Friday 18 January 2013

ब्लाँग : क्या भूलूं क्या याद करुं !


  नहीं, सच में कई दिन से सोच रहा हूं कि आखिर पिछले साल मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जिसे याद रखूं और ऐसा क्या जिसे भूल जाऊं। वैसे लिखने के लिए मैं ये कह रहा हूं कि अच्छी बातें याद रखूंगा और बुरी बातें भूल जाऊंगा, लेकिन मैं कोई ईश्वर तो हूं नहीं कि सिर्फ अच्छी बातें सहेज कर रख लूं और बुरी बातें एकदम से भूल जाऊं। मैं भी आप सबके बीच का ही हूं ना, इसलिए मुझे कोई कनफ्यूजन नहीं है, मैं जानता हूं कि अच्छी बातें तो मुझे अभी याद नहीं हैं तो भला आगे क्या याद रहेंगी। लेकिन हां जिन बातों को भूल जाना चाहिए, वो बातें मुझे वाकई लंबे समय तक याद रहेंगी। ये मानव स्वभाव है, इसमें हमारा आपका कोई दोष नहीं है। अंदर की बात तो ये है कि इस लेख को मैं नए साल के पहले हफ्ते में ही लिखना चाहता था, लेकिन फिर सोचा क्यों ब्लागर्स और ब्लाग परिवार का जायका खराब करूं। कुछ दिन रुक जाता हूं, इस बीच अगर मैं कुछ बातें गुस्से में लिखना चाहता हूं तो उस पर भी नियंत्रण हो जाएगा, क्योंकि गुस्सा तो कुछ दिन बाद ठंडा पड़ ही  जाता है ना।

एक सवाल मेरे जेहन में हमेशा रहता है और मुझे कुरेदता रहता है। वो ये कि भाई श्रीवास्तव जी आप ब्लाग क्यों लिखते हो ?  गिने चुने मित्रों की तारीफ करती हुई टिप्पणी के लिए ? या विचारों से सहमत ना होने वाले ब्लागर्स की गाली सुनने के लिए ? ईमानदारी से बताऊं, जब अपना ही मन मुझसे ये सवाल करता है तो मेरे पास वाकई इसका ऐसा जवाब नहीं होता जिससे मैं संतुष्ट हो सकूं। वैसे भी  मीडिया से जुड़े होने के कारण इतना वक्त नहीं मिलता है कि मैं यहां पर बहुत सक्रिय भूमिका निभा सकूं, लेकिन कई बार लगता है कि वाकई यहां जो कुछ होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है। इसकी वजह और कुछ नहीं बस आपस में तालमेल का अभाव और बिखराव ही मुख्य कारण है। अच्छा किसी से अगर ब्लाग पर चर्चा करें तो उसे लगता है कि वाह जी वाह ! बताइये दो दिन से ब्लाग लिखने लगे और आए हैं हमें ज्ञान देने। स्वाभाविक है ऐसे में हाथ पीछे खींच लेना ही बुद्धिमानी है।

दिल्ली में सियासी गलियारे में फिलहाल मेरी ठीक ठाक पकड़ और पहुंच है। देखता हूं कि नेताओं में सोशल मीडिया की हनक को देखकर उनमें एक भय बना हुआ है। इस भय की एक वजह ये भी है कि कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी के विवादित वीडियो की जानकारी इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया सभी को थी, लेकिन इसकी एक लाइन खबर कहीं नहीं दिखी। पर you tube और फेसबुक पर इतनी जगह ये डाल दी गई कि पार्टी को जवाब देना मुश्किल हो गया। हालत ये हुई कांग्रेस को खुद अपने इस प्रवक्ता को घर बैठाना पड़ गया। बहरहाल काफी दिनों के बाद अब उनकी एक बार फिर बहाली हो गई है। इस वीडियो के बाद से इस माध्यम को नेता और सरकार दोनों ही बहुत गंभीरता से लेते हैं। लेकिन इसके बाद हमें यानि ब्लागर्स को जितना गंभीर होना चाहिए था, उसमें मुझे कमी दिखाई देती है।

वैसे ब्लागर्स के कमियों पर हाथ डालना खतरनाक है। पिछले साल की इस वारदात को हम तो भूलना चाहते हैं, लेकिन वो कैसे भूल सकते हैं। लखनऊ में ब्लागर्स के एक समारोह के मामले में मैने अपनी बात की, तहजीब के शहर वालों ने मुझे निर्लज्ज और बेशर्म की उपाधि दे दी। हैरानी तब हुई जब एक ब्लागर्स ने लेख की सराहना करते हुए कहा कि अच्छा जूता चलाया है। मतलब कलम ताख पर रख कर हाथ में जूता ले लिया भाइयों ने। यहां सबको चौड़ी कुर्सी की चाहत तो है, पर कुर्सी पर बैठने का सलीका सीखने को लोग ना जाने क्यों तैयार नहीं हैं। जो लोग इस पूरे वाक्यात  में शामिल रहे, बाद में मैने उनके बारे में जानने की कोशिश की तो पता चला सभी लोग पुराने ब्लागर्स हैं और उन्होंने कुछ पढ़ाई लिखाई भी की हैं, लेकिन पढ़ाई लिखाई गया तेल लेने वो अपनी ओर उठने वाली उंगली का जवाब देने के बजाए उंगली तोड़ने में यकीन रखते हैं। खैर ब्लाग परिवार में कुछ लोग हैं जिनका मैं बहुत आदर करता हूं, उनके समझाने पर मैने विवाद को वहीं विराम दे दिया। बहरहाल बात पुरानी हो गई है, अब इस पर क्या चर्चा करूं।

कौन कहता है आसमां में छेद हो नहीं सकता 
एक पत्थर तबियत से उछालो तो यारों !

मेरा मानना है कि बस पहला पत्थर सही दिशा में उछालने की जरूरत है। मैने काफी पहले आद. रुपचंद्र शास्त्री जी से बात की और कुछ सुझाव दिए। वरिष्ठ ब्लागर हैं उनका ब्लाग परिवार में एक सम्मान है।  मैने कहा कि शास्त्री जी अब ब्लाग परिवार में नेतृत्व की कमी खटक रही है। यहां बहुत सारे लोग है, बहुत अच्छा लिख रहे हैं, बस जरूरत है लेखन को एक सकारात्मक दिशा देने की है। यहां मैं पहले स्पष्ट कर दूं कि हर आदमी की सोच अलग है, लेखों पर मतभेद होना भी स्वाभाविक है। हर विषय को देखने का हर आदमी का नजरिया अलग अलग हो सकता है। इसका मतलब ये कत्तई नहीं है कि आप उससे संवाद खत्म कर दें। मैने खुद देखा कि जब मैने अन्ना, अरविंद और बाबा रामदेव की असलियत के बारे में कुछ तथ्यों के साथ लेख लिखा। अपने कुछ साथियों ने मुझे कांग्रेसी बता दिया। लेकिन जब मैने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी और दिग्विजय के असलियत सामने रखीं तो कुछ भाइयों ने मुझे भाजपाई करार दिया। लेकिन मेरे ही ब्लाग पर उन्हें बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी के खिलाफ लिखा लेख नहीं दिखाई दिया। खैर ये बात मैं सिर्फ इसलिए कह रहा हूं कि लोग लेख पर कमेंट ना करके व्यक्ति पर आरोप लगाने लगते हैं।

लगता है मैं विषय से भटक रहा हूं, मैं बात कर रहा था शास्त्री जी की। उन्होंने स्वीकार किया कि मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं। उनका कहना था कि इस मामले में वाकई काम होना चाहिए। तय हुआ कि पहले हम अपनी बात कुछ और ब्लागर्स से शेयर करते हैं। इसके लिए पहले दिल्ली, लखनऊ, देहरादून और मुंबई में ब्लागर्स के साथ बैठकर पूरी रणनीति तैयार करेगे और उसके बाद इस पर आगे काम किया जाएगा। मैने इस बात की शुरुआत तो की, उसके बाद मैं खुद ही पहले दिल्ली में अन्ना और रामदेव के आंदोलन में काफी व्यस्त रहा। आंदोलन खत्म हुआ तो मुझे हिमाचल के चुनाव में जाना पड़ा और उसके बाद पूरे महीने भर के लिए गुजरात चला गया। इससे ये बात जहां की तहां ही रह गई।

लेकिन आज मैं जो सवाल खुद से पूछता हूं वही सवाल आपसे भी जानना चाहता हूं कि क्या वाकई आप जो कर रहे हैं, बस वही करने के लिए ब्लाग लिखने आए हैं। क्या आपको नहीं लगता कि इस सशक्त माध्यम का जब देश ही नहीं दुनिया लोहा मान रही है तो हम भी कुछ गंभीर हो और ब्लाग को देश की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश करें। सवाल उठता है कि हम कर क्या सकते हैं ? जवाब है हम बहुत कुछ कर सकते हैं। या ये कहें कि हम बहुत कुछ करते हैं, लेकिन उसमें थोड़ी सी खामी रह जाती है, जिससे ब्लाग की आवाज एक न होकर अलग अलग हो जाती है। आइये मैं बताता हूं कि हम क्या कर सकते हैं।

दिल्ली में गैंगरेप की घटना हुई । इससे पूरा देश में आक्रोश देखा गया। ये गुस्सा ब्लाग पर भी दिखा। सभी ने अपनी अपनी तरह से इस मामले में नाराजगी जताई और सरकार को जमकर कोसा भी। आपको  पता है कि कमीं कहां रह गई, कुछ नहीं बस ये कि आवाज एक नहीं हो पाई। इसमें होना ये चाहिए था कि जो ब्लागर तकनीकि रूप से काफी जानकार हैं वो इस घटना को लेकर एक सांकेतिक "लोगो" या स्केच तैयार करते। इस स्केच को हम ब्लागर परिवार का आफीसियल "लोगो" मान लिया जाता, इसमे ये अनिवार्य कर दिया जाता कि जो लोग भी लेख या कविता के माध्यम से इस घटना की निंदा कर रहे हैं, उन्हें अपने ब्लाग पर ये "लोगो" लगाना अनिवार्य है। जब एक ही "लोगो" चारो ओर दिखाई देने लगता तो आप इसके असर को आसानी से समझ सकते हैं। मैं आपको विश्वास के साथ कह सकता हूं कि सोशल नेटवर्किंग साइट के इसी "लोगो" को अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया भी इस्तेमाल करने को मजबूर हो जाती। फिर हमारी ताकत को नजरअंदाज करने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता था। मेरा कहने का मतलब सिर्फ यही है कि हम कर तो बहुत कुछ रहे हैं, लेकिन उसमें एकता और एकरूपता की कमी दिखाई दे रही है। 

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

मुझे पक्का भरोसा कि दुश्यंत कुमार की ये पंक्तियां हम सबको ना सिर्फ ताकत देगी, बल्कि एक रास्ता भी दिखाएगी कि हम कैसे न सिर्फ इस माध्यम को मजबूत बल्कि जिम्मेदार भी बनाएं ? मेरा सुझाव एग्रीगेटर मसलन चर्चामंच, ब्लाग4 वार्ता, ब्लाग बुलेटिन और भी कुछ हैं, उनके लिए भी है। मैं जानता हूं कि रोज इतने सारे लिंक्स को समेटना और उसे प्रस्तुत करना आसान काम नहीं है। लेकिन उसका वर्गीकरण कर दें, यानि विषय के हिसाब से लेख और कविताओं को जगह दें। सामाजिक, राजनीतिक, धर्म, यात्रा, विज्ञान, व्रत त्यौहार कुछ इस तरह करें। आप सबको पता है कि देश में तमाम जयंती, व्रत त्यौहार हैं। अब होता क्या है कि लोहणी आ गई, अब उसी पर पच्चीसों कहानी, कविता, लेख से मंच को सजा दिया जाता है। इससे दूसरे विषयों पर लोगों का ध्यान नहीं जा पाता है। मैं जानता हूं कि ये आसान नहीं है, लेकिन मुश्किल भी नहीं है।

बहरहाल बड़ी बड़ी बातें तो बहुत हो गई, लेकिन फिर  वही सवाल कि आखिर ब्लाग परिवार की अगुवाई करेगा कौन ? वैसे तो मुझे नहीं लगता है कि इसमें कोई विवाद होना चाहिए, जो लोग काफी समय से लिख रहे हैं और जिनका सभी आदर करते हैं वो आएं आगे। सबके साथ बैंठे और रास्ता निकालें। वैसे मैं ब्लाग में बहुत कम लोगों को जानता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि ये काम डा. रुपचंद्र शास्त्री, रश्मि प्रभा, शिवम मिश्रा, दिगंबर नासवा, डा. दराल, राज भाटिया, ललित शर्मा, रवीन्द्र प्रभात, वंदना गुप्ता, दिनेश गुप्ता रविकर, चंद्र भूषण मिश्र गाफिल, दीपक बाबा, सतीश सक्सेना, रश्मि रवीजा, इस्मत जैदी, कविता वर्मा, अल्पना वर्मा, राजेश कुमारी, अंजू चौधरी, जयकृष्ण तुषार, मनोज कुमार, संगीता स्वरूप गीत, अजित गुप्ता, संगीता पुरी, हरीश सिंह, डा. अनवर जमाल, डा. मोनिका शर्मा, डा. दिव्या श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, संध्या शर्मा, चला बिहारी ब्लागर बनने, राकेश कुमार, मिथिलेश,  संतोष सिंह, सलीम खान, अरुण देव, केवल राम और सदा जी काफी बेहतर तरीके से कर सकती हैं। ये तो मैने वो नाम लिखे हैं जो मुझे याद हैं, वैसे तो मैं बहुत सारे लोगों को पढता रहता हूं, मुझे पक्का भरोसा है कि ये सभी ब्लाग को नेतृत्व देने में सक्षम हैं। बस जरूरत इस बात की है कि ये एक कदम आगे तो बढ़ाएं। वरना तो एक लाइन याद आ रही है कि ..

तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना मैं खाली ।  

 

68 comments:

  1. behad jayj,gambhir aur sawalon pr uthte sawalon se judi behatareen prastuti. Aziz shaheb ki en panktion se aap ki is prastuti ka swagat hai ,"hame fursht nahi milti,vo bekam baithe hain,jamane ka chalan dekho,vo sina tan baithe hain,hamare hath khali hain,vo anjuli bhar kai baithe hain ,Mahendra ji aap ko sb yad hai,mgr blogger sab kuch bhool baithe hain.....,

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  2. गजब ||
    सटीक विश्लेषण-
    मैं आप के साथ हूँ-

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  3. आधा सच हमने लिख, आधा जाने लोग |
    ब्लॉगर बहुतेरे यहाँ, होय सही उपयोग |
    होय सही उपयोग, दिशा से दशा सुधारें |
    मिलें देश-हित बन्धु, अहम् को अपने मारें |
    सही शक्ति उपयोग, नहीं है कोई बाधा |
    करो सधी शुरुवात, सिद्ध हो जाए आधा ||

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  4. vaise to blog jagat me bahut se log bahut badiya kam kar rahe hai lekin ise ek manch par la kar ise apni takat banaya jaye is bat se mein sahmat hu.bahut badiya vichar hai aapke..abhar.

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    1. मैं भी मानता हूं और लोगों के लेखन की सराहना भी करता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि बिखराव की वजह के हमारी ताकत भी बिखरी हुई है। एकजुट करने की आवश्यकता है

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  5. वाह! महेन्द्र जी .वाह !
    बड़ा नेक ख्याल ,सुंदर विचार .कुछ अच्छा कर गुजरने की चाह! आप की लिस्ट में बड़े
    नामी -गरामी ब्लोगेर का समूह ....और मेरी तरफ से इस अच्छे नेक काम के लिए बहुत-बहुत दिल से शुभकामनायें! आप की इज़ाज़त से आप की पहली लाइन को पूरा करने की हिमाकत कर रहा हूँ ...वरना में क्या और मेरी ......क्या( चाहें तो पूरा कर लें)
    क्या भूलूं क्या याद करुं !
    किस-किस से फरियाद करूँ ......:-D

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    1. सर मैने तो महज एक सुझाव दिया है, जिन लोगों के नाम मुझे लिखने के दौरान जेहन में आए, मुझे लगता है कि अगर सच में प्रयास करेंगे तो यहां भी तस्वीर बदल सकती है।

      आपने विचारों का समर्थन किया, आपका बहुत बहुत आभार,

      रही बात मेरी लीस्ट की.... सर आप जानते हैं मैं क्या लीस्ट बना सकता हूं। सब लोग मिल कर ही इस काम को अंजाम दे सकते हैं।

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  6. अभिव्यक्ति कैसी भी हो, हर दिन केवल अभिव्यक्ति ही जीत रही है।

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  7. श्रीवास्तव जी, नमस्कार..

    बहुत दिनों बाद आज मैंने कुछ पोस्ट पढ़ी एक आध टीप की और तो और मैंने एक पोस्ट भी लिखी. हालाँकि 'निज लेखन' से मैं बचता हूँ, पर जब भावनाएं ह्रदय में उमड़ उठी हों और शब्दों पर ही जोर न रहा हो तो अभ्यास के लिए निज लेखन में भी कोई बुराई नहीं है.

    दूसरे आपने ब्लॉग परिवार पर नेतृत्व की बात की. ब्लॉग्गिंग को सोसिअल मीडिया के रूप में फेसबुक से ज्यादा तवाजो दी गयी है तो इसका श्रय ब्लॉग लेखक को जाता है तो कि लेख तो लिख देता है पर प्रिंट मीडिया और विसुअल इस पर ध्यान नहीं देता. ब्लॉग्गिंग भी तो इसी मीडिया का एक अंग है जब प्रिंट और विसुअल का कोई एक नेतृत्व नहीं है तो ब्लॉग्गिंग का कैसे हो ?

    दूसरे आपने बहुत ही सम्मानित ब्लोगरों में मेरा नाम लिखा मुझे बहुत ताजुब हो रहा है. बहुत ही ताजुब.

    मैं तो न ही एक अच्छा ब्लोगर हूँ, न ही 'कक्षा मोनिटर' ध्यान देन यहाँ मैंने अच्छा नहीं लगाया. बाकि ब्लॉग को 'परिवार' की परिधि से मुक्त कीजिए... यहाँ मेरे जैसे कई लोग आप जैसे पत्रकारों से एक अच्छे लेखन/पत्रकारिता की उम्मीद में हैं. जहाँ सम्पदाकगन/सेठ लोग कलम पर पहरा लगा कर बैठे रहते हैं - वहीँ ब्लोगिंग फ्री स्टाइल है..

    सर प्लीज़ डोंट माइंड..

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    1. दीपक जी आपको अपनी जानकारी दुरुस्त करनी होगी, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया मे बहुत मजबूत नेतृत्व है। यही वजह है कि आज तक मीडिया पर नियंत्रण करने की सरकार की सभी कोशिशें नाकाम रही हैं..

      मुझे पता है कि ऐसे विचार भी होंगे, इसलिए माइंड करने का कोई प्रश्न ही नहीं। आपके विचारों का स्वागत है।

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    2. दीपक जी की इस बात से सहमत कि ब्लॉग को परिवार के परिधि से मुक्त रखना चाहिए.

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  8. ओह बाप रे....

    , सलीम खान जैसे का नाम भी आपने लिया है

    लाहोल बिला कुव्वत.. :)

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    1. हो सकता है सलीम को जितना आप जानते हों, उतना मैं ना जानता हूं।
      वैसे आप ऐसा क्यों कह रहे हैं मैं हैरान हूं..

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  9. महेंद्र भाई,
    कृपया इस्मत जैसी को इस्मत ज़ैदी कर लें ...
    आभार !

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    1. ओह! जी मैने ठीक कर दिया है।
      आभार

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  10. ऐसे कदम ब्लॉग्गिंग के लिए सार्थक ही सिद्ध होंगें | इस तरह के विचार समय समय पर हर ब्लॉगर के मन आने चाहियें .... कुछ बेहतर करने हेतु

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  11. यह बात बिलकुल सही है कि सोशल मीडिया की ताकत से सियासी अनजान नहीं रही.
    हमें भी अब इस ताकत का सही इस्तमाल करना चाहिए.
    रेप केसेस में फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने के लिए अपनी तरह से हमने भी गिरिराज जी के साथ मिलकर आवाज़ उठायी है.प्रसिद्द कार्टूनिस्ट व् ब्लोगर काजल कुमार जी ने लोगो तैयार किया था जिसे मैंने भी अपने ब्लॉग पर लगाया हुआ है .
    अपनी तरह से मैं पूरी कोशिश करती हूँ कि इस मीडिया का उपयोग संतुलित और सार्थक तरीके से हो सके.
    मेरा एक अन्य ब्लॉग 'भारत दर्शन' व् साझा ब्लॉग 'क्रिएटिव मंच ' समाज में अपना यथा संभव सार्थक योगदान देने का एक प्रयास है .
    आप के लेख आधा नहीं पूरा सच होते हैं ..आगे भी सचों से रूबरू कराते रहीयेगा.आभार.

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  12. mujhe lagta hai aapke vichar bahut hi sahi hain.
    achchhi soch se achchha hi hoga
    rachana

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  13. aapke vichar bahut hi achchhe hain .sachchi soch se achchha hi hoga
    rachana

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  14. एक बात और..ब्लॉग जगत को एक करना टेढ़ी खीर है फिर भी जो प्रयास कर रहे हैं उनके लिए मेरी शुभकामनाएँ हैं.

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  15. महेंद्र जी ...आज कल फेसबुक का चलन धिक है,सब अपनी ताकत वही झोंक रहें है (मेरे समेत),इसी लिए ब्लॉग बिखरने की कगार पर है,पिछले दिन भाई ललित शर्मा जी की पोस्ट पर पढ़ने को मिला कि आज कल बहुत कम ब्लॉग लिखने की दिशा में सक्रिय हैं ....अब इस का क्या हल हो ये तो आने वाला समय ही तय करेगा ...पर आपकी इस बात से सहमत हूँ कि एक दिशा निर्धारित होनी जरुरी है

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    1. जी ये बात तो आपकी सही है..लेकिन ब्लाग की रक्षा करना भी हमारा आपका काम है..

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    2. ब्लॉग बिखरने का प्रश्न नहीं अंजू,जो चाहते हैं वे दिखेंगे ही

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  16. सार्थक पहल,,महेंद्र जी,
    आपके इस अभियान में मै आपके साथ हूँ,,,इसके लिए आपको अभी और मेहनत करनी होगीम,,,,,

    कारवाँ बन जाएगा चलते चले बस जाइए,,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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    1. अरे सर ! मेरा तो सिर्फ सुझाव है, अभियान नहीं..
      ये जिम्मेदारी तो आप जैसे बडे ब्लागर्स को निभानी पडेगी..

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  17. आपका प्रयास सफल हो यही शुभ कामना !

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    1. जी मेरा तो सिर्फ सुझाव है, प्रयास तो ब्लाग के वरिष्ठ को करना होगा..

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  18. हम कर तो बहुत कुछ रहे हैं, लेकिन उसमें एकता और एकरूपता की कमी दिखाई दे रही है
    बात सही है .. वैसे आपके लेखन से हमेशा सहमत ही रहती हूं ...

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  19. आपका क्षेत्र आपकी जागरूक सोच है और मैं भी मानती हूँ कि ब्लॉग को एक सशक्त आयाम,आधार मिलना ही चाहिए ......... आपके द्वारा अनुशंसित नामों में अपना नाम हौसला दे गया .
    ब्लॉग लिखना कुछ कमेंट्स लेने देने का माध्यम नहीं है, बल्कि गूगल से जुड़कर कई लोगों तक अपने विचारों को पहुँचाना है और एक बीज डालना है परिवर्तन का

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    1. रश्मि दी प्रणाम..
      मुझे लगता है कि इस दिशा में भी कुछ काम होना चाहिए, लेकिन ये काम आप लोग ही सही तरह से अंजाम दे सकती हैं। वजह आप सबका ब्लाग परिवार में अहम स्थान और सम्मान है।

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    2. जो भी हादसे हुए ......... उसमें मैं - जहाँ तक सम्भव होता है लोगों के आक्रोश को एकत्रित करके एक मंच एक स्वर बनाने का अथक प्रयास करती हूँ, कर रही हूँ

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  20. बहुत बढ़िया सुझाव है ...हिंदी ब्लॉग्गिंग को बढ़ावा देने के लिए यह कदम सार्थक होंगे ....इससे निश्चित ही एक नयी दिशा और उर्जा का संचरण होगा ..

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    1. जी बात तो सही है, पर कोई शुरु करने को तैयार भी तो हो...

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  21. बनाइये लोगो हम भी लगायेंगे अपने ब्लॉग पर ।

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    1. जी आभार..
      पर मैने तो अपने सीनियर से कहा है कि वो इस काम को अगर आगें बढ़ाएं तो अच्छा रहेगा, वैसे भी मैं उतना टैक्निकल जानकारी नहीं रखता हूं..

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  22. जहां एक ब्लॉगर मौजूद... आवाज़ देकर हमें तुम बुलाओ
     
    जहां दो बलॉगर मौजूद... ब्लॉगर मीट
     
    जहां तीन ब्लॉगर मौजूद... रौला-रप्पा
     
    जहां चार ब्लॉगर मौजूद... तेरी ये...तेरी वो...तेरा फलाना...तेरा ढिमकाना...
     
    जहां चार से ज़्यादा ब्लॉगर मौजूद... शांति...बीच-बीच में कराहने की आवाज़ें...एंबुलेस में सारे ढोए जा रहे हैं...

    जय हिंद...

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    1. ओह! ब्लागर को लेकर आपका अनुभव आंख खोलने वाला हैं...

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  23. सौ प्रतिशत सच ... जिसमें कुछ भी आधा नहीं,
    बेहद सार्थक एवं सटीक इस दिशा में प्रोत्‍साहित करता हुआ आपका यह आलेख ...
    आभार सहित

    सादर

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    1. शु्क्रिया...
      पर इस दिशा में पहल कैसे हो ...

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  24. वैसे तो मैं कम टिप्पणी करता हूँ | इस लेख पर सभी के विचार भी पढ़े | मगर ज्यादातर ने इस विषय को आगे बढ़ाने में कोई पहल नहीं की है | एक तल्ख़ बात कह रहा हूँ | आप भी पीछे हट रहे हैं | तकनीक की बात पर मैं आपके साथ हूँ | एक ऐसा समूह तैयार करें | जो इसमें साथ हैं जिन्होंने इस पोस्ट पर इस पक्ष में हाँ कहाँ है | उनसे संपर्क करें | आप एक पहल खुद से करें व दूसरों से पहल करने को कहें | कारवां तो तभी बन पायेगा, नहीं तो यूँ ही पन्नो पे नजर आयेगा |

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    1. आपने तल्ख बात बिल्कुल नहीं की है, मैने साफ कहा है कि मैं उतना समय नहीं दे सकता और मेरी बात सुनी भी नहीं जाएगी, ये भी मैं जानता हूं।
      इसलिए मैने ब्लाग के वरिष्ठ सम्मानीय लोगों से आग्रह किया है... ये बात तो लेख में मौजूद हैं, आपको कन्फ्यूजन क्यों है ?

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    2. मुझे कोई कन्फ्यूजन नहीं है | आपके मन में ये बात पनपी है तो मेरे ख्याल से को अमली जामा पहनाने के लिए पहल भी आपको करनी चाहिए | अकेले आपकी बात शायद न सुनी जाये लेकिन कारवां बनाने के लिए पहल करके तो देखें | अपने विचारों को मूर्तरूप देने के लिए समय निकलना ही होगा | यदि आप वास्तव में चाहते हैं तो समय निकालने का रास्ता अपने आप बनता चला जायेगा |

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    3. मुझे माफ कीजिए.... मैं नहीं कर सकता

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  25. माडरेशन का विकल्प आन करके आप भी तो अभिवयक्ति का हनन कर रहे हैं, व दूसरो को अभियक्ति में साथ देने की बात कर रहे हैं |

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    1. माडरेशन लगाने के लिए मजबूर हुआ, क्योंकि यहां लोग असभ्य और गाली गलौज की भाषा में कुछ भी टिप्पणी करते हैं।

      मेरा ब्लाग सभ्य और पढ़े लिखे लोगों में पढ़ा जाता है...

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    2. गूगल महाराज ने अब इतनी वयवस्था कर दी है कि आप एक बार किसी की टिप्पणी को स्पैम घोषित कर दो तो वो दोबारा से आपके ब्लॉग पर टिप्पणी तो कर पायेगा लेकिन उसकी वो टिप्पणी स्पैम में चली जाएगी | यहाँ मोडरेशन से मेरा मतलब है कि सभ्य भाषा में की गयी नकारात्मक टिप्पणी को भी मोडरेशन के नाम पर पब्लिश न करने के मानसिकता पर भेंट चढ़ा दिया जाता है | ऐसा अक्सर इस ब्लॉग जगत में हो रहा है |

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    3. मैं तकनीक का इतना जानकार नहीं हूं.. मुझे स्वीकार करने मे कोई गुरेज नहीं..

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  26. महेंद्र सर,,,
    लेख पढ़कर प्रभावित और प्रेरित हुआ ,,,,
    आपसे पूरी तरह सहमत हूँ ,,,,
    हमें ब्लोगिंग को समाज के सुधार और विकास के लिए एक सशक्त माध्यम बनाना चाहिए ....
    सादर .

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  27. आपसे पूरी तरह सहमत हूँ... गंभीर समस्या पर सामयिक सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...

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  28. महेन्द्र मेरा आना विलंब से हुआ। अब तक आपके द्वारा रखे गए विषय पर काफ़ी चर्चा हो चुकी है।

    3-4 वर्ष पूर्व ब्लॉगिंग में संगठन जैसे विषय पर गंभीर चर्चाएं हुई, बस जूतम पैजार की नौबत तक पहुंचने की कसर बाकी थी।

    यह एक ऐसा गाँव है जहाँ सारे ही बावन गज के हैं। ऐसी स्थिति में संगठन होना तो बहुत दूर की बात है। सिर्फ़ सहमति ही हो जाएं तो बड़ी बात है।

    इन वर्षों में मुझे यही समझ आया कि ब्लॉगिंग एक स्वतंत्र मंच है। जिस पर विभिन्न विचारधारा के लोग अभिव्यक्ति देते हैं। इसलिए स्वतंत्र रह कर ही ब्लॉगिंग करने में मजा है।

    साथ ही मैने यह भी देखा है यदि कोई राष्ट्रीय मसला या आम आदमी से जुड़ा कोई मुद्दा हो तो बिना किसी संगठन के ही ब्लॉग जगत स्वस्फ़ूर्त रुप से अपनी ठोस प्रतिक्रिया व्यक्त करने में पीछे नहीं रहता है।

    ब्लॉगर्स के अन्य ब्लागर्स से व्यक्तिगत संबंध और मित्रताएं भी हैं। जिससे उनका आत्मीय संबंध बना रहता है। संगठन अपने साथ मठाधीशी जैसी बुराईयाँ भी लेकर आता है। ब्लॉगिग का आनंद तो "एकला चलो" में ही दिखाई देता है।

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    1. ललित भाई,
      लगता है कि मैं अपनी बात को सही तरह से लोगों तक पहुंचा नहीं पाया। मैं जानता हूं कि यहां संगठन बनाना वाकई मुश्किल काम है। मैने तो सिर्फ ये कहा है कि राष्ट्रीय विषयों पर इस तरह बात रखी जानी चाहिए जिससे लगे कि ब्लागर्स भी एक ही दिशा में सोच रहे हैं और देश मे एक माहौल बने।
      इसी क्रम मे मैने हर विषय से संबंधित एक ही "लोगो" लेख और कविता में इस्तेमाल करने की बात की है। जिससे संदेश जाएगा कि ब्लाग जगत भी इस मुद्दे पर एकजुट है।
      यहां मैं ये बात बिल्कुल नहीं कह रहा है कि चुनाव हो जाए और अध्यक्ष महामंत्री बन जाएं.. ये सब यहां नहीं चलने वाला.. खैर आपके विचारों का स्वागत है।

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  29. गाँव हो,शहर हो,देश हो ............ सभी एकजुट नहीं होते। पर कौन होगा,यह अंदाजा होता है तो एक सिमित घेरे से शुरुआत होती है ......... विनम्रता सबसे अहम् मकसद हो तो बाधाएं भी साथ हो लेती हैं

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  30. आपके ब्लॉग पर पहली बार आई !! आपका प्रयास सही है !! उसके लिए शुभकामनाएं

    मैंने तो इस ब्लॉग जगत में अभी अभी उड़ान भरी है

    आपका आशीष चाहिए


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    Gift- Every Second of My life.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ब्लाग पर आने और अपने विचार रखने के लिए..

      बिल्कुल, क्यों नहीं.. ढेर सारी शुभकामनाएं.

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  31. सार्थक और सोचनीय मुद्दा |
    अगर हम किसी काम को कर रहे हैं लेकिन वो हमें किसी सार्थक दिशा में नहीं ले जा रहा तो बेकार है | ऐसा कार्य फिर एक स्वस्थ मनोरंजन का साधन तक नहीं बन सकेगा , आंदोलन तो दूर की बात | अगर आपने स्टेप अप ४ देखी होगी तो शायद आपको याद होगा कि किस तरह शहर में चलने वाले कुछ खुराफाती और आवारा तत्वों का 'मोब' एक रिवोल्यूशन में बदल जाता है |
    सत्यमेव जयते की टेग लाइन थी 'दिल पे लगेगी , तभी बात बनेगी', सोलह आना सच बात है|(बस एक बात और जोड़ना चाहूँगा कि कई बार ए.सी. कमरों में बैठकर लिखे गए ब्लॉग हकीकत से कोसों दूर होते हैं,//शायद//)
    इंटरनेट इस युग का सबसे बड़ा वरदान है , क्या आप इस वरदान का प्रयोग करना जानते हैं !!

    सादर

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।