तबियत ठीक नहीं है, हुआ क्या है, ये भी नहीं पता, बस मन ठीक नहीं है, कुछ भी लिखने पढ़ने का मन नहीं हो रहा है, लेकिन देश के हालात, घटिया केंद्र सरकार, उससे भी घटिया प्रधानमंत्री, नाम के विपरीत आचरण वाली ममता बनर्जी, बेपेंदी का लोटा टाइप पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी, मनमोहन सिंह से ज्यादा मजबूर मुलायम सिंह यादव और ढाक के तीन पात निकले उनके बेटे अखिलेश यादव । भाई ये सब बहुरुपिये हैं, इनका असली चेहरा बहुत ही डरावना है। मैं जानता हूं कि आप सब तो राजनीति और राजनीतिज्ञों को कोसते हैं और देश की राजनीति और राजनेताओं पर अपना वक्त जाया नहीं करते। पर मैं क्या करुं, मैने तो ना जाने पिछले जन्म में क्या पाप किया है कि इनका साथ छूट ही नहीं सकता। साथ का मतलब ये मत समझ लीजिएगा कि मैं राजनेताओं का कोई दरबारी हूं, भाई जर्नलिस्ट हूं तो इनकी खैर खबर रखनी पड़ती है ना। अरे अरे बहुत बड़ी गल्ती हो गई, राजनीति में गंदगी, बेमानी और घटियापन की बात करुं और गांधी परिवार का जिक्र ना हो तो कहानी भला कैसे पूरी हो सकती है।
राजनीति में गिरावट और अवसरवादी की बात हो तो इस परिवार को सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जा सकता है। आज तक लोगों की समझ में एक बात नहीं आ रही है कि आखिर सोनिया गांधी को किसने सलाह दी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बनाया जाए। मुझे लगता है कि गैर राजनीतिक को प्रधानमंत्री बनाकर सोनिया ने अपनी पार्टी के साथ ही नहीं देश के साथ धोखा किया है, लोकतंत्र का माखौल उड़ाया है। कांग्रेस में एक से बढकर एक पुराने कांग्रेसी हैं, पर उन्हें हाशिए पर रखा गया है, क्योंकि वो मजबूत नेता है, सोनिया गांधी और परिवार की बात एक सीमा तक ही मानेंगे। प्रणव दा इसीलिए प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि वो कुर्सी बचाने के लिए घटिया स्तर पर जाकर समझौता नहीं करेंगे।
गांधी परिवार के साथ खास बात ये है कि ये कभी गल्ती नहीं करते, पांच राज्यों के चुनाव में पार्टी की ऐसी तैसी हो गई, लेकिन ये आज भी उतने ही मजबूत हैं। उत्तराखंड में हरीश रावत के नेतृत्व में एक बेहतर सरकार बनाई जा सकती थी, पर हरीश रावत मुख्यमंत्री बन जाते तो पता कैसे चलता कि कांग्रेस में सभी फैसले 10 जनपथ से लिए जाते हैं। रावत बन जाते तो लगता कि जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। इसलिए गांधी परिवार को अपनी ताकत दिखाने के लिए उलजलूल फैसले करना उनकी सियासी मजबूरी है।
मैं मनमोहन सिंह को बहुत ईमानदार आदमी समझता था, लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी को बचाए रखने के लिए वो जिस तरह के समझौते करते हैं, उससे उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा बिल्कुल गिरा दिया है। मेरा केंद्र सरकार के कई अफसरों के पास बैठना होता है, उनके दफ्तर में इनकी तस्वीर लटकी हुई है, ये अफसर इनकी तस्वीर की ओर उंगली उठाकर कोसते फिरते हैं। सियासी गलियारे में कहा जाता है कि गांधी जी के तीन बंदर थे, एक कान बंद किए रहता था, वो कुछ सुनता नहीं था, एक आंख बंद किए रहता था, वो कुछ भी देखता नहीं था , एक मुंह बंद किए रहता था, वो कुछ बोलता नहीं था। लोग कहते हैं कि आज अगर गांधी जी होते तो तीनों बंदर को हटाकर मनमोहन सिंह की तस्वीर लगा लेते, ये ना बोलते हैं, ना देखते हैं और ना ही सुनते हैं। शायद मनमोहन सिंह को ये पता ही नहीं है कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें लगता है कि वो एक ऐसे नौकरशाह हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री का काम दिया गया है और वे शिद्दत से इस काम को कर रहे हैं। कुर्सी बचाए रखने के लिए जितने घटिया स्तर पर मनमोहन सिंह उतरते जा रहे हैं, इसके पहले किसी ने ऐसा नहीं किया। कमजोर प्रधानमंत्री होता है तो मंत्रियों के मजे रहते हैं, लिहाजा किसी को कोई तकलीफ भी नहीं है। चलिए जी अभी आपके राज में देश को और लुटना पिटना है।
ममता बनर्जी की गंदी राजनीति के बारे में आप जितना सुनते हैं, वो अधूरा है, क्योंकि ममता महिला हैं और उनके बारे में लिखने में लोग वैसे भी संकोच करते हैं। भारतीय राजनीति को दूषित करने वाली महिला नेताओं के बारे में अगर चर्चा हो तो ममता का जिक्र किए बगैर यह स्टोरी पूरी हो ही नहीं सकती। बीजेपी नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई तो ममता, मायावती और जयललिता से हार मान गए थे और उन्होंने पूरी तरह समर्पण कर सरकार को ही गिरा लिया और बाहर चले गए। लेकिन वाजपेई जी राजनीतिक थे, उनकी रीढ़ की हड्डी मनमोहन सिंह की तरह लचर नहीं थी। वो जानते थे कि प्रधानमंत्री रहते हुए किस हद तक झुका जा सकता है, लेकिन मनमोहन सिंह में इस हड्डी की कमी है, वो कुर्सी बचाने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। चूंकि सहयोगी दलों को प्रधानमंत्री की कमजोरी पता चल गई है, लिहाजा वो अपनी हर छोटी बड़ी मांग के लिए सरकार गिराने की धमकी देते हैं। खैर ममता ने ये बता दिया है कि झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए। वैसे ममता दीदी आपकी ईमानदारी को लेकर भी लोग सवाल उठाने लगे हैं। आप भले ही हवाई चप्पल और सूती साड़ी पहन कर सादगी की बात करें, पर आपके दाएं बाएं रहने वाले तो डिजाइनर ड्रेस पहनते हैं, ऐसा क्यों ?
अपनी ओछी हरकत से ये चेहरा भी बदबूदार हो गया है। देशप्रेम की बड़ी बड़ी बातें करने वाला ये शख्स है पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी। आपको बता दूं कि ममता बनर्जी ने जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का कामकाज संभाला तो रेलमंत्री के लिए श्री त्रिवेदी ममता बनर्जी की पहली पसंद नहीं थे। वो तो मुकुल राय को ही रेलमंत्री बनाना चाहतीं थीं। लेकिन रेल मंत्रालय में उस समय मौजूद दो अन्य रेल राज्यमंत्री के मुनियप्पा और ई अहमद काफी वरिष्ठ थे, उन्होंने मुकुल राय की अगुवाई में काम करने से साफ इनकार कर दिया। काफी मान मनौव्वल के बाद ममता बनर्जी श्री त्रिवेदी को मंत्री बनाने के लिए राजी हुईं। रेलमंत्री बनते ही भाई त्रिवेदी बड़ी बड़ी डींगें हांकने लगे। कह रहे हैं कि अगर रेल का भाड़ा नहीं बढ़ाया गया तो महकमें को आगे चलाना मुश्किल होगा। चलिए आप किराया बढ़ा देते, लेकिन आपने किराया नहीं बढा़या, आपने आम आदमी को लूटने की कोशिश की। अच्छा त्रिवेदी जी पढ़े लिखे हैं, उन्हें पता है कि जब दो रुपए पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ती है तो उनके पार्टी की अध्यक्ष ममता बनर्जी केंद्र की सरकार गिराने पर आमादा हो जाती हैं, भला वो रेल किराए में बढोत्तरी को कैसे स्वीकार कर सकतीं थीं। सच तो ये है कि त्रिवेदी सब जानते थे, लेकिन उनकी कांग्रेस से नजदीकियां बढती जा रहीं थीं, बेचारे झांसे में आ गए और जिनके कहने पर सबकुछ कर रहे थे, बुरा वक्त आया तो किसी ने साथ नहीं दिया। खैर इतिहास में नाम दर्ज हो गया कि किराया बढ़ाने पर मंत्री को कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। वैसे डियर इसे बेवकूफी कहते हैं।
समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के हाथ आखिर क्यों बंधे हुए हैं, ये बात आज तक लोग नहीं समझ पा रहे हैं। हालाकि राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि अगर मुलायम सिंह यादव जरा भी कांग्रेस के खिलाफ मुखर हुए तो उनकी घेराबंदी तेज हो जाएगी। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई कार्रवाई तेज कर देगी। अभी जो वो सुकून की जिंदगी जी रहे हैं, उसमें ऐसा खलल पड़ जाएगा कि राजनीति के हाशिए पर चले जाएंगे। अब देखिए वामपंथियों से मुलायम सिंह यादव के रिश्ते खराब नहीं हैं, लेकिन जब परमाणु करार करने पर वामपंथियों ने सरकार से समर्थन वापस लिया तो मुलायम सिंह ने सरकार को बचाया। लेकिन उसके बाद कांग्रेस ने क्या किया, सभी ने देखा। अब ममता बनर्जी सरकार को आंख दिखा रहीं हैं तो फिर मुलायम सिंह यादव नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के युवराज यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी की घोषणा पत्र की बातों को सार्वजनिक सभाओं में फाडते फिर रहे थे, इतनी तल्खी के बाद भी कांग्रेसी उम्मीद करते हैं कि समाजवादी पार्टी उनका साथ दे। खैर वो जितनी बेशर्मी से समर्थन मांगते हैं, उससे ज्यादा बेशर्मी से सपा उनके साथ बैठती है। आज एनसीटीसी के मुद्दे पर सरकार में सहयोगी टीएमसी ने मतदान का बायकाट कर दिया, लेकिन वाह रे लोहिया के चेलों आप संसद में कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाए बैठे रहे। नेता जी आप लेख और स्टोरी पर ध्यान मत दीजिएगा, कांग्रेस के साथ बने रहिए, कम से कम सीबीआई से तो पीछा छूटा ही रहेगा।
अब इस चेहरे की मासूमियत भी बनावटी लगती है। जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने की बात की तो और लोगों की तरह मुझे भी उम्मीद थी कि शायद यूपी में कुछ बदलाव दिखाई देगा। कानून व्यवस्था सुधरेगी, पार्टी की गुंडा छवि को अखिलेश यादव बदलेंगे और सूबे में कुछ नया होता दिखाई देगा। पर कुछ नहीं बदला, मंत्रिमंडल में वही दागी चेहरे, 90 फीसदी वही लोग मंत्री बने जो मुलायम मंत्रिमंडल में थे। हैरानी तो तब हुई जब अखिलेश ने विभागों का बटवारा किया तो सभी को वही विभाग दिए गए जो पहले उनके पास थे। हा राजा भइया काफी समय तक जेल मे रहे हैं, इसलिए उन्हें कारागार विभाग दिया गया है। बेचारे कारागार अधीक्षकों की खैर नहीं। सभी रास्ते मालूम हैं राजा भइया को कि यहां क्या होता है। बहरहाल अखिलेश जी हफ्ते भर से जो देख रहा हूं, उससे इतना तो साफ है कि आपकी कुछ चल नहीं रही है। आपने जो विभाग मंत्रियों को दिए हैं, वो उस विभाग में विवादित रहे हैं। ऐसे में आपको जल्दी ही खबर मिलेगी कि तमाम अफसर बकाए का भुगतान ना करने पर मंत्रियों के हाथ पिट रहे हैं। चलिए अच्छा हुआ, जल्दी आपका भी असली चेहरा सामने आ गया, वरना बेवजह हम यूपी में रामराज का इंतजार करते फिरते।
मायावती की ये हंसी बनावटी है। आमतौर पर लोग खुश होने पर हंसते है, पर मायावती जब बहुत परेशान होती है तो ऐसी हंसी हसती है, जिससे लोगों में भ्रम बना रहे कि वो कहीं से परेशान हैं। मायावती वो शख्स हैं जो किसी को माफ करना नहीं जानतीं। उनका मुलायम की पार्टी से ऐसा रिश्ता है कि जहां वो रहेंगे, मायावती वहां रह ही नहीं सकती। पर मजबूरी क्या ना कराए। अब देखिए ना सीबीआई का जितना खौफ मुलायम सिंह यादव को है, उससे कम खौफ मायावती को भी नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस का समर्थन मुलायम सिंह के करने के बाद भी मायावती वहीं जमीं हुई हैं, कम से कम सीबीआई से तो राहत रहेगी। चुनाव में राहुल गांधी ने खुले आम मायावती की सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, उन्होने कहा कि केंद्र से जो पैसा आता है, वो यहां बैठा हाथी खा जाता है। भला इससे भद्दे तरीके से कोई बात अब क्या कही जाएगी, लेकिन मायावती उसी कांग्रेस के साथ चिपकी हुई हैं। उन्हें लग रहा है कि लखनऊ में तो समाजवादी पार्टी रहना मुश्किल कर देगी, अगर कांग्रेस से भी पंगा लिया तो ये दिल्ली में भी डाट से नहीं रहने देगें। लिहाजा राज्यसभा के जरिए अब पांच साल दिल्ली में काटने की तैयारी है। कोई बात नहीं मायावती जी,यहां तो तमाम लोग हैं जिन्हें कांग्रेसी गरियाते फिरते हैं, पर वो सरकार के साथ चिपके रहते हैं। बस सबकी सांसे सीबीआई दबाए रहती है।
खैर साहब ये दिल्ली है और दिल्ली की सियासी गलियारे में कोई किसी का सगा नहीं है। कब कौन किसकी कहां उतार दे कोई भरोसा नहीं। मुझे सीएनबीसी और आवाज के एडीटर संजय पुगलिया जी का एक सवाल याद आ रहा है जो उन्होंने रेल बजट वाले दिन पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी से पूछा। उन्होंने कहा कि आप ने दो पैसे प्रति किलो मीटर किराया बढ़ाया और दिल्ली में दो कौड़ी की राजनीति शुरू हो गई। बेचारे त्रिवेदी इसका क्या जवाब देते, उनकी तो सांसे अटक गई। लेकिन मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूं कि ये सवाल सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी, पी चिदंबरम, ए के एटोनी, कपिल सिब्बल, कमल नाथ समते किसी से भी पूछा जा सकता है और उनके पास भी इसका जवाब नहीं है, क्योंकि सभी दो कौड़ी की नेतागिरी में शामिल हैं।
राजनीति में गिरावट और अवसरवादी की बात हो तो इस परिवार को सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जा सकता है। आज तक लोगों की समझ में एक बात नहीं आ रही है कि आखिर सोनिया गांधी को किसने सलाह दी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बनाया जाए। मुझे लगता है कि गैर राजनीतिक को प्रधानमंत्री बनाकर सोनिया ने अपनी पार्टी के साथ ही नहीं देश के साथ धोखा किया है, लोकतंत्र का माखौल उड़ाया है। कांग्रेस में एक से बढकर एक पुराने कांग्रेसी हैं, पर उन्हें हाशिए पर रखा गया है, क्योंकि वो मजबूत नेता है, सोनिया गांधी और परिवार की बात एक सीमा तक ही मानेंगे। प्रणव दा इसीलिए प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि वो कुर्सी बचाने के लिए घटिया स्तर पर जाकर समझौता नहीं करेंगे।
गांधी परिवार के साथ खास बात ये है कि ये कभी गल्ती नहीं करते, पांच राज्यों के चुनाव में पार्टी की ऐसी तैसी हो गई, लेकिन ये आज भी उतने ही मजबूत हैं। उत्तराखंड में हरीश रावत के नेतृत्व में एक बेहतर सरकार बनाई जा सकती थी, पर हरीश रावत मुख्यमंत्री बन जाते तो पता कैसे चलता कि कांग्रेस में सभी फैसले 10 जनपथ से लिए जाते हैं। रावत बन जाते तो लगता कि जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। इसलिए गांधी परिवार को अपनी ताकत दिखाने के लिए उलजलूल फैसले करना उनकी सियासी मजबूरी है।
मैं मनमोहन सिंह को बहुत ईमानदार आदमी समझता था, लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी को बचाए रखने के लिए वो जिस तरह के समझौते करते हैं, उससे उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा बिल्कुल गिरा दिया है। मेरा केंद्र सरकार के कई अफसरों के पास बैठना होता है, उनके दफ्तर में इनकी तस्वीर लटकी हुई है, ये अफसर इनकी तस्वीर की ओर उंगली उठाकर कोसते फिरते हैं। सियासी गलियारे में कहा जाता है कि गांधी जी के तीन बंदर थे, एक कान बंद किए रहता था, वो कुछ सुनता नहीं था, एक आंख बंद किए रहता था, वो कुछ भी देखता नहीं था , एक मुंह बंद किए रहता था, वो कुछ बोलता नहीं था। लोग कहते हैं कि आज अगर गांधी जी होते तो तीनों बंदर को हटाकर मनमोहन सिंह की तस्वीर लगा लेते, ये ना बोलते हैं, ना देखते हैं और ना ही सुनते हैं। शायद मनमोहन सिंह को ये पता ही नहीं है कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें लगता है कि वो एक ऐसे नौकरशाह हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री का काम दिया गया है और वे शिद्दत से इस काम को कर रहे हैं। कुर्सी बचाए रखने के लिए जितने घटिया स्तर पर मनमोहन सिंह उतरते जा रहे हैं, इसके पहले किसी ने ऐसा नहीं किया। कमजोर प्रधानमंत्री होता है तो मंत्रियों के मजे रहते हैं, लिहाजा किसी को कोई तकलीफ भी नहीं है। चलिए जी अभी आपके राज में देश को और लुटना पिटना है।
ममता बनर्जी की गंदी राजनीति के बारे में आप जितना सुनते हैं, वो अधूरा है, क्योंकि ममता महिला हैं और उनके बारे में लिखने में लोग वैसे भी संकोच करते हैं। भारतीय राजनीति को दूषित करने वाली महिला नेताओं के बारे में अगर चर्चा हो तो ममता का जिक्र किए बगैर यह स्टोरी पूरी हो ही नहीं सकती। बीजेपी नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई तो ममता, मायावती और जयललिता से हार मान गए थे और उन्होंने पूरी तरह समर्पण कर सरकार को ही गिरा लिया और बाहर चले गए। लेकिन वाजपेई जी राजनीतिक थे, उनकी रीढ़ की हड्डी मनमोहन सिंह की तरह लचर नहीं थी। वो जानते थे कि प्रधानमंत्री रहते हुए किस हद तक झुका जा सकता है, लेकिन मनमोहन सिंह में इस हड्डी की कमी है, वो कुर्सी बचाने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। चूंकि सहयोगी दलों को प्रधानमंत्री की कमजोरी पता चल गई है, लिहाजा वो अपनी हर छोटी बड़ी मांग के लिए सरकार गिराने की धमकी देते हैं। खैर ममता ने ये बता दिया है कि झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए। वैसे ममता दीदी आपकी ईमानदारी को लेकर भी लोग सवाल उठाने लगे हैं। आप भले ही हवाई चप्पल और सूती साड़ी पहन कर सादगी की बात करें, पर आपके दाएं बाएं रहने वाले तो डिजाइनर ड्रेस पहनते हैं, ऐसा क्यों ?
अपनी ओछी हरकत से ये चेहरा भी बदबूदार हो गया है। देशप्रेम की बड़ी बड़ी बातें करने वाला ये शख्स है पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी। आपको बता दूं कि ममता बनर्जी ने जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का कामकाज संभाला तो रेलमंत्री के लिए श्री त्रिवेदी ममता बनर्जी की पहली पसंद नहीं थे। वो तो मुकुल राय को ही रेलमंत्री बनाना चाहतीं थीं। लेकिन रेल मंत्रालय में उस समय मौजूद दो अन्य रेल राज्यमंत्री के मुनियप्पा और ई अहमद काफी वरिष्ठ थे, उन्होंने मुकुल राय की अगुवाई में काम करने से साफ इनकार कर दिया। काफी मान मनौव्वल के बाद ममता बनर्जी श्री त्रिवेदी को मंत्री बनाने के लिए राजी हुईं। रेलमंत्री बनते ही भाई त्रिवेदी बड़ी बड़ी डींगें हांकने लगे। कह रहे हैं कि अगर रेल का भाड़ा नहीं बढ़ाया गया तो महकमें को आगे चलाना मुश्किल होगा। चलिए आप किराया बढ़ा देते, लेकिन आपने किराया नहीं बढा़या, आपने आम आदमी को लूटने की कोशिश की। अच्छा त्रिवेदी जी पढ़े लिखे हैं, उन्हें पता है कि जब दो रुपए पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ती है तो उनके पार्टी की अध्यक्ष ममता बनर्जी केंद्र की सरकार गिराने पर आमादा हो जाती हैं, भला वो रेल किराए में बढोत्तरी को कैसे स्वीकार कर सकतीं थीं। सच तो ये है कि त्रिवेदी सब जानते थे, लेकिन उनकी कांग्रेस से नजदीकियां बढती जा रहीं थीं, बेचारे झांसे में आ गए और जिनके कहने पर सबकुछ कर रहे थे, बुरा वक्त आया तो किसी ने साथ नहीं दिया। खैर इतिहास में नाम दर्ज हो गया कि किराया बढ़ाने पर मंत्री को कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। वैसे डियर इसे बेवकूफी कहते हैं।
समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के हाथ आखिर क्यों बंधे हुए हैं, ये बात आज तक लोग नहीं समझ पा रहे हैं। हालाकि राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि अगर मुलायम सिंह यादव जरा भी कांग्रेस के खिलाफ मुखर हुए तो उनकी घेराबंदी तेज हो जाएगी। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई कार्रवाई तेज कर देगी। अभी जो वो सुकून की जिंदगी जी रहे हैं, उसमें ऐसा खलल पड़ जाएगा कि राजनीति के हाशिए पर चले जाएंगे। अब देखिए वामपंथियों से मुलायम सिंह यादव के रिश्ते खराब नहीं हैं, लेकिन जब परमाणु करार करने पर वामपंथियों ने सरकार से समर्थन वापस लिया तो मुलायम सिंह ने सरकार को बचाया। लेकिन उसके बाद कांग्रेस ने क्या किया, सभी ने देखा। अब ममता बनर्जी सरकार को आंख दिखा रहीं हैं तो फिर मुलायम सिंह यादव नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के युवराज यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी की घोषणा पत्र की बातों को सार्वजनिक सभाओं में फाडते फिर रहे थे, इतनी तल्खी के बाद भी कांग्रेसी उम्मीद करते हैं कि समाजवादी पार्टी उनका साथ दे। खैर वो जितनी बेशर्मी से समर्थन मांगते हैं, उससे ज्यादा बेशर्मी से सपा उनके साथ बैठती है। आज एनसीटीसी के मुद्दे पर सरकार में सहयोगी टीएमसी ने मतदान का बायकाट कर दिया, लेकिन वाह रे लोहिया के चेलों आप संसद में कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाए बैठे रहे। नेता जी आप लेख और स्टोरी पर ध्यान मत दीजिएगा, कांग्रेस के साथ बने रहिए, कम से कम सीबीआई से तो पीछा छूटा ही रहेगा।
अब इस चेहरे की मासूमियत भी बनावटी लगती है। जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने की बात की तो और लोगों की तरह मुझे भी उम्मीद थी कि शायद यूपी में कुछ बदलाव दिखाई देगा। कानून व्यवस्था सुधरेगी, पार्टी की गुंडा छवि को अखिलेश यादव बदलेंगे और सूबे में कुछ नया होता दिखाई देगा। पर कुछ नहीं बदला, मंत्रिमंडल में वही दागी चेहरे, 90 फीसदी वही लोग मंत्री बने जो मुलायम मंत्रिमंडल में थे। हैरानी तो तब हुई जब अखिलेश ने विभागों का बटवारा किया तो सभी को वही विभाग दिए गए जो पहले उनके पास थे। हा राजा भइया काफी समय तक जेल मे रहे हैं, इसलिए उन्हें कारागार विभाग दिया गया है। बेचारे कारागार अधीक्षकों की खैर नहीं। सभी रास्ते मालूम हैं राजा भइया को कि यहां क्या होता है। बहरहाल अखिलेश जी हफ्ते भर से जो देख रहा हूं, उससे इतना तो साफ है कि आपकी कुछ चल नहीं रही है। आपने जो विभाग मंत्रियों को दिए हैं, वो उस विभाग में विवादित रहे हैं। ऐसे में आपको जल्दी ही खबर मिलेगी कि तमाम अफसर बकाए का भुगतान ना करने पर मंत्रियों के हाथ पिट रहे हैं। चलिए अच्छा हुआ, जल्दी आपका भी असली चेहरा सामने आ गया, वरना बेवजह हम यूपी में रामराज का इंतजार करते फिरते।
मायावती की ये हंसी बनावटी है। आमतौर पर लोग खुश होने पर हंसते है, पर मायावती जब बहुत परेशान होती है तो ऐसी हंसी हसती है, जिससे लोगों में भ्रम बना रहे कि वो कहीं से परेशान हैं। मायावती वो शख्स हैं जो किसी को माफ करना नहीं जानतीं। उनका मुलायम की पार्टी से ऐसा रिश्ता है कि जहां वो रहेंगे, मायावती वहां रह ही नहीं सकती। पर मजबूरी क्या ना कराए। अब देखिए ना सीबीआई का जितना खौफ मुलायम सिंह यादव को है, उससे कम खौफ मायावती को भी नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस का समर्थन मुलायम सिंह के करने के बाद भी मायावती वहीं जमीं हुई हैं, कम से कम सीबीआई से तो राहत रहेगी। चुनाव में राहुल गांधी ने खुले आम मायावती की सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, उन्होने कहा कि केंद्र से जो पैसा आता है, वो यहां बैठा हाथी खा जाता है। भला इससे भद्दे तरीके से कोई बात अब क्या कही जाएगी, लेकिन मायावती उसी कांग्रेस के साथ चिपकी हुई हैं। उन्हें लग रहा है कि लखनऊ में तो समाजवादी पार्टी रहना मुश्किल कर देगी, अगर कांग्रेस से भी पंगा लिया तो ये दिल्ली में भी डाट से नहीं रहने देगें। लिहाजा राज्यसभा के जरिए अब पांच साल दिल्ली में काटने की तैयारी है। कोई बात नहीं मायावती जी,यहां तो तमाम लोग हैं जिन्हें कांग्रेसी गरियाते फिरते हैं, पर वो सरकार के साथ चिपके रहते हैं। बस सबकी सांसे सीबीआई दबाए रहती है।
खैर साहब ये दिल्ली है और दिल्ली की सियासी गलियारे में कोई किसी का सगा नहीं है। कब कौन किसकी कहां उतार दे कोई भरोसा नहीं। मुझे सीएनबीसी और आवाज के एडीटर संजय पुगलिया जी का एक सवाल याद आ रहा है जो उन्होंने रेल बजट वाले दिन पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी से पूछा। उन्होंने कहा कि आप ने दो पैसे प्रति किलो मीटर किराया बढ़ाया और दिल्ली में दो कौड़ी की राजनीति शुरू हो गई। बेचारे त्रिवेदी इसका क्या जवाब देते, उनकी तो सांसे अटक गई। लेकिन मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूं कि ये सवाल सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी, पी चिदंबरम, ए के एटोनी, कपिल सिब्बल, कमल नाथ समते किसी से भी पूछा जा सकता है और उनके पास भी इसका जवाब नहीं है, क्योंकि सभी दो कौड़ी की नेतागिरी में शामिल हैं।
वाह! क्या विश्लेषण है आपका!! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसबका असली चेहरा खोलकर रख दिया है इसे कहते है निष्पक्ष पत्रकारिता।
ReplyDeleteजी ।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
ReplyDeleteकाव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
किस पैमाने से मन मोहन सिंह आपको ईमानदार लगते थे?CIA ने मोरार जी देसाई को अपना एजेंट बताया और डॉ सुब्र्मनियम स्वामी के बहकावे मे मुकदमा हार गए थे। नरसिंघा राव ने दी इनसाइडर मे लिख दिया था कि -'हम स्वतन्त्रता के भ्रम जाल मे जी रहे हैं'। सब कुछ विदेशी इशारों पर चल रहा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों को कोसने वाले यह बताएं कि क्या वे 'क्रांति' हेतु एकजुट और तैयार हैं?बड़बोलपन चलता रहेगा और जनता लुटती रहेगी। जनता को कौन जागरूक कर रहा है?
ReplyDeletegandhi parivar ko desh par sarvadhik balidan karne vale parivar ke roop me jana jata hai aur aap jaise buddhiman log jis bat par is parivar ke peechhe pade rahte hain unhi baton par desh ke karodon log unhe pyar karte hain aur un par jan chhidakte hain aur yahi karan hai ki aap jaise log is bat ko hazam nahi kar pate aur ulta hi likhte rahte hain.post likhne se pahle apne man kee durbhavna ko kahin aur rakhna chahiye.
ReplyDeleteबहुत अच्छा सुझाव है.. आपको मेरे मन में क्या है, वो भी पता है।
Deleteबहुत कम पत्रकार हैं जो एकदम खरी खरी लिखने का साहस कर पाते हैं और आप उनमें से एक हैं.
Deleteकुछ लोग ऐसे होते हैं जो व्यक्ति विशेष की पूजा में ऐसे तल्लीन हो जाते हैं कि वे सत्य और तथ्य को भी समझना नहीं चाहते. भगवन उन्हें सद्बुद्धि दें.
सियासी गलियारों का सच कहता प्रत्येक बिन्दु सार्थकता लिए हुए ...आभार सहित शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteएक दम हर आम ह्रदय में उठती सहज बातों को आप स्वर दे देते हैं ..सहमती के अतिरिक्त कुछ भी नहीं..
ReplyDeleteआपने अपनी बात बहुत अच्छे से कही.
ReplyDeleteबाकी नजरिया अपना अपना.
शालिनी जी और अमृता जी को सोच में कितना अंतर है.