बिहार के सहरसा के पास एक ट्रेन हादसे में 37 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनका करीब के अस्पताल में इलाज चल रहा है। ये एक घटना है, कहीं भी हो सकती है। इस पर मुझे ज्यादा बात नहीं करनी है। लेकिन मुझे हैरानी मुख्यमंत्री के उस बयान पर हो रहा है, जिसमें वो राज्य सरकार की गलती मानने को तैयार ही नहीं हैं। सच कहूं तो ये एक गंभीर मामला है, क्योंकि जब सूबे का मुख्यमंत्री ऐसे टुच्चेपने का जवाब देगा तो भविष्य में भी उसके अफसर इसी तरह लापरवाह बने रहेंगे। मै समझ में नहीं पा रहा हूं कि इतना गैर-जिम्मेदाराना बयान एक ऐसा मुख्यमंत्री दे रहा है, जो कभी रेलमंत्री भी रह चुका है। इन्हें तो रेल मंत्रालय और राज्य सरकार दोनों की जिम्मेदारी और कार्यप्रणाली की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे रेल मंत्रालय की गलती मानते हैं, फिर तो वो ट्रेन को फूंक देने और ट्रेन चालक की पीट पीट कर हत्या कर देने को भी जायज ही ठहराएंगे। क्योंकि जो गलत है, उसे सजा तो मिलनी ही चाहिए, और बिहार की जनता ने उसे सजा दे दिया। मैं समझता हूं कि अपनी खोखली तारीफों से अब नीतीश कुमार ना सिर्फ हवाबाज हो गए हैं, बल्कि मैं तो कहूंगा कि बद्जुबान भी हो गए हैं।
एक मिनट में नियम और कानून की बात कर ली जाए। नियम तो ये है कि अगर आप रेल पटरी क्रास भी करते हैं तो ये अपराध है। इसमें आपके खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। इतना ही नहीं अगर पटरी पर कोई जानवर आ जाता है, और उसकी वजह से दुर्घटना होती है, जान माल की हानि होती है तो भी जानवर के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। आइये अब इस हादसे की बात कर लेते हैं। बताते हैं कि खगड़िया और धमौरा रेलवे स्टेशन के पास ये एक ऐसा इलाका है, जहां सड़क नहीं है। ट्रेन से उतर कर यात्रियों को रेल की पटरी के सहारे ही काफी दूरी तय करनी पड़ती है। अगर ये सच है तो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करना ही होगा, भला ये कैसे संभव है कि स्टेशन की पहुंच में सड़क ही ना हो। दुर्घटना के बाद अपनी सफाई में मुख्यमंत्री ने खुद भी कहाकि ये एक ऐसा इलाका है, जहां सड़क नहीं है। इसलिए राहत दल को पहुंचने में समय लगा। दुर्घटना के कई घंटे बाद तक घायल रेल पटरी पर ही तड़पते रहे, ना डाक्टर पहुंचे और ना बिगड़ती कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए पुलिसकर्मी ही पहुंच पाए।
आपको पता है कि इसी रेलवे स्टेशन के पास एक कात्यायनी देवी का मंदिर है। बताया गया कि यहां हर साल सावन के महीने में काफी भीड़ होती है, खासतौर पर अंतिम सोमवार को। अब रेल मंत्रालय अपने 86 हजार किलोमीटर रेल पटरी पर के अगल-बगल कौन सा मंदिर है और यहां कब-कब मेला लगता है, ये हिसाब लगाता रहेगा। मुख्यमंत्री की बात से तो यही लगता है कि ये हिसाब राज्य सरकार को नहीं बल्कि रेलमंत्रालय को रखना चाहिए। कमाल है मुख्यमंत्री जी, आपकी समझ और सोच तो राहुल गांधी से भी घटिया होती जा रही है। मैं नीतीश कुमार से पूछना चाहता हूं कि क्या आपके स्थानीय प्रशासन को ये जानकारी थी, सोमवार के दिन माता कात्यायनी देवी के मंदिर में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आएंगे ? अगर जानकारी थी तो मंदिर और आसपास सुरक्षा के क्या प्रबंध किए गए थे ? एसडीएम और तहसीलदार स्तर के किस अधिकारी की यहां तैनाती थी ? कितने पुलिसकर्मियों की यहां ड्यूटी लगाई गई थी ? क्या सहरसा के जिलाधिकारी ने संभावित भीड़ के मद्देनजर मुख्य सचिव के अलावा रेल अफसरों से ट्रेनों के संचालन को लेकर कोई पत्र लिखा था ? क्या राज्य सरकार और रेलमंत्रालय के बीच ट्रेनों की रफ्तार कम किए जाने को लेकर कोई मीटिंग या पत्राचार हुआ ? अब ये सब नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री जी आपको तो मुंह छिपाकर घर में बैठे रहना चाहिए था, कैसे कैमरे के सामने कुतर्क करने आ गए?
एक और कुतर्क किया जा रहा है। राज्य सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि पहले जब यहां मीटर गेज की लाइन थी, तब यहां "कासन" लगा हुआ था। अब ब्राडगेज होने के बाद वो कासन क्यों हटा लिया गया ? सच कहूं जब नीतीश कुमार ऐसा बकवास कुतर्क करते हैं, तब मैं सोचता हूं कि आखिर इन्होंने रेल मंत्रालय कैसे चलाया होगा ? इन्हें तो अफसर छोड़िए ग्रुप डी के कर्मचारी मूर्ख बनाते रहे होंगे। बात बहुत लंबी हो जाएगी, लेकिन नीतीश जी इतना जान लीजिए कि "कासन" कोई स्थाई प्रबंध नहीं होता है। कासन कई वजहों से लगाए जाते हैं, कभी रेल पटरी की मरम्मत हो रही हो, स्थानीय जरूरतों के हिसाब से भी कई बार लगाए जाते हैं। कासन होता भी कई तरह का है, कुछ कासन में स्पीड कम कर दी जाती है, कुछ में टोकेन एक्सचेंज करना होता है, कुछ डेड कासन होते है, जहां ट्रेन को पूरी तरह रोक कर, फिर चलाना होता है। लेकिन इसकी समीक्षा होती रहती है और कासन लगना और हटना एक सामान्य प्रक्रिया है।
एक हास्यास्पद तर्क और दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि स्टेशन मास्टर क्या कर रहा था, उसे देखना चाहिए कि रेल पटरी पर लोग जमा हैं तो ट्रेन की गति धीमी करा दे। अब मूर्खों को कौन समझाए ? जब बताया जा रहा है कि वहां लोग रेल पटरी पर चलने के आदि हैं, वहां कोई रास्ता ही नहीं है। आप सब जानते हैं कि छोटे स्टेशनों पर एनाउंसमेंट का कोई सिस्टम होता नहीं है, लेकिन सिगनल देखकर लोग खुद ही रेल की पटरी से छोड़कर अलग चलते हैं। ट्रेन को आता देख लोग पटरी से दूर हो जाते हैं। अच्छा ऐसा भी नहीं है राज्यरानी एक्सप्रेस के पहले इस पटरी से कोई ट्रेन नहीं निकली। इस पटरी पर लगातार ट्रेन दौड़ लगा रही थीं, फिर एक एक्सप्रेस ट्रेन को अचानक कैसे रोका जा सकता है ? अच्छा स्थानीय ग्रामीणों को ट्रेनों के संचालन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, उन्हें लगता है कि ट्रेन को चालक और स्टेशन मास्टर चलाते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री जी आपको पता है ना कि ट्रेनों का संचालन कैसे होता है। इन सभी ट्रेनों का संचालन मंडल मुख्यालय के कंट्रोल रूम से होता है। बाकी सब उसके आदेशों का पालन करते रहते हैं। इसके अलावा जब यहां सड़क ही नहीं है तो मुख्यमंत्री जी आप ये कहना चाहते हैं कि यहां तैनात स्टेशन मास्टर पूरे समय पटरी देखता रहे कि कब कौन आ रहा है और कौन जा रहा है, जिससे लगातार कंट्रोल रूम को बताता रहे।
नीतीश कुमार जी आप तो बिहार मे कानून व्यवस्था का बहुत बखान करते हैं। कहते हैं कि अब बिहार मे कानून का राज है। कानून का राज होने के बाद आपके प्रदेश की हालत ये है कि एक दुर्घटना के कई घंटे बाद तक आपकी पुलिस का कोई अता पता नहीं होता। अधिकारी राहत के काम में लगने के बजाए आपको गुमराह करते रहते हैं। वरना ये कैसे संभव है कि दुर्घटना के तीन घंटे बाद उत्तेजित भीड़ स्टेशन पर खड़ी दो ट्रेनों को आग के हवाले कर दे। आपके कानून के राज में उस ट्रेन चालक की पीट पीट कर हत्या कर दी जाती है, जिसकी कोई गलती नहीं है। ट्रेन चालक सिगनल देख कर ट्रेन चलाता है, अगर सिगनल ग्रीन है, तो वो भला क्यों ट्रेन रोकेगा। फिर भी आपके प्रदेश मे उसकी हत्या हो गई। मुख्यमंत्री जी आपने तो पूरी जिम्मेदारी शातिराना अंदाज में रेलवे पर सौंप दी और खुद दूर खड़े हो गए। आप ने ट्रेन चालक की हत्या पर शोक संवेदना जाहिर करने से भी परहेज किया। इस वीभत्स घटना के बाद भी अगर आप कहते हैं कि बिहार मे कानून का राज है, तो मैं ऐसे कानून के राज पर थूकता हूं।
बहरहाल मुख्यमंत्री जी मेरा मानना है कि राजनीति के भूत का जो पागलपन आप पर सवार है, उससे आप दूर होने की कोशिश कीजिए। होना तो ये चाहिए था कि जैसे ही आपको दुर्घटना की खबर मिली, आपको सारे काम छोड़कर खुद वहां पहुंचना चाहिए था, इससे वहां राहत के काम में भी तेजी आती। लेकिन इतिहास गवाह है कि जब भी बिहार के लोग मुश्किल में होते हैं, आप लोगों के दुख दर्द मे शामिल नहीं होते हैं। मिड डे मील के तहत जहरीला खाना खाने से जब तमाम बच्चे दम तोड़ रहे थे, उस समय भी आप सियासत कर रहे थे। इस घटना को भी आप राजनीति के चश्मे से देख रहे थे। आपने वहां जाना तक ठीक नहीं समझा और आज तमाम श्रद्धालु जब ट्रेन की चपेट में आ गए तो भी आप लोगों के दुख दर्द मे शामिल होने के बजाए पटना में बैठकर सियासत करते रहे। सच कहूं तो आप बेनकाब हो चुके हैं, इसलिए बिहार की जनता से माफी मांगिए और कुर्सी तो आप छोड़ने वाले नहीं, फिर भी हो सके तो आत्ममंथन जरूर कीजिए, जिससे फिर ऐसी घटना हो तो आप कुछ करें या ना करें, लेकिन बिहार की जनता का भरोसा हासिल करने की तो कोशिश जरूर कीजिए। आज की घटना और आपके व्यवहार से ये तो साफ हो गया है कि आपके लिए कुर्सी से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
एक मिनट में नियम और कानून की बात कर ली जाए। नियम तो ये है कि अगर आप रेल पटरी क्रास भी करते हैं तो ये अपराध है। इसमें आपके खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। इतना ही नहीं अगर पटरी पर कोई जानवर आ जाता है, और उसकी वजह से दुर्घटना होती है, जान माल की हानि होती है तो भी जानवर के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। आइये अब इस हादसे की बात कर लेते हैं। बताते हैं कि खगड़िया और धमौरा रेलवे स्टेशन के पास ये एक ऐसा इलाका है, जहां सड़क नहीं है। ट्रेन से उतर कर यात्रियों को रेल की पटरी के सहारे ही काफी दूरी तय करनी पड़ती है। अगर ये सच है तो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करना ही होगा, भला ये कैसे संभव है कि स्टेशन की पहुंच में सड़क ही ना हो। दुर्घटना के बाद अपनी सफाई में मुख्यमंत्री ने खुद भी कहाकि ये एक ऐसा इलाका है, जहां सड़क नहीं है। इसलिए राहत दल को पहुंचने में समय लगा। दुर्घटना के कई घंटे बाद तक घायल रेल पटरी पर ही तड़पते रहे, ना डाक्टर पहुंचे और ना बिगड़ती कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए पुलिसकर्मी ही पहुंच पाए।
आपको पता है कि इसी रेलवे स्टेशन के पास एक कात्यायनी देवी का मंदिर है। बताया गया कि यहां हर साल सावन के महीने में काफी भीड़ होती है, खासतौर पर अंतिम सोमवार को। अब रेल मंत्रालय अपने 86 हजार किलोमीटर रेल पटरी पर के अगल-बगल कौन सा मंदिर है और यहां कब-कब मेला लगता है, ये हिसाब लगाता रहेगा। मुख्यमंत्री की बात से तो यही लगता है कि ये हिसाब राज्य सरकार को नहीं बल्कि रेलमंत्रालय को रखना चाहिए। कमाल है मुख्यमंत्री जी, आपकी समझ और सोच तो राहुल गांधी से भी घटिया होती जा रही है। मैं नीतीश कुमार से पूछना चाहता हूं कि क्या आपके स्थानीय प्रशासन को ये जानकारी थी, सोमवार के दिन माता कात्यायनी देवी के मंदिर में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आएंगे ? अगर जानकारी थी तो मंदिर और आसपास सुरक्षा के क्या प्रबंध किए गए थे ? एसडीएम और तहसीलदार स्तर के किस अधिकारी की यहां तैनाती थी ? कितने पुलिसकर्मियों की यहां ड्यूटी लगाई गई थी ? क्या सहरसा के जिलाधिकारी ने संभावित भीड़ के मद्देनजर मुख्य सचिव के अलावा रेल अफसरों से ट्रेनों के संचालन को लेकर कोई पत्र लिखा था ? क्या राज्य सरकार और रेलमंत्रालय के बीच ट्रेनों की रफ्तार कम किए जाने को लेकर कोई मीटिंग या पत्राचार हुआ ? अब ये सब नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री जी आपको तो मुंह छिपाकर घर में बैठे रहना चाहिए था, कैसे कैमरे के सामने कुतर्क करने आ गए?
एक और कुतर्क किया जा रहा है। राज्य सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि पहले जब यहां मीटर गेज की लाइन थी, तब यहां "कासन" लगा हुआ था। अब ब्राडगेज होने के बाद वो कासन क्यों हटा लिया गया ? सच कहूं जब नीतीश कुमार ऐसा बकवास कुतर्क करते हैं, तब मैं सोचता हूं कि आखिर इन्होंने रेल मंत्रालय कैसे चलाया होगा ? इन्हें तो अफसर छोड़िए ग्रुप डी के कर्मचारी मूर्ख बनाते रहे होंगे। बात बहुत लंबी हो जाएगी, लेकिन नीतीश जी इतना जान लीजिए कि "कासन" कोई स्थाई प्रबंध नहीं होता है। कासन कई वजहों से लगाए जाते हैं, कभी रेल पटरी की मरम्मत हो रही हो, स्थानीय जरूरतों के हिसाब से भी कई बार लगाए जाते हैं। कासन होता भी कई तरह का है, कुछ कासन में स्पीड कम कर दी जाती है, कुछ में टोकेन एक्सचेंज करना होता है, कुछ डेड कासन होते है, जहां ट्रेन को पूरी तरह रोक कर, फिर चलाना होता है। लेकिन इसकी समीक्षा होती रहती है और कासन लगना और हटना एक सामान्य प्रक्रिया है।
एक हास्यास्पद तर्क और दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि स्टेशन मास्टर क्या कर रहा था, उसे देखना चाहिए कि रेल पटरी पर लोग जमा हैं तो ट्रेन की गति धीमी करा दे। अब मूर्खों को कौन समझाए ? जब बताया जा रहा है कि वहां लोग रेल पटरी पर चलने के आदि हैं, वहां कोई रास्ता ही नहीं है। आप सब जानते हैं कि छोटे स्टेशनों पर एनाउंसमेंट का कोई सिस्टम होता नहीं है, लेकिन सिगनल देखकर लोग खुद ही रेल की पटरी से छोड़कर अलग चलते हैं। ट्रेन को आता देख लोग पटरी से दूर हो जाते हैं। अच्छा ऐसा भी नहीं है राज्यरानी एक्सप्रेस के पहले इस पटरी से कोई ट्रेन नहीं निकली। इस पटरी पर लगातार ट्रेन दौड़ लगा रही थीं, फिर एक एक्सप्रेस ट्रेन को अचानक कैसे रोका जा सकता है ? अच्छा स्थानीय ग्रामीणों को ट्रेनों के संचालन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, उन्हें लगता है कि ट्रेन को चालक और स्टेशन मास्टर चलाते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री जी आपको पता है ना कि ट्रेनों का संचालन कैसे होता है। इन सभी ट्रेनों का संचालन मंडल मुख्यालय के कंट्रोल रूम से होता है। बाकी सब उसके आदेशों का पालन करते रहते हैं। इसके अलावा जब यहां सड़क ही नहीं है तो मुख्यमंत्री जी आप ये कहना चाहते हैं कि यहां तैनात स्टेशन मास्टर पूरे समय पटरी देखता रहे कि कब कौन आ रहा है और कौन जा रहा है, जिससे लगातार कंट्रोल रूम को बताता रहे।
नीतीश कुमार जी आप तो बिहार मे कानून व्यवस्था का बहुत बखान करते हैं। कहते हैं कि अब बिहार मे कानून का राज है। कानून का राज होने के बाद आपके प्रदेश की हालत ये है कि एक दुर्घटना के कई घंटे बाद तक आपकी पुलिस का कोई अता पता नहीं होता। अधिकारी राहत के काम में लगने के बजाए आपको गुमराह करते रहते हैं। वरना ये कैसे संभव है कि दुर्घटना के तीन घंटे बाद उत्तेजित भीड़ स्टेशन पर खड़ी दो ट्रेनों को आग के हवाले कर दे। आपके कानून के राज में उस ट्रेन चालक की पीट पीट कर हत्या कर दी जाती है, जिसकी कोई गलती नहीं है। ट्रेन चालक सिगनल देख कर ट्रेन चलाता है, अगर सिगनल ग्रीन है, तो वो भला क्यों ट्रेन रोकेगा। फिर भी आपके प्रदेश मे उसकी हत्या हो गई। मुख्यमंत्री जी आपने तो पूरी जिम्मेदारी शातिराना अंदाज में रेलवे पर सौंप दी और खुद दूर खड़े हो गए। आप ने ट्रेन चालक की हत्या पर शोक संवेदना जाहिर करने से भी परहेज किया। इस वीभत्स घटना के बाद भी अगर आप कहते हैं कि बिहार मे कानून का राज है, तो मैं ऐसे कानून के राज पर थूकता हूं।
बहरहाल मुख्यमंत्री जी मेरा मानना है कि राजनीति के भूत का जो पागलपन आप पर सवार है, उससे आप दूर होने की कोशिश कीजिए। होना तो ये चाहिए था कि जैसे ही आपको दुर्घटना की खबर मिली, आपको सारे काम छोड़कर खुद वहां पहुंचना चाहिए था, इससे वहां राहत के काम में भी तेजी आती। लेकिन इतिहास गवाह है कि जब भी बिहार के लोग मुश्किल में होते हैं, आप लोगों के दुख दर्द मे शामिल नहीं होते हैं। मिड डे मील के तहत जहरीला खाना खाने से जब तमाम बच्चे दम तोड़ रहे थे, उस समय भी आप सियासत कर रहे थे। इस घटना को भी आप राजनीति के चश्मे से देख रहे थे। आपने वहां जाना तक ठीक नहीं समझा और आज तमाम श्रद्धालु जब ट्रेन की चपेट में आ गए तो भी आप लोगों के दुख दर्द मे शामिल होने के बजाए पटना में बैठकर सियासत करते रहे। सच कहूं तो आप बेनकाब हो चुके हैं, इसलिए बिहार की जनता से माफी मांगिए और कुर्सी तो आप छोड़ने वाले नहीं, फिर भी हो सके तो आत्ममंथन जरूर कीजिए, जिससे फिर ऐसी घटना हो तो आप कुछ करें या ना करें, लेकिन बिहार की जनता का भरोसा हासिल करने की तो कोशिश जरूर कीजिए। आज की घटना और आपके व्यवहार से ये तो साफ हो गया है कि आपके लिए कुर्सी से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {मंगलवार 20/08/2013} को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह
hindiblogsamuh.blogspot.com
पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत बहुत आभार
Deleteभाई बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज मंगलवार (20-08-2013) को राखी मंगल कामना: चर्चा मंच 1343 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत ही दुखद...ईश्वर हादसे के शिकार लोगो के परिजनों को दुख सहने की शक्ति दें|
ReplyDeleteहादसे होते हैं और प्रशासन लाख रुपयों का मुआवजा देकर...नहीं घोषणा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं...क्या जान की कीमत पैसों से तोली जा सकती है?
जी, बिल्कुल सहमत हूं आपसे
Deleteआभार
बहुत ही दुखद, ऐसे मौंके पर कहना नहीं चाहिए था किन्तु यह भी सर्वविदित सच है कि जब राजा अभिमानी हो जाए तो कुदरत उसके गुरूर को ठंडा करने के लिए जो चौतरफा हथकंडे अपनाती है उसका खमियाजा भी जनता को ही भुगतना पड़ता है!
ReplyDeleteसही कहा आपने
Deleteआभार
होते हरदम हादसे, हरदम हाहाकार |
ReplyDeleteभूखे खाके नहाके, जल थल नभ में मार |
जल थल नभ में मार, सैकड़ों हरदिन मरते |
मस्त रहे सरकार, सियासतदान अकड़ते |
आतंकी चुपचाप, देखते पब्लिक रोते |
रोकें क्रिया-कलाप, हादसे खुद ही होते ||
बिल्कुल सही कहा आपने
Deleteआभार
मामला यदि दूसरे पक्ष का होता तो अबतक न जाने क्या हो गया होता और क्या क्या घोषणायें हो गयी होतीं. यहां तो हर चीज में नाम के आगे और पीछे देखा जाता है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने,
Deleteसहमत हूं
महेन्द्र भाई ये झूठ ही इन सेकुलर वीरों का सच है जो मोदी को पानी पी पीकर कोस रहे हैं।
ReplyDeleteगजब है सच को सच कहते नहीं हैं ,
हमारे हौसले पोल हुए हैं ,
हमारा कद सिमटके घट गया है ,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं ,
सियासत के कई चोले हुए हैं ,
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,
हवा में सनसनी घोले हुए हैं।
जी, बढिया
Deleteसहमत हूं आपकी बातों
आभार
सुशासन बाबू के सुशासन और बिहार मॉडल के परखच्चे उड़ते जा रहे हैं जिनको सुशासन बाबू समेटने में भी नाकाम हो रहे हैं !
ReplyDeleteहाहाहाहहा सुशासन बाबू
Deleteअब नौटंकी कर रहे हैं सुशासन बाबू
बिहार का ट्रेन हादसा बहुत ही दर्दनाक घटना हुआ... मुख्य मंत्री को पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए ...
ReplyDeleteसहमत हूं, लेकिन वो भीड़ का सामना नहीं कर पाते
Deleteमुझे तो लगता है सारा तंत्र ही संवेदनहीन हो गया है !
ReplyDeleteबढ़िया लेख हमेशा की तरह !
बहुत बहुत आभार
Deleteस्थानीय प्रशासन बहुत हद तक दोषी है, साथ ही हम रेलवे को भी कुछ हद तक जिम्मेवार मान सकते हैं
ReplyDeleteमुख्यमंत्री का बयान कहीं से तर्कपूर्ण नजर नहीं आता
सहमत हूं।
Deleteदुखद घटना है ... ओर ये भी सच है की राजनीति नहीं होनी चाहिए ... पर आज सब कुछ इसी राजनीति का पर्याय बन के रह गया है ...
ReplyDeleteजी, सही कहा आपने..
Deleteसहमत हूं
राजनीति से दूरी क्यों ? जनता से दूरी जरुरी है..
ReplyDeleteसही कहा ..
Deletedulmul rajneeti ka isase nikrusht udahran nahi milega ...sateek alekh...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteसड़क नहीं ...आने जाने के लिए रेल की पटरी के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है ...फिर तो ऐसे हादसे आगे भी होने का डर बना ही रहेगा ....केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनो की बराबर की गलती और ज़िम्मेदारी हैं ....जिसे इन्हें ही समझना होगा ||
ReplyDeleteसही बात
Deleteराज्य सरकार को ज़िम्मेदारी लेनी ही चाहिए । स्टेशन से सड़क ना जुड़ी हो, व्यस्था में खामियाँ हो तो जवाबदेह और हो भी कौन सकता है ?
ReplyDeleteबस अपना हाथ खींचो.....सब नकार जाओ......नैतिकता ? अजी किस शय का नाम है ! करोड़ों-अरबों में १००-२०० मर भी जाएँ तो क्या फ़र्क पड़ता है.....नेता जी व्यस्त हैं.....कुर्सी को संभाले रखना सर्वोपरि हो तो जान की कौन सोचे ?
बिल्कुल सहमत
Deleteआभार
नितीश जी का बयान कहीं से तर्कपूर्ण नहीं है,राज्य सरकार को ज़िम्मेदारी लेनी ही चाहिए । ,
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.