फ उनका कद बढ़ाया गया है, उनसे जरूरी मसलों पर कोई सलाह मशविरा नहीं की जाती है ! या फिर ये समझा जाए कि राहुल गांधी की विशेषता सिर्फ ये है कि वो गांधी परिवार में जन्में है, इसलिए उनका सम्मान भर है, उनकी राय पार्टी या सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखती ? यही वजह तो नहीं कि उनसे किसी मसले पर रायशुमारी नहीं की जाती। अरे भाई मैं एक तरफा बात किए जा रहा हूं, पहले मैं आपसे पूछ लूं कि मुद्दा तो आपको पता है ना ? बहुत सारे लोग सरकारी काम से बाहर या फिर निजी टूर पर रहते हैं, इसलिए हो सकता है कि उन्हें ना पता हो कि राहुल ने ऐसा क्या तीर चला दिया, पूरी व्यवस्था ही हिल गई है।
दरअसल आपको पता होगा कि 10 जुलाई 13 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधियों को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। इसमें कहा गया कि अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या इससे अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देश भर में स्वागत हुआ। कहा गया कि इससे राजनीति में सुचिता आएगी, अपराधी, भ्रष्ट नेताओं पर लगाम लगाया जा सकेगा। देश की आम जनता और विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुले मन से स्वागत किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से केंद्र की सरकार खुद को असहज महसूस करने लगी। सरकार को मालूम है कि अगर कोर्ट के आदेश का पालन हुआ तो केंद्र की ये सरकार किसी भी समय मुंह के बल जा गिरेगी, क्योंकि दो एक पार्टी को छोड़ दें तो ज्यादातर पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े कई मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं। वैसे भी पूरा देश जानता जानता है कि आज अगर केंद्र सरकार के हाथ में सीबीआई ना हो, तो ये सरकार कब का गिर चुकी होती। अगर मैं ये कहूं कि इस सरकार को सीबीआई चला रही है तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। इस सरकार को लूटेरे, चोर, भ्रष्ट नेताओं का आगे भी समर्थन लेना होगा, यही सोचकर अंदरखाने विचार मंथन शुरू हो गया।
मेरी तरह आप भी देख रहे होंगे कि जैसे-जैसे इस सरकार का कार्यकाल समाप्त होने को आ रहा है, अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का असली और बदसूरत चेहरा भी सामने आता जा रहा है। आमतौर पर मेरी आदत गाली गलौज करने की नहीं है, पर अब प्रधानमंत्री का नाम जब भी आता है, वाकई इनके लिए बहुत गाली निकलती है। पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि मनमोहन सिंह महज एक इंसानी शरीर का पुतला भर हैं, इनके भीतर अपना कुछ भी नहीं है। इस पुतले को अपने और अपने पद के मान, सम्मान, इमान किसी भी चीज की कोई चिंता नहीं है। बस कुर्सी पर बने रहने के लिए सब कुछ 10 जनपथ में गिरवी रख चुके हैं। कई बार मन में एक सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सचमुच अस्वस्थ हैं या फिर ऐड़ा बनकर पेड़ा खा रहे है, ये बात मैं समझ नहीं पा रहा हूं। अब देखिए ना दो दागी मंत्री अश्वनी कुमार और पवन बंसल से इस्तीफा लेने की बारी आई, तो पार्टी की ओर से ऐसा संदेश दिया गया कि सोनिया गांधी तो दोनों मंत्रियों को भगाना चाहती हैं, पर मनमोहन सिंह उन्हें चंड़ीगढ़ का होने की वजह से बचा रहे हैं। दोनो मंत्रियों के इस्तीफे का मामला तूल पकड़ रहा था, प्रधानमंत्री की किरकिरी हो रही थी, लेकिन पूरी पार्टी खामोश रही। बाद अचानक सोनिया गांधी 10 जनपथ से निकलीं और प्रधानमंत्री निवास यानि 7 आरसीआर पहुंच गईं। सोनिया के सख्त तेवर के बाद प्रधानमंत्री ने दोनों से इस्तीफा ले लिया ! दागी मंत्रियों को कौन बचा रहा था ? इस बात की जानकारी आज तक किसी को नहीं हुई।
अब एक बार फिर संदेश दिया जा रहा है कि चोरों, दागियों , अपराधियों, जेल में बंद नेताओं के मददगार हैं अपने प्रधानमंत्री। इन पर कुर्सी का ऐसा भूत सवार है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने के लिए अध्यादेश लाने से भी नहीं बाज आते। हुआ क्या, कल के लड़के ने प्रधानमंत्री की अगुवाई में लिए गए कैबिनेट के फैसले को "नानसेंस" कह कर संबोधित किया। राहुल ने ये कह कर कि " मेरी निजी राय में अध्यादेश बकवास है, इसे फाड़कर फैंक देना चाहिए" तूफान खड़ा कर दिया। बहरहाल राहुल की निजी राय के बाद जैसी हलचल देखी जा रही है, उससे प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट की हैसियत का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । वैसे एक बात है राहुल को जिसने भी ये सलाह दी वो है तो बहुत ही शातिर राजनीतिबाज ! जानते हैं क्यों ? सब को पता है कि इस समय राष्ट्रपति भवन में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल नहीं बल्कि महामहिम प्रणव दा हैं । मेरा दावा है कि इस अध्यादेश पर प्रणव दा एक बार में तो हस्ताक्षर बिल्कुल नहीं कर सकते थे ! सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के जरिए संभवत: ये संदेश भी उन्होंने सरकार तक पहुंचा दिया था। राष्ट्रपति भवन से अध्यादेश बिना हस्ताक्षर के वापस आता तो सरकार और कांग्रेस पार्टी और उसके नेता कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहते।
बीजेपी पहले से ही इसका विरोध कर रही थी। यहां तक की आडवाणी की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिलकर आग्रह भी कर चुका था कि इस अध्यादेश पर वो अपनी मुहर ना लगाएं। सच्चाई ये है कि राष्ट्रपति भवन और विपक्ष के तेवर से कांग्रेस खेमें में बेचैनी थी। सब तोड़ निकालने में जुट गए थे कि कैसे इस अध्यादेश को वापस लिया जाए। बताते हैं कि राहुल गांधी ने जिस तरह अचानक प्रेस क्लब पहुंच कर रियेक्ट किया, वो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि एक रणनीति के तहत राहुल को सामने किया गया। कांग्रेस नेताओं ने जानबूझ कर राहुल को कड़े शब्द इस्तेमाल करने को कहा। इस बात पर भी चर्चा हुई कि अपनी ही सरकार के खिलाफ कड़े तेवर दिखाने से प्रधानमंत्री नाराज हो सकते हैं, इतना ही नहीं यूपीए में शामिल घटक दल भी अन्यथा ले सकते हैं। इस पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने साफ किया कि ये एक ऐसा मुद्दा है कि इस पर कोई भी खुलकर सामने नहीं आ सकता। जो अध्यादेश का समर्थन करेगा, जनता उससे किनारा कर लेगी। राहुल अगर अपनी ही सरकार को "नानसेंस" कहते हैं तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। जहां तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाराजगी का सवाल है, कहा गया कि कई बार इससे भी गंभीर टिप्पणी उनके बारे में हो चुकी है और वो नाराज नहीं हुए। इस बार तो उनकी अगुवाई में इतना गंदा काम हुआ है कि इस मुद्दे पर नाराज हुए तो फिर कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे।
बताया जा रहा है कि सब कुछ तय हो जाने के बाद राहुल को तीन लाइन की स्क्रिप्ट सौंपी गई और कहा गया कि उन्हें ये याद करना है और आक्रामक तेवर में मीडिया के सामने रखना है। मीडिया के सवाल का जवाब नहीं देना है। अगर कोई सवाल हो भी जाए और जवाब देने की मजबूरी हो तो इसी बात को दुहरा देना है। बताया गया कि गंभीर मामला है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हमेशा की तरह इस बार भी बाहर हैं, इसलिए नपे तुले शब्दों में ही हमला होना चाहिए, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री को गुस्सा कम आता है, लेकिन जब आता है तो कुछ भी कहने से नहीं चूकते। वैसे मेरा एक सवाल है, प्रधानमंत्री जी विपक्ष ने आपको भ्रष्ट कहा तो नाराज हो गए, आपने संसद में कहाकि दुनिया के किसी दूसरे देश में प्रधानमंत्री को वहां का विपक्ष भ्रष्ट नहीं कहता है। आपकी बात सही है, लेकिन मुझे ये जानना है कि दुनिया के किसी दूसरे देश में अपनी ही पार्टी का नेता अपने प्रधानमंत्री को " नानसेंस " कहता है क्या ? प्लीज आप जवाब मत दीजिए, क्योंकि इसका आपके पास कोई जवाब है भी नहीं ।
चलते - चलते
मैं प्रधानमंत्री होता तो अमेरिकी से ही इस्तीफा भेजता और वहीं ओबामा से टू बीएचके का एक फ्लैट ले कर बस जाता, देशवासियों को अपना काला चेहरा नहीं दिखाता ।
सही कहा..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (02-10-2013) नमो नमो का मन्त्र, जपें क्यूंकि बरबंडे - -चर्चा मंच 1386 में "मयंक का कोना" पर भी है!
महात्मा गांधी और पं. लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धापूर्वक नमन।
दो अक्टूबर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया सर
Deleteआभार
राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया देकर अपनी पार्टी को उचित सन्देश दिया !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
तरीका गलत था...
Deleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
आभार भाई जी
Deleteक्या बात है महेंद्र भाई श्रीवास्तव जी !"प्रधानमंत्रीजी बस एक बार अन्दर झांकिए "एक बार क्या वह तो दस जनपथ के नादर ही झांकते रहते हैं लेकिन दिखाली कुछ नहीं देता उनका काम सुनना है देखना नहीं है।
ReplyDeleteराहुल के गुरु भोपाली मदारी हैं झामुरा विलायती गुरु भोपाली मदारी। राहुल सही बात भी गलत समय पर कहते हैं। आस्तीन चढ़ाके। बुद्धि मंद हैं ,इनकी बात का प्रधानमंत्रीजी क्या बुरा मानेगें।
बहुत बहुत आभार
Deleteक्या बात है महेंद्र भाई श्रीवास्तव जी !"प्रधानमंत्रीजी बस एक बार अन्दर झांकिए "एक बार क्या वह तो दस जनपथ के अन्दर ही झांकते रहते हैं लेकिन दिखायी कुछ नहीं देता उनका काम सुनना है देखना नहीं है।
ReplyDeleteराहुल के गुरु भोपाली मदारी हैं झमुरा विलायती गुरु भोपाली मदारी। राहुल सही बात भी गलत समय पर कहते हैं। आस्तीन चढ़ाके। बुद्धि मंद हैं ,इनकी बात का प्रधानमंत्रीजी क्या बुरा मानेगें।
संविधानिक संस्थाओं का मखौल उड़ाना इंदिरा नेहरु विस्तृत खानदान का पुराना शगल है सिलसिला इलाहाबद से शुरू हुआ जस्टिस सिन्हा को सुपरसीड करते हुए उसके बाद एक एक करके सभी संविधानिक संस्थाओं की धज्जी उड़ाने में कांग्रेस महारत हासिल कर चुकी है प्रधानमन्त्री- वंत्री क्या होता है किस खेत की मूली होती है।
पुरे का पूरा १००% सच ...इस से ज्यादा अब क्या कहें ....आप ने कुछ छोड़ा ही नही !
ReplyDeleteसब कुछ नपा-तुला सोच-समझा ..लिखित .......
स्वस्थ रहें !
बहुत बहुत आभार सर
Deleteखरी खरी मनमोहन जी को ...
ReplyDeleteपर अब तो देश की जनता ही कुछ कर दिखाए तो बात है
नहीं तो चाटुकारिता का राज है ...
पता नहीं शहजादे के पास इनका क्या राज़ है ...
बहुत बहुत आभार
Deleteकहां गया हमारा कमेन्ट ...
ReplyDeleteकमेंट कहीं जाने वाला नहीं है..
Deleteसही लिखा है !!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया भाई राजेन्द्र जी
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