आप सोच रहे होंगे अरे भाई रात भर जागने का क्या मतलब है, क्या लोग इतना काम करते हैं कि रतजगा करना पड़ता है, तो मैं आपको बता दूं ये काम के चलते नहीं जागते। इंदौरी सच में बहुत चटोरे यानि खाने पीने के शौकीन हैं। यहां लोग डिनर के बाद जितना कुछ मीठा और चटपटा खाते हैं, हम पूरे दिन उतना नहीं खा सकते। मैं बात कर रहा हूं इंदौर के सर्राफा बाजार की, जहां शाम होते ही सोने चांदी की दुकानें बंद हो जाती हैं और ये पूरा बाजार सज जाता है खाने पीने के व्यंजनों से। खैर कुछ चीजें शहर के मिजाज पर भी निर्भर होती हैं। यात्रा के इसी क्रम में मेरा एक प्रवास इंदौर में भी रहा है। पिछले हफ्ते की ही बात है मुझे उज्जैन जाकर बाबा महाकालेश्वर का दर्शन करना था। इसके लिए मैं इंदौर पहुंचा अपने इंजीनियर मित्र श्री एस एस वर्मा जी के घर। उनकी पत्नी कविता वर्मा जी वैसे तो मैथ की टीचर हैं, पर उनकी ब्लाग लिखने में बहुत ज्यादा रुचि है। काफी समय से वो इस ब्लाग परिवार से जुडी हुई हैं।
मालपूआ
वर्मा जी के यहां मैं दोपहर में पहुंचा और घंटे भर बाद ही हम बाबा के दर्शन को उज्जैन के लिए रवाना हो गए। डेढ घंटे के सफर के बाद हम बाबा के मंदिर में थे और खूब अच्छी तरह से दर्शन के बाद हम वापस इंदौर आ गए। एक छोटे से वाकये का अगर यहां जिक्र ना करुं तो ऐसा लगेगा कि बात अधूरी रह गई। बिल्कुल शहर में आकर हम घर का रास्ता भूल गए। लोगों से पूछते पाछते आगे बढ रहे थे। काफी पूछताछ कर चुके लेकिन घर तक पहुंच नहीं पा रहे थे, हमने सोचा रास्ता आटो वाले से पूछते हैं, वो ठीक से बता देगा। बस फिर क्या एक आटो वाले से रास्ता पूछ लिया, बेचारा बहुत ही आत्मीयता से आटो से उतर कर हमारी गाडी के पास आया और रास्ता समझाने लगा। लेकिन जब तक वो दूर था तो रास्ता बता रहा था, पास आकर जब उसने मुझे देखा तो एक आफर दिया, बोला आप 50 रुपये दो हम आटो से आगे आगे चलते हैं आप मेरे पीछे आ जाओ। मेरी बोलती बंद हो गई। खैर मैने तुरंत अपनी शकल शीशे में देखी, क्या सच में मैं देखने में बेवकूफ लगता हूं ? इस आटो वाले ने आखिर ऐसा क्यों कहा। बहरहाल हम उसके बताए रास्ते पर कुछ ही दूर आगे बढे कि एक ऊंची बिल्डिंग से हमें रास्ते की पहचान हो गई। लेकिम मैं आज भी उस आटो वाले को भुला नहीं पाया हूं।
वैसे तो मैं अपने परिवार से 700 सौ किलोमीटर से ज्यादा दूर था, लेकिन यहां सब लोगों के साथ वाकई नहीं लगा कि मैं अपने घर में नहीं हूं। दरअसल वर्मा जी के परिवार और हमारे परिवार में एक बडी समानता है। वर्मा जी की दो बेटियां हैं और मेरी भी। अंतर महज इतना है कि मेरी बडी बेटी की 11 वीं की स्टूडैंट है और वर्मा जी की छोटी बेटी इसी क्लास में पढ रही है। हां और एक दोनों में अंतर भी है। मैं नानवेज का शौकीन लेकिन पूरा वर्मा परिवार संत है, हालाकि हमारे यहां मैडम भी शाकाहारी ही हैं। बात खाने की शुरू ही हो गई है तो इंदौर के सर्राफा बाजार का एक चक्कर लगा ही आते हैं। सच कहूं तो इंदौर की कोई शाम सर्राफा बाजार के बगैर पूरी हो ही नहीं सकती। शाम सात बजे से इस बाजार में रौनक शुरू होती है और देर रात दो बजे कई बार तो तड़के तीन बजे तक यहां ऐसी चहल पहल रहती है, जैसे शाम के छह बज रहे हों। दरअसल इंदौर में मुझे एक रात ही रुकना था और हम इस दिन को पूरी तरह यादगार बना देना चाहते थे। उज्जैन से वापस लौटने के बाद थोड़ी थकान थी, क्योंकि पूरी रात ट्रेन का सफर करके यहां पहुंचे थे और उसके तुरंत बाद उज्जैन से आए थे। लिहाजा हम सब डिनर के लिए चले गए इंदौर के नामचीन क्लब साया जी। अच्छा क्लब है, शाम को एक हजार के करीब लोग यहां मौजूद रहते हैं। ट्रिपल डी यानि ड्रिंक्स, डिनर डांस सबकुछ यहां सलीके से चलता रहता है। साया जी में डिनर करते हुए ही 11 बज चुके थे, इस समय आमतौर पर लोग सोने की तैयारी या यूं कहे कि सो चुके होते हैं। पर इंदौर का क्या कहना। यहां से हमारी सवारी निकल पड़ी मशहूर सर्ऱाफा बाजार के लिए।
इतनी रात में सर्राफा बाजार की चकाचौंध वाकई मेरे लिए चौकाने वाली थी। लग ही नहीं रहा था कि इस वक्त रात के एक बजने वाले हैं। पकवानों के नाम गिना दूं तो आपके मुंह में भी पानी आ जाएगा। रबडी, गुलाब जामुन, मालपुआ, कलाकंद, गाजर का हलवा, श्रीखंड,कुल्फी, पानी पूरी, पाव भाजी, चाट, चाईनीज, साबूदाने की खिचड़ी, आलू टिक्की, मसाला डोसा, पिज्जा, खमड, मूंगदाल, बर्फ का गोला, सैंडविच, फाफडा, गराडू ये सब तो उन चीजों के नाम मैने गिनाएं जिन्हें मैं जानता था। सैकडों ऐसे पकवान जो मेरे लिए नए थे। वर्मा जी और कविता मैडम का लगातार आग्रह कि मैं यहां भी कुछ व्यंजनों का स्वाद लूं, पर सच बताऊं पेट ने बिल्कुल हाथ खड़े कर दिए। हालाकि ये बात तो मैने पहले ही बता दिया था कि अब मेरे लिए तो कुछ भी खाना संभव नहीं है, लेकिन कविता जी को लग रहा था कि शायद बाजार घूमें तो खाने का लालच आ जाए, और मैं कुछ चीजें खाने को तैयार हो जाऊं, पर सच में मुश्किल था अब मेरे लिए।
ओह.. एक बडी गल्ती हो गई हम सीधे डिनर पर आ गए, लंच की बात ही छोड़ दी मैने। लंच के दौरान इंदौरी सेव की सब्जी की बात ना हो तो खाने की बात पूरी हो ही नहीं सकती। मैं दो साल पहले रतलाम से एक शूट पूरा करने के बाद दिल्ली वापस आ रहा था तो मुझे इंदौर से फ्लाइट लेनी थी। उस समय इंदौर पहुंचने पर हमने किसी होटल में लंच किया तो वहां हमने पहली बार सेव की सब्जी खाई। मुझे ही नहीं पूरी मेरी टीम को ये सब्जी बहुत अच्छी लगी। ये स्वाद मुंह में लगा हुआ था, इसलिए मैने इंदौर में कविता जी से इस सब्जी के बारे में बात की। उन्होंने मुझे बताया नहीं कि मैं लंच में ये सब्जी भी बना रही हूं, पर खाने की टेबिल पर इस सब्जी की वजह से मेरा भोजन ज्यादा हो गया। इतना ही नहीं आप हैरान होंगे कि मैं 12 घंटे से ज्यादा का सफर करके अगले दिन जब दिल्ली वापस आया तो हमने अपने घर भी सेव की सब्जी खुद ही बनाई और सबने इसका स्वाद लिया।
बात खाने पीने की चल रही है तो ये बात पूरी ही कर ली जाए। बीजेपी नेता सुमित्रा महाजन दिल्ली में हर साल पत्रकारों को लंच पर बुलाती हैं और यहां लंच में दाल बाफले होता है, जिसे बनाने के लिए खासतौर पर इंदौर से कारीगर आते हैं। मैने दाल बाफले का नाम भी पहली दफा यहीं सुना। इंदौर पहुंचा तो मुझे दाल बाफले की बात याद आ गई। मैने बातचीत के दौरान इसकी चर्चा कविता जी से कर दी। मेरा चर्चा करना की अगली सुबह दाल बाफले की पार्टी हो गई। भाई क्या कहूं दाल बाफले के बारे में..। मैनें तो सच में बहुत स्वाद लेकर खाया। आज हफ्ते भर बाद जब इसकी बात कर रहा हूं तो लग रहा है कि दाल बाफले की प्लेट सजी है और मैं बेटी क्रुति और कविता जी के साथ भोजन कर रहा हूं। हालाकि मुझे जो लोग थोडा़ भी जानते हैं तो उन्हें पता है कि मैं नानवेज का बहुत ज्यादा शौकीन हूं, कहीं भी रहूं रात में नानवेज खाना ही है. इसे आप मेरी कमजोरी या फिर बीमारी कहें तो भी मुझे ऐतराज नहीं है। लेकिन दो दिन मैने नानवेज बिल्कुल नहीं छूआ, और सच कहूं मुझे नानवेज की याद भी नहीं आई। अगर नानवेज की कमी खली होती तो मैं इंदौर से दिल्ली आने पर पहले नानवेज बनाता इंदौरी सेव की सब्जी थोड़े बनाता।
हां दो लाइन मे अपनी बात भी कर लूं, आमतौर पर मीडिया को लेकर लोगों में तरह तरह की चर्चा होती है, मुझे लगता है कि नकारात्मक बातें ज्यादा ही होती है। लेकिन जर्नलिस्ट किस तरह अपनी जान को जोखिम में डालकर किसी मामले की रिपोर्ट करते हैं, ये सिर्फ कविता जी के लिए नहीं बल्कि बच्चों के लिए भी नई जानकारी थी। मैंने 1989-90 का वो वाकया उनके साथ शेयर किया, जब मैं एक अखबार में काम करने के दौरान बोड़ो आंदोलन के मुखिया उपेन ब्रह्मा से बात चीत करने कोकराझाड़ के जंगलो में तीन दिन रहा। अरुणांचल के पूर्व मुख्यमंत्री दोरांजी खांडू तवांग से वापस लौटते हुए जिस हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे गए, मैं भी उसी हेलीकाप्टर में एक केंद्रीय मंत्री के साथ गुवाहाटी से तवांग जाते समय तूफान में फंस गया था। मौत के मुंह में 18 सदस्यीय टीम को जाते देख रहा था, उस वक्त मैने खुद महसूस किया कि हम सब अपनी जान से कितना प्यार करते हैं। कोई ऐसा नहीं था जो हंसी खुशी मरने के लिए तैयार हो। खैर एक प्रशंगवश मैंने इस बात का जिक्र कर दिया।
एक बात का जिक्र मैं करना चाहता हूं, हालाकि मुझे पता है कि कविता जी को मेरी ये बात ठीक नहीं लगेगी। हो सकता है कि इसके बाद वो दो चार दिन मुझसे नाराज भी रहें, लेकिन जिक्र करना जरूरी है। कविता जी को कार ड्राइव करने का बहुत शौक है, मुझे भी उनके साथ कार में सवारी करने का मौका मिला, बहरहाल हुआ तो कुछ नहीं, लेकिन जब तक कविता जी कार चला रहीं थी, मैं तो शर्ट की जेव में रखे साईंबाबा की तस्वीर को ही याद करता रहा। रेड सिंगनल क्रास करना, वनवे को नजर अंदाज करना, कार को दूसरे गियर से उठाना तो कविता जी के लिए सामान्य बात है। हां भगवान की ही कृपा थी कि कार एक ठेला गाडी में ठुकते ठुकते बच गई। बहरहाल उनके साथ कार का सफर सच में यादगार है, जो आसानी से नहीं भूलाया जा सकता। मजेदार बात तो तब हुई जब हम सब डिनर पर साया जी क्लब ले गए। यहां भी बात शुरू हो गई कार ड्राईविंग की। कविता जी ने पहले बच्चों से फिर वर्मा जी से ये कहलवा लिया कि हां वो बहुत बढिया ड्राइव करती हैं। मुझसे पूछा गया कि मेरी राय क्या है। मैने कहा कि हां ड्राइव कर लेती हैं, पर बढिया करती हैं, मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता हूं। मैने देखा कि कविता जी को मेरी बात अच्छी नहीं लगी, सोचा डिनर का स्वाद फीका हो जाएगा, इसलिए मैने भी हा में हां मिलाया और कहा कि नहीं नहीं आप बहुत अच्छा ड्राइव करती हैं, मैं तो मजाक कर रहा था।
खैर खाने पीने की बात तो अलग है, लेकिन मैं बार बार एक बात दुहराना चाहता हूं कि इस ब्लाग परिवार को हम ब्लाग परिवार कह कर इसको कम करके आंकते हैं। यहां सच में सभी लोग बहुत व्यस्त हैं। यहां मकान दूसरी और तीसरी मंजिल को बनाने का काम भी चल रहा है। इसके चलते लगातार मार्केट आना जाना भी लगा रहता है। पर सच कहूं दो दिन कैसे सबके साथ बीत गया, बिल्कुल पता नहीं चला। यहां अपनापन, स्नेह, प्यार, सम्मान सब कुछ तो है। ये सम्मान ही मुझे प्रेरित करता है कि जहां कहीं भी जाऊं, ब्लागर साथियों से जरूर मुलाकात करूं। 23 जनवरी 29 फरवरी तक उत्तर प्रदेश के 50 से ज्यादा जिलों में चुनाव परिचर्चा करना है। देखिए लौट कर बताऊंगा कि कितने लोगों का साथ मिला।
अब देखिए कुछ तस्वीरें....
पाव भाजी
स्वादिष्ट मिठाइयां
आलू की टिक्की
गराडू
छेने का रसगुल्ला और रस मलाई
गरम गरम समोसे
इंदौरी पोहा
वाह- गरम गरम जलेबी
दही बडे का मसाला
वैसे जी तस्वीरें तो मैं एक से बढ़कर एक दिखाता रहूंगा, इससे तो बस आपकी और हमारी लालच ही बढेगी। मैं एक बार इंदौर का दौरा सिर्फ इसलिए करना चाहता हूं कि सर्ऱाफा बाजार का खूब आनंद ले सकूं। फिर मिलते हैं किसी नए सफर पर....
आज की पोस्ट बड़ी स्वादिष्ट निकली..
ReplyDeleteसच में मुझे भी ऐसा ही लग रहा है
Deleteइतनी लजीज पोस्ट्स मत लगाया करो
ReplyDeleteजी अब ध्यान रखूंगा
Deleteइंदौर कहाँ और हम कहाँ ... मुंह में पानी आ गया
ReplyDeleteहाहाहााााहहााहहाहा
Deleteवाह वाह ...बहुत बढ़िया पोस्ट ...अगली बार जाएँ तो पेटिस खाएं और ....शिकंजी ज़रूर पियें.....ये दोनों चीज़ें कैसे छूट गयीं ....?पेटिस छप्पन दुकान की भी बहुत अच्छी है ....!!
ReplyDeleteजी, ये शिकायत तो मुझे कविता जी से करनी पडेगी।
Deleteकविता जी से शायद हम जुडे हुये हैं उनके ब्लोग के माध्यम से और शायद वो फ़ेसबुक पर भी हैं यदि वो ही कविता वर्मा हैं जो टीचर हैं और जिन्होने शायद अपनी कार ड्राइविंग का एक संस्मरण भी लगाया है ………बताइयेगा जरूर उनसे पूछकर या उनके ब्लोग का लिंक देकर्………वैसे तस्वीरों को देख मूँह मे पानी आ गया और सेब की सब्ज़ी की रेसिपी तो आपने लिखी नहीं……:))))
ReplyDeleteजी, आपने ठीक पहचाना। कविता जी ने खुद ही आपकी शंका का समाधान कर दिया। मैं तो सिर्फ ये बताना चाहता था कि सच में बहुत खूबसूरत है ये परिवार। बहुत स्नेह,अपनापन,प्यार है लोगों में।
Deleteसेव की सब्जी की रेसिपी आपको मिल जाएगी.. कविता जी ने कह ही दिया है।
anupama ji shrivastavji to bas dekhate hi rahe hai sarafa bazar ko abhi to chakhane tak nahi pahunche khane ki to bat hi door hai. vaise unhone ye nahi bataya ki sev ki sabji ko vo soup samjh kar peene lage the.
ReplyDeletevaise meri car driving se shrivastavji jitana dare hue hai mujhe car chalane me utana hi maja aaya.agali bar isse bhi lamba safar unhe car se karvaungi ye pakka hai.ha ji baba ji to sath rahenge hi na. vaise jinhe meri driving par thoda bhi shaq ho vo meri ye post jaroor padhe aur khud faisla karen.http://kavita-verma.blogspot.com/2011_10_01_archive.html
ji vandana ji mein vahi kavita hu.aur aapne mere blog ke jariye mujhe pahchana to mujhe bahut achchha laga.
sev ki sabji ki recipe jaldi hi apne blog par lagaungi.vaise to ab shrivastavji bhi isme master ho gaye hai.
हाहाहहाहााहा.
Deleteजी सेव की सब्जी के साथ थोडा कन्फ्यूजन हो गया था। दरअसल जब दो साल पहले मैने होटल में ये सब्जी ली थी, तो उसने सब कुछ एक साथ दिया था। पर कविता जी ने सब्जी को कुछ अलग तरीके से बनाया था।
यानि सब्जी की तरी अलग थी और उसमें मुझे सेव मुझे खुद मिलाना था। हुआ ये कि मैने तरी को टमैटो सूप समझ लिया और उसे सूप समझ कर पीता रहा। अचानक कविता और उनकी बेटी क्रुति की नजर गई तो उन्होंने मुझे करेक्ट किया। अब नई जगह और नई चीज में थोडी बहुत गल्ती चलती ही है।
लेकिन ठीक है एक सामान्य सी गल्ती हो गई,पर कविता जी को कितना याद है, उन्होने सबके सामने ये बात रख ही दी।...हाहाहहा
महेंद्र जी,आपकी प्रस्तुति इतनी अच्छी लगी,जैसे कि हाल में बैठ कर किसी फिल्म का मजा ले रहे हों,पकवानों के चित्र देख कर मुह में पानी जरूर आरहा है,...बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
हाहाहाहाहाहाहाहाह
Deleteबहुत ही स्वादिष्ट पोस्ट..
ReplyDeleteहाहाहाहाहाह
Deleteबहुत बहुत आभार
ReplyDeleteहमारा इंदौर है ही एसा सर जी ....रात भर जगता भी है और जगाता भी है ...सराफा बाज़ार दिन में जितना सोने से लदा हुआ चमक बिखेरता है ! रात को वही सुगन्धं और स्वाद से मन मोहित कर लेता है !! देश के किसी भी कोने से आये हुए मेहमानों को उनका अपना पसंदीदा भोजन ...हमारे दल बाफले के साथ खिलाता है !!
ReplyDeleteजब मै भी बेंगलौर में था तो मेरे इस अजीज़ शहर को बड़ा याद करता था !!
इसके सम्मान में इतना सारा लिखने के लिए धन्यवाद् ...आभारी है हम इन्दौरी आपके !
आपका बहुत बहुत आभार,
Deleteसच है जब आप अपने शहर से दूर होते हैं तो याद आना स्वाभाविक है।
पत्रकारिता, पकवान और पाठकों के साथ अच्छी माऊथ वाटरिंग पोस्ट लिख डाली आपने श्रीवास्तव जी!! जाते जाते रह गया मैं इंदौर.. मगर अगली बार गया तो आपकी इस पोस्ट की सत्यता जांचने अवश्य जाउंगा, सर्राफा बाज़ार!!
ReplyDeleteआभार सर,
Deleteआप सच इंदौर जरूर जाएं, अच्छा लगेगा
इंदौर की सैर और खाने की माह्फिल एक दम मज़ा आ गया. एकदम चटपटा यात्रा वृतांत. अब इंदौर के साथ ही खाने की और सराफा बाजार की भी याद जरूर आएगी.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रचना जी
Deleteस्वादिष्ट और लजीज पोस्ट।
ReplyDeleteशुक्रिया भाई अतुल जी
Deleteएक ही पोस्ट में बहुत सारी बातें। इंदौर की कचोरी भी है जिसके स्वाद का जवाब नहीं।
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteहां कचौरी का जिक्र करना बस रह गया..
जायकेदार पोस्ट तो मन में लड्डू फोड़ रहा है ..
ReplyDeleteफिर सोचना क्या है, तैयारी कीजिए और निकल जाइये इंदौर..
Deleteस्वादिष्ट पोस्ट तो है ही साथ ही में इंदौर से भली भांति परिचित हूँ आज आपकी पोस्ट ने इंदौर की तममम यादों को ताज़ा करदिया आभार...आपको भी यदि समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत बहुत आभार पल्लवी जी
Deleteदो बार इंदौर जाने का मौके लगे, बड़ा ही मीठा और नमकीन शहर है.ट्माटर ,पालक ,मेथी आदि के सेव चखे भी और घर के लिए रखे भी.इस शहर में कपड़े भी बहुत उम्दा मिलते हैं,आपकी पोस्ट पढ़ते हुए पुरानी यादें ताजा हो गईं और स्वाद भी जुबान पर आ गये.जीवंत वृत्तांत.
ReplyDeleteजी, सच में अगर आप वहां से परिचित हैं तो सर्राफा बाजार नहीं भूल सकते
Deleteशुक्रिया सर,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
वाह जी आखिर आप भी घूम आये इंदौर....खूब मज़े से लिखी गई ये रिपोर्ट
ReplyDeleteपढ़ कर और फोटो देख कर अच्छा लगा
जी बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteपोस्ट में बहुत सारी बातें। तस्वीरों को देख मूँह मे पानी आ गया
ReplyDeleteहाहाहहाहाहा
Deleteवैसे महेंदर जी मेरी दो बहने है इंदौर में नुर्सिंग कर रही है पर जाना नहीं हुआ अभी तक...पर अब जरूर जाऊंगा
ReplyDeleteबिल्कुल जाइये संजय जी
Deleteयह सचित्र प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी ... आभार ।
ReplyDeleteबहुतबहुत शुक्रिया सदा जी
Deletemuh me pani aa gaya.
ReplyDeleteबहुत ही सुस्वादु पोस्ट है। अपने इंदौर पर गर्व हो आया।
ReplyDeleteयहां की स्वादिष्ट चीजो के कारण कहीं और अच्छा नहीं लगता।
यहां के लोगों सेव के बिना तो खाने में स्वाद ही नहीं आता।
बाजारों, गलियों में भी सेव की दुकानें फर्लांग भर की दूरी पर मिल ही जाती हैं।
ताजा गर्मागर्म सेव की खूश्बू बाजार और गलियों में फैली रहती है।
यहां के कुशल हलवाई मिठाई बनाने के नए नए प्रयोग करते हैं।
मेरे उपन्यास "भूभल" में इस शहर का पृष्ठभूमि है। यहां के खाने और सराफा बाजार का भी जिक्र है। वो तो जरुरी था। उसके बिना तो अधूरा ही रहता ना!
और हां सेव की सब्जी तो यहां शादियों तक में बनती है।
लोग बडे चाव से खाते हैं जैसे आपने खाई वैसे ही।
इस पोस्ट के लिये धन्यवाद और स्वागत फिर आने के लिये।
HAMARE CHHATTISGARH ME GARADU KO KYA KAHTE HAI
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