Thursday, 19 May 2011

इस गांधी की जुबान फिसलती है !

वैसे तो राहुल गांधी पर बात करने से ज्यादा जरूरी और मुद्दे भी हैं, जिस पर लिखने की इच्छा हो रही थी, और इन मसलों से लोग सीधे जुड़े भी हैं। मेरा हमेशा से ये मानना भी रहा है कि ब्लाग सिर्फ लिखने के लिए ना लिखूं, बल्कि यहां मैं अपने सामाजिक दायित्वों को भी ईमानदारी से पूरा करुं। आम धारणा है कि मीडिया वाले कुछ भी लिख सकते हैं, कुछ भी बोल सकते हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। मीडिया की लक्ष्मण रेखा का अंदाजा आप मीडिया में रहकर ही लगा सकते हैं। पहले अखबारों में रिपोर्टर खबरें लिखते थे और सब एडीटर उस पर हैडिंग लगाकर खबरों को प्रकाशित कर देते थे, अब हालात बदल गए हैं। रिपोर्टर को सुबह हैडिंग थमा दी जाती है और शाम को हैडिंग के अनुरूप खबर लिखनी होती है। इलैक्ट्रानिक मीडिया की बंदिशे तो कुछ और भी ज्यादा है। वैसे तो यहां खबरों से ही कुछ लेना देना नहीं है। टीवी में वही दिखता है, जो बिकता है। इलैक्ट्रानिक मीडिया में राहुल दिख रहे हैं, जाहिर है इस समय वो बिक रहे हैं। बिक रहे हैं कि आशय कुछ और नहीं बल्कि ये कि उनके बारे में लोग रिपोर्ट देखना चाहते हैं। बस इसीलिए मैं भी मजबूर हुआ और सोचा चलो आज फिर एक घंटा खराब कर लेते हैं राहुल के नाम पर।
दरअसल राहुल के चंपुओं की नींद उड़ी रहती है, क्योंकि उनकी जिम्मेदारी है कि राहुल को बड़ा बनाने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहिए। इनके करीबियों को लगा कि दिल्ली से सटे गांव भट्टा परसौल में किसान इस समय आग बबूला हैं, यहां राहुल को फिट किया जा सकता है। बस योजना बनी कि भट्टा गांव जाना है, एसपीजी ने चोर रास्ते का मुआयना किया और अगले दिन राहुल को बाइक से लेकर गांव पहुंच गए। इधर चंपुओं ने मीडिया में खबर उड़ाई कि राहुल यूपी पुलिस की आंख में धूल झोंक कर गांव पहुंचे। खैर ये बात सही है कि और दलों के नेता वहां नहीं पहुंच पाए जबकि राहुल पहुंच गए।
आइये अब मुद्दे की बात करते हैं, राहुल कहते हैं कि हम इस मसले पर सियासत नहीं कर रहे हैं बल्कि किसानों को उनका हक दिलाना चाहते हैं। भाई राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। ऐसे में अगर राहुल सही मायनों में किसानों की समस्या का हल चाहते तो वो इसके लिए यूपी की मुख्यमंत्री मायावती से मिलने का समय मांगते और किसानों के साथ लखनऊ जाते। लेकिन राहुल कहां गए, प्रधानमंत्री मनमोहन के पास। अब प्रधानमंत्री ने यूपी सरकार से रिपोर्ट मांगी है। अब अगर राहुल को प्रधानमंत्री से न्याय नहीं मिला, फिर क्या करेंगे वो, क्या यूएनओ चले जाएंगे।

चलिए राहुल गांधी प्रधानमंत्री से मिल लिए अच्छी बात थी, लेकिन उन्हें मीडिया के सामने किसने कर दिया। जब उन्हें ये नहीं पता कि मीडिया से कितनी और क्या बात करनी है तो फिर उन्हें कैमरे के सामने क्यों लाया गया। ये बात मैं आज तक नहीं समझ पाया। राहुल ने कैमरे पर कहा कि भट्टा परसौल गांव में किसानों को जिंदा जला दिया गया और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। ये दोनों बातें उतनी ही गलत हैं, जैसे मैं ये कहूं कि देश के प्रधानमंत्री राहुल गांधी हैं। फिर भी राहुल और उनके चंपू नेता जब कहते हैं, इस मुद्दे पर वो राजनीति नहीं किसानों को न्याय दिलाना चाहते हैं, तो हंसी आती है। अब हालत ये है कि कांग्रेस के बडे नेताओं को डैमेज कंट्रोल के लिए आगे आना पड़ा है।
मुख्यमंत्री मायावती को भी ये कहने का मौका मिल गया कि राहुल ड्रामेबाजी कर रहे हैं। सच तो ये हैं कि अब लगने भी लगा है कि वो ड्रामेबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस के दिमागी दिवालियेपन की हालत ये हो गई है कि यूपी कांग्रेस के अधिवेशन में भी वो पूरे समय तक भट्टा परसौल गांव की मुश्किलों पर चर्चा करने तक सिमट कर रह गए। अरे कांग्रेसी मित्रों, यूपी में हाशिए पर हो, कुछ ठोस पहल करो, जिससे विधानसभा में आपकी संख्या कुछ सम्मानजनक हो जाए। पूरे दिन इस अधिवेशन में इतनी झूठ और फरेब की बातें हुई कि भगवान को भी खफा हो गए। इसलिए दिन में तो पांडाल में आग लगी और रात में ऐसा आंधी तूफान आया कि पांडाल ही उड़ गया, और दो दिन के अधिवेशन को एक दिन में समेटना पड़ गया।

राहुल के चंपुओं को एक बात और समझ में आनी चाहिए कि जब वो सरकार पर आरोप लगाते हैं कि अगड़ों के साथ मारपीट की गई, किसानों को जिंदा जलाया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई, तो मायावती के मतदाता और संगठित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि बहन जी जब कानून का डंडा चलाती हैं तो ये नेता लोग बेवजह चीखते हैं। ऐसे में अगर मैं ये कहूं कि राहुल कांग्रेस के लिए कम मायावती के लिए ज्यादा काम कर रहे है तो गलत नहीं है। बहरहाल राहुल जिस तरह के आरोप लगाया करते हैं वो किसी पार्टी के ब्लाक स्तर का नेता लगाए तो बात समझ में आती है, राहुल के मुंह से तो कत्तई अच्छी नहीं लगती।
राहुल ने भट्टा परसौल के मामले में जो कुछ भी किया उससे वरुण गांधी की याद आ गई। वरुण ने अल्पसंख्यकों को लेकर जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था उससे उनकी न सिर्फ थू थू हुई, बल्कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा। अब राहुल गांधी को ले लीजिए, पहले गांव वालों के बीच में उन्होंने कहा कि उन्हें तो भारतीय होने पर ही शर्म आ रही है, और अब जिंदा जलाने और बलात्कार की जो बातें उन्होंने की उसे तो भट्टा गांव के लोग ही सही नहीं मानते। लगता है कि इन दोनों गांधियों को जुबान फिसलने की बीमारी है।

चलते चलते..
मेरे कहने का तरीका गलत हो सकता है, पर आप वो ही समझें जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। कांग्रेस में चमचागिरी की हालत ये हो गई है कि पार्टी के एक ठीक ठाक नेता ने बातचीत में मुझसे कहा कि मैं राहुल गांधी का बायां हाथ बनना चाहता हूं। मैं परेशान कि लोग तो दाहिना हाथ बनने की बात करते हैं, ये बायां क्यों। मुझसे रहा नहीं गया और मैने पूछ लिया.. भाई आप बाया हाथ क्यों बनना चाहते हैं। उन्होंने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि श्रीवास्तव जी बाएं हाथ की पहुंच कहां कहां होती है, आप नहीं जानते। खैर सियासत है..कुछ भी संभव है।

20 comments:

  1. राहुल गांधी से जुड़ी एक पोस्ट 12 मई की देख सकते हैं,

    राहुल तब शर्म क्यों नहीं आई....

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  2. aajkal rajniti kya , sabhi jagaho pe log bade logo ka baaya haath hi banna chahte hai ,bahut satik likhaa aapne .

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  3. You can Read this on spacial blog for rahul gandhi.
    http://gandhi4indian.blogspot.com/

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  4. pados me aag lagi ho aur padosi tamasha dekhta rahe kya aap usko uchit thahraayenge.bhale hi usme unka koi swarth chipa ho lekin aag bujhane me kam se kam aage to aaye.

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  5. सहमत हूं ,पर शायद इस को ही राजनीति का विकॄत रूप कहते हैं ......आभार !

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  6. राहुल एक मंद बुद्धि बालक है .दिग -विजय सिंह को कांग्रेस चाणक्य मान बैठी है यह इस मंद मति बालक का बुद्धि कोशांक और भी घटवा रहा है .कांग्रेस हमेशा ही चिर- कुटों से घिरी रही है ,ले दे के उन बौद्धिक भकुओं (रक्त रंगी लेफ्टियों से पीछा छूटा था यह पिद्दी निकल आया .

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  7. राजनीतिक दावपचों ने इतनी विकृतियाँ ला दी हैं असल मुद्दों की बात ही नहीं होती ......बेहद अफसोसजनक हालात हैं...

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  8. राहुल नेतागिरी चमकाने में लगा है..ये सब जानते हैं..
    मगर श्रीमान ये बलात्कार और हत्या वाली बातें सत्य हैं..
    उसी गाव के लोग कह रहें हैं.....

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  9. बिल्कुल आशुतोष जी, मैं आपकी बात से सहमत हूं। उस दौरान काफी विवाद भी हुआ था। सियासी पहुंच की वजह से रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई थी।

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  10. राजेश कुमारी जी..आग बुझाने जाते तब तो ठीक था,लेकिन राहुल तो तब पहुंचे जब आग बुझ चुकी थी, वो तो दोबारा आग लगाने गए थे।
    वीरूभाई जी.. हाहाहहाहाहहाह क्या कहूं

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  11. sir
    aapka lekh bahut hi jyada pasand aaya .waqaai ye baat sach hai ki rajniti to rajniti hi hoti hai.magar galat -sahi ke chakkar me log us mudde ko sahi dhang se samjhna nahi chahte.electronik midiya ke baare me bhi aapka kathan bilkul sach hai. aapke lekh ki antim panktiyon me aapne lekhan ko bahut hi sakaratmak aur sahi prastuti- karan me dhala hai bahut sateek aur sach ko sabit karti post .
    aapke blog par aakar thodi bahut rajniti ka gyanarjan main bhi kar leti hun kyon ki rajniti me jo arajkta jis kadar failti haivo mujhe katai pasand nahi .
    par aap itni sajta ke saath aaur aatmvishvash se bhar kar jo bhi likhte hain usse mujhe bhi fayada ho raha hai ki thoda bahut is sabandh ke baare me janane lagi hun.
    bahut bahut achhi post
    hardik dhanyvaad
    poonam

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  12. महेंद्र जी , वास्तविकता से आपने रूबरू करवाया । एक बात तो तय है की यदि कोई स्वार्थवश कुछ करेगा तो बहुत आगे तक नहीं जा पायेगा।

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  13. वास्तविकता से आपने रूबरू करवाया|धन्यवाद|

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  14. बायां हाथ ज़रूर बनें पर साबुन भी साथ रखें- यह सुझाब आपने दिया ही होगा :)

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  15. आपने सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! उम्दा पोस्ट!

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  16. राजनीतिक दावपचों ने इतनी विकृतियाँ ला दी हैं असल मुद्दा ही गुम हो जाता है .....दुःख की बात है....

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  17. अन्तिम लाइन में ता गजब कर दिया जी

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  18. Rahul rajiniti me kachche hain.

    Amul baby......:)

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  19. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और अचंभित हूँ आपके धार को देख के... आप इसी धार के कारण किसी मीडिया हाउस के सी ई ओ नहीं हैं... अंतिम पंक्ति ने राजनीति के गर्त को उजागर किया है...

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  20. AAPKE VICHAR EK DAM DURUST HAEN. MEDIA KE DARD KO MEIDIA MEN RATE HUE HI SAMJHA JA SAKATA HAE. PATRAKARITA KE KSETRA MEN JO BADLAV AAYE HAEN, UNHONE KHABRON AUR USE LIKHNE KE TRIKE DONON KO PRABHAVIT KIYA HAE.
    MAEN AAPKE VICHARON KE SAATH HUN. AALEKH SUNDAR AUR SANTULIT HAE. BAAEN HAATH KI PAHUNCH KI VYAKHYA ADBHUT HAE.

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।