आज एक बार फिर जरूरी हो गया है कि टीम अन्ना की बात की जाए ।वैसे तो मेरा मानना है कि इनके बारे में बात करना सिर्फ समय बर्बाद करना है, लेकिन दिल्ली में जो माहौल है, उसमें जरूरी हो गया है कि कुछ बातें कर ली जाए। मैं जानता हूं कि एक सवाल आप सब के मन में होगा कि हर बार टीम अन्ना का अनशन सुबह आठ बजे के करीब शुरू हो जाता था, आज क्या वजह थी कि ये अनशन दोपहर बाद शुरू हुआ। इस सवाल का जवाब आप जानेगें तो चौंक जाएंगे। इसकी वजह और कुछ नहीं दिल्ली की टीवी मीडिया रही। दरअसल देश के 13 वें राष्ट्रपति के रूप में प्रणव मुखर्जी को संसद भवन के सेंट्रल हाल में आज शपथ लेना था। इसके चलते सभी न्यूज चैनल पर राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह का सीधा प्रसारण हो रहा था। अब टीम अन्ना को लगा कि अगर वो भी इसी समय अनशन शुरू करते हैं तो कैमरे का फोकस उनके ऊपर नहीं रहेगा। फिर जंगल में मोर नाचा किसने देखा.. हाहाहहाहाह
बस यही वजह थी कि टीम अन्ना के सदस्य भी सुबह से घर में बैठ कर शपथ ग्रहण समारोह का आनंद लेते रहे। जब ये समारोह समाप्त हो गया तो वो भी घर से निकले, उन्हें लगा कि अब उन्हें भी न्यूज चैनलों में जगह मिल जाएगी। मित्रों अगर आप हमारे पुराने लेखों को ध्यान से पढें तो आपको पता चल जाएगा कि इस टीम का असल मकसद क्या है। वैसे तो मैं पहले से कहता रहा हूं टीम अन्ना सुर्खियों में रहना चाहती है। मैं सौ फीसदी दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर जंतर मंतर से न्यूज चैनलों के कैमरे हटा लिए जाएं, तो आमरण अनशन सुबह से शुरू होकर शाम को खत्म हो जाएगा। वैसे टीम अन्ना के सदस्य आजकल जिस तरह बहकी बहकी बातें कर रहे हैं, उससे उनकी झल्लाहट साफ झलकती है। माइक हाथ में लेने के बाद ये बेकाबू हो जाते हैं, इन्हें समझ मे नहीं आता दरअसल ये किसके बारे में और क्या कह रहे हैं।
आज जब देश के राष्ट्रपति के रूप में प्रणव दा शपथ ले रहे थे, उस समय टीम अन्ना का एक कारिंदा मंच से कह रहा था कि अगर लोकपाल होता तो प्रणव दा राष्ट्रपति नहीं बन पाते। वैसे ये बात तो उन्होंने मंच से नहीं कहा, लेकिन उनके कहने का मकसद यही था कि अगर लोकपाल होता तो दादा राष्ट्रपति भवन में नहीं बल्कि जेल में होते। देश में इस तरह की आराजकता तब होती जब सरकार का नेतृत्व कमजोर हाथो में होता है। केंद्र की सरकार जितना पीछे हटती है, ये बिगडैल उतना ही आगे बढ़ जाते हैं। इन्हें पता नहीं क्यों लगता है कि इन पर हाथ डाला तो देश मे तूफान खड़ा हो जाएगा। सरकार अगर मजबूत होती तो आज कुछ लोग देश को इस तरह गुमराह नहीं कर पाते। सच तो ये है कि जनता का ये आंदोलन भटक गया है, फिर भी टीम अन्ना को लगता है कि वो एक सामान्य नागरिक नहीं बल्कि भगवान हैं। उनमें इतनी शक्ति है कि वो लोगों को देख कर बता सकते हैं कि ये ईमानदार है और ये बेईमान है। मैं जब भी तर्क और साक्ष्य के साथ कोई बात कहता हूं तो मुझपर कांग्रेसी होने का आरोप लगा दिया जाता है। मैं जानता हूं कि वही बात फिर दुहराई जाएगी, पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं सच्चाई को ठोंक कर कहने की हिम्मत रखता हूं।
मैं हमेशा से एक बात कहता रहा हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती। जब टीम अन्ना अनशन में ईमानदारी नहीं बरत सकती तो उन्हें ईमानदारी की बात करने का कम से कम नैतिक हक तो बिल्कुल नहीं है। चलिए पहले मैं आपको बताने की कोशिश करता हूं कि अनशन के मायने क्या हैं ? टीम अन्ना और गांधी के अनशन में अंतर क्या है ? आपको पता है महात्मा गांधी के लिए अनशन का अर्थ क्या था ? गांधी के लिए अनशन का अर्थ धर्म से जुड़ा हुआ था, इसका एक लक्ष्य हुआ करता था। यानि शरीर और आत्मा की शुद्धि। गांधी जी कहा करते थे कि उपवास या अनशन कभी भी गुस्से में नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि गुस्सा एक प्रकार का पागलपन है। टीम अन्ना तो गुस्से में ही अनशन करती है, ये तो अलग बात है कि टीवी पर गाली गलौज नहीं दिखाया जा सकता, वरना इनकी भाषा तो ऐसा ही लगता है कि खामोश हो जाओ, वरना ये तो किसी की भी मां बहन कर सकते हैं। गांधी जी का मानना था कि अनशन का अर्थ बिना कुछ कहे अपनी बात लोगों तक पहुंचाना है। बापू अनशन के जरिए दुश्मनों को दोस्त बनाने का काम करते थे, जबकि टीम अन्ना दुश्मन से और दूरी बढ़ाने का काम करती है।
मित्रों अनशन में शरीर को तपाया जाता है, मकसद को हासिल करने के लिए शरीर को कष्ट दिया जाता है। अनशनकारियों को ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए, जिससे उनकी वजह से दूसरों को कष्ट हो या वो आहत हों। केजरीवाल की जो भाषा है, उसका भगवान ही मालिक है। कई बार तो उनकी बात से ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने किसी से बयाना ले लिया है कि वो सरकार की ऐसी तैसी कर देंगे, लेकिन जब वो इसमें नाकाम रहते हैं तो अभद्र और अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हैं। टीम अन्ना बड़ी बड़ी बातें करती हैं, लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि अनशन के लिए करोंड़ो रुपये फूंकने की क्या जरूरत है ? अनशन तो जंतर मंतर पर एक दरी बिछा कर भी की जा सकती है, फिर ये फाइव स्टार तैयारी क्यों की जाती है ? आप नहीं समझ सकते, क्योंकि ये आपका विषय नहीं है। आपको याद होगा कि यही टीवी चैनलों ने गुजरात के मुख्यमंत्री के सद्भावना उपवास का मजाक बनाया था और कहा कि ये फाइव स्टार उपवास दिखावटी है, तो उनकी नजर इस अनशन पर क्यों नहीं है? क्या ये दोहरा मापदंड नहीं है ?
मंच तैयार किए जाने के दौरान ये कई बार टीवी चैनलों के कैमरामैन से भी बात करते हैं कि मंच की ऊंचाई कितनी रखी जाए कि अनशनकारी ठीक से चैनल पर दिखाई दें। इन्हें मकसद से ज्यादा मतलब नहीं होता,ये बार बार कैमरे की ओर नजर गड़ाए रहते हैं। वैसे आज इन्हें चैनलों पर ज्यादा जगह नहीं मिल पाई। वैसे भी आज तो दोपहर बाद यानि लगभग दो बजे तो अनशन शुरू ही हो पाया। खैर इन्हें पहले पता होता कि टीवी चैनल उनका अनशन छोड़कर प्रणव दा के शपथ ग्रहण समारोह में भाग जाएंगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये टीम अपना अनशन कब का आगे बढ़ा चुकी होती। हो सकता है कि आप मेरी बात से सहमत ना हों, पर जब देश के प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, जिसे दुनिया भर के लोग देखते रहे थे, उस दौरान अपने ही देश के प्रथम नागरिक प्रणब मुखर्जी के लिए अनाप शनाप बातें करके टीम अन्ना के सहयोगी अरविंद ने साफ कर दिया कि उनमें नैतिकता का पतन हो चुका है, फिर ये देश के लिए बड़ी बड़ी बातें करते हैं तो हंसी आती है।
वैसे इस बार अन्ना भी अपनी टीम का इम्तहान ले रहे हैं। वे चाहते तो टीम के साथ आज भी अपना अनशन शुरू कर सकते थे, पर वो अपनी टीम की ताकत देखना चाहते हैं। दरअसल मुंबई में अन्ना का अनशन फ्लाप हुआ तो टीम के सहयोगी अन्ना की बुराई करने लगे। लोगों मे सुगबुगाहट हुई की अन्ना भले ही महाराष्ट्र के रहने वाले हैं, पर उनकी वहां कोई पूछ नहीं है। इसीलिए मुंबई का अनशन कामयाब नहीं हो पाया। दिल्ली में अनशन इसलिए कामयाब हुआ कि टीम अन्ना के सहयोगियों को दिल्ली वाले हांथो हाथ लेते हैं। बस इसी बात से खफा अन्ना देखना चाहते हैं कि उनके बिना इस अनशन में कितने लोग जमा होते हैं और ये टीम कितने दिन भूखी रह सकती है ? और हां बड़ी बड़ी बातें करने वाली टीम अन्ना पहले ही दिन से उस रास्ते की तलाश कर रही है कि कैसे इस अनशन को सम्मान के साथ समाप्त किया जाए।
टीम अन्ना को पता है कि लोकपाल बिल मानसून सत्र मे पास होने वाला नहीं है, जिन मंत्रियों के खिलाफ जांच की बात की जा रही है, वो बात मानी नहीं जा सकती। सरकार अब बात चीत के लिए तैयार भी नहीं दिखाई दे रही है। अभी तक जो लोग सरकार से बातचीत कर रहे थे, वो अनशन पर हैं, उनकी मांग है कि अब सरकार से बात जनता के सामने मंच पर होगी, ये संभव नहीं है। अब अनशनकारी बेचारे यही सोच रहे हैं कि कैसे रास्ता निकाला जाए, जिससे अनशन तोड़ने में आसानी हो..।
चलते - चलते आज तो टीम अन्ना ने हद ही कर दी। सुर्खियों में आने के लिए कुछ नौजवानों के साथ जानबूझ कर धक्का मुक्की की गई और मीडिया में शोर मचाया गया कि कांग्रेस के छात्र संगठन ने टीम अन्ना पर हमला किया। दरअसल सच ये है कि आज अनशन को कोई भी चैनल इतनी गंभीरता से नहीं ले रहा था, लिहाजा सुर्खियों मे आने के लिए ये एक साजिश रची गई, और कहा गया कि कांग्रेसियों ने जंतर मंतर आकर हमला किया।
बस यही वजह थी कि टीम अन्ना के सदस्य भी सुबह से घर में बैठ कर शपथ ग्रहण समारोह का आनंद लेते रहे। जब ये समारोह समाप्त हो गया तो वो भी घर से निकले, उन्हें लगा कि अब उन्हें भी न्यूज चैनलों में जगह मिल जाएगी। मित्रों अगर आप हमारे पुराने लेखों को ध्यान से पढें तो आपको पता चल जाएगा कि इस टीम का असल मकसद क्या है। वैसे तो मैं पहले से कहता रहा हूं टीम अन्ना सुर्खियों में रहना चाहती है। मैं सौ फीसदी दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर जंतर मंतर से न्यूज चैनलों के कैमरे हटा लिए जाएं, तो आमरण अनशन सुबह से शुरू होकर शाम को खत्म हो जाएगा। वैसे टीम अन्ना के सदस्य आजकल जिस तरह बहकी बहकी बातें कर रहे हैं, उससे उनकी झल्लाहट साफ झलकती है। माइक हाथ में लेने के बाद ये बेकाबू हो जाते हैं, इन्हें समझ मे नहीं आता दरअसल ये किसके बारे में और क्या कह रहे हैं।
आज जब देश के राष्ट्रपति के रूप में प्रणव दा शपथ ले रहे थे, उस समय टीम अन्ना का एक कारिंदा मंच से कह रहा था कि अगर लोकपाल होता तो प्रणव दा राष्ट्रपति नहीं बन पाते। वैसे ये बात तो उन्होंने मंच से नहीं कहा, लेकिन उनके कहने का मकसद यही था कि अगर लोकपाल होता तो दादा राष्ट्रपति भवन में नहीं बल्कि जेल में होते। देश में इस तरह की आराजकता तब होती जब सरकार का नेतृत्व कमजोर हाथो में होता है। केंद्र की सरकार जितना पीछे हटती है, ये बिगडैल उतना ही आगे बढ़ जाते हैं। इन्हें पता नहीं क्यों लगता है कि इन पर हाथ डाला तो देश मे तूफान खड़ा हो जाएगा। सरकार अगर मजबूत होती तो आज कुछ लोग देश को इस तरह गुमराह नहीं कर पाते। सच तो ये है कि जनता का ये आंदोलन भटक गया है, फिर भी टीम अन्ना को लगता है कि वो एक सामान्य नागरिक नहीं बल्कि भगवान हैं। उनमें इतनी शक्ति है कि वो लोगों को देख कर बता सकते हैं कि ये ईमानदार है और ये बेईमान है। मैं जब भी तर्क और साक्ष्य के साथ कोई बात कहता हूं तो मुझपर कांग्रेसी होने का आरोप लगा दिया जाता है। मैं जानता हूं कि वही बात फिर दुहराई जाएगी, पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं सच्चाई को ठोंक कर कहने की हिम्मत रखता हूं।
मैं हमेशा से एक बात कहता रहा हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती। जब टीम अन्ना अनशन में ईमानदारी नहीं बरत सकती तो उन्हें ईमानदारी की बात करने का कम से कम नैतिक हक तो बिल्कुल नहीं है। चलिए पहले मैं आपको बताने की कोशिश करता हूं कि अनशन के मायने क्या हैं ? टीम अन्ना और गांधी के अनशन में अंतर क्या है ? आपको पता है महात्मा गांधी के लिए अनशन का अर्थ क्या था ? गांधी के लिए अनशन का अर्थ धर्म से जुड़ा हुआ था, इसका एक लक्ष्य हुआ करता था। यानि शरीर और आत्मा की शुद्धि। गांधी जी कहा करते थे कि उपवास या अनशन कभी भी गुस्से में नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि गुस्सा एक प्रकार का पागलपन है। टीम अन्ना तो गुस्से में ही अनशन करती है, ये तो अलग बात है कि टीवी पर गाली गलौज नहीं दिखाया जा सकता, वरना इनकी भाषा तो ऐसा ही लगता है कि खामोश हो जाओ, वरना ये तो किसी की भी मां बहन कर सकते हैं। गांधी जी का मानना था कि अनशन का अर्थ बिना कुछ कहे अपनी बात लोगों तक पहुंचाना है। बापू अनशन के जरिए दुश्मनों को दोस्त बनाने का काम करते थे, जबकि टीम अन्ना दुश्मन से और दूरी बढ़ाने का काम करती है।
मित्रों अनशन में शरीर को तपाया जाता है, मकसद को हासिल करने के लिए शरीर को कष्ट दिया जाता है। अनशनकारियों को ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए, जिससे उनकी वजह से दूसरों को कष्ट हो या वो आहत हों। केजरीवाल की जो भाषा है, उसका भगवान ही मालिक है। कई बार तो उनकी बात से ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने किसी से बयाना ले लिया है कि वो सरकार की ऐसी तैसी कर देंगे, लेकिन जब वो इसमें नाकाम रहते हैं तो अभद्र और अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हैं। टीम अन्ना बड़ी बड़ी बातें करती हैं, लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि अनशन के लिए करोंड़ो रुपये फूंकने की क्या जरूरत है ? अनशन तो जंतर मंतर पर एक दरी बिछा कर भी की जा सकती है, फिर ये फाइव स्टार तैयारी क्यों की जाती है ? आप नहीं समझ सकते, क्योंकि ये आपका विषय नहीं है। आपको याद होगा कि यही टीवी चैनलों ने गुजरात के मुख्यमंत्री के सद्भावना उपवास का मजाक बनाया था और कहा कि ये फाइव स्टार उपवास दिखावटी है, तो उनकी नजर इस अनशन पर क्यों नहीं है? क्या ये दोहरा मापदंड नहीं है ?
मंच तैयार किए जाने के दौरान ये कई बार टीवी चैनलों के कैमरामैन से भी बात करते हैं कि मंच की ऊंचाई कितनी रखी जाए कि अनशनकारी ठीक से चैनल पर दिखाई दें। इन्हें मकसद से ज्यादा मतलब नहीं होता,ये बार बार कैमरे की ओर नजर गड़ाए रहते हैं। वैसे आज इन्हें चैनलों पर ज्यादा जगह नहीं मिल पाई। वैसे भी आज तो दोपहर बाद यानि लगभग दो बजे तो अनशन शुरू ही हो पाया। खैर इन्हें पहले पता होता कि टीवी चैनल उनका अनशन छोड़कर प्रणव दा के शपथ ग्रहण समारोह में भाग जाएंगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये टीम अपना अनशन कब का आगे बढ़ा चुकी होती। हो सकता है कि आप मेरी बात से सहमत ना हों, पर जब देश के प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, जिसे दुनिया भर के लोग देखते रहे थे, उस दौरान अपने ही देश के प्रथम नागरिक प्रणब मुखर्जी के लिए अनाप शनाप बातें करके टीम अन्ना के सहयोगी अरविंद ने साफ कर दिया कि उनमें नैतिकता का पतन हो चुका है, फिर ये देश के लिए बड़ी बड़ी बातें करते हैं तो हंसी आती है।
वैसे इस बार अन्ना भी अपनी टीम का इम्तहान ले रहे हैं। वे चाहते तो टीम के साथ आज भी अपना अनशन शुरू कर सकते थे, पर वो अपनी टीम की ताकत देखना चाहते हैं। दरअसल मुंबई में अन्ना का अनशन फ्लाप हुआ तो टीम के सहयोगी अन्ना की बुराई करने लगे। लोगों मे सुगबुगाहट हुई की अन्ना भले ही महाराष्ट्र के रहने वाले हैं, पर उनकी वहां कोई पूछ नहीं है। इसीलिए मुंबई का अनशन कामयाब नहीं हो पाया। दिल्ली में अनशन इसलिए कामयाब हुआ कि टीम अन्ना के सहयोगियों को दिल्ली वाले हांथो हाथ लेते हैं। बस इसी बात से खफा अन्ना देखना चाहते हैं कि उनके बिना इस अनशन में कितने लोग जमा होते हैं और ये टीम कितने दिन भूखी रह सकती है ? और हां बड़ी बड़ी बातें करने वाली टीम अन्ना पहले ही दिन से उस रास्ते की तलाश कर रही है कि कैसे इस अनशन को सम्मान के साथ समाप्त किया जाए।
टीम अन्ना को पता है कि लोकपाल बिल मानसून सत्र मे पास होने वाला नहीं है, जिन मंत्रियों के खिलाफ जांच की बात की जा रही है, वो बात मानी नहीं जा सकती। सरकार अब बात चीत के लिए तैयार भी नहीं दिखाई दे रही है। अभी तक जो लोग सरकार से बातचीत कर रहे थे, वो अनशन पर हैं, उनकी मांग है कि अब सरकार से बात जनता के सामने मंच पर होगी, ये संभव नहीं है। अब अनशनकारी बेचारे यही सोच रहे हैं कि कैसे रास्ता निकाला जाए, जिससे अनशन तोड़ने में आसानी हो..।
चलते - चलते आज तो टीम अन्ना ने हद ही कर दी। सुर्खियों में आने के लिए कुछ नौजवानों के साथ जानबूझ कर धक्का मुक्की की गई और मीडिया में शोर मचाया गया कि कांग्रेस के छात्र संगठन ने टीम अन्ना पर हमला किया। दरअसल सच ये है कि आज अनशन को कोई भी चैनल इतनी गंभीरता से नहीं ले रहा था, लिहाजा सुर्खियों मे आने के लिए ये एक साजिश रची गई, और कहा गया कि कांग्रेसियों ने जंतर मंतर आकर हमला किया।
अच्छ आलेख!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteइस देश में महेंद्र श्रीवास्तव जी सभी लोग "सोनी के पूडल" और "गूगल के डूडल" नहीं हैं .राष्ट्रपति जी की आप जाने ?आप अंदर की बातें ज्यादा जानतें हैं .
ReplyDeleteमैं आपके भावनाओं को समझ सकता हूं..
DeleteNo comment.
ReplyDeleteसभी की सोच अपनी अपनी है.
टीम अन्ना के भ्रष्टाचार के मुद्दे को सिरे से नकारा नही जा सकता है.
भले ही प्रचार पाने के लिए वह कुछ भी प्रयास कर रही हो.
देखना यह है कि भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध कैसे आम आदमी
एक होकर अपनी बात कह पाए और अराजकता की स्थिति में
सुधार हो पाए.
क्या आप मानते हैं कि सरकारी तंत्र इमानदारी से
बहुत अच्छा कार्य कर रहा है.यदि नही,तो आपका
'आधा सच' सरकारी तंत्र की नाकामयाबियों और उसमें
कैसे सुधार हो की तरफ ही ज्यादा होना चाहिये.
सर मैं आपका बहुत आदर करता हूं..
Deleteमेरा मानना है कि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत नहीं खड़ी की जा सकती।
बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत नहीं खड़ी की जा सकती।
ReplyDeleteगहरी संजीदा बात कह देना आपकी रिवायत है।
यह एक अच्छी पोस्ट है.
बहुत बहुत शुक्रिया डाक्टर साहब
Deleteमुझे तो लगता है कि केजरीवाल जरूर किसी न किसी के लिये काम कर रहा है देश मे अस्थिरता पैदा करने के लिये\ मुझे हसी आती है टीम अन्ना की सोच पर वो तो चाहते हैं कि सरकार या कोई भी पार्टी अगर साँस भी ले तो उसका पूरा ब्यौरा केज़रीवाल को दे। देश को अस्थिर करने वाले ये गद्दार बेचारे भोले भाले अन्न को गुमराह कर रहे हैं कुमार का असली चेहरा मैने अमेरिका मे देखा था जहाँ एक कविता सम्मेलन मे ये लो शिरकत करने गये थी वहाँ आयोजकों को कितना तंग किया था --- कई तरह से।मै तब वहीं थी किसी ने बताया था कि शराब पी कर काफी हुडदंग मचाया। जिनका खुद का आचरण ऐसा हो वो देश को क्या दिशा देंगेआपने एक एक शब्द सही लिखा है।
ReplyDeleteबताइये जो लोग सार्वजनिक जीवन में इस तरह की हरकत करते हैं, वो आज देश से ज्ञान की बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं।
Deleteमैं शुरू से कहता रहा हू कि पहले खुद को सुधारो, पर लोगों के से सुधरने की अपेक्षा करो...
ईमानदारी की बात बेईमान कैसे कर सकते हैं ? इसका कोई असर भी नहीं होने वाला ?
आम जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है वह उन लोगों पर सहज विश्वास कर लेती है जो इसके विरोध में आंदोलन करते हैं .... पर कुछ समय बाद खुद को ठगा हुआ सा महसूस करती है .... भ्रष्टाचार की नदी ऊपर से नीचे की ओर बहती है ...इसको रोकना है तो बांध ऊपर बनाना पड़ेगा .... बाकी ज्यादा राजनीति मैं नहीं जानती ॥
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं
Deleteमुखिया की निंदा करें, तोड़े घर परिवार ।
ReplyDeleteऐसे लोंगों की यहाँ, हर घर में भरमार ।
हर घर में भरमार, मार दम भर अब इनको ।
पूज राष्ट्रपति रूप, नहीं अब ज्यादा बहको ।
करो देश बदनाम , आज दे दे के गाली ।
मर्यादा का भूल, सड़क के बने मवाली ।।
आपका मानना बिलकुल सही है कि केजरीवाल टीम के बारे में बात करना सिर्फ समय बर्बाद करना है, लेकिन दिल्ली में जो माहौल है, उसमें जरूरी हो गया है कि कुछ बातें कर ली जाए।
ReplyDeleteशुरू में जरूर लगा कि अन्ना आंदोलन बड़े ताकतवर तरीके से उठा है, लेकिन लगातार आंतरिक मतभेदों और विवादों ने इसकी छवि को काफी धक्का पहुंचाया है। बेशक टीम अन्ना कहे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन इनसे यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि बिना ‘हेल्दी इंटरनल डेमोक्रेसी’ के आप देश के लोकतंत्र की कमियां दूर करने की बात कैसे कर सकते हैं? इस टीम के कई अहम सदस्य बीते कुछ महीनों में इसे छोड़ चुके हैं। अगर वे गलत थे, तो आपने उन्हें आंदोलन में साथ क्यों लिया? अगर ऐसा नहीं है, तो क्या आंदोलन किसी एक या दो लोगों की मर्जी का गुलाम तो बनने नहीं जा रहा? टीम अन्ना के मौजूदा और पूर्व सदस्यों से बात करने पर एक बात तो साफ होती है कि टीम में सहमति और तालमेल का भारी अभाव है, जो किसी लक्ष्य को पाने में बड़ी बाधा साबित हो सकता है। बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र में जो काम हमारी राजनीतिक पार्टियों को करना था, वे कर न सकीं। देश ने उन्हें छह दशक से ज्यादा का समय दिया, जो काफी है।
ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या अन्ना भ्रष्टाचार में मुद्दे कि जड़ को काट पायेंगे ?
भ्रष्टाचार सदाचार का विपरीत है.
जब तक लोगों में सदाचार की तमन्ना नहीं जागेगी तब तक अनशन करने से सरकार को तो परेशान किया जा सकता है लेकिन भ्रष्टाचार को नहीं मिटाया जा सकता है.
अनशन का रास्ता आत्महत्या और अराजकता का रास्ता है. इस तरह अगर सरकार अन्ना के क़ानून को बिना किसी विश्लेषण और सुधार ले मान लेती है तो यह भी गलत है और अगर अन्ना अपना अनशन तोड़ते हैं, जैसा कि अनशन करने की घोषणा वह कर चुके हैं, तो उस से जनता में मायूसी फैलेगी और अगर वह अनशन नहीं तोड़ते और वह चल बसे तो देश में भारी अराजकता फैल जायेगी.
तीनों मार्ग देश को ग़लत अंजाम की तरफ़ ले जा रहे हैं.
अनशन और आत्महत्या बहरहाल ग़लत है.
बिल्कुल सहमत हूं
Deleteआम जनता तो भ्रष्टाचार से त्रस्त है.... आधा सच से काम नही चलेगा ...और पूरा सच तो आप मिडिया वाले या ये राजनीति के जानने वाले ही बता सकते हैं ...???
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
थैंक्स सर
Deleteआखिर टीआरपी भी कोई चीज़ होती है ... ;-)
ReplyDeleteकारगिल युद्ध के शहीदों को याद करते हुये लगाई है आज की ब्लॉग बुलेटिन ... जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी – देखिये - कारगिल विजय दिवस 2012 - बस इतना याद रहे ... एक साथी और भी था ... ब्लॉग बुलेटिन – सादर धन्यवाद
शुक्रिया शिवम जी
Deleteबेईमानी की नीव,बात इमानदारी की होय
ReplyDeleteअन्ना टीम बिगाड़ती, अपना आपा खोय
अपना आपा खोय,मंच से दे रहे है गाली
तभी जनता नदारत, और मैदान है खाली
संसद की अपनी गरिमा,देश का है क़ानून
जबरन बात मनवाने का,चढ़ा हुआ जूनून,,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
क्या कहने
Deleteबहुत बढिया
इस देश के मंच पर एक और राजनीति पार्टी तैयार हों रही हैं .....आगे आगे देखे क्या होता हैं ...
ReplyDeleteजी, सहमत हूं
Deleteशुक्रिया सर
ReplyDeleteटीवी और बीबी से सभी को प्रेम होता है।
ReplyDeleteफिर अन्ना की तो बीबी भी नहीं है,
टाइमपास तो टीवी से ही करेंगे न।
िहाहहाहहा
Deleteकैसे हैं महेंद्र जी?
ReplyDeleteआज अन्ना जी से खफा है क्या ? या उनकी टीम से ?
आपकी सकारात्मक सोच में नकारात्मकता झलकती है !
आप पर कांग्रेसी होने के आरोप लगे, अच्छा है ! अब आप अकेले तो नहीं!
रह गई बात अन्ना टीम के काम करने की, तो वो चिर-परचित रणनीति पर काम नहीं कर रही ! और आप उसके काम करने को पुरानी रणनीति से जोड़ कर देख रहे है यह आप का दोष है उनका नहीं ?
किसी भी युद्ध में न तो पुराने हथियार काम में आते है और न पुरानी रणनीति, हर बार यह यूनिक होता है ! पुरानी रणनीति मार्ग दर्शक हो सकती है, आगे का नया मार्ग वनाने में, पर वो कभी भी बैसी नहीं होती जैसी पहले थी ! इतिहास जनता है और आप भी कि गाँधी जी का कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हुआ I समाज को वो कुछ नया दे सके तो वह था शासक के प्रति नयी सोच, कि अहिंसा से भी सत्ता कि सोच में परिवर्तन हो सकता है किन्तु गाँधी जी इसमें भी पूर्ण सफल नहीं हुए, रह गई भारत की आजादी की बात तो इसका श्रे जाता है द्वितीय विश्वयुद्ध को और सयुक्त राष्ट्र संघ के १९४५ के चाटर को
जिसने ब्रिटिश सरकार को कमजोर कर दिया ! गाँधी जी की इस नयी सोच को कांग्रेस ने आगे बढ़ाया, इसलिए नहीं की वे गाँधी जी के समर्थक थे बल्कि इसलिए कि यह सत्ता के सुरछित रहने का सिधांत था, और सत्ता को हिंसात्मक आन्दोलन से बचा सकता था !
आज आप भी जानते हो कि किसी के सामने गाल करोगे तो वो क्या करेगा ?
इसलिए अन्ना टीम पर बहेस करके आप वास्तव में समय खराब कर रहे थे ! और मेरा भी कर दिया I
मै ऐसा सोचता हूँ जब तक हिंदुस्तान में रक्त क्रांति नहीं होगी कुछ भी नया परिवर्तन नहीं होने वाला है क्योंकि व्रिटिश सरकार एक कंपनी के हित में कार्य करती और नीतियाँ वनाती थी आज की सरकार लगभग ५००० कपनियो के हित में कार्य करती और नीतियाँ वनाती है और यह कम्पनियां सरकार के मुलाजिमो के हित में काम करती है यही भ्रष्टाचार की टीम है, देखना है की पाप का घड़ा कब फूटता है ?
आपका शुभ चिन्तक
कमलेश
आपके रामदेव हों या फिर अन्ना मैं इनके खिलाफ नहीं हूं.
Deleteबल्कि इनके ड्रामेबाजी के खिलाफ हूं...
सोचने की बात है ...
ReplyDeleteबिल्कुल
Deleteजंगल में मोर को नाचने से कौन रोक सकता है .
ReplyDeleteसच है
Deleteश्रीवास्तव जी नमस्कार
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'आधा सच' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किया जा रहा है। आज 1 अगस्त को 'टीम अन्ना का टीवी प्रेम'शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है, इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जा कर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद,
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
शुक्रिया,मैने देखा
Delete