Thursday, 23 June 2011

धर्मनगरी का अधर्म...



जी हां आजकल देश भर में भ्रष्टाचार की बात जोर शोर से की जा रही है। आप सबको पता है कि समाज का कोई तबका ऐसा नहीं है, जिसके हाथ इस गोरखधंधे में ना सने हों। आप सब पहले से जानते हैं कि देश के ज्यादातर सियासी भ्रष्ट हैं, नौकरशाह भी ईमानदार नहीं रहे। यहां तक की सरकारी दफ्तरों के बाबू को भी घूस का खून लग चुका है। हमारी न्यायालयों में बहुत श्रद्धा थी, लेकिन जज के साथ बैठा उनका पेशकार जब उनके सामने ही पैसे थामता है, तो सिर शर्म से झुक जाता है। पेशकार को जब कटघरे में खडा किया जाता है तो वह साफ साफ बताता है कि इस पैसे में जज साहब की भी शाम की सब्जी शामिल है।
माफ कीजिएगा मैं भ्रष्टाचार की बातें कर रहा हूं, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा है, वजह आप कह सकते हैं कि मीडिया को ये बात कहने का अब कोई हक नहीं है, क्योंकि यहां भी चोर घुसपैठ कर चुके हैं। जी बिल्कुल...मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं। यहां भी चोरों ने पांव पसार लिए हैं। कारपोरेट दलाल नीरा राडिया का जो टेप सामने आया है, उसने मीडिया के ऐसे बड़े बडे़ चेहरों को दागदार किया है, जिससे हम सब को काफी उम्मीदें थीं। पंजाब के आईपीएस एसपीएस राठौर के खिलाफ छेडछाड़ का मामला दर्ज हुआ तो मीडिया ने इतना हो हल्ला मचाया कि उन्हे सर्विस के दौरान मिले सभी पदक सरकार ने वापस ले लिए, लेकिन मीडिया का दोहरा चरित्र तो  देखिए..जब बडे पत्रकारों की काली करतूतें सामने आ चुकी हैं, फिर भी कहीं से ये आवाज नहीं उठाई गई कि दागी पत्रकारों से पद्मश्री वापस लिया जाए।
 
आइये विषय पर आते हैं, जो मै कहना चाहता हूं। आज मैं बहुत ही जिम्मेदारी से ये बात कह रहा हूं कि देश के साधु संत भी अब ईमानदार नहीं रह गए। सिर्फ काली कमाई ही नहीं, जमीन कब्जाने, जमीन के लिए किसी भी हद तक जाने के साथ ही अब तो कई बाबाओं के चरित्र पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।  
फिलहाल छोटी सी बात पुत्तपार्थी की करते हैं। आप सब जानते हैं कि सत्य साईं बाबा का शुरू से ही विवादों से नाता रहा है। जीवन काल में उनके बारे में अनैतिक रिश्तों की बात सामने आई थी, और अब मौत के बाद अकूत संपत्ति की। हम विदेशों में जमा कालेधन को वापस लाने के लिए शोर कर रहे हैं, लेकिन देश में जमा कालेधन पर क्यों खामोश हैं। सत्य साईं आश्रम में चोरी से ले जाए जा रहे 35 लाख रुपये पकडे जाने के बाद ट्रस्टियों की भूमिका संदिग्ध हो गई है। अब तो यहां तक बताया जा रहा है कि आश्रम में कई तहखानों में अऱबो रुपये नकद और हीरा, सोना चांदी जमा है। हैरत है कि जब सत्य साईं के कमरे से धन बरामद हो रहा है, तो आप समझ सकते हैं कि जो संत लोगों को मोह माया से दूर रहने  का संदेश देते हैं, उनका असली चेहरा कितना भद्दा, गंदा और बदबूदार है।

ताजा मामला बाबा रामदेव का ही ले लें। वो कहते हैं कि मुझे दान मिलता है, जिससे 1100 करोड का ये विशाल एंपायर खड़ा है। बाबा जी अगर आपने सभी दान चेक से लिया है तब तो ठीक है, उसका हिसाब किताब आपके पास होगा ही, लेकिन अगर बड़ी मात्रा में आपने नगद चंदा लिया है, तो ये कैसे पता चलेगा कि आपकी सम्पत्ति में कालाधन नहीं है। बाबा जी पर जब भी सवाल दागे जाते हैं, तो वो ये नहीं कहते कि मेरे पास जो कुछ है सब नंबर एक में है। वो लचर कानून का सहारा लेते हैं, और कहते है कि जो कुछ भी उन्होंने किया है वो सब कानून के दायरे में रह कर किया है। वैसे तमाम ट्रस्ट और कंपनी बनाने से ही ये साफ है कि बाबा रामदेव भी दूध के धुले नहीं है। यही वजह कि अब खामोश हो गए हैं, उछल कूद और बोलती बंद है।
हो सकता है कि आप मेरी बात से सहमत ना हों, लेकिन मैं बहुत ही जिम्मेदारी के साथ ये बात कह रहा हूं कि नौकरशाहों ने संत समाज को भ्रष्ट बनाने में अहम रोल निभाया है। आप किसी भी बाबा, योगी, कथावाचक, या फिर संत को ले लें, उनके यहां कुछ नौकरशाह जरूर चिपके होगें। संत सरल होते हैं, इससे वो नौकरशाहों के कुचक्र में फंस जाते हैं। संत समाज में नौकरशाहों के बढते दखल से न्याय पालिका के भी कान खड़े हो गए, और जजों ने भी इन साधु संतो में घुसपैठ बना लिया। आज देश में ऐसा कोई साधु, संत, सन्यासी नहीं है, जिसके यहां कार्यरत नौकरशाह या फिर रिटायर नौकरशाह और जजों की फौज ना हो। इसमें दोनों का फायदा है। सत्य साईं के आश्रम पुत्तपार्थी में तो एक नौकरशाह पूरे साम्राज्य का मालिक बनने की फिराक में है। 
पिछले दिनों आईबीएन 7 चैनल के एक स्टिंग आपरेशन में कई बाबा पकड़े गए थे। वो लोगों के कालेधन को सफेद करते थे। कैमरे पर पकड़े गए बाबा  सौदेबाजी कर रहे थे, जिसमें वो बकायदा ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए परसेंटेज की बात कर रहे हैं।  वैसे तो आप भी जानते हैं  कि जहां कहीं भी "साला " शब्द जुड़ जाता है, वहीं गड़बड़ी शुरू हो जाती है। जैसे धर्मशाला, पौशाला, गौशाला, पाठशाला आदि आदि। इन सबके नाम पर सरकारी छूट की लूट हो रही है। इसमें साधु संत सबसे आगे हैं। किसी भी साधु संत को देख लें, उनके पास करोडों की प्रापर्टी है। सबके धंधे चल रहे हैं। सबके साथ विवाद जुडा हुआ है। कम साधु संत ऐसे हैं जिनके खिलाफ कोई विवाद ना हो। जमीनों के विवाद जितने साधु संतो के साथ है, भूमाफियाओं के खिलाफ भी उतने मामले नहीं होंगे।
मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि साधु संतों के साम्राज्य पर सरकार कड़ी नजर रखे। चूंकि इन साधू संतों को इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स समेत अन्य सभी प्रकार के टैक्स से छूट दी गई है। छूट इसलिए कि ये समाज सेवा करते हैं। लेकिन अब कहां समाज सेवा रह गई। जब योग क्लास के लिए पंजीकरण शुल्क हजारों में हो, आर्ट आफ लीविंग के कोर्स की फीस ली जा रही हो, आगे बैठकर प्रवचन सुनने का अतिरिक्त शुक्ल देना मजबूरी हो, ऐसे में बाबाओं को छूट क्यों। क्यों नहीं बाबाओं को टैक्स के दायरे में लाना चाहिए। जब छूट का फायदा ये बाबा ले रहे हैं तो इन्हें सरकार के नियंत्रण में रहना चाहिए। सरकार को भी देखना चाहिए कि कैसे ये बाबा लोगों को चूना लगाकर रातोंरात अकूत संपत्ति जमा कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस मामले पर गंभीर बहस की जरूरत है और मैं जोर देकर ये कहना चाहता हूं कि बाबाओं के धार्मिक प्रतिष्ठानों, मंदिरों सभी जगह टैक्स का प्रावधान होना चाहिए।
और अब बात धर्मनगरी के अधर्म की। आप किसी भी धर्मनगरी मथुरा, हरिद्वार, श्रृषिकेश समेत और भी महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों पर चले जाएं। यहां आपको रहने के लिए एक से एक आलीशान धर्मशाला मिलेंगे। जिसमें सभी तरह की फाइव स्टार सुविधाएं मिलेंगी और आपसे हजारों रुपये किराया भी वसूला जाएगा। लेकिन जब आप यहां बिल मांगेगे तो वो किराए का बिल ना देकर  धर्मशाला के लिए सहयोग राशि यानि दान की रसीद थमा देगें। ये काम सबसे ज्यादा कृष्णनगरी मथुरा में है। खुलेआम लूट करते हैं धर्म के ठेकेदार, पर कोई बोलने वाला नहीं है।



15 comments:

  1. bilkul sahi kah rahe hai aap, baba ab baba kahan rah gaye vo to dharm ke nam par moh maya me jyada range hue hai,ek aam aadami to fir bhi kahin santosh kar leta hai par inke lobh lalach ka to koi ant hi nahi hai..sarthak post.

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  2. आज के हालात पर आपने सटीक टिप्पणी कर दी है. बड़े धार्मिक संगठन भू-माफिया ही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कुछ कार्रवाई करने के लिए कहा है. लेकिन करेगा कौन. सभी एक हम्माम में हैं. बाबाओं के पास लूट की अकूत राशि है. सब जानते हैं. धर्म का अर्थ राजनीति करने के लिए धन एकत्रण है. बाकी आपने कह ही दिया है.

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  3. सही कहा आपने, धर्म के इस अधर्म को दूर करना बहुत आवश्‍यक है। इसने हमारे देश के भीतर ही सैकडों हजारों स्विस बैंक बना रखे हैं।

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    रहस्‍यम आग...
    ब्‍लॉग-मैन पाबला जी...

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  4. हालात को उजागर करती आपकी यह पोस्ट ..!

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  5. चिंतनीय..
    मननीय...

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  6. सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! बिल्कुल सही कहा है आपने! आज हमारे देश में धर्म के नाम पर अधर्म हो रहा है और इसे दूर करने के बजाये और भी बढ़ता जा रहा है! ये बहुत ही गंभीर समस्या और चिंता का विषय है! उम्मीद है की सब ठीक हो जाए! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  7. जो बात मैं काफी पहले से कहता आया हूं, उस पर आज शंकराचार्य जी ने मुहर लगा दी और कहा कि बाबा रामदेव को महिलाओं के वस्त्र में छिप कर भागना नहीं चाहिए था। सत्याग्रही बलिदान देते हैं, भागते नहीं।

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  8. Yeh ek dukhad aur dhurbhagyapurn satya hai .

    Aapka blog accha laga .

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  9. Thanks for your visit and kind words.

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  10. अक्षरसः सत्य वचन | सत्यान्वेषण करती पोस्ट |

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  11. सुंदर समसामयिक चिन्तन.... इस समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं....

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  12. आपका मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
    जिस रंग का चश्मा पहनिए,दुनिया वैसे ही रंग की दिखलाई पड़ने लगती है.वास्तविक सुधार तो हमारा अपने अंदर से ही होगा.
    कूड़े पर नजर डालेंगें तो नाक में बदबू समा जायेगी
    बाग और फूलों पर नजर डालेंगें तो खुशबू से मन प्रसन्न हो जायेगा.

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  13. तभी तो हमें व्यवस्था बदल्ने की सोचना चाहिए और इसके लिए यदि कोई भ्रष्ट या शिष्ट मुहीम शुरू करता है तो उसमें साथ देना चाहिए। जैसा कि दुष्यंत ने कहा था मेरे दिल में न सही तेरे दिल में या किसी और के दिल में आग न सही चिंगारी तो भड़कना चाहिए॥

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  14. श्री चंद्रमौलेश्वर जी... जब किसी आंदोलन की बागडोर दागी के हाथ में होगी तो आंदोलन को कुचल दिया जाएगा। आपने देखा ना अन्ना जी जिस मजबूती से आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं वहीं भगवाधारी पतंजलि में बैठ कर लेखा जोखा दुरुस्त कर रहे हैं। बेईमानों पर लाठी भांजने में सरकार को भी सोचना नहीं पड़ता।

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  15. ye kalyugi baba hain jo dharm ke naam par kala man kala dhan wala halat failaye baithe hain sare dhan ke lalachi hain jise daan me mila hai kah kar kala dhan ko jama karte aa rahe are sacche sanyasi to apne pas kuchh bhi nahi rakhte sabkuchh duniya par gareebon par luta dete hain to fir ye lakhon karodo nahi arbon ki sampti kiske liye inhone jivit rahte saheji khud ke ashwrya ke liye hi na ???

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।