राजनीति में पूरी तरह फेल राहुल गांधी का कद जिस तरह कांग्रेस बढ़ा रही है, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस को काम पर नहीं चमत्कार पर यकीन है, उसे लगता है कि चुनाव में अभी डेढ साल बाकी है, तब तक कहां लोगों को सरकार की चोरी-चकारी याद रहेगी। ये सोचते हैं कि देशवासी राहुल गांधी का चेहरा देखेंगे और कांग्रेस के हक में वोट करेंगे। अगर सरकार को काम पर थोड़ा भी यकीन होता तो पार्टी सबसे पहले केंद्र सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के धब्बे को धोने का प्रयास करती। मुझे ये कहने में कत्तई संकोच नहीं है केंद्र की मौजूदा सरकार आजाद हिंदुस्तान की सबसे भ्रष्ट सरकार है। बात यहीं खत्म नहीं होती, मैं ये भी कह सकता हूं कि अब तक देश के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उनमें मनमोहन सिह सबसे घटिया, घिनौने, असफल और मजबूर प्रधानमंत्री साबित हुए हैं। सच तो ये है कि मनमोहन सिंह आज तक खुद ही स्वीकार ही नहीं कर पाए हैं कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें तो लगता है कि सोनियां गांधी ने उनको प्रधानमंत्री का कुछ काम सौंपा है, जिसे वो निभा रहे हैं। यही वजह है कि मनमोहन सिंह देश के प्रति नही 10 जनपथ के प्रति ज्यादा वफादार है। अगर मुझे इस सरकार की समीक्षा करनी हो तो मैं सौ बार एक ही बात दुहराऊंगा कि ये हैं "अलीबाबा 40 चोर" ।
आज कुछ खरी-खरी बात करने का मन है। क्या कांग्रेस के नेता देश को इस बात का जवाब दे सकते हैं कि अगर प्रणव मुखर्जी देश के राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार रहे तो वो प्रधानमंत्री के लिए सोनिया गांधी की पसंद क्यों नहीं बन पाए ? दरअसल सच्चाई ये है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिंहराव जब देश का नेतृत्व कर रहे थे तो 7 रेसकोर्स यानि प्रधानमंत्री निवास ही कांग्रेस नेताओं का मक्का, मदीना था। स्व राव ने कभी 10 जनपथ को उभरने का मौका ही नहीं दिया। इसकी मुख्य वजह उनमें नेतृत्व की क्षमता थी वो राजनीति के अच्छे खिलाड़ियों में शुमार थे। खुद चुनाव लड़ते थे और उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ा जाता था। वो बखूबी जानते थे कि प्रधानमंत्री आवास की क्या गरिमा है और इस गरिमा को कैसे बरकरार रखा जा सकता है। स्व. प्रधानमंत्री को पता था कि अगर देश में एक मजबूत सरकार चलानी है तो सत्ता का केंद्र प्रधानमंत्री आवास ही होना चाहिए। अगर देश का प्रधानमंत्री पूरे दिन 10 जनपथ पर ही मत्था टेकता रहा तो सोनिया, राहुल, प्रियंका और राबर्ट ( उनके दोनों बच्चों ) का विश्वास तो जीता जा सकता है, पर देश का विश्वास हासिल करना मुश्किल होगा।
स्व. प्रधानमंत्री राव की सख्त तेवर से 10 जनपथ काफी समय तक एक चाहरदीवारी मे कैद रहा। लेकिन बाद में बदले सियासी घटनाक्रम की वजह से पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथ में आई। अब गांधी परिवार सतर्क हो गया। मुझे लगता है कि राव की चाल देखकर ही सोनिया गांधी ने तय कर लिया कि अब आगे से किसी मजबूत नेता को प्रधानमंत्री बनाने की गल्ती नहीं दुहराई जाएगी। यही वजह है कि पार्टी और सरकार दोनो के संकटमोचक रहे वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी की योग्यता का उपहास उड़ाते हुए उन्हें कभी प्रधानमंत्री बनाने के बारे में नहीं सोचा गया। सोनिया गांधी को पता है कि मनमोहन सिंह कम से कम ऐसे प्रधानमंत्री होंगे जो 7 रेसकोर्स में रहते हुए भी 10 जनपथ के प्रति ज्यादा वफादार होंगे। अगर मनमोहन सिंह को ये लगता है कि वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे हैं, अच्छे नौकरशाह रहे है इसलिए प्रधानमंत्री बने हैं तो ये उनकी गलतफहमी हैं। वैसे भी मेरा तो यही मानना है कि वो प्रधानमंत्री नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के केयर टेकर हैं, यानि राहुल गांधी के तैयार होने तक वो ये कामकाज देख रहे हैं। केयर टेकर को कभी ये अधिकार नहीं होता कि वो खुद से कोई निर्णय करे।
बहरहाल मनमोहन सिंह की अगुवाई में भ्रष्ट मंत्रियों की खूब चांदी है। ज्यादातर मंत्रियों ने ठीक ठाक खजाना भर लिया है। कई मंत्रियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। कांग्रेस के लिए अच्छा होता कि मनमोहन सिंह ने आठ साल खूब मजे कर लिए, अब उन्हीं के हाथ से आरोपी और दागी मंत्रियों को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाती। इससे पार्टी अपनी खोई प्रतिष्ठा कुछ हद तक हासिल करने में कामयाब होती। लेकिन पार्टी ने इस काम को कभी तवज्जो ही नहीं दिया। उसे आज भी चमत्कार पर भरोसा है। पार्टी को लगता है कि राहुल गांधी को आगे करके चुनाव लड़ा जाएगा तो देश की जनता भ्रष्टाचार को भूल जाएगी। जबकि मेरा मानना है कि राहुल गांधी बोले तो सिर्फ पोंs पोंs, पोंपोंss पोंssss भर हैं। इससे ज्यादा उनकी आज कोई राजनीतिक पहचान नहीं है।
आप सब जानते हैं कि किसी को तरक्की देने का सामान्य नियम है उसका परफारमेंस। लेकिन राहुल गांधी के मामले में इस नियम को नजरअंदाज कर दिया गया। अगर राहुल गांधी की समीक्षा की जाए तो उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु के चुनाव भी कांग्रेस ने राहुल गांधी को आगे रख कर लड़ा था। लेकिन यहां का परिणाम क्या रहा ? सब जानते हैं। एक के बाद एक चुनाव में फेल हुए राहुल गांधी को अब 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चयन को बनी समिति की अगुवाई सौंपी गई है। अमूल बेबी राहुल गांधी क्या कर पाएंगे, ये तो आगे देखा जाएगा। लेकिन मैं अगर कहूं कि राहुल का ही नहीं बल्कि गांधी परिवार का जादू खत्म हो चुका है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। अब देखिए ना यूपी के विधानसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी जहां से सोनिया और राहुल सांसद हैं, वहां भी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। जो नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता का भरोसा खो चुका हो वो भला देश की जनता का भरोसा कैसे जीत सकता है।
मुझे हैरानी होती है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भविष्य का प्रधानमंत्री बताते हैं। इसकी ठोस वजह भी है। आपको याद होगा कि सोनिया गांधी अस्वस्थ होने पर इलाज के लिए महीने भर से ज्यादा समय के लिए विदेश गई हुई थीं। उनकी अनुपस्थिति मे एक टीम बनाई गई, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल थे। इस टीम को जिम्मेदारी दी गई थी कि वो महत्वपूर्ण विषयों पर फैसला लेगी। इसी दौरान अन्ना का आंदोलन चल रहा था और केंद्र सरकार घुटनों पर थी। सरकार के सामने अन्ना के अनशन को समाप्त कराने की गंभीर चुनौती थी। 12 दिन से ज्यादा हो गए थे अन्ना के अनशन को, डाक्टर सलाह दे रहे थे कि अनशन खत्म होना चाहिए, क्योंकि अन्ना कि तवियत बिगड़ रही है। देश की जनता भी गुस्से से उबल रही थी। हम कह सकते हैं कि देश के सामने गंभीर चुनौती थी, लेकिन अमूल बेबी राहुल गांधी पूरे घटनाक्रम से ही गायब रहे।
अक्सर देखा गया है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर गांधी परिवार पलायन कर जाता है। कोई भी खुल कर सामने नहीं आता है। हां अच्छा-अच्छा गप और कड़ुवा कड़ुवा थू करने में इस परिवार का कोई जवाब नहीं। बहरहाल मेरा मानना है कि राहुल को देश की जिम्मेदारी देने से पहले उन्हें एक परिवार की जिम्मेदारी दी जाए, देखा जाना चाहिए कि वो एक खुशहाल परिवार चला पाते हैं या नहीं, उसके बाद तो काफी वक्त है, देश की भी जिम्मेदारी संभाल लें। क्योकि देशवासियों का अनुभव बहुत खराब रहा है। टू जी स्पेक्ट्रम, कामनवेल्थ गेम, आदर्श सोसायटी, कोयला ब्लाक आवंटन जैसे तमाम भ्रष्टाचार के आरोपों पर गांधी परिवार की चुप्पी आज तक किसी के भी समझ मे नहीं आई।
राहुल ने विदर्भ की कलावती का मामला उठाकर संसद और देश में खूब वाहवाही लूटी। बेचारी वही कलावती दिल्ली आई और राहुल से मिलना चाही तो उसे मिलने का वक्त नहीं मिला। राहुल ने दलितों के यहां भोजन किया और उनकी टूटी चारपाई पर रात भी गुजार दी। लेकिन कभी किसी दलित को अपने घर भोजन कराने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। बहरहाल राहुल आपके प्रमोशन पर मैं भी आपको मुबारकबाद देता हूं, इस उम्मीद से कि अब आप दिखावटी और खबर बनने वाले कामों से दूर रह कर कुछ तो ऐसा करेंगे, जिससे देश के लोग राहत महसूस कर सकें। वैसे आपकी परीक्षा तो इसी हफ्ते हो जाएगी, संसद का सत्र शुरू होने वाला है, एफडीआई के मसले पर सरकार और विपक्ष आमने सामने है, अब ये मत कह दीजिएगा कि ये एफडीआई क्या है ? संसद का पिछला सत्र विपक्ष के हंगामे की वजह से एक दिन भी नहीं चल पाया, देखते हैं आप क्या कुछ हस्तक्षेप करते हैं, जिससे ये सत्र सुचारू रूप से चल सके। अब ऐसा मत कीजिएगा कि सत्र के दौरान छुट्टी लेकर कहीं घूमने निकल जाएं !
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखें नया लेख.. टीवी न्यूज : निकालते रहो टमाटर से हनुमान !
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/11/blog-post_18.html#comment-form
congress janti hai ab uski sakh mitti me mil chuki hai...ab vah sirf chamtkaar ki hi soch sakti hai..lekin koi chamatkaar hoga isme sandeh hai..lekin dekhe shayd koi chamtkaar ho jaye...
ReplyDeletesateek bat
हां क्यों नहीं, उम्मीद पर दुनिया कायम हैं...
Deletekartal dhvni se swagat yogy prastuti
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबोल बोलता बाल है, या भैया *बोल्लाह ।
ReplyDeleteमिला बुलावा है हमें, बोलवाना है वाह ।।
( बोलवाना/बोल्लाह की एक मात्रा कम करके बोलना है )
*एक प्रकार का घोडा ।।
शायद शादी वाला ही -
हाहाहहा... जी बहुत बढिया
DeleteMAHENDRA JI -THIS TIME YOUR POST'S TITLE IS VERY POOR .ONE MORE THING I JUST WANT TO SAY -THIS WAS SONIA JI WHO HAS GIVEN CHANCE MR.NARSIMHA RAO .
ReplyDeleteकोई बात नहीं, मुझे पता है आपकी राजनीतिक सोच...
Deleteअच्छा हो सार्वजनिक मंच पर टिप्पणी के पहले अपनी जानकारी दुरुस्त कर लेतीं।
इसे भी अवश्य देखें!
ReplyDeleteचर्चामंच पर एक पोस्ट का लिंक देने से कुछ फ़िरकापरस्तों नें समस्त चर्चाकारों के ऊपर मूढमति और न जाने क्या क्या होने का आरोप लगाकर वह लिंक हटवा दिया तथा अतिनिम्न कोटि की टिप्पणियों से नवाज़ा आदरणीय ग़ाफ़िल जी को हम उस आलेख का लिंक तथा उन तथाकथित हिन्दूवादियों की टिप्पणयों यहां पोस्ट कर रहे हैं आप सभी से अपेक्षा है कि उस लिंक को भी पढ़ें जिस पर इन्होंने विवाद पैदा किया और इनकी प्रतिक्रियायें भी पढ़ें फिर अपनी ईमानदार प्रतिक्रिया दें कि कौन क्या है? सादर -रविकर
राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है
जरूर
Deleteमहेंद्र भाई इन चर्च के एजेंटो से कैसी उम्मीद रखतें हैं आप .देख लेना एक दिन ये दुम दबा के भागेंगे इटली की ओर और वह वक्त बहुत दूर नहीं है .एक बाला साहब गए पूरा मुंबई शहर रुक गया ये लोग किराए पे
ReplyDeleteलाये हुए लोग नहीं थे
और तो और हमारे नेवी नगर के भी सब क्रायक्रम रद्द हो गए .आज संगीत संध्या का आयोजन था जो निलंबित कर दिया गया .दिल्ली में आज ऐसे ऐसे नेता बैठे हैं जिन्हें कंधा देने वाले चार लोग भी
नहीं मिलेंगे .इस मंद मती की तो औकात ही क्या है .कोंग्रेस की लुटिया डुबोने के लिए तो एक दिग्विजय काफी थे -राम मिलाई जोड़ी एक दिग्विजय एक मंद मती .आपके विश्लेषण से सहमत .मोहन
हमारे मनमोहना पहले प्रधान मंत्री हैं -जो काग भगौड़ा /क्रो स्केयर बार /पूडल /अंडर अचीवर आदि संबोधनों से नवाजे गए .दादा को राष्ट्र पति भवन में घुसा दिया अच्छा ही हुआ बाहर होते तो
काजल की कोठरी में होते .ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है .कोंग्रेस को नेस्तनाबूद करने के लिए मंदमती का होना ज़रूरी है .
कभी कभी आप मेरी बात से सहमत होते हैं..
ReplyDeleteचलिए कभी कभी ही सही..
काँग्रेस के साथ साथ राहुल गाँधी का अभी समय तो खराब है ही और आने वाला समय और भी बहुत खराब आने वाला है ... फ्लॉप शो साबित हुआ सब कुछ
ReplyDeleteजी आपने बिल्कुल सही कहा..
Deleteआभार