लोकपाल बिल का हश्र यही होना था, अन्ना की लगाई आग में मीडिया ने घी डालने का काम किया और सब कुछ जलकर स्वाहा हो गया। यानि हम कहें कि अप्रैल में जब अभियान की शुरुआत अऩ्ना ने की, नौ महीने बाद अब लग रहा था कि हम लोकपाल बिल के बहुत करीब आ चुके हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अयोग्य, दागी, अकुशल और विवादित नेतृत्व के चलते लोकपाल बिल का मामला खटाई में पड़ गया है। सच तो ये है कि ये लड़ाई जहां से शुरू हुई थी वहीं फिर पहुंच गई है। अब हमें जिम्मेदारी तय करनी हो कि आखिर क्यों नहीं पास हो सका लोकपाल बिल। मैं बहुत ही जिम्मेदारी से कहता हूं कि लोकपाल बिल ना पास हो पाने के लिए मुख्य रूप से दो लोग जिम्मेदार हैं। पहली टीम अन्ना खुद और दूसरी मीडिया। यानि टीम अन्ना ने आग लगाया तो मीडिया ने उस आग में घी डालने का काम किया।
दरअसल बेलगाम और बदजुबान टीम अन्ना घमंड में चूर है। उनकी बातचीत का तौर तरीका बहुत ही भद्दा और सामान्य आचरण के खिलाफ है। ये बात ठीक है सरकार जनता की सेवक है और मतदाता मालिक है। लेकिन ये भी सही है कि सरकार कोई भी काम देश के हर मालिक से राय लेकर करे तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि गांव में एक हैंडपंप तक नहीं लग सकता। किसी गांव के लिए एक हैंडपंप मंजूर होता है, तो विवाद शुरू हो जाता है कि इसे कहां लगाया जाए ? हर आदमी चाहता है कि हैंडपंप उसके घर के करीब लगे। भला ये कैसे संभव हो सकता है, हालत ये होती है कि यही मालिक बनी जनता आपस में जूतम पैजार कर लेती है। बाद में कमजोरों की लड़ाई का फायदा दबंग को मिलता है, और कहा जाता है कि उसके दरवाजे पर हैंडपंप लगने से किसी को एतराज नहीं होगा।
अन्ना के आँदोलन के मामले में अगर आप शुरू से मेरे लेख को देंखे तो साफ हो जाएगा कि मैने पहले ही कह दिया था कि अन्ना का मुद्दा बिल्कुल सही है, लेकिन उनका तरीका गलत है। मंच से नेताओं को चोर कहना, ऐलान करना की लोकपाल बन गया तो आधे से ज्यादा मंत्री जेल में होगे, 180 भ्रष्ट सांसद हैं, बिल का समर्थन ना करने वालों के घर के बाहर धरना देंगे। अन्ना और अऩ्ना की टीम ने जिस असभ्य तरीके से संसद और सांसदों पर हमला बोला, उससे पहले ही साफ हो गया कि अब इस बिल का कुछ नहीं होने वाला है। गांव में कहावत है कि सूप बोले तो बोले चलनियों बोले, जिसमें 72 छेद। वैसे अन्ना हजारे अगर कुछ कहते हैं तो लोग उन्हें सुनते और स्वीकारते भी हैं, पर टीम अन्ना के अग्रिम पंक्ति के ज्यादातर लोग विवादित छवि के हैं। इन पर भी गंभीर आरोप लगे हुए हैं। इसके बावजूद किरन बेदी ने जिस फूहड़ अंदाज में रामलीला मैदान में प्रदर्शन किया, वो संसदीय प्रणाली को शर्मशार करने वाला है। बहरहाल लोगों को लगा कि रामलीला में जब लोग उबने लगते हैं तो एक जोकर को आगे किया जाता है, जिसके हल्के फुल्के मनोरंजन से श्रोता खुश होकर ताली देते हैं।
अब आप बताएं कि जहां से आपको कानू्न बनवाना है, उसी संस्था पर आप कीचड़ उछाल रहे हैं। जिन नेताओं का समर्थन चाहिए उन्हें चोर बता रहे हो। एक खास पार्टी को टारगेट कर रहे हो। अगर आप संसदीय प्रणाली की एबीसीडी भी जानते हैं तो आपको समझ लेना चाहिए कि ऐसा नहीं हो सकता कि जिस पार्टी की सरकार हो, वो जो बिल चाहे पास करा सकती है। खासतौर पर गंठबंधन की सरकार से तो ऐसी उम्मीद करना बेमानी ही है। अगर ऐसा होता तो रिटेल सेक्टर में एफडीआई को कांग्रेस संसद से पास करा लेती। लेकिन चाहते हुए भी वो ये बिल पास नहीं करा पाई। फिर लोकपाल बिल जिस पर उसकी पार्टी के नेताओं में ही मतभेद हैं। राजनीतिक दल उस पर राजनीति कर रहे हैं।
अगर मैं ये कहूं कि अन्ना एक कानून के लिए आंदोलन नहीं चला रहे हैं, बल्कि उनके और उनकी टीम के आचरण से ऐसा लग रहा था कि वो केंद्र की सरकार और नौकरशाही को भ्रष्ट मानते हैं और उन्हीं के खिलाफ लोकपाल लाने की मुहिम चला रहे है। अन्ना और उनके चेलों की बयानबाजी से लगने लगा कि ये आंदोलन किसी सिविल सोसायटी का नहीं बल्कि इनके पीछे कुछ राजनीतिक दलों का हाथ है। चोर उचक्के सब अन्ना टोपी पहन कर ईमानदार हो गए। अच्छा ये भाषा तो किसी तानाशाह शासक जैसा इस्तेमाल करने लगे। अन्ना ने जब राहुल गांधी पर हमला बोला और पत्रकारों ने इस सिलसिले में पूछा तो कहने लगे कि कई बार मुंह खुलवाने की लिए नाक दवानी पड़ती है।
कांग्रेस का जो राजकुमार पार्टी नेताओं के दिलों पर राज करता है, जिसे कांग्रेसी भविष्य का प्रधानमंत्री बता रहे हैं, उस पर हमला करके, अन्ना को लगता है कि सरकार उनकी सभी मांगे मान लेंगी। भला ये कैसे संभव है। फिर टीम अन्ना ने जब ये कहा कि वो सरकार पर दबाव बनाए रखने के लिए अपना आंदोलन जारी रखेंगी, तो साफ हो गया कि ये चुनाव का लोकपाल है। सरकार कुछ भी कर ले, खामोश बैठने वाले नहीं हैं, ये एक के बाद एक अपना अभियान चलाएंगे और इन लोगों के निशाने पर कांग्रेस सरकार ही रहेगी।
अच्छा अनशन का मंच हो, सामने हजारों लोगों की भीड़ तो कई बार वक्ता भावनाओं में बह जाते हैं और कुछ भी ऊटपंटांग बोलते हैं। मीडिया ने अनशन की खबरे लोगों तक पहुंचाने की आड़ में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। देश में तमाम सामाजिक संस्थाओं की ओर से सैकडों सामाजिक सरोकारों से जुड़े आंदोलन हुए हैं। लेकिन मीडिया ने कभी इस तरह उनका साथ नहीं दिया। इस आंदोलन में आखिर ऐसा क्या था कि मीडिया ने इसे हाथो हाथ लिया। सच तो ये है कि मीडिया ने ऐसी बातों को भी सार्वजनिक किया, जिससे नेताओं को लगा कि कुछ लोग एक साजिश के तहत देश की सबसे बडी पंचायत संसद की मर्यादा को तार तार कर रहे हैं। यही सब बातें सुन कर नेताओं का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि सिविल सोसायटी नेताओं की आंखो की किरकिरी बन गई।
दरअसल कुछ शहरी मानसिकता के लोगों को लगता है कि ये तीन चार महानगर में जमा होने वाली भीड़ ही असली भारत है। सच तो ये है कि यू ट्यूब पत्रकारों को ना ही गांवों के बारे में जानकारी है और ना ही इनमें गांव को जानने समझने की कोई ललक है। हो भी क्यों, इन्हें लगता है कि गांव का आदमी उनका दर्शक ही नहीं है, क्योंकि वहां तक केबिल नेटवर्क की पहुंच नहीं है। फिर गांव को जानने समझने की माथापच्ची आखिर क्यों की जाए। मीडिया को भी लग रहा था कि ये आंदोलन इतिहास में दर्ज होने जा रहा है और इसके जरिए ऐसा बदलाव हो जाएगा कि देश की सूरत बदल जाएगी। ऐसे में जब नए भारत का इतिहास लिखा जाएगा तो मीडिया की अनदेखी करने की कोई हिमाकत नहीं कर पाएगा। बस फिर क्या था, शुरू हो गया खेल। टीम अन्ना आग लगाती रही और मीडिया उसमें घी डालकर खुद ही खुश होती रही।
सच कहूं तो ये आंदोलन अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और किरण वेदी की वजह से अपने रास्ते से भटक चुका है। आंदोलन में आप 10 मांगे रखते हैं और सम्मानजनक तरीके से पांच मांगे पूरी करके आंदोलन को वापस लेने की अपील हो तो उसे मान लेना चाहिए। अच्छा ऐसा भला क्यों होता, अनशन पर बैठे हैं अन्ना हजारे और सरकार से बातचीत और न्यूज चैनलों में ज्ञान दे रहे हैं दूसरे लोग। इन्हें क्या पता कि जो आदमी भूखा बैठा है, उसके बारे में भी सोचना चाहिए। ये तो बस एक जिद्द करके चलते हैं। हां मुंबई की भी चर्चा कर ली जाए। मुंबई में बीमार तो सिर्फ अन्ना थे, केजरीवाल और किरन बेदी ने तीन दिन का अनशन आगे क्यों नहीं चलाया। अन्ना के साथ उन्होंने ना सिर्फ अनशन तोड़ दिया, बल्कि अगले चरण के आंदोलन को भी वापस ले लिया।
गिरफ्तारी भी पहले अन्ना देगें तो बाकी लोग देंगे, वरना सब मलाई काटेंगे। आपने दवाब बनाया था सरकार पर कि तीन अनशन फिर तीन दिन देश भर में जेल भरो आँदोलन। ये सब आंदोलन चलाने के लिए खूब रसीदें कट रही हैं। कार्यक्रम सब स्थगित कर दिए गए हैं। टीम अऩ्ना के पैर जमीन पर हैं नहीं हैं, सब हवा में उड़ रहे हैं।
मै दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर टीम अन्ना ने थोडा संयम और सभ्यता के दायरे में रहकर काम किया होता तो आज उनकी हालत ये नहीं होती। ये भले दावा करते रहें कि आंदोलन तेज करेंगे, पर जनता समझ गई कि ये भी बहुरुपिए हैं। जिद्द कर रहे हैं कि मैया मै तो चंद्र खिलौना लैहों, जहियों लोटी धरन पर कबहू तोरी गोद ना अइहों.... अन्ना जी अब चंद्र खिलौना तो नहीं ही मिल सकता, जमीन पर लेटें या कुछ भी कर लें। हालाकि मेरी राय मायने नहीं रखती, पर आप इस टीम से मुक्ति पाकर नए लोगों के साथ आंदोलन की शुरुआत करें। ये चेहरे सियासी लोगों से कहीं ज्यादा गंदे दिखाई दे रहे हैं।
आग में इतने लोग घी डालकर हाथ सेंकनेवाले हैं कि - आसान नहीं अंजाम
ReplyDeleteमैं आपकी बात से काफी हद तक सहमत हूं। राजनीति में आज अपराधी तत्व अधिक हैं लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सभी चोर हैं। कानून बनना चाहिए लेकिन किसी को चोर कहकर उनसे बिल पास नहीं कराया जा सकता है। यही गलती कांग्रेस भी कर रही है, जब उसे पता है कि बिना बीजेपी के वह बिल पास नहीं कर सकती फिर भी लगातार बीजेपी को गाली दिए जा रही है।
ReplyDeleteपूरा सच जानने हेतु यह लिंक देखेने की कृपा करें-
ReplyDeletehttp://krantiswar.blogspot.com/2011/12/blog-post_30.html
यानि अब भ्रष्टाचार यथावत चलता रहेगा :)
ReplyDeleteलोकपाल बिल के पास न होने की वजह मुख्य रूप से
ReplyDeleteसरकार कांग्रेस और विपक्ष ही है.इसका अर्थ यही है कि
सक्षम लोकपाल से सभी डरे हुए हैं.जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है
भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिशा प्रदान करने कि अन्ना ने भरपूर
चेष्टा की है.अच्छे बुरे लोग सभी जगह हैं.लोकपाल बिल का
पास न होना अन्ना के सिर मंढा जाना मैं उचित नही समझता.
आपने अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है.सभी की अपनी अपनी
जिम्मेवारी है.
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
हो सकता है आपकी बातों का जबाब
महावीर हनुमान दे सकें.
Aapki baaton se sehmat hoon magar puri tarah se nahi
ReplyDeleteएक बार फिर सच पर ....झूठ और विरोध हावी हो गया ...पर कब तक???????????
ReplyDeleteमहेंद्र जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष २०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.आशा है आप मेरी त्रुटियों,कमियों, भूलों या किसी भी मतभेद को नजरअंदाज कर अपना प्यार और स्नेह बनाये रखेंगें.
ReplyDeleteमैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर!नववर्ष की मंगल कामना
ReplyDeleteअच्छा विचार मंथननव वर्ष मुबारक . .
ReplyDeleteआँख में रतौंधी हो तब ऐसा ही दिखता भालता है . .कौन सी संसद और उसकी गरिमा की बात कर रहें हैं आप .सांसद तो कथित संसदीय व्यवहार के लिए ही कुख्यात है .सांसदों की भाषा से कहीं ज्यादा है अन्ना टीम की भाषा .और उस मंद मति बालक को आप राजकुमार बतला रहें हैं जिसे उत्तराखंड और छतीस गढ़ का फर्क नहीं मालूम जो देश के बुनियादी मामलों से कन्नी काटके निकल जाता है .खूब मूल्यांकन है आपका .कौन से मीडिया की बात कर रहें हैं आप .एक साथ क्या सारा मीडिया पगला गया ?
नव वर्ष मुबारक मय परिवार .मैं आपसे विमत रखने का प्रजातांत्रिक अधिकार रखता हूँ आप की ही तरह .
अच्छा विचार मंथननव वर्ष मुबारक . .
ReplyDeleteआँख में रतौंधी हो तब ऐसा ही दिखता भालता है . .कौन सी संसद और उसकी गरिमा की बात कर रहें हैं आप .सांसद तो कथित संसदीय व्यवहार के लिए ही कुख्यात है .सांसदों की भाषा से कहीं ज्यादा शिष्ट और संयमित है अन्ना टीम की भाषा .और उस मंद मति बालक को आप राजकुमार बतला रहें हैं जिसे उत्तराखंड और छतीस गढ़ का फर्क नहीं मालूम जो देश के बुनियादी मामलों से कन्नी काटके निकल जाता है .खूब मूल्यांकन है आपका .कौन से मीडिया की बात कर रहें हैं आप .एक साथ क्या सारा मीडिया पगला गया ?
नव वर्ष मुबारक मय परिवार .मैं आपसे विमत रखने का प्रजातांत्रिक अधिकार रखता हूँ आप की ही तरह .
सुंदर विश्लेषण बेहतरीन अभिव्यक्ति,लोकपाल बिल तो पास होकर रहेगा,
ReplyDeleteसमय चाहे जो लगे,..
नया साल "2012" सुखद एवं मंगलमय हो,....
नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
एक संतुलित आलेख... बहुत कुछ सोचने और पुनर्विचार करने को प्रेरित करता है!!
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण किया है !
ReplyDeleteसोच रही हूँ ....
निश्चित तौर पर अन्ना टीम के प्रति आपकी सोच सार्थक है. अन्ना के आन्दोलन कही न कही कुंठा से प्रेरित है. इसमें अन्ना का कोई दोष नहीं है. पर अन्ना टीम के पीछे कुछ छुपा मकसद अवश्य है. सार्थक पोस्ट . नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना.
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ....
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeletehttp://www.devbhoomimedia.com/state/uttarakhand-news/item/391-सूबे-की-जमीनों-को-औद्योगिक-घरानों-को-दिए-जाने-का-विरोध
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