रालेगन सिद्दि में एक अन्ना नहीं है बल्कि अन्ना ही अन्ना हैं। जब तक मैं रालेगन सिद्दि नहीं गया था तो मुझे तो लगता था कि अन्ना गांधीवादी हैं इसलिए टोपी पहनते हैं, पर ऐसा नहीं हैं। उनके गांव में 90 फीसदी लोग टोपी पहनते हैं। टोपी वहां के पहनावे में शामिल है। वैसे आपको बता दूं कि इन टोपी वालो से दूरी बनाए रखना ही ज्यादा बेहतर हैं, क्योंकि मौका मिलते ही ये दूसरों को टोपी पहनाने से नहीं चूकते। मसलन अगर आप ने किसी टोपी वाले से गांव के बारे मे कुछ बात कर ली और उसने आपको पांच दस मिनट गांव के बारे में बताया तो अगले ही पल वो आप से पैसे की मांग करेगा। आप हैरान होकर उसे देखते रह जाएगे।
छोटा सा वाकया बताता हूं, मुझे रालेगन सिद्दि के बगल वाले गांव में एक सामाजिक कार्यकर्ता से मिलना था, मैने टोपी वालों से रास्ता पूछा तो तीन टोपीवाले मेरी कार में सवार हो गए और कहा चलिए मैं पहुंचा देता हूं। मुझे लगा कि ये कितने शरीफ लोग हैं, इतनी मदद कर रहे हैं, खुद वहां पहुंचा रहे हैं। बहरहाल मैं उनके घर पहुंचा, वो घर पर थे नहीं थे, हम वापस रालेगन सिद्धि आ गए। बगल वाले गांव की दूरी पांच किलोमीटर से भी कम रही होगी। हम आधे घंटे से भी कम समय में वापस आ गए, पर जब ये टोपी वाले कार से उतरे तो तीनों ने सौ सौ रुपये की मांग की। मैं हैरान हो गया कि ये क्या कह रहे हैं ये लोग, पर उन्होंने कहाकि हम फोकट यानि बिना पैसे के क्यों आपके साथ दूसरे गांव जाएंगे। बहरहाल मैं दो सौ रुपये उन्हें थमाकर चलता किया।
सदाशिव महापारी |
यही वो मंदिर है जहां अन्ना रहते हैं.... |
गांव के लोग तो सदाशिव को ही असली अन्ना कहते हैं। लगभग 32 साल से भी ज्यादा समय तक गांव के सरपंच रहने की वजह से हर काम की शुरुआत वही किया करते थे। इस परिवार की इतनी मान्यता है कि आज भी गांव के सरपंच उनके बेटे जयसिंह महापारी हैं। अन्ना पहले जब भी किसी जनसभा या मीटिंग में बोलते थे तो गांव के विकास का पूरा श्रेय सदाशिव महापारी को दिया करते थे। लेकिन अब अन्ना ऐसा नहीं करते। अब वो अपनी प्रशंसा सुनने के आदि हो गए हैं। हालाकि गांव में अभी भी ये हालत है अगर अन्ना श्रमदान की अपील करते हैं तो 40-50 लोग जमा होते हैं,जबकि महापारी की अपील पर छह सात सौ लोग जमा हो जाते हैं। सदाशिव के सरपंच रहने के दौरान कभी कोई मामला थाने में पंजीकृत नहीं हुआ, लेकिन अब किसी विवाद को लेकर लोग अन्ना के पास जाते हैं, तो वो मामला सुलझाने के बजाए वो लोगों को पुलिस के पास भेज देते हैं।
रालेगन सिद्दि में बना स्कूल |
अन्ना गांव के ईमानदार लोगों के साथ उठना बैठना पसंद नहीं करते। वो जिस सुरेश पढारे के साथ रहते हैं, हालत ये है कि गांव का एक भी आदमी उसे देखना नहीं चाहता। दरअसल सुरेश एक ठेकेदार रहा है। गांव के स्कूल के नाम पर दो हजार से ज्यादा ट्रक रेत उसने खुले बाजार में बेच दिया। इस पर ग्राम सभा की मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग में सुरेश पढारे पर लगे आरोपों को सही पाया गया और सर्वसम्मत से तय किया गया कि आज से कोई भी काम सुरेश पढारे से नहीं कराया जाएगा। इस मीटिंग में अन्ना खुद मौजूद थे। अब सुरेश से काम वापस ले लिया गया, लेकिन अन्ना अगले ही दिन ही उसे गले लगा लिया। आज भी अन्ना का वो सबसे करीबी है। ना ज्यादा खेतीबाडी और ना ही कोई काम। टीम अन्ना दुनिया भर से हिसाब मांगती रहती है, कभी सुरेश पढारे से भी हिसाब मांगे कि उसके हाथ इतने मंहगे मोबाइल एक मजबूत बैंक बैलेंस कहां से है। गांव में एक भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास है। कहने को तो ये भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई करता है। लेकिन इसकी गतिविधियों पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं। आरोप तो यहां तक है कि ये महज ट्रांसफर पोस्टिंग का धंधा बनकर रह गया है। इसके एक पदाधिकारी हैं अनिल शर्मा, ये भी अकूत संपत्ति के मालिक हैं। ये भी पूरे गांव वालों की आंखो की किरकिरी बने हुए हैं, पर अन्ना जी का आशीर्वाद है।
बहरहाल अन्ना के बारे में जिस तरह से हवा बनाई गई, ऐसे में किसी भी जीवंत आदमी के मन में सवाल उठना लाजिमी हैं, इन्हीं सवालों को तलाशता हुआ मैं पहुंचा था रालेगाव सिद्धि। आप हैरान होंगे ये जान कर कि गांव के लोग अन्ना से डरते हैं। नाम का खुलासा करुंगा तो उस आदमी की मुसीबत हो जाएगी, लेकिन उसने बताया कि यहां जो लोग सिर उठाने की कोशिश करते हैं, उन्हें पुलिस से पिटवाया जाता है। इतना ही नहीं अन्ना ने गांव में जिस तरह का विवाद पैसा कर रखा है, ईश्वर उन्हें लंबी उम्र दे, लेकिन सच यही है कि उनके ना रहने पर इस गांव में खून खराबे को कोई नहीं रोक सकता। इन सबके पीछे वजह सम्पत्ति पर कब्जे की होगी। मुझे लगता है कि अन्ना हजारे को इस मामले को बहुत ही गंभीरता से लेनी चाहिए, जिससे ऐसा ना हो कि उनके बाद गांव में खून की होली होती रहे। फिर ऐसा भी नहीं है कि विवादों के बारे में अन्ना को जानकारी नहीं है, उन्हें सब जानकारी है, लेकिन मुश्किल ये है कि उन्हें निष्पक्ष और ईमानदार होना पड़ेगा।
शाम होते ही टल्ली हो जाता है अन्ना का गांव ... ( पार्ट 1)
अन्ना जी हमेशा विवादित रहें और आज भी है,रालेगन सिद्दि गाँव की बृहद जानकारी देने के लिये बहुत२ आभार,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
शुक्रिया धीरेंद्र जी
Deleteदुःख तो इस बात का है कि इस देश में जब भी कुछ ऐसा होता है तो लोग आँख मूंद कर उसके पीछे चल पड़ते हैं और जब पढ़े लिखे व्यक्ति ऐसे लोगों का अनुसरण करते हैं तो बात और भी गंभीर हो जाती है ...आपके लेखन का कोई जबाब नहीं .....!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया भाई केवल राम जी
Delete"आपको बता दूं कि इन टोपी वालो से दूरी बनाए रखना ही ज्यादा बेहतर हैं, क्योंकि मौका मिलते ही ये दूसरों को टोपी पहनाने से नहीं चूकते।"
ReplyDeleteवाह...
क्या बात है...!
शास्त्री जी आप बिल्कुल अन्यथा मत लीजिएगा, पर रालेगन के टोपी वालों से बचे रहना ही ठीक है....
Deleteसमझ नही आता क्या कहूँ........????
ReplyDeleteजी,
Deleteसच है, जब ऐसे आदमी की हकीकत सामने आती है, जिस पर देश भरोसा करता है तो कुछ भी कहना आसान नहीं होता।
क्या कहें ... हर कोई किसी न किसी मजबूरी का शिकार है ... शायद ऐसा ही कुछ अन्ना के साथ भी हो !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - यह अंदर की बात है ... ब्लॉग बुलेटिन
ब्लाग बुलेटिन में शामिल कर इस लेख को औरों तक पहुंचाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteआँखों देखी रिपोर्ट पढ़ अब किसी पर विश्वास करने का मन नहीं ..... गज़ब की पोस्ट
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteकई पर्दों के पीछे का सच खोजना और हम तक पहुंचाना ... आभार...
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता
Deleteहम तो भाई आँखों देखी आपकी कलम से ही देख लेते हैं ...
ReplyDeleteजी प्रणाम, बहुत बहुत आभार
DeleteKafi achchi jankaari di aapne.... Anna ke baare me, lekin ek sawal aapse bhi hai ki jab aaj ke daur me ek kalam ka sipahi dhang se apni rozi_Roti nahi chala pata to aap ek swatantra ptrakar hote huye itna lamba kharch utha kar raale ganv gaye.... Kuch samajh me nahi aata.... ek Repoter ke pass itna paisa, jabki salary ke naam par kuch gine chune hi paise haath aate hain... Aap sanka ka Niwaran jarur karen....
ReplyDeleteदरअसल आप लोगों की पढ़ने लिखने की आदत ही छूट गई है लगता है। मित्र आपको ये किसने कहा कि मैं स्वतंत्र पत्रकार हूं। आप अगर मेरे प्रोफाइल को ही पढ़ लेते तो ऐसे सवाल नहीं करते......।
Deleteबहुत सही कहा है आपने इस प्रस्तुति में ...
ReplyDeleteकल 06/06/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' क्या क्या छूट गया ''
जी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteमहेंद्र जी आपकी मेहनत और खोज के लिए बहुत-बहुत बधाई। मैं तो शुरू से ही लगातार अन्ना हज़ारे की पोल अपने ब्लाग मे खोलता रहा हूँ तब महामहिम मनोज कुमार जी,डॉ दराल साहब,जैसे वरिष्ठ ब्लागर्स ने खुल कर मेरी निंदा की थी। एक ब्लागर ने तो मुझे बंगाल की खाड़ी मे डुबो देने की धम्की दी थी। आपने लोगों को सही राह समझा दी ,आप धन्यवाद के पात्र हैं।
ReplyDeleteहाहाहहाहाहहा यानि अगर मैं सबकी पसंद की बात ना करके सच्चाई लिखू तो यहां ऐसे लोग भी हैं जो बंगाल की खाड़ी में डुबो देगें।
Deleteखैर ऐसा कहने वालों की सोच को देखकर उन्हें माफ कर दीजिए। मेरा मानना है कि ऐसे लोगों की अज्ञानता दूर करने के लिए उन्हे सच के करीब आना तो होगा। अगर मुझे बंगाल की खाड़ी में डुबोने की बात करे, तो मैं उसके साथ दिल्ली से बंगाल की खाड़ी जाने को तैयार हो जाऊंगा, क्योंकि मुझे पक्का यकीन है कि रास्ते में वो मेरी सच्चाई से वाकिफ होकर अपना इरादा बदल देगा।
बहुत बहुत साधुवाद... लीक से हट कर आपने जो किया.
ReplyDeleteशुक्रिया दीपक जी
Deleteबहुत बहुत आभार सर
ReplyDeleteसाधारण शब्दों में लिखा गया अन्ना का कड़वा सच ...एक आम इंसान को महान बनाने में हम जैसी मूर्ख जनता सबसे आगे हैं ...एक क्या १०० अन्ना और आ जाएंगे ...ऐसी ही जनता के बल पर ...उनका विश्वास छलने को .....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteअन्ना और रालेगन सिद्धि का सच पढकर हतप्रभ हूँ. अन्ना के आंदोलन का कुछ सच तो मैं भी जंतर मंतर में देख कर आयी थी. यूँ लगा जैसे सिर्फ अन्ना के समर्थक और गैर कांग्रेसी ही ईमानदार हैं, बाकी सब भ्रष्ट हैं. आना का आंदोलन सिर्फ कांग्रेस विरोधी ही रह गया है, इन्हें भ्रष्टाचार से कोई मतलब नहीं है और न देश से. बहुत दुखद है कि अन्ना इतनो को धोखा दे रहे, फिर भी लोग कुछ नहीं कर रहे बल्कि समर्थन में जाकर धरना पर बैठ रहे. अन्ना का सारा सच आपने बता दिया है, कम से कम इतना तो होगा कि एक नए भ्रष्टाचारी को और पनपने से कुछ तो रोका जा सकेगा. तथ्यपरक आलेख के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteजो है नामवाला वही तो बदनाम है ।
ReplyDeleteजी
Deleteशुभकामनायें देश को ...
ReplyDeleteमहेंद्र जी , इस खोजी लेख के लिए धन्यवाद् , मगर एक बात समझ में नही आई ! अगर अन्ना नौकरी से पहले इतने उपद्रवी थे (जैसा आपने बताया ) तो किरण वेदी , केजरीवाल , बालकृष्ण आदि के मामले खोज खोज कर लाने वाली यूपीए सरकार अन्ना के इन मामलो को क्यों उजागर नही कर पाई ? जबकि अखबारों से पता चला की सरकार ने तो अन्ना की नौकरी का रिकार्ड भी छाना था . महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जब अन्ना ने अनशन रखा था , तो तब भी वे अन्ना के खिलाफ कुछ नही खोज पाए ?
ReplyDeleteलेख को पूरी तरह पढे, उसमें साफ है कि आर आर पाटिल ने इनके सभी मामलों को रफा दफा करा दिया। वरना गांव में अक्सर पुलिस आती थी इन्हें पकड़ने के लिए।
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