जी हां, यही सच है कि मेरी बातें खत्म नहीं हुई और फ्लाइट का समय हो गया। मुझे बेमन से अपनी बातचीत को बीच में रोक कर रश्मि प्रभा जी से बिदाई लेनी पड़ी। हां चलते चलते उन्होंने मेरे इस आग्रह को जरूर स्वीकार किया कि फरवरी में दिल्ली में होने वाले बुक फेयर में हिस्सा लेने आने पर वो घर जरूर आएंगी। दरअसल दो दिन पहले मुझे कुछ जरूरी काम से पुणे जाना पड़ा। मैने पहले ही तय कर लिया था कि पुणे जाऊंगा तो इस बार रश्मि जी से जरूर मुलाकात करुंगा। मैने दिल्ली से ही उन्हें बता दिया था कि मैं दो दिन के लिए पुणे आ रहा हूं, पहले दिन तो मैं थोड़ा व्यस्त हूं, लेकिन दूसरे दिन मेरे पास इतना वक्त जरूर होगा कि मैं आपसे मिल सकूं।
पुणे पहुंच कर पहले दिन मैने अपना काम निपटाया, जो कुछ बाकी रह गया, उसे अगले दिन पूरा करने के बाद मैं आ गया रश्मि जी के घर पुणे के विमान नगर। रश्मि जी के घर आने का जो समय मैने बताया था, मैं उससे दो घंटे पहले ही पहुंच गया। बताऊं यहां मुझे एक मिनट भी ऐसा नहीं लगा जैसे मैं इस घर में पहली बार आया हूं और नए लोगों के बीच में हूं। बाकी बातें तो मैं करुंगा लेकिन एक बात मैं आप सबसे बहुत ही ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि इस ब्लाग परिवार में बहुत ही अपनापन, स्नेह और एक दूसरे के प्रति आदर है। आपको मालूम है कि पिछले दिनों मेरी मुलाकात बहुत ही पुराने ब्लागर आद.डा.रूपचंद्र शास्त्री जी से हुई थी। दरअसल ब्लाग परिवार में शामिल होने के बाद शास्त्री जी ही वो पहले शख्स थे, जिनसे मेरी आमने सामने मुलाकात हुई। उनसे मिलने के बाद मैने तय कर लिया कि मैं जहां कहीं भी जाऊंगा, अगर वहां कोई ब्लागर होगा तो मैं निश्चित ही उनसे मिलूंगा। अभी हफ्ते भर पहले की बात है, मैं इंदौर में था, वहां मेरी मुलाकात हुई ब्लागर श्रीमति कविता वर्मा जी से। मैं बहुत दिनों से उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में मत्था टेकना चाहता था, मेरी ये इच्छा भी कविता जी ने पूरी करा दी। सच कहूं तो हम इस परिवार को "ब्लाग परिवार" कह कर इसकी गरिमा को कम करते हैं, इस परिवार के लिए कोई और उपयुक्त शब्द की हम सब को तलाश करनी होगी।
रश्मि जी के घर मैंने लगभग पांच घंटे बिताए। घर परिवार के हालचाल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैने अभी तक रश्मि जी की रचनाओं को पढा था, आज वो खुद सामने थीं, उन्हें पढ़ रहा था। मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि उनकी रचनाओं में जितनी संवेदनशीलता दिखाई देती है, वो यूं ही नहीं झलकती है। इसकी वजह है, और वो ये कि खुद रश्मि कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं। उनकी रचनाएं दिमाग से नहीं दिल से लिखी होती हैं। और जब कोई दिल से लिखता है तो जाहिर है कि वो रचनाकार अपनी रचनाओं के जरिए लोगों के दिलों में जगह बना लेता है, फिर लोगों के दिलों पर राज करता है। रश्मि जी ऐसी ही शख्सियत हैं। वो लेखकों में बडे छोटे का भेद नहीं करती हैं, दूसरे ब्लागरों की चर्चा करते हुए भी उनके प्रति पूरे सम्मान से बातें करती है। हां हो सकता है कि आपको उनकी ये बात अच्छी ना लगे, लेकिन सच यही है कि वो झूठी प्रशंसा नहीं कर पाती हैं। हालांकि उन्हें इस बात की तकलीफ भी है, बताती हैं कि कई बार मैं जब लोगों के ब्लाग पढती हूं तो सोचती हूं कि कमेंट कर दूं, लेकिन यहां दिल पर दिमाग भारी पड़ जाता है और कहता है कि ये ठीक नहीं है।
बातचीत में उन्होंने कई ब्लागर के नाम गिनाएं जिन्हें वो बहुत पसंद करती हैं। जिनकी रचनाएं उन्हें पसंद है, वो उनकी तारीफ करने में बिल्कुल कंजूसी नहीं करती हैं। देखिए मैं भी इसी समाज से जुडा आदमी हूं। दूसरों की तारीफ सुन सुन कर मैं थक गया, इतनी देर से रश्मि जी मेरी किसी रचना की तारीफ ही नहीं कर रहीं थीं। अरे भाई दूसरों की तारीफ के बीच मेरी भी होती तो चल जाता। मेरी तारीफ कैसे हो, मैं सोचने लगा। खैर ये सही बात है कि मैं दिल्ली का रहने वाला नहीं हूं, पर काफी समय से यहां रह रहूं तो थोडा असर तो है ना दिल्ली का। मतलब "देखो मौका लगाओ चौका"। चाय आ चुकी थी, इसकी चुस्कियों के बीच मैने कहा दीदी आपने मेरी कविताएं लगता है नहीं पढीं। बस इस सवाल का जवाब वो नहीं में दे गईं। हाहाहाहा फिर क्या था उनकी इतनी सी गल्ती काफी थी कि मैं अपनी दो एक रचनाएं उन्हें फटाफट सुना दूं, मैने ये इंतजार किए बिना की वो कुछ सुनना चाहती हैं या नहीं, तड़ से दो कविताएं उगल दी। अब उस समय तो उन्होंने "बहुत सुंदर" ही कहा था, सच में अच्छी लगी या नहीं उसको मापने का मेरे पास कोई पैमाना नहीं था, तो हमने भी मान लिया है कि उन्हें अच्छी लगी।
कुछ ब्लाग पर "बीररस" के स्वभाव वाले लेख होते हैं। भाषा की मर्यादा को ध्यान में रखकर जब कोई बात की जाती है वो रचनाएं और लेख उन्हें पसंद हैं, पर तीखी भाषा और व्यक्ति को लक्ष्य कर लिखी गई बातें उन्हें बिल्कुल नागवार लगती है। ऐसे ब्लाग से भले दूरी बना लें, पर उनके मन में ब्लागर के प्रति कोई दुराव नहीं आता है, उनको लगता है कि कभी ना कभी तो ब्लागर सही रास्ते पर आ ही जाएगा। हां जी एक बात तो मैं भूलता ही जा रहा था कि ब्लागरों में खेमेंबंदी और कटुता के माहौल से वो मन ही मन बहुत दुखी हैं। कई बार जब किसी बात पर ब्लागर आमने सामने हो जाते हैं और ब्लाग पर ही वाद विवाद शुरू हो जाता है तो ये बात भी उनके लिए पीडा देने वाली होती है।
और हां अगर मैं लंच का जिक्र ना करुं तो बात पूरी ही नहीं हो पाएगी। मैं नानवेज का बहुत शौकीन हूं। मेरा देश में आना जाना लगा रहता है और बहुत सारी जगहों पर नानवेज का स्वाद ले चुका हूं, लेकिन रश्मि जी की रेशेपी लाजवाब थी। चिकेन का जो स्वाद मैने यहां लिया, उसकी तारीफ के लिए मेरे पास शब्दों का अभाव है। मैं तो रश्मि जी से ही आग्रह करुंगा कि वो अपने चिकेन की इस रेशेपी को खाने के किसी ब्लाग के साथ जरूर शेयर करें। खैर बातचीत का सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल पर मैसेज आया। मैने देखा ये मैसेज घर से मैडम का था, जो जानना चाह रहीं थी कि एयरपोर्ट पहुंच गए या नहीं। घड़ी देखा तो शाम के पांच बज चुके थे और 6.40 पर मेरी फ्लाइट थी। बस इसी एसएमएस के साथ बात चीत को विराम देना पडा़, वो भी इस वायदे के साथ दिल्ली बुक फेयर में आने के दौरान घर जरूर आएंगी। पांच घंटे से ज्यादा समय तक मैं यहां रहा, पर सही बताऊं बातें खत्म नहीं हुई, खैर ठीक भी है, ऐसे में अगली मुलाकात का इंतजार भी तो रहेगा ना।
चलते-चलते
जी आखिर में ये बताना भी जरूरी है कि मैं उत्तर प्रदेश के चुनाव में 20 जनवरी से 29 फरवरी तक लगभग 40 जिलों में सफर कर रहा हूं। मेरी यात्रा की शुरुआत तो उत्तराखंड में देहरादून से होगी, पर 23 जनवरी से यूपी में हूं। मित्रों मैं कोशिश करुंगा कि जहां कहीं भी मेरे ब्लागर मित्र हों उनके साथ एक चाय जरूर हो जाए। इसमें आपका भी सहयोग होना चाहिए।
पुणे पहुंच कर पहले दिन मैने अपना काम निपटाया, जो कुछ बाकी रह गया, उसे अगले दिन पूरा करने के बाद मैं आ गया रश्मि जी के घर पुणे के विमान नगर। रश्मि जी के घर आने का जो समय मैने बताया था, मैं उससे दो घंटे पहले ही पहुंच गया। बताऊं यहां मुझे एक मिनट भी ऐसा नहीं लगा जैसे मैं इस घर में पहली बार आया हूं और नए लोगों के बीच में हूं। बाकी बातें तो मैं करुंगा लेकिन एक बात मैं आप सबसे बहुत ही ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि इस ब्लाग परिवार में बहुत ही अपनापन, स्नेह और एक दूसरे के प्रति आदर है। आपको मालूम है कि पिछले दिनों मेरी मुलाकात बहुत ही पुराने ब्लागर आद.डा.रूपचंद्र शास्त्री जी से हुई थी। दरअसल ब्लाग परिवार में शामिल होने के बाद शास्त्री जी ही वो पहले शख्स थे, जिनसे मेरी आमने सामने मुलाकात हुई। उनसे मिलने के बाद मैने तय कर लिया कि मैं जहां कहीं भी जाऊंगा, अगर वहां कोई ब्लागर होगा तो मैं निश्चित ही उनसे मिलूंगा। अभी हफ्ते भर पहले की बात है, मैं इंदौर में था, वहां मेरी मुलाकात हुई ब्लागर श्रीमति कविता वर्मा जी से। मैं बहुत दिनों से उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में मत्था टेकना चाहता था, मेरी ये इच्छा भी कविता जी ने पूरी करा दी। सच कहूं तो हम इस परिवार को "ब्लाग परिवार" कह कर इसकी गरिमा को कम करते हैं, इस परिवार के लिए कोई और उपयुक्त शब्द की हम सब को तलाश करनी होगी।
रश्मि जी के घर मैंने लगभग पांच घंटे बिताए। घर परिवार के हालचाल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैने अभी तक रश्मि जी की रचनाओं को पढा था, आज वो खुद सामने थीं, उन्हें पढ़ रहा था। मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि उनकी रचनाओं में जितनी संवेदनशीलता दिखाई देती है, वो यूं ही नहीं झलकती है। इसकी वजह है, और वो ये कि खुद रश्मि कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं। उनकी रचनाएं दिमाग से नहीं दिल से लिखी होती हैं। और जब कोई दिल से लिखता है तो जाहिर है कि वो रचनाकार अपनी रचनाओं के जरिए लोगों के दिलों में जगह बना लेता है, फिर लोगों के दिलों पर राज करता है। रश्मि जी ऐसी ही शख्सियत हैं। वो लेखकों में बडे छोटे का भेद नहीं करती हैं, दूसरे ब्लागरों की चर्चा करते हुए भी उनके प्रति पूरे सम्मान से बातें करती है। हां हो सकता है कि आपको उनकी ये बात अच्छी ना लगे, लेकिन सच यही है कि वो झूठी प्रशंसा नहीं कर पाती हैं। हालांकि उन्हें इस बात की तकलीफ भी है, बताती हैं कि कई बार मैं जब लोगों के ब्लाग पढती हूं तो सोचती हूं कि कमेंट कर दूं, लेकिन यहां दिल पर दिमाग भारी पड़ जाता है और कहता है कि ये ठीक नहीं है।
बातचीत में उन्होंने कई ब्लागर के नाम गिनाएं जिन्हें वो बहुत पसंद करती हैं। जिनकी रचनाएं उन्हें पसंद है, वो उनकी तारीफ करने में बिल्कुल कंजूसी नहीं करती हैं। देखिए मैं भी इसी समाज से जुडा आदमी हूं। दूसरों की तारीफ सुन सुन कर मैं थक गया, इतनी देर से रश्मि जी मेरी किसी रचना की तारीफ ही नहीं कर रहीं थीं। अरे भाई दूसरों की तारीफ के बीच मेरी भी होती तो चल जाता। मेरी तारीफ कैसे हो, मैं सोचने लगा। खैर ये सही बात है कि मैं दिल्ली का रहने वाला नहीं हूं, पर काफी समय से यहां रह रहूं तो थोडा असर तो है ना दिल्ली का। मतलब "देखो मौका लगाओ चौका"। चाय आ चुकी थी, इसकी चुस्कियों के बीच मैने कहा दीदी आपने मेरी कविताएं लगता है नहीं पढीं। बस इस सवाल का जवाब वो नहीं में दे गईं। हाहाहाहा फिर क्या था उनकी इतनी सी गल्ती काफी थी कि मैं अपनी दो एक रचनाएं उन्हें फटाफट सुना दूं, मैने ये इंतजार किए बिना की वो कुछ सुनना चाहती हैं या नहीं, तड़ से दो कविताएं उगल दी। अब उस समय तो उन्होंने "बहुत सुंदर" ही कहा था, सच में अच्छी लगी या नहीं उसको मापने का मेरे पास कोई पैमाना नहीं था, तो हमने भी मान लिया है कि उन्हें अच्छी लगी।
कुछ ब्लाग पर "बीररस" के स्वभाव वाले लेख होते हैं। भाषा की मर्यादा को ध्यान में रखकर जब कोई बात की जाती है वो रचनाएं और लेख उन्हें पसंद हैं, पर तीखी भाषा और व्यक्ति को लक्ष्य कर लिखी गई बातें उन्हें बिल्कुल नागवार लगती है। ऐसे ब्लाग से भले दूरी बना लें, पर उनके मन में ब्लागर के प्रति कोई दुराव नहीं आता है, उनको लगता है कि कभी ना कभी तो ब्लागर सही रास्ते पर आ ही जाएगा। हां जी एक बात तो मैं भूलता ही जा रहा था कि ब्लागरों में खेमेंबंदी और कटुता के माहौल से वो मन ही मन बहुत दुखी हैं। कई बार जब किसी बात पर ब्लागर आमने सामने हो जाते हैं और ब्लाग पर ही वाद विवाद शुरू हो जाता है तो ये बात भी उनके लिए पीडा देने वाली होती है।
और हां अगर मैं लंच का जिक्र ना करुं तो बात पूरी ही नहीं हो पाएगी। मैं नानवेज का बहुत शौकीन हूं। मेरा देश में आना जाना लगा रहता है और बहुत सारी जगहों पर नानवेज का स्वाद ले चुका हूं, लेकिन रश्मि जी की रेशेपी लाजवाब थी। चिकेन का जो स्वाद मैने यहां लिया, उसकी तारीफ के लिए मेरे पास शब्दों का अभाव है। मैं तो रश्मि जी से ही आग्रह करुंगा कि वो अपने चिकेन की इस रेशेपी को खाने के किसी ब्लाग के साथ जरूर शेयर करें। खैर बातचीत का सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल पर मैसेज आया। मैने देखा ये मैसेज घर से मैडम का था, जो जानना चाह रहीं थी कि एयरपोर्ट पहुंच गए या नहीं। घड़ी देखा तो शाम के पांच बज चुके थे और 6.40 पर मेरी फ्लाइट थी। बस इसी एसएमएस के साथ बात चीत को विराम देना पडा़, वो भी इस वायदे के साथ दिल्ली बुक फेयर में आने के दौरान घर जरूर आएंगी। पांच घंटे से ज्यादा समय तक मैं यहां रहा, पर सही बताऊं बातें खत्म नहीं हुई, खैर ठीक भी है, ऐसे में अगली मुलाकात का इंतजार भी तो रहेगा ना।
चलते-चलते
जी आखिर में ये बताना भी जरूरी है कि मैं उत्तर प्रदेश के चुनाव में 20 जनवरी से 29 फरवरी तक लगभग 40 जिलों में सफर कर रहा हूं। मेरी यात्रा की शुरुआत तो उत्तराखंड में देहरादून से होगी, पर 23 जनवरी से यूपी में हूं। मित्रों मैं कोशिश करुंगा कि जहां कहीं भी मेरे ब्लागर मित्र हों उनके साथ एक चाय जरूर हो जाए। इसमें आपका भी सहयोग होना चाहिए।
सुंदर व्रतांत !
ReplyDeleteकाश हमें भी किसी ब्लोगर परिवार के सदस्य से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो !
ऐसा क्यों कह रहे है संतोष जी,
Deleteहम सब जब चाहें मिल सकते हैं।
सार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
मैं आपको पढता रहता हूं।
Deleteरश्िम जी से रु-बी-रु होना अच्छा लगा !
ReplyDeleteवो वैसे भी अपनी रचनाओ से बड़ी संवेदनशील और ममतामयी लगती हैं|
उनके बारे में मेरी सोच पुख्ता हुई |
आभार आपका |
खुश रहें |
जी बिल्कुल...
Deleteमैनपुरी कब आ रहे है जनाब ???
ReplyDeleteआपकी बहुत तारीफ हुई पुणे में.मैनपुरी आने पर जरूर होगी मुलाकात
Deleteजी आपका इंतज़ार रहेगा ... हो सके तो अपना नंबर दीजियेगा ... shivam.misra77@gmail.com
Deleteजी बिल्कुल.. वैसे मेरा फोन नंबर है
Delete09871096626
ये लीजिये रेसिपी बता दूंगी तो फिर सब बना लेंगे न ... मेरे पास आने का स्वाद कम हो जायेगा . भाई मैंने कोई झूठी तारीफ़ नहीं की . झूठी होती तो मैं सिर्फ मुस्कुरा देती ....... आज मेरा वजन जरा और बढ़ गया है तारीफ से - हहहहाहा
ReplyDeleteमहेंद्र जी,ने जो आपके लिए लिखा है वह सही लिखा आप तारीफ़ के काबिल है,
Deleteहाहहाहाहाह... अरे बनने दीजिए सबके यहां. लोग चिकन का स्वाद लेगें तो आपको याद भी करेंगे।
Deleteसच कहा ."इस परिवार को हम ब्लाग परिवार कह कर इसे कम करके ना आंके, सच में यहां अपने परिवार से बढकर अपनापन, स्नेह, प्यार, सम्मान सबकुछ है। " मुझे पता नही चला कि आप का आफिस अक्षरधाम के पास ही है नही तो एक चाय तो बनती थी..देहरा दून आये तो जरुर बताए...
ReplyDeleteहाहाहहाा जी आपके शहर में तो मैं इसी 21 जनवरी को हूं..। हम वहां रात आठ बजे से नौ बजे तक एक एक लाइव शो करेंगे. चुनाव को लेकर
Deleteयात्रा वृत्तान्त सुनकर बहुत ही अच्छा लगा, मार्च में हमारा भी जाना होगा पुणे में।
ReplyDeleteबिल्कुल जी, जरूर जाइये
Deleteयह तो बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं आप :) यह पोस्ट पढ़कर आदरणीय रश्मि जी को और करीब से जानने का एक मौका मिला उसके लिए आपका आभार ...
ReplyDeleteशुक्रिया जी
Deleteबहुत अच्छा लगा पढकर ...!!ब्लॉग परिवार बढ़े...यही कामना है ....!!
ReplyDeleteआभार
Deleteyadi aap indirapuram ghaziabad aayen to main bhi mil sakta hoon... badhiya varta rahi...
ReplyDeleteअरे सर,
Deleteक्या बात है, मैं रहता तो गाजियाबाद में ही हूं। मैं यहां वसुंधरा में रहता हूं।
बहुत ही आत्मीय वर्णन!! यह तो पूरा सच था!!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteरश्मी जी से मुलाक़ात अच्छी रही,काश हम भी मिल पाते,ये बताइये अनुपपुर(MP)कब आरहे है अमरकंटक पास में है घूम ले,सुंदर प्रस्तुति,
ReplyDelete--काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
हाहहाहाहाह.. जी बिल्कुल वहां आना हुआ तो आप से जरूर मुलाकात होगी
Deleteरश्मि जी बहुत ही स्नेहिल व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं...उनसे मिलकर अभिभूत तो होना ही था...
ReplyDeleteब्लॉग परिवार के किसी भी सदस्य से मुलाक़ात यादगार बन जाती है....यह प्यार ऐसे ही बना रहे..
जी सहमत हूं आपकी बातों से
Deleteमुलाकातें और बातें वो भी ब्लागरों के साथ। सचमुच अनोखा अनुभव होगा।
ReplyDeleteबिल्कुल सही
Deleteलिखते हैं पूरा सच और कहते हैं आधा सच ......अब आपको निर्णय करना है ....कि आधा सच लिखना है या पूरा ....वैसे जिस सच को आप अभिव्यक्त करते हैं उसका अपना ही अंदाज है ....! यूँ ही अपने प्यार की खुशबू फैलाते रहिये ..चलते-चलते ....!
ReplyDeleteहाहाहाहहााह, जी ये तो पूरा सच है।
Deleteये मुलाकातें काफी कुछ सीखा जाती हैं।
ReplyDeleteकरीब दो साल पहले मैं भी उदयपुर में वरिष्ठ ब्लागर और प्रतिष्ठित साहित्यकार अजित गुप्ता जी से मिला था। कुछ देर की मुलाकात में ही काफी कुछ सीखने मिला उनसे।
आपने सही कहा, ब्लागर परिवार के बजाय इस परिवार को लेकर कुछ नया, अपनापन लिए नाम सोचने की जरूरत है.......
शुभकामनाएं आपको।
सही कहा आपने..
Deleteहम तो अब पराये हैं जी.
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएँ से भी वंचित.
अरे सर,ऐसा बिल्कुल नहीं है।
Deleteआप हमेशा हमारे लिए आदरणीय हैं।
बढिया काम कर रहे हैं आप।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार
Deleteखूब-सूरत प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ||
शुक्रिया सर
Deleteनए शहर और वहाँ के ब्लोगर्स से मिलने का सिलसिला यूँ ही कायम रहे .....
ReplyDeleteरश्मि दीदी से मुलाकात हुई ..पढ़ का आनंद आ गया ....
हां जी ये तो सही बात है। मुझे भी बहुत अच्छा लगा।
Deleteमहेंद्र जी, बहुत अच्छी अच्छी बाते बताई है !
ReplyDeleteरश्मि जी से मिलना, वाकई आप खुशकिस्मत है जी !
आभार अच्छी लगी पोस्ट !
बहुत बहुत आभार सुमन जी
Deleteपर....... भरा गिलास तो खाली कर देते :)
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी से भी मुलाकात!
ReplyDeleteयही तो हैं आपकी खास बात!
जहाँ जाते हो ब्लॉग जगत के लोगों से
आत्मीयता के साथ मिलते हो।
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जब कोई दिल से लिखता है तो जाहिर है कि वो रचनाकार अपनी रचनाओं के जरिए लोगों के दिलों में जगह बना लेता है, फिर लोगों के दिलों पर राज करता है।
ReplyDeleteअरे वाह महेन्द्र जी! आपने हमसे वादा किया था कि रश्मि जी से बात कराएंगे वहां पहुँचकर ख़ैर...शुभ मुलाक़ात की ढेरों बधाइयां
ReplyDeleteअच्छा लगा पढकर खुशकिस्मत है आप
ReplyDeleteआदरणीय रश्मि जी के बारे में आपने जो भी कहा ...वो अक्षरश: सच है उनका लेखन और वे स्वयं सबके दिलों पर काबिज़ हैं ...ससम्मान अनंत शुभकामनाएं
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