Friday 9 September 2011

पुलिस वाले की इतनी हिम्मत....


रा इस सिपाही की हिम्मत तो देखिए, दिल्ली हाईकोर्ट बम विस्फोट में घायल महिला को खुद ही उठाकर एंबूलेंस तक ले जा रहा है, इसे कानून का जरा भी डर नहीं है और ये भी कि वो कैमरे में कैद हो रहा है। कुछ देर में टीवी और अखबार में उसकी तस्वीर आ जाएगी। इसे हो क्या गया है महिला सिपाही का इंततार भी नहीं कर रहा। भाई तुम्हारे अंदर का इंसान भले तुम्हें इस महिला की मदद करने की इजाजत दे रहा हो, पर दोस्त जो वर्दी तुमने पहन रखी है ना, ये इजाजत नहीं देता कि तुम महिला को गोद में उठाने की हिमाकत करो। बहरहाल तुमने अपने मन की सुनी और महिला की मदद की, मैं तुम्हें सलाम करता हूं।
मित्रों, ब्लास्ट के अगले दिन जब मैने अखबारों में ये तस्वीर देखी तो अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदा हुआ और आपको भी होना चाहिए, सबसे ज्यादा शर्मिंदा तो बाबा रामदेव को होना चाहिए। वैसे मुझे भरोसा तो नहीं है कि राहुल गांधी शर्मिंदा होने को तैयार होगें, लेकिन मौका है कि इस तस्वीर को देखकर वो भी शर्मिंदा हो जाएं तो शायद उनका पाप भी कुछ कम हो जाए।
सुरक्षा जांच में लगे पुलिसकर्मी ने अगर किसी महिला के पर्स को चेक भर कर लिया तो देश में तथाकथित सामाजिक संगठन हाय तौबा करने लगते हैं। अरे ये क्या बात हुई, महिला को कैसे कोई पुरुष सिपाही छू सकता है। रामलीला मैदान में अनशनकारियों को हटाने गए पुलिसकर्मियों पर बाबा रामदेव खूब बरसे। उन्होंने सबसे पहले यही आरोप लगाया कि मैदान में महिलाएं भी मौजूद थीं, बिना महिला सिपाही के दिल्ली पुलिस यहां आ धमकी और महिलाओं के साथ बुरा सलूक किया। राहुल गांधी भी नोएडा के पास भट्टा पारसौल गांव में जमीन अधिग्रहण के विवाद को नया रंग देने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि गांव में छापेमारी के दौरान पुलिस वालों ने महिलाओं के साथ बलात्कार किया। पुलिस वालों पर ये आरोप हमेशा लगते रहे हैं। यहां सिर्फ एक बात बताना जरूरी समझता हूं कि बाबा रामदेव ने जब कहा कि पुलिस ने महिलाओं के साथ दुर्व्यहार किया और उन्होंने किसी एक का नाम तो बताया नहीं। ऐसे में रामलीला मैदान पहुंचे सभी पुलिसकर्मी अपने परिवार की नजर में बहुत छोटे हो जाते हैं। राहुल ने गांव में महिलाओं के साथ बलात्कार का आरोप लगाया तो यहां गए सिपाही अपने बीबी बच्चों की नजरों का सामना कैसे करते हैं, ये वही बता सकते हैं। हालाकि मैं ये दावा बिल्कुल नहीं कर रहा कि पुलिस वाले बहुत साफ सुथरे हैं, उन पर गलत आरोप लगाए जाते हैं। लेकिन पुलिस का जितना खराब चेहरा हम लोगों के दिमाग में है, मुझे लगता है कि अभी ये पुलिसकर्मी उतने खराब नहीं हैं। इसीलिए जब कभी ये अच्छा काम करें तो उसकी सराहना भी होनी चाहिए।
माल में घूमने आई महिलाओं को पुलिसकर्मी से सुरक्षा जांच कराने में आपत्ति है, एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच में भी आपत्ति है, मैं तो कहता हूं कि किसी भी जगह महिलाओं को पुरुष सिपाहियों से सुरक्षा जांच में कराने में बहुत दिक्कत होती है, लेकिन बहुमंजिला इमारतों में आग लगने पर जब फायरकर्मी आठवीं और दसवीं मंजिल पर पहुंचता है तो उसकी पीठ पर सवार होकर जान बचाने में किसी महिला को आपत्ति नहीं है।
इस तस्वीर के जरिए मैं आमंत्रित करता हूं तथाकथित महिला संगठनों को कि आएं और विरोध दर्ज कराएं कि ये सिपाही किसी महिला को गोद में लेकर कैसे एंबूलेंस तक जा सकता है। क्या इस सिपाही ने घायल महिला को मदद देने से पहले उसकी इजाजत ली है, उसके परिवार वालों से पूछा है। अगर नहीं तो ऐसा करने के लिए क्यों ना इसके खिलाफ कार्रवाई की जाए। महिला संगठन क्यों नहीं दिल्ली पुलिस कमिश्नर का घेराव करतीं। मित्रों पुलिस की जो तस्वीर हम पेश कर रहे हैं, इससे उनके परिवार पर क्या गुजरती है, शायद आप सब इससे वाकिफ नहीं है। खैर मैं किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता, मैं इस सिपाही को सलाम जरूर करना चाहता हूं और ये भी चाहता हूं कि इसे आप भी सलाम करें।

19 comments:

  1. वाकई...हमें ऐसे समय जज्बे को देखना चाहिए...

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  2. सही ढंग से तहेदिल से सलाम किया .... महिलाओं की या किसी की दोहरी नीति मेरी समझ में नहीं आती ... किसी में सरकार , पुरुष वर्ग ( जो मुखौटे में होता है) दोनों आते हैं .... न्याय कभी होता नहीं , सच कभी दिखता नहीं , और जिनके पास जज्बा है उनको देखकर गुजर जाना आम बात है , जिसे आपने लिखा ही है ...
    सच क्या है ? जो नज़र आए या जो कुछ हम अपनी सोच से निर्धारित कर लेते हैं ?....
    ....मैं यूँ हीं आपको नहीं पढ़ती .... मुझे सच अच्छा लगता है और आधे सच के कॉलम में आप पूरे सच की तस्वीर उकेर देते हैं ...
    वरना हर तरफ झूठ की चालें , शह और मात हैं - दम सबका घुटता है, पर कहता नहीं

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  3. हम अपनी जिन्दगी की इस दोहरी मानसिकता से हम कब छुटकारा पायेगे ...ये हम औरते भी नहीं जानतीं ....जहाँ अपने फायदे की बात हुई ...वहां सब अपना सा लगने लगता है ..नहीं तो सारा जहाँ दुश्मन है ......पता नहीं कब तक औरत ही औरत का शोषण करती रहेगी ....महिला संगठन वाली ...पता नहीं किस सोच के साथ नारेबजी में उतरती है ...? कौन उनको ऐसा करने पे मजबूर करता है ? ये तो वो ही जाने ?????

    सलाम है आपकी लेखनी और लेख को ....हर बार आप एक नया मुद्दा लेकर हम सबके बीच आते है ........आभार आपका

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  4. बहुत बढ़िया ||

    साधना में लगे रहो ||

    बधाई ||

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  5. उस सिपाही का कार्य अनुकरणीय,सराहनीय और स्तुत्य है।

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  6. हमें ऐसे नाजुक समय मॆं बाकी सब भूल कर मन की आवाज को सुनना चाहिए..सिपाही ने भी वही किया..इसी लिये उसका ये कार्य सराहनीय है...

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  7. वाह ह्रदय से नमन आपकी कलम को जो ऐसी सोंच को उभारा..अकसर ये मानसिकता संकरेपन को जन्म देती है जो बहुधा हमारे समाज में छाये हैं , और उस पर महिलाएं जो बिल्कुल ही स्वार्थी होती हैं इनको अपने मतलब और स्वार्थ sidhi के लिते हर रास्ता ठीक लगता है ,वो कहते हैं ना मतलब के यार ......

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  8. मदद करने से बड़ा कोई कार्य नहीं !

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  9. बहुत बढ़िया
    nothing is bad in helping

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  10. bahut badiya !
    ise jazbe ko salaam .

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  11. apke blog per pehlai baar ayi or isliye kuki aap mere blog per aye... ye hai poora sach... ab ek or sach ki policewalon per ye feature padh ker wakai achha laga... kisi bhi kshtr mei sarae log burae nahi hotae or sarae log achhae nahi hotae... police wlaon ki chavi bhi kuch aisi hi ban gayi hai... lekin jab bhi koi kahiin pper koi achha larya karae to hum sabhi ko usae protsan dena chahiyae...

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  12. सलाम करने योग्य कार्य।

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  13. aap ek sachche patrkar hai .pura sach to aap batlate hain aapko padh kar sach ke darshan hite hain.
    aapka dhnyavad
    saader
    rachana

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  14. यही तो मानवता है .....

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  15. सिपाही को सलाम और आपका आभार

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  16. sipahi se pahle wo ek insaan heinsaniyat bure aadmi me bhi hoti he .dukh me uske bhi aansu nikal aate he

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।