Saturday, 30 June 2012

बाबा का योग ना बाबा ना ....


अब मुझे तो नहीं पता  कि ये कौन सा आसन है ?
देश में योग की बहुत चर्चा हो रही है, पर सच मे योग है क्या ? इसे लेकर लोगों में कई तरह के भ्रम हैं। लिहाजा मैं कोशिश करुंगा कि आप को योग के बारे में आसान शब्दों में जानकारी दूं, वैसे मैं जानता हूं कि कुछ लोग मेरे इस लेख को ये कह कर खारिज कर देगें कि कांग्रेसी मानसिकता से लिखा गया लेख है। तीन दिन से देख रहा हूं कि गिने चुने लोग सत्य का गला घोटने के लिए मेरे पिछले लेख पर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। सच बात की जा रही है तो उसे वो तर्कों के आधार पर नहीं अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल कर दबाने की कोशिश कर रहे हैं। जो जितना पढा़ लिखा है वो उतना ही स्तर गिरा कर अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। हो सकता है कि बाबा प्रेम में आपको मेरी बात बुरी लगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो है, वो आपको जानना ही चाहिए। मसलन योग आखिर है क्या ? आज देश में एक बड़ा वर्ग इसे सिर्फ शारीरिक क्रियाओं से जोड़ कर देखता है। उसे लगता है कि योग से सांस की  बीमारी ठीक होती है, उससे घुटनों के जोड़ ठीक रहते हैं। बाबा रामदेव ने योग को बीमारी की दवा बना कर रख दिया है। आज आप किसी से पूछो योग क्या है, वो अपने पेट अंदर बाहर करने लगता है। उसका  मतलब योग के मायने सिर्फ आसन और प्राणायाम हैं।

हालाकि महर्षि पंतजलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने योगसूत्र में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाले साधक को ही सच्चा योगी बताया है। आप भी जान लीजिए ये क्या है। ये योग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग में ये सभी चीजें आती हैं। अब मैं एक एक कर आपको ये बताने की कोशिश करुंगा कि इनके मायने क्या हैं। महर्षि के योग को जानने के बाद आप  खुद तय करें  कि  बाबा जो योग टीवी पर करते दिखाई देते हैं, वो कितना सही है। ऐसा नहीं है कि योग  के जो नियम मैं बता रहा हूं, वो कुछ अलग दुनिया की बात है। बल्कि इसके अनुयायी बाबा रामदेव भी हैं, इसलिए उन्होंने अपने " योग कारखाने " का नाम महर्षि पतंजलि रखा है। महर्षि के नाम से कारखाने का नाम तो रख दिया, पर उस पर अमल कितना करते हैं। ये आप  योग के नियम को पढकर खुद तय  करें।

1.यम--.इसके तहत पांच सामाजिक नैतिकताएं आती हैं---
(क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना
( बताइये रामदेव ऐसा करते हैं ? )

(ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना
( सच्चाई से तो दूर  दूर तक का वास्ता नहीं है)

(ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना
( इतना बड़ा कारोबार, टैक्स चोरी सब तो सामने आ चुका है)

(घ) ब्रह्मचर्य - इसके दो अर्थ हैं:
चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना, सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना।
( बाबा ब्रह्मचर्य का कितना पालन करते हैं, ये विवादित विषय है, इसलिए ये बाबा  ही जानें वैसे इस मामले में कुछ अलग तरह की चर्चा हैं बाबा और  बालकृष्ण दोनों )

(च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना।
( अपरिग्रह को आपको ठीक से समझना होगा, क्योंकि बाबा इसका पालन तो बिल्कुल नहीं करते। मतलब अगर आपको दो रोटी की भूख है, तो तीसरी रोटी के बारे में विचार भी मन मस्तिष्क में नहीं आना चाहिए। आवश्यकता से ज्यादा किसी चीज का संग्रह नहीं किया जाना चाहिए। अब बाबा रामदेव तो इस  पर बिल्कुल खरे नहीं उतरते। बिना संग्रह के  वो  इतना बड़ा अंपायर कैसे खड़ा कर सकते  थे। संग्रह के बिना तो बाबा एक पल  भी नहीं रह सकते। दिल्ली में अनशन के दौरान खुलेआम लोगों से चंदा वसूल किया जा रहा था)

२. नियम: पाच व्यक्तिगत नैतिकताएं

(क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि
( मन में जब फिजूल की बातें भरीं हों, किसे कैसे ठिकाने लगाना है, आंखो में शैतानी दिखाई देती हो, तो भला मन को कैसे शुद्ध कर सकते हैं।)

(ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना
( अपनी ताकत का विस्तार करने, देश दुनिया में संपत्ति बनाने, किसानों  की जमीन कब्जाने में लगा आदमी कैसे संतुष्ट हो सकता है। जब वो संतुष्ट नहीं हो सकता तो प्रसन्न रहने का सवाल ही नहीं उठता।)

(ग) तप - स्वयं से अनुशासित रहना
( बाबा और अनुशासन दोनों एक नदी के दो किनारे हैं, जो कभी मिल ही नहीं सकते।)

(घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना
(मेरा  मानना है कि बाबा आत्मचिंतन तो करते होगे, पर वो उस पर अमल नहीं करते)

(च) ईश्वर-प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
(आर्यसमाज में ईश्वर की सत्ता को स्वीकार ही नहीं किया गया है)

३. आसन: योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण

४. प्राणायाम: सांस लेने संबंधी खास तकनीक द्वारा प्राण पर नियंत्रण

५. प्रत्याहार: इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना

६. धारणा: एकाग्रचित्त होना

७. ध्यान: निरंतर ध्यान

८. समाधि: आत्मा से जुड़ना। शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था में समाधि का अनुभव।

हाहाहहा, सब कुछ इसी पेट के खातिर 

मुझे लगता है कि महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग को आप सब काफी हद तक समझ गए होंगे। ऐसे में अब मैं अपने ब्लागर्स साथियों पर सब कुछ छोड़ देता हूं, वो अष्टांग योग को जानने के बाद बाबा को कहां रखते हैं, उनकी इच्छा। वैसे मैं आपको बताऊं मेरी एक जाने माने योग गुरु से बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि योग के दौरान दुनिया भर की फिजूल बातें नहीं की जा सकतीं, क्योंकि जब आपका ध्यान भटकता रहेगा तो आप सब कुछ कर सकते हैं, पर योग नहीं। अब देखिए मंच पर बाबा के उछल कूद करने को भी योग नहीं कहा सकता। योग कराने के दौरान हल्की फुल्की बातें, अजीब तरह से हंसना, अपने उत्पादों को बेहतर बताना, स्वदेसी के नाम पर अपने उत्पाद योग शिविर के दौरान बेचना, योग के दौरान बीमारी की बात करना ऐसे तमाम मसले हैं जो योग के समय नहीं की जानी चाहिए। पर ये बात बाबा और उनके अनुयायियों को कौन समझाए।
योगीराज महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग निर्विविद है, अभी तक किसी ने भी उनके अष्टांग योग पर सवाल नहीं खड़े किए हैं। खुद बाबा रामदेव भी इस योग के समर्थक हैं,पर अष्टांग योग मे शामिल मंत्रों का आधा भी अगर सार्वजनिक जीवन मे इस्तेमाल करते तो वो योग की असली सेवा कर रहे होते। आज उनकी नजर में योग महज बीमारी का इलाज भर है। लोग भी इतना ही जानते हैं। जबकि अष्टांग योग का  अगर सही मायने मे पालन किया जाए तो कोई भी आदमी हमेशा सदाचारी रहेगा और सदाचारी रहेगा तो प्रसन्नता उसके  चेहरे पर दूर से ही दिखाई देगी।

पर बाबा रामदेव को तो योग के बहाने लोगों  को जमा करके कई तरह  के काम करने होते हैं। पहले तो स्वदेसी के नाम पर अपने चूरन चटनी आचार मुरब्बे बेचने होते हैं। वो बताते हैं कि उनके उत्पाद क्यों खाने चाहिए। आंवला नगरी प्रतापगढ़ का आंवला उतना गुणकारी नहीं है, जितना बाबा रामदेव का आंवला। उत्पादों को बेचने के बाद कुछ  नेताओं को गाली गलौच करना होता है। फिर अपना एजेंडा बताते है कि काला धन आ जाए तो हर आदमी के हाथ में अगले दिन एक एक करोड़ रुपये से ज्यादा हो जाएगा। फिर ताली बजवाने के लिए वो अपने पेट में तरह तरह की हलचल करते हैं। पूरी सीडी लेकर बैठें तो देखता हूं कि दो घंटे से ज्यादा के कार्यक्रम के दौरान योग पर दो मिनट भी समय नहीं देते। अब लोगों को योग के बारे में बताएंगे तो जनता पूछेगी नहीं, कि फिर आप योग क्यों नहीं कराते  आप  ये सब  क्या बेच बाच रहे है।

चलते चलते

वैसे मैं ईश्वरवादी हूं। मुझे ईश्वर में पूरा भरोसा है। मैं मानता हूं कि भगवान ने मेरी जितनी सांसे तय कर दी हैं, उतनी सांसे लेनी ही हैं, ना कम ना ज्यादा। फिर मुझे लगता है कि अगर मैने योग किया तो जल्दी जल्दी सांस लूंगा तो जाहिर है जल्दी जल्दी छोड़ूंगा। इससे मेरी सांसों का स्टाक जल्दी खत्म हो जाएगा। बस इसीलिेए मै सोच रहा हूं आराम आराम से सांस लूं और आराम आराम से छोड़ूं, तो ज्यादा दिन तक सांसे चलेंगी।

( मित्रों अगर आप लेख से सहमत नहीं  हैं, इसकी आलोचना करें, कोई दिक्कत  नहीं है, पर भाषा  की मर्यादा का ध्यान रखें, क्योंकि ये  ब्लाग हमारे आपके परिवार  में पढ़े जाते हैं।  अशिष्ट भाषा होने पर मुझे मजबूरी में उसे यहां पब्लिश होने  से रोकना  पड़ेगा। )


62 comments:

  1. :-)

    बाबा की तो सांस ही रुक जायेगी......
    आपका आईडिया बढ़िया है.......साँसे बचाई जाए...ज्यादा चलेंगी
    :-)
    सादर
    अनु

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    1. जी ये भी एक शोध का विषय है ..

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    2. लो जी, महेंद्र जी फिर हाज़िर हैं ..योग का ज्ञान ले कर..ब्लॉग पर कर रहे हैं अष्टांग योग की व्याख्या ...महर्षि पतंजलि के सूत्र भी समझा रहे हैं..(अगर स्वयं को योग का इतना ही बड़ा ज्ञानी समझते हैं तो क्यों स्वयं की योग कक्षाएं लेना प्राम्भ कर देते) ..क्या करें अब पैसा योग की व्याख्या का नहीं मिला..पैसा तो मिला है ..स्वामी रामदेव को बदनाम करने का..(मुझे पूरा विश्वास है की न तो आपने कभी योग किया है..और न ही कभी करने का प्रयास ही किया है..बस योग के बारे में कही पढ़ा ..और कॉपी पेस्ट कर दिया ..ब्लॉग में ) जबकि वास्तविकता तो यह है की ..स्वामी रामदेव के योग शिविरों में जाने से पहले..भारत के ९९% व्यक्तियों ने सिर्फ योग का नाम सुन रखा था..करते नहीं थे....और रही बात महर्षि पतंजलि की तो इनका तो नाम भी नहीं जानते थे लोग...तो इसका श्रेय तो रामदेव को देना ही होगा न..l अब रही बात चूरन चटनी, मुरब्बा बेचेने की ..तो महेंद्र बाबु आप जैसे अंग्रेज मानसिकता के व्यक्ति ..स्वदेशी चूरन चटनी का महत्व समझ नहीं सकते..(अगर पेप्सी कोला, पिज्जा हट, डोमिनोस अपने उत्पाद बेचे तो ये तो ठीक हैं..परंतू अगर कोई योगी लोगो को स्वेदेशी का पाठ पढ़ा रहा है..और लोगो के लिए अच्छी गुणवत्ता के स्वेदेशी उत्पाद उपलब्ध करवा रहा है तो आप के पेट में क्यों दर्द हो रहा है..

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    3. Sahi jawab...Baba ne yog ko saral tarike se basic yog me samzaya..Badme advance yog bhi karvaya

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    4. @siddhi sharma ... बुराई तो कुछ भी नहीं है लेकिन ये योग भी नहीं ... इसे आप शारारिक व्यायाम कह सकते है .... ये जब व्यक्ति सयमित रहना सीख ले ... तो जब जितने आसान करेगा सब ... योग में आयेंगें ...बात रहे स्वदेसी ... वो तो सही है ... लेकिन ये पेटेंट लेकर चलना कि हम ही सही है ... जानलेवा ही नहीं खतरनाक ...

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  2. .'...कि भगवान ने मेरी जितनी सांसे तय कर दी हैं, उतनी सांसे लेनी ही हैं, ना कम ना ज्यादा। फिर मुझे लगता है कि अगर मैने योग किया तो जल्दी जल्दी सांस लूंगा तो जाहिर है जल्दी जल्दी छोड़ूंगा। इससे मेरी सांसों का स्टाक जल्दी खत्म हो जाएगा। '

    Arey waah!Kitna accha idea hai yeh to! kabhi socha hi nahin tha is baare mei to..

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    1. हाहाहाहा
      देखिए नए शोध से लोगों को कितना फायदा होता है

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  3. बाप रे और कितना आधा सच लिखेंगे आप यहाँ पर .......मर्यादा और मर्यादित हों कर यहाँ कमेन्ट करना ...लगता हैं यहाँ के लोग ये बात भूल चुके हैं ...राम देव और सही भाषा का उपयोग .....सही मुद्दा उठाया हैं आपने ...

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    1. बिल्कुल
      मुझे हैरानी होती है कि बाबा के चेले अभद्र भाषा का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं... पर सच ये है कि वो करते हैं।

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  4. महेंद्र जी
    पत्रकारिता के नियमो के विपरीत आपके इस लेख में भी दुराग्रह की छलक मिलती है
    (इसलिए उन्होंने अपने " योग कारखाने " का नाम महर्षि पतंजलि रखा है। )
    इस बाक्य की आवश्यकता नहीं थी !
    आप लाख कोशिस कर लें, अपने इस लेख के बाद भी आप अपने को गैर-कांग्रेसी या गैर-बिका हुआ सावित नहीं कर सकते !
    आप ने चर्चा शुरू की थी " बाबा रामदेव क्या है ? " और चर्चा शुरू हो गई है आप क्या है ?
    इसलिए आप अपने मिसन में फेल हुए हो, आपने को सफल कहना आपकी न समझी है !
    आप का शुभ चिन्तक
    कमलेश

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  5. हाहाहहा, सब कुछ इसी पेट के खातिर ||आधा सच भी ।।

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  6. कमलेश जी, आप लोगों के साथ दिक्कत यही है कि एक शब्द और लाइन पकड़ते हैं। पूरा लेख अपने समझने की कोशिश नहीं की। महर्षि पतंजलि का योग क्या था, बाबा का योग क्या है।
    महर्षि के अष्टांग योग पर बाबा कितने खरे उतरते हैं, ये आप की समझ में नहीं आ रहा है। कल से ना जाने क्या क्या ब्लाग पर लिख रहे हैं, विषय पर बात नहीं कर सकते। बाबा अपने को युग पुरुष और गांधी सुभाष बन रहे हैं, मै क्या हूं, मैने तो ऐसा कुछ दावा नहीं किया। मैं तो कुछ जानने की कोशिश कर रहा हूं, पर बाबा के चेले मुझे जानने दें तब ना। मेरा मिशन नहीं है, मेरा मकसद सच लोगों तक पहुंचाना भर है। और वो मैं करता रहूंगा, मैं धमकी और गाली गलौच से विचलित होने वाला नहीं हूं। रही बात पत्रकारिता की तो वो आपकी समझ से बाहर है, कृपया बाबा तक ही सीमित रहें ।

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    1. राष्ट्रवादी1 July 2012 at 23:38

      आपको मालूम नही है कि आपकी दृष्टि अभी एकदम संकीर्ण है। अभी आप लकीर के फकीर बने हुए है। कि फलां श्लोक/ग्रंथ में ऐसा कह दिया है तो ऐसा होना चाहिए वैसा नही। या वैसा होना चाहिए ऐसा नही।
      आप चीजों को व्यक्ति स्थान काल के अनुरूप समग्रता से समझ नही पा रहे हैं। उचित अनुचित का भेद कैसे किया जाता है इसके विषय में आपका दृष्टिकोण किताबी है।
      यह जानकर खुशी हुई कि आप कुछ जानना चाहते हैं। किन्तु जबतक आप अपना अहं नही त्यागेंगे तब तक कुछ सीख नही पाएंगे। आपको मेरी सलाह है कि आप आर्ट ऑफ लिविंग के चार पांच कोर्स कर लें। मुझे पूरा विश्वास है कि आपके सोचने का स्तर अवश्य बढ़ेगा। और आप जो जानना चाहते हैं वह जान पाएंगे।
      रही बात गाली गलौज की तो यदि आपकी मां बाप को कोई बुरा भला कहे या गाली दे तो आप भी उससे इज्जत से बात नही करेंगे, बल्कि गाली गलौज ही करेंगे और बन पड़ेगा तो मार पीट भी करेंगे। वही बात स्वामी रामदेव जी के अनुयायिओं के साथ भी है। जिससे वो प्रेम करते हैं उसके विषय में कोई अनाप शनाप लिखता है तो उनका पारा भी गरम हो जाता है।
      अगर आप सच जानना ही चाहते हैं तो पतंजलि योगपीठ आइए। वहां के प्रमुख अधिकारियों से मिलिए और एक एक बात पूछिए। आपको सब समझ में आएगा। लेकिन उसके भी पहले मैं आपको आर्ट ऑफ लिविंग के कोर्स करने की सलाह दूंगा। क्योंकि बिना उसके आप कुछ सीखने लायक नही बन पाएंगे।

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  7. महेंद्र मेरे भाई
    खाना बनाते समय सब्जी में एक इतेम कम या ज्यादा हो जाये तो पूरा खाना खराब हो जाता है!
    आलोचनाओ पर आलोचनाये ही होती है ! शव्द शैली लेखक ज्ञान और धैर्य पर निर्भर करती है ! आप समालोचना क्यों नहीं कर रहे है ?
    आप आधा सच ही क्यों लिख रहे है ? पूरा सच क्यो नहीं लिख रहे है !
    आप का शुभ चिन्तक
    कमलेश

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    1. कमलेश जी आपको मैं नहीं समझा सकता।
      प्लीज आप जहां से जुडें हैं, जुडे रहिए,आप यथार्थ को स्वीकार कर ही नहीं सकते।

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  9. महेन्द्र श्रीवास्तव जी, आपके पिछले कई लेखों में बाबा के प्रति कटुता दिख रही है ओर आप जोर शोर से राम देवा बाबा के खिलाफ लिख भी रहे हैं.... समझ नहीं आता कि बाकि सब ठीक ठाक है.... लिखने लिखाने को कोई ओर विषय/व्यक्ति नहीं रह गया..

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    1. बाबा आपकी मैं रिस्पेक्ट करता हूं।
      अच्छा होता कि आप उन बातों का जिक्र करते जो आपको गलत लगती है। मैं कभी भी किसी के पक्ष या खिलाफ नहीं लिखता हूं। मुद्दों की बात करता हूं, वो चाहे किसी के पक्ष मे जाए या फिर खिलाफ।
      आपकी टिप्पणी मुझे आहत करने वाली है, क्योंकि मुझे लगता था कि आप विषय की गंभीरता के आधार पर अपनी राय देते हैं।

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  10. बाबा की बात बाबा जाने ..हमें तो आप की सांसों से मतलब है..कम ले ज्यादा जीएंगे...

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    1. आपको प्रणाम
      बहुत बहुत शुक्रिया

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  11. महेंद्र जी अपने मिशन में हो गए पास
    बाबा गर पढ़ ले इसे, रुक जाएगी सांस

    रुक जायेगी साँस, लेख है पोल खोलता
    आधा सच ब्लॉग हमेशा सच ही बोलता

    रामदेव जी आजकल भूल गए है योग
    कालाधन के नाम पर जुटा रहे है लोग

    जुटा रहे है लोग, दवाव बनाने खातिर
    तिकडममें तेज,दिमाग उनका है शातिर,

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    1. ओह,
      धीरेंद्र सर
      इस समर्थन के लिए बहुत बहुत आभार

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  12. बाबा का योग तो ठीक पर भीड़ को अपने बंधक की तरह यूज़ करता लगता है बाबा जब वो अपनी बेसि‍र पैर की गंवई बातें लादने लगता है

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    1. बेसिर पैर की बातें करने के साथ योग हो ही नहीं सकता, ये मै नहीं महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में लिखा है।

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    2. aaj patanjali bhi hote to aap be sir pair ka hi kahte...

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    3. महर्षि पतंजलि का नाम तो कम से कम आदर से लो भाई...

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  13. ------महेंद्र जी वास्तव में आप योग का अर्थ नहीं समझ पाए हैं ....मैंने स्वयं कभी रामदेव जी का योग नहीं किया न फोलो करता हूँ , न मेरी उनमें व्यक्तिगत रूचि है....परन्तु योग शास्त्र को वैदिक साहित्य से उपनिषद-पुराण, वशिष्ठ व पतंजलि और गोरखनाथ का हठयोग पढ़ा व जाना है...आज का अंग्रेज़ी योगा भी...
    ---..पतंजलि के अष्टांग-योग में जो आपने निम्न ६ बिंदु स्वयं ही गिनाए हैं ..
    आसन: प्राणायाम: प्रत्याहार:धारणा: ध्यान: समाधि:.....वह सब ही तो राम देव कराते हैं ...
    ----ये सारे आठ अंग क्रमिक बिंदु हैं योग के ..प्रथम दो बिंदु यम -नियम व्यक्तिगत हैं जिन्हें मनुष्य को स्वयम ही करना होता है ....आगे के बिंदु विशिष्ट हैं और विशेषज्ञ /गुरु की आवश्यकता होती है...
    ---- व्यर्थ की भ्रमित धारणाओं से ध्यान हटायें ...
    --- वैसे योग की पतंजलि की व्याख्या भी सम्पूर्ण नहीं अपितु सिर्फ हठयोग है....योग का वास्तविक अर्थ..आत्मा-परमात्मा का मिलन है और यह योग-हठयोग उसका मार्ग, क्योंकि जब तक आत्मा अनुशाषित नहीं होगी आगे का मार्ग कैसे मिलेगा....और शारीरिक अनुशासन से मानसिक अनुशासन आता है ..
    ---और भी तात्विक अर्थ समझना चाहें तो ....वस्तुतः आत्मा-परमात्मा का कभी वियोग होता ही नहीं है तो योग का सवाल ही उत्पन्न नहीं होता...यह तो मन के अंदर आत्मा रूपी परमात्मा को खोजना है ..इसीलिये ये सारी भौतिक क्रिया-विधियां हैं....
    ---हम अपने सांस्कृतिक-ज्ञान से मुंह चुराते हैं इसीलिये गुलामी में जीवन बिताते हैं...

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    1. अष्टांग योग की अपनी मर्यादा है, योग के दौरान दुनिया भर की फिजूल बातें नहीं की जा सकतीं, क्योंकि जब आपका ध्यान भटकता रहेगा तो आप सब कुछ कर सकते हैं, पर योग नहीं। अब देखिए मंच पर बाबा के उछल कूद करने को भी योग नहीं कहा सकता। योग कराने के दौरान हल्की फुल्की बातें, अजीब तरह से हंसना, अपने उत्पादों को बेहतर बताना, स्वदेसी के नाम पर अपने उत्पाद योग शिविर के दौरान बेचना, योग के दौरान बीमारी की बात करना ऐसे तमाम मसले हैं जो योग के समय नहीं की जानी चाहिए। पर ये बात बाबा और उनके अनुयायियों को कौन समझाए।
      इसके अलावा अष्टांग योग में अपरिग्रह की चर्चा है, यानि आप संग्रह नहीं कर सकते। रामदेव संग्रह करते हैं और खुलेआम लोगों से चंदा वसूलते हैं। सामान बेचते हैं। ऐसे मे ये कुछ भी हो जाएं पर योगी तो नहीं ही हो सकते। मेरा मन्तव्य सिर्फ इतना है।
      वैसे कुछ नई जानकारी मिली आपके कमेंट से...

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  14. आप बहुत बड़ा खतरा ले रहे हैं .... भला इतना भी कोई आधा सच लिखता है .... कुछ मन में भी रखिए :):)

    देर सवेर पोल तो खुलनी ही है ...

    योग का तो पता नहीं पर प्राणायाम की क्रियाएँ काफी स्फूर्तिवान होती हैं ॥

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    1. हाहाहहाहहा, जी कोई खतरा नहीं..
      मैने तमाम बड़े बड़े नेताओं की खबर ली है, मेरा अनुभव रहा है कि बेईमान आदमी कभी आंख मिलाकर बात कर ही नहीं सकता।

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  15. आधे सच पर इतना बबाल, पूरे सच पर क्या होगा महेंद्र जी.

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    1. बिल्कुल नहीं रचना मेम, अभिव्यक्ति की आजादी है, सभी अपनी अपनी राय दे रहे हैं। स्वागत है सभी का...

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  16. आपने लिखा है-(च) ईश्वर-प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
    (आर्यसमाज में ईश्वर की सत्ता को स्वीकार ही नहीं किया गया है)

    लेकिन आर्यसमाज के 10 नियमों मे संख्या एक और दो पर तो लिखा है।
    1. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।

    2. ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।

    सच क्या है?

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  17. आजकल मैं भी पतंजली को समझने का प्रयास कर रही हूँ..केवल ब्रांड की तरह इस्तेमाल किया गया है उन्हें..बाकी जो आप कह रहे हैं..जगजाहिर है..

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  18. आजकल मैं भी पतंजली को समझने का प्रयास कर रही हूँ..केवल ब्रांड की तरह इस्तेमाल किया गया है उन्हें..बाकी जो आप कह रहे हैं..जगजाहिर है..

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  19. swami ji ke charan me sat_sat naman ....ham ap ke sath hai

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  20. आदरणीय महेन्दर श्रीवास्तव जी, कृपया आप कभी हरिद्वार में जाकर बाबा रामदेव जी का Interview लें और जो कुछ आप यहाँ शंकाओं के आधार पर लिख रहे हैं, पूरे वार्तालाप को हूँ ब हूँ उसे फिर यकींन के साथ अपने नए ब्लॉग (बनाकर) पूरे सच पर छापें !
    उम्मीद है आप आधा सच लिखने की खातिर इतने मेहनत करते हैं तो पूरा सच लिखने के लिए इतनी मेहनत शायद नहीं करनी पड़ेगी !

    पर ध्यान रखियेगा मेहनताना दुसरे ब्लॉग के लिए ना के बराबर रहेगा !!

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  21. लो जी, महेंद्र जी फिर हाज़िर हैं ..योग का ज्ञान ले कर..ब्लॉग पर कर रहे हैं अष्टांग योग की व्याख्या ...महर्षि पतंजलि के सूत्र भी समझा रहे हैं..(अगर स्वयं को योग का इतना ही बड़ा ज्ञानी समझते हैं तो क्यों स्वयं की योग कक्षाएं लेना प्राम्भ कर देते) ..क्या करें अब पैसा योग की व्याख्या का नहीं मिला..पैसा तो मिला है ..स्वामी रामदेव को बदनाम करने का..(मुझे पूरा विश्वास है की न तो आपने कभी योग किया है..और न ही कभी करने का प्रयास ही किया है..बस योग के बारे में कही पढ़ा ..और कॉपी पेस्ट कर दिया ..ब्लॉग में ) जबकि वास्तविकता तो यह है की ..स्वामी रामदेव के योग शिविरों में जाने से पहले..भारत के ९९% व्यक्तियों ने सिर्फ योग का नाम सुन रखा था..करते नहीं थे....और रही बात महर्षि पतंजलि की तो इनका तो नाम भी नहीं जानते थे लोग...तो इसका श्रेय तो रामदेव को देना ही होगा न..l अब रही बात चूरन चटनी, मुरब्बा बेचेने की ..तो महेंद्र बाबु आप जैसे अंग्रेज मानसिकता के व्यक्ति ..स्वदेशी चूरन चटनी का महत्व समझ नहीं सकते..(अगर पेप्सी कोला, पिज्जा हट, डोमिनोस अपने उत्पाद बेचे तो ये तो ठीक हैं..परंतू अगर कोई योगी लोगो को स्वेदेशी का पाठ पढ़ा रहा है..और लोगो के लिए अच्छी गुणवत्ता के स्वेदेशी उत्पाद उपलब्ध करवा रहा है तो आप के पेट में क्यों दर्द हो रहा है..

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    1. आप लोगों के साथ दिक्कत यही है कि लकीर के फकीर बने रहते हैं, उससे आगे देखने की कोशिश नहीं करते।
      वैसे भी योगी तो अपने सभी इंद्रियों को अपने नियंत्रण में कर लेता है और हमेशा खुश और राग द्वेष से मुक्त रहता है।
      रामदेव ने ना जाने कैसा चश्मा बांट दिया है लोगों में कि वो उतना ही देखते हैं तो रामदेव दिखाते हैं। मैने अष्टांग योग के बारे में लिखा है, उस पर बात करने को कोई तैयार नहीं है। अष्टांग योग का कितना पालन करते हैं रामदेव।
      ( हां आप कह रहे हैं कि कहीं पढ लिया, बस चर्चा करने चले आए, तो सही है मैने अष्टांग योग का खोज थोड़े किया है, जाहिर है कहीं पढूंगा ही। )

      हाहहाहाहहाह

      सच बताऊं चेलों का ये दर्द देख कर हंसी भी आती है, तकलीफ भी हो रही है।

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    2. महाशय , आपकी टिपण्णी पड कर आपके योग ज्ञान पर मुझे बिलकुल ही आश्चर्य नहीं हुआ.आप जैसे करोरों लोग जिन्हें भारतीय अध्यातम का अधकचरा ज्ञान है वे योग और प्राणायाम की की अधकचरी शिक्षा को समझ ही नही सकते तथा ऐसे ब्यावास्यिक योग गुरुओं द्वारा रोग निवारण के नाम पर ठगे जाते रहे हैं.यह तो महेंद्र जी साहसिकता तथा प्रयास है की आप दुसरे पक्ष को भी समझ पा सकते हैं, अगर खुली दृष्टी रखें तो .

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    3. आदरणीय सिन्हा जी मुझे भी आपके उत्तर पर बहुत ही आश्चर्य हुआ , आप मुझे ये बता दीजिये कि मैंने आपने लेख में स्वयं को कोई योगी या महा योगी कहा है क्या ? शायद नहीं , फिर भी आपने लेख की मूल भावना के विरुद्ध जाकर और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर निराशाजन उत्तर दिया जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी , मुझे तो योग का बिल कुल भी ज्ञान नहीं है और न ही मै योग करता हूँ बस मैंने श्रीमान श्रीवास्तव जी के उन आरोपों का उत्तर दिया था जो उन्होंने बाबा राम देव पर टिपण्णी के रूप में लिखे थे , मै कोई पत्रकार नहीं लेकिन ये अवश्य जनता हूँ कि किसी पर इस तरह की व्यक्तिगत टिपण्णी करना भी पत्रकारिता के आदर्शों और सीमाओं के विरूद्ध है एक पत्रकार केवल निरपेक्ष भावना वाला व्यक्ति ही हो सकता है , और मै या आप दोनों नहीं जानते की श्रीमान श्रीवास्तव जी किस पत्र या पत्रिका से जुड़ें हुए हैं , अगर आपको पता हो तो मुझे जरुर बता दीजियेगा , वास्तव में मुझे उनके लेख पड़कर उनके पत्रकार होने पर भी संदेह है ...आपको मै बताना चाहता हूँ कि कुछ २ या ३ वर्षों से मै कभी कभार केवल अपनी सामग्री जो मै लिखता हूँ उसको सहेजने के लिए ब्लॉग पर लिखता हूँ , और केवल झूठी शान और लोगों से किसी ना किसी तरह भी झूठ सच लिख कर जुड़ने का प्रयास नहीं करता , मैंने कभी किसी को अपने ब्लॉग पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया , वरना २ - ४ लोग तो मेरे साथ भी जुड़ ही जाते , दर असल मैंने जवाब श्रीमान श्रीवास्तव से माँगा था उनके पास शायद कोई जवाब नहीं था इसीलिए आपने केवल भाई चारा निभाने के लिए ही गलत जवाब देकर मुझे आश्चर्य चकित कर दिया , और अगर आप भविष्य में कभी मुझे कोई लेख लिखें तो सोच समझ कर और ठीक से अध्ययन करके ही लिखें !

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  22. ये बाबा योगी नही महाँ ठग हैं साधुओं के चोले पहन कर जनता को लूट रहे हैं । इनके हिमायती और योग सीखें न सीखें लेकिन हठ योग वो भी बाबा को सही ठहराने का जरूर सीख लेते हैं। जब आपने संतों का चोला पहन लिया फिर पैसे से , व्य्क़वसाय से क्या मतलव???????? सिर्फ इसी बात का जवाब दें बाबा। अगर चोला न पहनते तो जनता कोलूटा न पाते। फिर नाम कैसे कमाते? कुर्सी सुख की लालसा कैसे पूरी करते? महेन्द्र जी आप लिखते रहें ऐसा लिखने का साहस वो ही कर सकता है जो समाज मे जागृ्ति लाना चाहता है न कि समाज को लूटना। शुभकामनायें। पिछला आलेख शाम को पढती हूँ।

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  23. आपके इस आशीर्वाद से और ताकत मिली है।
    बहुत बहुत शुक्रिया

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  24. bahut hi achha lekh likha hai, ye sadhu sant aajkal ke sirf kehne ke hain, sukh suvidhaon se susajjit sadhuvesh dhari.....

    shubhkamnayen

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  25. महेंद्र जी
    आप के लिए दो लिंक भेज रहा हूँ इनको देखे !
    http://andolansamgri.blogspot.in/
    http://tisarikranti.blogspot.in/2011/07/blog-post.html
    आपका शुभ चिन्तक
    कमलेश

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  26. ओह ये बात है,
    फिर तो आपको मेरी बात कभी पसंद नहीं आ सकती।

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  27. आपका लेखन हमेशा ही बेहतरीन होता है ... आभार

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  28. आपको इसका उत्तर लिखने की आवश्यकता पड़े या ना पड़े इसका कोई अर्थ नहीं मगर आप भारतीय वैदिक ग्रंथों का अध्ययन और आश्रम व्यवस्था पर कुछ आलेख देख लें,साथ ही ऐसा लेख लिखें जो वास्तव में सबके लिए लाभ - दायक हो गाली गलौंच का मै समर्थक नहीं घौर विरोधी हुं और ऐसे मूर्खों की प्रबल निंदा करता हुं ,और मैंने अपने शब्दों में यथा संभव सम्मान देने का भरसक प्रयास किया है,फिर भी महेंद्र श्रीवास्तव जी अगर त्रुटी बश कुछ गलत लिखा गया हो तो क्षमा कीजियेगा. वल्कि हमारे और आपके लिए अपना ज्ञान और बढाकर सब कुछ स्पष्ट करने की आवश्यकता है,अष्टांग योग को बाबा राम देव सहित सभी सन्यासी अच्छी तरह जानते हैं लेकिन ये अष्टांग योग जिसे आपने देखा है वो क्या देश के आम लोगों और गृहस्थ लोगों के लिए संभव है,मै समझता हुं नहीं और उसकी सभी लोगों को आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनकी आवश्यकता प्राणायाम और बाबा रामदेव या किसी भी ऐसी संस्था के द्वारा बताये गए सीमित योग से पूरी हो जाती है योग से सारे भारत को सन्यासी नहीं बनाना है वल्कि स्वस्थ बनाना है,और उसके लिए जो भी वर्तमान व्यवस्था दी गयी है वो पूर्ण है,आपको ये बताना मेरा परम कर्तव्य है कि कोई भी किसी विषय पर पूर्ण नहीं होता,ना तो मै ना आप ना बाबा रामदेव जी ना साध्वी चिदर्पिता जी अगर आपको विश्वास ना हो तो मुझे केवल राष्ट्र नमक शब्द या वास्तविक राष्ट्र का अर्थ बता दीजियेगा और आप साध्वी चिदर्पिता जी से भी पूछ लीजियेगा मै आपको विश्वास दिलाता हुं एक बार हो सकता है आप स्वयं उतार दे दें मगर साध्वी जी निश्चित रूपसे इसका उत्तर नहीं दे पाएंगी,...एक महान रहस्य की बात ये है कि योग पर महर्षि पतंजलि ने जो कुछ भी लिखा वो भी पूर्ण नहीं है,इसीलिए उनको भी योग पर एक गुरु का दर्ज़ा नहीं दिया जा सकता योग के वास्तविक दो गुरु हैं एक भगवान् महादेव और दुसरे भगवान् नारायण अथवा श्री कृष्ण,बाबा रामदेव जी तो फिर भी योग के ऐसे शिष्य हैं जो कि जितना सीखते हैं उतना ही लोगों को बता देते हैं,हमारी सभ्यता - और संस्कृति को विदेशी आक्रमण कारियों द्वारा व्यापक हानि पहुंचाई गयी है इसीलिए योग पर उप्लाभ्धा विस्तृत सामग्री में से केवल महर्षि पतंजलि का ही ग्रन्थ किसी तरह बचा रह गया,वरना ईश्वर आराधना से लेकर ,नृत्य,संतान उत्पत्ति( इसका अर्थ बहुत विस्तृत है जो यहाँ बताया नहीं जा सकता),वाणिज्य-व्यवसाय,चलना - फिरना त्याग और संग्रह यहाँ तक कि जो कुछ भी हम जीवन में करते हैं वो सबकुछ केवल योग है कुछ और नहीं,बस अंतर इतना है कि कुछ लोग अच्छी बातों का योग करते है कुछ बुरी बातो का योग करते है. ये आपके ऊपर है आप किस प्रकार का योग करेंगे और उसके किस परिणाम को लेकर ईश्वर के पास जायेंगे.

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  29. Good Answer Mr Kaushal. In bike hue Logo ko aap jaise hi kuch ache log hi ache se jawab de sakte hain. Jai Hind.

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  30. नवीन जी मैंने जो उत्तर महेंद्र जी लो लिखा था वो केवल आधा ही उनके ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है क्यूंकि इनके ब्लॉग का नाम है " आधा सच " पूरा लेख आपको मेरे ब्लॉगhttp://thakur-k-p-singh-kaushal.blogspot.in/ पर मिलेगा कृपया जरुर पढियेगा !!!

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  31. आपको इसका उत्तर लिखने की आवश्यकता पड़े या ना पड़े इसका कोई अर्थ नहीं मगर आप भारतीय वैदिक ग्रंथों का अध्ययन और आश्रम व्यवस्था पर कुछ आलेख देख लें,साथ ही ऐसा लेख लिखें जो वास्तव में सबके लिए लाभ - दायक हो गाली गलौंच का मै समर्थक नहीं घौर विरोधी हुं और ऐसे मूर्खों की प्रबल निंदा करता हुं ,और मैंने अपने शब्दों में यथा संभव सम्मान देने का भरसक प्रयास किया है,फिर भी महेंद्र श्रीवास्तव जी अगर त्रुटी बश कुछ गलत लिखा गया हो तो क्षमा कीजियेगा. वल्कि हमारे और आपके लिए अपना ज्ञान और बढाकर सब कुछ स्पष्ट करने की आवश्यकता है,अष्टांग योग को बाबा राम देव सहित सभी सन्यासी अच्छी तरह जानते हैं लेकिन ये अष्टांग योग जिसे आपने देखा है वो क्या देश के आम लोगों और गृहस्थ लोगों के लिए संभव है,मै समझता हुं नहीं और उसकी सभी लोगों को आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनकी आवश्यकता प्राणायाम और बाबा रामदेव या किसी भी ऐसी संस्था के द्वारा बताये गए सीमित योग से पूरी हो जाती है योग से सारे भारत को सन्यासी नहीं बनाना है वल्कि स्वस्थ बनाना है,और उसके लिए जो भी वर्तमान व्यवस्था दी गयी है वो पूर्ण है,आपको ये बताना मेरा परम कर्तव्य है कि कोई भी किसी विषय पर पूर्ण नहीं होता,ना तो मै ना आप ना बाबा रामदेव जी ना साध्वी चिदर्पिता जी अगर आपको विश्वास ना हो तो मुझे केवल राष्ट्र नमक शब्द या वास्तविक राष्ट्र का अर्थ बता दीजियेगा और आप साध्वी चिदर्पिता जी से भी पूछ लीजियेगा मै आपको विश्वास दिलाता हुं एक बार हो सकता है आप स्वयं उतार दे दें मगर साध्वी जी निश्चित रूपसे इसका उत्तर नहीं दे पाएंगी,...एक महान रहस्य की बात ये है कि योग पर महर्षि पतंजलि ने जो कुछ भी लिखा वो भी पूर्ण नहीं है,इसीलिए उनको भी योग पर एक गुरु का दर्ज़ा नहीं दिया जा सकता योग के वास्तविक दो गुरु हैं एक भगवान् महादेव और दुसरे भगवान् नारायण अथवा श्री कृष्ण,बाबा रामदेव जी तो फिर भी योग के ऐसे शिष्य हैं जो कि जितना सीखते हैं उतना ही लोगों को बता देते हैं,हमारी सभ्यता - और संस्कृति को विदेशी आक्रमण कारियों द्वारा व्यापक हानि पहुंचाई गयी है इसीलिए योग पर उप्लाभ्धा विस्तृत सामग्री में से केवल महर्षि पतंजलि का ही ग्रन्थ किसी तरह बचा रह गया,वरना ईश्वर आराधना से लेकर ,नृत्य,संतान उत्पत्ति( इसका अर्थ बहुत विस्तृत है जो यहाँ बताया नहीं जा सकता),वाणिज्य-व्यवसाय,चलना - फिरना त्याग और संग्रह यहाँ तक कि जो कुछ भी हम जीवन में करते हैं वो सबकुछ केवल योग है कुछ और नहीं,बस अंतर इतना है कि कुछ लोग अच्छी बातों का योग करते है कुछ बुरी बातो का योग करते है. ये आपके ऊपर है आप किस प्रकार का योग करेंगे और उसके किस परिणाम को लेकर ईश्वर के पास जायेंगे.

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  32. श्री महेंद्र श्रीवास्तव जी आपका आलेख हमने पढ़ा, इसमें जवाब देने लायक हालाँकि कुछ नहीं है,लेकिन फिर भी मन में आपकी बातों से पीधन हुई तो कुछ लिखना मेरा परम कर्तव्य है,..जहां तक बात संत की है वो ना तो आर्य समाजी होता है और ना ही सनातनी , संत कवक संत होता है और आर्य समाज का मूल आधार जो की वेद हैं उसमे स्पष्ट लिखा है कि हमारे यहाँ आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत संन्यास एक जीवन जीने का मार्ग है और ये व्यवस्था आर्यसमाजिक व्यवस्था से बहुत पहले की वैदिक कालीन व्यवस्था है,आर्य सामाजिक व्यवस्था 200 वर्षों से भी नवीन व्यवस्था है ,क्या आपको लगता है की संन्यास और भारत में साधू - संत के लिए बनाई गयी व्यवस्था केवल 200 वर्ष या उसे कम पुरानी है,ज्यादा लिखने की आवश्यकता है नहीं,वस इतना ही पर्याप्त है की आपको केवल भारत की सभ्यता और संस्कृति को ठीक से अध्ययन करना चाहिए,तथा सबसे आवश्यक सलाह ये है की आज कल भारतीय मीडिया के बारे में लोगों में बहुत गुस्सा है उसे ठीक से देखें और पहचानने का प्रयास करिए, मेरा ये निवेदन सभी मीडिया के भाइयों से है,ना की केवल आपसे ,क्योंकि भारत में विकास,सत्य,और न्याय के लिए लड़ने हेतु मीडिया का कुछ वर्षों पहले तक बहुत महत्वपूर्ण स्थान था जो की आज मीडिया खो चुका है,जिसको आप सार्वजानिक जीवन में भली - भांति जानते हैं,और अगर विश्वास ना हो तो एक राष्ट्र व्यापी सर्वे करवा लीजिये जिसमे आम लोग आपके साथ सर्वे टीम में शामिल हों,आपको जनता के उस गुस्से का अहसास हो जायेगा,जिसका आपको आभास तो है मगर अभी उसके विनाशक परिणामों से आप भली - भांति परिचित नहीं है,जिसका उत्तर आपको केवल काल चक्र ही देगा,क्योंकि समय बहुत मूल्यवान और शक्तिशाली होता है जो बड़ी से बड़ी शक्तियों को समूल नष्ट कर देता है,आज मीडिया एक बहुत बड़ी शक्ति है हम मानते हैं मगर वो शक्ति ही क्या जिसका पतन ना हो,अगर आप मीडिया और राष्ट्र के लिए इसके योगदान को बचाना चाहते हैं और मीडिया के वास्तविक शुभ चिन्तक हैं तो आप मीडिया के अस्तित्व को बचाने के लिए अबिलम्ब प्रयास प्रारम्भ करें,क्योंकि हमें आभास है शायद आपको आभास नहीं है मीडिया अपने चरम पर पहुँच चुका है और इसका वर्तमान स्वरुप अगर इसी प्रकार जारी रहा तो निश्चित ही निकट भविष्य में मीडिया की सभी बतों पर लोग अविश्वास करेंगे और आप लोगों की खिल्ली उड़ायेंगे,जिस प्रकार आज कल राजनितिक दलों और इनके नेताओं के समर्थक उनके गलत कर्मों के कारण सामाजिक मीडिया में आम जनता के प्रतिनिधि उन युवाओं के गुस्से का शिकार हो रहें है जो वास्तव में किसी भी सामाजिक संस्थान या राजनीतिक दल से सम्बंधित नहीं हैं,उसकी प्रकार मीडिया भी इन युवाओं का शिकार हो रही है,देश के किसी भी वेब पोर्टल पर ,सोशल मीडिया के किसी भी पन्ने पर नेताओं और राजनीतिक दलों के पक्ष में लिखने वाला कोई नहीं है उसी प्रकार मीडिया के पक्ष में लिखने वाला कोई नहीं है,आप एक बार यकीन करके देखिये और सधे हुए विचार से सोचिये अगर मीडिया या राजनीतिक दलों के द्वारा कुछ भी अच्छा किया जाता तो 100 में जयादा नहीं तो 33% लोग तो आपके पक्ष में कुछ लिखते मगर यहाँ गणित 100 Vs 0 है.

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  33. WHO WILL BRING BACK THE BLACK MONEY?

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  34. Badhiya Mahendra bhai. Padh kar achcha lagta hai ki tewar abhi bhi vaise hi hain..

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।