Tuesday 14 June 2011

बाबा- ये कैसा योग


 

मित्रों मै जानता हूं कि कुछ लोग मेरे इस लेख को भी ये कह कर खारिज कर देगें कि कांग्रेसी मानसिकता से लिखा गया लेख है। 15 दिनों से देख रहा हूं कि गिने चुने लोग सत्य का गला घोटने के लिए अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। सच बात की जा रही है तो उसे वो तर्कों के आधार पर नहीं अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल कर दबाने की कोशिश कर रहे हैं। जो जितना पढा लिखा है वो उतना ही स्तर गिरा कर अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। मित्रों हो सकता है कि बाबा प्रेम में आपको मेरी बात बुरी लगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो है, वो आपको जानना ही चाहिए। वो ये कि आखिर योग क्या है। आज देश में एक बड़ा वर्ग इसे सिर्फ शारीरिक क्रियाओं से जोड़ कर देखता है। मसलन योग के मायने सिर्फ आसन या प्राणायाम हैं। लेकिन महर्षि पंतजलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने योगसूत्र में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाले साधक को ही सच्चा योगी बताया है।




ये योग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। अष्टांग योग में ये सभी चीजें आती हैं। अब मैं एक एक कर आपको ये बताने की कोशिश करुंगा कि इनके मायने क्या हैं। ये जानने के बाद आप बाबा जो योग टीवी पर करते दिखाई देते हैं, उससे मिलान की कीजिए। जो योग के नियम मैं बता रहा हूं, इसके अनुयायी बाबा रामदेव भी हैं, इसलिए उन्होंने अपने " योग कारखाने " का नाम पतंजलि रखा है।

1.यम--.इसके तहत पांच सामाजिक नैतिकताएं आती हैं---

(क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना

(ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना

(ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना

(घ) ब्रह्मचर्य - इसके दो अर्थ हैं:
चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना, सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना।

(च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना।

( अपरिग्रह को आपको ठीक से समझना होगा, क्योंकि बाबा इसका पालन तो बिल्कुल नहीं करते। मतलब अगर आपको दो रोटी की भूख है, तो तीसरी रोटी के बारे में विचार भी मन मस्तिष्क में नहीं आना चाहिए। आवश्यकता से ज्यादा किसी चीज का संग्रह नहीं हो किया जाना चाहिए। अरे ये बाबा तो संग्रह के आदि हैं।)

२. नियम: पाच व्यक्तिगत नैतिकताएं

(क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि

(ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना

(ग) तप - स्वयं से अनुशासित रहना

(घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना

(च) ईश्वर-प्रणिधान - इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा

३. आसन: योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण

४. प्राणायाम: सांस लेने संबंधी खास तकनीक द्वारा प्राण पर नियंत्रण

५. प्रत्याहार: इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना

६. धारणा: एकाग्रचित्त होना

७. ध्यान: निरंतर ध्यान

८. समाधि: आत्मा से जुड़ना। शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था में समाधि का अनुभव।
 अब मैं अपने ब्लागर्स साथियों पर सब कुछ छोड़ देता हूं, वो अष्टांग योग को जानने के बाद बाबा को कहां रखते हैं, उनकी इच्छा। वैसे मैं आपको बताऊं मेरी एक जाने माने योग गुरु से बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि योग के दौरान दुनिया भर की फिजूल बातें नहीं की जा सकतीं, क्योंकि जब आपका ध्यान भटकता रहेगा तो आप सबकुछ कर सकते हैं, पर योग नहीं। मच पर बाबा के उछल कूद करने को भी योग नहीं कहा सकता। योग कराने के दौरान हल्की फुल्की बातें, अजीब तरह से हंसना, अपने उत्पादों को बेहतर बताना, योग के दौरान बीमारी की बात करना ऐसे तमाम मसले हैं जो योग के दौरान नहीं की जानी चाहिए। पर ये बात बाबा और उनके अनुयायियों को कौन समझाए। मुझे पक्का यकीन है कि कुछ लोग जो बाबा से जुडे हुए हैं, वो इन बातों को भी खारिज करते हुए अशिष्ट भाषा में टिप्पणी करेंगे। बहरहाल मेरा मकसद आपको अष्टांग योग के बारे में बताना भर है।



8 comments:

  1. अच्छी जानकारी से भरी पोस्ट, मानसिकता मायने नहीं रखती ,आभार

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  2. योगी और भोगी में अंतर है :)

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  3. Good info about Ashtaang yoga.

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  4. जब से बाबा राम देव जी का किस्सा हुआ है तब से आज तक पता नहीं कितने ब्लॉग घूम लिए और पढ़ लिए ..पर आ जो पढ़ा वो सच में काबिले तारीफ़ है
    आपकी लेखिनी में जादू सा है ..पढने बैठी तो सब पढ़ती ही चली गई .....१...नहीं इस पेज के सभी लेख पढ़े ..यहाँ तक पर्टोल वाला भी ......बहुत खूब महेंद्र जी ......ऐसे ही लिखते रहे और सच से रूबरू करवाते रहे सबको
    धन्यवाद

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  5. सम्यक ज्ञान सामग्री।

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  6. अच्छी जानकारी से भरी पोस्ट| आभार|

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  7. योग के विषय में आपके द्वारा दी गई जानकारी बढ़िया है. स्वामी रामदेव शुरू से ही एक राजनीतिक एजेंडा के साथ योग के क्षेत्र में आए थे. इस बात को वे मानते भी हैं. इसी संदर्भ में वे अष्टांग योग की परिभाषा से वे बाहर चले गए. मैंने बचपन में स्वामी योगेश्वरानंद परमहंस की पुस्तक "बहिरंग योग" में यम-नियम पढ़े थे. मैं उसका कायल हूँ. आपका आलेख मुझे अच्छा लगा.

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  8. बाज़ार के अनुरूप योग को बेचना भी काबिले-तारीफ़ है..सुन्दर पोस्ट.आभार.

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।