Thursday, 2 August 2012

अधूरी क्रांति की खलनायक टीम अन्ना ....


टीम अन्ना को लेकर आज बहुत सारी बातें करनी हैं, लेकिन इसकी शुरुआत करते हैं अनशन खत्म करने के ऐलान से। अनशन शुरू करने के पहले तो टीम अन्ना बड़ी बड़ी बातें कर रही थी, अन्ना और उनके साथी जान देने की बात कर रहे थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक अनशन खत्म करने का ऐलान करना पड़ा। अब मंच से भले दावा किया जा रहा हो कि देश के 23 वरिष्ठ लोगों ने उनसे आग्रह किया कि अनशन से कुछ नहीं होगा, उनकी जान कीमती है, इसलिए अनशन खत्म कर दें और टीम अन्ना ने बैठक की और आपस मे ही निर्णय ले लिया कि कल यानि तीन अगस्त को पांच बजे अनशन खत्म कर दिया जाएगा। सवाल ये उठता है कि अचानक आंदोलन खत्म करने की बात कहां से शुरू हो गई ? अब जिन लोगों ने अनशन खत्म  करने की अपील की, टीम अन्ना ने उनसे पूछ कर तो अनशन शुरू नहीं किया था, फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि अनशन खत्म करने का ऐलान करना पड़ा?

सच ये है कि पहली बार सरकार ने थोड़ा बुद्धिमानी से काम लिया। अनशन की अनुमति मांगी, अनुमति दे दी गई। अनुमति के लिए दिए गए हलफनामें में जो वादा अन्ना टीम ने किया था, वो उसे तोड़ रहे थे। इस पर सरकार ने खुद कुछ कहने के बजाए, पुलिस को आगे किया और कहा कि जहां कहीं भी कानून की अवहेलना हो तो पुलिस ही उससे निपटे। पुलिस के लिए इस आंदोलन से निपटने की चुनौती थी। इस बीच नवनियुक्त गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सीधे तौर पर भले ही कुछ ना कहा हो, परंतु उन्होंने टीम अन्ना को उनकी लक्ष्मण रेखा की याद इशारों इशारों में जरूर दिला दी। इससे पुलिस को भी बल मिला और पुलिस मुख्यालय पर लगातार बैठकें होने लगीं, और सरकार खामोश रही। पुलिस कार्रवाई की आशंका ने टीम अन्ना को बुरी तरह हिला कर रख दिया। उन्हें मीडिया के कुछ साथियों और सरकारी तंत्र के जरिए सूचना मिलने लगी कि पुलिस कभी भी एक्शन में आ सकती है। उन्हें याद दिलाया गया कि रामलीला मे मैदान में रामदेव के साथ तो रात में हजारों लोग होते थे, फिर भी पुलिस ने उन्हें ठिकाने लगा दिया, यहां तो रात में गिने चुने लोग ही होते हैं। ऐसे में पुलिस कार्रवाई टीम अन्ना को मंहगी पड़ सकती है।

बहरहाल जिस तरह से इस अनशन को खत्म करने का निर्णय लिया गया, इससे टीम अन्ना की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। टीम अन्ना कल तक कुछ लोगों के लिए भले ही हीरो रही हो, पर आज देश के सामने उसकी इमेज एक खलनायक की बन गई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रहे आंदोलन को देशवासियों ने भरपूर समर्थन दिया, इस मुद्दे पर मिल रहे समर्थन से टीम अन्ना बहक गई, टीम के सदस्यों को लगने लगा कि ये समर्थन मुद्दे को नहीं बल्कि उन्हें मिल रहा है। ऐसे में उनका बेलगाम होना स्वाभाविक था। सरकार से तो वो दो-दो हाथ पहले से कर रहे थे, फिर उन्होंने विपक्ष की ईमानदारी पर भी सवाल खड़े करने शुरू किए, चलिए यहां तक सब ठीक था। पर अब ये इतने बिगड़ैल हो गए है, जिस मीडिया ने इनका पूरा आंदोलन खड़ा किए, अब ये उसी मीडिया पर हमला कराने लगे। इन्होंने देखा कि अब मीडिया भी इस आंदोलन से किनारा कर रही है, ऐसे में पुलिस कार्रवाई हुई तो पूरा आंदोलन तितर बितर हो जाएगा। लिहाजा पीछे हट जाना ही बेहतर है।

हां एक बात और....। जब इतना बड़ा आंदोलन चल रहा हो और उसमें आंदोलन की अगुवाई करने वालों की विश्वसनीयता पर उंगली उठने लगे, तब समझ लेना चाहिए आंदोलन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। अरविंद केजरीवाल के साथ ही दो अन्य लोगों पर आरोप लगा कि इनके अनशन में ईमानदारी नहीं है यानि ये सभी अनशनकारी मंच के पीछे बने कैंप में खाते पीते रहते हैं। ये चर्चा जब ज्यादा होने लगी तो मीडिया ने अरविंद से कैमरे के सामने पूछ भी लिया कि आपके अनशन में ईमानदारी नहीं है। इस सवाल पर केजरीवाल भी थोड़ा असहज हो गए, पर बाद में उन्होंने बात को संभालते हुए कहा कि हां डाक्टर भी कह रहे हैं कि उनकी मेडिकल साइंस हमारे अनशन को लेकर फेल हो गई है। बहरहाल देखा गया कि जब से ये बात शुरू हुई, उसके अगले ही दिन से खबर दी जाने लगी कि अनशनकारियों की तबियत बिगड़ रही है और इस आंदोलन को अचानक विराम देने का फैसला सुना दिया गया। बहरहाल ये आंदोलन जिस तरह खत्म हुआ है, इससे देश को दो बड़ा नुकसान हुआ है। एक तो भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में बने माहौल पर पानी फिर गया दूसरे अब ऐसा आंदोलन खड़ा करना आसान नहीं होगा। दूसरे लोग सड़क पर उतरने के पहले सौ बार सोचेंगे।

वैसे अगर आप इस आंदोलन को शुरू से देखें तो लगातार इस पर आरोप लगता रहा है कि इनके आंदोलन के पीछे कुछ छिपा एजेंडा है। ये बात आज साबित हो गई। अन्ना ने राजनीतिक विकल्प देने का ऐलान कर दिया। सच तो ये है कि टीम अन्ना राजनीतिक एजेंडे पर शुरू से ही काम कर रही थी। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि शुरु में इस आंदोलन की बुनियाद आरएसएस ने ही रखी। बाद में जब टीन अन्ना की छीछालेदर होने लगी कि तो टीम अन्ना ने संघ से दूरी बनानी शुरू की। इस दूरी के बाद सच कहा जाए तो आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया। टीम के हर सदस्य की राय अलग अलग हो गई। हर मुद्दे पर आंदोलन भटकता नजर आने लगा। टीम के सदस्यों में दूरी ही नहीं मतभेद की खबरें आम हो गईं। बाबा रामदेव के मुद्दे पर तो टीम अन्ना पूरी तरह बिखर सी गई थी। सबकी अलग अलग राय सामने आ रही थी। बहरहाल टीम अन्ना को इस बात पर भी मंथन करना चाहिए कि आंदोलन से एक एक करके तमाम लोग उनका साथ क्यों छोड़ गए ?

अगर मुझसे कोई इस बात का जवाब मांगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसका सिर्फ एक कारण है और वो है अरविंद केजरीवाल का अहम, अरविंद केजरवाल की बदजुबानी, अरविंद केजरीवाल का निरंकुश आचरण, अरविंद केजरीवाल की मनमानी, केजरीवाल का बड़बोलापन और सबसे बड़ा उनका घमंड। बातचीत का तौर तरीका भी ऐसा कि उनसे लोग बात करने से भी परहेज ही करते रहे। अरविंद की जगह कोई और होता, जिसमें सहनशीलता और दूसरों के साथ अच्छा सूलूक करने की कला होती, तो शायद जनलोकपाल बिल पास भी हो जाता। इनके अनैतिक  रवैये के कारण सरकार के मंत्री इनसे बात करने से ही कतराने लगे। अरविंद एक बात बार- बार दुहराते हैं कि संसद में 160 दागी सांसद बैठे हैं। ये बात बिल्कुल सही है कि इस  संसद में 160 दागी हैं। लेकिन अरविंद के पास इस बात का क्या जवाब है कि इन सांसदों ने चुनाव के पहले अपने नामांकन पत्र में साफ कर दिया कि उनके ऊपर कौन कौन से मामले विचाराधीन है। इसके बाद भी जनता ने उन्हें चुना है। अब आप उसी बात को बार बार दुहराते है, इसका मतलब क्या है ? क्या आपको देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरोसा नहीं है। मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आज अन्ना अगर मुंबई में रहने के दौरान उन पर लगे आरोपों के बारे में लोगों को सच सच बता दें, तो जनता की नजरों से गिर जाएंगे, उनके साथ लोग बिल्कुल खड़े नहीं हो सकते। खैर.. आपने इतना बड़ा आंदोलन चलाया, चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में तमाम जिलों मे दौरा कर सभाएं की,  लोगों को बताने की कोशिश की कि दागी और भ्रष्ट उम्मीदवारों से दूरी बनाएं। क्या उत्तर प्रदेश मे दागी चुनकर नहीं आए ? मुझे तो लगता है कि टीम अन्ना का मकसद भी कोई बहुत बड़ा बदलाव लाने का नहीं है, वो महज सक्रिय राजनीति में अपना दाखिला भर चाहते हैं।

आज जब मंच से अन्ना और केजरीवाल ने इशारों-इशारों में राजनीति में आऩे का ऐलान किया तो मुझे हंसी आ रही थी, मैं सोच रहा था कि ये अभी तक क्या कर रहे थे। क्या ये राजनीति नहीं कर रहे थे ? चुनावी मैदान में एक राजनीतिक दल की तरह सभाएं करते रहे। हरियाणा में तो कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ ना जाने कितनी सभाएं की गईं। राजनीतिक दलों के काम को अच्छा बुरा बताते रहे। अब कौन सी राजनीति करेंगे ये, भाई यही तो राजनीति है। बहरहाल टीम अन्ना और कांग्रेस के बीच जो लड़ाई चल रही थी, उसमें टीम अन्ना लोकपाल बिल मांग रही थी, कांग्रेस कह रही थी कि आप चुनाव जीत कर आएं और अपने मनमाफिक बिल बना लें। खैर टीम अन्ना को बिल तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने राजनीति में आने का लगभग फैसला कर लिया, जो मांग उनसे कांग्रेस लगातार कर रही थी। ऐसे में अगर हार जीत की बात की जाए, तो निश्चित ही इसमें कांग्रेस की जीत  हुई है।

हां एक बात अन्ना की भी कर ली जाए। अन्ना बार बार कहते हैं कि वो भीतर नहीं जाएंगे, मतलब संसद में नहीं जाएंगे। मैं अन्ना के गांव रालेगनसिद्धी हो आया हूं और मैं चुनौती देता हूं कि अन्ना लोकसभा, विधानसभा चुनाव तो दूर अपने गांव में प्रधान का चुनाव जीत कर दिखाएं। इनका गांव ही नहीं बल्कि आसपास का पूरा इलाका एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का समर्थक है और यहां से उन्हीं की पार्टी की अक्सर जीत होती है। ऐसे में अन्ना वहां अपने ही गांव से चुनाव नहीं जीत सकते। यही वजह है कि जब भी चुनाव की बात होती है, अन्ना पहले ही हाथ खड़े कर देते हैं कि वो अंदर नहीं जाएंगे। अच्छा कई बार उनकी बातों से हंसी आती है, राष्ट्रपति के चुनाव के पहले उन्होंने कहा कि वो राष्ट्रपति बनने के इच्छुक नहीं हैं। अब सवाल ये उठता है कि उन्हें राष्ट्रपति बना कौन रहा था ? कांग्रेस ने या फिर बीजेपी किसी ने उन्हें उम्मीदवार बनाने की बात की थी क्या ? फिर अन्ना जी मेरा ये मानना है कि राष्ट्रपति को कम से कम पढा लिखा तो होना ही चाहिए। आप क्यों बेवजह हर जगह अपना नाम लेने लगते हैं, जबकि कोई आपको पूछता तक नहीं है।

बहरहाल भ्रष्टाचार की इस लड़ाई से जिस तरह टीम अन्ना पीछे हटी है, उससे सामाजिक  आंदोलनों  को झटका लगा है। आज टीवी चैनलों पर बहस के दौरान कांग्रेस नेता बहुत उत्साह के साथ बात करते नजर आए। अब तो सबसे बड़ी मुश्किल होगी बाबा रामदेव के साथ। कालेधन पर रामदेव का अनशन नौ अगस्त से शुरू हो रहा है, अन्ना टीम के पीछे हटने सरकार को ताकत मिली है। सरकार को लग रहा है कि आंदोलनकारियों से बातचीत का कोई मतलब नहीं है। बात करने से इनका दिमाग सातवें आसमान पर होता है। लिहाजा इनसे बात करने का कोई मतलब ही नहीं है। टीम अन्ना ने देश को इस हालात में पहुंचा दिया कि अब यहां सामाजिक आंदोलन करने के पहले लोगों को सौ बार सोचना होगा। आखिर में टीम अन्ना को सिर्फ एक सलाह...

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए
औरन को शीतल करे,आपहूं शीतल होए।



32 comments:

  1. नायक से खलनायक,आज बन गए है अन्ना
    गाँव रालेगनसिद्धी जा के, बैठकर चूसे गन्ना,,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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    1. हाहहाहाहहा
      भ्रष्टाचार खत्म करने चले थे, अब उनके सहयोगी बनेंगे

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  2. सही तस्वीर पेश की है आपने ..आपकी चिंता बाजिब है कि अब देश की जनता को ऐसे आंदोलनों से जुड़ने से पहले सौ - सौ बार सोचना होगा ..हर कोई छल रहा है इस देश की जनता को चाहे वह टीम अन्ना हो या बाबा रामदेव ...!

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  3. राहुल की खातिर करे, रस्ता अन्ना टीम ।
    टीम-टाम होता ख़तम, जागे नीम हकीम ।

    जागे नीम-हकीम, दवा भ्रष्टों को दे दी ।
    पॉलिटिक्स की थीम, जलाए लंका भेदी ।

    ग्यारह प्रतिशत वोट, काट कर अन्ना शातिर ।
    एन डी ए को चोट, लगाएं राहुल खातिर ।।

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    1. हां इसे इस तरह भी सोचा जा सकता है

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  4. वैसे भी यह जुड़ाव जैविक भी है आत्मिक भी आखिर बच्चा माँ की गर्भ नाल से नौ मॉस तक जुदा पोषण पल्लवन प्राप्त करता .जन्मोत्तर स्तन पान ही उसका प्राथमिक आहार होता है .माँ सजती संवरती है तो वह खुश होता है उसका बस चले तो वह भी मेक अप मेन बन जाए वह भी माँ को सजाये संवारे .बच्चे का यह फूल लाना माँ को देना इसी कोमल भावना का प्रतीक है .
    बहुत सुन्दर भावानुवाद है रविकर जी पोस्टों का .

    आपके इस लेख के सन्दर्भ में एक दो बातें -आपने कहा है -
    "" फिर अन्ना जी मेरा ये मानना है कि राष्ट्रपति को कम से कम पढा लिखा तो होना ही चाहिए। आप क्यों बेवजह हर जगह अपना नाम लेने लगते हैं, जबकि कोई आपको पूछता तक नहीं है।"
    भाई साहब ग्यानी जेल सिंह और फखरुद्दीन अली एहमद के बारे में आपकी क्या राय है .
    आन्दोलन की निरंतरता के लिए केजरीवाल साहब की जान बचाना ज़रूरी था .
    हम उस देश में रहतें हैं जिसमे ये लेफ्टिए वीर सावरकर को भी अंग्रेजों का पिठ्ठू कहके उनका उपहास उड़ाते आयें हैं .एक नाम- चीन पत्रकार तो कागद कारे में घोषित करते थे मैं नित्य कर्म की तरह संघ को कोसता हूँ .सुबह उठके गाली देता हूँ .

    नौ अगस्त (मेरठ से १९४२ की चिंगारी यहीं से शुरु हुई थी )आने दीजिए आपके मौन सिंह १५ अगस्त को लाल किले पर नहीं चढ़ पायेंगें .चढ़ेंगे तो सरकार उससे पहले कुछ गुल खिल वा देगी .रामदेव सांप्रदायिक दंगे में मारे भी जा सकतें हैं .

    सरकार साम्प्रदायिक दंगा करवा सकती है .कुछ लोगों की हिफाज़त के नाम पर विशेष धाराएं लागू करके उन्हें किशन -बाल की तरह कारावास में भी डाल सकती .यहाँ ऐसा करना नियम है अपवाद नहीं .
    रही इस देश को चलाने की बात तो पूडल राज में इस देश को तेल निगम और पुलिस ही चला रही है .
    आंतकवादियों का स्थानीय स्लीपिंग सेल पुणे में रिहर्सल कर रहा है बड़े विस्फोटों की .साम्राज्ञी चुप्पी साहदे हैं और यह म्याऊ सिंह बेचारा बोलना तो चाहता है ,आवाज़ ही नहीं निकलती .
    अन्ना चोर दरवाज़े से कुछ नहीं करेंगे इस मौन सिंह की तरह जो कागज़ पर असम वासी है .पिछले दरवज्जे से आतें हैं लडवा लो अपने पूडल और महारानी को अन्ना के खिलाफ .दूश का दूध और पानी का पानी हो जाएगा .

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    1. आपकी भावनाओं का मैं आदर करता हूं, पर समर्थन नहीं..
      रही बात कि केजरीवाल की जान को खतरा था... मुझे लगता है कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं था, क्योंकि इस बार तो अनशन की ईमानदारी पर ही सवाल खड़े हो गए थे, कहा जा रहा था कि अनशनकारी खा पी रहे थे.. डाक्टरों ने ये बात इशारे में कहा कि यहां मेडिकल साइंस फेल हो गया।

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  5. भ्रष्टाचार की लड़ाई से जिस तरह टीम अन्ना आगे आई थी पर अचानक इस तरह पीछे हट रही है कुछ समझ नही आरहा है..

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    1. इन्होंने ऐसा कुकर्म किया है कि आने वाले समय में देश में सामाजिक आंदोलन कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे..

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  6. हमेशा की तरह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  7. एक अहम् मुद्दा और अहम सवाल कि इस देश के बारे में ईमानदारी से कोई कब सोंचेगा ???

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  8. महेंद्र जी, अन्ना टीम के राजनीतिक एडवेंचर को लेकर मैं भी चिंतित हूँ और उसका समर्थन नहीं करता हूँ पर आपके लेख के तेवर से यह साफ़ दिखता है कि आपने संतुलित और तार्किक तरीके से इस आंदोलन का मूल्यांकन करने की कोशिश नहीं की. ऐसा लगता है कि आप पहले से अन्ना, केजरीवाल और इस आंदोलन से ख़ार खाए बैठे थे और बस आपने अपनी भड़ास निकाल दी है.
    किसी पर आरोप लगा देना बड़ा आसान है कि वो अनशन के दौरान पीछे जा-के खा पी रहा था.. आपको या जिन लोगों को इस बात का शक था वो दूसरे डॉक्टरों से उनका मेडिकल चेकअप करवा सकते थे. आरएमएल के डॉक्टर्स ने किया भी था परीक्षण.. आपको लगता है कि इस बात का ज़रा भी शक होता तो सरकारी डॉक्टर बताने से पीछे हटते..
    आपके पूरे लेख पर ही आपत्ति है लेकिन आपका लेख इतना छिछला है कि इससे अधिक विस्तृत जवाब देना जरूरी नहीं समझता...
    देश के राष्ट्रपति का पढ़ा-लिखा होना जरूरी है, अन्ना गाँव के प्रधान का चुनाव भी नहीं जीत सकते, अन्ना को तो कोई पूछता भी नहीं...
    इन सब बातों पर बस हँसी आ रही है...

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    1. अगर आपने लेख को गंभीरता से पढने की कोशिश की होती तो कमेंट करने के पहले सोचते.. अनशनकारी भोजन कर रहे थे, ये मै नहीं कह रहा, इस बात पर अरविंद को चैनल वालों ने कटघरे में खड़ा किया था।

      ये सौ फीसदी सही है कि अन्ना अपने गांव में चुनाव नहीं जीत सकते। जो प्रधान इस समय है, वो एनसीपी के सक्रिय कार्यकर्ता है।

      आप लोग बिना अन्ना के गांव गए हुए ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचे हुए हैं, मैने कई दिन अन्ना के गांव में बिताया है।
      और हां ये सही बात है आज कल नौजवानों के सामने पढाई लिखाई की बात हो तो उन्हें हंसी ही आती है। वैसे अब पुराना वक्त नहीं रहा कि बिना पढा लिखा आदमी देश का शिक्षामंत्री हो जाता था, अब 21 वीं सदी में हमे अपने रहनुमाओं से पढे लिखे होनें की उम्मीद रखनी ही होगी। इसमें आपको हंसी आती है तो बेशक हसिए.. कोई रोकता है

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  9. जो लोग भ्रष्टाचार को शासन का मसला समझ कर इसे राजनीतिक स्तर पर हल करना चाहते हैं, वे सरासर ग़लतहैं. भ्रष्टाचार समाज में हरेक स्तर पर मौजूद है. समाज को नैतिक रूप से मज़बूत किये बिना भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता, राजनीतिक भ्रष्टाचार को भी नहीं क्योंकि राजनेता समाज से ही आते हैं.
    यह सच्चाई वे लोग भुला देते हैं जो भ्रष्टाचार को मिटाना नहीं चाहते बल्कि अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते हैं.
    अरविन्द केजरीवाल ऐसे ही एक महत्वाकांक्षी आदमी मालूम होते हैं. अन्ना और जो भी उनके साथ है, वह या तो उनके जैसा है या फिर इस्तेमाल हो रहा है. अब ये लोग राजनीति में आने वाले हैं तो ये भी उन लोगों जैसे ही हो जायेंगे जो लोग इनसे पहले राजनीति में मौजूद हैं.

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    1. देश को लोकपाल मिल जाता, अगर टीम अन्ना अहंकारी ना और बदजुबान ना होती

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  10. कल 05/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. bas itana hi ...anna par se vishwaas toot gaya hai...

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  12. श्रीवास्तव जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'आधा सच' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 4 अगस्त को 'अधूरी क्रांति की खलनायक टीम अन्ना' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  13. vaise team anna ke aandolan ko jis tarh media ne badha chadha kar banaya usi media ne team anna ki bakhiya bhi udhedi aur aandolan ki dhajjiyan uda di.
    ha isme team aana ne bhi apna roll nibhaya hai .lekin nukasan desh ka hi hua hai..jis yuva ko ye vishvas team anna ne dilaya tha ki aandolan se mudde jeete ja sakte hain vahi yuva ab bramit hai ki ise sach mane ya nahi..
    ye ek poori generation ke vishvas par kutharaghat hai.aur behad afsosjank hai.

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    1. बिल्कुल इससे सामाजिक आंदोलनों को बड़ा झटका लगा है।

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  14. संतुलित लेख .... कभी कभी आगे बढ्नेके लिए पीछे भी हटना पड़ता है ... लेकिन सुधार के लिए ईमानदारी ज़रूरी है ... आम आदमी तो हर तरफ से ठगा ही जा रहा है ॥

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    1. बिल्कुल... आमआदमी तो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है

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  15. बात आपकी सही है कि सार्वजनिक मंचों से संयत भाषा का प्रयोग ही करना चाहिये.

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    1. भाषा की मर्यादा की बात की जाए तो टीम अन्ना सड़क छाप और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया है। दरअसल अनशन स्थल पर लंपट युवा यही भाषा समझ सकते थे, इसलिए टीम की मजबूरी थी, घटिया बातें करने की।

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  16. आदरणीय वीरू भाई की बातें विचारणीय लगती हैं...
    सादर

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।