Saturday, 24 December 2011

हां ब्लागर होने पर मैं हूं शर्मिंदा ...

ई दिन से एक बात बहुत परेशान कर रही है, सोचता हूं कि आखिर मैं यहां यानि ब्लाग जगत में क्या करने आया था और जो करने आया था वो कर रहा हूं या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि ब्लाग पर आकर सिर्फ अपना समय खराब कर रहा हूं। यदा कदा लिखना और घंटो साथी ब्लागर्स के ब्लाग पर जाकर उन्हें पढ़ना। क्या इसे ही ब्लागिंग कहते हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं नहीं, ये तो ब्लागिंग नहीं हो सकती। दरअसल दिल्ली में मीडिया से जुड़े होने की वजह से सियासत के हर रंग को काफी करीब से देखने का मौका मिलता है। मीडिया संस्थानों की अपनी सीमाएं होती है, उसी दायरे में रहकर आपको अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। मुझे लगा कि मैं इस ब्लाग के जरिए उन बातों का यहां जिक्र करुंगा जो खेल पर्दे के पीछे चलता है।
मीडिया आजाद है, आपके साथ मैने भी सुना है, पर मीडिया रहते हुए मैने कभी ऐसा महसूस नहीं किया। खैर आज मैं मीडिया पर नहीं ब्लाग परिवार पर बात करने आया हूं। मित्रों मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि जब हम सभी ब्लागर्स को दिल पर हाथ रखकर सोचना होगा कि क्या हम जो कर रहे हैं, यही सोच कर हमने ब्लागिंग की शुरुआत की थी। क्या वाकई हमारा मकसद सिर्फ ये था कि यदा कदा हम कुछ लिख दें और दूसरे साथियों के ब्लाग पढ़ें, उन पर कमेंट करें, फिर उनसे भी यही अपेक्षा करें। ब्लागिंग बस इतनी ही है क्या ?

आप मेरी बात से सहमत होंगे कि सोशल नेटवर्किंग साइट को अब अपनी ताकत को साबित करने की जरूरत नहीं है। इजिप्ट आंदोलन में सोशल नेटवर्किंग ने लोगों को जागरूक करने में एक अहम भूमिका निभाई। अन्ना का आंदोलन सही है या गलत है, इस पर विवाद हो सकता है, पर इसमें कोई दो राय नहीं कि अन्ना को सोशल नेटवर्किंग साइट का भारी समर्थन रहा है। इसी की बदौलत एक बड़ा तूफान सड़कों पर दिखाई देता है। ऐसे में मुझे लगता है कि ब्लागिंग में जो बिखराव है, इसे समेटने की जरूरत है।

हमें सोचना होगा कि कैसे हम समाज की अनिवार्य जरूरतों में शामिल हो सकते हैं। मसलन जिस तरह लोग अगर एक दिन समाचार पत्र नहीं पढ़ते हैं तो उन्हें लगता है कि उनके दिन की शुरुआत ही नहीं हुई। मैं देखता हूं कि एक ही अखबार को ट्रेन में कितने लोग पढ़ते रहते हैं। बोगी में अखबार का हर पन्ना एक दूसरे में बट जाता है। क्रिकेट का मैच हम टीवी पर पूरा लाइव देखते हैं, फिर भी  अगले दिन अखबार का इंतजार रहता है। वो क्यों ? इसलिए कि टीवी पर सिर्फ वो दिखाई देता है,जो मैदान पर हो रहा है, लेकिन मैदान के बाहर जो खेल हो रहा है, वो अखबार ही बता पाएगा। कहने का मतलब ये है कि लोग अखबार पढ़ने के लिए जब इतना आतुर हो सकते हैं तो ब्लाग पर क्यों नहीं। हम ब्लाग को भी लोगों से जोड़ सकते हैं, पर इसके लिए पहले हमें लोगों का भरोसा जीतना होगा। हमें साबित करना होगा कि हम भी ईमानदारी से लेखन करते हैं।

आज बड़ा सवाल ये है कि हम कब तक चूं चूं करती आई चिड़िया, दाल  का दाना लाई चिड़िया लिखकर लोगों की झूठी वाहवाही लूटते रहेगें। हम जिम्मेदार कब बनेगें ? जिम्मेदार कोई एक दिन में नहीं बन सकता, सवाल ये है कि हम इसकी पहल कब करेंगे ? अच्छा ऐसा भी नहीं है कि इसके लिए हमें हिमालय पर्वत पड़ चढना है, हमें सिर्फ सामाजिक सरोकारों से जुडना होगा। समाज के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा। मै ये नहीं कहता कि हम अभी सामाजिक बुराइयों को लेकर संवेदनशील नहीं है, हम संवेदनशील हैं, लेकिन बिखरे हुए हैं। हम किसी बुराई को देखते हैं, एक लेख या फिर कविता के जरिए दो आंसू बहाकर आगे बढ़ जाते हैं। मुझे लगता है कि इतने भर से हमारा काम पूरा नहीं हो जाता। ये समझ लें, इससे तो हम किसी भी मुद्दे की शुरुआत भर करते हैं।

मित्रों अब वक्त आ गया है कि जब हमें लगे कि ये काम ठीक नहीं है, फला राज्य की  सरकार मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही है। तो हम सब को मिलकर आंदोलन छेड़ देना होगा। मैं दो एक मसले की चर्चा करना चाहता हूं। ब्लाग परिवार में महिलाओं की अच्छी संख्या है। राजस्थान  के एक मंत्री ने वहां की नर्स भंवरी देवी के साथ पहले अवैध संबंध बनाया, अब वो महिला गायब है। अभी तक उसका कोई सुराग नहीं मिला। मंत्री की कुर्सी चली गई, जांच सीबीआई कर रही है। क्या आपको लगता है कि इतना ही काफी है ? क्यों नहीं ब्लाग पर महिलाओं की आग दिखाई दी..। आपको नहीं लगता कि ये ऐसा मुद्दा था कि महिलाओं के साथ हम सब ब्लाग को भंवरी देवी से रंग कर लाल कर देते।

हम 21 वीं सदी की बात करते हैं, गोरखपुर में अज्ञात बीमारी से सौ से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। आज तक सूबे की सरकार ये नहीं बता पा रही है कि मौत की वजह क्या थी। क्या हमारे भीतर इतनी संवेदनशीलत नहीं है, कि हम इसे एक मुद्दा बनाकर ब्लाग को रंग देते। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ विभाग का भ्रष्टाचार किसी से छिपा नही हैं। यूपी के ब्लागर्स ने कितनी बार इस मुद्दे पर अपनी  कलम चलाई। आज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं। आए दिन सुनते रहते हैं कि उन्हें  यूपी सरकार के बेईमानी पर गुस्सा आता है। कोई उनसे पूछ सकता है कि राहुल आपको केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार पर आज तक गुस्सा क्यों नहीं आया ? जिस पार्टी की वजह से (डीएमके) केंद्र की सरकार बदनाम हो रही है, उससे किनारा क्यों नही कर लेते। क्या  सरकार में बने रहने के लिए बेईमान पार्टियों का सहयोग लेने से परहेज नहीं है कांग्रेस को। आपको नहीं लगता कि ये ऐसा मुद्दा है जिस पर हमें अपनी बेबाक राय रखनी चाहिए।

हम सब भारतीय संविधान में आस्था रखते हैं। हम जानते हैं कि हमारे देश की खूबसूरती हमारा लोकतंत्र है। पडोसी देशों में लोकतंत्र कमजोर हुआ तो उसका हश्र देख रहे हैं। मैं बार बार कहता रहा हूं कि अन्ना का मुद्दा सही हो सकता है, पर तरीका गलत है। आप संसद को बंधक बनाकर काम नहीं ले सकते। देश में भ्रष्टाचार गंभीर समस्या है, भ्रष्टाचारियों को सख्त सजा होनी ही चाहिए। लेकिन मित्रों लोकपाल भी तभी काम कर पाएगा, जब देश में लोकतंत्र होगा। बताइये जिस सरकार से टीम अन्ना दो दो हाथ करने निकली है, उन्हीं से अनशन के लिए मैदान का शुल्क माफ करने की भीख मांग रहे हैं। मेरा मानना है कि जनता की ताकत और जनता के पैसे को उन्होंने दो कौड़ी के नेताओं के पैरों में डाल दिया। मुझे इस बात की तकलीफ है कि जब भी आंदोलन अन्ना ने आंदोलन किया है, जंतर मंतर पर या रामलीला मैदान पर, वहां जितना खर्च हुआ, उससे कई गुना ज्यादा पैसा जनता ने उन्हें चंदा दे दिया, फिर ये फीस माफी के लिए क्यों अर्जी देते हैं ? यही वजह की मुंबई हाईकोर्ट से भी अन्ना को खरी खरी सुननी पड़ी।

खैर अब वो समय आ गया है जब लोगों को एक सूत्र में बंधना ही होगा। हमें सरकार से ये आवाज भी उठानी होगी कि जो सहूलियते इलेक्ट्रानिक या प्रिंट मीडिया को दी जाती हैं, वो सहूलियतें ब्लागर्स को भी दी जानी चाहिए। क्योंकि हम भी तो लोगों की आवाज हैं, हम भी तो सूचनाओं का आदान प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ब्लागर साथी हमें माफ करें तो मैं कुछ लोगों के नाम लेना चाहता हूं, जिनसे मैं कहना चाहता हूं कि वो ब्लाग परिवार में काफी वरिष्ठ हैं और उन्हें इसकी अगुवाई हाथ में लेनी ही चाहिए। चूंकि मेरी जानकारी कम है तो हो सकता है कुछ नाम छूट जाएं, लेकिन मै डा. रूपचंद्र शास्त्री, रश्मि प्रभा, पूर्णिमा वर्मन, रवींद्र प्रभात, ललित शर्मा, अविनाश वाचस्पति, वंदना गुप्ता, हरीश सिंह, डा. अनवर जमाल, राज भाटिया, यशवंत माथुर, राकेश कुमार, अनुपमा त्रिपाठी, विजय माथुर, आशुतोष, अंजू चौधरी, कविता वर्मा, चंद्रभूषण मिश्र गाफिल, दिनेश कुमार उर्फ रविकर, प्रवीण कुमार, सुमन, डा. मोनिका शर्मा का नाम लेना चाहता हूं जो ब्लाग परिवार से काफी समय से जुडे हैं और ये ब्लाग परिवार को नेतृत्व भी दे सकते हैं।

शुरुआत में दिक्कत हो सकती है, लेकिन हम अगर एक सूत्र में बंध गए और बुनियादी सवालों पर चट्टान की तरह खड़े हो गए, तो कोई ताकत नहीं, जो हमारी एकता के आगे नतमस्तक ना हो जाए। इससे दो फायदा होगा, पहला हमारी ताकत को लोग नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे और दूसरा आम जनता की जरूरतों की कोई अनदेखी करने की हिमाकत नहीं कर सकेगा। बडा सवाल ये है कि क्या हम ऐसा करने के लिए तैयार हैं और हमारे वरिष्ठ ब्लागर साथी क्या नेतृत्व देने के लिए आगे आएंगे ? अगर ऐसा नहीं  होता है, तो मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि हां मैं ब्लागर होने पर शर्मिंदा हूं..।
  

38 comments:

  1. महेंद्र जी आपके विचार और सुझाव अच्छे हैं। किन्तु मै तो वरिष्ठ नहीं अति सूक्ष्म ब्लागर हूँ ,फिर भी जो दायित्व मुझे सौंपा जाएगा उसे पूरी क्षमता एवं दक्षता से पूर्ण करने का आश्वासन दे सकता हूँ। जिन लोगों के साथ आपने मेरा नाम लिखा है उनमे एक अवकाश प्राप्त इंजीनियर साहब भी हैं जो अपने ब्लाग द्वारा ढोंग और पाखंड का महिमा मंडन करते हैं जबकि मै अपने ब्लाग द्वारा ढोंग व पाखंड पर जबर्दस्त प्रहार करता हूँ -ताल-मेल दोनों मे कैसे हो सकता है?
    मै शुरू से अन्ना-आंदोलन को राष्ट्रद्रोही और लोकतन्त्र के लिए गंभीर खतरा सप्रमाण सिद्ध कर रहा हूँ ,दूसरे सभी ब्लागर्स अन्ना के अंध-भक्त हैं फिर तालमेल कहाँ होगा?अतः बेहतर है वैचारिक एकता के आधार पर अलग-अलग गुट बना लिए जाएँ।

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  2. बिलकुल सहमत हूँ आपसे ! आपने ब्लॉग जगत की सच्चाई बयां कर दी !
    सार्थक पोस्ट !

    आभार !!

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  3. हज़ारों मायनों में से एक, ब्लागिंग = ज़िंदा हूं मैं

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  4. महेन्द्र जी ...आप की सोच और जज़्बे को सलाम और शुभकामनाएँ!
    मेरे जैसे तो अब ये ही कर सकते हैं ...आप के पुरे लेख से पूरी तरह सहमत हूँ | फिलहाल कुछ नाम का सुझाव दे सकता हूँ ...जो अपनी बेबाक राय के लिए हिम्मत रखते है ...मेरी नज़र में |
    १. ललित कुमार जी
    २.डॉ.दिव्या श्रीवास्तव
    ३.वीरू भाई राम राम (वीरेंद्र शर्मा )
    ४.डॉ.टी.एस.दराल
    ये लोग जहीन भी हैं और पढे-लिखे भी ...बाकि भी मेरे तो सब ही अच्छे हैं और ज़हीन भी ..अगर सुझाव अच्छा लगा तो आगे भी सुझाव की हिम्मत कर सकता हूँ ...बस अभी तो इतना ही याद आ रहा है...
    शुभकामनाएँ!
    अशोक सलूजा !

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  5. बाकि भी मेरे से .... तो सब ही अच्छे हैं पढा जाये !

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  6. बहुत देर से सोच रहा हूं, क्या लिखूं? विजय माथुर जी की भी बात में भि दम लग रहा है, आपकी बात में भी दम।

    उस लिस्ट में मैं हूं नहीं, इसलिए आपके अह्वान में हम भी शामिल हैं।

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  7. नहीं ब्लौगिंग मेरे लिए आत्मसुख नहीं , न ही किसी से होड़ है - मेरा लिखना , मेरा पढ़ना एहसासों को बांटने सा है ... अजनबी से परिचित और सबसे बड़ी बात कि जिस साहित्य को अपने वर्ग में पढकर हमने बहुत कुछ सीखा , उस मुकाम को फिर से लाना , कई कलम में वो ताकत है जो नई पीढ़ी को बहुत कुछ दे जाए . पहले इस क्षेत्र में लोग पैनी दृष्टि रखते थे , आज महज एक होड़ है . पहले भी था , पर इतना घृणित नहीं . ब्लॉग पर जहाँ तक मेरी नज़र जाती है , वहाँ से मैं हीरे तलाशती हूँ .
    आप भी जो लिखते हैं , वह मन बहलाव का साधन नहीं , न ही टिप्पणी के लिए है- कलम की ताकत व्यवस्था को बदलती है - सामाजिक, राजनैतिक , आर्थिक, आध्यात्मिक .... कम ही सही , पर एक परिवर्तन है ब्लॉग लिखना और पढ़ना . वरना जिसे देखिये सबसे कटा एक अनुमानित ज़िन्दगी जी रहा है . ब्लॉग ने एक शुभचिंतक का रोल भी निभाया है , दूसरे के दुःख में करीब हुआ है .
    मेरी समझ से यही है ब्लौगिंग ..... मैं एक समूह को जोड़ना चाहती हूँ .....
    आपके शब्द आपकी ब्लौगिंग का प्रमाण हैं - " अब वो समय आ गया है जब लोगों को एक सूत्र में बंधना ही होगा। हमें सरकार से ये आवाज भी उठानी होगी कि जो सहूलियते इलेक्ट्रानिक या प्रिंट मीडिया को दी जाती हैं, वो सहूलियतें ब्लागर्स को भी दी जानी चाहिए। क्योंकि हम भी तो लोगों की आवाज हैं, हम भी तो सूचनाओं का आदान प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं।"

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  8. क्या वाकई हमारा मकसद सिर्फ ये था कि यदा कदा हम कुछ लिख दें और दूसरे साथियों के ब्लाग पढ़ें, उन पर कमेंट करें, फिर उनसे भी यही अपेक्षा करें। ब्लागिंग बस इतनी ही है क्या ?
    bilkul saty,bloggers mein comments ke liye pratiyogitaa chal rahee hai.shaayad kai log theek se padthe bhee nahee ,kyaa aur kyon likhaa hai.comment likhaa.jaise bahut badhiyaa,saarthak rachnaa etc. aur bas ho gayaa .

    2.क्या सरकार में बने रहने के लिए बेईमान पार्टियों का सहयोग लेने से परहेज नहीं है कांग्रेस को। आपको नहीं लगता कि ये ऐसा मुद्दा है जिस पर हमें अपनी बेबाक राय रखनी चाहिए।
    saty samay rahte bebaakee se apne vichaar kavitaayein yaa lekhan ke zariye bataanaa zarooree hai.Mujhe yaad hai dushyant kumarji kaa daur ,jinhone mujhe bhee ,sochne ke liye aur ladne ke liye prothaasit kiyaa
    main aapke vicharon se prabhaavit hoon

    blogging mein saarthaktaa nahee ho ? samajh nahee aataa

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  9. प्रत्येक इकाई की विविधता , उद्ध्येश्य में असमानता व पूर्ण स्वतंत्रता के कारण ब्लॉगजगत अलहदा है . एकजुट करना होगा तब ब्लोगिंग की सार्थकता होगी . वैसे आवाज़ इतनी उठाई जाती है कि हर दूसरे की आवाज़ कहीं खो भी जाती है .पर सुनाई नहीं देती है किसी को . सब अपनी सुनाने में ही मगन हैं .

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  10. जितने भी मुद्दों पर एकता क़ायम हो सके, अच्छा है .
    @ भाई महेंद्र श्रीवास्तव जी ! आपने इस अगुवाई के लायक़ ब्लॉगर्स की सूची में हमारा नाम शामिल किया, इसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं।
    हम अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि जो काम हम यहां करने आए थे वही कर रहे हैं।
    पत्रकारिता की शुरूआत एक मिशन के तौर पर हुई थी लेकिन बाद में यह मिशन के बजाय प्रोफ़ेशन बन गया। आप इस प्रोफ़ेशन में हैं और इसकी हक़ीक़त को रोज़ देखते ही हैं। इसके बावजूद कुछ साप्ताहिक-मासिक पत्र पत्रिकाएं आज भी मिशन की भावना के साथ मौजूद हैं, चाहे उनकी रीडरशिप कम और आर्थिक स्थिति कमज़ोर ही क्यों न हो ।
    हिंदी ब्लॉगिंग में भी ऐसे ब्लॉग मौजूद हैं जो मिशन की भावना से काम कर रहे हैं।

    लोगों के बिखराव का एक लाभ यह होता है कि सच को सामने आने से रोकना असंभव हो जाता है।
    यही बिखराव ब्लॉगिंग की ताक़त है।
    जब भी ब्लॉगर्स एक होंगे तो उनकी नकेल किसी एक के हाथ में या एक ग्रुप के हाथ में आ जाएगी और सत्ता द्वारा उसे ख़रीद लेना ठीक वैसे ही आसान हो जाएगा जैसे कि अख़बार और टी. वी. चैनलों के संपादकों को ख़रीद लेना। एकता में जितनी ताक़त है, यह उतनी ही बड़ी कमज़ोरी भी बन जाती है।
    इस समय यह संभव नहीं है कि किसी एक ब्लॉगर या किसी एक ग्रुप से बात करके कोई ‘डील‘ की जा सके।
    आस्तिक-नास्तिक, वामपंथी-दक्षिणपंथी, हिंदू-मुस्लिम, सवर्ण-दलित, दिल्ली-बिहारी, अमीर-ग़रीब, औरत-मर्द और इसी तरह की बहुत सी बुनियादों पर लोग बंटे-छंटे और जमे हुए हैं।
    इस बंटवारे के बावजूद सामाजिक सुरक्षा, रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा, भ्रूण रक्षा, वृद्ध सेवा, भ्रष्टाचार उन्मूलन और महंगाई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सभी लोग अपना रचनात्मक सहयोग देने के लिए एकमत हो सकते हैं।
    ‘हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ की ब्लॉगर्स मीट वीकली की शुरूआत इसी मक़सद को लेकर की गई थी जिसे गुटबंदी के कारण अपेक्षित सहयोग नहीं मिला और वह इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई।
    हम यहां उन भ्रष्टाचारी राजनीतिक दलों से एक सीख ले सकते हैं जो कि अपनी विचारधारा में आकाश-पाताल का अंतर होने के बावजूद सत्ता का सुख लेने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना लेते हैं और कामयाबी के साथ जनता पर राज करते हैं पूरे 5 वर्ष।
    जब बेईमान लोग सत्ता के लिए एक हो सकते हैं तो क्या ईमानदार ब्लॉगर सत्य के लिए एक नहीं हो सकते ?

    आपने अच्छा मुद्दा उठाया है।
    जितने भी मुद्दों पर एकता क़ायम हो सके, अच्छा है वर्ना तो सारी ऊर्जा आपस के टकराव में ही निकल जाएगी और जीनियस लोगों का यह मंच जनसामान्य को उल्लेखनीय कुछ भी न दे पाएगा।

    धन्यवाद !
    एक पुकार हिंदी ब्लॉगर्स के लिए Unity

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  11. आप जो आवाज उठाये है.... उस में मेरी लेखनी , कुछ कर सके.... ?
    मुझे ख़ुशी होगी.... !! केवल मार्गदर्शन की जरुरत होगी.... :):)

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  12. smsayaayon ki jd se dhyan htane ka achchha pryas kiya hai buraaiyon ko achchhai aur achchhaiyon burai bta kr aap ne apni bhdas nikal li yh kya km hai aur fir aap kis bat ki ekta chahte hain aap achchha kam kren kaunrokta hai jo krte hain ve kisi se khte nhi un ke sath log jate hain jaise gandhi ji ne kiya aap gandhi bne pr bn nhi skte is liye aisi baten kr rhe hain bhut khoob kaun se lok tntr kii tarif kr rhe hain jnab bike huye lok tntr kii jis me vote khridna aam bat hai jis me aarkshn hai jis me kuchh logon ki mn mrji jai jhan koi yogyta nhi us liktrntr kii

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  13. महेंद्र जी,
    यदा कदा लिखना और घंटो साथी ब्लागर्स के ब्लाग पर जाकर उन्हें पढ़ना। क्या इसे ही ब्लागिंग कहते हैं।
    निसंदेह मै भी इसे ब्लोगिंग नहीं मानती !
    जिस जिम्मेदारी की बात आप कर रहे है, मै समझती हूँ यहाँ अपने ब्लॉग परिवार में ऐसे बहुत सारे
    वरिष्ठ ब्लोगर मित्र है जो पारिवारिक समस्या, सामाजिक समस्या राजनैतिक समस्या, स्वास्थ्य संबधी और न जाने कितनेही मुद्दों पर काफी अच्छा लिखते है ! क्या यह जिम्मेवार ब्लोगर नहीं है ? फर्क इतना है की, अभिव्यक्ति का तरीका सबका अलग अलग है !

    बाकी जिस एकता की बात आप कर रहे है, विचार सबके एक जैसे हो जरुरी नहीं है! यह मुझे तो संभव नहीं लगता ! टिप्पणियों की राजनीती के बाहर आकर ही कुछ अच्छा लिखा जा सकता है !ऐसा मेरा मानना है !इसके अलावा मै तो कुछ ज्यादा नहीं जानती क्यों की मुझे भी यहाँ आकर बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ है !

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  14. दूसरे क्‍या करते हैं, यह मुझे नहीं पता पर मैं वही करता हूं जो मेंरा दिल कहता है..... प्रिंट और इलेक्‍ट्रानिक मीडिया की अपनी सीमाएं हैं, पर ब्‍लाग में मैं स्‍वतंत्र हूं और अपने आसपास जो देखता हूं, उसे ब्‍लाग में उतार देता हूं.... अन्‍ना पर भी मैंने लिखा है, बाबा रामदेव पर भी.... प्रदेश सरकार की योजनाओं पर भी लिखा है और प्रदेश सरकार के मुखिया पर भी।
    बीच बीच में कुछ कविताएं, कुछ कहानियां भी......
    कुल मिलाकर मैं यह कह सकता हूं कि मैं अपनी ओर से अपने समाजिक सरोकार को लेकर सजग हूं और मैं तो बिल्‍कुल भी शर्मिंदा नहीं हूं................
    आपका ब्‍लाग नियमित पढ रहा हूं, आप भी बेहतर लिख रहे हैं मौजूदा घटनाक्रम पर, हम और आप लिख सकते हैं, व्‍यवस्‍था बदलने का काम हमारा नहीं, यह काम जन मानस का है, ब्‍लाग जगत के विस्‍तार की बात से सहमत हूं आपके......

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    1. rajneesh barmaiya18 June 2012 at 09:55

      यह ख़ुशी हमेशा बरक़रार रहे...

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  15. आपके विचार स्वागत योग्य हैं ...क्रांति का अपना महत्व है और साहित्य भी क्रांति लाने मे समर्थ होता है राजस्थान का चारण साहित्य प्राय प्रशंसा गीत माने जाते हैं पर वो राजा का मनोबल बढ़ाते थे इससे इनकार नहीं किया जा सकता ..जैसे
    चार बांस चौबीस गज्ज अंगुल अष्ट प्रमाण
    अहिते पर सुल्तानहै मत चूके चौहान ...ये पंक्तियाँ मोहम्मद गौरी का नाश का करण बन गयी
    इसलिए उद्देश्य सामने हो तो मंजिल पायी जा सकती है

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  16. मानसिक व्यवधानों बिना चिन्तन प्रक्रिया बनी रहे ब्लॉगिंग में।

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  17. ब्लॉग जगत का संगठन होना ही चाहिए,ताकि मिलकर समाज में अपनी
    बात रख सके,मै आपसे सहमत हूँ,.....

    मेरी नई रचना --"काव्यान्जलि"--बेटी और पेड़.... में click करे...

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  18. आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।

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  19. ब्लॉग जैसे सशक्त माध्यम को सही ढंग से इस्तमाल करने की ज़रूरत है ... ये बात मैं पहले भी कह चूका हूँ ...
    हमें इस माध्यम का इस्तमाल करना है ... नाकि इस माध्यम द्वारा इस्तमाल होना है .... अपनी निजी जिंदगी में कोई परेशानी न आये इसका ध्यान रखना भी ज़रुरी है ... ब्लॉग्गिंग करते करते इस माध्यम में खो न जाएँ ... इसके बाहर भी एक दुनिया है उसे भूल न जाएँ ... अपनी जिम्मेदारियों को, परिवार को भूल न जाएँ ... उनके लिए भी समय निकालें ...

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  20. लेखन के कई पहलु हैं और एक ही पहलू पर हर कोई लिखे, ऐसा तो नहीं होता.... जिन मुद्दों को आप उठाए हैं, उन्हें आगे बढाइये, दूसरे ब्लागर अन्य मुद्दों को आगे बढाएंगे॥

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  21. कुछ भी दूर नहीं है महेन्‍द्र भाई
    सिर्फ जरूर देर है
    पर देर आयद दुरुस्‍त आयद
    रची जा रही है पूरी कवायद
    आप चिंतित न हों
    आप शुरुआत कीजिए
    हम आपके साथ हैं

    वैसे जिन पंक्तियों पर आपने
    झूठी वाह वाही की बात कही है
    वह वास्‍तव में बहुत ही खूबसूरत
    पंक्तियां हैं
    आपने किन्‍हीं सचमुच की
    किसी चिट्ठे पर प्रकाशित
    पंक्तियों का हवाला बेबाक होकर
    दिया होता तो
    और भी आनंद आता

    वैसे आपने खोल दिया है
    बेबाकी का खाता
    आप नुक्‍कड़ पर आइए
    कहेंगे तो उसमें हम आपको
    अवश्‍य सम्‍मानपूर्वक शामिल करेंगे
    एक मेल nukkadh@gmail.com
    पर भेज दीजिए
    मिलकर हम लड़ रहे हैं
    आप भी मिलकर लडि़ए
    लेकिन बुरी शक्तियों से
    शख्सियतों से नहीं
    उन्‍हें बदलना जरूरत है
    आज के समाज की।

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  22. "जो सहूलियते इलेक्ट्रानिक या प्रिंट मीडिया को दी जाती हैं, वो सहूलियतें ब्लागर्स को भी दी जानी चाहिए। "
    ---अनुचित कथन है क्या आप भी सरकार के शर्तों में सम्मिलित होना चाहते हैं ? आखिर आप ब्लोग्गिन्ग में अपनी स्वतन्त्र आवाज के लिये आये हैं...सहायता मांगने पर क्या आप वह कर पायेंगे..कभी नहीं ...
    ---लगता है आप ब्लोग्गिन्ग का अर्थ नही जान पाये...
    --भी आप अन्ना की सरकार से सहूलियत मांग्ने पर बुराई कर रहे थे अभी वही आप भी करने लगे ......इसी कथनी-करनी का फ़र्क मिटाने के लिये ,अपनी स्वतन्त्र सोच दर्शाने के लिये है ब्लोग्गिन्ग..
    -- जहां तक गीत गज़ल कविता का सवाल है...साहित्य ही तो दिशावाहक होता है समाज का, समाज को जीवन्त सन्देश देनेवाला...सरोकार युक्त साहित्य ही तो ब्लोग्गिन्ग का मूल उद्देश्य होना चाहिये..
    ---ब्लोग्गिन्ग भी साहित्य की एक विधा है....शर्मिन्दा होने की कोई बात नही है...लगता है इस पोस्ट के लेखक उच्चकोटि के आलेखों को पढने पर समय नहीं व्यर्थ करते......व्यवसायिकता निश्चय ही ब्लोग्गिन्ग का उद्देश्य नही है...
    ---समुद्र में हीरे-मोती के साथ घोंघे-सीपी भी होते हैं आप हीरे छांटिये......शर्मिन्दा मत होइये....

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  23. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन...आभार ।

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  24. शर्मिन्दा किसलिये होना ………हम कुछ गलत थोडे कर रहे हैं आत्मसंतुष्टि के लिये यहाँ आये हैं और हर मुद्दे पर लिखते हैं बेबाकी से कोई रोक टोक नही है ……………आप भी लिखिये उसी बेबाकी से अगर आपकी बात से सब इत्तेफ़ाक रखते होंगे तो आपके साथ जरूर जुडेंगे उसके लिये हम किसी से जबरदस्ती नही कर सकते…………आप कहते हैं सबको जुडना चाहिये मगर महेन्द्र जी आप ही देखियेगा एक पोस्ट पर ही सब की राय एक जैसी नही होती तो जब देश के मुद्दे आते हैं ना तब सबके विचार कैसे होते हैं आप कभी ध्यान से पढियेगा ………ब्लोगर अपनी तरफ़ से जितना कर सकते हैं कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे ………और जो आप से इत्तेफ़ाक रखता होगा खुद जुड जायेगा इसलिये अपना कर्म करते रहिये………आप एक कदम तो बढाइये देखिये कारवाँ बनता रहेगा अगर आपकी बात मे दम होगा तो और आप सबको समझा सके तो कोई ताकत नही जो आपको रोक सके……………मगर पहला कदम तो आप ही उठाइये आज आपने ये बात कही है तो शुरुआत आप कीजिये जो भी आपसे सहमत होंगे खुद-ब-खुद आ जायेंगे। मगर उसके लिये सब ब्लोगिंग को लेकर शर्मिंदा होने की जरूरत नही है और हम शर्मिन्दा भी नही हैं क्योंकि हम अपने कर्म मे लगे हैं अब फ़र्क है तो सिर्फ़ नज़रिये में।

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  25. कलम में बहुत ताकत होती है ..ब्लोगिंग जरिया है अपनी बात सीधे पाठकों तक पहुँचने का .. कुछ भी लिखें सरोकारों से जुड़ा होना चाहिए ..भले ही वो राजनैतिक हो , सामजिक हो या पारिवारिक ... नयी सोच देता लेख अच्छा लगा .

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  26. एक सप्ताह बाद अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मलेन बैंकॉक से लौटा,तो आपके सारगर्भित विचारों पर निगाह टिक गयी । आपने ब्लॉग जगत की सच्चाई बयां कर दी,इसमें कोई संदेह नहीं । हलांकि विचारों में मतभेद कोई मायने नहीं रखता हाँ मनभेद न हो इसपर ध्यान देने की जरूरत है । मेरा मानना है, कि आज जब हिंदी ब्लॉगिंग अत्यंत संवेदनात्मक दौर में है , कोशिश की जाए कि हमारे सभी ब्लॉगर साथी नीतिवान, संस्कारवान,सच्चरित्र और आत्म अनुशासित हों तभी हम ब्लॉगिंग के माध्यम से एक नए सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्त रूप देने में सफल हो सकें। ऐसा करके हम निश्चित रूप से एक सार्थक और सकारात्मक ब्लॉगिंग को बढ़ावा दे सकते हैं, साथ ही हिंदी ब्लॉगिंग को एक नया आयाम देने में सफल भी हो सकते हैं ।

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  27. सारगर्भित और विचारणीय|

    Gyan Darpan
    ..

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  28. बाहर गयी हुई थी इसलिए पोस्‍ट देर से पढ़ी गयी। किसी एक मुद्दे पर सभी का एक विचार होना असम्‍भव कार्य है। इसलिए विभिन्‍न विचार समाज में आने दीजिए।

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  29. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया - और हालिया पोस्ट पढ़ी. बदिया लगा विचार करने को मैं भी मजबूर हो गया की ब्लॉग क्यों बनाया - श्याद मुझे खुद ही नहीं मालूम.
    देखा जाए तो मैंने मात्र पढ़ने के लिए ही नेट पर था, और एक दिन मैंने अपना भी ब्लॉग बना लिया.... बक बक नाम भी इस लिए दिया की न तो कोई साहित्यिक रचना कर सकता हूँ, न वैचारिक धरातल पर ज्यादा मज़बूत, और न कोई ज्ञान-विज्ञान के विषय में अपने पुख्ता विचार रख सकता हूँ. पर ब्लॉग्गिंग में हूँ. - टीप देने से भी कतराता हूँ, बस पढ़ कर मौज ले पतली गली से निकल जाने में यकीन करता हूँ.

    लेकिन आपकी ये पोस्ट ने मजबूर कर दिया की सोचा जाए - हम ब्लॉग क्यों लिखते हैं.

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  30. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  31. आज कल अपरिहार्य कारणों वश मैं ब्लोगिंग से दूर हू,संभवतः १५ दिनों तक अभी यही स्थिति रहेगी, पर आपका लेख पढ़ा तो कमेन्ट करने से रुक नहीं पाया. आपने जिन ब्लोगरो के बीच मेरा नाम दिया है. वे लोग बहुत प्रतिभावान हैं, उनमे से आप भी एक है, मैं खुद को अभी उस लायक नहीं मानता. अभी तो मैं आप लोंगो से सीख रहा हू. आपको पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिलता है. आपकी पोस्ट सार्थक और विचारणीय है. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना.

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  32. bloging ke dwara kisi bhi mudde par bahas aur chintan hona saarthak hai. nishchit hi apne apne swatantra vichaar se ek nayee disha tak pahuncha ja sakta hai.

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  33. AB MAIN KYA KAHU,EK SADHARAN GHARELU MAHILA HOON,APNA GHAR SAMBHALTI HOON,AUR MAN ME AATI BAATON/BAWNAON KO PARDE KE PEECHE SE(BAHUT BHAVUK HOON ISLIYE ) KUCHH LOGON (JINHE MAIN NAHIN JAANTI) KE SAAMNE (BLOG KI DUNIYA )RAKH DETI HOON.KABHI KISI KI TIPPANI SE HAUSALA BADHATA HAI AUR KABHI PATA CHALTA HAI KI AUR KYA SOCHATE /SAMJHATE HAIN.TO KHUD KO SUDHAR LETI HOON.MAIN YAHAN BAS AISE HI AAI THI .PAR AAPKA LEKH PADHA TO LAGA KI HAAN AAP SAHI KAHTE HAIN.KOSHISH HOGI KI KABHI APNI DUNIYA SE BAHAR NIKAL KAR UN MUDDON PAR BHI LIKHOON JO "AUR BHI JYADA JARURI" HAIN.PATA NAHIN US YOGYA HOON YA NAHIN PAR KOSHISH KARUNGI BAAKI HAIN NA BLOG KE SAATHI SAHI GALAT BATANE KE LIYE ...

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  34. yahan bas tippaniyon ka khel chalta rahta hai...isliye beech mein blogging jagat se main ub gayi thi...kya sirf jyada se jyada tippaniyan pana hi shashakt blog ka parichayak hai? sthapit bloggers mein se kuch aise hai jo nav aagantuko ko puchte tak nahin...unka magdarshan karna unhe apna samman ghatana lagta hai.....aur aap agar dusro ke blog par tippani nahi kar paye to bhul jaiye ki koi aapka blog padhega...ye kuch aisi baate hai jo blog jagat mein mujhe bilkul nahin pasand....aapke sujav achche hai ...par yahan har koi bas jyada se jyada tippaniya aur followers pane ki hod mein laga hai aise main kuch sarthak kaise ho??

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  35. gar aap bhi aise hatotsahit ho nakaratmak baten karenge to ..... unka kya hoga jo aapse sikhne aate hain.............

    vaicharik bhinnata bari baat nahi......vichar pravah nahi rukna chahiye........


    pranam.

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।