मैं अमेरिका की नीतियों से इत्तेफाक नहीं रखता हूं, खासतौर पर उसकी विदेश और आर्थिक नीतियों का तो मैं सख्त विरोधी हूं। इसके बाद भी मैं अमेरिकियों की देश के प्रति समर्पण और उनकी राष्ट्रभावना का कायल हूं। भारत में मतों की गणना होती है तो राजनीतिक दलों के कुछ चंपू ही मतगणना के स्थान पर मौजूद होते हैं, ऐसा लगता है कि यहां आम आदमी को पूरी चुनावी प्रक्रिया से कोई लेना देना नहीं है। भारत में पूर्वाह्नन 11.30 के करीब जब टीवी पर खबर आई की ओबामा ने जीत के लिए जरूरी इलेक्टोरल वोट 270 का आंकड़ा प्राप्त कर लिया है, उसी समय हम सब ने देखा कि अमेरिका के किसी एक शहर में नहीं बल्कि पूरा अमेरिका सड़कों पर आ गया। आपको पता होना चाहिए कि जब यहां दिन के 12 बज रहे थे तो वहां रात का लगभग 2 बजा था। ये जानकार तो और भी हैरानी होगी कि शिकागो में इतनी ज्यादा ठंड है कि वहां तापमान माइनस में चल रहा है। इसके बाद भी अमेरिकियों के उत्साह में कोई कमी नहीं थी।
मेरे कुछ मित्र अमेरिका में हैं, उनसे चुनाव को लेकर कुछ बातें हो रही थी। मैने जानना चाहा कि आखिर ऐसा क्या रहा बराक ओबामा में कि उन्हें दोबारा जीत मिली। जीत भी ऐसी जिसकी उम्मीद बहुत कम बताई जा रही थी। मैने इस बात का खासतौर पर जिक्र किया कि पिछले दो तीन सालों में मंदी की वजह से अमेरिका में नौकरी कम हुई है। ओबामा प्रशासन के प्रति वहां युवाओं में गुस्सा भी है। इन सबके बाद भी जीत और वो भी ऐतिहासिक जीत मिली। मित्र ने कहा कि भारत और अमेरिका में यही बुनियादी अंतर है। यहां लोगों के लिए देश पहले है वो खुद बाद में हैं। बराक ओबामा की सबसे बड़ी कामयाबी यही रही है कि उन्होंने पाकिस्तान में छिपे आतंकवादी सरगना ओसामा बिन लादेन को उसी के ठिकाने पर जाकर मार गिराया। ओसामा को मार गिराने के बाद अमेरिका में ओबामा का कद और उनकी उपलब्धियों का ग्राफ बिल्कुल ऊपर पहुंच गया। जिस दिन ओसामा को अमेरिकी फौज ने मारा, उस दिन सिर्फ अमेरिकी प्रशासन ने नहीं बल्कि पूरा देश जश्न में डूबा था। सच तो ये है ओबामा की दूसरी जीत पर उसी दिन अमेरिकियों ने मुहर लगा दी।
मित्र की बात सुनकर मैं कुछ देऱ खामोश रह गया। अमेरिका और अपने नेताओं को एक तराजू पर तौलने लगा। सच बताऊं शर्म आने लगी अपने नेताओं का चरित्र देख कर। बताइये अमेरिका ने देश पर हमला करने वाले ओसामा बिन लादेन को दूसरे देश में जाकर मार गिराया और हम... । संसद पर हमले के मास्टर मांइंड अफजल गुरू को फांसी की सजा सुना दिए जाने के भी कई साल बीत जाने के बाद उसे सूली पर नहीं लटका पाए। वजह कुछ और नहीं, बस एक तपके का वोट हासिल करने के लिए। क्या हमारे नेता देश की सत्ता को देश से बड़ा मानते है ? अब इन्हें कौन समझाए कि सत्ता तभी आपके हाथ में होगी जब देश होगा, जब देश ही टूट जाएगा तो सत्ता कहां रहेगी। मित्र ने बताया ओसामा को मारने के लिए कई सौ करोड़ रुपये अमेरिका ने खर्च किए। मैं देख रहा हूं कि मुंबई पर हमले के आरोपी अजमल कसाब की सुरक्षा पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार कई करोड़ रुपये अब तक खर्च कर चुकी है।
देश के नेताओं के इसी घिनौने चरित्र की वजह से उनमें देश की जनता से डर बना रहता है। आप कल्पना कीजिए अमेरिका में कई लाख लोगों के बीच नव निर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा बिना किसी सुरक्षा के तड़के 3.30 बजे उनके बीच में आ गए। वो भी पूरे परिवार के साथ। यहां तो दिन में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इस तरह सार्वजनिक सभा को संबोधित नहीं कर सकते। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐसा कौन सा बड़ा काम कर दिया है, जिससे कहा जाए कि देश की जनता उनसे नाराज होगी, जो उन पर हमला कर सकती है। ओबामा को तो फिर भी सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि उन्होंने खुंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मिरा गिराया है। ऐसे में तमाम आतंकी संगठन ओबामा से नाराज हो सकते है। फिर भी ओबामा पूरे कान्फीडेंस के साथ जनता के बीच रात के अंधेरे में मौजूद रहे। खैर अपने तो प्रधानमंत्री को लालकिले से भी भाषण देना होता है तो वो बुलेट प्रूफ केबिन में खड़े होते हैं और आम जनता तो उनसे कोसों दूर बैठती है। बेचारे प्रधानमंत्री बुलेट प्रूफ कार, बुलेट प्रूफ जैकेट और बुलेट प्रूफ केबिन इसी में कैद रह जाते हैं।
अमेरिका और हमारे बीच कामकाज के तरीकों को लेकर भी अंतर है। आतंकवाद का शिकार अमेरिका हुआ तो उसने ये देखना शुरू किया कि इसकी जड़ कहा हैं। जड़ को खत्म करना है, बिना जड़ को खत्म किए आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। उसने देखा कि आतंक की जड़ पाकिस्तान में है, तो उसने वहां चढ़कर ओसामा बिन लादेन का खात्मा किया। हम क्या करते हैं ? जड़ में तो पानी डालते हैं, और अपनों को खुद सुरक्षित रहने की सलाह देते हैं। अगर हम भी अफजल गुरु और कसाब को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका देते तो दुनिया भर के आतंकियों में संदेश जाता कि भारत जाओगे तो मारे भी जा सकते हो। पता नहीं, पर हो सकता है कि किसी मंत्री के परिवार का कोई आतंकी संगठन अपहरण कर लें और उसके एवज में कसाब को चार्टर प्लेन से पाकिस्तान छोड़ने को देश मजबूर हो जाए। आने वाले समय में ऐसा कुछ हो तो कम से कम मुझे तो कोई हैरानी नहीं होगी।
अच्छा अमेरिका में सरकार और विपक्ष हमारे जैसा नहीं है। बराक ओबामा ने जीत के बाद सबसे पहले अपने प्रतिद्वंद्धी मिंट रोमनी को फोन किया और उनसे देश के विकास में सहयोग देने की अपील की। हमारे यहां नेता सरकार में आते ही सबसे पहले विपक्षी नेताओं के फोन टेप कराने के आदेश देते हैं। उन्हें लगता है कि देश के लिए सबसे बड़ा खतरा विपक्ष ही है। पूरे कार्यकाल इसी में बीत जाता है कि वो विपक्ष से किसी मोर्चे पर हारे तो नहीं। संसद जहां देश के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनानी चाहिए, वो शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन जाता है। सरकार कोशिश करती है कि संसद चले, विपक्ष संसद ठप करने में लगा रहता है। संसद पूरे सत्र ठप रहती है, सरकार में होते हुए भी एक दिन संसद न चल पाने पर सरकार शर्मिंदा नहीं होती, वो इसके लिए विपक्ष को जिम्मेदार बताकर सब कुछ भूल जाती है।
बहरहाल बराक ओबामा दूसरी बार राष्ट्रपति जरूर बन गए हैं, लेकिन सब कुछ तो उनके लिए भी अच्छा नहीं है। क्योंकि जहां तक वोट पर्सेंटेज का सवाल है तो दोनों उम्मीदवारों को बरारबर 49 फीसदी के करीब वोट मिले हैं। यानी मिट रोमनी ज्यादा पीछे नहीं हैं, बल्कि ओबामा को पिछली बार के मुकाबले करीब चार फीसदी वोट का नुकसान हुआ है। पिछले बार उन्हें 52.9 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन मिट रोमनी ने हार स्वीकार कर ली है, उन्होंने बराक ओबामा को बधाई दी और कहा, 'अमेरिका ने किसी और को अपना नेता चुना है। मैं राष्ट्रपति और अमेरिका के लिए प्रार्थना करूंगा। मै जितनी प्रशंसा ओबामा की कर रहा हूं, उससे कहीं ज्यादा रोमानी की भी करता हूं कि उन्होने भी देश की तरक्की की कामना की।
प्रधानमंत्री जी मैं आपसे एक आग्रह कर रहा हूं। रहने दीजिए आप, देश के लिए कुछ मत कीजिए। आपका जितना समय बचा है, उसमें सिर्फ इतना काम कर लीजिए, जिससे देश की जनता के बीच आप अकेले बिना डर भय के आ जा सकें। आप कहीं भी बिना सुरक्षा के सार्वजनिक सभा कर सकें। इसके लिए कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं है, देशवासियों का दिल जीतने की बात है। समस्याएं तो अमेरिका में भी हैं, आतंकी हमला तो अमेरिका पर भी हुआ, लेकिन दोबारा नहीं हुआ। वहां लोगों को अपनी सरकार पर भरोसा है, ये भरोसा आप भी दे सकते हैं क्या ? मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आप ये भरोसा देश को नहीं दे सकते, जब आप लाल किले से इतनी सुरक्षा में देश को संबोधित करते हैं, उस समय भी आपको बुलेट प्रूफ केबिन की जरूरत पड़ती है। इससे तो अच्छा है कि आप घर मे बैठ कर टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश दे दें। कम से कम सुरक्षाकर्मियों को शर्मिंदा तो नहीं होना पडेगा।
मेरे कुछ मित्र अमेरिका में हैं, उनसे चुनाव को लेकर कुछ बातें हो रही थी। मैने जानना चाहा कि आखिर ऐसा क्या रहा बराक ओबामा में कि उन्हें दोबारा जीत मिली। जीत भी ऐसी जिसकी उम्मीद बहुत कम बताई जा रही थी। मैने इस बात का खासतौर पर जिक्र किया कि पिछले दो तीन सालों में मंदी की वजह से अमेरिका में नौकरी कम हुई है। ओबामा प्रशासन के प्रति वहां युवाओं में गुस्सा भी है। इन सबके बाद भी जीत और वो भी ऐतिहासिक जीत मिली। मित्र ने कहा कि भारत और अमेरिका में यही बुनियादी अंतर है। यहां लोगों के लिए देश पहले है वो खुद बाद में हैं। बराक ओबामा की सबसे बड़ी कामयाबी यही रही है कि उन्होंने पाकिस्तान में छिपे आतंकवादी सरगना ओसामा बिन लादेन को उसी के ठिकाने पर जाकर मार गिराया। ओसामा को मार गिराने के बाद अमेरिका में ओबामा का कद और उनकी उपलब्धियों का ग्राफ बिल्कुल ऊपर पहुंच गया। जिस दिन ओसामा को अमेरिकी फौज ने मारा, उस दिन सिर्फ अमेरिकी प्रशासन ने नहीं बल्कि पूरा देश जश्न में डूबा था। सच तो ये है ओबामा की दूसरी जीत पर उसी दिन अमेरिकियों ने मुहर लगा दी।
मित्र की बात सुनकर मैं कुछ देऱ खामोश रह गया। अमेरिका और अपने नेताओं को एक तराजू पर तौलने लगा। सच बताऊं शर्म आने लगी अपने नेताओं का चरित्र देख कर। बताइये अमेरिका ने देश पर हमला करने वाले ओसामा बिन लादेन को दूसरे देश में जाकर मार गिराया और हम... । संसद पर हमले के मास्टर मांइंड अफजल गुरू को फांसी की सजा सुना दिए जाने के भी कई साल बीत जाने के बाद उसे सूली पर नहीं लटका पाए। वजह कुछ और नहीं, बस एक तपके का वोट हासिल करने के लिए। क्या हमारे नेता देश की सत्ता को देश से बड़ा मानते है ? अब इन्हें कौन समझाए कि सत्ता तभी आपके हाथ में होगी जब देश होगा, जब देश ही टूट जाएगा तो सत्ता कहां रहेगी। मित्र ने बताया ओसामा को मारने के लिए कई सौ करोड़ रुपये अमेरिका ने खर्च किए। मैं देख रहा हूं कि मुंबई पर हमले के आरोपी अजमल कसाब की सुरक्षा पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार कई करोड़ रुपये अब तक खर्च कर चुकी है।
देश के नेताओं के इसी घिनौने चरित्र की वजह से उनमें देश की जनता से डर बना रहता है। आप कल्पना कीजिए अमेरिका में कई लाख लोगों के बीच नव निर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा बिना किसी सुरक्षा के तड़के 3.30 बजे उनके बीच में आ गए। वो भी पूरे परिवार के साथ। यहां तो दिन में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इस तरह सार्वजनिक सभा को संबोधित नहीं कर सकते। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐसा कौन सा बड़ा काम कर दिया है, जिससे कहा जाए कि देश की जनता उनसे नाराज होगी, जो उन पर हमला कर सकती है। ओबामा को तो फिर भी सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि उन्होंने खुंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मिरा गिराया है। ऐसे में तमाम आतंकी संगठन ओबामा से नाराज हो सकते है। फिर भी ओबामा पूरे कान्फीडेंस के साथ जनता के बीच रात के अंधेरे में मौजूद रहे। खैर अपने तो प्रधानमंत्री को लालकिले से भी भाषण देना होता है तो वो बुलेट प्रूफ केबिन में खड़े होते हैं और आम जनता तो उनसे कोसों दूर बैठती है। बेचारे प्रधानमंत्री बुलेट प्रूफ कार, बुलेट प्रूफ जैकेट और बुलेट प्रूफ केबिन इसी में कैद रह जाते हैं।
अमेरिका और हमारे बीच कामकाज के तरीकों को लेकर भी अंतर है। आतंकवाद का शिकार अमेरिका हुआ तो उसने ये देखना शुरू किया कि इसकी जड़ कहा हैं। जड़ को खत्म करना है, बिना जड़ को खत्म किए आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। उसने देखा कि आतंक की जड़ पाकिस्तान में है, तो उसने वहां चढ़कर ओसामा बिन लादेन का खात्मा किया। हम क्या करते हैं ? जड़ में तो पानी डालते हैं, और अपनों को खुद सुरक्षित रहने की सलाह देते हैं। अगर हम भी अफजल गुरु और कसाब को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका देते तो दुनिया भर के आतंकियों में संदेश जाता कि भारत जाओगे तो मारे भी जा सकते हो। पता नहीं, पर हो सकता है कि किसी मंत्री के परिवार का कोई आतंकी संगठन अपहरण कर लें और उसके एवज में कसाब को चार्टर प्लेन से पाकिस्तान छोड़ने को देश मजबूर हो जाए। आने वाले समय में ऐसा कुछ हो तो कम से कम मुझे तो कोई हैरानी नहीं होगी।
अच्छा अमेरिका में सरकार और विपक्ष हमारे जैसा नहीं है। बराक ओबामा ने जीत के बाद सबसे पहले अपने प्रतिद्वंद्धी मिंट रोमनी को फोन किया और उनसे देश के विकास में सहयोग देने की अपील की। हमारे यहां नेता सरकार में आते ही सबसे पहले विपक्षी नेताओं के फोन टेप कराने के आदेश देते हैं। उन्हें लगता है कि देश के लिए सबसे बड़ा खतरा विपक्ष ही है। पूरे कार्यकाल इसी में बीत जाता है कि वो विपक्ष से किसी मोर्चे पर हारे तो नहीं। संसद जहां देश के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनानी चाहिए, वो शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन जाता है। सरकार कोशिश करती है कि संसद चले, विपक्ष संसद ठप करने में लगा रहता है। संसद पूरे सत्र ठप रहती है, सरकार में होते हुए भी एक दिन संसद न चल पाने पर सरकार शर्मिंदा नहीं होती, वो इसके लिए विपक्ष को जिम्मेदार बताकर सब कुछ भूल जाती है।
बहरहाल बराक ओबामा दूसरी बार राष्ट्रपति जरूर बन गए हैं, लेकिन सब कुछ तो उनके लिए भी अच्छा नहीं है। क्योंकि जहां तक वोट पर्सेंटेज का सवाल है तो दोनों उम्मीदवारों को बरारबर 49 फीसदी के करीब वोट मिले हैं। यानी मिट रोमनी ज्यादा पीछे नहीं हैं, बल्कि ओबामा को पिछली बार के मुकाबले करीब चार फीसदी वोट का नुकसान हुआ है। पिछले बार उन्हें 52.9 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन मिट रोमनी ने हार स्वीकार कर ली है, उन्होंने बराक ओबामा को बधाई दी और कहा, 'अमेरिका ने किसी और को अपना नेता चुना है। मैं राष्ट्रपति और अमेरिका के लिए प्रार्थना करूंगा। मै जितनी प्रशंसा ओबामा की कर रहा हूं, उससे कहीं ज्यादा रोमानी की भी करता हूं कि उन्होने भी देश की तरक्की की कामना की।
प्रधानमंत्री जी मैं आपसे एक आग्रह कर रहा हूं। रहने दीजिए आप, देश के लिए कुछ मत कीजिए। आपका जितना समय बचा है, उसमें सिर्फ इतना काम कर लीजिए, जिससे देश की जनता के बीच आप अकेले बिना डर भय के आ जा सकें। आप कहीं भी बिना सुरक्षा के सार्वजनिक सभा कर सकें। इसके लिए कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं है, देशवासियों का दिल जीतने की बात है। समस्याएं तो अमेरिका में भी हैं, आतंकी हमला तो अमेरिका पर भी हुआ, लेकिन दोबारा नहीं हुआ। वहां लोगों को अपनी सरकार पर भरोसा है, ये भरोसा आप भी दे सकते हैं क्या ? मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आप ये भरोसा देश को नहीं दे सकते, जब आप लाल किले से इतनी सुरक्षा में देश को संबोधित करते हैं, उस समय भी आपको बुलेट प्रूफ केबिन की जरूरत पड़ती है। इससे तो अच्छा है कि आप घर मे बैठ कर टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश दे दें। कम से कम सुरक्षाकर्मियों को शर्मिंदा तो नहीं होना पडेगा।
सही आकलन |
ReplyDeleteओबामा बधाई-
बधाई भाई ||
आभार भाई जी
Deletesach me bahut bada fark hai america aur hamare desh ke netao me shayd ye fark isliye bhi hai kyonki yaha aur vaha ki janta me bahut bada fark hai..vaha ki janta dekh ke liye vote karti hai aur hamari janta khud ke oochhe swarth ke liye...
ReplyDeleteabhootpoorv tulna...bas yahi kamna hai ki apne doosare karyakal me Obama hamare desh ke liye bhi kuchh achchhi netiya banaye kyonki hamare khud ke netao se to koi umeed hai nahi..
आपका बहुत बहुत आभार कविता मेम
Deleteआपकी बातों से सहमत हूं
hame obama nahin sirf deshbhakt "neta" chaiye
ReplyDeleteबात तो सही है
Delete...बहुत फर्क है अमेरिका और भारत के राजनेताओं में...
ReplyDeleteजी सही कहा आपने
Deletevah bahi Mahendra Ji, bahut sundar alekh
ReplyDeleteवहां इतना ज़रूर लगता है कि सरकार बन रही है पर हमारे यहाँ की तरह हर हद पार कर गंदी राजनीति नहीं की जाती |
ReplyDeleteजी बिल्कुल सही
Deleteवहां इतना ज़रूर लगता है कि सरकार बन रही है पर हमारे यहाँ की तरह हर हद पार कर गंदी राजनीति नहीं की जाती |
ReplyDeleteबहुत सही लेख लिखा है .
ReplyDeleteआप के आंकलन से सहमत.
महेंद्र जी आप को और आप के परिवार में सभी को दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Deleteशुक्रिया,
ReplyDeleteएक और बहुत अच्छी बात है अमेरिका में कि वहाँ राष्ट्रपति चुनाव से पहले पक्ष-विपक्ष दोनों आमने सामने आकर अपने अपने तर्क देते हैं , इससे जनता को उन्हें और उनकी सोच को जानने का मौका मिलता है जबकि हमारे यहाँ सब अलग अलग चार्टर्ड प्लेन से जनता के बीच जाते हैं और उन्हें सिर्फ उतना ही समझाते या दिखाते हैं जो उनके पक्ष में है , वहाँ विपक्ष में बोलने वाला कोई नहीं होता |
ReplyDeleteसादर
बिल्कुल सही बात है.. वहां चुनाव भी एक पर्व है, जिसमें पूरा देश शामिल होता है
Deletefir bhi kahte hain bhaarat sabse bada loktaantrik desh hai....han hoga....shayad isiliye pradhan mantri ko jyada suraksha me rahna padta hai.
ReplyDeleteहाहाहहाहा, बेचारे प्रधानमंत्री जी
Deleteबढ़िया लेख ...सहमत हूँ !
ReplyDeleteअमेरिका ने देश पर हमला करने वाले ओसामा बिन लादेन को दूसरे देश में जाकर मार गिराया और हम... । संसद पर हमले के मास्टर मांइंड अफजल गुरू को फांसी की सजा सुना दिए जाने के भी कई साल बीत जाने के बाद उसे सूली पर नहीं लटका पाए। वजह कुछ और नहीं, बस एक तपके का वोट हासिल करने के लिए ... और ये वोट मिलेगा नहीं !
ReplyDeleteसही कहा, वोट मिलना नहीं चाहिए, लेकिन ये शातिर लोग हैं, वोट तो हासिल कर ही लेते हैं..
Deleteआपकी ये पोस्ट एक सच को ओजागर करती है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
मेरी नयी पोस्ट - नैतिकता और अपराध पर आप सादर आमंत्रित है
शुक्रिया भाई मनोज जी
Deleteबेहद सार्थक व सशक्त लेखन के साथ बहुत ही अच्छा विश्लेषण किया है आपने ...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार
Deleteअमेरिका और भारत का राजनितिक आंकलन बेहद सटीक तरीके से किया गया है...अपने यहाँ की राजनीति हालात किसी से छिपे नहीं है ...शर्म आती है जब कोई राजनीति की बाते भी करता है तो ...जब कि ओबामा से फिर से राष्ट्रपति बन गए ....ऐसा किसी ने सोचा नहीं था ...फिर भी वो अपने काम की वजह से आपने आप को स्थापित कर गए ...मगर भारत में हर नेता अपने को भ्रष्टाचार में लिप्त किए जा रहा है ..ये ही वजह है कि आज तक एक भी पार्टी स्थिर रूप से सत्ता में नहीं आई है ....सादर
ReplyDeleteबात तो आपकी बिल्कुल सही है.
Deleteलेकिन ये नेता समझें तो ना..
यही तो पूरा सच लिखा आपने
ReplyDeleteसाधुवाद
शुक्रिया
Deleteदीपावली की अनंत शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteनया पोस्ट.. प्रेम सरोवर पर देखें।
आपको भी दीपावली की शुभकामनाएं
Delete