ठीक बात है, आज यानि 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री पर सीधा हमला नहीं होना चाहिए, ऐसा तो मेरा भी मानना है। मैं भी इसी मत का हूं कि आजादी के जश्न में सभी को एक साथ शरीक होना चाहिए वो भी मन में किसी के प्रति बिना कटुता का भाव रखे हुए। आजाद भारत में आज पहली बार किसी प्रधानमंत्री को इस तरह जलील होना पड़ा। एक मुख्यमंत्री 15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री पर इस कदर हमलावर होगा, ये तो हमने और आपने कभी सोचा ही नहीं होगा। इन सब बातों के बावजूद मैं मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हूं। मेरा मानना है कि मोदी ने तो सिर्फ जनता की भावनाओं को अपनी आवाज दी है। सच तो यही है कि आम जनता के मन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए अब वाकई कोई सम्मान नहीं रह गया है। यही वजह है कि जब गुजरात के कच्छ से नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पर हमला बोला तो तालियां सिर्फ कालेज के मैदान में ही नहीं बजी, बल्कि मोदी को घर बैठे टीवी पर सुन रहे लोग भी ताली बजाने से नहीं चूके। वैसे सच बताऊं, सरकार का जो हाल मनमोहन सिंह ने बना दिया है, इससे तो वो इसी दुत्कार के पात्र हैं।
इस बहस को शुरू करने से पहले आडवाणी की बात दो लाइन मे कर लूं, वरना आगे भूल जाऊंगा। सच बताइये क्या अब ऐसा नहीं लगता कि आडवाणी प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने के बाद कुछ असहज हो गए हैं। वो शानदार एक्जिट ना मिलने से काफी परेशान हैं। पार्टी में "बड़का बाबू" तो कहलाना चाहते हैं, लेकिन उनका काम ऐसा नहीं है, जिससे लोग उन्हें सम्मान से बड़का बाबू कह कह बुलाएं। हम सब जानते हैं कि इस जंग का ऐलान तो मोदी ने कल ही यानि एक दिन पहले कर दिया था। उन्होंने साफ कर दिया था कि लालन कालेज की आवाज लाल किले तक पहुंचेगी। अगर आडवाणी को लग रहा था कि मोदी गलत कर रहे हैं, तो उन्होंने कल ही क्यों नहीं समझाया ? जब मोदी ने दो दो हाथ कर लिया, तो घर में झंडा फहरा कर भाषण देने लगे। चलिए दो चार बार और ऐसे ही बक-बक करते रहे तो जो दो चार लोग दुआ सलाम कर रहे हैं, वो भी बंद हो जाएगा। आइये हम आप लाल किले पर चलें।
देश को इंतजार था कि कम से कम लालकिले पर तो मनमोहन सिंह सही मायने में प्रधानमंत्री नजर आएंगे। यहां से जब भाषण होगा तो लगेगा कि देश का प्रधानमंत्री बोल रहा है। लेकिन मनमोहन सिंह ने लालकिले से भी देश को निराश किया। एक बार भी नहीं लगा कि लाल किले से देश का एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री बोल रहा है। ऐसा लगा कि पंजाब का कोई थका हारा, मरा गिरा सा ब्लाक स्तर का कांग्रेस नेता भाषण पढ़ रहा है। इतना ही नहीं जो कागज वो पढ़ रहा है, शायद उसका अर्थ उसे भी नहीं पता है। आज देश में सबसे ज्यादा दो बातों की चर्चा है, पहला मंहगाई और दूसरा भ्रष्टाचार। मीडिया में इन दोनों विषयों पर लगातार चर्चा हो रही है। अगर प्रधानमंत्री के भाषण में इन दोनों विषयों की चर्चा तक ना हो तो भला देश के प्रधानमंत्री को कौन कहेगा कि ये जिम्मेदार प्रधानमंत्री हैं। फिर अपने प्रधानमंत्री के बाँडी लंग्वेज से तो लगता है कि शायद वो लालकिले से बोलने के लिए तैयार ही नहीं थे, लेकिन उन पर भाषण देने का काफी दबाव था, इसलिए वो बस खूंटी पर टंगी सदरी डाल कर भाषण पढ़ने आ गए। चेहरे पर भी कोई खुशी नहीं, लग रहा था कि प्रधानमंत्री किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होकर आटो रिक्शा से लाल किला पहुंचे हैं।
मैं तो कहता हूं कि प्रधानमंत्री भले ही ज्यादा कुछ ना कहते, लेकिन राष्ट्रपति के भाषण का जिक्र करते हुए, पाकिस्तान की ओर इशारा कर इतना ही कह देते कि वो हमारे धैर्य की परीक्षा ना ले। एक कड़ा संदेश देते, जिससे देश की जनता को कम से कम इतना तो भरोसा होता कि देश सुरक्षित हाथों में है। लेकिन प्रधानमंत्री ने तो वही घिसी पिटी दो लाइनें दुहरा दीं जो कई साल से कहते आ रहे हैं। इससे लगता है कि पाकिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री और सरकार कितनी लापरवाह है। हैरानी इस बात पर भी हुई कि उन्होंने पूरे भाषण के दौरान चीन का जिक्र तक नहीं किया। अब ऐसे प्रधानमंत्री को अगर नरेन्द्र मोदी ने उठक - बैठक करा भी दी, तो इतना हाय तौबा क्यों मचा है भाई ? 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री को कटघरे में नहीं खड़ा किया जाएगा, ऐसा कोई नियम थोड़े है। ये तो महज एक परंपरा है। लेकिन जब देश का प्रधानमंत्री देश के बारे में ना सोचे, सिर्फ कुर्सी पर चिपके रहने के लिए कुर्सी की मर्यादा के साथ समझौता कर ले, ऐसे प्रधानमंत्री पर सिर्फ एक मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि हर सूबे का मुख्यमंत्री हमला बोले वो भी कम है।
बात नरेन्द्र मोदी की होती है तो कुछ पत्रकार 2002 याद करने लगते हैं, मैं इन तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों से कहता हूं कि उन्हें अगर 2002 याद है, तो वो 1984 क्यों भूल जाते हैं। मैं कहता हूं कि 1984 दंगे में शामिल लोग भी उतने ही बड़े गुनाहगार हैं जितने 2002 के। खैर ये बात अब बहुत पुरानी हो चुकी है और देश यहां से बहुत आगे निकल गया है। लेकिन कुछ नेता, पत्रकार और तथाकथित समाजसेवी देश को बीती बातों को भूलने ही नहीं देना चाहते। चलिए मैं मोदी की बातों पर आता हूं। कहा जा रहा है कि मोदी ने गलत परंपरा कायम की है। 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री पर सीधा हमला किया है, ये नैतिक नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा मानना है कि चोट गरम लोहे पर ही की जाए तभी असर होता है। कम से कम आज रात प्रधानमंत्री जब सोने जाएंगें तो एक बार सोचेंगे जरूर कि 67 सालों में कितने प्रधानमंत्री रहे हैं, कितनों ने यहां झंडा फहराया है, पर किसी को ऐसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा, आखिर उन्हें ही क्यों ये सब सुनना पड़ रहा है। शायद कल से कुछ बदलाव देखने को मिले।
फिर नरेन्द्र मोदी ने कोई कडुवी या अभद्र भाषा इस्तेमाल नहीं किया, अगर उन्होंने अपने भाषण में प्रधानमंत्री का संबोधन किया भी तो उन्हें "प्रधानमंत्री जी" कह कर संबोधित किया। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है। लोकतंत्र में हर आदमी को अपने नेता से सवाल पूछने का हक है। अगर मोदी ने प्रधानमंत्री से पूछ लिया कि भाषण में सिर्फ एक परिवार की बात क्यों की ? उत्तराखंड की मदद सभी राज्यों ने की, फिर सिर्फ केंद्र की ही बात क्यों की ? पाकिस्तान को कड़ा जवाब क्यों नहीं दिया ? भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री क्यों चुप रहे ? अगर मोदी ने गुजरात की तुलना दिल्ली से करने की चुनौती दी तो इसमें गलत क्या है ? आपने अगर अच्छा काम किया है, तो चुनौती का सामना कीजिए। मै देखता हूं कि कांग्रेस के नेता मोदी की बातों पर चुप्पी साध लेते हैं और मोदी पर हमला करने लगते हैं। अब ये तो सच है कि मोदी अच्छे वक्ता हैं और बात कहने का उनका अंदाज भी अलग है। उन्होंने राष्ट्रपति की बात को आगे बढ़ाते हुए कहाकि राष्ट्रपति कह रहे हैं कि हमारी सहन शक्ति की सीमा होनी चाहिए। अब ये सीमा शासक ही तो तय करेंगे। चीन आकर हमारी सीमाओं पर अड़ंगा डाले, इटली के सैनिक केरल के मछुआरों की हत्या कर दें, पाकिस्तान के सैनिक हमारे जवानों के सिर काट लें, तब हमें चिंता होती है कि सहनशीलता की सीमा कौन सी है। वो सीमा परिभाषित होनी चाहिए, राष्ट्रपति जी आपकी चिंता से मैं भी अपना सुर मिलाता हूं। मैं फिर पूछना चाहता हूं कि इसमें मोदी ने आखिर क्या गलत कहा ?
भ्रष्टाचार पर मोदी के तेवर से वाकई कुछ लोगों को दिक्कत हो सकती है। इसकी वजह ये है कि मोदी पिछले दरवाजे सोनिया गांधी के घर मे घुस गए। उन्होंने कहा कि जैसे पहले टीवी सीरियल आते थे, वैसे अब भ्रष्टाचार के सीरियल आने लगे हैं। मसलन भ्रष्टाचार पर पहले भाई - भतीजावाद के सीरियल का दौरा था, फिर नया सीरियल आया मामा - भांजे का और अब इससे आगे बढ़ते हुए सास - बहू और दामाद का सीरियल शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कितना भी गंभीर आरोप लगे कांग्रेस के नेता उसे बर्दास्त कर लेंगे, लेकिन सोनिया गांधी के परिवार पर कोई उंगली उठाए, ये बात उन्हें नागवार लगती है। इसका विरोध कर सोनिया की नजर में नंबर बढ़ाने के लिए एक साथ कई नेता मैदान में उतर आते हैं। ऐसा ही आज भी हुआ, इशारों इशारों में रावर्ट वाड्रा पर हमला करने के मामले में बौखलाए नेता कैमरे के सामने आए और मोदी के खिलाफ जहर उगलने लगे।
हाहाहा इस पूरे मामले में एक चैनल का भी जिक्र करना जरूरी है। वो मनमोहन और मोदी के भाषण को प्रतियोगिता मान कर उस पर चार पांच लोगों को न्यूज रूम में बैठाकर नंबर मांगने लगे। चैनल की 28 - 30 किलो की एंकर जिसकी विषय पर जानकारी सिर्फ "माशाल्लाह" दिखी, उसकी रुचि किसी की बात सुनने में नहीं, बल्कि नंबर हासिल करने में ज्यादा दिखी। एक पत्रकार भाई जो इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्होंने मोदी को 4.5 नंबर दिए इसके पीछे जो तर्क दिया, इसे सुनकर लगा कि वो चैनल के न्यूज रूम में बैठकर नंबर नहीं दे रहे हैं, बल्कि कांग्रेस दफ्तर में बैठकर नंबर दे रहे हैं। हां वैसे तो आज चैनल अपनी लाइन बदलने के मूड में भी दिखे और वो चाहते थे कि 15 अगस्त के दिन मोदी के हमलावर तेवर को लेकर उनके कपड़े उतारे जाएं, पर डर सताने लगा कि कहीं औद्योगिक घराने अपने विज्ञापन वापस ना ले लें, लिहाजा वो ये हिम्मत नहीं जुटा सके। पर मैं एक सवाल पूछता हूं चैनलों के संपादक से, मोदी पर उंगली उठाने के पहले अपने गिरेबां क्यों नहीं झांकते ? देश में 28 राज्य हैं, हर जगह झंडा फहराया गया, हर जगह मुख्यमंत्री का भाषण हुआ, फिर चैनल ने केवल गुजरात के मुख्यमंत्री का ही भाषण क्यों दिखाया ? दोस्त साफ - साफ कहो ना मोदी टीआरपी मैटेरियल हैं। इसलिए उन्हें दिखाना चैनल की मजबूरी है।
चलते - चलते
एनबीआई यानि न्यूज ब्राडकास्टिंग आँफ इंडिया जो टीआरपी का आंकलन करती है। उसके अनुसार जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषण दे रहे थे तो उस वक्त देश में 73.27 लाख टीवी खुले हुए थे। लेकिन जब मोदी का भाषण शुरू हुआ तो 5.60 करोड़ टीवी देश में खुले हुए थे। ऐसे में आज की जंग तो मोदी ने जीत ली।
इस बहस को शुरू करने से पहले आडवाणी की बात दो लाइन मे कर लूं, वरना आगे भूल जाऊंगा। सच बताइये क्या अब ऐसा नहीं लगता कि आडवाणी प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने के बाद कुछ असहज हो गए हैं। वो शानदार एक्जिट ना मिलने से काफी परेशान हैं। पार्टी में "बड़का बाबू" तो कहलाना चाहते हैं, लेकिन उनका काम ऐसा नहीं है, जिससे लोग उन्हें सम्मान से बड़का बाबू कह कह बुलाएं। हम सब जानते हैं कि इस जंग का ऐलान तो मोदी ने कल ही यानि एक दिन पहले कर दिया था। उन्होंने साफ कर दिया था कि लालन कालेज की आवाज लाल किले तक पहुंचेगी। अगर आडवाणी को लग रहा था कि मोदी गलत कर रहे हैं, तो उन्होंने कल ही क्यों नहीं समझाया ? जब मोदी ने दो दो हाथ कर लिया, तो घर में झंडा फहरा कर भाषण देने लगे। चलिए दो चार बार और ऐसे ही बक-बक करते रहे तो जो दो चार लोग दुआ सलाम कर रहे हैं, वो भी बंद हो जाएगा। आइये हम आप लाल किले पर चलें।
देश को इंतजार था कि कम से कम लालकिले पर तो मनमोहन सिंह सही मायने में प्रधानमंत्री नजर आएंगे। यहां से जब भाषण होगा तो लगेगा कि देश का प्रधानमंत्री बोल रहा है। लेकिन मनमोहन सिंह ने लालकिले से भी देश को निराश किया। एक बार भी नहीं लगा कि लाल किले से देश का एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री बोल रहा है। ऐसा लगा कि पंजाब का कोई थका हारा, मरा गिरा सा ब्लाक स्तर का कांग्रेस नेता भाषण पढ़ रहा है। इतना ही नहीं जो कागज वो पढ़ रहा है, शायद उसका अर्थ उसे भी नहीं पता है। आज देश में सबसे ज्यादा दो बातों की चर्चा है, पहला मंहगाई और दूसरा भ्रष्टाचार। मीडिया में इन दोनों विषयों पर लगातार चर्चा हो रही है। अगर प्रधानमंत्री के भाषण में इन दोनों विषयों की चर्चा तक ना हो तो भला देश के प्रधानमंत्री को कौन कहेगा कि ये जिम्मेदार प्रधानमंत्री हैं। फिर अपने प्रधानमंत्री के बाँडी लंग्वेज से तो लगता है कि शायद वो लालकिले से बोलने के लिए तैयार ही नहीं थे, लेकिन उन पर भाषण देने का काफी दबाव था, इसलिए वो बस खूंटी पर टंगी सदरी डाल कर भाषण पढ़ने आ गए। चेहरे पर भी कोई खुशी नहीं, लग रहा था कि प्रधानमंत्री किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होकर आटो रिक्शा से लाल किला पहुंचे हैं।
मैं तो कहता हूं कि प्रधानमंत्री भले ही ज्यादा कुछ ना कहते, लेकिन राष्ट्रपति के भाषण का जिक्र करते हुए, पाकिस्तान की ओर इशारा कर इतना ही कह देते कि वो हमारे धैर्य की परीक्षा ना ले। एक कड़ा संदेश देते, जिससे देश की जनता को कम से कम इतना तो भरोसा होता कि देश सुरक्षित हाथों में है। लेकिन प्रधानमंत्री ने तो वही घिसी पिटी दो लाइनें दुहरा दीं जो कई साल से कहते आ रहे हैं। इससे लगता है कि पाकिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री और सरकार कितनी लापरवाह है। हैरानी इस बात पर भी हुई कि उन्होंने पूरे भाषण के दौरान चीन का जिक्र तक नहीं किया। अब ऐसे प्रधानमंत्री को अगर नरेन्द्र मोदी ने उठक - बैठक करा भी दी, तो इतना हाय तौबा क्यों मचा है भाई ? 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री को कटघरे में नहीं खड़ा किया जाएगा, ऐसा कोई नियम थोड़े है। ये तो महज एक परंपरा है। लेकिन जब देश का प्रधानमंत्री देश के बारे में ना सोचे, सिर्फ कुर्सी पर चिपके रहने के लिए कुर्सी की मर्यादा के साथ समझौता कर ले, ऐसे प्रधानमंत्री पर सिर्फ एक मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि हर सूबे का मुख्यमंत्री हमला बोले वो भी कम है।
बात नरेन्द्र मोदी की होती है तो कुछ पत्रकार 2002 याद करने लगते हैं, मैं इन तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों से कहता हूं कि उन्हें अगर 2002 याद है, तो वो 1984 क्यों भूल जाते हैं। मैं कहता हूं कि 1984 दंगे में शामिल लोग भी उतने ही बड़े गुनाहगार हैं जितने 2002 के। खैर ये बात अब बहुत पुरानी हो चुकी है और देश यहां से बहुत आगे निकल गया है। लेकिन कुछ नेता, पत्रकार और तथाकथित समाजसेवी देश को बीती बातों को भूलने ही नहीं देना चाहते। चलिए मैं मोदी की बातों पर आता हूं। कहा जा रहा है कि मोदी ने गलत परंपरा कायम की है। 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री पर सीधा हमला किया है, ये नैतिक नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा मानना है कि चोट गरम लोहे पर ही की जाए तभी असर होता है। कम से कम आज रात प्रधानमंत्री जब सोने जाएंगें तो एक बार सोचेंगे जरूर कि 67 सालों में कितने प्रधानमंत्री रहे हैं, कितनों ने यहां झंडा फहराया है, पर किसी को ऐसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा, आखिर उन्हें ही क्यों ये सब सुनना पड़ रहा है। शायद कल से कुछ बदलाव देखने को मिले।
फिर नरेन्द्र मोदी ने कोई कडुवी या अभद्र भाषा इस्तेमाल नहीं किया, अगर उन्होंने अपने भाषण में प्रधानमंत्री का संबोधन किया भी तो उन्हें "प्रधानमंत्री जी" कह कर संबोधित किया। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है। लोकतंत्र में हर आदमी को अपने नेता से सवाल पूछने का हक है। अगर मोदी ने प्रधानमंत्री से पूछ लिया कि भाषण में सिर्फ एक परिवार की बात क्यों की ? उत्तराखंड की मदद सभी राज्यों ने की, फिर सिर्फ केंद्र की ही बात क्यों की ? पाकिस्तान को कड़ा जवाब क्यों नहीं दिया ? भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री क्यों चुप रहे ? अगर मोदी ने गुजरात की तुलना दिल्ली से करने की चुनौती दी तो इसमें गलत क्या है ? आपने अगर अच्छा काम किया है, तो चुनौती का सामना कीजिए। मै देखता हूं कि कांग्रेस के नेता मोदी की बातों पर चुप्पी साध लेते हैं और मोदी पर हमला करने लगते हैं। अब ये तो सच है कि मोदी अच्छे वक्ता हैं और बात कहने का उनका अंदाज भी अलग है। उन्होंने राष्ट्रपति की बात को आगे बढ़ाते हुए कहाकि राष्ट्रपति कह रहे हैं कि हमारी सहन शक्ति की सीमा होनी चाहिए। अब ये सीमा शासक ही तो तय करेंगे। चीन आकर हमारी सीमाओं पर अड़ंगा डाले, इटली के सैनिक केरल के मछुआरों की हत्या कर दें, पाकिस्तान के सैनिक हमारे जवानों के सिर काट लें, तब हमें चिंता होती है कि सहनशीलता की सीमा कौन सी है। वो सीमा परिभाषित होनी चाहिए, राष्ट्रपति जी आपकी चिंता से मैं भी अपना सुर मिलाता हूं। मैं फिर पूछना चाहता हूं कि इसमें मोदी ने आखिर क्या गलत कहा ?
भ्रष्टाचार पर मोदी के तेवर से वाकई कुछ लोगों को दिक्कत हो सकती है। इसकी वजह ये है कि मोदी पिछले दरवाजे सोनिया गांधी के घर मे घुस गए। उन्होंने कहा कि जैसे पहले टीवी सीरियल आते थे, वैसे अब भ्रष्टाचार के सीरियल आने लगे हैं। मसलन भ्रष्टाचार पर पहले भाई - भतीजावाद के सीरियल का दौरा था, फिर नया सीरियल आया मामा - भांजे का और अब इससे आगे बढ़ते हुए सास - बहू और दामाद का सीरियल शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कितना भी गंभीर आरोप लगे कांग्रेस के नेता उसे बर्दास्त कर लेंगे, लेकिन सोनिया गांधी के परिवार पर कोई उंगली उठाए, ये बात उन्हें नागवार लगती है। इसका विरोध कर सोनिया की नजर में नंबर बढ़ाने के लिए एक साथ कई नेता मैदान में उतर आते हैं। ऐसा ही आज भी हुआ, इशारों इशारों में रावर्ट वाड्रा पर हमला करने के मामले में बौखलाए नेता कैमरे के सामने आए और मोदी के खिलाफ जहर उगलने लगे।
हाहाहा इस पूरे मामले में एक चैनल का भी जिक्र करना जरूरी है। वो मनमोहन और मोदी के भाषण को प्रतियोगिता मान कर उस पर चार पांच लोगों को न्यूज रूम में बैठाकर नंबर मांगने लगे। चैनल की 28 - 30 किलो की एंकर जिसकी विषय पर जानकारी सिर्फ "माशाल्लाह" दिखी, उसकी रुचि किसी की बात सुनने में नहीं, बल्कि नंबर हासिल करने में ज्यादा दिखी। एक पत्रकार भाई जो इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्होंने मोदी को 4.5 नंबर दिए इसके पीछे जो तर्क दिया, इसे सुनकर लगा कि वो चैनल के न्यूज रूम में बैठकर नंबर नहीं दे रहे हैं, बल्कि कांग्रेस दफ्तर में बैठकर नंबर दे रहे हैं। हां वैसे तो आज चैनल अपनी लाइन बदलने के मूड में भी दिखे और वो चाहते थे कि 15 अगस्त के दिन मोदी के हमलावर तेवर को लेकर उनके कपड़े उतारे जाएं, पर डर सताने लगा कि कहीं औद्योगिक घराने अपने विज्ञापन वापस ना ले लें, लिहाजा वो ये हिम्मत नहीं जुटा सके। पर मैं एक सवाल पूछता हूं चैनलों के संपादक से, मोदी पर उंगली उठाने के पहले अपने गिरेबां क्यों नहीं झांकते ? देश में 28 राज्य हैं, हर जगह झंडा फहराया गया, हर जगह मुख्यमंत्री का भाषण हुआ, फिर चैनल ने केवल गुजरात के मुख्यमंत्री का ही भाषण क्यों दिखाया ? दोस्त साफ - साफ कहो ना मोदी टीआरपी मैटेरियल हैं। इसलिए उन्हें दिखाना चैनल की मजबूरी है।
चलते - चलते
एनबीआई यानि न्यूज ब्राडकास्टिंग आँफ इंडिया जो टीआरपी का आंकलन करती है। उसके अनुसार जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषण दे रहे थे तो उस वक्त देश में 73.27 लाख टीवी खुले हुए थे। लेकिन जब मोदी का भाषण शुरू हुआ तो 5.60 करोड़ टीवी देश में खुले हुए थे। ऐसे में आज की जंग तो मोदी ने जीत ली।
आपने बहुत सही प्रश्न उठाया है कि देश में 28 राज्य हैं, हर जगह झंडा फहराया गया, हर जगह मुख्यमंत्री का भाषण हुआ, फिर चैनल ने केवल गुजरात के मुख्यमंत्री का ही भाषण क्यों दिखाया ?
ReplyDelete.....
:)..
बहुत ही अच्छा लेख है.
हमें मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का भाषण बहुत पसंद आया.
ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें अच्छा स्वास्थ्य और लम्बी आयु मिले.
जी, बहुत बहुत आभार.
Deleteआपकी समीक्षा सारे सवालो के जवाब दे देती है.
ReplyDeleteशुक्रिया भाई हरीश जी
Deletemahendra srivastava ji,
ReplyDeleteapni bhavanavo ko aapne bahut sundar dhang se prastut kiya hai,aap badhai ke patra hai,meri aapko hardik shubh kamanaye.......
बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत बहुत आभार
ReplyDeleteमन की भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति ,,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
आभार
Deleteएक विचारणीय आलेख, अब भले ही इसे स्पर्धा कहना ठीक न हो, कुछ लोग इसे प्रोटोकोल के खिलाफ कहें किन्तु यह तो नामते ही होंगे कि मोदी ने सारे सवाल तो बाजिब उठाये, किसी को तो इन सूरदासों, और धृतराष्ट्रों को कडवी सच्चाई बतानी ही होगी !
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं
Deleteशुक्रिया
आपके आलेख से शतप्रतिशत सहमत हूँ !
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसहमत हूँ...... ये सारे प्रश्न आम जनता के मन भी हैं ...
ReplyDeleteमेरे अपने मन की कहूँ तो बरसों बाद एक ऐसे नेता सामने हैं जिन्हें सुनने का मन करता है ....
बिल्कुल सच कहा आपने,
Deleteमेरा भी यही मानना है..
सच ही तो पूछा गया
ReplyDeleteइतने सारे प्रश्न, पर जवाब किसी का नहीं है आज सरकार के पास
हमारे सहनशीलता की सीमा क्या है !
बहुत अफ़सोस होता है सरकार की नीतियों और रवैये को देखकर
सही कहा..
Deleteशुक्रिया
हम तो बस इतना ही जानते हैं कि ये वक्त मोदी जी का ही है ...जब जब जिसने भी उनकी बुराई की ...मोदी जी अपने आप सफलता में एक स्टेप ओर आगे बढ़ गए
ReplyDeleteहा, सही बात है..
Deleteमैं अब क्या कहूँ
ReplyDeleteशब्द वही
भाव वही
और..
ताव भी वही
आगे जो होगा
एकदम सही...
सादर
शुक्रिया,
Deleteबहुत बहुत आभार
बिल्कुल सही कहा..
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार
Deleteप्रभावी अभिव्यक्ति...बधाई...
ReplyDeleteआभार
Deleteटीआरपी का सवाल है। सटीक सवाल
ReplyDeleteशुक्रिया संध्या जी
Deleteमोदी जी ने जो प्रश्न उठाये गलत नहीं हैं....
ReplyDeleteहम जनता भी उनसे वही जवाब चाहते हैं ....
जी बहुत बहुत आभार
Deleteमहेंद्र भाई जी ,नमस्कार !
ReplyDeleteसमीक्षा का लुत्फ़ आ गया ...बात सही हो ...जनता की समझ में आती हो ..तो लुत्फ़ आना कोई बुरी बात नही ...ऐसा लगता है ,जनता जो सोच रही है ,,उसे आपने लिख दिया और वो आप का कर्म है जो आपने बखूबी पूरा किया ...बाकि देखते हैं आगे की जनता अब अपनी आँखे खोल के आगे बढ़ती है या आँख मूंद गटर में गिरना पसंद करती है शुभकामनायें हम सब भारतवासियों को !
(आप के स्नेह का शुक्रिया )
आभार सर,
Deleteसहमत ये लड़ाई मोदी जीत गए .. पर असल लड़ाई जीतें तो बात बने ... ये सच है की लोमड़ियों से शेर पार पा सकता है ... पर अगर पूरा जंगल लोमड़ियों के बहकावे में न आए तब ...
ReplyDeleteसच कहा आपने ..
Delete