लेख पढ़ने से पहले आइये थोड़ा हंस लेते हैं। पहले हंस लेना इसलिए जरूरी है कि बाद में चाल चरित्र और चेहरे का दावा करने वाली पार्टी की करतूतें आपको रुलाएंगी। गंभीर आरोप लगने के बाद बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गड़करी के पक्ष में देश के जाने माने सीए, वित्तीय सलाहकार एस एन गुरुमूर्ति ने बीजेपी नेताओं के सामने एक प्रजेंटेशन दिया, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने सारे कागजात देख लिए हैं और गड़करी बिल्कुल निर्दोष हैं। गुरुमूर्ति की क्लीन चिट् के बाद पार्टी नेताओं ने गड़करी को बेदाग घोषित कर उनके पीछे कदमताल करने का निर्णय ले लिया। ऐसा करें भी क्यों ना क्योंकि हरियाणा सरकार ने भी तो राबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट दे दिया है। आप जानते ही है इंडिया अगेंस्ट करप्सन ने भी अपने दो सदस्यों प्रशांत भूषण और अंजलि के खिलाफ लगे आरोपों की जांच अपने लोकपाल को सौंप दिया है। वाह भाई वाह ! ये बढिया है, अपना अभियुक्त, अपने जांच अधिकारी, अपनी रिपोर्ट, अपना जज। फिर क्या बाकी है, अब अपनी पुलिस और जेल भी बना लीजिए। हाहाहाहहाहा
कांग्रेस को पानी पी-पी कर कोसने वाली बीजेपी को अब अपना घर बचाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है, क्योंकि इस बार आरोप किसी और पर नहीं बल्कि पार्टी अध्यक्ष नितिन गड़करी पर लगा है। भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में फंसे गड़करी की सफाई से पहले ही कोई संतुष्ट नहीं था, अब गड़करी नए विवादों में घिर गए हैं। उनका मानना है कि स्वामी विवेकानंद और माफिया डान दाउद इब्राहिम में ज्यादा फर्क नहीं है, क्योंकि दोनों का आईक्यू (बौद्धिक स्तर) समान है। बस फर्क ये है कि स्वामी ने अपने आईक्यू का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में किया, जबकि दाऊद ने अपराध की दुनिया में दिमाग लगाया। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी की इस बात से देश भर में गुस्सा है। वैसे ऐसा नहीं है कि बदजुबान गड़करी पहली बार अपनी बातों से फंसे है, बल्कि वो अकसर सार्वजनिक मंच से हल्की और निम्नस्तरीय बात करके पार्टी की किरकिरी कराते रहे हैं। बहरहाल मुश्किल में फंसे गड़करी कुर्सी बचाने के लिए पार्टी नेताओं के यहां चक्कर काट रहे हैं, लेकिन सच ये है कि उन्हें कहीं से भी सकारात्मक जवाब नहीं मिल रहा। वैसे तो संघ ये दिखाने की कोशिश कर रहा है कि इस मसले से उसका कोई सरोकार नहीं है, लेकिन संघ को लग रहा है कि अगर नितिन हटाया गया तो निश्चित ही संघ की भी किरकिरी होगी।
मेरा पहले दिन से ही ये मानना रहा है कि नितिन गड़करी का आईक्यू (बौद्धिक स्तर) अभी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के काबिल नही हैं। अगर मुझे तय करना हो तो मैं उन्हें जितना सुन और समझ पाया हूं, उसके आधार पर तो मै गडकरी को किसी सूबे का भी अध्यक्ष ना बनने दूं। बहरहाल संघ से करीबी संबंधों के कारण उन्हें पद मिल गया, लेकिन नितिन इस पद के काबिल अपना कद नहीं बढ़ा पाए। सार्वजनिक मंचों से शुरू से ही ऐसी बातें करते रहे जो राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के अध्यक्ष के गरिमा के अनुरूप नहीं था। पिछले दिनों कांग्रेस के एक महासचिव को उन्होंने "चिल्लर नेता" कहा। इसे लेकर भी नितिन गड़करी की काफी छिछालेदर हुई थी। गडकरी कभी अपने वक्तव्य और व्यवहार से ये साबित ही नहीं कर पाए उनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की काबिलयत है। कोई भी अध्यक्ष हो, उसे इस बात का तो ज्ञान होना ही चाहिए कि संघ एक बार उन्हें जोर लगाकर अध्यक्ष बना तो सकता है, पर अध्यक्ष का काम तो उसे ही करना होगा। नितिन गड़करी अपने पहले कार्यकाल में ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए, जिससे लगे कि संघ ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर कुछ भी गलत नहीं किया। हां नितिन ने एक काम जरूर बखूबी किया है, वो ये कि कुछ भी परफार्म किए बगैर अध्यक्ष पद का दूसरा कार्यकाल अपने नाम करने का रास्ता साफ कर लिया। बहरहाल अब तो हालत ये है कि वो अपना पहला कार्यकाल ही पूरा कर पाएं यही बहुत है, दूसरा कार्यकाल मिलना तो मुश्किल ही है।
वैसे भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद गडकरी भले कहें कि वो किसी भी जांच का सामना करने को तैयार हैं, लेकिन मेरा तो यही मानना है कि नैतिकता की दुहाई देने वाले गडकरी को अब पार्टी का अध्यक्ष पद तुरंत छोड़ देना चाहिए। वैसे भी अब पार्टी के भीतर भी उनके इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी है। अगर बीजेपी को 2014 में कांग्रेस के भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाना है तो उसे गड़करी को ना सिर्फ अध्यक्ष पद बल्कि जांच होने तक पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखाना ही होगा। अध्यक्ष पद जाता देख गड़करी काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। मंगलवार को पूरे दिन वो नेताओं के घर चक्कर काटते दिखाई दिए। राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होने के बाद भी बेचारे अपने पक्ष मे समर्थन जुटाते फिर रहे हैं। उन्होंने लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज और राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली से उनके घर जाकर मुलाकात की। अंदरखाने क्या बात हुई ये तो पार्टी के नेता जाने, लेकिन मुंह लटकाए जिस तरह गडकरी नेताओं के घर जाते हैं और वैसे ही वापस लौटते हैं, इससे तो लगता है कि सबकुछ सामान्य नहीं है। इस बीच सियासी गलियारे में खबर उड़ी कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी हिमांचल के वरिष्ठ बीजेपी नेता शांता कुमार का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाना चाहते हैं। बीजेपी खेमें में पूरे दिन जिस तरह का घटनाक्रम दिखाई दे रहा था, उससे तो लगा कि अब किसी भी वक्त गड़करी अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ सकते हैं। लेकिन दोपहर तीन बजे के बाद उनके लिए कुछ राहत भरी खबर आई। चर्चा तो ये है कि संघ ने पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं से बात कर हालात को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई। इसी दौरान पार्टी नेता सुषमा स्वराज ने ट्विट किया कि वो गड़करी के साथ हैं।
दरअसल ये मुश्किल गड़करी ने खुद खड़ी की है। सब को पता है कि गड़करी किसानों की जमीन हथियाने के आरोपों से पहले ही घिरे थे, इसी बीच एक और विवाद उनके नाम जुड़ गया। ये आरोप भी हल्का फुल्का नहीं है। अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया कि उनकी कंपनी को घाटे से उबारने के लिए आईआरबी कंपनी ने 164 करोड़ रुपये का लोन दिया। आपको हैरानी होगी कि ये वही कंपनी है जिसे महाराष्ट्र में तमाम कार्यों का ठेका दिया गया, और ये ठेके उस समय दिए गए, जब गडकरी वहां के लोकनिर्माण मंत्री थे। आरोप तो ये भी है कि लोन में दिए गए पैसे का स्रोत भी साफ नहीं है। इस खुलासे के बाद बीजेपी नेताओं की बोलती बंद है। आरोप है कि 16 अन्य कंपनियों के एक समूह का गडकरी की कंपनी में शेयर हैं। लेकिन इन 16 कंपनियों के जो डायरेक्टर हैं, उनके नाम का खुलासा होने से गड़करी का असली चेहरा जनता के सामने आ गया है। आपको हैरानी होगी कि उनका ड्राइवर जिसका नाम मनोहर पानसे, गडकरी का एकाउंटेंट पांडुरंग झेडे, उनके बेटे का दोस्त श्रीपाद कोतवाली वाले और निशांत विजय अग्निहोत्री ये सभी इन विवादित कंपनियों के डायरेक्टर हैं। ताजा जानकारी के अनुसार गड़करी के नियंत्रण वाली पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड 64 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही थी । 30 मार्च 2010 को आइडियल रोड बिल्डर्स यानी आईआरबी ग्रुप की फर्म ग्लोबल सेफ्टी विजन ने उसे 164 करोड़ रुपये लोन दिया। आईआरबी ग्रुप को 1995 से 1999 के बीच महाराष्ट्र में तमाम सरकारी ठेके दिए गए। उस दौरान गडकरी ही लोक निर्माण मंत्री थे। आईआरबी ने पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड के तमाम शेयर भी खरीदे। मसला वही सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता का लगता है।
गड़करी पर भ्रष्टाचार का ये गंभीर मामला है। इस मामले में अभी तक कोई संतोषजनक जवाब वो नहीं दे सके हैं। इस बीच उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से देश का ध्यान भटकाने के लिए स्वामी विवेकानंद की तुलना माफिया डान दाउद इब्राहिम से की तो पूरे देश में उनके खिलाफ और माहौल बन गया। पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य महेश जेठमलानी ने तो उनके इस्तीफे की मांग को लेकर कार्यकारिणी से त्यागपत्र दे दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता रामकृष्ण जेठमलानी खुल कर विरोध करते हुए सामने आए, उन्होंने भी गड़करी का इस्तीफा मांगा। इसी बीच पार्टी नेता जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा की मुलाकात को लेकर सियासी गलियारे में चर्चा होने लगी कि पार्टी में गड़करी का विरोध बढ़ता जा रहा है। ऐसे में गड़करी का जाना तय है। इस बीच पत्रकारों को मैसेज मिला कि शाम 7 बजे पार्टी की कोरग्रुप की बैठक होगी। इस बैठक में गडकरी के मामले में चर्चा की जाएगी। बहरहाल कोर ग्रुप तो महज दिखावा है, अंदर की बात ये है कि संघ ने पार्टी नेताओं पर अपना डंडा घुमा दिया है और साफ कर दिया है कि मीडिया में बेवजह की बयानबाजी बंद हो। पार्टी नेता एक साथ मीडिया के सामने आएं और गड़करी के समर्थन का ऐलान करें। बहरहाल संघ के दबाव में गडकरी की कुर्सी भले बच जाए, लेकिन अब बीजेपी कम से कम सिर उठाकर अपने चाल चरित्र और चेहरे की दुहाई तो नहीं ही दे पाएगी। मैं तो यही कहूंगा चोर चोर मौसेरे भाई।
कांग्रेस को पानी पी-पी कर कोसने वाली बीजेपी को अब अपना घर बचाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है, क्योंकि इस बार आरोप किसी और पर नहीं बल्कि पार्टी अध्यक्ष नितिन गड़करी पर लगा है। भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में फंसे गड़करी की सफाई से पहले ही कोई संतुष्ट नहीं था, अब गड़करी नए विवादों में घिर गए हैं। उनका मानना है कि स्वामी विवेकानंद और माफिया डान दाउद इब्राहिम में ज्यादा फर्क नहीं है, क्योंकि दोनों का आईक्यू (बौद्धिक स्तर) समान है। बस फर्क ये है कि स्वामी ने अपने आईक्यू का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में किया, जबकि दाऊद ने अपराध की दुनिया में दिमाग लगाया। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी की इस बात से देश भर में गुस्सा है। वैसे ऐसा नहीं है कि बदजुबान गड़करी पहली बार अपनी बातों से फंसे है, बल्कि वो अकसर सार्वजनिक मंच से हल्की और निम्नस्तरीय बात करके पार्टी की किरकिरी कराते रहे हैं। बहरहाल मुश्किल में फंसे गड़करी कुर्सी बचाने के लिए पार्टी नेताओं के यहां चक्कर काट रहे हैं, लेकिन सच ये है कि उन्हें कहीं से भी सकारात्मक जवाब नहीं मिल रहा। वैसे तो संघ ये दिखाने की कोशिश कर रहा है कि इस मसले से उसका कोई सरोकार नहीं है, लेकिन संघ को लग रहा है कि अगर नितिन हटाया गया तो निश्चित ही संघ की भी किरकिरी होगी।
मेरा पहले दिन से ही ये मानना रहा है कि नितिन गड़करी का आईक्यू (बौद्धिक स्तर) अभी राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के काबिल नही हैं। अगर मुझे तय करना हो तो मैं उन्हें जितना सुन और समझ पाया हूं, उसके आधार पर तो मै गडकरी को किसी सूबे का भी अध्यक्ष ना बनने दूं। बहरहाल संघ से करीबी संबंधों के कारण उन्हें पद मिल गया, लेकिन नितिन इस पद के काबिल अपना कद नहीं बढ़ा पाए। सार्वजनिक मंचों से शुरू से ही ऐसी बातें करते रहे जो राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के अध्यक्ष के गरिमा के अनुरूप नहीं था। पिछले दिनों कांग्रेस के एक महासचिव को उन्होंने "चिल्लर नेता" कहा। इसे लेकर भी नितिन गड़करी की काफी छिछालेदर हुई थी। गडकरी कभी अपने वक्तव्य और व्यवहार से ये साबित ही नहीं कर पाए उनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की काबिलयत है। कोई भी अध्यक्ष हो, उसे इस बात का तो ज्ञान होना ही चाहिए कि संघ एक बार उन्हें जोर लगाकर अध्यक्ष बना तो सकता है, पर अध्यक्ष का काम तो उसे ही करना होगा। नितिन गड़करी अपने पहले कार्यकाल में ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए, जिससे लगे कि संघ ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर कुछ भी गलत नहीं किया। हां नितिन ने एक काम जरूर बखूबी किया है, वो ये कि कुछ भी परफार्म किए बगैर अध्यक्ष पद का दूसरा कार्यकाल अपने नाम करने का रास्ता साफ कर लिया। बहरहाल अब तो हालत ये है कि वो अपना पहला कार्यकाल ही पूरा कर पाएं यही बहुत है, दूसरा कार्यकाल मिलना तो मुश्किल ही है।
वैसे भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद गडकरी भले कहें कि वो किसी भी जांच का सामना करने को तैयार हैं, लेकिन मेरा तो यही मानना है कि नैतिकता की दुहाई देने वाले गडकरी को अब पार्टी का अध्यक्ष पद तुरंत छोड़ देना चाहिए। वैसे भी अब पार्टी के भीतर भी उनके इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी है। अगर बीजेपी को 2014 में कांग्रेस के भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाना है तो उसे गड़करी को ना सिर्फ अध्यक्ष पद बल्कि जांच होने तक पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखाना ही होगा। अध्यक्ष पद जाता देख गड़करी काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। मंगलवार को पूरे दिन वो नेताओं के घर चक्कर काटते दिखाई दिए। राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होने के बाद भी बेचारे अपने पक्ष मे समर्थन जुटाते फिर रहे हैं। उन्होंने लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज और राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली से उनके घर जाकर मुलाकात की। अंदरखाने क्या बात हुई ये तो पार्टी के नेता जाने, लेकिन मुंह लटकाए जिस तरह गडकरी नेताओं के घर जाते हैं और वैसे ही वापस लौटते हैं, इससे तो लगता है कि सबकुछ सामान्य नहीं है। इस बीच सियासी गलियारे में खबर उड़ी कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी हिमांचल के वरिष्ठ बीजेपी नेता शांता कुमार का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाना चाहते हैं। बीजेपी खेमें में पूरे दिन जिस तरह का घटनाक्रम दिखाई दे रहा था, उससे तो लगा कि अब किसी भी वक्त गड़करी अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ सकते हैं। लेकिन दोपहर तीन बजे के बाद उनके लिए कुछ राहत भरी खबर आई। चर्चा तो ये है कि संघ ने पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं से बात कर हालात को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई। इसी दौरान पार्टी नेता सुषमा स्वराज ने ट्विट किया कि वो गड़करी के साथ हैं।
दरअसल ये मुश्किल गड़करी ने खुद खड़ी की है। सब को पता है कि गड़करी किसानों की जमीन हथियाने के आरोपों से पहले ही घिरे थे, इसी बीच एक और विवाद उनके नाम जुड़ गया। ये आरोप भी हल्का फुल्का नहीं है। अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया कि उनकी कंपनी को घाटे से उबारने के लिए आईआरबी कंपनी ने 164 करोड़ रुपये का लोन दिया। आपको हैरानी होगी कि ये वही कंपनी है जिसे महाराष्ट्र में तमाम कार्यों का ठेका दिया गया, और ये ठेके उस समय दिए गए, जब गडकरी वहां के लोकनिर्माण मंत्री थे। आरोप तो ये भी है कि लोन में दिए गए पैसे का स्रोत भी साफ नहीं है। इस खुलासे के बाद बीजेपी नेताओं की बोलती बंद है। आरोप है कि 16 अन्य कंपनियों के एक समूह का गडकरी की कंपनी में शेयर हैं। लेकिन इन 16 कंपनियों के जो डायरेक्टर हैं, उनके नाम का खुलासा होने से गड़करी का असली चेहरा जनता के सामने आ गया है। आपको हैरानी होगी कि उनका ड्राइवर जिसका नाम मनोहर पानसे, गडकरी का एकाउंटेंट पांडुरंग झेडे, उनके बेटे का दोस्त श्रीपाद कोतवाली वाले और निशांत विजय अग्निहोत्री ये सभी इन विवादित कंपनियों के डायरेक्टर हैं। ताजा जानकारी के अनुसार गड़करी के नियंत्रण वाली पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड 64 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही थी । 30 मार्च 2010 को आइडियल रोड बिल्डर्स यानी आईआरबी ग्रुप की फर्म ग्लोबल सेफ्टी विजन ने उसे 164 करोड़ रुपये लोन दिया। आईआरबी ग्रुप को 1995 से 1999 के बीच महाराष्ट्र में तमाम सरकारी ठेके दिए गए। उस दौरान गडकरी ही लोक निर्माण मंत्री थे। आईआरबी ने पूर्ति पावर एंड शुगर लिमिटेड के तमाम शेयर भी खरीदे। मसला वही सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता का लगता है।
गड़करी पर भ्रष्टाचार का ये गंभीर मामला है। इस मामले में अभी तक कोई संतोषजनक जवाब वो नहीं दे सके हैं। इस बीच उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से देश का ध्यान भटकाने के लिए स्वामी विवेकानंद की तुलना माफिया डान दाउद इब्राहिम से की तो पूरे देश में उनके खिलाफ और माहौल बन गया। पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य महेश जेठमलानी ने तो उनके इस्तीफे की मांग को लेकर कार्यकारिणी से त्यागपत्र दे दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता रामकृष्ण जेठमलानी खुल कर विरोध करते हुए सामने आए, उन्होंने भी गड़करी का इस्तीफा मांगा। इसी बीच पार्टी नेता जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा की मुलाकात को लेकर सियासी गलियारे में चर्चा होने लगी कि पार्टी में गड़करी का विरोध बढ़ता जा रहा है। ऐसे में गड़करी का जाना तय है। इस बीच पत्रकारों को मैसेज मिला कि शाम 7 बजे पार्टी की कोरग्रुप की बैठक होगी। इस बैठक में गडकरी के मामले में चर्चा की जाएगी। बहरहाल कोर ग्रुप तो महज दिखावा है, अंदर की बात ये है कि संघ ने पार्टी नेताओं पर अपना डंडा घुमा दिया है और साफ कर दिया है कि मीडिया में बेवजह की बयानबाजी बंद हो। पार्टी नेता एक साथ मीडिया के सामने आएं और गड़करी के समर्थन का ऐलान करें। बहरहाल संघ के दबाव में गडकरी की कुर्सी भले बच जाए, लेकिन अब बीजेपी कम से कम सिर उठाकर अपने चाल चरित्र और चेहरे की दुहाई तो नहीं ही दे पाएगी। मैं तो यही कहूंगा चोर चोर मौसेरे भाई।
daud aur swami vivekanand ke I Q lebel ki tulna karne vale GADKARI ji apne I Q lebel ka praman har manch se de rahe hai..
ReplyDeleteबिल्कुल, अध्यक्ष बनने के बाद से ही नितिन गड़करी घटिया बयानों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं।
Deleteबंगारू लक्ष्मण की याद आ रही है मुझको!
ReplyDeleteइनका भी वही हश्र होने वाला है!
बिल्कुल,
Delete20 दिसंबर के बाद देखिए
नितिन गड़करी संघ के कृपापात्र ना होते तो अब तक अध्यक्ष पद से नहीं पार्टी से बाहर होते..
आज का इंडिया की राजनीति में सब एक से ही दिखाई देते है
ReplyDeleteबीजेपी हो या काँग्रेस...सब के सब घोटालों और अपनी अपनी बकवास की वजह से घिरे हुए हैं ...आने वाला वक्त किस के फेवर में जाता है ये अभी कुछ नहीं कहा जा सकता :)))
बिल्कुल, ये चिंता का विषय है। नेताओं पर से विश्वास कम होता जा रहा है
Deleteइस गडकरी जेसे नेताओं की वजह से हमारी विदेशों में भी थू-थू हो रही है ... आपने सही कहा इसमे किसी प्रकार की कोई भी क़ाबलियत नही है। इसको आदरणीय स्वामी विवेकानंद जी के बारे में कुछ भी पता नही है. ये तो माफिया डान दाउद इब्राहिम का चम्चा बन बैठा है।
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं।
Deleteश्री वास्तव जी नमस्कार
ReplyDeleteवैसे मै गडकरी का पक्ष नही ले रहा हूँ किन्तु आप भी शायद यह तो जानते ही होगें कि भारत को गुलाम बनाने बाले अग्रेजों ने भी भारतीयों पर करोंड़ो जुल्म अवश्य किये हों किन्तु यह जुल्म जो आप अपनी इस प्रतिभावान लेखनी से कर रहें हैं वह तो उन्हौने भी नही किया था।उन्हौने भी पहले क्रांतिकारियों पर बाकायदा मुकदमा चलाया चाहैं झूठ ही सही बोलने का मौका भी दिया फिर चाहैं गलत ही क्यों न हो उनके न्यायाधीशों ने निर्णय दिया औऱ वे अपराधी घोषित किये लैकिन महाराज आपकी लेखनी तो बेचारे गडकरी को बिना मुकदमा ही अपराधी बनाए दे रही है कृपया इसे विराम दें।औऱ गलत व सही का निर्णय होने तक इंतजार करें।आपको गडकरी में हजार कमियाँ दिखाई दे गयी जो यह भी कह रहा है कि जाँच करवा लो किन्तु वाड्रा के खिलाफ आपकी लेखनी चुप रही जिसके पक्ष में वह खुद ही नही सम्पूर्ण कांग्रेस कह रही है कि कोई जाँच नही होगी।माननीय पत्रकार महोदय आप पत्रकारिता की दुहाई दे रहै है लैकिन इसे तो पत्रकारिता नही कहते।पत्रकार तो विल्कुल निस्पक्ष बात कहता है।यहाँ तो कोरी पक्षधरिता दिखाई दे रही है।गडकरी चाहैं निठल्ला ही क्यों न हो किन्तु यह उसकी पार्टी का निजी मामला है।गडकरी पर तो केवल आरोप है जवकि पदों पर वैठे अनेकों कांग्रेसियों पर आरोप सिद्ध भी हो गये है फिर भी क्या हुआ या हो रहा है।क्या इसकी चिन्ता की है आपने सर अगर इस वात की चिन्ता आप जैसे छदम पत्रकारों ने की होती तो भारत का वर्तमान ही कुछ और होता कृपया वास्तविक श्री वास्तव वने छदम नही।आपका भ्राता -
भाई ज्ञानेश जी,
Deleteपहले तो मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं कि आप मेरे ब्लाग पर आए और कीमती वक्त दिया। आपका कहना है कि मैने गड़करी के साथ इंसाफ नहीं किया।
अध्यक्ष के खिलाफ जो कागजात सामने आए हैं, प्रथम दृष्टया उससे इतना साफ है कि उन पर लगे आरोप गंभीर हैं। उन्होंने अपने ड्राईवर, ज्योतिषी, एकाउंटेट इन सब को अपनी कंपनी डायरेक्टर बताया, जब उनसे बात की गई तो उन्हें मालूम ही नहीं था कि वो कंपनी के डायरेक्टर हैं.
उनकी पूर्ति कंपनी में को उसी कंपनी ने लोन दिया है, जिसने उनके मंत्री रहते हुए महाराष्ट्र सरकार से तमाम बड़े बड़े ठेके लिये।
इसके अलावा भी तमाम आरोप हैं। आरोप के बाद उन्हें सजा नहीं सुनाई जा रही है, उनकी पार्टी में भी आवाज उठ रहा है कि उन्हें नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिए।
बीजेपी से इसलिए भी ज्यादा उम्मीद है कि ये चाल चरित्र और चेहरे की बात करतें हैं।
आपने दूसरा आरोप लगाया कि मैं वाड्रा के मामले में खामोश रहा । साफ कर दूं कि शायद आप हमारे ब्लाग के नियमित पाठक नहीं है। वरना ऐसी बात नहीं कहते। जिस सख्त भाषा में मैने लिखा अगर किसी और ने लिखा हो तो मुझे लिंक दीजिएगा।
सोनिया जी कुछ भी हो कालिख तो पुत ही गई
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/10/blog-post_6.html
नितिन गटकरी और आई .क्यू. अलग अलग चीज़ें हैं
ReplyDeleteजी
Delete100 फीसदी सहमत
महेन्द्रजी,,,आपके आलेख से पूरी तरह सहमत हूँ,गडकरी जी को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए,या संघ को इस्तीफा ले लेना चाहिए,,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST:..........सागर
शुक्रिया, नैतिकता का तकाजा तो यही है..
Deleteआम आदमी की समस्या आज यह है कि आशाएं रखें तो किससे..... सब एक से बढ़कर एक हैं.....
ReplyDeleteआम आदमी की समस्या आज यह है कि आशाएं रखें तो किससे..... सब एक से बढ़कर एक हैं.....
ReplyDeleteसही कहा आपने,
Deleteगडकरी जी को तो भाजपा अपने अध्यक्ष पद से हटा ही देगी किन्तु सवाल ये है की उनके बाद कौन .आडवाणी जी का नाम आ रहा है किन्तु उनकी भी तो जिन्ना प्रकरण में भरी छिछालेदारी हुई थी .अब भाजपा को राजनीति से बाहर की ही रह देखनी होगी क्योंकि बड़ी मुश्किल से तो ढूंढ कर इतने जबरदस्त आई क्यू वाले अध्यक्ष जी लायी थी.सार्थक व् हास्यात्मक प्रस्तुति.
ReplyDeleteनहीं ऐसा नहीं है कि बीजेपी में सब भ्रष्ट हैं। मैं अभी भी इस पार्टी को कांग्रेस से कई मायने में बेहतर मानता हूं।
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