मित्रों,
कई बार कुछ ऐसी रचनाएं नजर से गुजरती हैं, जिसे बार बार न सिर्फ दुहराने का मन होता है, बल्कि सोचे जागते आप उसी रचना में रमें रहते हैं। मैं यहां दो तीन रचनाएं आपके सामने रखता हूं, मुझे लगता है कि आप भी इसे पसंद करेंगे और मेरी तरह गुनगुनाते रहेंगे। चलिए बात वीर रस के जाने माने कवि डा. हरिओम पंवार से शुरू करता हूं।
मैं भी गीत सुनाता हूँ, शबनम के अभिनन्दन के
मैं भी ताज पहनता हूँ नंदन वन के चन्दन के ||
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गन मन के क्रंदन के ||
जब पंछी के पंखो पर हो पहरे बम के गोली के,
जब पिंजरे में कैद पड़े हो सुर कोयल की बोली के ||
जब धरती के दामन पर हो दाग लहू की होली के,
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के ||
मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आंसू गाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
अन्धकार में समां गए जो तूफानों के बीच जले,
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले||
क्रांतिकथा में गौण पड़े है, गुमनामी की बाहों में,
गुंडे तस्कर तने खड़े है राजमहल की राहों में ||
यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला,
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला ||
राजनीति में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता,
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता ||
ऐरे गेरे नत्थू खैरे तंत्री बन कर बैठे है,
जिनको जेलों में होना था मंत्री बन कर बैठे है ||
लोक तंत्र का मंदिर भी बाज़ार बना कर डाल दिया,
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया ||
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है,
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है ||
पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
,इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलायेगे ||
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेगी राजधानी,
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी ||
प्यार सिखाने वाले बस ये मजहब के स्कूल गए,
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए ||
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले,
सांझ चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल गए ||
आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला,
जिसको जिम्मेदारी दी वो घर भरने में व्यस्त मिला ||
क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फ़ासी ने,
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ,
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
जो अच्छे सच्चे नेता है उन सबका अभिनन्दन है,
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है ||
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा करते है,
हम उनके कदमो में अपने प्राणों को धरते है ||
लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने है,
सात समुंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने है ||
जिनकी प्यास महासागर है भूख हिमालय पर्वत है,
लालच पूरा नीलगगन है दो कौड़ी की इज्ज्ज़त है ||
इनके कारण ही बनते है अपराधी भोले भाले,
वीरप्पन पैदा करते है नेता और पुलिस वाले ||
केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो,
काला धन वापस न आये तो मुझको फ़ाँसी दे दो ||
जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है,
तो बगला भगतो की टोली हंसों को खा जाती है ||
जब जब जयचंदो का अभिनन्दन होने लगता है,
तब तब सापों के बंधन में चन्दन रोने लगता है ||
जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है,
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है ||
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है,
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते है ||
सिंहो को म्याऊँ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है,
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है ||
कहते है की सच बोलो तो प्राण गवाने पड़ते है,
मैं भी सच्चाई को गाकर शीश कटाने आया हूँ,
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
कोई साधू संन्यासी पर तलवारे लटकाता है,
काले धन की केवल चर्चा पर भी आँख चढ़ाता है ||
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है,
कोई यमुना गंगा अपने घर में भरने लगता है ||
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है,
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है ||
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में,
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में ||
कोई ढाँचे का गिरना UNO में ले जाता है,
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है ||
कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है,
कोई बाबा रामदेव पर दाग लगाने लगता है ||
सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते है,
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ,
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ |
-डॉ. हरिओम पंवार
डा.हरिओम पंवार को पढने से ज्यादा उन्हें सुनना अच्छा लगता है। अक्सर कवि सम्मेलनों में उनकी बारी आने तक रात के डेढ दो बज चुके होते हैं, लेकिन जब डा. पवांर खडे होते है तो वो कवि सम्मेलन में मौजद लोगों में ऐसी जान फूंक देते हैं कि ऊंघ रहे लोग उठ बैठते हैं। अब हिन्दी के जाने माने कवि स्व. कैलाश गौतम की एक रचना। कैलाश जी की खास बात यह रहती है कि वो ऐसे विषय को लेते हैं जिससे आमतौर पर सभी का सामना होता है और गौतम जी अपने ही अंदाज में लोगों को संदेश देते नजर आते हैं।
कभी मेरे बेटे कचहरी न जाना
भले डांट घर में तू बीबी की खाना
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी न जाना- कचहरी न जाना.
कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है
अहलमद से भी कोरी यारी नहीं है
तिवारी था पहले तिवारी नहीं है
कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही जिन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चुमतें है
कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है
भला आदमी किस तरह से फंसा है
यहाँ झूठ की ही कमाई है बेटे
यहाँ झूठ का रेट हाई है बेटे
कचहरी का मारा कचहरी में भागे
कचहरी में सोये कचहरी में जागे है
मर जी रहा है गवाही में ऐसे
है तांबे का हंडा सुराही में जैसे
लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है
कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है
उसी की कसम लो जो हाज़िर नहीं है
है बासी मुहं घर से बुलाती कचहरी
बुलाकर के दिन भर रुलाती कचहरी
मुकदमें की फाइल दबाती कचहरी
हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी
कचहरी का पानी जहर से भरा है
कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है
मुकदमा बहुत पैसा खाता है बेटे
मेरे जैसा कैसे निभाता है बेटे
दलालों नें घेरा सुझाया -बुझाया
वकीलों नें हाकिम से सटकर दिखाया
धनुष हो गया हूँ मैं टूटा नहीं हूँ
मैं मुट्ठी हूँ केवल अंगूंठा नहीं हूँ
नहीं कर सका मैं मुकदमें का सौदा
जहाँ था करौदा वहीं है करौदा
कचहरी का पानी कचहरी का दाना
तुम्हे लग न जाये तू बचना बचाना
भले और कोई मुसीबत बुलाना
कचहरी की नौबत कभी घर न लाना
कभी भूल कर भी न आँखें उठाना
न आँखें उठाना न गर्दन फसाना
जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी
वहीं कौरवों को सरग है कचहरी ||
अवधी में हास्य व्यंग की बात हो और स्व. रफीक सादानी की चर्चा ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। सादानी साहब को जिसने एक बार भी सुना है, वो उनका कायल हो गया। उनकी रचना शैली का अलग अंदाज तो देखने को मिलता ही है, मै उनसे काफी संपर्क में रहा हूं, वो एक अच्छे इंशान भी थे। एक उनकी रचना भी..
कविता : कुपंथी औलाद
औरन के कहे मा हम आयेन
काया का अपने तरसायेन
कालिज मा भेजि के भरि पायेन
तू पढ़ै से अच्छा घरे रहौ,
चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम सोचा रहा लिखि पढ़ि जइहौ
आकास मा एक दिन चढ़ि जइहौ
पुरखन से आगे बढ़ि जइहौ
अब घर कै खेती चरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
जबसे तू इस्कूल गयौ
तू फर्ज का अपने भूलि गयौ
तुम क्वारै भैया झूलि गयौ
भट्ठी मा हबिस के बरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
तुमसे अच्छा रघुआ हरजन
डिगरी पाइस आधा दर्जन
अस्पताल मा होइगा सर्जन
तू ऊ ..............करे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम सोचा रहा अफसर बनिहौ
या देसभक्त लीडर बनिहौ
का पता रहा लोफर बनिहौ
अब जेब मा कट्टा धरे रहौ
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
फैसन अस तुमपै छाइ गवा
यक राही धोखा खाइ गवा
हिजड़े का पसीना आइ गवा
जीते जी भैया मरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हर बुरे काम पै अमल किहेउ
कुछ पढ़ेउ न खाली नकल किहेउ
बर्बाद भविस कै फसल किहेउ
अब बाप कै सब सुख हरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम पुन्न किहा तू पाप किहेउ
हम भजन तू फिल्मी जाप किहेउ
गुंडई मा कालिज टाप किहेउ
जो मन मा आवै करे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।
अइसन जौ बिगाड़े ढंग रहिहौ
बेहूदन के जौ संग रहिहौ
जेस रफीक हैं वैसन तंग रहिहौ
पूलिस के नजर से टरे रहौ,
... चाहे खटिया पै परे रहौ।”
[ अवधी कवि रफीक सादानी ]
चलिए कुछ पंक्तियां राहत भाई इंदौरी की भी हो जाए, जो मुझे बेहद पसंद है। राहत भाई देश के उन चुनिंदा शायरों में हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है। जब सरकारें पटरी से उतरने लगती हैं तो राहत भाई उसे अपने शेर के जरिए संभालने की कोशिश करते हैं। दुनिया में अमन का पैगाम देना हो तो राहत भाई के शेर इस काम को भी बेहतर अंजाम देते हैं। बात प्यार मोहब्बत की हो तो भी राहत भाई का क्या कहना... आइये उनकी एक रचना की दो चार लाइनें जो मुझे याद हैं।
उसकी कत्थई आंखों में है, जंतर मंतर सब,
चाकू, वाकू, छुरियां, वुरियां, खंजर,वंजर सब।
जब से रूठी वो मुझसे, सब रुठे रुठे हैं,
चादर, वादर, तकिया, वकिया, बिस्तर विस्तर सब।
हम से बिछुड़ कर वो भी कहां अब पहले जैसी है,
फीके पड़ गए कपड़े, वपड़े, गहने, वहने सब।
इसमें कुछ और भी अच्छी लाइनें है, पर मुझे इस वक्त याद नहीं आ रही है। कोशिश करुंगा कि बाद में उसी भी शामिल किया जाए। मित्रों मैं चाहता हू कि अगर आपको ये संकलन अच्छा लगे तो इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए आप अपने ब्लाग पर भी इसे जगह दे सकते हैं।
great collection...
ReplyDeleteadarniye hariom panwar ji ko saamne se sunne ka bhi kai bar saubhagya mila hai, unki ek ek abhivyakti laajawab hoti hai....
सुंदर संकलन ...सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं....
ReplyDeleteबहुत बढिया संकलन किया कविताओं का महेंद्र भाई। आभार इतने ओज और देश के चिंतन पर कविताएं पढाने के लिए॥
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति....बढ़िया संकलन...
ReplyDeleteइतने अच्छे संकलन का आभार।
ReplyDeleteजीवन की विभिन्न आयामों को एक साथ रख दिया है.बहुत बढिया संकलन .किसको पकड़े किसको छोड़े .आभार
ReplyDeleteसुंदर संकलन .बहुत बढ़िया प्रस्तुति...सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं....आभार।
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