मैं हमेशा से इसी मत का हूं कि चेहरा बदलने से चरित्र नहीं बदल सकता। हां अगर कोई चरित्र में बदलाव कर ले, तो चेहरा खुद बखुद बदला बदला सा लगता है। ताजा उदाहरण है उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी का। चुनाव के दौरान मैं यूपी में 50 से ज्यादा जिलों में गया, वहां लोग मायावती की सरकार से बुरी तरह नाराज थे और इससे छुटकारा चाहते थे। इसका विकल्प उन्हें समाजवादी पार्टी में दिखाई दे रहा था। लेकिन ये क्या.. पहले दूसरे चरण में समाजवादी पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया तो शहरी इलाकों में खौफ का माहौल बन गया। पूछने पर पता चला कि मायावती तो सरकारी पैसे की लूट में शामिल है, पर समाजवादी पार्टी के आने का मतलब गुंडों का सरकार में आना होगा और इस पार्टी की सरकार में तो रास्ते पर चलना मुश्किल हो जाएगा।
इसकी पहली झांकी तो चुनाव के नतीजे आने के बाद सूबे के कई जिलों में शुरू हुई मारा मारी से दिखाई दे गई। शोर शराबा हुआ तो समाजवादी पार्टी ने सफाई दी कि अभी हमारी सरकार नहीं है, शपथ ग्रहण के बाद ही हमारी सरकार होगी। बहरहाल समाजवादी पार्टी पर आज भी सबसे बडा यही आरोप है कि ये गुंडों की पार्टी है। शायद इस छवि को धोने के लिए ही मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश की ताजपोशी करने का फैसला किया। अखिलेश ने जब बाहुबलि नेता डी पी यादव को पार्टी में शामिल करने से इनकार कर दिया तो सच में एक बार ऐसा लगा कि अखिलेश के आगे किसी की नहीं चलेगी, फैसला लेने में अखिलेश का जवाब नहीं है। मीडिया ने अखिलेश के इस फैसले को हाथो हाथ लिया और अखिलेश का ग्राफ एकदम से ऊपर पहुंच गया।
अखिलेश की इसी छवि के बीच जब उन्हें मुख्यमंत्री की कमान सौंपे जाने की बात शुरू हुई तो लोगों की उम्मीद बढ गई। सब को लगने लगा कि कम से कम पहली दफा मंत्रिमंडल में गुंडे बदमाश नहीं होंगे। दागी छवि का कोई भी नेता इस मंत्रिमंडल में जगह नहीं पाएगा। चूंकि प्रदेश के अब तक के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री हैं अखिलेश.. तो लोगों को लगा कि उनके मंत्री भी कम उम्र वाले ही होंगे। पर ऐसा नहीं हुआ, मंत्रिमंडल में एक दो को छोड़ दें तो सभी मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल के ही सदस्य हैं। यानि चाचाओं के मंत्रिमंडल में बेचारा भतीजा मुख्यमंत्री बन कर फंस गया। इस मंत्रिमंडल को सबसे ज्यादा बदसूरत बनाया रघुराजराज प्रताप सिंह यानि राजा भइया ने। राजा भइया की छवि भी बाहुबलि नेताओं की है। अच्छा फिर जिन लोगों को प्रचार के दौरान दूर रखे जाने की वजह से पार्टी को पूर्ण बहुमत में आई, अब इन सभी नेताओं को मंत्री बना दिया गया। आजम खां और शिवपाल यादव को प्रचार से दूर रखना बहुत कारगर रहा है, लेकिन अब ये मंत्री हैं।
अच्छा आइये क्षेत्रीय असंतुलन की बात करें, यूपी के प्रमुख शहरों में इलाहाबाद भी शामिल हैं। यहां से समाजवादी पार्टी के आठ विधायक जीत कर लखनऊ पहुंचे। लेकिन इनमें से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया। इसके पास का ही जिला है प्रतापगढ वहां से दो लोगों को मंत्री बनाया गया, राजा भइया और राजाराम पांडेय, जबकि ये दोनों दागी है। राजाराम पांडेय पर कई तरह के गंभीर आरोप हैं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि मंत्रिमंडल में कई ऐसे लोगों को शामिल किया गया है, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले आज भी विचाराधीन हैं। सवाल उठता है कि दागी और अपराधी को मंत्रिमंडल में शामिल करने की आखिर मजबूरी क्या है। मेरा मानना है कि कोई मजबूरी नहीं है। पूर्ण बहुमत की सरकार है, दागी और अपराधी में इतना नैतिक बल नहीं होता कि वो सरकार के सामने सिर उठा कर बात कर सके। लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार मे गुंडे, दागी, अपराधी शामिल ना हों तो पता कैसे चलेगा कि ये समाजवादी पार्टी की सरकार है। गुंडागर्दी ही तो पार्टी की यूएसपी है।
अब देखिए ना जिस मंच पर शपथ लेकर अखिलेश मुख्यमंत्री बने, उसी मंच पर अगले ही क्षण समाजवादी गुंडो ने उपद्रव मचाकर दिखाया कि आगे राज्य में क्या होने वाला है। घंटो समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता मंच पर नंगानाच करते रहे, यहां तक की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी भी उनके साथ डांस करते दिखाई दिए।
बहरहाल समाजवादी पार्टी का इसमें कोई दोष नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के लोगों की किस्मत खराब है। उन्हें दागी और बदबूदार नेताओं से ही बेहतरी की उम्मीद करनी होगी। अखिलेश का नाम मुख्यमंत्री के लिए सामने आया तो युवाओं में एक उम्मीद जगी थी, कि अब यूपी में भी कुछ बेहतर होगा, लेकिन मुलायम सिंह ने बेचारे अभिमन्यू को जानबूझ कर चक्रव्यूह में फंसा दिया है। जो चेहरे सामने हैं, इनसे अखिलेश क्या काम ले पाएंगे,जब उनके पिताश्री काम नहीं पाए। शिवपाल यादव जी शुरू हो जाइये जो आप करते रहे हैं, सूबे में जो आपकी शोहरत है। जब आप पर आपके बड़े भाई अंकुश नहीं लगा पाए तो अखिलेश किस खेत की मूली है। आजम भाई आप मंत्री नहीं रहे तो रामपुर में ट्रैफिक क्या हाल हो गया है, देख रहे है ना। लगिए ट्रैफिक सुधारने में, यहां जब आप लोगों को कान पकड़ कर उठक बैठक कराते हैं,तभी लोगों की समझ में आता है। राजाराम पांडेय जी लूट खसोट करिए ना कौन रोकने वाला है। अब इस सरकार से बेहतरी की कोई उम्मीद करना बेईमानी होगी।
इसकी पहली झांकी तो चुनाव के नतीजे आने के बाद सूबे के कई जिलों में शुरू हुई मारा मारी से दिखाई दे गई। शोर शराबा हुआ तो समाजवादी पार्टी ने सफाई दी कि अभी हमारी सरकार नहीं है, शपथ ग्रहण के बाद ही हमारी सरकार होगी। बहरहाल समाजवादी पार्टी पर आज भी सबसे बडा यही आरोप है कि ये गुंडों की पार्टी है। शायद इस छवि को धोने के लिए ही मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश की ताजपोशी करने का फैसला किया। अखिलेश ने जब बाहुबलि नेता डी पी यादव को पार्टी में शामिल करने से इनकार कर दिया तो सच में एक बार ऐसा लगा कि अखिलेश के आगे किसी की नहीं चलेगी, फैसला लेने में अखिलेश का जवाब नहीं है। मीडिया ने अखिलेश के इस फैसले को हाथो हाथ लिया और अखिलेश का ग्राफ एकदम से ऊपर पहुंच गया।
अखिलेश की इसी छवि के बीच जब उन्हें मुख्यमंत्री की कमान सौंपे जाने की बात शुरू हुई तो लोगों की उम्मीद बढ गई। सब को लगने लगा कि कम से कम पहली दफा मंत्रिमंडल में गुंडे बदमाश नहीं होंगे। दागी छवि का कोई भी नेता इस मंत्रिमंडल में जगह नहीं पाएगा। चूंकि प्रदेश के अब तक के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री हैं अखिलेश.. तो लोगों को लगा कि उनके मंत्री भी कम उम्र वाले ही होंगे। पर ऐसा नहीं हुआ, मंत्रिमंडल में एक दो को छोड़ दें तो सभी मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल के ही सदस्य हैं। यानि चाचाओं के मंत्रिमंडल में बेचारा भतीजा मुख्यमंत्री बन कर फंस गया। इस मंत्रिमंडल को सबसे ज्यादा बदसूरत बनाया रघुराजराज प्रताप सिंह यानि राजा भइया ने। राजा भइया की छवि भी बाहुबलि नेताओं की है। अच्छा फिर जिन लोगों को प्रचार के दौरान दूर रखे जाने की वजह से पार्टी को पूर्ण बहुमत में आई, अब इन सभी नेताओं को मंत्री बना दिया गया। आजम खां और शिवपाल यादव को प्रचार से दूर रखना बहुत कारगर रहा है, लेकिन अब ये मंत्री हैं।
अच्छा आइये क्षेत्रीय असंतुलन की बात करें, यूपी के प्रमुख शहरों में इलाहाबाद भी शामिल हैं। यहां से समाजवादी पार्टी के आठ विधायक जीत कर लखनऊ पहुंचे। लेकिन इनमें से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया गया। इसके पास का ही जिला है प्रतापगढ वहां से दो लोगों को मंत्री बनाया गया, राजा भइया और राजाराम पांडेय, जबकि ये दोनों दागी है। राजाराम पांडेय पर कई तरह के गंभीर आरोप हैं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि मंत्रिमंडल में कई ऐसे लोगों को शामिल किया गया है, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले आज भी विचाराधीन हैं। सवाल उठता है कि दागी और अपराधी को मंत्रिमंडल में शामिल करने की आखिर मजबूरी क्या है। मेरा मानना है कि कोई मजबूरी नहीं है। पूर्ण बहुमत की सरकार है, दागी और अपराधी में इतना नैतिक बल नहीं होता कि वो सरकार के सामने सिर उठा कर बात कर सके। लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार मे गुंडे, दागी, अपराधी शामिल ना हों तो पता कैसे चलेगा कि ये समाजवादी पार्टी की सरकार है। गुंडागर्दी ही तो पार्टी की यूएसपी है।
अब देखिए ना जिस मंच पर शपथ लेकर अखिलेश मुख्यमंत्री बने, उसी मंच पर अगले ही क्षण समाजवादी गुंडो ने उपद्रव मचाकर दिखाया कि आगे राज्य में क्या होने वाला है। घंटो समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता मंच पर नंगानाच करते रहे, यहां तक की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी भी उनके साथ डांस करते दिखाई दिए।
बहरहाल समाजवादी पार्टी का इसमें कोई दोष नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के लोगों की किस्मत खराब है। उन्हें दागी और बदबूदार नेताओं से ही बेहतरी की उम्मीद करनी होगी। अखिलेश का नाम मुख्यमंत्री के लिए सामने आया तो युवाओं में एक उम्मीद जगी थी, कि अब यूपी में भी कुछ बेहतर होगा, लेकिन मुलायम सिंह ने बेचारे अभिमन्यू को जानबूझ कर चक्रव्यूह में फंसा दिया है। जो चेहरे सामने हैं, इनसे अखिलेश क्या काम ले पाएंगे,जब उनके पिताश्री काम नहीं पाए। शिवपाल यादव जी शुरू हो जाइये जो आप करते रहे हैं, सूबे में जो आपकी शोहरत है। जब आप पर आपके बड़े भाई अंकुश नहीं लगा पाए तो अखिलेश किस खेत की मूली है। आजम भाई आप मंत्री नहीं रहे तो रामपुर में ट्रैफिक क्या हाल हो गया है, देख रहे है ना। लगिए ट्रैफिक सुधारने में, यहां जब आप लोगों को कान पकड़ कर उठक बैठक कराते हैं,तभी लोगों की समझ में आता है। राजाराम पांडेय जी लूट खसोट करिए ना कौन रोकने वाला है। अब इस सरकार से बेहतरी की कोई उम्मीद करना बेईमानी होगी।
अखिल विश्व में गूंजता, जब बरबंडी घोष ।
ReplyDeleteयू पी की बिगड़ी दशा, पर करते क्यूँ रोष ।
पर करते क्यूँ रोष, डूबती सदा तराई ।
नब्बे हैं बरबाद, करें दस यही पिटाई ।
डी पी यादव केस, इलेक्शन के पहले की ।
अब तो कुंडा राज, फतह नहले-दहले की ।।
बहुत सही कहा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteआगे-आगे देखिए होता है क्या?
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ek ek shabd satyta ko hi pragat kar raha hai kam se kam yahan to aapko sahi kaha ja sakta hai.
ReplyDeleteयह चिंगारी मज़हब की.
चेहरे ही बदल गए...लगता है चरित्र वही है!
ReplyDeleteबेचारे वोटर ने तो अपना काम कर लिया ........
ReplyDeleteअब बारी उनकी ...मजबूरी होगी .. आखिर कहाँ से आयेंगे साफ़ सुधरे चेहरे!!..अकाल जो दिखता है राजनीति में ..इसी का नाम है राजनीति ...
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति..
चरित्र यूं बदला भी कहां करते हैं
ReplyDeleteराजनीति में नीति कहाँ बदलती है,बेचारा अखिलेश आखिर चक्रव्यूह में फंस ही गया...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक बेहतरीन प्रस्तुति,.....
MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
लगता है...अभी तो ये आधे सच ,की शुरुआत है ...?
ReplyDeleteआगे आगे देखिए होता है क्या...... ???????
ReplyDeleteसटीक प्रसतुति !!
ReplyDeleteमैंने 'क्रांतिस्वर'पर ग्रहों की स्थिति से इसे स्पष्ट किया है। ग्रहों को जन-समाज सामूहिक रूप से अपने कृत्यों द्वारा प्रभावित करता है। समाज मे सर्वत्र ढोंगियों-पाखंडियों का बोल-बाला है उन्हें सम्मानित किया जा रहा है। तब केवल राजनीति और राजनीतिज्ञों को दोष क्यों?
ReplyDeletesateek vishleshan...
ReplyDeleteI always love your style of presentation. this is again a good article...
ReplyDeletewww.rajnishonline.blogspot.com
सुन्दर आंकलन ! लगता है अब उत्तर - प्रदेश की जनता पछता रही होगी !अब फल के लिए भी तैयार रहे !
ReplyDeleteसही और सटीक आँकलन....
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