Saturday, 3 March 2012

राहुल फ्लाप, मुसीबत में माया भी ...


पूरे 40 दिन यूपी का कोना कोना छानने के बाद आज दिल्ली वापस आ चुका हूं। इस दौरान मैं अपने ब्लाग से ज्यादा नहीं जुड़ पाया, वजह नेट की समस्या रही। जब भी किसी बड़े शहर में रात बिताने का मौका मिला तो आप सब को यूपी के चुनाव संबंधित कुछ जानकारी देता रहा। इस दौरान मेरे बहुत से मित्रों ने मुझे फोन कर कहा कि आप चुनाव की कुछ सटीक  जानकारी दीजिए, कुछ लोग हमारे सफर को लेकर बहुत उत्साहित थे, वे जानना चाहते थे कि कैसे एक टीम रोज नए शहर में पूरा सेट लगाती है और फिर प्रोग्राम खत्म होते ही सेट को समेटती है और अगले शहर के लिए रवाना हो जाती है। मैं चाहता हूं कि आज आपको चुनाव के बारे में जानकारी देने के साथ ही कुछ अपने सफर के बारे में भी जानकारी दें।

चलिए सबसे पहले चुनाव की बातें कर लेते हैं। दिन में यूपी के किसी इलाके में घूमने और शाम को चुनावी चौपाल खत्म करने के बाद जब हम होटल के कमरे में टीवी खोलते थे तो उस समय हम सबको लगता था कि ऐसा कार्यक्रम देखा जाए,  जिससे कुछ मनोरंजन हो। इसके लिए हम सब अपने कमरे में कोई ना कोई न्यूज चैनल लगाकर बैठ जाते थे, क्योंकि इससे बेहतर मनोरंजन कुछ था ही नहीं। आप पूछेगें कि मनोरंजन के लिए न्यूज चैनल ? इसका क्या मतलब है। मैं बताता हूं इस  चुनाव में जो कहीं नहीं था, जिसकी कोई चर्चा नहीं थी, जिसकी बातों का कोई असर नहीं था, दलितों के घर भोजन करने की कोई चर्चा तक नहीं कर रहा था, बांह चढाए राहुल गांधी के बारे में कहीं चर्चा करने पर लोग बिना बताए जान जाते थे कि हम दिल्ली से आए हैं। ऐसे राहुल गांधी की खबर चैनल की हेडलाइन बनती थी, तो आप समझ सकते हैं कि इससे बड़ा मनोरंजन आखिर क्या हो सकता है।

आइये एक उदाहरण देते हैं राहुल गांधी के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में प्रियंका गांधी डा. संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह के लिए वोट मांगती फिर रहीं थीं। एक जगह प्रियंका के काफिले को ग्रामीणों ने रोक लिया और पूछा कि आप किसके लिए वोट मांग रहीं हैं। प्रियंका ने कहा कि अमिता के लिए। ग्रामीणों  हांथ जोड़कर कहाकि हम आपकी ये बात नहीं मानेंगे, हम अमिता को वोट नहीं दे सकते। बाद में प्रियंका बोली हम तो राहुल की मदद कर रहे हैं, ग्रामीणों ने कहा कि आप अभी जाइये, वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव  में राहुल गांधी के लिए आपको वोट मांगने यहां नहीं आना पडेगा, हम सब राहुल गांधी के साथ हैं।  ये बात मैं सिर्फ इसलिए बता रहा हूं कि राहुल जब अपने इलाके में विधानसभा उम्मीदवार को वोट नहीं दिला पा रहे हैं, तो दूसरे इलाके की बात करना ही बेमानी है।

हां लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कुछ उम्मीदवार चुनाव लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। 2007 में महज 22 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार उससे बेहतर प्रदर्शन करती नजर आ रही है, हालांकि मैं कांग्रेस को अपनी ओर से पांच सीटें ज्यादा दे रहा हूं, यानि वो इस बार 40 सीटें जीत सकती है, वैसे तो मेरा आंकलन 35 ही है। आरएलडी के लिए मैं अलग से पूरा पैराग्राफ नहीं लिख सकता, क्योंकि वो इतना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रही है। जाट आमतौर पर कांग्रेस के खिलाफ ही रहते हैं, ये चौधरी साहब ने कांग्रेस से ही हांथ मिला लिया, ऐसे में जाट कितना उनका साथ देगा, ये तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे, लेकिन विपरीत हालातों में भी चौधरी साहब के खाते में 12 से 15 सीटें आ सकती हैं।

आइये अब बात कर लेते हैं बहन जी यानि मायावती की। 2007 में विधानसभा के नतीजे अप्रत्याशित थे। सच ये है कि खुद मायावती को भी ये उम्मीद नहीं रही होगी कि वो इतनी भारी जीत जीतने जा रही हैं। दरअसल देखा जाए तो वो मायावती की जीत नहीं थी, बल्कि मुलायम के गुंडाराज का खात्मा था। लोग मुलायम सरकार की गुंडागर्दी से त्रस्त थे, उन्हें लगता था कि मायावती सरकारी खजाने को लूटती है, लूटती रहे, लेकिन जनता तो सुख में रहती है। ये सोचकर मायावती को जिताया था। पर इस बार मायावती की सरकार में कोई काम होना तो दूर, भ्रष्टाचार का बोलबाला था। अफसर बेलगाम थे, घूसखोरी, बेईमानी, लूट, अपराध को बोलबाला रहा, लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया। लिहाजा पूरे प्रदेश मे लोग सरकार के खिलाफ वोट देने के लिए आगे आ रहे हैं। जनता का जो गुस्सा देखने को मिला है, उससे मेरा मानना है कि बीएसपी इस बार तीन अंको में नहीं पहुंचने वाली है। उसकी संख्या 80 से 90 पर ही सिमट कर रह जाएगी।

हां समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी खबर है और अच्छी खबर की दो वजहें हैं। पहला पूरे चुनाव प्रक्रिया यानि उम्मीदवारों के चयन से लेकर प्रचार तक में मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव को हाशिए पर रखा जाना। दूसरा सूबे की कमान को अखिलेश के हाथ में देना और अखिलेश ने बाहुबली नेता डीपी यादव को जिस तरह से पार्टी में शामिल करने से इनकार किया, इससे जनता में संदेश गया कि समाजवादी पार्टी गुंडो से दूरी बनाने की कोशिश कर रही है। ये अलग बात है कि आजम खां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में हैं, लेकिन उन्हें इस चुनाव में उतनी तवज्जों नहीं मिली जो आमतौर पर मिला करती थी। अखिलेश ने भी अपने पूरे प्रयास से ये साफ कर दिया है कि उनमें नेतृत्व की क्षमता है और वो मुलायम सिंह के बाद पार्टी की जिम्मेदारी बखूबी निभा सकते हैं।
जहां तक विधानसभा चुनाव में सीटों के जीतने का सवाल है। मैं एक कदम आगे बढकर कह सकता हूं कि यूपी में सरकार तो समाजवादी पार्टी ही बनाने जा रही है। बस देखना ये है कि इस सरकार की चाभी कांग्रेस आरएलडी गठबंधन के पास होती है या नहीं। मेरा मानना है कि समाजवादी पार्टी 180 से अधिक सीटें जीत सकती है। बहुमत के लिए उसे 25 से 30 विधायकों की जरूरत होगी, जो इंतजाम करना कोई मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि टूटने और बिकने के लिए सबसे मुफीद पार्टी बीएसपी है। यहां नेता बहुत ही प्रोफेसनल हैं, वो पैसा देकर टिकट लेते हैं, तो उन्हें पार्टी छोड़ने में भी कोई खास दिक्कत नहीं होती है।

यूपी के चुनाव को जो लोग ज्यादा करीब से जानते हैं, उन्हें पता है कि यहां अगर समाजवादी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है तो बीजेपी का प्रदर्शन खुद ही बेहतर हो जाता है। वैसे ही अगर बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर हो तो समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा होगा ही। हो सकता है कि राजनीति के जानकार मेरी बातों से सहमत ना हों, पर यूपी का पूरा चक्कर लगाने और लोगों से बात चीत के आधार पर मेरा मानना है कि सूबे  में दूसरे नंबर की पार्टी बीजेपी ही होगी। यूपी में कुल 75 जिले हैं, मुझे ऐसा कोई जिला नहीं मिला जहां बीजेपी के तीन चार उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में ना हों। ऐसे में अगर बीजेपी 100 से अधिक सीटे जीत ले, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिेए। हालाकि पार्टी नेताओं में इतने बिखराव  के बाद अगर भाजपा बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसे एक बार फिर मंथन करने की जरूरत है कि अगर पार्टी के बड़े नेता अनुशासित हो जाएं तो आज भी पार्टी सूबे में सरकार बना सकती है।

फैसला जिसका भी हो पर सच ये है कि बाबू सिंह कुशवाह के मामले में पार्टी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। इस मामले में पार्टी नेताओं के पास कोई ठोस जवाब नहीं था, और खुद को दूसरों से अलग कहने वाली पार्टी इस चुनाव में वाकई अलग दिखाई दे रही थी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की हालत ये है कि कई उम्मीदवारों ने मुझे भाईचारे में बताया कि ऊपर से निर्देश आ रहे हैं कि बड़े नेताओं की जनसभा कराऊं। वो इसके लिए तैयार नहीं है, क्योंकि अब पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं है, जिसकी वोट की अपील का जनता में कुछ असर होता हो। बल्कि जनसभा की तैयारी में पैसा और समय जरूर बर्बाद होता है। बहरहाल पार्टी नेताओं की ये हालत होने के बाद भी पार्टी का प्रदर्शन इस बार बेहतर होगा।

सांसद अमर सिंह और फिल्म अभिनेत्री सांसद जया प्रदा भी उत्तर प्रदेश के तूफानी दौरे पर थे, पर क्यों थे इस बात का जवाब नहीं मिल रहा है। लोकमंच की खबरें दो बार मीडिया में आईँ, एक बार अमर सिंह हेलीकाप्टर से उतरते समय गिर पड़े तब खबर आई कि अमर सिंह गिर गए, दूसरी खबर तब आई जब जया प्रदा हेलीपैड पर फिसल  गईँ और जमीन पर गिर गईं। इसके अलावा तो इन दोनों की कोई खबर सुनने को नहीं मिली। एक लाइन में कह दूं कि इनके सभी उम्मीदवारों को मिले वोट को जोड़ दिया जाए तो भी किसी एक उम्मीदवार की जमानत नहीं बचेगी। हाहाहहाहाहाहाह.. चलिए कोई बात नहीं।

हां पीसपार्टी अपने लिए नहीं बीजेपी के लिए तुरुप का पत्ता हो सकती है। कई जगहों पर देखा गया है कि मुस्लिम वोट पीसपार्टी उम्मीदवार के साथ भी खड़े दिखाई दिए। अगर पार्टी का ये टैंम्पो आखिरी समय तक बना रहा तो निश्चित ही मुस्लिम वोटों के कटने का नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा, फिर फायदा तो बीजेपी को ही मिलना है। हालाकि सच क्या है ये तो पीसपार्टी के नेता जाने. पर कहा जा रहा है कि पीस पार्टी को बीजेपी और बीएसपी दोनों ने सौ सौ करोड़ से ज्यादा की मदद की है, और हां दो तीन सीटों पर पीसपार्टी का कब्जा हो जाए तो हैरानी की बात नहीं है।

जी एक टीम और यूपी के कुछ इलाकों में घूम रही थी, वो टीम अन्ना। मुझे नहीं पता कि चुनाव आयोग ने इन्हें कैसे सभाएं करने की इजाजत दी। क्योंकि आयोग में इन्होंने कहा कि वो मतदाता जागरूकता के लिए निकले हैं, पर सभा के दौरान वो कांग्रेस के विरोध की बात कर रहे थे, हां ये अलग बात कि वो इशारों में ये बात कह रहे थे। पर इनकी बात का कोई असर वसर कुछ नहीं। पूरे चुनाव में ईमानदारी कहीं मुद्दा ही नहीं  है। अन्ना और बाबा रामदेव पर कोई चर्चा करने को तैयार ही नहीं हैं।

बहुत हो गई चुनाव की बात। आइये अब हम अपने सफर की कुछ तस्वीरें आपको दिखाते हैं। कैसा रहा हमारा 40 दिन का सफर। मित्रों मैं चाहता तो राजनीति के इस लेख में नेताओं की तस्वीरें लगाकर आपके सामने कर देता। पर मुझे लगा कि आपको कुछ लाइट मूड में रखा जाए, देखिए इतना लंबा सफर आसान नहीं  होता है, बहुत सी मुश्किलें आती हैं, उनको निपटाना और अपने कार्यक्रम को कामयाब बना लेने के बाद कुछ ऐसा ही आनंद मिलता है। 























ये वो टीम है जो पूरे 40 दिन एक साथ रही


कुछ इस तरह चलता रहा हमारा सफर। बस की मौज मस्ती..


लोकेशन पर कुछ विमर्श
लोकेशन पर विचार विमर्श 




















अयोध्या का गुफ्तार घाट, चल रही है तैयारी

















ये हमारे गेस्ट नहीं है, चेहरे पर लाइट चेक हो रहा 










काम खत्म, अगले लोकेशन पर  जाने की तैयारी..
कोई बात नहीं दोस्तों....


















ये रात की मस्ती









































जी रात को ढाई बजे होटल में हमारे साथी मुझे डांस के स्टेप बता रहे हैं। अब क्या करें, सीखना ही पडेगा ना....



आगरा गए तो ताजमहल भला क्यों ना जाता














भूख लगी तो ढावे पर खाना बनाने में जुट गए







एक रात सड़क पर ही हो गया धमाल....................




















46 comments:

  1. चालिसवाँ मन भर गया, मन भर मने चुनाव ।
    नगर-नगर भटका किये, घूम हजारों गाँव ।

    घूम हजारों गाँव, खबर राहुल की बढ़िया ।
    एस पी खेली दाँव, पकेगी सत्ता-हड़िया ।

    भाजप फूंके छाछ, गाछ से बसपा नीचे ।
    राज न जाना राज, अजित हैं आँखे मीचे ।।


    दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

    http://dineshkidillagi.blogspot.in

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  2. होली है होलो हुलस, हाजिर हफ्ता-हाट ।

    चर्चित चर्चा-मंच पर, रविकर जोहे बाट ।


    रविवारीय चर्चा-मंच

    charchamanch.blogspot.com

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  3. आपकी पूरी रिपोर्ट देखकर लगा कि असली माजरा क्या है नहीं तो नोट खाकर समाचार देने वाले चैनल तो मैंने तो देखे ही नहीं थे, हाँ समाचार पत्र जरुर पढता रहा हूँ।

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  4. बढ़िया रिपोर्ट .... कोई भी सरकार बनाए फायदा तो तब है जब जनता को सुख मिले

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  5. महेंद्र जी,..आपका आँखों देखा आलेख पढकर इतना तो समझ में आ गया कि सरकार समाज वादी की बनने वाली है,६ तारीख को पता ही लग जाएगा कौन कितने पानी में है.आपने चालीस दिन लगातार कितनी मेहनत की होगी,मै समझ सकता हूँ,सफलता पूर्वक कार्यक्रम के लीये,...बहुत२ बधाई,व्यस्तता के कारण बहुत दिनों से मेरे पोस्ट में नही आ पाए,अब फ्री होगये है आइये मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है,.....

    भूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
    होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
    खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
    नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,

    NEW POST...फिर से आई होली...

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  6. ४० दिनों बाद की सारगर्भित रिपोर्ट ...... मस्ती भरे पलों को संजोये

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  7. इस तरह की यात्रायें बहुत कुछ बता जाती हैं जमीनी हकीकत के बारे में...

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  8. महेंद्र जी ,नमस्कार !
    इतनी मेहनत के बाद रिचार्ज होने के लिए इतनी मस्ती बहुत जरूरी है |
    आप की चित्रों सहित रिपोर्ट बहुत सुंदर और सटीक है |आप की मेहनत
    साफ झलकती है | मतलब कि यु.पी कि जनता परिवर्तन ला रही है ...
    ये तो होना ही था ..जनता और क्या करे भ्रष्टों में से कम भ्रष्ट कौन ?
    ये ही जनता का मुकद्दर है ....आभार आपका ,सलाम आप कि मेहनत को |
    जनता के लिए ..
    शुभकामनाएँ !

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  9. rajnaitik vishleshan to badhiya hi hoga kyonki mujhe rajneeti ki samajh nahi hai lekin ha itane lambe safar ke liye enery kaise aati rahi ye janan rochak laga..ek shandar safar aur safal programm ke liye bahut bahut badhai.

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  10. SIR...shuru mein kya likha hai kam-kam hi samjh aaya but photos kafi badiya hain..

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  11. aapki yaatra aur chunaaon ki sambhavnaaye aapke najariye se padhi chitra bhi bahut sundar lage bahut masti ki hai saari thakaan door ho gai hogi bahut pasand aai post.aabhar.

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  12. बहुत सटीक विश्लेषण काश ऐसा ही हो .मंद मति बालक हाय है दिग्गी राजा हाय हाय .

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  13. bahut badiya jhalkiyon ke saath 40 din ka sundar sachitra chitrankan dekhna-padhna bahut achha laga...

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  14. अच्छा लेख , अच्छा संस्मरण एवं विश्लेषण ..

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  15. भाई महेंद्र जी आपको सपरिवार होली की शुभकामनायें |

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  16. मस्त राम मस्ती में ....अब सब गए अपनी ही बस्ती में ......आँखों देखा हाल ,ऊपर ये आप सबका धमाल ...हल पल जीने लेने की इच्छा ...और ऊपर से चुनावी वातावरण ..कुल मिला कर आपके सफर की जानकारी पढ़ कर अच्छा लगा .....welcome back

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  17. आँखों देखा हाल बहुत कुछ दिखा रहा है..आभार..

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  18. Sunder Vivechan...Ab to parinamon ka intzar hai.....

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    1. जी इसका तो मुझे भी इंतजार है

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  19. ये तो होना ही था। कल पटाक्षेप हो जायेगा!

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  20. आज 5 तारीख को आपकी रिपोर्ट पढ़ रही हूं और परिणाम कल ही आने वाले हैं। देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है।

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    1. जी बिल्कुल,
      ये तो मेरा अनुमान है

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  21. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार ।

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  22. in my opinion RAHUL GANDHI IS NOT A RAMGOPAL VERMA'S FILM .SO YOU CAN'T SAY HIM FLOP .ON THE OTHER HAND YOU HAVE DONE VERY HARD WORK .NOW TAKE REST AND LISTEN THIS - . ye hai mission london olympic

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  23. आपकी कही बात सच साबित हुई दोनों का बिस्तर बन्द हो गया है, अब ये हारे हुए 2014 में फ़िर से शोर मचायेंगे।

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।