ये तो आप भी मानते ही होंगे कि पाप का घड़ा एक ना एक दिन भरता जरूर है। अब क्या मेरी तरह आप भी विश्वास के साथ ये बात कह सकते हैं कि बीसीसीआई के हाशिए पर डाल दिए गए अध्यक्ष श्रीनिवासन के पाप का घड़ा भर गया है ? देखा जाए तो पहली नजर में तो यही लगता है। उनके चेहरे पर जो अहंकार दिखाई देता था, कल दिल्ली में बेचारगी दिखाई दे रही थी। देखने से ही लग रहा था कि वो अपने और दामाद के किए पर शर्मिंदा हैं, लेकिन आप जानते ही हैं कि रस्सी जल भी जाए तो उसकी ऐंठन नहीं जाती। लिहाजा उन्हें लगा कि हो सकता है कि उनकी दादागिरी जिस तरह अभी तक चलती रही है, शायद उनके रुतबे के आगे सब बौने हो जाएं और अध्यक्ष की कुर्सी पर फिर जम जाएं। पर प्यारे श्रीनिवासन आगे से जब दिल्ली आओ, तो एक बार यहां के लोगों से राय ले लिया करो, फायदे में रहोगे। ये दिल्ली है, कुर्सी किसी को आसानी से नहीं देती, हां यही बैठक अगर आप काठमांडू में कर लेते तो कोई पूछने ही वाला नहीं था। जिसको जैसे चाहते बेवकूफ बनाते, सब आपके सामने सिर झुकाए खड़े रहते। लगता है कि आप सोशल मीडिया से दूर है, वरना आपको काठमांडू के बारे में सबकुछ पता होता।
खेल के बारे में जब भी कुछ चर्चा करता हूं तो डर लगता है। मुझे लगता है कि पता नहीं आप लोगों को इसके बारे में कितना पता है। चलिए फिर भी दो चार बातें फटाफट बता देते है, उसके बाद असल मुद्दे पर चर्चा करेंगे। दरअसल बीसीसीआई ने आईपीएल के बारे में जो " रुल बुक " तैयार किया है उसमें साफ है कि अगर आईपीएल की किसी भी टीम के प्रबंधन से जुड़ा आदमी अनैतिक कार्य करता है, तो उस टीम को डिबार यानि अयोग्य़ घोषित कर दिया जाएगा। आपको जानते ही है कि चेन्नई सुपर किंग के मालिकों में श्रीनिवासन के अलावा उनका दामाद मयप्पन भी शामिल है, जबकि राजस्थान रायल्स में शिल्पा के पति राजकुंद्रा है। इन दोनों पर सट्टेबाजी के गंभीर आरोप हैं। राजस्थान टीम के तो कई खिलाड़ी और भी गंभीर हरकतों में पकड़े जाने पर जेल तक की हवा खा चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर चेन्नई और राजस्थान की टीमों को अभी तक अयोग्य़ घोषित क्यों नहीं किया गया ? आपको पता है कि श्रीनिवासन बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रहे हैं और उनकी टीम भी है। इसलिए उनके बारे में नियम कायदे की बात करना बेमानी है। मीडिया ने जब उनके दामाद मयप्पन, राजस्थान रायल्स के राजकुंद्रा के साथ बिंदू दारा सिंह की हरकतों के बारे में खबरें दिखाई तो कई हफ्तों के ड्रामें के बाद श्रीनिवासन बीसीसीआई से अलग होने को मजबूर गए। इतना ही नहीं जल्दबाजी में दो सदस्यों की एक कमेटी बना दी गई। इस कमेटी ने जांच कर अपनी रिपोर्ट में श्रीनिवासन को क्लीन चिट्ट दे दी। लेकिन मुंबई हाईकोर्ट ने जांच कमेटी को ही अवैध बताकर उसकी रिपोर्ट खारिज कर दी।
इन सबके बाद भी श्रीनिवासन " मैं हूं डान " की स्टाइल में कुर्सी पर कब्जा करने की जुगत बैठाने लगे। अध्यक्ष का ख्वाब मन पाले हुए बेचारे दिल्ली तो आ धमके, लेकिन वो जिन लोगों के बूते दिल्ली आए थे, यहां उन्हीं लोगों ने उनकी खूब बजाई। बैठक के दौरान उनके खास लोगों ने ही उन्हें डराया धमकाया और कहाकि अब पूरा मामला कोर्ट में है। कोर्ट बीसीसीआई की हर गतिविधियों पर कड़ी नजर बनाए हुए है, लिहाजा ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए जिससे कोर्ट में अपना केस कमजोर हो। श्रीनिवासन चाहते थे कि वो ही इस मीटिंग की अध्यक्षता करें। जब उन्हें बताया गया कि इस होटल में तो आप कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने अगर अपना रुख कड़ा कर लिया तो इसके बाद क्या होगा ? बताते हैं कि जो तस्वीर उनके सामने रखी गई, बेचारे श्रीनिवासन हिल गए। अब सोचा जाने लगा कि बाहर मीडिया वाले खड़े हैं, उन्हें क्या बताया जाए ? कहा गया कि वो कौन सा हमें नंबर देने वाले हैं, कुछ भी बता दो। बस मीटिंग रद्द हो गई और कहा गया कि मीटिंग का एंजेंडा ही तैयार नहीं था। ये सुनकर आपको भी हंसी आ रही होगी, हमें तो खैर आ ही रही है।
आइये एक मिनट सीरियस बात कर लें, आपको ये पता है कि देश में क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों में उन्ही खिलाड़ियों को राष्ट्रीय सम्मान मिल सकता है, जिस खेल के महासंघ को भारत सरकार के खेल मंत्रालय से मान्यता मिली हुई है। मसलन कुश्ती, दौड़, टेबिल टेनिस, हाकी, टेनिस, तैराकी, बैडमिंटन कोई भी खेल हो, इससे से जुड़े महासंघ को अगर खेल मंत्रालय की मान्यता नहीं है तो कितना बढ़िया खिलाड़ी हो या फिर कितने ही पदक ही क्यों ना जीता हो, उसे सरकार मान्यता नहीं देती है, और ऐसे खिलाड़ी को कभी राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिल सकता। मतबल ऐसे खिलाड़ी को पद्मश्री, पद्मभूषण या अन्य किसी भी सम्मान से नही नवाजा जा सकता है। लेकिन देश में क्रिकेट को लोग धर्म मानते हैं और सचिन जैसे खिलाड़ी को भगवान। यही वजह है कि सरकार के क्रिकेट के मामले में सारे नियम कायदे किनारे रह जाते हैं। यहां बीसीसीआई जो पैसे वालों का एक गिरोह है, वो जो भी चाहे कर सकती है। आज तक बीसीसीआई को खेल मंत्रालय की मान्यता नहीं है, पर तमाम क्रिकेटर को पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान मिल चुके हैं। अब तो बात इससे भी आगे की हो रही है है, वो ये कि क्रिकेटर को भारत रत्न दिए जाएं। हाहाहाहा.... आपने शोले पिक्चर देखी होगी, एक डायलाँग है ना, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना। मुझे भी लगता है कि अगर बीसीसीआई खेल मंत्रालय की मान्यता नहीं लेती है तो क्रिकेटरों को भी राष्ट्रीय सम्मान से वंचित कर दिया जाना चाहिए।
सच कहूं तो बीसीसीआई और क्रिकेटरों ने राष्ट्रीय सम्मान को काठमांडू सम्मान बना दिया है। मसलन कोई नियम कायदा नहीं। सम्मान किसको दिया जाएगा, सम्मान देने की प्रक्रिया क्या होगी, सम्मान के लिेए योग्यता क्या होगी, सम्मान के लिए निर्णयाक मंडल मे कौन होगा, कुछ भी से तय नहीं होगा। बस 4100 रुपये दो और सम्मान की पूरी प्रक्रिया इसी से पूरी हो जाएगी। मेरा मानना है कि ऐसे सम्मान खेल में तो नहीं बस ब्लाग में दिए जा सकते हैं। चलिए अंदर की बात बताते हैं। मेरे पिछले पोस्ट से ब्लाग परिवार में थोड़ी खलबली जरूर मची। वैसे एक बार आंख खोलने से आयोजकों की आंख खुल जाएंगी, अगर ऐसा कोई भी सोचता है तो मैं तो उसे 24 कैरेट का मूर्ख समझूंगा। लेकिन थोड़ा बहुत सुधार होगा, ये मुझे जरूर उम्मीद थी। काठमांडू सम्मान में भी थोडा बदलाव आया है। दो दिन पहले जिन नए आठ - दस नए लोगों का नाम सम्मान के लिए घोषित किया गया है। इसमें पहली बार ये बताने की कोशिश की गई है कि उन्हें किस क्षेत्र में सम्मान दिया जा रहा है। इसके पहले जो नाम थे, उन्हें तो यही लग रहा था कि ये 4100 रुपये का सम्मान है।
ये बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि एक ब्लागर ने स्वीकार किया कि उसे नहीं पता कि ये 5100 रुपये मुझे क्यों दिए जा रहे हैं। बस मैं इतना कहूंगा कि हां मुझे काठमांडू में 5100 रुपये दिए जा रहे हैं। रुपयों के साथ ही कुछ कपड़े वपडे भी दिए जाने का वादा किया गया है। अब प्राइमरी स्कूल के बच्चों से भी पूछा जाए कि अगर 4100 रुपये खर्च करने पर 5100 रुपये हासिल होते हैं तो 4100 रुपये खर्च करने चाहिए या नहीं ? बच्चे का जवाब होगा कि बिल्कुल खर्च करना चाहिए। अब भाई लोग भले ही ये कहें कि सम्मान की पैसे से तुलना नहीं करनी चाहिए, लेकिन सच यही है कि पूरा मामला ही पैसे का है। वरना सम्मान के लिए ब्लागरों को लुभाने के लिए नई स्कीम ना जारी की गई होती। जानते हैं अब नए सम्मान की जो सूची जारी की गई है, उसमें एक बदलाव देखा गया है। कहा जा रहा है कि तमाम कपड़े - वपड़े के साथ ही एक निश्चित धनराशि भी दी जाएगी। मुझे लगता है कि ये स्कीम इसलिए घोषित करनी पड़ी क्योंकि लोगों को पता चल गया कि भारतीय रुपये की कीमत नेपाल मे ज्यादा है। बहरहाम मुझे इस बात की खुशी है कि अब मेरे ब्लागर मित्रों को जो बेचारे पैसे जमा कर फंस गए हैं, उन्हें कुछ तो राहत मिलेगी ।
आप भी जानते हैं कि आयोजक आसानी से सही रास्ते पर आएंगे, इसकी तो किसी को उम्मीद नहीं है। लेकिन सामाजिक न्याय का यही तकाजा है कि एक ना एक दिन पाप का घड़ा भरता ही है। ऐसे में हम सब को भी इनके पाप के घड़े को भरने तक का इंतजार करना ही होगा। लेकिन मैं देख रहा हूं कि जिन लोगों का नाम सम्मान के लिए घोषित किया गया है, अब वो बेचारे जरूर सकते में हैं। सब एक बार सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि कहीं वो वाकई ठगे तो नहीं जा रहे हैं ? 4100 रुपये कोई छोटी रकम तो है नहीं, ऊपर से काठमांडू पहुंचने का किराया भाड़ा अलग ! अब ये भी एक दूसरे से बात कर पूछ रहे हैं कि "आखिर मुझे ही सम्मानित क्यों किया जा रहा है ? ये बात ब्लागर सोचने को मजबूर है, क्योंकि उन्हें भी लग रहा है कि हमने ऐसा कोई तीर भी नहीं मार लिया कि सम्मानित होने के लिए मेरा पहला हक बनता हो ? ऐसा नही है कि इस सम्मान से सब पीछा ही छुड़ा रहे हों, कुछ लोग इस सम्मान के चक्कर में जगह-जगह प्रशंसा में खूब कमेंट कर रहे हैं, जिससे आयोजको का ध्यान उन पर भी जाए। मैं ऐसे लोगों को बता दूं कि घबराने की जरूरत नहीं है, जल्दी ही आयोजक ऐलान कर सकते हैं कि सम्मान के लिए 4100 रुपये के साथ अपना नाम खुद सूची में शामिल कर लें। चलिए ये तो ऐसा मुद्दा है कि कभी खत्म ही नहीं होगा। इस पर तो लंबी बात चलती ही रहेगी, लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम अब जितने भी लोग सम्मानित होंगे, उन्हें कुछ कम ही सही लेकिन रकम तो मिलेगी ना। चलते चलते एक बात बताऊं, अब लखनऊ में यही तय नहीं हो पा रहा है कि ब्लागर को किस कटेगरी में सम्मानित किया जाए ? चूंकि इतने ज्यादा सम्मान है कि कटेगरी कम पड़ गई है। मित्रों ये बात आगे भी जारी रहेगी।
आप भी भाई .....
ReplyDeleteबुराई के खिलाफ छोटी सी पहल
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (04-08-2013) के दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ : चर्चा मंच 1327
में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार सर
Deletebahut rochak dhang se prastut ki gai aankh kholne valaa aalekh !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबढ़िया है ..आगे भी ये बात जारी रखिये..
ReplyDeleteशुक्रिया, बिल्कुल
Deleteसौ बातों की एक बात .....भारत देश में ऐसे ही निर्मल बाबा जैसे लोगों की चांदी नहीं होती,कुछ तो 'अनूठा' है ही यहाँ.
ReplyDeleteआवाज़ करने [उठाने ] से कुछ फर्क पड़ता ही है इसी सिद्धांत के चलते मुम्बई में लड़कियों ने छेड़े जाने पर सीटी बजाने का कार्यक्रम चलाया है.
सच कहा आपने..
Deleteमैं बुराई खत्म कर दूंगा, ऐसा मैं नहीं सोचता।
बस वहां तक संदेश जाना चाहिए कि लोग आपका
असली चेहरा जानते हैं।
बढ़िया ! वैसे सम्मान के लिए जिन नामों की घोषणा की गयी है उनको देखकर शक तो जरुर होता है !!
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं आपसे
Deleteमहेंद्र भाई, तीन साल पहले ये कविता लिखी थी-
ReplyDeleteसमारोह में किसी का सम्मान हो गया है,
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
सिर पर पत्थर उठाता है बबुआ,
क्या बचपन सच में जवान हो गया है...
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
बूढ़े बाप का ख़ून जलाता है बेटा,
क्या सही में लायक संतान हो गया है...
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
नारी है आज इस देश की राष्ट्रपति,
क्या चंपा का घर में बंद अपमान हो गया है...
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
आज़मगढ़ में पंचर लगाता है जमाल,
क्या किस्मत का शाहरुख़ ख़ान हो गया है....
क्या आदमी वाकई इनसान हो गया है...
समारोह में किसी का सम्मान हो गया है...
जय हिंद...
इन्हीं सवालों का जवाब तलाशना है।
Deleteसही कहते है पाप का घड़ा एक न एक दिन जरुर फटता है
ReplyDeleteऔर फट भी रहा है जरुरत है सही बात हर तक पहुंचे .......
बिल्कुल, एक दिन जरूर भरेगा और फटेगा भी..
Deleteआभार
अनोखे और रोचक अंदाज़ में सामने ला रहे हैं आप तथ्यों/तर्कों को ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deletechaliye kahin to sahi kam hua .nice presentation
ReplyDeletechaliye kuchh to sahi kam hua .ummeed to bani ki kuchh sahi ho sakta hai .
ReplyDeleteजी ये बात तो है।
Deleteआभार
पता नहीं क्या हो रहा है।
ReplyDeleteमुझे तो कुछ नहीं पता।
पर लिखने का तरीका जरूर पसंद आया।
आपको सब कुछ जानने में वक्त लगेगा
Deleteआभार
बढ़िया विश्लेषण-
ReplyDeleteसुन्दर शैली-
आभार
शुक्रिया भाई जी
Deleteक्रिकेट सच में एक धर्म बन गया है
ReplyDeleteऔर धर्म की आड़ में पैसा कमाने का जरिया
पर गनीमत है कि ये धर्म पुरोहित कम से कम न्यायपालिका से भय तो खाते हैं
बाकी यदि कहीं कुछ गलत हो रहा हो तो आवाज तो उठनी ही चाहिए
हां ये बात तो है,
Deleteपर गलत को गलत कहने की हिम्मत भी होनी चाहिए।
आभार
अब हम क्या कहें हाँ इतना जरुर कहेंगें की सावधान ... महेन्द्र जी राजनीति से जुड़े हर मामले की बखिया उधेड़ने वाले हैं इसलिए जो भी कदम उठाये जरा सोचकर :) आपकी मेहनत काबिले तारीफ है और आपकी पोस्ट से हमें राजनीती में होने वाली हर हलचल की खबर मिलती रहती है शुक्रिया |
ReplyDeleteबस आप सब का स्नेह और शुभकामनाएं मेरे साथ रहें
Deleteइसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए।
आभार
कोई दे रहा है ,कोई ले रहा है -
ReplyDeleteक्या कर लेगा काज़ी !
जी बात तो आपकी बिल्कुल सही है...
Deleteपर ब्लाग परिवार की गंदगी के बारे में एक बार सजग तो करना ही होगा।
इसके बाद तो लोगों की मर्जी...
आभार..
ब्लोगिंग में तरह तरह के "लेखक" हैं और उन सबको अपना कार्य, पूरे विश्व में प्रकाशित करने का अधिकार मुफ्त में मिला हुआ है, वे रोज १ से ३ पोस्ट प्रकाशित कर अपने आपको साहित्यकार समझने लगे हैं ! अगर सतीश सक्सेना साहित्यकार बन गए हैं तो आपको क्या तकलीफ है , हाँ आपके द्वारा ऐसे कार्यों का विरोध किया गया, यह सनद जरूर रहेगी ..
ReplyDeleteमैं तो रविन्द्र प्रभात को बधाई देता हूँ कि उन्होंने बहुत सारे महान ब्लोगरों को साहित्यकार बना दिया ! ये अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार जीवन भर उन्हें नहीं भुला पायेंगे !
हां ये बात तो सही है ....
Deleteमैं कभी किसी अच्छे कार्य का विरोधी ना हूं, ना रहूंगा। मैं गलत परंपरा का विरोधी हूं। कुछ लोग जिस तरह की गंदगी फैला रहे हैं, उस पर मैं अपनी बात कह कर ये स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि उन्हें मेरा समर्थन नहीं है।
वरना तो जिस तरह से पिछली बार इन सब ने मुझे गाली दी थी, कोई दूसरा आदमी गलत बात का विरोध करने की हिम्मत ही नहीं कर सकता था।
बढ़िया विश्लेषण-
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteमैंने बहुत पहले कहा था कि यह एक सफेदपोश चोरों का अड्डा है जो भोलेभाले(बेवकूफ) लोगों से मोटी कमाई कर ऐश उड़ा रहा है और क्रिकेट का एक अकेला ठेकेदार बनकर देश के उन ज्यादातर होनहार युवाओं का गला घोंट रहा है जो बहुत ही प्रतिभाशाली खिलाडी है लेकिन उनका कसूर सिर्फ इतना है की सुदूर इलाकों में रहते है, आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है ! अब इन महाशय को देख लीजिये , इनके पास एक बड़ा व्यवसाय है, किन्तु लोकलाज सब त्यागकर किस कदर क्रिकेट से चिपके रहना चाहते है , आखिर क्यों ? कुछ तो मलाई है उधर !
ReplyDeleteमैंने बहुत पहले कहा था कि यह एक सफेदपोश चोरों का अड्डा है जो भोलेभाले(बेवकूफ) लोगों से मोटी कमाई कर ऐश उड़ा रहा है ........
Deleteबिल्कुल सहमत हूं। खेल को गोरखधंधा बनाकर रख दिया है।
लाजबाव प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteशुक्रिया भाई
Deleteहम भूल गए हैं रख के कहीं …
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2013/08/blog-post_10.html