हिमांचल प्रदेश में मुख्यमंत्री प्रेम कुमार
धूमल की कुर्सी बंदरों की वजह से जा सकती है। सप्ताह भर हिमांचल प्रदेश के कई
शहरों की खाक छानने के बाद मुझे लगता है कि इस बार यहां हो रहे विधान सभा चुनाव
में बीजेपी की सरकार को सबसे बड़ी चुनौती लगभग पांच लाख बंदरों से मिल रही है। आप
सोच रहे होंगे कि आखिर ये बंदर किसी चुनाव को कैसे प्रभावित कर सकते हैं ?
चलिए मैं बताता हूं कि इन बंदरों से हिमांचल प्रदेश को कितना नुकसान
हो रहा है। बताया गया कि राज्य में हर साल बंदर खेती और बागवानी को पांच सौ करोड़
रुपए से अधिक का नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन इस गंभीर समस्या का कोई हल
धूमल सरकार नहीं कर पाई। बंदरों के
निर्यात पर केंद्र सरकार ने 1978 में प्रतिबंध लगा दिया था, इससे हिमाचल प्रदेश
में बंदरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
मैंने अपने भ्रमण के दौरान देखा कि आज पहाड़
अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। हरे भरे पहाड़ों पर सीमेंट कंक्रीट का जाल बिछता जा
रहा है। हालत ये है कि पहाड़ों पर फलदार पौधे न के बराबर रह गए हैं और जंगल का
दायरा भी सिमटता जा रहा है। यही वजह है कि बंदरों के साथ-साथ फसल उजाड़ने वाले
अन्य जानवर अब आबादी वाले इलाकों की तरफ घुसपैठ कर रहे हैं। सरकारी आंकड़े बताते
हैं कि हिमांचल में कुल 3,243 पंचायतों में
से 2,301 पंचायतों के किसान बंदरों की गंभीर समस्या से जूझ
रहे हैं। प्रदेश में खेती बचाओ संघर्ष समिति ने जब सभी पंचायतों से आंकड़ा जुटाया
तो पता चला कि बंदर और जंगली जानवर हर साल फसलों व बागों में फलों को बर्बाद कर
किसानों को पांच सौ करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा रहे हैं।
हिमांचल में बंदरों की संख्या में भी तेजी से
बढोत्तरी हो रही है। बताते हैं कि 2004 में बंदरों की संख्या लगभग साढ़े तीन लाख
थी, जो अब पांच लाख से ऊपर हो गई है। बंदरों को जंगल में रोकने के लिए जरूरी है कि
पहाड़ों पर अच्छी मात्रा में फलदार पेड़ लगाए जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। अब
पहाड़ों पर चीड़ के पेड़ ही ज्यादा दिखाई देते हैं। इससे बंदर फसलों को नुकसान
पहुंचा रहे हैं। देश के कई राज्यों में किसान भूमि अधिग्रहण की समस्या से परेशान
हैं तो कहीं बाढ़-सूखे के कारण नष्ट हो रही खेती से। कई जगह तो किसान कर्ज के कारण
आत्महत्या तक कर रहे हैं, तो कुछ उपज का वाजिब दाम न मिलने से दुखी हैं। लेकिन
हिमांचल में किसानों के लिए बंदर गंभीर संकट बन गए हैं। शिमला,
सिरमौर और सोलन जिले के कई गांवों में किसान खेती छोड़ शहर जाकर मजदूरी
करने को मजबूर हैं। बंदरों की वजह से कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें कुछ लोगों
की मौत भी हो चुकी है।
अच्छा ये समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि पंचायत
चुनावों में बंदर और जंगली जानवरों का आतंक भी चुनावी मुद्दा बना हुआ था। पिछले
विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान किसानों ने भाजपा और कांग्रेस से इस मसले का समाधान
निकालने का आश्वासन मांगा। इस पर दोनों दलों ने इस समस्या को अपने घोषणा पत्र में
शामिल किया। वैसे मुख्यमंत्री धूमल ने तो बंदरों को सीमित संख्या में मारने की
इजाजत भी दी, लेकिन पशु प्रेमी संगठनों के विरोध के बाद अब मामला न्यायालय में
लंबित है। फिलहाल बंदरों व जंगली जानवरों को जान से मारने पर रोक लगी हुई है। आइये
एक आंकड़े पर नजर डालते हैं। यहां बताया गया कि बंदरों से पांच सौ करोड़ रुपये का
नुकसान तो केवल फसलों का ही है। अगर इनसे होने वाले सभी तरह के नुकसान जोड़े जाएं
तो यह आंकड़ा दो हजार करोड़ रुपये तक जा पहुंच जाता है। पांच लाख प्रभावित किसान
परिवार यदि साल में दो सौ दिन अन्य कार्य छोड़कर केवल फसलों की ही रखवाली में जुटे
रहते हैं, तो मनरेगा की एक दिन की दिहाड़ी 130 रुपये के हिसाब से यह आंकड़ा 1300
करोड़ रुपये के करीब होता है।
आप सब जानते हैं कि हिमांचल में विधानसभा
चुनावों के मतदान के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। आज चुनाव प्रचार भी खत्म हो
गया। दिल्ली में बैठकर नेता मंहगाई, भ्रष्टाचार की चर्चा कर रहे हैं। सच बताऊं तो
हिमांचल के चुनाव में ये मुद्दे बेमानी हैं। अगर आपको याद हो तो एक बार दिल्ली में
विधान सभा चुनाव में दिल्लीवासियों ने महज प्याज के मंहगा होने से सरकार पलट दी
थी। कुछ इसी तरह की समस्या हिमांचल में धूमल सरकार के लिए बंदर बन गए हैं। यही वजह
है कि अब राजनीतिक दलों की जुबान से केंद्रीय मुद्दे हटने लगे हैं, चुनाव प्रचार
के अंतिम चरण में एक बार फिर बंदरों का मुद्दा गरमा गया है। बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर तो धर्मशाला और
आसपास खुलेआम कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने
शिमला से बंदरों को लाकर धर्मशाला और आसपास के इलाके में छोड़ दिया। वैसे धूमल
सरकार ने सत्ता में आने के बाद बंदरों की आबादी को बढने से रोकने के लिए बड़ी
संख्या में बदरों की नसबंदी कराई। दरअसल बंदरों के मामले में सख्त कार्रवाई करने
से सरकार भी पीछे हट जाती है, क्योंकि ये मामला न्यायालय में लंबित है।
सच बताऊं तो जब मैं पिछले हफ्ते हिमांचल के
लिए निकल रहा था तो मुझे लगा था कि हिमांचल
में कांग्रेस वापसी नहीं कर पाएगी। वजह उसके तमाम केंद्रीय मंत्री भ्रष्टाचार में
शामिल पाए गए हैं। मंहगाई बेलगाम हो चुकी है। गैस सिलेंडर भी चुनावी मुद्दा बनेगा।
इतना ही नहीं हिमांचल में कांग्रेस की चुनावी बागडोर थामे वरिष्ठ नेता वीरभद्र
सिंह पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस तो मुकाबले से
बाहर ही होगी। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। कांग्रेस यहां बीजेपी को ना सिर्फ कड़ी
टक्कर दे रही है, बल्कि ये कहूं कि धूमल को कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है तो गलत नहीं
होगा। आपको बता दूं हिमांचल में ना कोई सलमान खुर्शीद की चर्चा कर रहा है, ना
राबर्ड वाड्रा की और ना ही नितिन गड़करी की। यहां चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बंदर
है और यहां के लोगों का मानना है कि बंदरों को काबू करने में धूमल सरकार फेल रही
है। ऐसे में अगर 20 दिसंबर को हिमांचल में कांग्रेस दीपावली मनाती नजर आए तो कम से
कम मुझे तो हैरानी नहीं होगी।
मित्रों, हिमांचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के सिलसिले में पूरे सप्ताह भर वहां था। चुनावी भागदौड़ की वजह से मैं आप सबके ब्लाग पर भी नहीं आ सका। आज ही वापस आया तो सबसे पहले मैने आपको वहां के चुनावी माहौल पर कुछ जानकारी देने की कोशिश की। इस दौरान हिमांचल के धर्मशाला शहर में ब्लागर भाई केवल राम जी से छोटी पर सुखद मुलाकात हुई। खैर अब कोशिश होगी कि गुजरात रवाना होने से पहले आप सबके ब्लाग पर जरूर पहुंच सकूं।
मित्रों, हिमांचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के सिलसिले में पूरे सप्ताह भर वहां था। चुनावी भागदौड़ की वजह से मैं आप सबके ब्लाग पर भी नहीं आ सका। आज ही वापस आया तो सबसे पहले मैने आपको वहां के चुनावी माहौल पर कुछ जानकारी देने की कोशिश की। इस दौरान हिमांचल के धर्मशाला शहर में ब्लागर भाई केवल राम जी से छोटी पर सुखद मुलाकात हुई। खैर अब कोशिश होगी कि गुजरात रवाना होने से पहले आप सबके ब्लाग पर जरूर पहुंच सकूं।
दोस्तों,
टीवी की दुनिया यानि छोटे पर्दे की बात आप सब तक पहुंचाने के लिए भी मैं प्रयासरत हूं। यहां आपको खबरिया चैनलों के बारे में तो जानकारी मिलेगी ही, साथ ही साथ कोशिश है कि मनोरंजक चैनलों पर भी कुछ बात की जाए। इसके लिए ही है मेरा नया ब्लाग यानि TV स्टेशन । मुझे आपका इंतजार है यहां । http://tvstationlive.blogspot.in/
चलिए इस बार बंदरो को ही कुछ कर लेने दीजिये चहुँ ओर बंदरों का ही गुणगान हो रहा है आपकी प्रस्तुति सराहनीय हैं आभार
ReplyDeleteजी, ये तो सच बात है
Deleteयूँ भी असल मुद्दे तो चुनावों से गायब ही रहते हैं . अबके बन्दर सही ....
ReplyDeleteगंभीर मुद्दों पर बस सियासत ही हो सकती है, इसलिए जमीनी हकीकत से वोटर जुड़ जाते हैं..
Deleteबढ़िया लेख विस्तृत जानकारी लिए
ReplyDeleteबंदरों के जंगल मनुष्य ने उजाड़े है
अब वे इस तरह बदला ले रहे होंगे क्या पता :)
आपने सही कहा है पहाड़ पहाड़ों की हरियाली खोती जा रही है !
सहमत हूं, बिल्कुल
Deleteआपका आभार
बंदरों के आवासीय स्थानों पर हम लोग अपने आवास बना रहे है,उनकी खाने पिने की चीजों को हम ही बर्बाद कर रहे है तो बेचारे बन्दर इसका बदला तो लेंगे ही ....
ReplyDeleteलो सत्ता से अब बन्दर भी परेशाँ हैं ... :))
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
बिल्कुल, मुख्यमंत्री के गले की फांस बन गए हैं हिमांचल के बंदर
Deleteये न हुई रिपोर्टिंग..दूध-पानी में फर्क बताती हुई..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deletebhaisahab gujraat jaa rahe hain..subhkaamnayien . mujhe to yahin se vahan ka ek bada upadravi /asbhya bandar dikh raha hai ...smbhal kar jaaiyega:)
ReplyDeleteहाहहाहाहहा
Deleteहां कुछ हद तक आपका कहना सही भी है
sarkar ko janta aatankit nahi kar paati...bandar hi sahi.
ReplyDeleteachhi jaankari.
बिल्कुल, आपकी बात में दम है..
Deleteआभार
किसी से तो डरें नेता लोग ..... इंसान से तो फर्क पड़ता नहीं ...
ReplyDeleteजी बिल्कुल सच कहा आपने
Deleteआज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत बहुत आभार
Deleteसटीक एवं सागर्भित विश्लेषण ..
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपके लेख के माध्यम से बहुत जानकारी मिली ..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteहमें अपने पूर्वजों का ख़याल रखना चाहिए ! बी जे पी हनुमान वंशजों का नुकसान नहीं कर पाएगी...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
जी, बात तो सही है...
Deleteअक्सर राज्यों के चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहते है,,,,,लेकिन राज्य एवं केन्द्रीय सरकार
ReplyDeleteको बंदरों के विषय में गंभीरता से सोचना होगा,,,सच्चाई यही है कि किसान बंदरों से बहुत परेशान है,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
बिल्कुल सही, यही देखा मैने हिमांचल प्रदेश में
Deleteयदि जनता वाकई सरकार से त्रस्त हैं तो सरकार बदलने के लिए लंका वासियों की तरह वानरों के लिए कह रहे होंगे ..
ReplyDeleteहम जो कहा ये कपि नहि होईं । वानर रूप धरे सुर होईं।।
जी बात तो सही है..
Deleteहिमाचल में बंदर अपना खेल दिखा ही देंगे .....मुद्दे तो और भी हैं ...लेकिन जहाँ - जहाँ आप गए वहां तो बंदरों के ही चर्चे हैं ....खासकर शिमला में तो अधिक ही हैं ....!
ReplyDeleteहां भाई केवल जी, वाकई बंदर यहां गंभीर समस्या हैं
Delete
ReplyDeleteअजी वानर सेना ने तो लंकेश को पानी पिला दिया था लेकि न
अफ़सोस इस बात का नेताओं को देखके बन्दर भागते क्यों नहीं हैं .
क्या बन्दर नेताओं का लिहाज़ करते हैं या बिरादरी को पहचानतें हैं .काश
महेंद्र जी ये प्राकृत आवासों के टूटने के मुद्दे चुनावी मुद्दे बनें नतीजे भी दिखाएं तो नेताओं को थोड़ी अक्ल भी आए .अच्छा मुद्दा लाएं हैं आप . बधाई
जी सहमत हूं आपकी बात से
Deleteमैंने अपने भ्रमण के दौरान देखा कि आज पहाड़ अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। sabhi jagah ke pahadon ka yahi hal hai bada dukh hota hai ....
ReplyDeleteजी, सही कहा आपने..
Deleteआभार
बन्दर तो बन्दर है बेचारे जाएँ तो जाएँ कहाँ. मजेदार नया आयाम.
ReplyDeleteआभार रचना जी
Deleteचलिए एक पोस्ट बंदरों के नाम ...पर सच ही तो जब जंगल ही नहीं रहंगे तो वो शहर का रुख तो करेंगे ही ....अपनी इस राजनीति में अब काँग्रेस आए या बीजेपी ...जनता को राहत कब मिलेगी ये कोई नहीं जानता .....
ReplyDeleteमजेदार सटीक सागर्भित विश्लेषण ..्बहुत बढ़िया
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