बसपा सुप्रीमों मायावती के मामले में आज अदालत का फैसला हैरान करने वाला है। हांलाकि कोर्ट ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर फैसला दिया होगा, लेकिन देश की आम जनता के गले ये फैसला नहीं उतर रहा है। देश में इस फैसले को राष्ट्रपति के चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। सब जानते हैं कि मायावती का कोई भरोसा नहीं है कि वो आखिरी समय में क्या फैसला लें। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान संसद के भीतर अचानक जिस तरह मायावती ने पलटी मारी और वाजपेयी की सरकार 13 दिन में गिर गई। उस समय मायावती ने ताल ठोंक कर कहा था हमने यूपी का बदला ले लिया। मायावती के राजनीतिक चरित्र को जानते हुए कांग्रेस किसी तरह के धोखे में नहीं रहना चाहती। सियासी गलियारे में चर्चा है कि राष्ट्रपति के चुनाव में अगर मायावती ऐन वक्त पर पलटती तो सरकार की बहुत किरकिरी होती, लिहाजा मायावती को कैसे मनाया जाए, ये सबसे अहम सवाल था।
कांग्रेस सीबीआई को राजनीतिक दलों के खिलाफ तोप की तरह इस्तेमाल करती रही है। मुलायम और माया दोनों की सीबीआई के सामने घिग्घी बंधी रहती है। एक समाजवादी नेता कैसे सरकार के आगे घुटने टेकता है, ये देखने को मिला था न्यूक्लीयर डील के दौरान। वामपंथियों ने सरकार से समर्थन वापस लिया तो बेचारे मुलायम सिंह यादव 10 जनपथ पहुंच गए। हालांकि समर्थन लेने के बाद भी कांग्रेस ने मुलायम पर से शिकंजा ढीला नहीं होने दिया। कांग्रेस को लगता है कि यही एक ऐसा फंदा है जिससे कभी भी मुलायम को कसा जा सकता है। यही फंदा कांग्रेस ने मायावती के लिए भी तैयार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ताज कारीडोर मामले की जांच करने के आदेश दिए थे। सीबीआई ने एक मामला आय से अधिक संपत्ति का भी दर्ज कर लिया।
आय से अधिक संपत्ति के मामले में आयकर विभाग ने भी छानबीन की थी। सीबीआई ने पुख्ता सुबूतों के आधार पर मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला भी दर्ज कर लिया और इस मामले को सीबीआई की विशेष अदालत के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होती रही। लगभग नौ साल से ये मामला विभिन्न अदालतों मे चलता रहा है और अब जबकि नए राष्ट्रपति का चुनाव होना है, उसके ठीक पहले इसका फैसला आया है। कोर्ट ने सीबीआई की ऐसी तैसी करते हुए कहा कि 1995 से 2003 के बीच मायावती के खिलाफ आय से कथित रूप से अधिक संपत्ति की जांच का कोई निर्देश नहीं दिया था, सीबीआई ने हमारे आदेश को सही ढंग से समझे बिना मायावती के खिलाफ कार्यवाही की। कोर्ट ने सीबीआई में दर्ज एफआईआर को ही निरस्त कर दिया।
कांग्रेस लोकतंत्र और देश की संवैधानिक संस्थाओं को खत्म करने पर आमादा है। एक ओर बड़े जोर शोर से बात की जाती है कि संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को हर कीमत पर बरकरार रखा जाएगा। पर देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले से सरकार की किरकिरी हुई है। अदालत का फैसला ठीक उसी तरह है जैसे पुलिस को चोरी की जांच के आदेश दिए जाएं और मौके पर उसे पता चले कि यहां तो हत्या भी हुई है, तो उसे उसकी जांच करने का हक नहीं है। वो सिर्फ चोरी की चांज तक ही खुद को सीमित रखे। हाहाहहाहा
वैसे मायावती के खिलाफ ताज कारीडोर का मामला चलता रहेगा। जाहिर है कि ताज कारीडोर में मुख्यमंत्री तो बाद में आएंगी, उसके पहले तो तमाम अफसरों की भूमिका जांच होगी, ऐसे में इसका फैसला आसान नहीं है। ये मामला लंबे समय तक चलता ही रहेगा।
सच ये है कि अगर मायावती सबसे ज्यादा किसी मामले में परेशान थीं तो वो है आय से अधिक संपत्ति का मामला है। इसका उनके पास महज एक ही जवाब है कि ये पैसा उन्हें पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चंदे के रुप में दिया है। मायावती के पास 2003 में एक करोड़ था, 2007 में 50 करोड़ हो गया और अब तो वो सवा सौ करोड रुपये से ज्यादा की मालकिन हैं। मायावती मुख्यमंत्री भले रही हों, पर उनकी आम सोहरत एक बेईमान सियासी की रही है। सरकार से बिदाई के बाद उनके एक के बाद एक मामले खुलते जा रहे हैं। इसमें ना सिर्फ मायावती बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों की भूमिका पर भी उंगली उठ रही है।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लोग राष्ट्रपति के चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं, तो कोई गलत नहीं कर रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि सरकार की एक अहम सहयोगी ममता बनर्जी का रुख पहले से ही साफ नहीं है, आंध्रप्रदेश में सरकार भले कांग्रेस की हो, पर वहां जगन मोहन की ताकत लगातार बढती जा रही है। ऐसे में अगर कांग्रेस प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजना चाहती है तो उसे मायावती और मुलायम की हर कीमत पर जरूरत होगी। खैर मायावती को तो मिठाई खाने और बांटने का मौका मिल गया, पर ममता अभी भी नाखुश है। जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि सरकार की मुलायम सिंह यादव से भी "महाडील" हो गई है, लेकिन इस डील का खुलासा अभी नहीं बल्कि चुनाव के बाद होगा। वैसे फैसला तो सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, पर ना जाने क्यों थू थू कांग्रेस की हो रही है। क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी प्रभावित कर लेती है? इसका जवाब तो शायद किसी के पास नहीं होगा।
सब माया का खेल-
ReplyDeleteचाहत पूरी हो रही, चलती दिल्ली मेल |
राहत बंटती जा रही, सब माया का खेल |
सब माया का खेल, ठेल देता जो अन्दर |
कर वो ढील नकेल, छोड़ता छुट्टा रविकर |
पट-नायक के छूछ, आत्मा होती आहत |
मानसून में पोट, नोट-वोटों की चाहत ||
जी सही कहा आपने
Deleteमाया की माया है .... जनता सब जानती है पर उसकी सुनता कौन है ?
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत
Deleteबहुत सही कहा आपने ... सार्थकता लिए सटीक लेखन आभार
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी
Deleteजी सही विश्लेषण किया आपने,...
ReplyDeleteबाकि माया ही माया है.
शुक्रिया दीपक जी
Deleteआम नागरिक की किस्मत में बस ये खेल ही देखना लिखा है :-(
ReplyDeleteजी
Deleteबहुत सही कहा महेन्द्र जी..बहुत सार्थक और सटीक पोस्ट...आभार..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आभार शास्त्री जी
Deleteसुप्रीम कोर्ट का फैसला,और माया का ये मेल,
ReplyDeleteराष्ट्रपति के लिए हो रहा, ये सियासती खेल
ये सियासती खेल, नकेल में फसी गई माया
ममता क्यू नाराज, अभी कोई समझ न पाया
लगता मुलायम संग, सरकार की हो गई डील
इसलिए ममता नाराज है हो रही उनको फील ,,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
शुक्रिया धीरेंद्र जी
Delete'2003 में एक करोड़ था, 2007 में 50 करोड़ हो गया और अब तो वो सवा सौ करोड रुपये से ज्यादा '
ReplyDelete-----गज़ब आंकड़े हैं !
कहाँ ले जाएँगी इतनी दौलत माया जी!
अब बड़ी अदालत भी सरकार और नेताओं के दबाव में काम करने लगी है.
दुखद स्थिति.
जी बिल्कुल
Deleteआप की चिंता जायज है
ये सियासी दांव पेंच हैं तुरप का पत्ता है ये माया जो इस तरह भुनाया गया अब ममता का देखो कोन सी नब्ज पकड़ते हैं ..बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट आप बड़े रोचक अंदाज में लिखते हैं महेंद्र जी यही आपके लेखों की खासियत है
ReplyDeleteजी मेम
Deleteशुक्रिया
बढ़िया कहा है..
ReplyDeleteजी
Deleteएक और राजनीति दावपेंच...इस माया की माया वो ही नहीं जानती तो इस देश की भोली सी जनता उसका खेल कैसे जान सकती हैं ..(पता नहीं सोचने के लिएय इतना दिमाग लाती कहां से हैं ये माया ):)
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