जी अन्ना ! मैंने भी दो करोड़ ही कहा |
अन्ना को दो करोड़ रूपये देने की पेशकश अरविंद
केजरीवाल ने की थी, लेकिन अन्ना ने ये पैसे लेने
से इनकार कर दिया। आज की ये सबसे बड़ी खबर है। लेकिन इस खबर को न्यूज चैनलों ने
अपनी हेडलाइंस में शामिल नहीं किया। दो
एक चैनल ने इस खबर को दिखाया भी, तो बस कोरम पूरा करने
के लिए, मतलब इसे अंडरप्ले कर दिया। हालांकि अब इस पर कुमार विश्वास की ओर से सफाई आई है कि ये रकम
अन्ना को घूस की पेशकश नहीं थी, बल्कि देश में भ्रष्टाचार के
खिलाफ जो लड़ाई शुरू की गई है, उसे संचालित करने के लिए जनता
ने चंदा दिया था। चूंकि इस पैसे को लेकर केजरीवाल
पर तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे थे,
लिहाजा इंडिया अगेस्ट
करप्सन के खाते से इस रकम का चेक अन्ना को देने के लिेए रालेगन सिद्धि भेजा गया
था। बताया जा रहा है कि केजरीवाल चाहते थे
कि इस रकम की देख रेख अन्ना करें, लेकिन अन्ना ने चेक लेने
से इनकार कर दिया और कहाकि ये सब काम आप लोग ही करें।
हंसी आ रही है ना। कितनी
बड़ी-बड़ी बातें ये लोग किया करते थे। देश में ऐसा माहौल बना दिया था कि जैसे इस
टीम के साथ जो लोग नहीं है, वो सभी भ्रष्ट
हैं। देश में एक मात्र ईमानदार ये लोग ही हैं
या फिर ये जिन्हें सर्टिफिकेट दें
वो ईमानदार है। अगर आपने मेरे लेख को पढ़े
हैं तो आपको ध्यान होगा कि मैं एक बात पर बार बार जोर दिया करता हूं। मेरा पक्का विश्वास है कि
बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत नहीं खड़ी की जा सकती। और आंदोलन की
शुरुआत से ही टीम के भीतर से जो खबरे बाहर आ रहीं थी, उसमें
पैसे की हेरा फेरी को लेकर तरह तरह की चर्चा होने लगी थी। हो सकता है कि हमारी और
आपकी सोच में अंतर हो, लेकिन मैं आज भी इसी मत का हूं कि
जिसे आप सब आंदोलन कहते हैं, मेरा मानना है कि ये शुरू से
आंदोलन के रुप में खड़ा ही नहीं हो पाया। दरअसल ये इलेक्ट्रानिक मीडिया का तमाशा
भर रहा।
कुछ मीडिया के विद्वान इस आंदोलन को आजादी की
दूसरी लड़ाई बता रहे थे। मैं बहुत हैरान था कि आखिर ऐसा क्या है इस आंदोलन में कि
इसे आजादी की दूसरी लड़ाई कहा जाए। कुछ ने तो इस आंदोलन की तुलना जे पी आंदोलन से
भी की। जब इसकी तुलना जेपी आंदोलन से होने लगी तो फिर सवाल खड़ा हुआ कि मीडिया इस
आंदोलन को क्यों इतना बड़ा बना रही है
? मेरा आज भी मानना है कि
जेपी आंदोलन व्यवस्था के खिलाफ एक संपूर्ण
आंदोलन था। ये आंदोलन विदेशी पैसों से खड़ा किया जा रहा था, जिसमें
कदम कदम पर पैसे बहाए जा रहे थे। लोगों को पूड़ी सब्जी हलुवा खिलाकर किसी तरह रोका
जा रहा था। दिल्ली वालों के लिए शाम का पिकनिक स्पाट बन हुआ था रामलीला मैदान।
मीडिया भी इस भीड़ में अपनी टीआरपी तलाश रही थी।
खैर ये बातें मैं
आपको पहले भी बता चुका हूं। मैं आज की घटना पर वापस लौटता हूं। अच्छा चलिए आपसे ही
एक सवाल पूछता हूं। जब आपको पता चला कि केजरीवाल दो करोड रुपये का चेक लेकर रालेगन सिद्धि गए और अन्ना
को इसे देने का प्रयास किया। ये सुनकर आपके मन में पहली प्रतिक्रिया क्या हुई ? मैं
बताता हूं, आप भी मेरी तरह हैरान हुए होंगे कि आखिर ये सब क्या हो
रहा है। लेकिन मैं जो बातें अब कहने जा रहा हूं उस पर जरा ध्यान दीजिए। भ्रष्टाचार
के खिलाफ अन्ना की अगुवाई में आंदोलन चल रहा हो, देश भर
में लोग मैं अन्ना हूं की टोपी पहन रहे हों और उन्हें ही दो करोड़ रुपये की पेशकश
की जाए और ये पेशकश कोई सामान्य आदमी नहीं खुद अरविंद कर रहे हों तो आप इसका मतलब
आसानी से निकाल सकते हैं। मतलब ये कि अरविंद कितने दबाव में होगें कि उन्होंने
अन्ना को पैसे देने का फैसला कर लिया। ये जानते हुए कि अन्ना पैसे स्वीकार नहीं कर
सकते। उनके कई उदाहरण सामने है, जहां उन्हें पुरस्कार में लाखों रुपये मिले तो
उन्होंने उसे गांव के विकास कार्यों में लगा दिया या फिर जरूरतमंदों को दान कर
दिया। वैसे ये भी कहा जा रहा है कि अरविंद ने ये जानबूझ कर किया, क्योंकि वो जानते ही थे
कि अन्ना पैसे लेगें नहीं, लेकिन पेशकश कर दिए जाने से उन्हें लगेगा कि अगर उनके
मन में गडबड़ी करने की मंशा होती तो ये पेशकश भला क्यों करते ?
बहरहाल अब धीरे धीरे
एक एक चेहरे नकाब उतरने वाला है। ये बात अब लगभग साबित हो गई है कि इस टीम के भीतर
पैसे को लेकर विवाद शुरू से रहा है। टीम के भीतर जिसने भी अरविंद पर उंगली उठाई, उसे यहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया
गया। लेकिन किरन बेदी से अनबन अरविंद केजरीवाल को भारी पड़ गई। दरअसल अरविंद अपनी
सारी बातें अन्ना से मनवा लिया करते थे। इसकी एक मुख्य वजह अन्ना के करीबी यानि
पीए सुरेश पढारे हैं। ये कहने की बात है कि सुरेश अन्ना के पीए थे, सच्चाई ये है
कि वो अन्ना की हर छोटी बड़ी जानकारी अरविंद को दिया करते थे। अरविंद भी पढारे को
इन सबके लिए अलग से खुश रखते थे। कहा जा
रहा है कि सुरेश इस पक्ष में नहीं था कि अन्ना अभी अरविंद का साथ छोड़े, वो चाहते थे कि अन्ना यहीं बनें रहें।
जानकार बताते हैं कि
सुरेश ने अपनी राय भी अन्ना को बता दी थी, लेकिन अन्ना ने सुरेश को डांट दिया था
कि तुम इस मामले में ज्यादा आगे आगे मत बोला करो। अरविंद की जरूरत से ज्यादा पैरवी
करने को लेकर अन्ना सुरेश से पहले ही नाराज चल रहे थे। इस बीच अन्ना और रामदेव की
मुलाकात जिसके बारे में गिने चुने लोगों को जानकारी थी, वो मीडिया तक कैसे पहुंची ? इसे लेकर
भी सुरेश की भूमिका पर उंगली उठ रही है। हालाकि सच ये है कि इस बार अन्ना के साथ
सुरेश यहां नहीं आए थे,लेकिन उनकी सभी से
बातचीत है, इसलिए अन्ना का मुवमेंट उन्हें आसानी से पता रहता है। बताते हैं कि
अन्ना को शक है कि सुरेश ने ही ये जानकारी अरविंद को दी और अरविंद ने ये जानकारी मीडिया से शेयर की। बहरहाल सुरेश की गतिविधियां
पूरी तरह संदिग्ध थीं, यही वजह है कि अन्ना ने सुरेश पढारे की अपने यहां से छुट्टी
कर दी।
सुरेश पढारे के बारे में
भी आपको बताता चलूं। दरअसल सुरेश पहले ठेकेदारी करता था। गांव के स्कूल का काम सुरेश ही कर रहा था, लेकिन वो रेत के गोरखधंधे
में फंस गया। इस पर ग्रामसभा की बैठक में सुरेश के खिलाफ प्रस्ताव पास हो गया और
उससे सभी काम छीन लिए गए। चूंकि ग्राम सभा जो फैसला करती है, उसे नीचा दिखाने की
अन्ना कोशिश करते हैं। यही वजह है कि सुरेश के खिलाफ जब ग्राम सभा ने प्रस्ताव पास
कर दिया तो अन्ना ने उसे अपने से जोड़
लिया। हालाकि प्रस्ताव पास होने के दौरान खुद अन्ना भी वहां मौजूद थे। सुरेश को
साथ रखने
के कारण गांव में अन्ना पर भी उंगली उठती रही है।
इसी तरह अन्ना के गांव
में एक भ्रष्ट्राचार विरोधी जन आंदोलन न्यास नामक संस्था है। इसकी अगुवाई अन्ना ही
करते हैं। कहा जा रहा है कि अगर ईमानदारी से इस संगठन की जांच हो जाए, तो यहां
काम करने वाले तमाम लोगों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। आरोप तो यहां तक लगाया
जा रहा है कि भ्रष्टाचार का एक खास अड्डा है ये दफ्तर। यहां एक साहब हैं, उनके पास
बहुत थोड़ी से जमीन है, उनकी मासिक पगार भी महज पांच हजार है, लेकिन
उनका रहन सहन देखिए तो आप हैरान हो जाएगे। हाथ में 70 हजार रुपये के मोबाइल पर
लगातार वो उंगली फेरते रहते हैं। हालत ये है कि इस आफिस के बारे में खुद
रालेगनसिद्दि के लोग तरह तरह की टिप्पणी करते रहते हैं। अब अन्ना के आंदोलन का नया
पता यही दफ्तर है।
खैर आप बस इंतजार
कीजिए हर वो बात जल्दी ही सामने आ जाएगी,
जो मैं आपको पहले ही बताता रहा हूं। अन्ना प्रधानमंत्री पर उंगली उठाते हैं कि ये
कैसे प्रधानमंत्री हैं कि इनके नीचे सब चोरी करने में लगे रहते हैं और उन्हें खबर तक
नहीं होती। अब तो प्रधानमंत्री भी ये दावा कर सकते हैं कि अन्ना जी आपकी टीम
में भी राजा, कलमाणी, जायसवाल, व्यापारी सब तो हैं। आप कैसे अपनी टीम को ईमानदारी
का सर्टिफिकेट बांटते फिर रहे हैं। बहरहाल अभी दो करोड़ रुपये का मामला ठंडा
नहीं पड़ा है। सब अरविंद
से इस मामले में सफाई चाहते हैं, अब सफाई देने के लिए अरविंद अपने साथियों
से सलाह मशविरा कर रहे हैं। बहरहाल वो सफाई
भले दे दें, लेकिन अब जनता में वो भरोसा हासिल करना आसान नहीं है।
बाप रे ! फिर से घोटाला और सौदेबाजी ....यहाँ कोई साफ़ दमन लिए हुए है भी क्या ? सब के सब भ्रष्ट .....
ReplyDeleteसच कहा आपने,
Deleteवाकई ये सवाल कई बार उठता है।
लेकिन इसका जवाब, शायद किसी के पास नहीं
अब किसी पर कैसे विश्वास किया जाय...
ReplyDeleteबिल्कुल सही
Deleteपर निराश होने की जरूरत नहीं
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteकिसी भी बेहतरी की उम्मीद कैसे की जाये जब हर बार जनता धोखा ही खाती है.....
ReplyDeleteयही तो दुर्भाग्य है।
Deleteजनता का पैसा और कोई भी खेलने लगता है ....किस तरह मैसेज भेज कर पैसा माँगा जा रहा था कि राजनीतिक महत्त्वकांक्षा नहीं है और वास्तविकता ...?
ReplyDeleteसच कहूं तो पूरा झगडा ही पैसे का है।
Deleteलगता तो यही है कि पैसे की बंदरबाट को लेकर ही इस टीम में बिखराव हुआ है
ram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
दी इनविजिबिल सायलेंट किलर
गल्ती हो गई शर्मा जी,
Deleteमैं आपको एक पढ़ा लिखा सीरियस ब्लागर समझता था।
इसलिए कई बार मैने आपकी बातों का जवाब भी देने की कोशिश की।
सोचा आपकी संगत गलत है, हो जाता है ऐसा, लेकिन मुझे उम्मीद थी
शायद कुछ बात आपकी समझ में आज जाए।
लेकिन आप तो कुछ संगठनों के लिए काम करते हैं और वहां फुल टाईमर
यानि वेतन भोगी हैं। यही अनाप शनाप लिखना ही आपको काम के तौर
सौंपा गया है। एक बात की मैं दाद देता हूं कि आप ये जाने के बगैर की
आपको लोग पढ़ते भी हैं या नहीं, कहां कहां जाकर कुछ भी लिखते रहते हैं।
खैर कोई बात नहीं, ये बीमारी ही ऐसी है। वैसे अब आप में सुधार कभी संभव ही
नहीं है। सुधार के जो बीज आदमी में होते है, उसके सारे सेल आपके मर
चुके हैं। माफ कीजिएगा पूछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
अब तो ईश्वर से ही प्रार्थना कर सकता हूं कि, शायद वो आपको सद् बुद्धि दे।
शायद सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे.....
ReplyDelete:-/
सादर
अनु
आपकी बात बिल्कुल सही है..
Deleteस्थिति वाकई गंभीर है ...
ReplyDeleteहालत देख पर दुःख होता है ..!!
काफी बारीकी से स्थिति स्पष्ट की अच्छा आलेख ..!!
शुभकामनायें ..महेंद्र जी .
आपका बहुत बहुत आभार
Deleteमहेंद्र भाई,
ReplyDeleteमेरी तो समझ के बाहर है राजनीती,पता नहीं
इन दिनों क्या क्या हो रहा है किस पर विश्वास करे किस पर नहीं !,
एक विस्तृत पोस्ट ...
महेंद्र भाई,
ReplyDeleteमेरी तो समझ के बाहर है राजनीती,पता नहीं
इन दिनों क्या क्या हो रहा है किस पर विश्वास करे किस पर नहीं !,
एक विस्तृत पोस्ट ...
आपका कहना बिल्कुल सही है,
ReplyDeleteक्या हो रहा है ये सब, वाकई
समझना मुश्किल है।
आपका आधा सच संदेह से परे है..
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता जी
Deletebehtreen sach likha hai shreeman isi ki naql shayad in taza panktiyon mein hoti hai
ReplyDeleteबेईमानी के इस गलीज़ दोर में ईमान की सनद रहे
जाली सिक्कों के बाज़ार में कुछ ही लोग नकद रहे
यही धुंधलका रहा तो मुस्तकबिल सियाह है आगे
लिख जाता हूँ तेरे लिए दोरेहाज़िर ताकि सनद रहे
बहुत सुंदर
Deleteआभार
Brashtachar insaan ke khoon mein mil gaya hai, India ke hi nahi balki poore world ki har country mien, har kadam par bhrashat milo hi jaayeige. Bharshtachar ko insaan aandolan se nahin balki self correction se hi hata sakta hai. Rishwat na do, kaam bali chad jane do aur currupton ko jad se mitao . iski root mein truth ka acid dalna hai drop by drop by every individual. Anna tried it and it will take time but it will happen as the chain has stated. Though there are some weak points as every one is human but change will come. Every contribution counts in it including your wonderful comments and our deep concern.
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