मैं जानता हूं कि ये लेख मेरे लिए आत्महत्या करने से कम नहीं है, क्योंकि इससे लोग नाराज हो सकते हैं, उन्हें लग सकता है कि ये लेख उनकी आलोचना करने के लिए लिखा गया है। लेकिन सच बताऊं इसमें किसी की आलोचना नहीं है। पांच छह महीनों में व्लाग पर जो कुछ देख रहा हूं, उसके बारे में ये मेरी व्यक्तिगत राय है। मिंत्रों मैं जो सोचता हूं, उसे अंजाम तक पहुंचाए बगैर चैन की नींद सो ही नहीं पाता हूं। इसलिए आज बात करुंगा ब्लागर्स की, जिसे मैं एक परिवार मानता हूं, इसलिए आप कह सकते हैं बात होगी पूरे ब्लाग परिवार की। "ब्लाग परिवार" के नाम से एक ब्लाग भी है, वो सभी लोग माफ करेंगे, क्योंकि हम जो बात कह रहे हैं वो किसी भी खास व्यक्ति, व्लाग या समूह के लिए नहीं है, बल्कि सभी के लिए है।
मैं बिना किसी भूमिका के इस बात की शुरुआत कर रहा हूं। वैसे तो शीर्षक से ही साफ है कि मैं क्या कहना चाहता हूं। जी हां ज्यादातर ब्लागर्स के लिए मेरी अब तक यही राय है कि तुम मुझे पंत कहो तो मैं तुम्हें निराला कहूंगा। भाई "गिव एंड टेक" कहीं से गलत नहीं है। लेकिन कई बार किसी भी लेख या रचना पर टिप्पणी देखता हूं तो हैरान हो जाता हूं। उसमें लेख के बारे में तो दो शब्द और लेखक की प्रशंसा कई पंक्तियों में। पहली नजर में तो ये अटपटा लगा, फिर मैने देखा कि जिस ब्लागर भाई ने लेखक की इतनी तारीफ की है, इसकी वजह क्या है। जब मैं उसके ब्लाग पर गया तो देखा कि उन्होंने तो सिर्फ कर्ज अदा किया है, क्योंकि ये टिप्पणी और भावनाओं का आदान प्रदान है।
कुछेक मंचों की चर्चा करना भी जरूरी है। जहां लोगों के ब्लाग के लिंक शामिल कर दिए जाते हैं और दूसरे ब्लागर्स को आमंत्रित किया जाता है कि आप इन्हें भी पढें। मेरा अपना मानना है कि ये बहुत अच्छा प्रयास है, कुछ लोग बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के नए लेखकों को मंच दे रहे हैं, यहां से उनके ब्लाग के लिंक्स बहुत सारे लोगों के बीच पहुंच जाती है। पर बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है इसमें ईमानदारी नहीं बरती जाती।
चर्चाकार पहले तो अपनी चर्चा करते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है। फिर साथी चर्चाकारों पर उनकी नजर जाती है, मुझे लगता है कि उसमें भी कोई बुराई नहीं है। फिर अपने शहर और प्रदेश को निपटाते निपटाते वो बुरी तरह थक चुके होते हैं, तब दूसरे लोगों की बारी आती है। ऐसे में शुरू में जिनकी बारी आ गई, उनकी तो बल्ले बल्ले हैं। बाद वालों का भगवान ही मालिक है। हां एक बात और किस ब्लागर की तस्वीर लगेगी, किसकी नहीं। इसका भी को निर्धारित मानदंड नहीं है। ये निजी और व्यक्तिगत संबंधों पर निर्भर है।
अब तो दुनिया बहुत आगे हो गई, वरना कुछ साल पहले आप किसी भी शहर में निकलें तो सिनेमा के पोस्टर दीवारों पर देखे जाते थे। लेकिन मित्रों पोस्टर में भले ही अमिताभ बच्चन क्यों ना हों इन्हें जगह कूडा करकट के आसपास की ही दीवारों पर मिलती थी। कुछ ऐसा ही ब्लागों में मैं दिखाई दे रहा है। किसकी कहां तस्वीर मिल जाएगी, कोई भरोसा नहीं। मित्रों माफ कीजिएगा एक मसाले का विज्ञापन याद आ रहा है, उसके मालिक अपने विज्ञापन में किसी माडल को तरजीह नहीं देते हैं। वो बुजुर्गवार खुद ही तरह तरह की मुद्रा में छाए रहते हैं। ऐसे ही कई लोगों को अक्सर ब्लागों पर भी देखता हूं।
मित्रों ब्लागों की चर्चा अच्छी बात हैं, हम जैसे नए लोगों को काफी प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन चर्चा को चमचागिरी से आगे लाने की जरूरत है। चर्चाकार सिर्फ लिंक्स लगाने का काम ना करें, जिस लिंक्स को वो शामिल कर रहे हैं, उसके बारे में अपनी राय भी लिखें, ये रचना क्यों उन्हें पसंद आई। बेहतर तो ये होगा कि जिस तरह से टीवी और समाचार पत्रों में फिल्मों की समीक्षा के साथ उन्हें ग्रेड दिया जाता है, उसी तरह का कुछ ग्रेड ब्लाग पर भी हो तो बेहतर है। लेकिन इससे चर्चा इतनी आसान नहीं रह जाएगी, चर्चाकारों को सभी लेख, कहानी, कविता को पढना होगा, क्योंकि ग्रेड भी देना होगा। इसके फायदे भी होंगे कि लोग कम से कम उन ब्लागों पर तो चले ही जाएंगे, जिन्हें अच्छे ग्रेड मिले होंगे।
अभी तो हालत ये है कि जिनके लिंक्स चर्चा में शामिल होते हैं, वो आकर अपना फर्ज अदा कर देते हैं। सुंदर लिंक्स, और मुझे भी शामिल करने के लिए शुक्रिया। शामिल करने के लिए शुक्रिया की बात तो समझ में आती है, लेकिन इतनी जल्दी सुंदर लिंक्स कैसे वो समझ जाते हैं, ये कम से कम मेरी समझ से परे है। मित्रों एक दिन एक चर्चा में 12 लोगों ने लिखा था कि बेहतर लिंक्स, सुंदर लिंक्स, बहुत अच्छे लिंक्स। बाद में मैने उस दिन की चर्चा में शामिल सभी लेखों, कविताओं और कहानियों को देखा तो चर्चा पर कमेंट करने वाले सभी 12 ब्लागर साथी कहीं नहीं दिखे। कुछ हमारे साथी "कट पेस्ट" के भी एक्सपर्ट हैं। कई बार होता है लेख और उसपर कमेंट देखता हूं, बहुत सुंदर कविता।
खैर, मुझे लगता है कि जो बात मैं कहना चाहता हूं, वो बात सभी तक पहुंच गई होगी। बडे और बुजुर्ग में इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन उन्हें भी पोस्टर मोह त्यागना होगा। वैसे मुझे उम्मीद कम है। वो इसलिए भी कम है कि समीक्षा करने वाले जो ब्लागर पहले अपनी छोटी तस्वीर लगाया करते थे, अब अपनी पूरी तस्वीर लगाने लगे हैं। मैं बडे ही विनम्रता से एक और बात कहना चाहता हूं कि एकाध जगह मुझे जाति विरादरी की भी बू आती है।
और हां यहां भी मैने तमाम बुजुर्गों को अन्ना के साथ खडे़ देखा है। ब्लाग पर भी खूब नारे लगे हैं, मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना, अब तो सारा देश है अन्ना। अन्ना को समर्थन देंने से बेहतर है कि लोग ईमानदारी का शपथ लें। चलिए मित्रों बंद करता हूं हम सभी घर बनाने की कोशिश करेंगे गिरोह नहीं।
महेंद्र जी..यह सब कुछ इस ब्लॉग जगत के लिए सालों से सुनते आ रहे हैं,२००७ से देख रही हूँ....कुछ बदला नहीं ..हाँ ,गुट ज़रूर टूटे बनते रहते हैं.
ReplyDeleteबहुत सी पोस्ट /झगड़े/बहसें इस विषय पर यहाँ हो चुकी हैं.टिप्पणी का कट- पेस्ट ..एक दूसरे की पीठ थपथपाना ..बिना पढ़े पोस्ट पर टिपिया देना..किसी की मृत्यु की खबर पर 'बहुत सुन्दर'लिख देना आदि -आदि सब कुछ 'ब्लोगिया पुरातन काल' से चला आ रहा है.
आप को शायद मालूम नहीं होगा इसी गुटबाजी आदि के चलते परेशान हो कर दो बहुत अच्छे अग्रीग्रेटर 'ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत 'बंद हो चुके हैं.
नए ब्लोगर इन सब से आहत होते हैं इसमें कोई दो राय नहीं.
महेंद्र जी आपकी इस पोस्ट को पढने के बाद के बाद मै खुद को भी इस का हिस्सा मानती हूँ ....बहुत हद तक आपकी बात में सच्चाई है ....इस आदान प्रदान की प्रक्रिया से हम सभी ब्लोगर झूझ रहे हैं ...पर कोई कुछ कहें नहीं सकता ....ऐसा लगता है की आवाज़ उठाने पर ....हमको ब्लोगर परिवार से निष्काषित कर दिया जायेगा ....आप बता सकते है कि...इस का सीधा सा कोई रास्ता है ...
ReplyDeleteहम सभी घर बनाने की कोशिश करेंगे गिरोह नहीं।|
ReplyDeleteआँख खोलने वाला लेख ||
एक-एक पंक्ति आग
जाग चर्चाकर जाग |
नए ब्लोगर्स को जोड़ -
मत छोड़ मत भाग ||
आपकी कलम को द्रोणाचार्य ने वाण में तब्दील कर दिया है ... जाने कितनी मछलियों के आँख भेद डाले ....
ReplyDeleteजरुर महेंद्र भाई ||
ReplyDeleteलगा रहता हूँ
हमेशा सुधार करने की कोशिश में ||
बधाई |
सत्य
बिना लाग-लपेट के |
हमे अगर कोई रचना अच्छी लगती है तो बगैर बदले के उस पर टिप्पणी कर देते हैं अन्यथा नहीं करते हैं ,थोथी तारीफ पसंद नहीं करते हैं। वैसे आपका लिखना तथ्यपरक है ,यही अनुभव मे आ रहा है। रचना पर टिप्पणी करने का मतलब है उसे पूरा पढ़ना और समझना पड़ेगा। लोग भागमभाग मे रहते हैं ,दिमाग खर्च ही नहीं करना चाहते। मेरे राय मे आपके सुझावों पर अमल किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteऔर हां यहां भी मैने तमाम बुजुर्गों को अन्ना के साथ खडे़ देखा है। ब्लाग पर भी खूब नारे लगे हैं, मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना, अब तो सारा देश है अन्ना। अन्ना को समर्थन देंने से बेहतर है कि लोग ईमानदारी का शपथ लें। चलिए मित्रों बंद करता हूं हम सभी घर बनाने की कोशिश करेंगे गिरोह नहीं।
ReplyDeleteआपको अन्ना से इतनी एलर्जी क्यूँ है ?
क्या अन्ना को समर्थन करना बेईमानी है ?
मैं आपकी इन बातों से सहमत हूँ कि लोग ईमानदार की शपथ लें और ईमानदारी का अनुकरण करने की कोशिश भी करें.तथा
हम सब घर बंनाने की कोशिश करें ,गिरोह नहीं.
आपका विवेचन सार्थक और विचारणीय है.
आभार.
धीरे धीरे गुणवत्ता भी छन कर आयेगी।
ReplyDeleteतुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हें निराला.....
ReplyDelete----
:) आपने तो पूरा का पूरा सच कह डाला आज ..... हाँ यही स्थिति है जो दुखद भी है :(
बिलकुल सही कह रहे हैं आप ये तो होना ही चाहिए टिपण्णी तो आलेख या कविता पर ही होनी चाहिए.
ReplyDeleteआजकल ब्लॉग लेखन एक फैशन की तरह है जिसमें गंभीरता और जिम्मेदारी कम ही देखने को मिलती है। अक्सर ये देखा गया है कि लोग कहते हैं कि आपको पता है कि मैंने फलाना विषय पर एक बढ़िया लेख लिखा है अपने ब्लॉग पर। आप उसे जरूर पढ़ें। इसमें कोई बुराई नहीं। लिखना सबका हक है। लेकिन कम से कम लिखने के दौरान इस बात का खास ख्याल जरूर रखा जाना चाहिए कि जिस भी विषय से संबिधित लेख लिखा जा रहा है उसमें गंभीरता हो स्थूलता नहीं। और जो लोग उस ब्लॉग पर टिप्पणी कर रहें हैं अगर वो टिप्पणी लेख से संबधित हो तो चर्चा आगो बढ़ाने में मदद मिलती है और चर्चा भी एक सार्थक नतीजे पर पहुंचती है।
ReplyDeleteमहेंद्र जी.मैं तो इस ब्लांग की दुनिया में नई हूँ..यहाँ तो बहुत अनुभवी विद्वान और गुणीजन बैठे हैं.मै तो आप सब को देख और पढ़ कर सीख रही हूँ. मेरी तो यही पाठ्शाला है इस हिसाब से मै अभी सिर्फ पहली कक्षा की विद्यार्थी हूँ.....जैसा पाठ मिलेगा वही सीखूँगी...इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नही...वैसे मै प्रवीण पाण्डे जी की बात से सहमत हूँ.'धीरे धीरे गुणवत्ता भी छन कर आयेगी।'...वैसे आप सच कह कर सब की आँखे खोल रहे हैं....
ReplyDeleteaap koi mudda khojiyae aur us par likhna shuru kijiyae
ReplyDeletetippniyon aur charcha ki chinta naa karey
aap ke paas blog kae rup me ek maadhyam haen jo aap ki baat ko jagah jagah pahuchaa saktaa haen
yae aabhasi duniya haen yahaan parivaar jo log banaa rahey haen wo galat kar rahae haen
blog parivaar banaanae sae hi samsyaa haen kyuki is ki vajah sae riyal duniya ki tarah sabka jhukaav apnae gut ki taraf hi hotaa haen
aur jyadaa padhiyae shuru mae taaki aap ko pataa chalae ki ab tak kehaa kyaa kehaa jaa chukaa haen aur kahin aap usko mehaj repeat hi to nahin kar rahey haen
मित्रों,
ReplyDeleteइस विचार को यहां दर्ज कराने के दौरान मुझे लगा था कि इस पर मुझे लोगों की तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना होगा। लेकिन जिस तरह से आप सभी ने समर्थन दिया है, उससे लगता है कि सब लोग ब्लाग परिवार को बेहतर करना चाहते हैं।
उन्हें भी लगता है कि हां सभी के साथ सामान व्यवहार होना चाहिए। तो सबसे पहले चर्चाकारों ब्लाग की चर्चा के दौरान भेदभाव बंद कर दें।
badiya hai :-)
ReplyDeleteसर जी,
ReplyDeleteकुछ सहमत हूँ और कुछ असहमत हूँ! वैसे पोस्ट का शीर्षक बेहद पसंद आया! आपने जो आईना दिखाने की कोशिश की है
उसके लिए आपका आभार!
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सहमत हूँ आपके सवालातों से, पर कुछ प्रश्न मेरे भी मन में आ रहे ......जैसे बहुत से ब्लोगर्स अपनी व्यस्तम ज़िन्दगी से समय निकालकर किसी के पोस्ट पढ़ते हैं पर वो पोस्ट लिखनेवाले को सही या गलत विचार हैं उस पोस्ट में नहीं अवगत करा पाते शायद उनका डर की वो ऐसा बोल कर किसी बवाल में ना पड़ जाएँ क्योंकि बहुत से स्थानों में ऐसा हो जाता है लोग पड़ना नहीं चाहते झमेलों में, दूसरी बात ये भी हो सकती है की लिखनेवाले को ही ख़ुद बुरा ना लगे उसके पोस्ट को वाहवाही की जगह खामियां गिनानेवाले मिले,क्योंकि आज के दौर में बहुत कम लोग अपनी प्रशंशा की जगह अपनी कमियां सुनना चहते हैं. .और जहाँ तक कॉपी पेस्ट की बात है तो जहाँ बड़े बड़े गुरुजनों के कमेंट्स जब अच्छे होते हैं तो लोग अनुकरण कर लेते हैं अपनी समय बचा कर या अनुभव की कमी की वजह हो सकती है ऐसे में.. मेरे विचार आहात करनेवाले उदेश्य से नहीं ये मेरा अपना मानना है ...
ReplyDeleteरजनी मल्होत्रा अय्यर जी से सहमत हूँ
Deleteमहेंद्र जी, ब्लॉग जगत भी शायद हमारे हिन्दुस्तानी परम्परा का निर्वाह कर रहा है ... इसलिए ५-६ साल हो गए ... ३०००० से ऊपर हिंदी ब्लॉग हो गए पर जात-पात, धर्म-मज़हब, प्रांतीयता से ऊपर नहीं उठ पाए ... हर जगह गुटबाजी दिखती है, चाहे उसका आधार कुछ भी हो ...आपका लेख बढ़िया है ... आपकी सभी बातों से सहमत हूँ ... खासकर चर्चाकारों के बारे में आपका राय सही है ... अपने गुट के लोगों के लिंक जोड़ना कोई चर्चा नहीं है ... ब्लॉग और पोस्ट की गुणबत्ता सबसे ज्यादा महत्व रखती है ...
ReplyDeleteसही कह रहे हैं आप सहमत हूँ
ReplyDeleteरजनी मल्होत्रा अय्यर जी से सहमत हूँ
ReplyDeleteएकला चलो रे...
ReplyDeleteYe kahawat tum mujhe panth kaho me tumhe nirala gagar me sagar bharne jaisi hai
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