जी, हां मुझे आपकी मदद चाहिए। मैं आगे नहीं सोच पा रहा हूं। मैं चाहता हूं आप सभी मित्रों की मदद से इसे आगे बढ़ाऊं। मुझे भरोसा के आप सभी मित्र कम से कम दो दो लाइन जरूर सुझाएंगे।
कौन सुनेगा कविता मेरी,
किसको है अवकाश।
चला जा रहा हूं धरती पर,
देख रहा आकाश ।
0
0
0
आपके सहयोग की अपेक्षा है।
मेरे शब्द बनेगें संबल
ReplyDeleteमुझको है विश्वास
inhen kahin fit karke dekhen.... :) bas ek koshish hai...
धरती नही है कद्रदानो से खाली,
ReplyDeleteतुम किये जाओ प्रयास ।
चांद तारे भी देगे वाहवाही,
कह रहा है आकाश ।
भावों की भूमि है सूखी
ReplyDeleteह्रदय -कामना वास ,
भौतिकता के युग में
क्या कविता ले ले संन्यास ?
mahendr ji aapke blog ka ullekh ''ye blog achchha laga par kiya hai .is blog ka url -''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com''hai .aap aaye aur hamara utsahvardhan karen .
ReplyDeleteकविता पूरी होगी तेरी
ReplyDeleteइतना है विश्वास
धरती जब पांव हैं तेरे
होना मत निराश।
कौन सुनेगा कविता मेरी,
ReplyDeleteकिसको है अवकाश।
चला जा रहा हूं धरती पर,
देख रहा आकाश ।
देख रहा आकाश,
पाश में बँधा हुआ मन ।
स्वच्छ कभी हो काश,
धूल में सना हुआ तन ॥
aadarniy mahendra ji
ReplyDeletebahut hi achhi kavita hai.lekin pura karne ke liye
thoda sa waqt chahiye.
vaise aur bhi jin blogrs bandhuvo ne aapko i kaviya ko purn karke bataya hai vah sabhi kabile tarrif hain
bahut bahut badhai
poonam
व्याकुल ह्रदय में उमग रहा है,
ReplyDeleteजीवन का उल्लास.
कर्म पथ पर आगे बढ़कर,
पूरी होगी आस.
सब जग में अपने लगते मुझे
ReplyDeleteफिर किसे कह दूँ अपना ख़ास
अपनों के बीच भी अक्सर मन
जाने क्यों हो जाता है उदास!
sabhi vicharo ke saath main bhi hoon ,mujhe to char line hi khoobsurat lagi
ReplyDeleteमुझे सुनाओ कविता अपनी ,
ReplyDeleteजो आये मन को रास ,
आँखों को नम कर दे और
बुझा दे दिल की प्यास।
जाने क्या बात हुई है
ReplyDeleteना चिठ्ठी ना सन्देश
रूठ गया मन का मीत
कुछ तो बात हुई है खास
कौन सुनेगा कविता मेरी,
ReplyDeleteकिसको है अवकाश।
चला जा रहा हूं धरती पर,
देख रहा आकाश ।
कविता तेरी पूरी होगी
महेंद्र श्रीवास्तव शाबाश
मजाक कर रहा हूं। अन्य ब्लागर वंधुओं ने बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं। सबको मिला लेंगे तो पूरी किताब भी बन सकती है।
सार्थक और भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteकौन सुनेगा कविता मेरी,
ReplyDeleteकिसको है अवकाश।
चला जा रहा हूं धरती पर,
देख रहा आकाश ।
मन के आँगन बैठी
गौरैया है निराश
तोडा किसने घोसला
किसने किया उदास !
आसमान में पसरा है
स्याह अँधेरा आसपास
लग रहा है इनदिनों
चंदा है अवकाश
जुगनू देखो झिलमिल करते
पथ करते प्रकाश
कविता कर्म ना तजना तुम
जीवन भरते ये आस
चला जा रहा हूं धरती पर,
देख रहा आकाश
बसी ह्रदय में प्राण उसका
कैसे लू सन्यास
श्री गोपाल जी,शिखा जी, मनोज जी, भाई किलर, शालिनी जी,कविता रावत जी, डा.दिव्या जी,सुमन जी क्या कहूं। शब्द नहीं है, आप लोगों के सहयोग का।
ReplyDeleteश्री अरुण जी सच कहूं तो अब इस कविता पर मेरा कोई हक ही नहीं रहा। ये आपकी हो गई अब। बहुत सुंदर