चलिए आज बात पेट्रोल और डीजल की कर लेते हैं। वैसे तो मैं इस विषय पर पहले ही सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता था, पर क्या करुं राहुल गांधी के चक्कर में समय खराब हो गया। वैसे ये एक ऐसा विषय है कि तमाम आंकेडबाजी के जरिए भी आपको समझाने की कोशिश की जा सकती है, लेकिन मैं आपको ज्यादा बोर नहीं करना चाहता। सिर्फ वितरण प्रणाली पर मेरे मन मे कुछ सवाल हैं, जो आपके सामने उठाता हूं।
रसोई गैस
पहले बात रसोई गैस की। मुझे लगता है कि ये बात आप समझ लेगें तो आगे के विषय खुद बखुद आसान हो जाएंगे। आपको पता है कि घरेलू उपयोग की रसोई गैस की कीमत व्यावसायिक इस्तेमाल करने वालों के मुकाबले कम है। मतलब होटल और रेस्टोरेंट में जो गैस सिलेंडर इस्तेमाल होते हैं, वो घरेलू गैस सिलिंडर के मुकाबले मंहगे हैं। सरकार का मानना है चूंकि होटल और रेस्टोरेंट के लोग गैस का व्यावसायिक इस्तेमाल करते हैं, इसलिए उन्हें सब्सिडी से अलग रखा गया है। ये अच्छी बात है, मैं क्या आप भी सहमत होंगे।
डीजल
लेकिन यही बात डीजल पर क्यों नहीं। व्यावसायिक पंजीकरण वाले वाहनों को बिना सब्सिडी के डीजल क्यों नहीं दी जानी चाहिए। आज खेतों की सिंचाई के लिए गरीब किसानों को जिस कीमत पर डीजल मिल रहा है, वही कीमत ट्रकों, बसों और अन्य व्यावसायिक इस्तेमाल वाले वाहनो को भी मिल रहा है। वैसे तो केंद्र की सरकार गरीबों की बात करती है, कमजोर तपकों को राहत देने का संकल्प दोहराती है, लेकिन डीजल के मामले में ऐसा भेदभाव क्यों कर रही है।
पेट्रोल
यही बात पेट्रोल पर भी लागू हो सकती है। लग्जरी कार इस्तेमाल करने वाले धनपशुओं को क्यों सब्सिडी वाला पेट्रोल दिया जाना चाहिए। स्कूटी और मोटर साइकिल इस्तेमाल करने वाले स्टूडैट भी 60 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल लेते हैं और अंबानी भी यही कीमत चुकाते हैं। छोटी कार इस्तेमाल करने वाले महीने में जितने पैसे का पेट्रोल इस्तेमाल करते हैं, उससे कई गुना तथाकथित बडे लोग ड्राईवर को वेतन देते हैं। जिनके लिए एक से बढ़कर एक मंहगी कार दरवाजे पर खड़ा करना उनके लिए स्टेट्स सिम्बल है, तो उन्हें सब्सिडी क्यों दी जा रही है।
सुझाव
-मुझे लगता है कि वेतनभोगी जो छोटी कार भी लेने के लिए लोन का सहारा लेते हैं, उनकी गाड़ी का पंजीकरण और लग्जरी गाड़ियों के पंजीकरण से अलग होनी चाहिए, और उन्हें सब्सिडी के साथ पेट्रोल और डीजल देना चाहिए।
-एक से अधिक कार वालों को सब्सिडी से तो मुक्त रखना ही चाहिए, बल्कि उनसे अतिरिक्त टैक्स भी लेना चाहिए।
-देश में पेट्रोल और डीजल पर एजूकेशन टैक्स की वसूली होती है। ये टैक्स बच्चों से क्यों लिया जाना चाहिए। मुझे लगता है स्कूटी और अन्य हल्के दुपहिया वाहन को स्टूडैंट वाहन मानकर बच्चों को आधे दाम पर पेट्रोल दिया जाना चाहिए।
-एबूलेंस और अन्य जरूरी वाहनों को भी आधे दाम पर डीजल और पेट्रोल देने का प्रावधान होना चाहिए। अगर गंभीर मरीजों को ट्रेन और सरकारी बसों में रियायत दी जाती है तो एंबूलेंस को क्यों नहीं।
मुझे लगता है कि वितरण प्रणाली में सुधार के जरिए सरकार गरीबों को राहत दे सकती है, पर सच्चाई ये है कि सरकार चुनावों में बड़े लोगों से चंदा वसूलती है, तो भला वो ऐसा कदम कैसे उठा सकते हैं। आइये राहुल गांधी जी गरीबों की इस मुहिम की अगुवाई कीजिए, पार्टी वार्टी, सभी विचारधारा को छोड़ देश का एक बड़ा वर्ग आपकी अगुवाई स्वीकार करेगा। भट्टा परसौल में कुछ लोगों की लड़ाई लड़ने से वो कद नहीं बढ सकता जितना इस मुहिम से जुड़ने से आपका कद बढेगा। लेकिन मुझे पता है आप ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि सरकार ही तेल पीती है।
रसोई गैस
पहले बात रसोई गैस की। मुझे लगता है कि ये बात आप समझ लेगें तो आगे के विषय खुद बखुद आसान हो जाएंगे। आपको पता है कि घरेलू उपयोग की रसोई गैस की कीमत व्यावसायिक इस्तेमाल करने वालों के मुकाबले कम है। मतलब होटल और रेस्टोरेंट में जो गैस सिलेंडर इस्तेमाल होते हैं, वो घरेलू गैस सिलिंडर के मुकाबले मंहगे हैं। सरकार का मानना है चूंकि होटल और रेस्टोरेंट के लोग गैस का व्यावसायिक इस्तेमाल करते हैं, इसलिए उन्हें सब्सिडी से अलग रखा गया है। ये अच्छी बात है, मैं क्या आप भी सहमत होंगे।
डीजल
लेकिन यही बात डीजल पर क्यों नहीं। व्यावसायिक पंजीकरण वाले वाहनों को बिना सब्सिडी के डीजल क्यों नहीं दी जानी चाहिए। आज खेतों की सिंचाई के लिए गरीब किसानों को जिस कीमत पर डीजल मिल रहा है, वही कीमत ट्रकों, बसों और अन्य व्यावसायिक इस्तेमाल वाले वाहनो को भी मिल रहा है। वैसे तो केंद्र की सरकार गरीबों की बात करती है, कमजोर तपकों को राहत देने का संकल्प दोहराती है, लेकिन डीजल के मामले में ऐसा भेदभाव क्यों कर रही है।
पेट्रोल
यही बात पेट्रोल पर भी लागू हो सकती है। लग्जरी कार इस्तेमाल करने वाले धनपशुओं को क्यों सब्सिडी वाला पेट्रोल दिया जाना चाहिए। स्कूटी और मोटर साइकिल इस्तेमाल करने वाले स्टूडैट भी 60 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल लेते हैं और अंबानी भी यही कीमत चुकाते हैं। छोटी कार इस्तेमाल करने वाले महीने में जितने पैसे का पेट्रोल इस्तेमाल करते हैं, उससे कई गुना तथाकथित बडे लोग ड्राईवर को वेतन देते हैं। जिनके लिए एक से बढ़कर एक मंहगी कार दरवाजे पर खड़ा करना उनके लिए स्टेट्स सिम्बल है, तो उन्हें सब्सिडी क्यों दी जा रही है।
सुझाव
-मुझे लगता है कि वेतनभोगी जो छोटी कार भी लेने के लिए लोन का सहारा लेते हैं, उनकी गाड़ी का पंजीकरण और लग्जरी गाड़ियों के पंजीकरण से अलग होनी चाहिए, और उन्हें सब्सिडी के साथ पेट्रोल और डीजल देना चाहिए।
-एक से अधिक कार वालों को सब्सिडी से तो मुक्त रखना ही चाहिए, बल्कि उनसे अतिरिक्त टैक्स भी लेना चाहिए।
-देश में पेट्रोल और डीजल पर एजूकेशन टैक्स की वसूली होती है। ये टैक्स बच्चों से क्यों लिया जाना चाहिए। मुझे लगता है स्कूटी और अन्य हल्के दुपहिया वाहन को स्टूडैंट वाहन मानकर बच्चों को आधे दाम पर पेट्रोल दिया जाना चाहिए।
-एबूलेंस और अन्य जरूरी वाहनों को भी आधे दाम पर डीजल और पेट्रोल देने का प्रावधान होना चाहिए। अगर गंभीर मरीजों को ट्रेन और सरकारी बसों में रियायत दी जाती है तो एंबूलेंस को क्यों नहीं।
मुझे लगता है कि वितरण प्रणाली में सुधार के जरिए सरकार गरीबों को राहत दे सकती है, पर सच्चाई ये है कि सरकार चुनावों में बड़े लोगों से चंदा वसूलती है, तो भला वो ऐसा कदम कैसे उठा सकते हैं। आइये राहुल गांधी जी गरीबों की इस मुहिम की अगुवाई कीजिए, पार्टी वार्टी, सभी विचारधारा को छोड़ देश का एक बड़ा वर्ग आपकी अगुवाई स्वीकार करेगा। भट्टा परसौल में कुछ लोगों की लड़ाई लड़ने से वो कद नहीं बढ सकता जितना इस मुहिम से जुड़ने से आपका कद बढेगा। लेकिन मुझे पता है आप ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि सरकार ही तेल पीती है।
bahut sare chhupe tathya janae ko mile...abhar..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विकल्प आप ने दिया है..
ReplyDeleteमगर इसका कार्यान्वयन करने से राजकोषीय घाटा बढेगा,,वो इन दलालों को कभी मंजूर नहीं होगा क्युकी इनके घोटाले भी उसी राजकोष से प्रायोजित हैं...
achhi sarthak post .........
ReplyDeleteपूर्णतया सहमत ।
ReplyDeleteसुन्दर एवं व्य्वहारिक सुझाव ।
aapki jaankari faydemand .sundar post
ReplyDeleteदामों में अन्तर रखने पर सब इधर का उधर होने लगेगा।
ReplyDeleteaapke uthaye vichar sahi hain ,par aisa karna sarkar ke bas ki baat nahi .... fir to sabhi khud ko garibi shreni me le aayenge, kyonki jaha tak gareebo ki smsya ko htane ki aabhi tak jo bhi yojnayen bani unka fayda kaun log utha rahe ye sabhi jante hain ......
ReplyDeleteबहुत जायज और सटीक सुझाव है आपका ....काश सरकार इस पर गौर करती !
ReplyDeleteआशुतोष जी, प्रवीण जी और रजनी जी..जब भी कोई नया काम शुरू होगा कुछ मुश्किलें आएंगी। आपको पता हो कि गरीबों के लिए इंदिरा आवास योजना चली तो इसमें अमीरों ने हाथ साफ कर दिया, राष्ट्रीय रोजगार ग्रामीण योजना में भी कई बार गलत लोग फायदा उठा रहे हैं। आप सब जानते ही हैं कि घरेलू उपयोग वाले सिलेंडर कई बार होटल र रेस्टोरेंट में इस्तेमाल होते हैं।
ReplyDeleteइन सबके बाद ये भी सही है कि कुछ हद तक लोगों को इन योजनाओं का फायदा पहुंचता ही है। राशन वितरण की दुकानें देश भर में हैं। यहां भी तमाम लोग काला बाजारी करते रहे। लेकिन इसका आशय ये नहीं इस पर काम ही ना हो।
मुश्किलें सिर्फ ये आएंगी कि गरीबों की आड में कुछ अमीर भी सस्ता पेट्रोल चोर रास्ते से लेने में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन गरीब और मध्यमवर्ग को भी तो फायदा होगा।
Very useful post. I agree with the suggestions given by you.
ReplyDeleteअच्छा चिन्तन ....अच्छे सुझाव .....
ReplyDeleteएक बार जब पेट्रोल कीमते बढीं तो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन.टी.रामा राव ने दो पहिया वाहनों के लिए कम दाम से पेट्रोल बेचने की कोशिश की थी पर इसमें इतनी असुविधा और गोल-माल हुआ कि इसे कुछ ही दिनों में तर्क कर देना पडा था।
ReplyDeleteसैद्धांतिक रूप से आपका सुझाव सही है...पर व्यवहारिक रूप में यह निष्फल होगा....
ReplyDeleteमेरे तो समझ में नहीं आता कि पेट्रोल गैस या डीजल पर क्या सब्सिडी मिलती है...जब तरह तरह के टैक्स मिलाकर लगभग चालीस प्रतिशत सरकार अपने लिए निकाल लेती है,तो सब्सिडी का ढोंग कैसा????
यूँ भी यह सब्सिडी कोई सरकार अपने घर से तो देती नहीं...यह आम जनता की जेब का ही पैसा होता है...
ये तीन चीजें ऐसी हैं जिनकी कीमतों में कुछ पैसे का भी उछाल प्रत्येक वस्तु के कीमत पर पड़ता है तो इसकी कीमत पर अंकुश तो सरकार को रखना ही चाहिए,भले इसके लिए सब्सिडी दुगुनी तिगुनी क्यों न करनी पड़े...
sarkar ko kaun samjhaye! aadat se majboor jo hain.. har taraf se gareeb maara jaata hai....
ReplyDelete..aapka aalekh padhkar bahut achha laga...esi tarah sabki soch bane to ek n ek din janta ka bhi aayega hi... bas samay par jaagna hoga...
आपकी यह पोस्ट देखी तो जिज्ञासावश दस मई तक की रचनाएं पढ डालीं । आपने आम आदमी की आवाज को शब्द दिये हैं बडे सशक्त व सटीक व शब्द । विसंगतियों को लेकर होरही पीडा व छटपटाहट की एक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति । समझ में आता है कि शब्द कितनी शक्ति रखते हैं । पढ कर मन खुश होगया । यूं ही पत्थर उछालते रहिये । आसमान में सूराख किसी दिन जरूर होगा ही ।
ReplyDeleteज्वलंत विषय पर पैनी पकड़. सुझाव अच्छे हैं पर अमल में शंका है. बधाई.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन..... सभी सुझाव व्यवहारिक और विचारणीय हैं....
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने....
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट