देश के हालात और देश में चलने वाली हर गतिविधियों पर मैने हमेशा ही अपनी बेबाक राय रखी है। कभी इस बात की चिंता नहीं की कि कोई मुझे क्या बता रहा है। हालांकि मैं देख रहा हूं कि लोग मुझे जाने बगैर ही मेरी तस्वीर बनाने लगे। इसमें किसी ने मुझे दिग्गी के खानदान का बताया, किसी ने संघी कहा, तो कुछ ने वामपंथी का ठप्पा लगा दिया। हां बिल्कुल ठीक समझ रहे हैं आप ! कुछ ने पागल तक करार दे दिया। खैर मेरे बारे में कौन क्या राय रखता है, मेरे लिए ये कभी महत्वपूर्ण नहीं रहा। मेरे लिए महत्वपूर्ण ये है कि मैं जो देख रहा हूं, या मेरी जो समझ है, उसे ईमानदारी के साथ आपके सामने रख रहा हूं या नहीं। यही वजह है कि अगर आप इस आंदोलन के बारे में मेरे ब्लाग पर लिखे लेख को पढ़ें तो आप खुद मानने को मजबूर हो जाएंगे कि जो बातें मैने कहीं है, वही आगे चल कर वो सच साबित हुई है। अब आप इसे सही समझें या गलत,या फिर मुझे पागल बताते रहें। वैसे भी मेरा मानना रहा है कि
इन्हीं बिगड़े दिमागों में घनी खुशियों के लच्छे हैं,
हमें पागल ही रहने दो कि हम पागल ही अच्छे हैं।
अच्छा इसके पहले की मैं बात-बात में एक जरूरी बात बताना भूल जाऊं, पहले आप सबको एक महत्वपूर्ण विज्ञापन के बारे में बता दूं। वैसे तो ये विज्ञापन मुझे ब्लाग पर प्रकाशित करने के लिए भेजा गया है, पर जिन लोगों ने भेजा है वो बेचारे नई-नई पार्टी बनाने की कवायद कर रहे हैं। इसलिए सोचा कि विज्ञापन के बजाए इसे खबर बनाकर ही छाप देता हूं, क्यों इनसे पैसे लिए जाएं। दरअसल अन्ना के अचानक साथ छोड़ देने से बाकी टीम को एक चेहरे की जरूरत है, इस टीम के शुभचिंतक भी बताते हैं कि यहां दिमाग तो बहुत लोगों के पास है, पर चेहरा बिकाऊ नहीं है। इसलिए थोड़ा बिकाऊ चेहरा चाहिए, जिसे देखकर देश की जनता को लुभाया जा सके।
आवश्यकता है "पोस्टर ब्वाय" की
उम्र 75 के पार होनी चाहिए। शिक्षा प्राइमरी से ज्यादा नहीं। अंग्रेजी का ज्ञान शून्य होना चाहिए, हिन्दी पढ़ना नहीं बस समझना जरूरी है। विशेष योग्यता कम से कम 15 से 20 दिन भूखे रहने की आदत होनी चाहिए। दूसरों के काम का श्रेय लेने की क्षमता होनी चाहिए। पूर्व सैनिक को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर बाकी मानक पर उम्मीदवार खरा उतरा तो उसे उम्र में पांच साल की छूट यानि 80 साल का भी हो तो चलेगा। वेतन उसकी आवश्यकतानुसार, चयन हो जाने पर इलाज मुफ्त सुविधा। हां जब तक वो "पोस्टर ब्वाय" रहेगा उसे अकेले कहीं जाने आने की छूट नहीं होगी। मंदिर ( तथाकथित) में रहना होगा, लेकिन वहां मूर्ति किसकी रखी जाएगी, ये अधिकार प्रबंधन का होगा। शर्तें. चयन हो जाने के बाद घर के किसी सदस्य और मित्र से संपर्क नहीं रख सकेगें। उसका असली नाम जो भी हो, उससे कोई मतलब नहीं रहेगा। प्रबंधन जो नाम तय करेगा, पोस्टर ब्वाय उसी नाम से जाना जाएगा। किसी भी शर्त को तोड़ने पर उसे देह त्याग करना होगा।
ये विज्ञापन मेरी आंखो के सामने आया तो सच बताऊं मैं भी हैरान रह गया। मैने जानने की कोशिश की आखिर एक " पोस्टर ब्वाय " के लिए इतनी शर्तों की क्या जरूरत है ? ऐसा भी नहीं कि उसे बहुत ज्यादा वेतन भत्ता दे रहे हों कि इतनी सावधानी बरतने की जरूरत है। बहरहाल जो बातें पता चलीं वो तो हैरान करने वाली थीं। पता चला कि इसके पहले जिसे पोस्टर ब्वाय की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था, उसके कम पढ़े लिखे होने के ये सब फायदा उठा रहे थे। मसलन जब इनकी मीटिंग होती थी और लोगों को लगता था कि इस बात की जानकारी अन्ना को नही होनी चाहिए , तो ये अंग्रेजी में बातें करने लगते थे। जब तक ये अंग्रेजी में बातें करते थे, बेचारे अन्ना इधर उधर सबके मुंह ताकते रहते थे। फिर जो फाइलें तैयार होती वो अंग्रेजी में या फिर हिंदी में। बेचारे अन्ना को दोनों भाषा पढ़ने में दिक्कत होती थी। बहरहाल अन्ना की ये दिक्कत बाकी लोगों को ये शूट करती थी। लेकिन अन्ना भी दुनिया देख चुके हैं, वो अपनी तीसरी आंख से बहुत कुछ देख सुन लेते थे। इसलिए अब नए पोस्टर ब्वाय के एजूकेशन में कटौती की गई है। क्योंकि अन्ना के सातवीं क्लास तक पढ़ाई की जानकारी लोगों को है, उसके बाद की नहीं। इसीलिए नए पोस्टर ब्वाय को सिर्फ पांचवीं तक पढ़ाई की छूट होगी।
मैं देख रहा हूं कि विज्ञापन में हर बात पर बारीकी से ध्यान दिया गया है। उनकी सबसे बड़ी ताकत यही थी ना कि बेचारे 15 से 20 दिन तक बिना खाए रह जाते हैं। बताइये 80 साल का बूढा बिना खाए मंच पर लेटा रहता था, और उसके मंच के सामने भीड़ लगातार बनी रहे, इसके लिए लंगर चलता था। यहां देशी घी की पूड़ी सब्जी और हलुवा लगातार बनाए जा रहे थे। मैं देखता था कि सुबह नाश्ते और शाम को स्नैक्स के दौरान यहां भीड़ बेकाबू हो जाया करती थी। लेकिन बेचारे अन्ना इतने लोगों को सामने खाता पीता देखने के बाद भी कभी ये नहीं कहा कि अब उनसे भूखा नहीं रहा जा रहा है। फौजी रहे हैं ना तो उनकी भूख तो तिरंगे को ही देखकर खत्म हो जाया करती थी। बहरहाल अब राजनीतिज्ञों की बात छोड़ दीजिए, क्योंकि लालू यादव सरीखे नेता ने तो उनके अनशन की ईमानदारी पर ही उंगली उठा दी थी। अब दूध से जला छांछ भी फूंक फूंक पर पीता है। इसलिए कुछ और सावधानी बरती जा रही है। मसलन अन्ना जब दिल्ली में रहते थे तो दिल्ली की भाषा बोलते थे, यहां से बाहर जाते ही वो दिल की भाषा बोलने लगते। ये बात भी लोगों को बिल्कुल हजम नहीं हो रही थी। लिहाजा नए पोस्टर ब्वाय को अनुबंध तक यहीं के मंदिर में रहना होगा, यहां वो आराधना किसकी करेगा, ये भी टीम बताएगी। खास बात ये कि उसका असली नाम सबको नहीं पता होना चाहिए। देखा था ना, पहली पर कांग्रेस प्रवक्ता ने नाम क्या लिया, बवाल खड़ा हो गया। खैर देखिए भाई अगर ऐसा कोई आदमी आपकी नजर में हो तो प्लीज मदद कर दीजिए दिल्ली की।
देश में कई बार सोशल साइट्स के दुरुपयोग की बात उठती है, या फिर इस पर अंकुश लगाने की बात होती है तो ऐसी कोशिशों का विरोध करने में मैं भी आपके साथ मजबूती से खड़ा रहने वालों में हूं, कभी इसकी स्वायत्तता का विरोधी नहीं रहा। पर आज जब कुछ पढ़े लिखे लोगों को देखा कि वो एक साजिश के तहत अन्ना के खिलाफ माहौल बना रहे हैं, तो मन दुखी हुआ। फिर ना जाने क्यों लगने लगा कि अभी हम उस काबिल नहीं हुए हैं कि हमें आजाद छोड़ दिया जाए, एक लक्ष्मण रेखा जरूरी है। अब देखिए अन्ना विरोधी वाल पर लंपू चंपू टाइप के लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं। अच्छा आलोचना हो तो कोई खास बात नहीं, आलोचना होनी चाहिए, लेकिन यहां उन्हें अपमानित किया जा रहा है। जो लोग कल तक उनके नाम की टोपी अपने सिर पर रख कर गर्व कर रहे थे, आज उसी टोपी को पैरों तले रौंद रहे हैं। खैर ये सब किसके इशारे पर और किसके लिए किया जा रहा है, ये बातें किसी से छिपी नहीं है। टीम में दूसरी तरफ जो लोग हैं वो तकनीक फ्रैंडली हैं। तभी तो उन्होंने सप्ताह भर में ही देश की नब्ज टटोल ली कि उन्हें राजनीतिक दल बनाने का देश की जनता आदेश सुना रही है। देश की चुनाव प्रक्रिया को ये गलत बताते हैं और अपने सर्वे जिसकी कोई विश्वसनीयत नहीं है, उसे देश का फरमान कहते हैं। एक कड़ी बात कह दूं, जितनी फर्जी ये सिविल सोसायटी थी, उससे ज्यादा फर्जी इनका सर्वे है।
चलते चलते आखिरी बात और। मीडिया में एक बात बहुत तेजी से चलाई जा रही है। अन्ना और रामदेव गुपचुप मिले। मेरा सवाल है ? क्या अन्ना और रामदेव पहली बार मिले हैं। क्या कभी अन्ना ने या रामदेव ने इस बात से इनकार किया था कि उन दोनों में आपस में रिश्ते नहीं है। आपको याद दिला दूं दोनों ने एक साझा प्रेस कान्फ्रेंस में ये बात कहा था कि दोनों एक दूसरे के आंदोलन में मदद करेंगे। हां बीच के कुछ लोग जरूर ये कोशिश करते रहे कि इन्हें अलग अलग ही रहने दिया जाए। अगर ये दोनों एक हो गए तो बाकी लोगों की कोई पूछ नहीं रह जाएगी। अच्छा फिर इस मुलाकात की जिस तरह से हवा बनाई गई जैसे अन्ना बाबा रामदेव ने बल्कि किसी आतंकवादी से मिल रहे हैं और मिलाने वाला कोई बड़े गिरोह का सरगना है। खैर ये अध्याय बंद हो गया है। हमें भी इस बात का दुख है कि एक महत्वपूर्ण आंदोलन कुछ लोगों की अतिमहत्वाकांक्षा के आगे दम तोड़ दिया। लिखना बहुत कुछ चाहता हूं, पर अब स्वास्थ इजाजत नहीं दे रहा है। सुबह कहीं पढ़ रहा था कि ईश्वर या तो स्वास्थ दे या फिर शरण दे। आगे फिर...
क्या होगा इस देश का ? बस यही प्रश्न बार -बार मन को उद्वेलित करता है ? और कहीं पर निराशा ही हाथ लगती है .....!
ReplyDeleteवाकई आप सही हैं
Deleteये चिंता का विषय है
वाह!खूब जबरदस्त लिखा है.
ReplyDeleteगहरा कटाक्ष......
कभी मैं भी अन्ना समर्थक थी अब लगता है कि सारे समीकरण गलत हो गए हैं .
आप ने तो संभावनाओं के बारे में बहुत पहले से इशारा कर ही दिया
अरविन्द जी के प्रति आस्था बची थी..लेकिन अब तो अजीब से हालात हो गए हैं.
एक आम आदमी भरोसा करे तो किस पर?अब तो यह सारा ड्रामा देख कर वह ठगा सा महसूस कर रहा है .
.....
अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखियेगा .
मैं अन्ना हूं नाम की टोपी सिर पर रखने वाले ही अब अन्ना को देशद्रोही साबित करने पर तुले हैं। अरविंद दिखावे के लिए बहुत संतुलित बयान दे रहे हैं, परंतु उनके ही लोग सोशल साइट पर एक साजिश के तहत जहर उगल रहे हैं।
Deleteबहरहाल अब जल्दी ही अरविंद का भी असली चेहरा सामने आ जाएगा...
न जाने कौन सा ज़हर है इन फिज़ाओं में
ReplyDeleteख़ुद से भी ऐतबार.उठ गया है अब मेरा ........
बिल्कुल सही कहा आपने,
Deleteआधा प्लस आधा हुआ, पूरा पूरा सत्य |
ReplyDeleteठगे हुवे हम हैं खड़े, देखें काले कृत्य |
देखें काले कृत्य , छंद गंदे हो जाते |
कुक्कुरमुत्ते उगे, मगर क्या बहला पाते ?
जगना हुआ हराम, भला था सोये रहते |
देखा मुंह में राम, छुरी को कैंची कहते ||
वाह रविकर जी,
Deleteआपके कमेंट
लेख में एक नई जान डाल देते हैं।
आभार
अगर ऐसा है तो बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी.
ReplyDeleteसब कुछ जल्दी ही सबके सामने आ जाएगा..
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteदेख तेरे संसार की हालत क्या होगया भगवान कितना बदल गया इंसान...
ReplyDeleteसच कहा आपने
Deleteदेश के हालातों पर एक बार फिर बेबाक़ कलम चली आपकी ... आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया...
Deleteवैसे भी देश की इस वक्त कि स्थिति किसी दुखद समाचार से कम नहीं हैं ...रोज़ कुछ ना कुछ नया सामने आ जाता हैं ...कभी कांग्रेस तो कभी अन्ना ,कभी केजरीवाल .....हर बात हद से गुज़र चुकी हैं ...इतने सालो में राजनीति का ऐसा भयानक चेहरा कभी नहीं देखा ...
ReplyDeleteआगे आगे देखिए..
Deleteइस टीम ने देश में सामाजिक आंदोलनों की बुनियाद ही हिला दी है
Achha vyang hai..kai bar jo bat hamarey liye vyang hoti hai dusro ke liye uske vyang hone ka ahsas tak nahi hota. Ye bhi ek vyang hai samaj ki vyavstha per.
DeleteAchha vyang hai.. Kai bar jo hamare liye vyang hai vo dusro ki ghatak sachhai hoti hai jiska unhe ahsas tak
ReplyDeletenahi hota..
Achha vyang hai.. Kai bar jo hamare liye vyang hai vo dusro ki ghatak sachhai hoti hai jiska unhe ahsas tak
ReplyDeletenahi hota..
सही कहा..
Deleteये सच्चाई ही है
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी
ReplyDeleteapne analysis bahut achi ki hai. prasha ye hai ke aage desh ka rasta kya ho?
ReplyDeleteSir analysis bahut achi hai. prashan ye hai ke aage desh ka rashta kya hoga?
ReplyDeleteकभी मैं भी अन्ना समर्थक था अब लगता है कि सारे समीकरण गलत हो गए हैं .
ReplyDeleteआप ने तो संभावनाओं के बारे में बहुत पहले से इशारा कर ही दिया और हमने भी लिख दिया था कि अन्ना के बस का नहीं है भ्रष्टाचार मिटाना लेकिन इनके आन्दोलन से ज़रा मूड बदल जायेगा.
मैं अन्ना हूं नाम की टोपी सिर पर रखने वाले ही अब अन्ना को देशद्रोही साबित करने पर तुले हैं। अरविंद दिखावे के लिए बहुत संतुलित बयान दे रहे हैं, परंतु उनके ही लोग सोशल साइट पर एक साजिश के तहत जहर उगल रहे हैं।
बहरहाल अब जल्दी ही अरविंद का भी असली चेहरा सामने आ जाएगा...
आंदोलन तो खत्म हो चुका है...
Deleteअब सब एक दूसरे की पोल पट्टी खुद ही खोलेंगे।
वैसे आंदोलन के नाम पर मोला माल जमा किया है, उसे जब तक निपटा नहीं लेगें, ये लोगों को बड़े बड़े सपने दिखाते रहेंगे।
हालात दुखदाई हैं ..!!समझ नहीं आ रहा हम किस और जा रहे हैं ...?
ReplyDeleteजी बिल्कुल
DeleteIs Poster boy ki to hamare desh mein saal mein ek do baar zaroorat pad hi jati hai. Kabhi kisi vesh mein, kabhi kisi vesh mein. Bas maksad ke saath umr aur vesh badal jate hain. Demand to hamesha hi bani rahti hai. India needs a leader directly from Heavens abode to get united and fight against curruption. The unity which empowered Gandhi ji is unimaginable even in the far future.As far today's scenario is concerned "Munnabhai" is a super hit, Remember.
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