मित्रों ,
बाबा रामदेव ने देश को धोखा दिया। तीन जून को ही बाबा ने सरकार के साथ समझौता कर लिया था। रामदेव कल तक ड्रामा कर रहे थे कि 90 फीसदी बात मान ली गई है, कुछ ही रह गई है। लेकिन सच्चाई ये है कि कपिल सिब्बल के साथ मीटिंग में एक दिन पहले ही वो समझौता कर चुके थे, और बाबा ने लिखित में समझौता भी कर लिया था। सरकार से सिर्फ छह घंटे के लिए तप करने की अनुमति मांगी और कहाकि चार जून को दोपहर ढाई बजे तक सब खत्म कर दूंगा। ये समझौता करने के बाद भी बाबा सुबह मंच से चंदा वसूल रहे थे। क्या सब ड्रामा चंदे के पैसे के लिए था। ये बाबा भी हमाम में ...... है। अब आगे लेख पढिए।
चलिए सबसे पहले असली सत्याग्रह को समझ लिया जाए।
"सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति भी वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।'
ये एक परिभाषा है, लेकिन आप सोचें की क्या बाबा रामदेव ऐसा कर रहे हैं। वो सरकार में बैठे लोगों पर लगातार हमले कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमें जो मंत्री अनशन करने से रोकने में नाकाम रहा है, उसे शीर्षाशन करना पड़ रहा है। ये बाबा नहीं उनका घमंड बोल रहा है। आइये एक और परिभाषा देखते हैं।
"सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्ट सहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।'
मतलब साफ है कि आप खुद को कष्ट देकर सत्याग्रह करें। लेकिन बाबा तो अपने और अपने साथ लाए समर्थकों को सुविधा देने के लिए करोडों रुपये का चंदा मांग रहे हैं। बताते हैं कि अब तक देश भर से 50 करोड रुपये से ज्यादा चंदा जमा कर चुके हैं। बाबा पैसे की बर्बादी की खूब बात करते हैं। रामलीला मैदान मे लगभग ढाई करोड की लागत से आरओ लगाया गया है, जिससे पीने के पानी को ठंडा किया जा सके। बाबा जी ये कैसा सत्याग्रह है। एक और परिभाषा देखिए..
सत्याग्रह में स्वयं कष्ट उठाने की बात है। सत्य का पालन करते हुए मृत्यु के वरण की बात है। सत्य और अहिंसा के पुजारी के शस्त्रागार में "उपवास' सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। जिसे किसी रूप में हिंसा का आश्रय नहीं लेता है, उसके लिए उपवास अनिवार्य है। मृत्यु पर्यंत कष्ट सहन और इसलिए मृत्यु पर्यत उपवास भी, सत्याग्रही का अंतिम अस्त्र है।' परंतु अगर उपवास दूसरों को मजबूर करने के लिए आत्मपीड़न का रूप ग्रहण करे तो वह त्याज्य है।
पढा आपने, सत्याग्रह में आप स्वयं को कष्ट देते हुए सत्य का पालन मृत्यु तक करना होता है। अरे बाबा जी आप और आपके चेले सत्याग्रह कर रहे हैं ना, इसमें तो उन्हें कष्ट उठाना है, तब आप खुलेआम लोगों से चंदा रूपी भीख क्यों मांग रहे हो। यहां तो आप शरीर को तपाने आए हो. या मौज करने। यहां आप और आपके चेलों के लिए ठंडी हवा और पानी के लिए करोडो रुपये क्यों खर्च किए जा रहे हैं। आप तो पैसे के बेहतर इस्तेमाल की बड़ी बड़ी बातें करते हो। क्या बाबा जी आपको नहीं लगता कि जिस तरह आप ये पैसा बहा रहे हैं इससे पतंजलि योग पीठ के ही आसपास के कई गांवों में बेहतर सड़क और पानी का इंतजाम किया जा सकता था।
मित्रों सत्याग्रह के असली रुप के बारे में इसलिए भी जानकारी दी जानी जरूरी है कि कल ये कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चें सवाल पूछेगें कि क्या ऐसा ही सत्याग्रह करके राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हमें आजादी दिलाई थी। क्या बाबा की तरह गांधी जी का भी भव्य मंच बनता था और वहां एसी लगाकर गांधी जी बैठा करते थे और उनके साथ जो लोग होते थे उन्हें पंखे और कूलर की सुविधा दी जाती थी।
क्या गांधी जी भी बाबा की तरह सत्याग्रह के लिए चार्टर्ड प्लेन से आते थे और फिर 35 लाख की कार से सत्याग्रह के स्थान पर सुख सुविधाओं का इंतजाम देखने के लिए तीन दिन पहले पहुंचते थे। जिस मंच पर सत्याग्रह किया जाता था, उसी मंच से क्या गांधी जी भी चंदा वसूलते थे। मित्रों आज आप भावनावश कुछ भी कहें, पर कल आपके बच्चे बड़े होकर पूछेंगे कि गांधी और बाबा के सत्याग्रह में क्या फर्क था। तो क्या आप ये बात नहीं बताएंगे।
सत्याग्रह में दूसरों को तकलीफ दिए बगैर खुद को पीड़ा पहुंचाना होता है। बाबा दूसरों को पीडा पहुंचाने के साथ ही सत्याग्रह से लोगों के लिए भी मौत ही तो मांग रहे हैं। वो चाहते हैं कि देश में बेईमानों को फांसी की सजा हो। मित्रों दरअसल देश का यही दुर्भाग्य है कि जिसका जो काम है, वो न करके दूसरा काम कर रहा है। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री स्व. इंदिरागांधी के दो बेटे थे। राजीव गांधी और संजय गांधी। राजीव पायलट थे और संजय राजनीति में थे। दोनों अपना काम कर रहे होते तो आज भी देश की सेवा कर रहे होते। लेकिन संजय ने पायलट बनने की कोशिश की वो हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे गए और राजीव राजनीति में आकर मारे गए। ये सिर्फ एक उदाहरण भर है। मैं फिर कहता हूं कि जिसका जो काम है वो करे, देश को ज्यादा फायदा होगा।
वैसे भी बाबा जी जिसके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फैंकते। जिस दिन देश की जनता हिसाब मांगेगी कि स्वदेशी के नाम पर पांच रुपये का चूरन 50 रुपये में बेचते हो, तो जवाब नहीं दे पाएंगे। और बाबा जी आपके मंच से गाना बजाना से लेकर उगाही जो सब चल रहा है, उस मंच पर सत्याग्रह को बैनर अच्छा नहीं लग रहा है, कृपया अपने आंदोलन का नाम कुछ और कर लें। प्लीज गांधी जी को बख्श दें।
अंत में हुल्लड मुरादाबादी की दो लाइनें
गणपति बप्पा मौरिया, गणपति बप्पा मोरिया,
राजघाट में गांधी बाबा, सुबुक सुबुक कर रो रिया।
1 gandhi ji koi 1 safal aandolan bataye..
ReplyDelete2 vertman parevesh men ye jaruri hai..sathe styam samachrate
3 ye kanvent wale styagrah naji padhate hain...isai kaise bane aur bofors kaise karen uski training dete hain..
4 baba pahle ye bhi kahte hain ki churan ghar bana lo nahi bana sakte ho to mere pas se le jao..
5 baba ke pas jitni sampatti (1100Karon) hai itna to kangresi aur kangres poshit log abne jeb men chillar rakhte hain...
kripya desh hit ki soche ....
baba nahi to kaun??????(iska jabab kya hoga???)
आशुतोष जी, जब आप गांधी को नहीं मानते तो फिर आगे कुछ कहने की मेरी हिम्मत नहीं है। लेकिन ये बाबा का सत्याग्रह नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। योग की आड में कुछ और खेल हो रहा है।
ReplyDeleteआपको हार्दिक आभार..आपने मेरे ह्रदय की आवाज़ को शब्द दिया है..मैं सहमत हूँ ..
ReplyDeleteविचार तो सबके अपने अलग भी हो सकते हैं ....
ReplyDeleteबहरहाल ’सत्याग्रह’का सही अर्थ बताने का शुक्रिया .......
भावनाओं को कैश करने का अच्छा उपक्रम है यह!
ReplyDeletemafi chahta hu sir...maine ye nahi maine ye nahi kaha ki gandhi ko nahi manta...maine sirf ye kaha ki gandhi ji ke aandolan ki saflta ka pratishat..
ReplyDeleteye jo satta ke mathadhish hain angrejon sae bade ghagh hain...inko unki bhasha men samjhana jaruri hai..
agar ye nautanki hai to kripya batayen ki sansad men aap ke aur humare chahate kya karte hain????shayad nautanki shabd kam hoga unke liye..
aap anubhavi hain mera margdarshan karen ki agar baba ka jhanda na uthaun to kiska uthaun...
kalmadi raja soneia wali kangress
judev bangaru wali BJP
ya mayawati ka neela jhanda...
Kyuki gandhi baba to rahe nahi...unke nam ko bechne wale bache hain..
is samay un sabse acche baba hai isliye janta uske saath hai.....kal baba sae accha vikalp mila janta unke saath ho legi...
Good update. thanks.
ReplyDeleteआंदोलन के लिए पैसा तो चाहिए... और फिर चोरी.छुपे तो नहीं लिया, तो ऐतराज़ क्यों? क्या डेरा, तम्बू मुफ़्त में आएगा?
ReplyDeleteदेश कोई एक बाबा से नहीं बल्कि हम लोगों से बचेगा ....हम खुद से यह सवाल पूछें कि इस बदहाली के लिए कौन जिम्मेवार है ...सत्याग्रह की सही परिभाषा से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार ....!
ReplyDeleteसत्याग्रह की सही परिभाषा से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार
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ReplyDeleteबहुत अच्छा...
ReplyDeleteजो जैसा दिखता है शायद वैसा नहीं होता...
news me yahi charche hai ,aakhir yakin kis par kis baat par kiya jaaye .vristit jaankaari ke liye aabhari hoon .
ReplyDeleteaap ki post par..shayad mere kuch din pahle ki gayi pahli tippani satya ho gayi sir..
ReplyDeleteaaj ke liye
एक बार फिर शिव त्रिनेत्र को,प्रलय रूप खुल जाने दो
एक बार फिर महाकाल बन इन कुत्तों को तो मिटाने दो..
एक बार रघुपति राघव छोड़ , सावरकर को गाने दो...
एक बार फिर रामदेव को, दुर्वासा बन जाने दो...
"आशुतोष नाथ तिवारी"
बाबा को पहना दी ,कल जिसने सलवार
ReplyDeleteअब तो बनने से रही ,फिर उसकी सरकार ।
रोज़ रोज़ पिटें लगे बच्चे और लाचार ,
है कैसा यह लोक मत ,कैसी है सरकार ।
आंधी में उड़ने लगे नोटों के अम्बार ,
संसद में होने लगा ये कैसा व्यवहार ।
और जोर से बोल लो उनकी जय जैकार ,
सरे आम पीटने लगे मोची और लुहार .
संसद में होने लगा यह कैसा व्यवहार ,
सरे आम होने लगा नोटों का व्यापार ।
संसद बने रह गई कुर्सी का त्यौहार ,
कुर्सी के पाए बने गणतंत्री गैंडे चार .
भाई साहब गम नहीं पाप का घड़ा फूटने ही वाला है .कांग्रेस के मुंह में आखिरी निवाला है .बाबा गले की हड्डी बनने वालें हैं .
माहौल ऐसा बन गया है कि बाबा को जो समर्थन न दे वो भ्रष्ट,पर बाबा को क्या नहीं पता कि करोड़ों रुपयों का दान जो उन्हें मिला है उसमें से अधिकतर काला पैसा है. इस आंदोलन को समर्थन देने से कुच नहीं होग, बल्कि अपने को सुधारना होगा, कानून मत तोड़ो, रिश्वत न लो और ना दो(मजबूरी में भी नहीं),आपना वोट सही आदमी को दो, और संतों,मौलवियों व राजनेतायों में अंतर करना सीखो.
ReplyDeleteबस इतना ही,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आप सभी के कमेंट देख रहा हूं, ज्यादातर मित्र मेरी बात से सहमत हैं। कुछ लोग हैं जिन्हें लेख पर कुछ आपत्ति है। दरअसल मैं यहां किसी खास विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता हूं। इसलिए मैं कोई भी राजनीतिक दल हो, संत समाज हो, मैं अपनी स्पष्ट राय रखता हूं।
ReplyDeleteचंद्रमोलेश्वर प्रसाद जी ने कहा कि पैसा जरूरी है, डेरा तंबू मुफ्त में आएगा। मैं आपका बहुत रिस्पेक्ट करता हूं, लेकिन मेरा लेख लिखने का मकसद यही था कि डेरा तंबू की जरूरत क्या थी। आप सत्याग्रह करते हैं, जिसके लिए आपको खुद को तपाना होता है। आराम या मौजमस्ती करने लोग यहां थोड़े आए थे।
आशुतोष जी मेरे ब्लाग को अगर आप ध्यान से पढेगें तो देखेंगे कि मैं कांग्रेस के लिए भी और सख्त भाषा का इस्तेमाल करता हूं। रही बात बाबा का झंडा उठाने की तो मैं तो आपको व्यक्तिगत तौर पर ये सलाह नहीं दूंगा। बाबा का असली चेहरा बहुत भयानक है। बाबा योग से ज्यादा रुपये पैसे की बात करते हैं। आपको पता है बाबा ने हेराफेरी के लिए कुल 45 कंपनी बना रखी है, जिसमें खुद कुछ नहीं है, और बालकृष्ण सभी कंपनी में डायरेक्टर है। जल्दी ही ये बेनकाब हो जाएंगे। मित्र आप युवा है, आपके स्पष्ट और सख्त विचार का मैं कायल हूं, बस इसे सही दिशा दे दें। मैं सच में आप और आपके लेख को पसंद करता हूं।