Tuesday, 13 September 2011

मोटापे के दुश्मन, मेरे दुश्मन...




( चेतावनी.. अगर आप कमजोर दिल के हैं और किसी तरह की बीमारी से पीड़ित हैं तो प्लीज इस लेख से दूर रहें। अगर आप मोटे हैं और इस मोटापे को बरकरार रखना चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। हां एक बात और अगर आपको ईश्वर में आस्था नहीं है तो इस लेख को पढने का कोई फायदा नहीं होगा। यह लेख सच्ची घटनाओं पर आधारित है, हां लेकिन इसके पात्र जरूर काल्पनिक हैं। )

सच सुनना है, तो सुनिये, मैं अपने मोटापे के दुश्मनों को अपना दुश्मन मानता हूं। पता नहीं क्या बात है, मेरे मोटापे से मुझसे ज्यादा परेशानी मेरे दोस्त को ही रही है। उनकी बात की शुरुआत भी मोटापे से होती है और खत्म भी इसी विषय से। यानि मिलते ही पहला सवाल आज सुबह मार्निंग वाक पर गए थे, जबाब, नहीं जा पाया। आलसी हैं आप, आपको खराब नहीं लग रहा है, पेट का क्षेत्रफल लगातार बढ रहा है। जी नहीं, मुझे तो इससे बिल्कुल परेशानी नहीं है। दोस्त के बातचीत का अंदाज बदल जाता है, आपको क्यों होगी। अस्पताल जाएंगे, तो वापस नहीं आ पाएंगे। खैर जितनी लापरवाही हो चुकी है, ठीक है, अब रास्ते पर आ जाइये और कल से मार्निंग वाक नियमित होना चाहिए। इस सलाह से बात खत्म होती है।

अब देखिए, मेरा एक और दोस्त है, बेचारे का पहने हुए सभी कपडों के साथ कुल वजन 42 किलो है। दुबला पतला होने पर भी लोग उसे जीने नहीं दे रहे। मैं देखता हूं कि अक्सर इस मित्र को लोग  सलाह देते हैं कि भाई अगर ट्रेन से सफर करो, तो तुम यात्री टिकट ना लिया करो, पार्सल की तरह बुक होकर जाया करो, आधे किराए में पहुंच जाओगे। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि हम दोनों अगर एक साथ किसी पार्टी में चले गए तो दोनों से एक ही सवाल होता है, अरे ये क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं ? मुझे लगता है कि जो मै कहना चाहता हूं, आप थोडा बहुत तो समझ गए होंगे।

मेरी बडी बहन हैं, रोजाना सुबह सुबह बाबा रामदेव की सीडी लगाकर योग करती हैं। ना जाने कौन कौन सी सब्जियों के जूस पी जाती है उनके यहां। एक बहन ने योग शुरू कर परिवार में ऐसा माहौल बना दिया कि  ज्यादातर महिला सदस्य योग करने लगीं। हालांकि सच्चाई ये है उनका बजन 78 किलो से एक किलो भी कम नहीं हुआ, लेकिन हां आत्मसंतोष बहुत ज्यादा है। मैने एक दिन पूछा, तुम ये सब क्यों करती हो। "आराम" से तुम्हारी कोई दुश्मनी है। क्यों छुट्टी वाले दिन भी सुबह सुबह उठकर उछल कूद करती हो। बस बिगड गईं, आपे से बाहर, तुम्हें अभी कोई बात समझ में नहीं आएगी, जब डाक्टर के चक्कर में पडोगे तब समझ में आएगा।

मित्रों मैं ईश्वरवादी हूं, मुझे ईश्वर पर पूरा भरोसा है। विद्वानों का कहना है कि भगवान ने पैदा होने के साथ ही हर आदमी की सांसे तय कर दी हैं। जितनी सांसे तय हैं, आप उससे ज्यादा नहीं ले सकते और ना ही उससे कम। अब महत्वपूर्ण सवाल ये है कि अगर आप जल्दी-जल्दी सांस लेगें तो जल्दी-जल्दी सांस छोडेंगे भी। जाहिर है आप कम समय में ही अपनी पूरी सांसे ले लेगें। अगर आप आराम-आराम से सांस लेगें, तो आराम-आराम से छोडेंगे। जाहिर है लंबे समय तक आपकी सांस चलती रहेगी। फिर क्यों बेवजह की जल्दबाजी कर रहे हैं। पर मेरी बात किसी को समझ में आती ही नहीं। अब देखिए ना घोडा कितना मेहनत करता है, लेकिन सिर्फ 20-22 साल ही जिंदा रहता है, अजगर पडा रहता है और सौ साल जिंदा रहता है। अब लोगों को तय करना है कि उन्हें लंबा जीवन जीना है या फिर छोटा। भाई लंबा जीना है तो आपको आराम-आराम से ही सांस लेना चाहिए।

18 comments:

  1. ha ha ha... likhne ke liye badiya hai mahendra ji... par morning walk zaroori hai :-P

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  2. अब महत्वपूर्ण सवाल ये है कि अगर आप जल्दी-जल्दी सांस लेगें तो जल्दी-जल्दी सांस छोडेंगे भी। जाहिर है आप कम समय में ही अपनी पूरी सांसे ले लेगें। अगर आप आराम-आराम से सांस लेगें, तो आराम-आराम से छोडेंगे। जाहिर है लंबे समय तक आपकी सांस चलती रहेगी।

    साँसे दी हैं ईश्वर ने या समय यह अभी तक तय नहीं है .....फिर अभी आपकी बातें विचारणीय है ....आपका आभार

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  3. हा हा हा हा हा हा .......इस तरह अगल सोच कर लिखना ....अच्छा लगा ...पढने में भी मज़ा आया ....हम भी इसी रास्ते के मुसाफिर है दोस्त

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  4. ab ise sahi mane ya galat par dil bahlane ko ye khayal achcha hai mahendra ji

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  5. घोडा चाबै घास-तृण, अजगर लीलै जीव,
    ढाई घर ये नापता, वो लागै निर्जीव |

    वो लागै निर्जीव, सरिस सरकारी अफसर,
    करता घंटा काम, खाय पर सबकुछ भरकर |

    सज्जन का व्यवहार, जिए चाहे वो थोडा,
    अजगर सा पर नहीं, रहे वो बनकर घोडा ||

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  6. उनको भी अपने मन की कर लेने दो।

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  7. घोडा चाबै घास-तृण, अजगर लीलै जीव,
    ढाई घर ये नापता, वो लागै निर्जीव |



    वो लागै निर्जीव, सरिस सरकारी अफसर,
    करता घंटा काम, खाय पर सबकुछ भरकर |



    कर उद्यम-सुविचार, जिओ चाहे कुछ थोडा,

    अजगर सा पर नहीं, जिओ रे बनकर घोडा||



    Vespucci Quarter Horse Fancy Raised Bridle



    Indian Python Snake: Indian Python Snake: Indian Python Snake: Indian ...

    कुंडली की पूंछ --

    अजगर जीता सौ बरस, घोडा बाइस-बीस |

    घोडा हरदम बीस है, अजगर है उन्नीस ||

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  8. ये सच है कि हमारे पास गिनी चुनी साँसे है..जितनी सासे उतना जीवन...मैं फिर भी. रविकर जी की कुंडली से सहमत हूँ....

    अजगर जीता सौ बरस, घोडा बाइस-बीस |

    घोडा हरदम बीस है, अजगर है उन्नीस ||

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!

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  10. Achchha laga aapka lekh gudgudane vaalaa..

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  11. कमाल का अवलोकन और कथन है

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  12. बहुत खूब

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  13. बहुत सारे मित्रों ने मुझे मेल और एसएमएस करके इस लेख के बारे में कई सवाल उठाए हैं। मित्रों मैं सभी को साफ कर देना चाहता हूं कि इसे लेख कहने के बजाए अगर एक व्यंग के तौर पर लें, तो ज्यादा बेहतर है। वैसे भी स्वास्थ्य के लिए मार्निंग वाक और व्यायाम बहुत जरूरी है। जितना संभव हो सके, सभी को जरूर करना चाहिए।
    ये सिर्फ एक निठल्ला चिंतन है, इसे पढे और भूल जाएं।

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  14. महेन्द्रजी कहीं ये सब मॉर्निंग वॉक से बचने की कवायद तो नहीं...
    :)

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  15. मोटे होने के बहुत फ़ाएदे है हा हा हा मे तो आपसे सहमत हुं भाइ। धन्यवाद

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  16. रोचक ,मजेदार, बहुत ही अच्छा लगा पोस्ट..

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  17. हाहहाहाहाहहाहा लेकिन टहलना तो चाहिए ही।

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।