मौका खुशी का है, सोच रहा हूं कि आज अपने ब्लाग परिवार से खुल कर बातें करूं। आमतौर पर हमेशा दूसरों की बातें करता रहा हूं, लेकिन आज सिर्फ अपनी ही करुंगा। हां ये बता दूं कि जो बातें मैं आज करुंगा उसे आप कत्तई आधा सच न समझे, ये पूरा सच है। मित्रों कल सु बह यानि 11 दिसंबर मेरे लिए क्या परिवार के लिए खास दिन है, क्योंकि 17 साल पहले आज ही के दिन लखनऊ में हम विवाह बंधन में बंध गए थे। 17 साल पीछे मुड़ कर देखता हूं तो लगता ही नहीं कि हम कितना सफर तय कर चुके हैं, सच कहूं तो लगता है कि सब कुछ कल ही की तो बात है।
मेरी शादी जिस दौर में हुई सच बताऊं तो उस समय किसी भी माता-पिता को अपनी बेटी की शादी किसी पत्रकार से करने में वो खुशी नहीं होती थी, जो खुशी उन्हें सरकारी महकमें के बाबू से करने में मिलती थी। या ये कह लें कि हाईस्कूल के बाद पालिटेक्नीक किया लड़का जो जेई हो जाता था, या फिर हाईस्कूल पास रेलवे में टिकट कलेक्टर बन जाते थे, पत्रकारों के मुकाबले लड़की वाले जेई और टीसी को ज्यादा बेहतर मानते थे। एक वाकया बताता हूं। 1991-92 में लोग मेरी शादी के लिए घर आने लगे थे। एक साहब वाराणसी से मेरी शादी के लिए पापा के पास आए, बातचीत शुरू हुई। उन्होंने पहला ही सवाल पापा से पूछ लिया " जी लड़का करता क्या है ? पापा ने जवाब दिया कि वो जर्नलिस्ट है। वो बोले ये तो ठीक है, पर करता क्या हैं। मतलब उस दौरान जर्नलिज्म को कुछ करना माना ही नहीं जाता था। लोगों को ये भी पता नहीं था कि भाई पत्रकार भी नौकरी करते हैं और उन्हें भी हर महीने वेतन मिलता है।
हकीकत ये है कि उस दौरान लोग बहुत ज्यादा घूमने फिरने में भरोसा नहीं रखते थे, लोगो को अपने जिले और आस पास के अलावा कोई खास जानकारी भी नहीं होती थी। हमलोग मिर्जापुर के रहने वाले हैं, यहां दैनिक जागरण और आज अखबार का बोल बाला था। अब साल तो मुझे ठीक ठीक नहीं याद है, पर मुझे लगता है कि ये बात 1992 की होगी। मैं बरेली में दैनिक जागरण अखबार में उप संपादक/ संवाददाता के पद पर तैनात था। मेरी शादी भी लगभग पक्की हो चुकी थी। इसी बीच मुझे अमर उजाला अखबार में बेहतर पैकेज मिला तो मैने वहां ज्वाइन कर लिया। इसका नतीजा ये हुआ कि मेरी तय हुई शादी सिर्फ इसलिए टूट गई, क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को अमर उजाला अखबार के बारे में जानकारी ही नहीं थी। उन्हें लगा कि पता नहीं किस अखबार में चला गया, दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग अमर उजाला अखबार को जानते ही नहीं थे। मुझे और मेरे मित्रों को जब इस बात की जानकारी हुई तो हम बहुत हंसे..।
चलिए अब सीधे 11 दिसंबर 1994 पर आ जाते हैं। उस दौरान मैं अमर उजाला मुरादाबाद में तैनात था। हमारे ससुर जी सिचाई विभाग में इंजीनियर और सासू मां सरकारी स्कूल में टीचर। वैसे ससुर जी तो पहले एक कस्टम इंस्पेक्टर से शादी की बात चला रहे थे। उनकी कई दौर की बात हो चुकी थी, पर शादी मंहगी पड़ रही थी। मुझे तो शादी के बाद मैडम ने ही बताया कि लड़के वालों ने सभी बारातियों के लिए अंगूठी की मांग रख दी, और इस मांग से वो पीछे नहीं हटे, लिहाजा बात आगे नहीं बढ पाई। फिर घर में सोचा गया कि चलो जर्नलिस्ट को ही टटोल लेते हैं। अब 17 साल पुरानी बात हो गई, इसलिए कोई इस बात से सहमत नहीं होगा, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरी शादी इसलिए तो बिल्कुल ही नहीं हुई कि लड़का जर्नलिस्ट है। अगर ऐसा होता तो मैं जहां काम कर रहा था, वहां एक बार कोई ना कोई ससुराल से जरूर आता। हां एक दिन जब मैं शाम को आफिस पहुंचा तो मुझे गेटमैन ने जरूर बताया कि भाईसाहब आज एक सिचाई विभाग से कोई आदमी आया था, जो आपके बारे में बहुत जानकारी कर रहा था। मैने उसे सब बढिया बढिया बताया है। उसी ने कहाकि शायद आपकी शादी के लिए पूछताछ कर रहा होगा। वैसे ये बात तो यहीं खत्म हो गई, पर शादी के बाद पता चला कि मुरादाबाद में मेरे ससुर के एक सहायक थे, जिन्होंने मेरे बारे में प्राथमिक जानकारी उन्हें मुहैया कराई थी।
खैर मुझे तो लगता है कि वो यहां सिर्फ ये जानना चाहते होंगे, जिस लड़के से शादी के बारे में बातचीत चल रही है, वो वाकई मुरादाबाद में है भी या नहीं। इतना ही मतलब रहा होगा। मेरा मानना है कि मेरी शादी की दो वजहें थीं, एक तो ये कि मेरे जीजा जी के छोटे भाई की शादी मेरी मैडम की बड़ी बहन से हुई है। इससे दोनों परिवार एक दूसरे को ठीक ठीक जानते समझते थे। दूसरा ये कि हमारे यहां खेती बारी ठीक ठाक है। वैसे अच्छा तो ये है कि इस बात को यहीं खत्म कर दिया जाए, बेवजह मैं मैडम को नाराज नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे विवाह की सालगिरह 11 दिसंबर को और अगले ही दिन यानि 12 दिसंबर को मैडम का जन्मदिन भी है, बेहतर ये होगा कि सबकुछ ठीक ठाक रहे जिससे दोनों दिन हम साथ साथ कहीं बाहर जाकर डिनर कर सकें।
अच्छा फिल्मों ने भी पत्रकारों की इमेज कुछ इसी तरह की बना रखी थी। पत्रकार का नाम सुनते ही लोगों के मन में जो तस्वीर बनती थी वो बहुत डरावनी होती थी। यानि एक ऐसे युवक की जो महीनों बिना नहाए, चेहरे पर उलझी दाढ़ी़, बेतरतीब बाल, एक उद्धत हो चुकी जींस, गंदा कुर्ता, लंबा झोला और कुल्हापुरी चप्पल पहन कर साईकिल से चला जा रहा है, लेकिन उसे जाना कहां ये भी इस नौजवान को पता नहीं हैं। हां मैं ये नहीं कहता की जो तस्वीर बनाई गई थी वो गलत थी, सच्चाई ये थी कि जींस और कुर्ते में हम खुद को कम्फरटेबिल समझते थे। दरअसल कल और आज मे फर्क भी बहुत है। उस दौर में पत्रकारों को पड़ी लकड़ी उठाने की आदत होती थी। यानि हम अगर सरकारी अस्पताल पहुंच गए और देख लिया कि कोई मरीज कराह रहा है और उसे देखने वाला कोई नहीं है। तो हम पूरे अस्पताल की चूलें हिला दिया करते थे। एक एक्टिविस्ट की तरह हम काम करते थे, पहले मरीज के बेहतर इलाज के लिए संघर्ष फिर दफ्तर पहुंच कर रिपोर्ट लिखते थे। अब ऐसा नहीं है, अब तो पत्रकार महज रिपोर्टर बनकर रह गए हैं। वो सिर्फ रिपोर्ट लिखते हैं।
वैसे पत्रकारों का पहनावा ठीक होने की एक बडी वजह महिलाएं भी हैं। मै अखबार का जिक्र नहीं करूंगा, लेकिन बताऊं कि मेरे आफिस में रिसेप्सनिस्ट के पद पर एक लड़की की तैनाती हो गई। हफ्ते भर के भीतर ही आधे से ज्यादा लोगों ने शेविंग करनी शुरू कर दी। हम पत्रकारों में नए कपड़े खरीदने का चलन ही नहीं था। हम तीन चार दोस्त एक कमरे में रहते थे, कुछ कपडे़ खरीदे जाते थे, और ये कपडे किसी एक के नहीं होते थे। जिसे जो जी में आया पहन कर चला जाता था। पर इस लड़की ने हमें ब्रीफकेश खरीदने को मजबूर कर दिया, क्योंकि फिर सबके अपने अपने कपड़े हो गए जो ताले वाले ब्रीफकेश में रखे जाने लगे। एक बार अखबार के डायरेक्टर यानि मालिक का आना हुआ, वो लोगों का बदला हुआ ये रूप देखकर हैरान रह गए। उन्होंने मैनेजर से पूछा ये माजरा क्या है, सब के सब अप टू डेट कैसे हो गए। जवाब आया रिसेप्सन पर लड़की की तैनाती इसकी मुख्य वजह है। मैनेजर इस बात से भी परेशान थे के लोग एक बार मैनेजर से हैलो हाय भले ना करें, पर रिसेप्शन पर जरूर करते थे।
बहरहाल हमारे डायरेक्टर खुश हुए और उन्होंने सभी स्टाफ को रेमंड का कोट गिफ्ट किया, लेकिन इसके साथ ये शर्त रखी गई कि लोगों को आफिस कोट टाई में आना होगा। सभी ने कहा बिल्कुल, हम जरूर पहना करेंगे। लेकिन हमारे एक मित्र कौशल किशोर आफिस से देर रात घर के लिए निकले। कोट टाई पहने कौशल को मुहल्ले का कुत्ता पहचान नहीं पाया और काट लिया। बात मालिक तक पहुंची और कोट टाई की अनिवार्यता खत्म हो गई।
समय कैसे बदलता है, आज देखिए, जो जर्नलिस्ट कभी शादी के लिए लोगों की प्राथमिकता में नहीं थे, आज तमाम बडे बडे अफसर लाखों रुपये खर्च कर अपनी बेटी को जर्नलिज्म का कोर्स करा रहे हैं। देश में मास कम्यूनिकेशन हजारों कालेज खुल गए हैं। लगभग सभी विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता की पढाई शुरू हो गई है, मेरिट इतना हाई है कि अच्छे संस्थान में लोगों को दाखिला नहीं मिल रहा है। अब अखबार का दफ्तर हो या फिर न्यूज चैनल, सभी जगह लड़कियों की अच्छी खासी संख्या है। सच तो ये है कि अब शादी के लिए जर्नलिस्ट भी लोगों की प्राथमिकता में आ गए हैं। बहरहाल पत्रकारों को समाज की स्वीकार्यता मिल गई, मुझे लगता है कि ये पत्रकारों की काम की वजह से हैं। बहरहाल बात बेवजह की लंबी हो गई, मैं तो बस अपनी शादी की सालगिरह को यादगार बनाने के लिए पुरानी बातों को याद करने लगा। एक एक बात याद इसीलिए है, कि मुझे लगता ही नहीं कि हमने लंबा सफर तय किया है, मेरे हिसाब से ये सब कुछ दिन पहले की बात है।
चलते - चलते
आखिर में एक बात और । जनवासे से बारात के रवाना होने के पहले मैने बैंड बाजा के मास्टर को बुलाया और उसे समझाया कि देखो भाई मुझे दो गानों से बहुत परहेज है और आप इस बात का ध्यान रखें कि पूरे रास्ते ये गाना बजना नहीं चाहिए। एक गाना है आज मेरे यार की शादी है और दूसरा ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का, इस देश के यारों.......। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जैसे ही बारात दरवाजे पर पहुंची और मैं कार से नीचे उतर रहा था, तभी बैंडवालों से रहा नहीं गया और ये गाना बजा ही दिया कि ये देश है वीर जवानों का....... । खैर अब मैं कुछ नहीं कर सकता था ।
मेरी शादी जिस दौर में हुई सच बताऊं तो उस समय किसी भी माता-पिता को अपनी बेटी की शादी किसी पत्रकार से करने में वो खुशी नहीं होती थी, जो खुशी उन्हें सरकारी महकमें के बाबू से करने में मिलती थी। या ये कह लें कि हाईस्कूल के बाद पालिटेक्नीक किया लड़का जो जेई हो जाता था, या फिर हाईस्कूल पास रेलवे में टिकट कलेक्टर बन जाते थे, पत्रकारों के मुकाबले लड़की वाले जेई और टीसी को ज्यादा बेहतर मानते थे। एक वाकया बताता हूं। 1991-92 में लोग मेरी शादी के लिए घर आने लगे थे। एक साहब वाराणसी से मेरी शादी के लिए पापा के पास आए, बातचीत शुरू हुई। उन्होंने पहला ही सवाल पापा से पूछ लिया " जी लड़का करता क्या है ? पापा ने जवाब दिया कि वो जर्नलिस्ट है। वो बोले ये तो ठीक है, पर करता क्या हैं। मतलब उस दौरान जर्नलिज्म को कुछ करना माना ही नहीं जाता था। लोगों को ये भी पता नहीं था कि भाई पत्रकार भी नौकरी करते हैं और उन्हें भी हर महीने वेतन मिलता है।
हकीकत ये है कि उस दौरान लोग बहुत ज्यादा घूमने फिरने में भरोसा नहीं रखते थे, लोगो को अपने जिले और आस पास के अलावा कोई खास जानकारी भी नहीं होती थी। हमलोग मिर्जापुर के रहने वाले हैं, यहां दैनिक जागरण और आज अखबार का बोल बाला था। अब साल तो मुझे ठीक ठीक नहीं याद है, पर मुझे लगता है कि ये बात 1992 की होगी। मैं बरेली में दैनिक जागरण अखबार में उप संपादक/ संवाददाता के पद पर तैनात था। मेरी शादी भी लगभग पक्की हो चुकी थी। इसी बीच मुझे अमर उजाला अखबार में बेहतर पैकेज मिला तो मैने वहां ज्वाइन कर लिया। इसका नतीजा ये हुआ कि मेरी तय हुई शादी सिर्फ इसलिए टूट गई, क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को अमर उजाला अखबार के बारे में जानकारी ही नहीं थी। उन्हें लगा कि पता नहीं किस अखबार में चला गया, दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग अमर उजाला अखबार को जानते ही नहीं थे। मुझे और मेरे मित्रों को जब इस बात की जानकारी हुई तो हम बहुत हंसे..।
चलिए अब सीधे 11 दिसंबर 1994 पर आ जाते हैं। उस दौरान मैं अमर उजाला मुरादाबाद में तैनात था। हमारे ससुर जी सिचाई विभाग में इंजीनियर और सासू मां सरकारी स्कूल में टीचर। वैसे ससुर जी तो पहले एक कस्टम इंस्पेक्टर से शादी की बात चला रहे थे। उनकी कई दौर की बात हो चुकी थी, पर शादी मंहगी पड़ रही थी। मुझे तो शादी के बाद मैडम ने ही बताया कि लड़के वालों ने सभी बारातियों के लिए अंगूठी की मांग रख दी, और इस मांग से वो पीछे नहीं हटे, लिहाजा बात आगे नहीं बढ पाई। फिर घर में सोचा गया कि चलो जर्नलिस्ट को ही टटोल लेते हैं। अब 17 साल पुरानी बात हो गई, इसलिए कोई इस बात से सहमत नहीं होगा, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरी शादी इसलिए तो बिल्कुल ही नहीं हुई कि लड़का जर्नलिस्ट है। अगर ऐसा होता तो मैं जहां काम कर रहा था, वहां एक बार कोई ना कोई ससुराल से जरूर आता। हां एक दिन जब मैं शाम को आफिस पहुंचा तो मुझे गेटमैन ने जरूर बताया कि भाईसाहब आज एक सिचाई विभाग से कोई आदमी आया था, जो आपके बारे में बहुत जानकारी कर रहा था। मैने उसे सब बढिया बढिया बताया है। उसी ने कहाकि शायद आपकी शादी के लिए पूछताछ कर रहा होगा। वैसे ये बात तो यहीं खत्म हो गई, पर शादी के बाद पता चला कि मुरादाबाद में मेरे ससुर के एक सहायक थे, जिन्होंने मेरे बारे में प्राथमिक जानकारी उन्हें मुहैया कराई थी।
खैर मुझे तो लगता है कि वो यहां सिर्फ ये जानना चाहते होंगे, जिस लड़के से शादी के बारे में बातचीत चल रही है, वो वाकई मुरादाबाद में है भी या नहीं। इतना ही मतलब रहा होगा। मेरा मानना है कि मेरी शादी की दो वजहें थीं, एक तो ये कि मेरे जीजा जी के छोटे भाई की शादी मेरी मैडम की बड़ी बहन से हुई है। इससे दोनों परिवार एक दूसरे को ठीक ठीक जानते समझते थे। दूसरा ये कि हमारे यहां खेती बारी ठीक ठाक है। वैसे अच्छा तो ये है कि इस बात को यहीं खत्म कर दिया जाए, बेवजह मैं मैडम को नाराज नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे विवाह की सालगिरह 11 दिसंबर को और अगले ही दिन यानि 12 दिसंबर को मैडम का जन्मदिन भी है, बेहतर ये होगा कि सबकुछ ठीक ठाक रहे जिससे दोनों दिन हम साथ साथ कहीं बाहर जाकर डिनर कर सकें।
अच्छा फिल्मों ने भी पत्रकारों की इमेज कुछ इसी तरह की बना रखी थी। पत्रकार का नाम सुनते ही लोगों के मन में जो तस्वीर बनती थी वो बहुत डरावनी होती थी। यानि एक ऐसे युवक की जो महीनों बिना नहाए, चेहरे पर उलझी दाढ़ी़, बेतरतीब बाल, एक उद्धत हो चुकी जींस, गंदा कुर्ता, लंबा झोला और कुल्हापुरी चप्पल पहन कर साईकिल से चला जा रहा है, लेकिन उसे जाना कहां ये भी इस नौजवान को पता नहीं हैं। हां मैं ये नहीं कहता की जो तस्वीर बनाई गई थी वो गलत थी, सच्चाई ये थी कि जींस और कुर्ते में हम खुद को कम्फरटेबिल समझते थे। दरअसल कल और आज मे फर्क भी बहुत है। उस दौर में पत्रकारों को पड़ी लकड़ी उठाने की आदत होती थी। यानि हम अगर सरकारी अस्पताल पहुंच गए और देख लिया कि कोई मरीज कराह रहा है और उसे देखने वाला कोई नहीं है। तो हम पूरे अस्पताल की चूलें हिला दिया करते थे। एक एक्टिविस्ट की तरह हम काम करते थे, पहले मरीज के बेहतर इलाज के लिए संघर्ष फिर दफ्तर पहुंच कर रिपोर्ट लिखते थे। अब ऐसा नहीं है, अब तो पत्रकार महज रिपोर्टर बनकर रह गए हैं। वो सिर्फ रिपोर्ट लिखते हैं।
वैसे पत्रकारों का पहनावा ठीक होने की एक बडी वजह महिलाएं भी हैं। मै अखबार का जिक्र नहीं करूंगा, लेकिन बताऊं कि मेरे आफिस में रिसेप्सनिस्ट के पद पर एक लड़की की तैनाती हो गई। हफ्ते भर के भीतर ही आधे से ज्यादा लोगों ने शेविंग करनी शुरू कर दी। हम पत्रकारों में नए कपड़े खरीदने का चलन ही नहीं था। हम तीन चार दोस्त एक कमरे में रहते थे, कुछ कपडे़ खरीदे जाते थे, और ये कपडे किसी एक के नहीं होते थे। जिसे जो जी में आया पहन कर चला जाता था। पर इस लड़की ने हमें ब्रीफकेश खरीदने को मजबूर कर दिया, क्योंकि फिर सबके अपने अपने कपड़े हो गए जो ताले वाले ब्रीफकेश में रखे जाने लगे। एक बार अखबार के डायरेक्टर यानि मालिक का आना हुआ, वो लोगों का बदला हुआ ये रूप देखकर हैरान रह गए। उन्होंने मैनेजर से पूछा ये माजरा क्या है, सब के सब अप टू डेट कैसे हो गए। जवाब आया रिसेप्सन पर लड़की की तैनाती इसकी मुख्य वजह है। मैनेजर इस बात से भी परेशान थे के लोग एक बार मैनेजर से हैलो हाय भले ना करें, पर रिसेप्शन पर जरूर करते थे।
बहरहाल हमारे डायरेक्टर खुश हुए और उन्होंने सभी स्टाफ को रेमंड का कोट गिफ्ट किया, लेकिन इसके साथ ये शर्त रखी गई कि लोगों को आफिस कोट टाई में आना होगा। सभी ने कहा बिल्कुल, हम जरूर पहना करेंगे। लेकिन हमारे एक मित्र कौशल किशोर आफिस से देर रात घर के लिए निकले। कोट टाई पहने कौशल को मुहल्ले का कुत्ता पहचान नहीं पाया और काट लिया। बात मालिक तक पहुंची और कोट टाई की अनिवार्यता खत्म हो गई।
समय कैसे बदलता है, आज देखिए, जो जर्नलिस्ट कभी शादी के लिए लोगों की प्राथमिकता में नहीं थे, आज तमाम बडे बडे अफसर लाखों रुपये खर्च कर अपनी बेटी को जर्नलिज्म का कोर्स करा रहे हैं। देश में मास कम्यूनिकेशन हजारों कालेज खुल गए हैं। लगभग सभी विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता की पढाई शुरू हो गई है, मेरिट इतना हाई है कि अच्छे संस्थान में लोगों को दाखिला नहीं मिल रहा है। अब अखबार का दफ्तर हो या फिर न्यूज चैनल, सभी जगह लड़कियों की अच्छी खासी संख्या है। सच तो ये है कि अब शादी के लिए जर्नलिस्ट भी लोगों की प्राथमिकता में आ गए हैं। बहरहाल पत्रकारों को समाज की स्वीकार्यता मिल गई, मुझे लगता है कि ये पत्रकारों की काम की वजह से हैं। बहरहाल बात बेवजह की लंबी हो गई, मैं तो बस अपनी शादी की सालगिरह को यादगार बनाने के लिए पुरानी बातों को याद करने लगा। एक एक बात याद इसीलिए है, कि मुझे लगता ही नहीं कि हमने लंबा सफर तय किया है, मेरे हिसाब से ये सब कुछ दिन पहले की बात है।
चलते - चलते
आखिर में एक बात और । जनवासे से बारात के रवाना होने के पहले मैने बैंड बाजा के मास्टर को बुलाया और उसे समझाया कि देखो भाई मुझे दो गानों से बहुत परहेज है और आप इस बात का ध्यान रखें कि पूरे रास्ते ये गाना बजना नहीं चाहिए। एक गाना है आज मेरे यार की शादी है और दूसरा ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का, इस देश के यारों.......। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जैसे ही बारात दरवाजे पर पहुंची और मैं कार से नीचे उतर रहा था, तभी बैंडवालों से रहा नहीं गया और ये गाना बजा ही दिया कि ये देश है वीर जवानों का....... । खैर अब मैं कुछ नहीं कर सकता था ।
हा हा हा हा हा हा .....और कुछ नहीं तो अपनी शादी की सालगिरह को ही ....अपने पेशे ..जर्नलिस्ट के साथ पेश कर दिया जी
ReplyDeleteशादी की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो .....
जै हो गुरू। ये ब्लॉग भौजी को ज़रूर पढ़वाना और अखबार के दफ्तर का नाम छिपाने का कौशल ऐन मौके पर फेल हो गया। वइसे लिख्यौ बहुत बढ़िया। पत्रकार तो ठीक..लेकिन करत का हौ? ये सवाल अपने सामने से भी बहुत बार चायबाजी करते गुजरा है। शादी की और भौजी की दोनों सालगिरह मुबारक़। मुंबई घूम जाओ, चैनल में इन दिनों छुट्टी मिलती हो तो।
ReplyDelete..अपने पेशे ..जर्नलिस्ट के साथ पेश कर दिया जी
ReplyDeleteशादी की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो .
शादी की सालगिरह पर आप दोनों को परिवार सहित मुबारक और
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
बधाई और शुभकामनाएं, वैवाहिक वर्षगांठ की।
ReplyDeleteआज सही में पत्रकारिता एक प्रमुख व्यवसाय बनता जा रहा है। और समय के साथ उनके वेश-भूषा और दिखावा पहनावा में भी काफ़ी परिवर्तन आया है।
वर्षगांठ की बहुत बहुत बधाई सर! और आंटी जी को जन्मदिन की अग्रिम शुभकामनाएँ भी।
ReplyDeleteएक सुझाव--ब्लॉग का नाम 'पूरा सच' ही रख लीजिये क्योंकि आधा तो कुछ लगता ही नहीं :)
सादर
बधाई वैवाहिक वर्षगांठ की।
ReplyDeleteविवाह के वर्षगांठ का स्नेहाशीष , साथ ही आनेवाले जन्मदिन का आशीष .... यह ख़ुशी हमेशा बरक़रार रहे ... अब तो पत्रकार की अहमियत मालूम हो गई होगी , लाखों की पढ़ाई हो गई है . बस वही गाना - ' जिसके सर पर हाथ फिरा दूँ चमके किस्मत उसकी ...' या फिर गए काम से . क्यूँ भाई , सही कहा न ? इस सौ प्रतिशत सच को पूरी सच्चाई के साथ मनाइए...
ReplyDeleteबहुत बधाई हो आपको, आपसे चार साल बाद हम भी बाँध दिये गये थे।
ReplyDeleteवैवाहिक वर्षगांठ की शुभकामनाएं, पत्रकार की वेशभूषा का खाका अच्छा खींचा आपने। उस समय कुछ बुर्जुआ तरह की शक्ल बनाए रखते थे। जो आम आदमी से अलग दिखते थे।
ReplyDeleteसाथ ही भाभी जी को जन्मदिन दिन शुभकामना पहुंचा दियो :)
many congratulations...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें..... सच हाल बयां किया है .....
ReplyDeleteपढकर बड़ा मज़ा आया ......आपको व् आदरणीय भाभी श्री को हार्दिक शुभकामनाए वर्षगाँठ पर व जन्मदिन पर भी !!!
ReplyDeleteमहेंदर जी,
ReplyDeleteआखिर आपने अपने शादी की साल गिरह में पत्रकारिता दिखा ही दी,..
शादी की वर्षगाँठ की ढेर सारी शुभकामनाये,.....
मेरे नए पोस्ट में...आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें
ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें
स्वागत है,.....
wakai patkaron ke baare me logon kee yahi soch thee..lekin aaj sab badal gayi hai..baise patrakar is desh ko badal sakte hain...lekin patrakar apni jimmewari ka nirwhan nahi kar rahe hain..sabhi nahi kuch logon ke baat kar raha hoon..shandar lekh ..mere blog per bhee aapka swagat hai
ReplyDeleteमहेंद्र जी ..आज के दिन के लिए आपको व आपकी पत्नी को भी बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ...!!प्रभु के आशीष से ...आने वाला समय आपके परिवार के लिए बहुत शुभ हो ..यही कामना करती हूँ ...!!
ReplyDeleteकल आपकी पत्नी को जन्मदिन की शुभकामनायें दीजिये ...
ReplyDeleteशादी की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई,महेंद्र भाई.
ReplyDeleteईश्वर आपकी जोड़ी सदा सदा सलामत रखें
नित दिन आपके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ बरसें.
हूँ .... तो यह बात है
आज के दिन ही हुई आपकी शादी
और आज ही आपने रिसेप्शनिस्ट की बात भी चला दी.
कोई बात नही भाभी जी को खबर लेना तो अच्छी तरह से
आता ही होगा.
अब तो अच्छे से मान मनुहार कर लेना चाहिये आपको उनका.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
शादी की वर्षगांठ की बहुत बहुत बधाई हो....
ReplyDeleteभाभी जी को उनके जन्मदिन की भी अशेष शुभकामनाएं.....
आपका किस्सा पढकर लगा कि अच्छा हुआ कि हमने खुद की ढूंढ ली... वरना एक पत्रकार को बेटी देने के लिए लोग न जाने कितने नखरे करते..
शादी की सालगिरह और भाभी जी को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteशादी एवं जन्मदिन दोनों की वर्षगांठ की हार्दिक मंगलकामनाएं स्वीकार करें।
ReplyDeleteआत्मकथात्मक विवरण भी आकर्षक और प्रेरक है।
बढ़िया उपहार दिया है श्री मति जी को दोनों खास दिन पर . हम आप को ढेर सारी शुभकामनाएं देते है . खट्टा-मीठा पोस्ट मंद-मंद मुस्कुराने पर विवश कर दिया . जब भी याद करुँगी तो मुस्कराहट फिर आ जायेगी . फिर से बधाइयाँ..
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा …………बस हँसी ही आ रही है पढकर ………बहरहाल आपको शादी की सालगिरह की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें और आपकी मैडम को जन्मदिन की भी हार्दिक बधाइयाँ आपने उनका नाम नही बताया तो मैडम ही लिखना पडा……:):)……वैसे वाकये खूब मज़ेदार रहे आपकी ज़िन्दगी के।
ReplyDeleteसबसे पहले आपको शादी की सालगिरह की बधाई दे दूँ फिर आपको ये ताकीद करती चालू कि कल उनका यानी अपनी अर्धांगिनी का जन्मदिवस मनाना मत भूलिएगा,अपने आपको बाक़ी दुनिया से खाली करके उनके लिए सुरक्षित कर लीजियेगा,पता नहीं अब भी आप पत्रकार हैं या नहीं पर यहाँ तो हम दोनों ही पत्रकारिता कर चुके हैं तो मैं इस जाब की तमाम व्यस्तताओ और उलझनों से बखूबी वाकिफ हूँ लेकिन प्लीज कल खुद को जरूर खाली रखियेगा,क्योंकि जन्मदिन वाले दिन अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नहीं होती ,मुझे तो बिलकुल नहीं होती ........
ReplyDeleteशादी की सालगिरह की बहुत बहुत शुभकामनायें...संस्मरण बहुत अच्छे है सालगिरह जैसे मौके होते ही इसलिए है की इस बहाने बीती बातों को याद किया जा सके..,,
ReplyDeleteमैडम को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनायें...
बैंड वालों का भी जवाब नहीं
ReplyDeleteshaadi ki saalgirah aur janamdin par shubhkaamnaye...mere blog par aapka swagat hai:)
ReplyDeleteआप दोनों को शादी की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो .....कल आपकी पत्नी को जन्मदिन की शुभकामनायें दीजियेगा... अपनी सालगिरह को पत्रकारिता के साथ जोड़कर बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है आपने.
ReplyDeleteशादी की सालगिरह आपको बहुत बहुत मुबारक हो।
ReplyDeleteआपने शादी के साथ साथ यह भी बताया कि पत्रकारिता की शैली और भावना कितनी बदल गई है। इस तरह यह पोस्ट भी केवल पारिवारिक न रहकर समाज की सच्चाई का आईना बन गई है।
ब्लॉगर्स मीट वीकली की 21 वीं महफ़िल में भी तशरीफ़ लायें
क्योंकि वहां है आपके लिए कुछ ख़ास पसंदीदा लेख
आपके स्टार ब्लॉगर्स के ।
ब्लॉगर्स मीट वीकली (21) Save Girl Child
महेंद्र जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट है !
विवाह की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक आप दोनों को,
हार्दिक अभिनन्दन ! इसमें भी आपने अपनी पत्रकारिता दिखा ही दी :)
बहरहाल बात बेवजह की लंबी हो गई......kuch aisa hi lag raha hai ki koi jurnalist hi ye lekh likh rahe hain. (:-) )
ReplyDeleteapko vivah ki salgirah ki bahut bahut mubarak aur Mrs. Srivastava ji ko unke janm din ki badhayi.
maza aa gaya aapke sansmaran padhkar. patrkaaron ki aisi bhi duragati nahin thee un dino. fakkad bhale hon par chintansheel to shuru se maane jaate hain patrakaar, ab bhi aur un dino bhi. mujhe bhi bada shauk thaa patrakaarita karne ka par nahin kar paai. baaki sab to thik hai lekin janwaase se jate samay jis gaane par aapne pabandi lagai thee wo gana aaj bhi shaadi ke har jalse mein bajta hai.''ye desh hai veer jawaano ka...'' shaheed hone ka din hota hai...bahut bahut badhai aap dono ko vivaah ke varshgaanth aur madam ko unke janmdin ki.
ReplyDeleteहाँ आप सच कह रहे ,आज भी कुछ और क्षेत्र ऐसे है जिन्हें लोग नहीं जानते जैसे मेरा बेटा कमियुनी केसन डिजायनर है ,एनिमेसन ,
ReplyDeleteकार्टून फिल्म बनाता है ,जब मैं बताती हूँ तो लोग कहते हैं बो तो ठीक है पर पढ़ाई क्या की है
HE HE HE ,JANI PAHCHAANI BAAT LAG RAHI HAI BHAISAHAB !!
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