Monday 5 December 2011

ईमानदार आदमी समझदार भी हो जरूरी नहीं ...

न्ना एक बार  फिर सरकार से दो दो हाथ करने के मूड में हैं । धमकी दे रहे हैं कि अब की निर्णायक लड़ाई  होगी यानि  आर पार की । अब निर्णायक लड़ाई  का क्या मतलब है ? क्या जनलोकपाल  कानून  की अधिसूचना रामलीला मैदान  से  खुद जारी कर देगें ? कुछ बोलना है, क्या बोलना है, इस पर किसी का नियंत्रण नहीं रह गया है ।  दरअसल अन्ना ईमानदार है, उनकी ताकत भी यही ईमानदारी है । अब ये तो जरूरी नहीं है ना कि ईमानदार आदमी समझदार भी होगा । बस  समझदारी से काम ना लेना  यही उनकी  सबसे बडी कमजोरी है । 

अब देखिए सड़क पर उतरने वाली भीड़ को अन्ना अपना समर्थक मानते हैं,  उन्हें  लगता है कि उनकी आवाज पर  ये भीड़ सड़क पर  आ  जाती है, पर ऐसा है नहीं । दरअसल इस भीड़ का दुश्मन नंबर एक कौन है ? आप बता सकते हैं ? चलिए मैं बताया हूं। इस सवाल का सिर्फ एक जवाब है वो है राजनेता । क्योंकि  लोग जब देखते हैं पहला चुनाव लड़ने के दौरान जिस नेता की हैसियत महज एक 1974 माडल जीप की थी, आज वो कई एकड़ वाले रिसार्ट, आलीशान बंगला, फरारी, पजीरो और होंडा सिटी कार का मालिक कैसे बन गया । नेताओं के बच्चे कैसे विदेशों में पढाई करने के साथ ही मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पा गए । जाहिर है नेताओं  के आचरण से नाराज जनता सड़कों पर  उतर रही है और  ये नाराजगी किसी एक  पार्टी से नहीं  है बल्कि पूरी व्यवस्था से है ।

वैसे मेरा सवाल अन्ना से भी है, क्योंकि मै जानता हूं कि एक संवेदनशील मुद्दे को आगे रख कर आंदोलन खडा करना आसान है, पर उसे समेटना बहुत मुश्किल , लोगों को सड़क पर लाना आसान है, वापस घर भेजना मुश्किल है, लोगों को एक बार भड़काना तो आसान है, पर भड़के लोगों को समझाना बहुत मुश्किल । अन्ना क्या मांग रहे हैं, जनलोकपाल कानून । यानि एक ऐसा कानून जिसमें भ्रष्ट्राचारियों को सख्त और जल्दी सजा मिले। जनलोकपाल  कानून मे  प्रधानमंत्री और सर्वोच्च  न्यायालय के जजों  को भी शामिल करना चाहते हैं ।  अन्ना अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि सरकारी लोकपाल जिसे आप सड़कों पर फूंकते फिर रहे हैं, वो भी कम नही है । मै एक उदाहरण देता हूं आपको । सूचना के अधिकार कानून में पीएमओ समेत कई और मंत्रालयों को इससे अलग रखा गया है, तो क्या आपको लगता है कि सूचना का अधिकार कानून बेकार है ? बिल्कुल नहीं । ग्रुप सी  के कर्मचारियों को इसमें शामिल करने की बात की जा रही है ।  क्या आप मानते हैं कि नेता और अफसर ईमानदार होगा तो कर्मचारियों की इतनी हैसियत है कि वो बेईमानी कर सकते हैं । ऐसे  में  ग्रुप सी 57 लाख  कर्मचारियों को अगर इसके दायरे में लाया गया तो बेवजह  लोकपाल पर  काम का इतना बोझ  हो जाएगा कि इसकी गुणवत्ता प्रभावित होगी। 
 
अन्ना आए दिन  अनशन की धमकी देकर  संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं । मेरा मानना  है कि आपका मुद्दा तो एक बार सही हो सकता है, पर तरीका बिल्कुल गलत है ।  ये बात  तो टीम अन्ना भी जानती है कि  देश में कोई भी कानून जंतर मंतर या रामलीला मैदान में नहीं बन सकता । इसके लिए तो संसद की ही शरण लेनी होगी । अब आपने पहले तो नेताओं को जंतर मंतर से  खदेड़ दिया ।  उस  समय आपने सोचा कानून जंतर मंतर पर ही बन जाएगा ।  लेकिन इसके कुछ दिन बाद आप कांग्रेसियों के झांसे में आकर उनके साथ गलबहियां करने लगे । मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि  आज टीम अन्ना को  ये दिन नहीं देखना पडता अगर उन्होंने  थोडा  सूझ बूझ के साथ काम लिया होता । अब अन्ना को कौन बताए कि ये महाराष्ट्र नहीं दिल्ली है । यहां राज ठाकरे नहीं, उनके पिता जी बैठे हैं । अगर आपने ड्राप्टिंग कमेटी के गठन के दौरान व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को अलग कर देश हित में सोचा होता तो आज ये हालत ना होती । आपको सिर्फ इतना करना था कि कमेटी में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को प्रतिनिधित्व देने की मांग करते, तो  यहीं सबके पत्ते खुल जाते और आपको एक एक नेता दरवाजे पर मत्था टेकना नहीं पडता, लेकिन ऐसा करने से आपके सहयोगियों की कीमत कैसे बढती, उन्हें तो सरकार के मंत्रियों के साथ मीटिंग कर  अपना कद बढ़ाना था ।

हम सब अन्ना में गांधी की तस्वीर देखते हैं । लेकिन जब अन्ना भ्रष्टाचारियों को  फांसी देने की मांग करते हैं  तो हमें लगता है कि ये गांधी  की गलत छवि  देश में प्रस्तुत कर रहे हैं ।  सच तो ये है कि  देश में  भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पर्याप्त कानून है, बशर्ते उस पर सख्ती से अमल हो । आप देखें कानून की वजह से ही तो ए राजा, सुरेश कलमाडी जेल में है । यहां तक की राजकुमारी की तरह जिंदगी जीने वाली कनिमोझी को भी  लगभग  छह महीने जेल की सलाखों के पीछे रहना पडा । बीजेपी के मुख्यमंत्री वी एस यदुरप्पा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्वाण को भ्रष्टाचार में शामिल होने की वजह से ही कुर्सी गंवानी पडी ।  कोई जनलोकपाल कानून की वजह से ये जेल नहीं  गए थे ।

मुझे तकलीफ होती है जब संसद की  गरिमा के खिलाफ कोई बात होती  है । देश की खूबसूरती  ही ये है कि यहां  संसदीय  परंपरा  आज भी मजबूत है और देशवासी इसका सम्मान करते हैं ।  मैं तो इस आंदोलन को संसद पर  हमला करने के बराबर  मानता हूं ।  मुझे लगता है कि आखिर कितने हमले झेलेगी ये पर्लियामेंट । एक बार 13 दिसंबर 2001 को पांच आतंकी सीमापार से हथियारों से लेस होकर यहां घुस आए । वो तो इस संसद को लहुलुहान कर देना चाहते थे और यहां एक ऐसी काली इबारत लिखना चाहते थे, जो धब्बा हम जीवन भर ना धो  सकें। लेकिन हमारे बहादुर सिपाहियों ने उन पांचो को मार गिराया और संसद भवन के भीतर भी घुसने नहीं दिया ।
आज 10 साल बाद एक बार फिर संसद पर हमला हो रहा है ।  हालाकि ये कोई आतंकी  हमला नहीं  है, लेकिन  मैं इस हमले  को आतंकी हमले से ज्यादा खतरनाक  मानता हूं ।  इस हमले में किसी एक व्यक्ति या नेता की हत्या करना मकसद नहीं है । बल्कि इनका मकसद संसदीय परंपराओं और मान्यताओं की हत्या करना है । आज तमाम लोग भावनाओं में बहकर शायद उन पांच आतंकियों को ज्यादा खतरनाक कहें जो  हथियार के साथ संसद भवन में घुसे थे, लेकिन मैं उनके मुकाबले सिविल सोसाइटी के पांच लोगों को  ज्यादा खतरनाक मानता हूं । बस दुख तो ये है कि ये सीमापार से नहीं आए हैं, हमारे ही भाई है । लोकतांत्रिक व्यवस्था से भली भांति परिचित भी हैं, फिर भी देश के लोकतंत्र को कमजोर और खत्म करने पर आमादा हैं । अब संसद  के भीतर  सांसद निष्पक्ष होकर अपनी राय न रख पाएं तो फिर संसदीय प्रणाली  कैसे चल सकती है । बराबर धमकी दी जा रही है कि जो सांसद जनलोकपाल बिल का समर्थन  ना  करे , उसके घर के बाहर  धरना देना है । आखिर  टीम अन्ना  देश  को किस ओर  ले  जाना  चाहती है, क्या इससे देश में आराजकता का माहौल नही पैदा हो जाएगा ।

मुझे तो कई बार लगता है कि टीम अन्ना  ही अन्ना की दुश्मन  बन गई है । आपको पता है कि  एक भुट्टे को पैदा करने के लिए एक दाने को शहीद होना  पड़ता है । यानि जब एक बीज जमीन में डाली जाती है, तभी एक पूरा भुट्टा पैदा होता है । तो क्या सिविल सोसाइटी अन्ना  को शहीद होने का दाना समझ रही है । मैं मानता हूं कि प्रधानमंत्री सच्चे आदमी हैं, वो  झूठी बात जनता के सामने नहीं कह सकते । वजह उनकी बातों की और पद की एक मर्यादा है । टीम  अन्ना तो  कुछ भी कह सकती हैं । बताइये जिस देश का प्रधानमंत्री कह रहा हो कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो एक दिन में इसे खत्म कर दें । लेकिन अन्ना और टीम जिस तरह से बात कर रही है उससे लगता है कि जनलोकपाल बनते ही भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा । मैं  पूरे दावे  के  साथ कह सकता हूं  कि 121  करोड़ की आबादी को एक कानून में नहीं  बांधा जा सकता ।  देश में आज किस अपराध के लिए सख्त कानून नहीं है, फिर भी कौन सा अपराध देश में नहीं हो रहा है । मित्रों मुंबई पर हमला करने वाले कसाब को हम सजा नहीं दे पा रहे हैं । संसद पर हमला करने का षडयंत्र करने वाला अफजल गुरू जेल मे वीआईपी सुविधा ले रहा है । और हम चोरों को फांसी देने की बात कर रहे हैं, ये बात कैसे किसी के गले उतर सकती है ।  सच तो ये है कि  सरकार अपराधियों को न्यायालय से मिली सजा पर अमल भर करने लगे, तो लोगों में कानून के प्रति सम्मान और भय पैदा होगा। बडे बडे भ्रष्टाचारी जेल जाने लगें और उनकी संपत्ति जब्त होने लगे तो  छोटे  कर्मचारी खुद ही रास्ते पर आ जाएंगे।

आज देश को  सोचना  होगा कि हम लोकतंत्र को कैसे मजबूत बनाए रखें ।  पडो़सी देश पाकिस्तान को ले लें, आज उसकी जो दशा है, इसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि वहां आराजकता की मुख्य वजह ही  लोकतंत्र का कमजोर  होना । उसका रिमोट कंट्रोल पूरी तरह अमेरिका के हाथ में है । लोकतंत्र कमजोर होने से ही  नेपाल की अस्थिरता भी किसी से छिपी नहीं है । आज अन्ना का आंदोलन भी कहीं ना कहीं लोकतंत्र के लिए सबसे बडा खतरा है । संसद की सर्वोच्चता को  किसी भी सूरत में बरकरार  रखना ही होगा ।  यही   देश  के मजबूत  लोकतंत्र  की खूबसूरती रही है । मैं ये  नहीं कहता कि जनता को अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है, जरूर उठाना चाहिए। लेकिन हमें ये भी देखना है कि कहीं संवैधानिक संस्थाओं का अस्तित्व खतरे में ना पड़ जाए। मैं फिर दावे के साथ कहता हूं कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए हमारे पास कानून की कमी नहीं है । उसका कड़ाई से पालन भर किया जाए तो बहुत कुछ समस्या का समाधान हो सकता है ।

मुझे इस बात पर भी आपत्ति है कि इस आंदोलन को आजादी की दूसरी लडाई कहा जाए । समझ लीजिए ये कह कर हम आजादी के लिए दी गई कुर्बानी और शहीद हुए लोगों को गाली दे रहे हैं । अन्ना खुद को गांधी कहे जाने पर गर्व जरूर महसूस करें, लेकिन मैं उन्हें गांधीवादी तो कह सकता हूं, पर दूसरा गांधी नहीं । जो लोग उन्हें दूसरा गांधी बोल रहे हैं, वो पहले गांधी को गाली दे रहे हैं । मुझे लगता है कि ये जिम्मेदारी अन्ना की है कि उन्हें दूसरा गांधी कहने वालों को रोकें ।  वैसे अगर देश आपको आपको गांधी कह रहा है, तो  आपकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ जाती  है, क्योंकि  आपने कुछ भी ऐसा वैसा किया, जो नहीं होना चाहिए तो आपका  कुछ नहीं होगा, हां गांधी के बारे में बच्चों  के बीच  गलत राय बनेगी । पिछले दिनों अन्ना ने भ्रष्ट लोगों को  फांसी देने की बात की, उन्होंने ये भी कहा कि गांधी के रास्ते बात ना बने तो शिवाजी का रास्ता अपनाना होगा। अन्ना को  तो पता होना चाहिए कि गांधी जी कहते थे कि कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा सामने कर दो ।  99  अपराधी  भले ही छूट जाएं, पर  एक भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी  चाहिए। पर आप तो कुछ भी बोल रहे हैं । इससे बच्चों में गलत संदेश जा रहा है ।
 अंदर की बात तो ये है कि भ्रष्टाचारियों को फांसी देने की अऩ्ना की मांग पूरी हो जाए तो, कम से कम 10 हजार जल्लादों की भर्ती तत्काल करनी होगी, और इन्हें देश भर मैं तैनात करना होगा । इसके बाद हर जिले में कम से कम दो सौ लोगों को अगर रोजाना फांसी पर लटकाया जाए, और ये प्रक्रिया साल भर चलती  रहे, फिर भी हम देश को सौ फीसदी भ्रष्टाचारियों से मुक्त नहीं कर सकेंगे । देश में ऱिश्वतखोरों की पैठ बहुत गहरी है । जिस देश में मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए बाबू को पैसे देने पडें, जिस मुल्क में शहीदों के लिए खरीदे जाने वाले ताबूत में दलाली ली जाती हो, जिस मुल्क में सैनिकों को घटिया किस्म का बुलेट प्रूफ जैकेट देकर सीमा पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता हो, जिस देश में डाक्टर चोरी से मरीज की किडनी निकाल लेते हों, जिस देश शहीदों की विधवाओं के लिए बने फ्लैट पर सेना के अफसर और नेता कब्जा जमा लेते हों, उस देश को पूरी तरह  ईमानदार बना देना इतना आसान है क्या?

आइये  थोड़ी चर्चा  संसदीय कार्यप्रणाली की भी कर लें । क्योंकि सब कुछ जानते हुए भी देश की आंख में धूल झोंका जा रहा है ।  यहां यह बताना जरूरी है कि जब किसी मसले पर एक बिल संसद में पेश किया जा चुका हो, तो फिर उस पर संसद में किसी तरह की चर्चा नहीं की जा सकती । इससे स्थाई समिति जो एक संवैधानिक संस्था है, उसकी गरिमा गिरती है । गरिमा को छोड भी दें तो ऐसे प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है । क्योंकि बिल को अंतिम रूप देने का अधिकार स्थाई समिति को ही है । बहरहाल संसद  में जनलोकपाल बिल के प्रस्ताव पर  एक  दिन की पूरी बहस में ये तो साफ हो गया कि ज्यादातर लोग जनलोकपाल बिल का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन प्रस्ताव का समर्थन करने का यह मतलब कत्तई नहीं की, ये लोकपाल बिल का भी समर्थन करेंगे । चर्चा के दौरान लालू यादव के बयान पर ध्यान देना जरूरी  है, उन्होंने साफ कहा था कि सभी दल  संविधान के तहत काम  करने की बात कर  रहे हैं,  लेकिन  ये जवाब कौन देगा कि संविधान  के तहत तो ये चर्चा  हो ही नही सकती, क्योंकि इससे संबंधित  बिल स्थाई समिति में विचाराधीन है ।
वैसे सरकार और सिविल सोसायटी दोनों ही जानते थे कि संसद में जो चर्चा हो रही है, उसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि स्थाई समिति में इससे जु़डे चार बिल पहले से ही विचाराधीन हैं, और स्थाई  समिति को सभी बिलों को चर्चा के लिए सामने रखना  ही होगा । इसके अलावा स्थाई समिति में आम आदमी भी अपना सुझाव दे सकता है । यहां सभी सुझावों पर गुण दोष के आधार पर फैसला होता है । ऐसे में सदन में हुई चर्चा  सदन की समय की बर्बादी से ज्यादा कुछ  नहीं थी ।  बस रामलीला मैदान में उपजे जनाक्रोश को शांत करने भर के लिए ये किया गया । स्वामी अग्निवेश की एक बात से तो मैं भी सहमत हूं कि जिस दिन संसद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर अन्ना से अनशन समाप्त करने की अपील की थी, उन्हें सदन की गरिमा का ध्यान रखते हुए अनशन  खत्म  करना चाहिए था । लेकिन अन्ना की टीम ने उन्हें समझाया कि प्रधानमंत्री के सैल्यूट से काम  नहीं बनने वाला है, सरकार को कुछ ठोस पहल करनी  ही होगी । दरअसल अन्ना को तीन दिन तक उनकी टीम ने सिर्फ अपनी "फेस सेविंग" के लिए भूखा रखा  और  संसद की गरिमा को भी तार  तार किया गया।  
रामलीला मैदान में अनशन कर रहे  अन्ना क्या मांग कर रहे थे । वो कह रहे थे कि संसद में जनलोकपाल बिल पेश किया जाए और उसे पास कर 30 अगस्त तक कानून बनाया जाए । उनकी ये बात पूरी नहीं हुई। फिर अन्ना ने 30 अगस्त तक कानून बनाने की बात छोड दी और कहा कि उनके बिल पर संसद में चर्चा की जाए और उस पर मतदान कराया जाए। लेकिन सरकार ने बिना किसी नियम के संसद में महज एक बयान देकर चर्चा की और कोई प्रस्ताव  भी पास नहीं किया । संसद में हुई चर्चा को एक तरह से सेंस आफ हाउस माना गया । इसके अलावा अन्ना ने कहा कि संसद मे सर्वसम्मति से बिल पास हो जाने पर वो अनशन तो तोड़ देगें लेकिन रामलीला मैदान में धरना जारी रहेगा । लेकिन हुआ क्या.. संसद में चर्चा के बाद अन्ना के पास कोई प्रस्ताव भेजने के बजाए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पत्र लेकर विलासराव देशमुख पहुंचे और अन्ना को अनशन खत्म  कर दिया ।  उसके बाद  पूरा मामला स्थाई समिति को देखना था ।

सवाल ये है कि अन्ना खुद अपना जनलोकपाल बिल संसद की स्थाई समिति को सौंप आए थे । बाद में प्रधानमंत्री ने भी इसे स्थाई समिति को भेज दिया था । उस दौरान टीम अन्ना से कहा गया कि अब वो अपनी बात स्थाई समिति से करें । इसमें ऐसा क्या मिल गया था कि अन्ना और  उनकी टीम ने अनशन खत्म करते हुए इसे आधी जीत बताया । हालाकि आधी  जीत के मायने क्या हैं, ये अन्ना ही बता सकते हैं । मेरा मानना कि ना आधी  जीत होती है और ना आधी हार । लेकिन कुछ भी  हासिल  ना होने के बावजदू देश  भर में जीत का जश्न  मनाया गया ।  फिर  जीत के जश्न की खुमारी उतरी भी नहीं कि   इस टीम ने कांग्रेस से दो दो हाथ करने का ऐलान  कर दिया । हिसार में लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार में उतर आए । धमकी दी जा रही है कि उनके मुताबिक बिल पास  ना हुआ तो पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करेंगे । टीम का कहना था कि कांग्रेस  चाहे  तो बिल पास करा सकती है, इसलिए उसका विरोध किया जा रहा है । अगर ऐसा होता तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुदरा व्यापार के मामले एफडीआई को पास ना करा लेते । देश का  लोकतंत्र इसीलिए मजबूत है ।  फिर  एक ओर सरकार लगातार कहती रही कि शीतकालीन सत्र में बिल पेश  किया जाएगा, लेकिन सत्र का इंतजार किए बगैर सरकार के खिलाफ टीम अन्ना सड़कों पर आ गई । इससे इतना तो साफ हो गया कि टीम अन्ना के पीछे कुछ और  ताकतें भी काम कर रही हैं।

ईमानदारी की बात करने वाली  टीम अन्ना भी गंभीर आरोपों में घिर चुकी  है । प्रमुख सहयोगी अरविंद केजरीवाल  भ्रष्टाचार के खिलाफ मिल  रहे जनसमर्थन को अपना समर्थन समझने लगे हैं । उनकी हालत ये है कि सरकारी बकाए के भुगतान का चेक वो प्रधानमंत्री को  भेज रहे हैं । उन्हें लगता है कि पीएमओ में बकाए का भुगतान करने का काउंटर  खुला  है । दूसरी  सहयोगी  किरन बेदी पर  जिस तरह से एनजीओ के नाम पर पैसों की हेराफेरी के आरोप लगे हैं, वो  वाकई गंभीर है । मुझे लगता है कि एनजीओ को लोकपाल  के दायरे से बाहर रखने  की बात शायद इसीलिए की जा रही है,  कि ऐसे लोगों की दुकान चलती रहे ।        
बहरहाल मेरा  तो मानना है कि 121 करोड की आवादी वाले देश को किसी भी कानून में नहीं बांधा जा सकता । ईमानदारी के लिए लोगों में नैतिकता की जरूरत है और आज देश में कोई नैतिक नहीं रह गया । अन्ना खुद कहते हैं कि अगर जनलोकपाल बन गया तो आधे मंत्री जेल में होगे, ये सुनकर आप हैरत में पड जाएंगे कि अगर ईमानदारी से बेईमानों की पहचना की  गई तो सेना के आधे से ज्यादा बडे अफसरों को जेल भेजना होगा । आज जितनी भ्रष्ट हमारे देश की सेना है, उसका किसी दूसरे महकमें से कोई मुकाबला नहीं है । वैसे अन्ना  जी आपने लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आंदोलन में शामिल होने को कहा था । सरकारी कर्मचारियों ने तो छुट्टी नहीं ली, सब काम पर रहे, पर मेरे  घर की बाई जरूर छुट्टी चली गई । इसलिए आपको लेकर घर में भी बहुत नाराजगी है । अन्ना पर  हंसी  भी आती है क्योंकि आज वो देश में ग्रुप  सी के 57 लाख कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग पर अड़े हैं और उन्हीं से छुट्टी लेकर  आंदोलन में शरीक होने की बात भी कह रहे हैं । ऐसी अपील तो अन्ना ही कर सकते हैं ।

इसी बीच अन्ना शराब बंदी का एक  नया राग अलापने लगे हैं । दिसंबर का महीना, ठंड भी  है । पुराने साल की बिदाई और नए साल की आगवानी देशवासी बिना शराब के कैसे करेंगे  ? सच में ये तो मुझे भी देखना है । वैसे मेरा  सुझाव है अन्ना को कि दिल्ली में शराब वगैरह की बात ना करें, यहां रामलीला मैदान में रोनक की एक खास वजह शराब भी है । ये बातें अपने गांव में ही  करें, यहां लेने के देने पड़ सकते हैं, पता लगा कि रात में आप और टेंट वाले ही मैदान में बचे  हैं ।  

27 comments:

  1. महेन्द्र जी ! हर मुद्दे को बड़े आत्मविश्वास के साथ उठाते तो हॊ..लेकिन 'आधा सच ' का ठ्प्पा ल्गाकर साफ बच भी जाते हो...बहुत खूब..

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  2. महेंद्र जी ......आपक ये आधा सच....सही में बड़ा कमाल का है .....
    मुझे लगता है कि अगर अन्ना जैसे आन्दोलन अगर होने यहाँ बंद हो जाएँ तो सच में अपना देश ...शांति से जीने की तरफ आगे बढने लगे .....
    बात बात में मुद्दों को उठाना ...और उन्की सहमति ना मिलना ..इस बात की और इशारा करती है कि देश की जनता अमन और चैन से जीना चाहती है .......आभार

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  3. @@महेन्द्र जी ! हर मुद्दे को बड़े आत्मविश्वास के साथ उठाते तो हॊ..लेकिन 'आधा सच ' का ठ्प्पा ल्गाकर साफ बच भी जाते हो...बहुत खूब..

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई ||

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  4. sach kaha aapne imandari ke saath samjhdari bhi ho ye jaruri nahi..
    bahut badiya nuktachini ..

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  5. महेंद्र जी को 'आधा सच्च 'लिख कर कानूनी दाव-पेंच से बचने दीजिये उनके मर्म को समझिए। वस्तुतः अन्ना आंदोलन और कुछ नहीं सिर्फ अमेरिकी षड्यंत्र है तथा उसे पूरी तरह अनदेखा किया जाना चाहिए।

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  6. अन्ना का आंदोलन जनांदोलन है।

    सूचना के तहत एक अधिकारी और एक कर्मचारी की भी सूचना मांगी जा सकती है।

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  7. महेंद्र जी,...
    आपके विचारों से सहमत हूँ
    बेहतरीन आलेख सुंदर पोस्ट,!!!!!!!!!!!

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  8. बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!

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  9. अच्छा विवेचन ...बहुत कुछ आने वाला समय ही बताएगा ....

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  10. बढिया विश्‍लेषण।
    सहमत हूं आपकी बातों से।

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  11. ये आधा सच नही पूरा सच है बहुत बेबाकी से आपने लोगों के सामने इस आन्दोलन और अन्ना की असलीयत रखी है। पहले भी हर जुल्म के लिये कानून हैं लेकिन उनका पालन करने या न करने और्4 भ्रश्ट्क़ाचार करने या न करने के लिये लोग तो इसी जनता मे से हैं और लोक पाल मे कहाँ से इमानदार लोग लायेंगे? क्या लोक पाल सभी पर नजर बनाये रख सकेगा? कभी नही। ये तो सरकार गिराने अस्थिर करने की कोशिशेम हैं जो केज़रीवाल और प्रशांत भूशण किरण बेदी क्लर रहे हैं। शुभकामनायें।

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  12. महेंद्र जी बात आपकी कुछ हद तक सही हो सकती है परन्तु सरकार की नीयत शक के दायरे में ज्यादा है. यदि सरकार वाकई भ्रष्टाचार समाप्त या हटाने के कोशिश कर रही होती तो बिलकुल जरूरी नहीं कोई भी और बिल. क्या आर टी आई बिल सरकार ने स्वंय अपनी पहल पर बनाया? इस हथियार की ताकत सभी देख रहे हैं.

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  13. आपने बिल्कुल सही लिखा है ! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! बढ़िया विश्लेषण !

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  14. आपका कहना गलत नही पर एक पक्षीय हो गया है। लेकिन फ़िर भी कहना चाहूंगा कि अन्ना हजारे के विरूद्ध लिखे जा रहे तथ्यहीन और अधकचरा लेखो से यह एक बहुत बेहतर लेख है। बिंदु दर बिंदु विष्लेषण भी बहुत ही अच्छा है। लेकिन आपको एक बात ध्यान रखनी चाहिये कि व्यवस्था के खिलाफ़ उठने वाले आदमी मे भी कमजोरिया होती ही है इश्वर के अलावा संपूर्ण कोई नही हो सकता। मुख्य बात और सार यह है कि इस संसदीय और अधिकारी व्यवस्था ने देश को हाशिये मे ढकेल दिया है। एक महज साईन से अरबो का निर्णय करने वाले नेता अफ़सर इस संविधान निहित शक्तियों का कैसा उपयोग कर रहे है यह किसी से छुपा नही है। अब इसले विरूद्ध एक पौधे ने जन्म लिया है इसने जड़ जमाई तो इसी का अनुसरण करते अनेक पौधे पैदा होंगे जो तथ्य और तर्क के साथ व्यव्स्था सुधार के लिये मेहनत करेंगे। आम तौर पर स्वार्थ हर किसी का होता ही है महात्मा विरले ही पैदा होते है। लेकिन समग्र हित मे देखना किसी भी कलमकार का पहला दाईत्व है खासकर उनका जिनको इश्वर ने ऐसी लेखनी की ताकत दी है।

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  15. मेरे नए पोस्ट में आने के लिए आभार,...इसी तरह स्नेह बनाये रखे ..धन्यबाद

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  16. you are right. Now onus is on the government to pass the lokpal bill.
    www.rajnishonline.blogspot.com

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  17. वाह अन्ना!
    हम हिन्दुस्तानियों की यही कमजोरी है कि हम जिसको नेता मानते हैं उसकी सभी बातों का आँख मूँदकर अनुकरण करने लगते हैं।
    ईमानदारी तो अच्छी बात है मगर उसके साथ समझदारी भी बहुत जरूरी है!

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  18. सरकार अपराधियों को न्यायालय से मिली सजा पर अमल भर करने लगे, तो लोगों में कानून के प्रति सम्मान और भय पैदा होगा ..... सहमत हूँ आपके इस विचार से !

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  19. Anna Samajhdar he ya nhi, lekin is nasamajh vyakti ne sarkar ek bar to hila hi diya!

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  20. निपुण सहगल8 December 2011 at 19:07

    अगर ईमानदार का समझदार होना ज़रूरी नहीं, तो समझदार का ईमानदार होना भी ज़रूरी नहीं। मैं ईमानदार और समझदार में से ईमानदार को चुनुंगा। वैसे मेरी निगाह में अन्ना ईमानदार भी हैं और समझदार भी। अन्ना ने कभी नहीं कहा कि मैं गांधी हूं। अन्ना, अन्ना हैं। वैसे भी कल आप अन्ना को पाखंडी करार देने पर आमादा थे। आज उन्हें ईमानदार कह रहे हैं। पहले तय कर लीजिए। मैं नहीं मानता कि आप तार्किक रूप से सही हैं। विरोध (पता नहीं क्यों?) का भाव ज़्यादा है, तर्क कम।

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  21. मित्रों अच्छा होता कि आप मेरे लेख को पढें और जिस बात पर आपको आपत्ति है, उस पर चर्चा करें। मैं जानता हूं कि देश में भ्र्ष्टाचार से लोग परेशान हैं, और उन्हें लगता है कि जनलोकपाल के आते ही देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
    निपुण सहगल मेरा छोटा भाई है, वो इस मुहिम का हिस्सा है। इसलिए वो अपने बडे भाई को ही कटघरे में खड़ा कर रहा है। मेरा सिर्फ एक सवाल है कि अन्ना जब पांच ईमानदार आदमी अपने साथ खड़ा नहीं कर पाए, जिन पर कोई आरोप ना हो,तो उनका आंदोलन और देश को बडा बडा सपना दिखाना बेमानी नहीं तो क्या है।.... खैर ये ऐसी बहस है कि हर आदमी की बातों का जवाब देना संभव नहीं है.....

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  22. मैं जब भी आपके ब्लाग पर आया हूँ हमेशा ही कहता हूँ कि आपके ब्लाग के हर पोस्ट से एक नयी सीख मिलती है, सचमुच नयी नयी बातों का हमेशा खुलासा होता है आपके इस ब्लाग में पर आज एक बात आपसे कहना चाहूँगा कि आप इस ब्लाग का नाम आधा सच क्यों रखे हैं?

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  23. निपुण सहगल9 December 2011 at 22:20

    महेंद्र जी, मुझे आपने "मुहिम का हिस्सा" कहा। उम्मीद है आप का आशय मुझे इंडिया अगेंस्ट करप्शन का सदस्य कहना नहीं है। क्योंकि इस लिहाज़ से आप और इस पोस्ट को पसंद करने वाले या तो कांग्रेसी या फिर मौजूदा व्यवस्था के लाभार्थी बन जाएंगे। बड़ी विनम्रता से स्पष्ट करना चाहता हूं कि एक आम नागरिक की हैसियत से मेरा नैतिक समर्थन लोकपाल के मुद्दे पर टीम अन्ना को है। मैं उन का अंधसमर्थक नहीं हूं। आखिरी बात, मेरा मकसद आप में से किसी को भी आहत या अपमानित करने का नहीं है। आप अपने विचारों के लिए स्वतंत्र हैं। मैं सिर्फ "मुहिम का हिस्सा" वाली बात का उत्तर दे रहा था।

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  24. क्या किया जाए, जिन्हें मैं बहुत व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि वो कहां कहां लाभार्थी रहे हैं.. जब वो ऐसी बात करते हैं, तो हैरानी होती है। मैं बहुत व्यक्तिगत नहीं होना चाहता। लेकिन ऐसे ही लोगों से ये मुहिम चल रही है, तो हां मुझे खुद को काग्रेसी कहने में कोई गुरेज नहीं। क्योंकि जो लोग यहां पहले से हैं, वो इसी ब्लाग पर कांग्रेस और उसके युवराज के बारे में पढ चुके हैं।
    बिना तर्कों की बात का कोई अर्थ नहीं होता , लेकिन हैरानी होती है,बचकानी बातों का...

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  25. निपुण सहगल10 December 2011 at 13:52

    कभी अन्ना पाखंडी, कभी ईमानदार। कभी आपका छोटा भाई ईमानदार, कभी लाभार्थी। सर, इस वैचारिक असंतुलन की वजह घनघोर नकारात्मकता है जो एक जन आंदोलन के खिलाफ आपके मन में भरी हुई है। आप श्रद्धेय हैं। आपने अब तक हुई बहस को मेरी अभद्रता कहा है। मैं आपको कष्ट पहुंचाने के लिए क्षमा मांगता हूं। बातें कई हैं कहने को, लेकिन ये आपका ब्लॉग है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। फिल्म 'मोहब्बतें' के अमिताभ बच्चन की तरह बर्ताव न करें, जिन्हें परिवर्तन नापसंद था। लोग आगे आए हैं, अपनी संसद से कुछ मांग रहे हैं। ये असली जनतंत्र है। इस मांग की जीत ही जनतंत्र की असली जीत है। क्या हमारी भूमिका हर पांच साल में लाइन में खड़े हो कर वोट देने भर की है। खैर आपके 'आधा सच' को अलविदा। नमस्कार।

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  26. आज तो फिर जंतर-मंतर पर सुन्दर बहस सुनने को मिल रही है .

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।