जंतर-मंतर पर भव्य मंच तो सजाया गया है इसलिए कि लोगों को बताया जाए कि भ्रष्टाचार के चलते देश कहां पहुंच गया है, लेकिन पांच दिन से देख रहा हूं यहां भ्रष्टाचार की तो बात ही नहीं हो रही है, बात महज भीड़ की हो रही है। सबको चिंता इसी बात की है कि भीड़ कहां गायब हो गई। अच्छा मैं हैरान इस बात से हूं कि जो लोग इनके आंदोलन को समर्थन कर रहे हैं, टीम अन्ना उन्हें "भीड़" कहती है। ये सुनकर मैं वाकई हैरान हूं। बहरहाल जंतर मंतर पर एक बार फिर लोग जमा हैं, उनका दावा है कि वो खाना नहीं खा रहे हैं। कह रहे हैं तो झूठ नहीं बोलेंगे, नहीं खा रहे होंगे। लेकिन एक बात आज तक मेरी समझ में नही आती है कि जो लोग भूख हड़ताल कर रहे हैं, वो सरकारी डाक्टर से जांच कराने से क्यों कतराते हैं, क्यों सरकारी डाक्टर को वापस लौटा कर निजी चिकित्सक की मदद लेते हैं। वैसे मुझे उम्मीद है कि आमरण अनशन कैसे होता है, इसके क्या तरीके हैं, ये आपको पता होगा, लेकिन संक्षेप में मैं इसलिए जिक्र कर देना चाहता हूं जिससे अगर किसी को कोई संदेह हो तो वो दूर हो जाए।
आमरण अनशन पर बैठने के लिए पहले आपको इसकी सूचना स्थानीय प्रशासन को देनी होती है, जिसमें उन मांगो का जिक्र करना होता है, जिसके लिए आप अनशन के लिए मजबूर हुए। इस सूचना पर स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वो वहां अपेक्षित संख्या में पुलिस की ड्यूटी के साथ ही एक चिकित्सक की तैनाती करे, जिससे अनशन पर बैठे व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रोजाना जानकारी प्रशासन को मिलती रहे। अब चिकित्सकों का दल जब अरविंद, मनीष और गोपाल के स्वास्थ्य की जांच करने पहुंचा, तो इन लोगों ने डाक्टरों के दल को वापस भेज दिया। चूंकि ये टीम बदजुबान के साथ बद्तमीज भी होती जा रही है, इसे पता ही नहीं है कि डाक्टर आपकी मदद के लिए हैं और उनकी रिपोर्ट मायने रखती है।
आपको याद होगा कि पिछली बार अन्ना ने 13 दिन से ज्यादा अनशन किया और उसके बाद जब अनशन खत्म हुआ तो लालू यादव जैसे लोगों ने उनके अनशन पर ही सवाल खड़े कर दिया। उन्होंने कहा कि पहले इस बात की जांच हो कि अन्ना बिना खाए पीए 13 दिन रह कैसे गए ? उनके कहने का मकसद साफ था कि सरकारी डाक्टरों ने तो इनके स्वास्थ्य का परीक्षण किया नहीं और निजी चिकित्सक की बात का कोई मतलब नहीं है। इसी का फायदा उठाते हुए लालू ने तो यहां तक कहा कि बाबा रामदेव नौ दिन अनशन नहीं कर पाए, उनकी सांस टूटने लगी, जबकि वो तो व्यायाम वगैरह भी करते हैं, तब अन्ना 13 दिन कैसे भूखे रह सकते हैं ? ये सवाल उठाया गया और इसका किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं था। यही सब इस बार भी हो रहा है, निजी चिकित्सकों ने पहले ही दिन कहा कि अरविंद को शूगर है और उनकी तबियत बिगड़ गई है, जबकि तीन दिन बाद कहा गया कि वो सामान्य हैं। ऐसी मेडिकल रिपोर्ट भी बेमानी है, क्योंकि ये विश्वसनीय नहीं रही।
सच तो ये है कि अनशनस्थल के पीछे बने कैंप में बहुत ज्यादा समय अरविंद, मनीष और गोपाल बिताते हैं। इसलिए वहां भी ज्यादातर लोग यही चर्चा कर रहे हैं कि ये आमरण अनशन कई साल चल सकता है, क्योंकि सब कुछ ना कुछ खा पी रहे हैं, वरना छठें दिन तो हालत पतली हो ही जाती है, जबकि अनशनकारी पहले से ज्यादा टनाटन नजर आ रहे हैं। अच्छा मीडिया भी अनशनकारियों से ये सवाल पूछ रही है कि जनता को आपके अनशन पर भरोसा नहीं रहा, उसे लगता है कि आप खा पी रहे हैं। बहरहाल सच तो अनशनकारी ही बता सकते हैं, लेकिन जब सभी स्वस्थ हैं तो सरकार भी मस्त है, चलो खाते पीते रहो, कोई दिक्कत नहीं। इसलिए अब इसे कथित अनशन कहना ज्यादा ठीक होगा, क्योंकि ये खा रहे हैं या नहीं खा रहे हैं, इस बारे में भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
बहरहाल कथित अनशन का आज पांचवा दिन है, इन पांच दिनों में मंच से या फिर टीवी पर चर्चा क्या हो रही है आपको पता है ? चर्चा ये हो रही है कि आज भीड़ आई , कल नहीं आई थी। इसकी क्या वजह है। चैनलों के रिपोर्टर बताते हैं कि पहले दो दिन बहुत गर्मी थी, शनिवार और रविवार को छुट्टी के साथ ही मौसम बहुत सुहाना हो गया, लिहाजा बड़ी संख्या में लोग यहां जुटे। मतलब भ्रष्ट्राचार का मुद्दा खत्म हो कर मुद्दा भीड़ में बदल गया है। पांच दिन से सिर्फ यही एक बात हो रही है। कहा जा रहा है कि पहले तीन दिन तो सौ दो सौ लोग ही यहां थे। एक दिन बाबा रामदेव समर्थन देने आए तो उनके साथ हजार बारह सौ लोग आए, लेकिन वो भी रामदेव के जाते ही खिसक गए। फिर कथित अनशन का कामयाब बनाने के लिए भगवान ने मदद की। यहां बारिश नहीं हुई, लेकिन पूरे दिन काले बादल से मौसम थोड़ा खुशनुमा हो गया और सबसे बड़ी बात शनिवार और रविवार की छुट्टी हो गई। तो लोग वीकेड इन्ज्वाय करने पहुंच गए जंतर मंतर।
वैसे यहां आने पर लोग मायूस हुए, लोगों को उम्मीद थी कि जिस तरह रामलीला मैदान में अनशन के दौरान देशी घी की पूड़ी कचौड़ी का फ्री में इंतजाम था, वैसा कुछ इस बार भी होगा, पर यहां इस बार ऐसा कुछ नहीं, लिहाजा लोग यहां आए और कुछ देर तमाशा देख कर खिसक गए कनाट प्लेस की ओर। वैसे इस कथित अनशन से एक बात और साफ हो गई जो कुछ साख बची है वो सिर्फ अन्ना हजारे की है। क्योंकि जब तक अरविंद की अगुवाई में ये शोर शराबा चल रहा था तो यहां गिने चुने लोग ही मौजूद थे। लेकिन रविवार को जब अन्ना इस अनशन मे शामिल हुए तो जरूर कुछ लोग घर से निकले और जंतर मंतर पहुंचे। अन्ना की वजह से ये आंदोलन शांतिपूर्ण है, वरना इस अनशन में जिस तरह उपद्रवी शामिल हैं, ये तो दूसरे ही दिन पिट पिटाकर कुछ जेल चले जाते और बाकी घर में दुबक कर बैठ जाते। मंच से कुमार विश्वास जिस तरह से अनर्गल बातें कर माहौल खराब कर रहे हैं, उससे भी आंदोलन पर खराब असर पड़ रहा है।
आप खुद भी देखें जंतर मंतर पर लगे मजमें कुछ नया भी नही है। अन्ना दो साल से एक ही बात जनता को समझा रहे हैं कि वो देश के मालिक है और संसद में बैठे लोग सेवक है। हंसी आती है उनकी बात सुनकर..। अरे अन्ना जी ये बात तो हम सब जानते है, पर हम कैसे मालिक हैं ये आप भी जानते हो। टीम अन्ना की बात करें तो वो अब बातों से हार कर गाली गलौच पर उतर आई हैं। दरअसल हर जगह कुछ ऐसे लोग होते हैं जो संतुष्ट नहीं होते। ऐसी ही एक बड़ी संख्या नौकरशाहों में है। सिस्टम से असंतुष्ट कहें, या अवसर ना मिलने से हताश कुछ नौकरशाह इस टीम के संपर्क में हैं, जो इक्का दुक्का सरकारी अभिलेख इन तक पहुंचाते हैं, जिसके बल पर ये कुछ मंत्रियों की चार्जशीट लिए फिर रहे हैं। हालाकि मैं जानता हूं कि इन्हें मेरे सलाह की जरूरत नही है, लेकिन सच ये है कि अगर आंदोलन को वाकई एक सही दिशा देनी है तो कुछ और करना पड़ेगा। टीवी चैनल और मीडिया के बूते पर आंदोलन अधिक दिन तक टिका नहीं रह सकता। आज ये पूरा आंदोलन मीडिया संभाले हुए है। बातें गांधी की करते हैं, तो दो एक चीजें उनसे सीख भी लें, और कश्मीर से कन्याकुमारी तक पदयात्रा करें। हर कोने से पदयात्रा निकालें जो एक जगह मिले। जमीन पर काम नहीं सीधे दिल्ली से टकराना आसान नहीं मूर्खता है। आप जैसा अनशन चला रहे हैं चलाते रहिए, क्योंकि आपके अनशन पर जनता को ही भरोसा नहीं है तो सरकार को क्या होगा। सब यही चर्चा कर रहे हैं, टीम अन्ना भोजन छाजन मस्ती से कर रही है।
चलिए ये तो रही बात कथित अनशन की। लेकिन जिस मांग को लेकर ये अनशन चल रहा है, वो मुद्दा कहीं पीछे छूट गया है। पिछले तीन दिनों में अन्ना ने कई न्यूज चैनल से बात की। इस बात चीत में एक नई बात सामने आई। अन्ना ने स्वीकार किया है कि अब उन्हें इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं है। इस लिए उनकी कोशिश होगी कि दो साल बाद होने वाले लोकसभा के चुनाव में देश भर में सच्चे और ईमानदार उम्मीदवार को समर्थन दिया जाएगा। मतलब अब अन्ना देश की सियासत में भी अपनी भूमिका तलाश रही है। वैसे तो इस टीम पर पहले ही आरोल लगा करता था कि ये जनलोकपाल और भ्रष्ट्राचार की आड़ में राजनीति कर रहे हैं और खासतौर पर इनके पीछे आरएसएस का हाथ है। बहरहाल इनके पीछे किसका हाथ है, ये तो टीम अन्ना ही जाने, लेकिन इतना तो साफ है कि कुछ ना कुछ तो छिपा एजेंडा जरूर है, जिस पर ये काम कर रहे हैं।
वैसे इस कथित अनशन से सरकार कनफ्यूज्ड है। मीडिया वाले जब किसी मंत्री से पूछते हैं कि आप अनशनकारियों से बात कब करेंगे ? मंत्री उल्टे सवाल पूछते हैं कि आप ही बताइये ये अनशनकारियों की मांग क्या है। बताया जाता है कि वैसे तो उनकी मांग जनलोकपाल है, लेकिन अभी वो 15 भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ जांच चाहते हैं। तब मंत्री का सवाल होता है कि अब ये मांग बेचारे प्रधानमंत्री कैसे मान सकते हैं। उनकी सूची में प्रधानमंत्री भी शामिलि हैं, फिर तो उन्हें ये मांग सरकार से नहीं करनी चाहिए। जिसके खिलाफ आप अनशन कर रहे हैं, उसी से मांग पूरी करने को दबाव बना रहे हैं, ये तो सामाजिक न्याय के भी खिलाफ है। मंत्री जी बात तो आपकी सही है, लेकिन आप ही बताएं उन्हें करना क्या चाहिए ? बोले अरे उनके यहां तो जाने माने वकील है, वो मंत्रियों के भ्रष्टाचार से संबंधित जो भी फाइलें हैं, वो लेकर सुप्रीम कोर्ट चले जाएं, जांच का आदेश करा लें।
बहरहाल सरकार और टीम अन्ना के बीच चूहे बिल्ली का खेल चलता रहेगा। ना सरकार कानून लाने वाली, ना टीम अन्ना आंदोलन खत्म करने वाली। अच्छा सरकार भी चाहती है कि ये आंदोलन चलता रहे, जिससे देशवासियों का ध्यान मुख्य समस्या से हटा रहे। टीम अन्ना भी चाहती है कि मांग पूरी ना हो, जिससे उनकी दुकान भी चलती रहे। दुश्यंत कुमार की दो लाइनें याद आ रही हैं..
कैसे मंजर सामने आने लगे हैं,
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कंवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।
टीम अन्ना के विषय में इतना सटीक लिखा है कि आनंद आ गया .आभार टीम अन्ना दिल साफ करो तब कॉग्रेस का इंसाफ करो !
ReplyDeleteशुक्रिया शिखा
Deleteटीम अन्ना दिल साफ करो तब कॉग्रेस का इंसाफ करो !
ReplyDeleteबात ये भी सही है
Deleteचूहे बिल्ली का खेल ये, देख रही सरकार
ReplyDeleteअनशन इनका फेल है, अन्ना टीम बेकार,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
हाहाहहाहा
Deleteसहमत हूं
एक एक शब्द सही कहा है आपने .मुद्दे से भटकाव स्पष्ट दृष्टि गोचर हो रहा है.सार्थक प्रस्तुति.आभार रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पाएंगे मोहपाश छोड़ सही रास्ता अपनाएं
ReplyDeleteशालिनी जी, आपका समर्थन मुझे यदा कदा ही मिलता है। आपके समर्थन से ताकत मिलती है।
Deleteमुद्दे अक्सर गौण ही हो जाते हैं हमारे यहाँ ..... शायद यही वजह है कि कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाता
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत
Deleteराम मिलाये जोड़ी..बढ़िया आलेख..
ReplyDeleteथैंक्स अमृता
Deleteराम मिलाये जोड़ी..बढ़िया आलेख..
ReplyDeletemahend ji sach se samna kar sakte ho kya ?
ReplyDeleteभाई आपके सच का सामना नहीं कर सकता। वैसे भी नाम और चेहरा छिपा कर बात करने वालों पर भरोसा करने का कोई कारण भी नहीं... मस्त रहिए अपने काम में
Deleteसार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति .. .आभार
ReplyDeletebahut achcha likha hai mahendra jayanti.
ReplyDeleteथैक्स जी
Deleteसटीक लेखन... मिलकर खेल रहे हैं, चूहे-बिल्ली का खेल, समस्याएं जहाँ की तहां... आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteसार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति .....
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार
Deleteपूरा ही लेखा सोचने को मजबूर करता हैं कि ....क्या ये अनशन सच हैं या कोई दिखावा ??????
ReplyDeleteसवाल बहुत उठ रहे हैं ...पर उत्तर नहीं हैं इन में न से किसी के पास भी ...
महेंद्र जी ऐसे बेबाक लेख लिखने के लिए आप आभार ....नयी नयी जानकारी मिलती हैं आपके लेखो में .....
रक्षा बंधन की,
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
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