क्या बात है सर! आपकी इस कविता से मुझे स्कूल के समय पढ़ी 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' जी की ये कविता 'भिक्षुक' याद आ गई...
'भिक्षुक'- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वह आता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये, बायें से वे मलते हुए पेट को चलते, और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये। भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?-- घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।
superb
ReplyDeleteभूख जो न कराये कम है} अच्छा मुक्तक॥
ReplyDeletechandramauleshwar prasad ji ke kathan se poorntaya sahmat.
ReplyDeletevery true .
ReplyDeleteआचरण का सौदा कोई यूँ ही नही करता
ReplyDeleteभूख क्या न करवा दे
एक सच कहा आपने इस कविता में.
ReplyDeletebhookh kya kya nahi karvaati gareeb se.bahut sachchaai hai in panktiyon me.aabhar.
ReplyDeleteक्या बात ..
ReplyDeleteबिलकुल वास्तविक....बहुत सुन्दर गागर में सागर भर दिया आप ने
क्या बात है सर! आपकी इस कविता से मुझे स्कूल के समय पढ़ी 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' जी की ये कविता 'भिक्षुक' याद आ गई...
ReplyDelete'भिक्षुक'- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वह आता--
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeletekisi ne to bebasi samjhi ....
ReplyDeleteकुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी..
ReplyDeleteवाह !! चार लाइन निशब्द कर गई
ReplyDeletelijiye aapke follower ka shatak bhi laga diya hamne.
ReplyDeleteबहुत सही सर!
ReplyDeleteसादर
चार लाइन में बहुत कुछ ..!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteगागर में सागर...
ReplyDeleteसादर
प्रभावी!
ReplyDeleteबहुत कम स्तिथियों में 'आह' के साथ 'वाह' निकलता है ...आपकी रचना ने वह कर दिखाया !
ReplyDeleteपहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर ...
जी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteह्रदय कटा सा जा रहा है..
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता
Deleteबहुत बहुत बढ़िया.........
ReplyDeleteसादर.
थैंक्स जी
Deleteशुक्रिया यशवंत जी
ReplyDeleteकम शब्दों में कुनेन पिला दी है आपने....!!
ReplyDeleteलाज़वाब! कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ये रचना एक बार फिर चर्चा में आई..
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया