प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के मुंह पर इतनी कालिख पोत कर जाएंगे कि आने वाले दो तीन प्रधानमंत्रियों को कुछ नया करने के बजाए मनमोहन सिह की कारनामों को दुरुस्त करने में ज्यादा समय देना होगा। मंत्रिमंडल में भरे चोरों की जमात से तो सरकार मुश्किल में थी ही अब रक्षा मंत्रालय अपनी ही सेना से दो दो हाथ करने में लगा है। ऐसे हालत आमतौर पर कमजोर नेतृत्व के कारण पैदा होते हैं। अब देखिए काफी दिनों से देख रहा हूं कि देश में कुछ ऐसे मुद्दों पर बहस छिड़ी हुई है, जिससे अहम मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाया जा सके। इस समय देश भर में बात चल रही है भ्रष्टाचार की, लोग देखना चाहते हैं कि इससे लडने की सरकार की मंशा साफ है, या नहीं। लेकिन सरकार एक साजिश के तहत सेनाध्यक्ष के जन्मतिथि विवाद को तूल देकर लोगों का ध्यान बांटने की कोशिश कर रही है। मुझे सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह के बारे में जितनी जानकारी है, उससे मैं ये बाद दावे के साथ कह सकता हूं कि वो एक ईमानदार और सख्त छवि वाले अफसर हैं, जिन्हें हथियारों की खरीददारी में दलाली करने वाले और कुछ सेना के ही अधिकारी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और चाहते हैं कि जनरल को कितनी जल्दी सेवानिवृत्ति कर दिया जाए।
आप समझ सकते हैं पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं, इसमें सेना की भूमिका को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। हमारी सेना की ताकत पाकिस्तान के मुकाबले कई गुनी ज्यादा है, ये जानते हुए भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। इससे सीमा पर तनाव बना ही रहता है। साल दो साल से चीन की नजर भी टेढी है। हालत ये है कि चीनी सीमा से लगे भारतीय इलाकों में हम विकास का काम भी नहीं कर पा रहे हैं, चाहे अरुणाचल, उत्तराखंड से लगी सीमा हो या फिर गंगटोक से। चीनी सेना हमें सड़क और पुल बनाने से भी रोक देती है। नत्थी बीजा का मामला अभी तक नहीं सुलटा है। ये बातें मैं महज आपको इसलिए बता रहा हूं कि आज देश की सीमाएं भले ही सुरक्षित हों, पर यहां तनाव तो बना ही हुआ है। ऐसे में सेना से जुडे़ अहम मसलों पर जिस तरह संजीदा होकर फैसले लेने चाहिए, वो नहीं लिए जा रहे हैं।
बताइये सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि को लेकर विवाद खडा किया जा रहा है। हालाकि ये ऐसा मसला नहीं है जिस पर सभी लोगों को राय रखना जरूरी हो। लेकिन चाहता हूं कि देश की जनता को भी सच्चाई की जानकारी हो। मित्रों दरअसल सेना का मसला ऐसा गुप्त रखा जाता है कि आसानी से यहां चल रहे गोरखधंधे को जनता के सामने लाना आसान नहीं होता है। मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि जितना भ्रष्टाचार सेना में है, शायद और कहीं नहीं होगा। दूसरे मंत्रालय साल भर में जितना घोटाला करते होंगे, सेना के एक सौदे में उससे बड़ी रकम की हेराफेरी हो जाती है। बहरहाल इन खराब हालातों के बावजूद जनरल वी के सिंह की छवि एक सख्त और ईमानदार जनरल की है। सेना प्रमुख होने की पहली शर्त ही ये है कि आपकी पहले की सेवा पूरी तरह बेदाग होनी चाहिए। इस पर खरा उतरने के बाद ही जनरल को सेनाप्रमुख बनाया जाता है।
अब आप देखें कि सेना में आखिर हो क्या रहा है। ईमानदार जनरल के चलते आर्म्स लाबी ( हथियारों के सौदागर) नाराज हैं। वो चाहते हैं कि सेना के लिए हथियारों की खरीददारी पहले की तरह होती रहे। यानि सेना के अफसरों, नेताओं, कांट्रेक्टर्स सबकी चांदी कटती रहे। लेकिन जनरल बीके सिंह के सेना प्रमुख रहते ये सब संभव नहीं है। इसलिए एक साजिश के तहत सभी रक्षा सौदों में जानबूझ कर देरी की जा रही है। इतना ही नहीं ये लांबी इतनी ताकतवर है कि इसने अब सेना प्रमुख को रास्ते से हटाने का रास्ता साफ कर दिया। जनरल के जन्मतिथि विवाद को लेकर उन्हें अब साल भर पहले ही रिटायर करने की तैयारी हो गई है और सरकार ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी। ऐसे में अहम सवाल ये क्या इस गोरखधंधे में सरकार के भी कुछ नुमाइंदे शामिल हैं। ये सब मैं आप पर छोड़ता हूं, लेकिन पूरी तस्वीर आपके सामने मैं हुबहू रखने की कोशिश करता हूं।
मित्रों सेना प्रमुख के हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है। इस हिसाब से उन्हें जून 2013 में रिटायर होना चाहिए, लेकिन यूपीएसई में कमीशन के दौरान सेना मुख्यालय में जो रिकार्ड है, उसमें उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 लिखी है। इस हिसाब से उन्हें इसी साल जून में रिटायर होना होगा। देश में यही परंपरा रही है कि अगर कोई अभ्यर्थी हाईस्कूल पास है तो उस सर्टिफिकेट में जो जन्मतिथि दर्ज है, वही मान्य होगी। अगर कोई हाईस्कूल नहीं है तो जन्म के दौरान नगर पालिका के स्वास्थ्य विभाग या फिर ग्राम पंचायत में दर्ज जन्म की तारीख को मान्यता दी जाएगी। लेकिन सेनाप्रमुख के मामले में ऐसा नहीं किया गया, उनके हाईस्कूल के सर्टिफिकेट में दर्ज जन्मतिथि को खारिज करते हुए सेना के रिकार्ड में दर्ज जन्मतिथि को स्वीकार कर लिया गया। हालांकि जनरल वी के सिंह अगर इस मामले में कोर्ट का सहारा लें तो उन्हें निश्चित रूप से राहत मिल जाएगी, लेकिन वो सेना प्रमुख जैसे पद को विवाद में लाने के खिलाफ हैं।
लेकिन दिल्ली में एक लाबी सक्रिय है, जिसे हथियारों के दलालों का समर्थन है। इनकी रक्षा मंत्रालय में भी अच्छी पैठ है। देश मे बहुत सारे रक्षा सौदे पाइप लाइन में हैं। कहा जा रहा है कि हथियारों के दलालों को डर है कि अगर जनवर को जल्दी विदा नहीं किया गया तो उन्हें बहुत मुश्किल होगी। क्योंकि इन सौदों को धीरे धीरे दो ढाई साल से टाला जा रहा है, लेकिन इसे अब और ज्यादा टाला नहीं जा सकता। ऐसे में सेना के कुछ अधिकारी और और मंत्रालय के कुछ अफसर आपस मे साठ गाठ कर जनरल की विदाई का रास्ता तैयार करने की साजिश में लगे हैं। हालाकि मुझे पक्का भरोसा है कि सेना में ऐसा नहीं होता होगा, लेकिन खबरें तो यहां तक आती रहती हैं कि सेना में " पंजाबी वर्सेज अदर्स " के बीच छत्तीस का आंकडा है और जो जहां भारी पड़ता है वो एक दूसरे पटखनी देने से नहीं चूकता। साल भर पहले जनरल वी के सिंह ने सियाचिन, लेह और लद्दाख का दौरा करने के दौरान पाया कि यहां सीमा पर तैनात जवानों को घटिया किस्म का खाना दिया जा रहा है। इस पर उन्होंने सख्त एतराज भी जताया था। सीमा पर तैनात जवाबों के लिए रोजाना चंडीगढ से सब्जी और मांस की खरीददारी की जाती है। बताते हैं कि इसमें भी काफी घपलेबाजी की जा रही थी, जो सड़ी गली सब्जी आढ़त पर बची रह जाती थी, जिसका कोई खरीददार नहीं होता था, वही घटिया सब्जी सेना के जवानों के लिए भेज दी जाती थी। इसके अलावा घटिया किस्म के अंडे की भी सप्लाई होती थी। मांस निर्धारित मात्रा से कम दिया जाता था। वी के सिंह को ये सब नागवार लगा और उन्होंने मांस की मात्रा भी बढवा दी और ये भी सुनिश्चित किया कि ताजी सब्जियां ही खरीदी जाएं। इन सब में काफी धांधली हुआ करती थी, इन सबको एक एक कर सेना प्रमुख ने चेक कर लिया।
हैरत की बात तो ये सेना के जवान जिस ठंड में 24 घंटे तैनात रहते हैं, उन्हें जूते भी घटिया किस्म के दिए जाते थे। इससे उनके पैरों की उंगलियां सड़ने लगी थीं। इस मामले को भी जनरल ने बडे ही गंभीरता से लिया था। इसे लेकर भी कुछ बडे अधिकारी जनरल से नाराज चल रहे थे। खैर सैन्य अफसर एक दूसरे से नाराज हों और खुश हों, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब सियासी लोग भी इसमें पार्टी बन जाते हैं तो कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला जरूर नजर आता है।
बहरहाल सेनाप्रमुख के जन्मतिथि विवाद को रक्षामंत्री एके अंटोनी बहुत ही हल्के ढंग से ले रहे हैं। जिस मामले को गंभीरता से लेते हुए उन्हें प्राथमिकता के आधार पर निपटाना चाहिए, उस मामले को टालने की कोशिश हो रही है। हालाकि जनरल वीके सिह बार बार कह रहे हैं कि वो इस मामले को न्यायालय में नहीं ले जाना चाहते, लेकिन उनके चाहने से भला क्या होगा। आजकल लोग पीआईएल के जरिए तमाम मामलों को न्यायालय में ले जा रहे हैं, कल को ये मसला भी पहुंचा तो सरकार की किरकिरी होनी तय है। हालाकि प्रधानमंत्री अब इस मामले में दखल दे रहे हैं, लेकिन उनकी जिस तरह की छवि है, लगता नहीं कि वो कोई सख्त फैसला कर सकते हैं। मुझे लगता है कि छोटे से छोटे विवाद को निपटाने में फेल रही सरकार इस मामले में भी सही फैसला नहीं कर पाएगी और आखिर में जब उसे कोर्ट से लताड़ लगाई जाएगी तब वो मजबूर हो कर सही फैसला करेंगे। मुझे लगता है कि जनरल वीके सिंह के लिए ये लडाई उनके स्वाभिमान से जुडी है और जो आदमी अपने स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर सकता वो देश के स्वाभिमान की रक्षा कभी नहीं कर सकता।
लगता है इस सरकार ने तो देश को गिरवी रखने की तैयारी कर ली हैं बहुत अच्छी जानकारी है।
ReplyDeleteपूरे सच को सच की तरह कहना आसन नहीं जिस तरह से आप तथ्यों को सामने लाते हैं और जो प्रस्तुतीकरण का आपका अंदाज है ....वह काबिलेतारीफ है ....!
ReplyDeleteकितने शर्म की बात है कि पाकिस्तान मे सेना के आतंक को देखने के बाद भी हमारे नेता अति पर उतारू हैं। इतना ही नही चंडीगढ़ मे उनकी कार्नर प्लाट की दर्ख्वस्त को भी कचरे के डिब्बे मे डाला गया मुझे नही लगता कि कोई लोकतांत्रिक सरकार ऐसी मूर्खता कर सकती है। पर पता नही क्यो और किस जाल मे फ़स चुकने के बाद कांग्रेस का नेतृत्व अपनी भावी पीढ़ी और देश के भविष्य से खेल रहा है।
ReplyDeleteमहेंद्र जी आप दिल्ली में रहते हैं...बडे चैनल में काम करते हैं...जाहिर सी बात है आपकी जानकारी मुझ से ज्यादा होगी...लेकिन फिर भी गुस्ताखी कर रहा हूं-ऐसा लग रहा है कि आप अपने विचार नहीं सिंह साहब की तरफ से कोई प्रेस नोट जारी कर रहे हैं...हां ये बात तो मैंने भी कई जगह पढी है कि सेना में जबरदस्त भ्रष्ट्राचार मचा हुआ है...लेकिन फिर भी सिंह साहब को इस तरह क्लीन चिट देना एकदम से हजम नहीं होता है..फिर सवाल ये भी है कि जब यूपीएससी में सिंह साहब पहली दफा अपनी जन्म तारीख लिखवा रहे थे तभी ध्यान क्यों नहीं रखा...आखिर वो सेना अध्यक्ष हैं साहब नगर पालिका अध्यक्ष थोडे ही हैं...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,किन्तु कुछ मुद्दों में आपसे सहमत नही हूँ ......
ReplyDeletewelcome to new post--जिन्दगीं--
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,जन्म तिथि के मुद्दे पर सहमत नही,...
ReplyDeletewelcome to new post--जिन्दगीं--
यह सब साझा सरकार की देन है :)
ReplyDeleteपता नहीं सच क्या है, पर एक बात है कहीं न कहीं सेना का मनोबल गिराया जा रहा है...
ReplyDeleteबताते हैं कि जब संघ लोक सेवा आयोग के लिए उन्होंने आवेदन किया था तब उसमें उन्होंने १९५० लिखा था.. खैर ये बात दीगर!! बाकी की खबर पढ़ी थी काफी पहले..! अंदेशा था!!
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 7/1/2012 को होगी । कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें। आभार.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!
ReplyDeleteएक और उदाहरण..सरकार की मनमानी का..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
स्वाभिमान ही सबकुछ है और वहीँ से सही कदम उठते हैं ...
ReplyDeleteसहमत हूँ सर!
ReplyDeleteसादर
sahab desh hi to hai bech hi to rahe hain..ek din maare hi to jaayenge..narak hi to milega....(vyangy)
ReplyDeleteजन्मतिथि के बारे में अखबार में पढ़ा था ..आपने बहुत सी बातें स्पष्ट कीं . बोफोर्स सौदे ऐसे ही तो नहीं हुए होंगे ...
ReplyDelete.प्रश्न और उनके उत्तर देती हुई यह सार्थक पोस्ट आभार
ReplyDeleteअपने देश की बदकिस्मती कि ....सेना को भी राजनीतिक चालों का हिस्सा बना दिया जाता हैं ..उन्हें अपने फायदे के लिए वक्त वक्त पर इस्तेमाल करने से नहीं चुकती ये सरकार ...
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