Tuesday, 20 December 2011

बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री ...

सेवा में
प्रधानमंत्री जी
भारत सरकार

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, मैं पिछले कई दिनों से नहीं बल्कि महीनों से देख रहा हूं कि गल्ती कोई और कर रहा है, लेकिन निशाने पर आप हैं। इसके कारणों पर नजर डालें, तो लगता है कि है इन सबके लिए जिम्मेदार भी आप खुद ही हैं। दरअसल आप देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो आज तक खुद स्वीकार ही नहीं कर पाया है कि वो देश का प्रधानमंत्री है। आपकी कार्यशैली से लगता है, जैसे "प्रधानमंत्री" एक सरकारी पद है, जिस पर आपको तैनात किया गया और आप प्रधानमंत्री का महज कामकाज निपटा रहे हैं। आपको डर भी लगा रहता है कि कहीं कोई गल्ती ना हो जाए। इसलिए कदम इतना ज्यादा फूंक फूंक कर रख रहे हैं कि आपके अधीनस्थ आपको डरपोक कहने लगे हैं।

प्रधानमंत्री जी आपकी कुछ मजबूरियों को मैं समझ सकता हूं, जिसकी वजह से आप पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। आपके हाव भाव से ये लगता है कि आप इस बात का हमेशा ध्यान रखते हैं कि आपको देश ने तो प्रधानमंत्री बनाया नहीं, प्रधानमंत्री तो सोनिया गाधी ने बनाया है। इसीलिए आप देश से कहीं ज्यादा सोनिया के प्रति वफादार रहते हैं। देखता हूं कि जब आप सोनिया गांधी के साथ होते हैं तो बिल्कुल निरीह दिखाई देते हैं। कई बार तो सच में ऐसा लगता है कि आपसे प्रधानमंत्री का काम जबर्दस्ती लिया जा रहा है। वैसे भी आपको मुश्किल तो होती ही होगी, क्योंकि जो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी आज आपके मंत्रिमंडल के सदस्य हैं, कभी आप उनके अधीन काम कर चुके हैं। इस सच्चाई को भले आप स्वीकार ना करें, लेकिन मुश्किल तो होती ही है। मुझे तो लगता है कि इन्हीं सब वजहों से आप मजबूत नहीं हो पा रहे हैं और देश को मजबूर प्रधानमंत्री से काम चलाना पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री जी अन्ना की अगुवाई में कुछ लोग सड़कों पर आकर देश में आराजकता की स्थिति पैदा कर रहे हैं। आपको पता है ना कि भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा जाता है, जिनको हम सब पूजते हैं। मर्यादा को मानने वाला भगवान राम से बढ़कर मुझे कोई और नजर नहीं आता। लेकिन भगवान राम को ही अगर हम उदाहरण मान लें तो हम देखते हैं कि वो भी तानाशाही को ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं कर पाए। लंका पर चढाई करने जा रहे भगवान श्रीराम ने समुंद्र से रास्ता मांगा, भगवान राम को लगा कि शायद मैं समुद्र से प्रार्थना करुं तो वो मान जाएं और हमें खुद ही रास्ता दे दे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ..

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होत ना प्रीत ।। 

मतलब साफ है कि विनय यानि प्रार्थना से काम नहीं बनने वाला है, ये सोच कर जब भगवान राम ने चेतावनी दी अगर अब रास्ता नहीं दिया तो एक वाण चलाकर पूरे समुद्र को सुखा दूंगा। जैसे ही भगवान ने क्रोध धारण किया, समुद्र देव प्रगट हुए और भगवान राम से माफी मांगने के साथ ही तुरंत रास्ता देने को तैयार हो गए। मेरा सवाल प्रधानमंत्री जी आप से ये है कि भगवान राम को तीन दिन में गुस्सा आ गया और आप को तेरह दिन में गुस्सा नहीं आया। कुछ लोग देश में आराजकता का माहौल बनाए हुए हैं, आप उनसे सख्ती से क्यों नहीं निपट पा रहे हैं। अगर आपने  शुरू  में ही सख्त रुख अपनाया होता, तो ये नौबत ना आती। आपकी पार्टी के एक युवा सांसद जब भी जनता के बीच में होते हैं, वो गुस्से की बात करते हैं, उन्हें देश की हालात पर गुस्सा आता है, लेकिन जिस बात पर गुस्सा आता है , उसका निराकरण करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती।
प्रधानमंत्री जी देश में ऐसा संदेश जा रहा है कि ये सरकार भ्रष्ट तो है ही, कमजोर भी है। कुछ लोगों की बंदरघुड़की से पूरा मंत्रिमंडल घुटनों पर नजर आता है। आप प्रधानमंत्री हैं और आपकी छवि साफ सुथरी है, आप पर किसी को शक भी नहीं है, फिर आप किस दबाव में हैं जो सही गलत का फैसला नहीं कर पा रहे हैं। अब समय आ गया है कि आप इस पर ध्यान ना दें कि कौन सड़क पर उतर रहा है, कौन जेल भर रहा है, इससे निपटने के लिए कानून में व्यवस्था है, वो अपना काम करेगी। आप सिर्फ ये देखें की कौन सा कानून देश के हित मे है। मैं तो इस बात के भी खिलाफ हूं कि देश के प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाया जाए।

प्रधानमंत्री जी दरअसल आपका काफिला जब सड़क पर आता है तो लोगों से रास्ता खाली करा लिया जाता है, इसलिए आपको पता नहीं है, जनता क्या चाहती है। जो जनता  रामलीला मैदान और जंतर मंतर पर आती है, उसमें ज्यादातर लोग तफरी के लिए आते हैं। ये ऐसे लोग है, जो वोटिंग का महत्व भी नहीं जानते और चुनाव के दौरान दिल्ली से बाहर घूमने चले जाते हैं। देश के लोग भ्रष्टाचार से ज्यादा मंहगाई से परेशान हैं। आज जरूरत है मंहगाई को कैसे नियंत्रित किया जाए।

प्रधानमंत्री जी पूरा मंत्रिमंडल चार ऐसे लोगों को मनाने में जुटा है, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। वो एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं। विपक्षी दल खासतौर पर बीजेपी की इस पूरे आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका है। जब सरकार लोकपाल  बिल पर काम करती नजर आ रही थी, उस समय भी टीम अन्ना एक राजनीति के तहत कांग्रेस का विरोध करती रही। इस टीम की स्क्रिप्ट कहीं और लिखी जा रही है, इसलिए आप टीम को संतुष्ट करने के बजाए देश को संतुष्ट करने के लिए काम करें।

प्रधानमंत्री जी आपको तो पता है ना टीम अन्ना संघर्ष तेज करने और जब तक शरीर में जान है, तब तक लड़ने की बात करती हैं। लेकिन दिल्ली से महज इसलिए भाग खड़े हुए कि यहां ठंड बहुत है। जो लड़ाके ठंड़ से डरते हों, वो जान की बाजी की बात करते हैं तो हंसी ही आती है।  लोग संघर्ष की शुरुआत अपने गांव से करते हैं, फिर जिले, राज्य से  होते हुए केंद्र यानि दिल्ली आते हैं। अन्ना की लड़ाई उल्टी शुरू हुई। सीधे दिल्ली आ गए, यहां से अब अपने राज्य महाराष्ट्र वापस चले गए, अब जिले में जेल भरते हुए अपने गांव पहुंच जाएंगे। देश की जनता भी इस टीम की हकीकत को समझने लगी है। मैं गारंटी के साथ आपको बताना चाहता हूं कि लोकपाल के मामले में इनकी पूरी बातें मान भी ली जाएं तो ये दूसरी मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ सड़कों पर रहेंगे।

चलते चलते एक गुजारिश है प्रधानमंत्री जी,  आप लोकपाल बिल में एनजीओ को जरूर शामिल करें। क्योंकि देश में एक बड़ा तपका खासतौर पर सफेद पोश लोग एनजीओ की आड़ में गोरखधधा कर रहे हैं। ये कुछ विदेशी संस्थाओं से जुड़ कर बाहर से पैसे लाते हैं और उनका दुरुपयोग किया जाता है। इसी पैसे से ये राजनेताओं, सरकारी तंत्र को कमजोर करते हैं। मुझे पक्का भरोसा है कि इस मामले में भी एक ग्रुप आफ मीनिस्टर का गठन कर देशहित में आप सही निर्णय लेंगे। आज बस इतना ही।

धन्यवाद

महेन्द्र श्रीवास्तव
दिल्ली 

12 comments:

  1. प्रधानमंत्री जी आपकी कुछ मजबूरियों को मैं समझ सकता हूं, जिसकी वजह से आप पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। आपके हाव भाव से ये लगता है कि आप इस बात का हमेशा ध्यान रखते हैं कि आपको देश ने तो प्रधानमंत्री बनाया नहीं, प्रधानमंत्री तो सोनिया गाधी ने बनाया है। इसीलिए आप देश से कहीं ज्यादा सोनिया के प्रति वफादार रहते हैं। देखता हूं कि जब आप सोनिया गांधी के साथ होते हैं तो बिल्कुल निरीह दिखाई देते हैं।"
    प्रधानमंत्री जी, इतने प्यार से हम समझ रहे आपकी दशा , आप हमारी दशा समझिये - और आप टीम को संतुष्ट करने के बजाए देश को संतुष्ट करने के लिए काम करें।

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  2. Badhiya hai.

    Pradhanmantri ji tak aapki baat avsaya pahuche aisi meri kaamna hai.

    Aabhaar. . . . !

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  3. जो लड़ाके ठंड़ से डरते हों, वो जान की बाजी की बात करते हैं तो हंसी ही आती है। लोग संघर्ष की शुरुआत अपने गांव से करते हैं, फिर जिले, राज्य से होते हुए केंद्र यानि दिल्ली आते हैं।


    अब तो प्रधानमंत्री समझ जायेंगे ऐसा लगता है

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  4. सहमत।

    काश प्रधानमंत्री आपके पत्र को पढ पाते.....

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  5. अतुल जी, प्रधानमंत्री जी पढेंगे तब भी कमेन्ट थोड़े ही करेंगे, बढ़िया लेख.

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  6. कृपया गौर करें कि,सम्पूर्ण 'अन्ना आंदोलन' के सूत्रधार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। NGOs जिनहे अधिकांशतः IASअफसरों की पत्नियाँ चलाती हैं हमेशा सरकार के अलावा कारपोरेट घरानो (देशी और विदेशी दोनों)से चंदा झटकते हैं जो गरीब मजदूरों और किसानों के शोषण द्वारा एकत्र कमाई का हिस्सा होता है। मनमोहन जी की 1990 के बाद से नीतियों का परिणाम भ्रष्टाचार का विकृत है उसी को ढकने के लिए 'अन्ना' साहब को आगे करके भाजपा/आर एस एस और कारपोरेट घरानो के सहयोग से मनमोहन जी के आशीर्वाद से 'संसद' को पंगु बनाने का यह उपक्रम चल रहा है। यह न होता तो सोनिया जी उन्हे कबका पदच्युत कर चुकी होती। अन्ना आंदोलन का चलना मनमोहन के कुरसीनशीन बने रहने की गारंटी है श्रीमान।

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  7. आपका आलेख व्‍यंग्‍य है या वास्‍तविकता पता ही नहीं लगा।

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  8. प्रधान मंत्री जी के सामने मजबूरी है,..अगर कांग्रेस अकेले बहुमत में होती तो ये बिल कबका पास होगया होता,.....

    मेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  9. आपने अपने लेख को ... व्‍यंग्‍य के माध्यम से इसमें छिपी वास्‍तविकता को उजागर किया है ...आज देश कौन सी दिशा की और बढ रहा है ...ये प्रधानमंत्री जी भी नहीं जानते होंगे

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  10. बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री -:-):-)

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  11. बहुत सही कहा है आपने .. आभार ।

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  12. क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।