Wednesday, 21 March 2012

लगता है बहक गए हैं श्री श्री ...

मैने सोचा नहीं था कि कभी मुझे आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को कटघरे में खड़ा करना पड़ेगा। मैं जानना चाहतां हूं कि श्री श्री को हो क्या गया है, आप कह क्या रहे हैं, इसका मतलब समझ रहे हैं। देश के सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चे हिंसक और नक्सली हैं, कभी नहीं। मैं आपकी बात को सिरे से खारिज करता हूं। बहरहाल  मैं इस बात में नहीं जाना चाहता कि आप लोगों को जो जीवन जीने की कला ( यानि आर्ट आफ लीविंग) का ज्ञान दे रहे हैं, वो ठीक है या नहीं। लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि ये सब देश के आम आदमी के लिए नहीं है, ये तथाकथित बड़े लोगों   (यानि पैसे से मजबूत) लोगों का चोचला भर है।

बात बेवजह लंबी हो जाएगी, लेकिन एक संदर्भ के लिए बताना जरूरी है। मुझे कुछ लोगों ने एप्रोच किया और कहा कि आर्ट आफ लीविंग का कोर्स कर लीजिए, आप खुद में कुछ बदलाव महसूस करेंगे। जिन्होंने मुझे आग्रह किया था, वो हमारे बहुत पुराने मित्र हैं, मैं उनकी बात टाल नहीं पाया और जरूरी फीस जमा कर मैने कोर्स के लिए पंजीकरण करा लिया। मित्रों दिसंबर का महीना, जबर्दस्त ठंड के बीच हम अंधेरे में ही सुबह छह बजे निर्धारित स्थान पर पहुंच गए। वहां पूछा गया कि आप लोग चाय पीकर तो नहीं आए हैं। तमाम लोगों ने कहा नहीं, मैं चाय पीकर गया था, मैने बताया कि मैं तो चाय पीकर आया हूं। मुझे कोर्स के पहले ही दिन अयोग्य ठहरा दिया गया और कहा गया कि आप जब तक कोर्स चलेगा, उतने दिन चाय नहीं पीएंगे, प्याज से परहेज करें, नानवेज खाना बंद करना होगा, आप समझ सकते हैं कि जब चाय की मनाही है तो ड्रिंक्स पर तो सजा का प्रावधान होगा।

मैं हैरान हो गया कि जब सब कुछ आदमी छोड़ देगा, तो उसे जीने की कला ये क्या सिखाएंगे ? मैं ही सिखा दूंगा। खैर मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं, अगर आपके दोनों हांथ में सोना है, कोई आपसे कहे कि इसे नाले में फैक दो और मेरे पास आओ हम तुम्हें हीरा देंगे। मुझे लगता है कि कोई आदमी ऐसा नहीं कर सकता, वो देखना चाहेगा कि इनके पास हीरा है भी या नहीं। ये दे भी सकते हैं या नहीं। वैसे ही कोई सोना क्यों फैंक देगा। वही हाल मेरा भी रहा, इतनी पाबंदियों में मैने खुद को असहज महसूस किया और वापस आ गया। मैं एक मामूली गांव का रहने वाला हूं तो वैसे भी मैं इस सोसायटी में खुद कम्फरटेबिल नहीं समझ रहा था। यहां लोग इतनी सुबह तरह तरह के सेंट, डियो के साथ आए हुए थे, जबकि मैं तो सोच कर आया था कि यहां ध्यान और व्यायाम से पसीना बहाना होगा।

बहरहाल अपर क्लास आध्यात्मिक गुरू श्रीश्री खुद को कितने दिन आमआदमी के बीच में छिपाए रखते। आखिर दिखावे और बनावटीपन का पर्दा अब उन पर से हट गया है। साफ हो गया है कि वो देश के अमीरों के ही गुरु हैं। वो प्राईवेट स्कूलों को बेहतर मानें, इससे किसी को ऐतराज नहीं है, लेकिन सरकारी स्कूलों के बारे में उनकी सोच इतनी घटिया होगी, मैं हैरान हूं उनकी बातों से। दरअसल श्रीश्री का ठिकाना बंगलौर में है, यहां से उन्हें सरकारी स्कूल घटिया ही दिखाई देगें। लेकिन पागलपन की इंतहा देखिए. कह रहे हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़े बच्चे नक्सली बनते हैं। सरकार को सभी सरकारी स्कूलों को बंद कर देना चाहिए।
श्री श्री मैं आज भी दावे के साथ कह सकता हूं कि सरकारी स्कूलों में जिस चरित्र और होनहार बच्चे मिलेगें, वैसे चरित्रवान बच्चे तो छोड़ दें आपके आश्रम में उतने चरित्रवान आपके शिष्य और शिष्याएं नहीं मिलेंगी। आपको पता होना चाहिए देश में जितने आईएएस और आईपीएस तैनात हैं, उसमें महज 15 से 20 फीसदी ही बच्चे कान्वेंट स्कूलों में पढ़े हैं, बाकी इन्हीं सरकारी स्कूलों की देन हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि कान्वेंट स्कूलों के ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी मे गिटपिट करके मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव ( MR) बन जाते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। स्कूलिंग के दौरान ही बुरी आदतों से भी उनका सामना हो जाता है।

दरअसल श्री श्री की इसमें कोई गल्ती नहीं है, वो हवा में उड़ते रहते हैं और हवा में उड़ने वालों के बीच ही उनका दाना पानी चलता रहता है। कभी कभार वो गांव में जाते हैं तो वह देश के लिए खबर बन जाती है। मुझे तो लगता है कि सरकारी स्कूलों को बंद करने का जो सुझाव श्रीश्री ने दिया है, वो ऐसे ही नहीं, बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी साजिश है। पहला तो ये कि सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे तो जाहिर है प्राईवेट स्कूलों की मांग बढेगी, ऐसे में उनके पैसे वाले चेलों की चांदी हो जाएगी, जगह जगह स्कूल खुलने लगेंगे और मनमानी लूट खसोट होगी। दूसरा ये कि बड़े लोगों के बीच जब श्री श्री जाते हैं तो लोग अपने बच्चों को उनके सामने कर देते हैं कि इसे भी सुधारो। अब श्रीश्री के हाथ में जादू की छड़ी तो है नहीं। लेकिन उन्हें लगता है कि अगर सरकारी स्कूलों को बंद करा दिया जाए, तो गरीब का बच्चा पढेगा ही नहीं, जाहिर है फिर तो नौकरी इन्हीं बड़े लोगों के बच्चों के हाथ आएगी।

बहरहाल श्री श्री की घटिया सोच सामने आ चुकी है, श्री श्री आलीशान जिंदगी जीते हैं और उन्हीं लोगों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। जब ऐसे लोगों का धंधा फूलेगा, फलेगा तभी तो श्री श्री सही मायने में श्री श्री कहें जाएगे। मुझे लगता है कि श्री श्री को अपनी बात वापस लेकर देश से माफी मांगनी चाहिए।

18 comments:

  1. bahut galat kaha hai shree shree ne jitne bhi ye baba pravachankari hain ye sabhi to hava me udte hain gareebi ki taraf inka dhyaan nahi jata kaun sa baba muft ki seva karta hai ...koi batayega...

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  2. भाई गज्ज्जब ढा दिया आपने तो .... इसे कहते हैं कलम बड़ी

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  3. वे अपनी छोटी सी दुनिया में रहकर कुएं के मेढक जैसे हो गए हैं...उन्हें देश के नब्ज़ की खबर ही नहीं...

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  4. shri...shri ..se aise vktavy ki ummed nahi ki ja sakti hai .jab desh ko disha dene vale aisa kahenge tab ....unki bhi aalochna honi hi chahiye .ek ..do din me sudhar lengen apna vktavy ..yah kahkar ki mera ye matlab nahi tha .ye aadhyatmik neta hain ya rajnaitik neta .....?...sateek prastuti . aabhar ye hai mission london olympic-support this ...like this page

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  5. सटीक लेखन... बिलकुल सही कहा आपने, सहमत हूँ...

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  6. उड़ते बम विस्फोट से, सरकारी इस्कूल ।

    श्री सिड़ी अनभिग्य है, बना रहा या फूल ।

    बना रहा या फूल, धूल आँखों में झोंके ।

    कारण जाने मूल, छुरी बच्चों के भोंके ।

    दोनों नक्सल पुलिस, गाँव के पीछे पड़ते ।

    बड़े बड़े हैं भक्त, तभी तो ज्यादा उड़ते ।।

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  7. मेने ऐसा ...तो नही कहा था ! ये इनका तकिया-कलाम है !
    सोच कब बदलेगी ,और कैसे ..प्रश्न तो ये है ?
    हम सब को !
    शुभकामनाएँ!

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  8. रवि शंकर जी ने क्‍या कहा और क्‍या उसके निहितार्थ थे यह तो मुझे नहीं पता लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि यह देश कमजोर और डरे हुए लोगों का है इसलिए अधिकांश जनता संन्‍यासियों के पीछे भागती है। इसी का फायदा आज उठाया जा रहा है और प्रत्‍येक संन्‍यासी करोड़पति से खरबपति बन गया है।

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  9. @ अपर क्लास आध्यात्मिक गुरू श्रीश्री खुद को कितने दिन आमआदमी के बीच में छिपाए रखते। आखिर दिखावे और बनावटीपन का पर्दा अब उन पर से हट गया है।

    ऐसे व्यक्ति जिनकी जिन्दगी विलासितापूर्ण है वह आम व्यक्ति को संन्यास की शिक्ष दे रहे हैं ......जीने की कला सिखाने वाले यह गुरु यह नहीं जानते कि भारत जैसे देश में जीने की कला कितनी वैज्ञानिक है यह इनको भी पता नहीं .....! आपका आलेख बहुत सी सच्चाइयों को सामने लाता है ..आपकी कलम को सलाम ..!

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  10. जाने किसदिन होयगा, बड़बोली का अंत
    फिसली जाती है जुबां, नेता हो या संत।

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  11. जिंदगी के सच से सामना करवाता लेख....आपकी लेखनी में सच में दम हैं..|

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  12. INKA KYA,YE FIR KAHENGE...मेने ऐसा ...तो नही कहा था!!!!

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  13. लोग दुख से मुक्ति चाहते हैं और वह भी बिना कुछ खोये।
    जो भी ऐसा बताएगा वह नोट ही कमाएगा।
    ओशो ने भी यही किया और बाबा और श्री श्री ने भी यही किया।
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में बरोज़ सोमवार आपका स्वागत है।

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  14. सब पैसे की माया है ... सार्थक लेख .... नक्सली बनते हैं सरकारी नीतियों की वजह से ... यह बात कब समझ आएगी ?

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  15. सार्थक अवलोकन.

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  16. आधा सच की यह प्रस्‍तुति बेहद सार्थक है ....आभार सहित उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए शुभकामनाएं

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।