अभिव्यक्ति की आजा़दी का मतलब क्या है ? आजा़दी का मतलब क्या ये होना चाहिए कि आप कुछ भी बोलें और लिखें, कोई रोकने वाला नहीं होगा। या फिर अभिव्यक्ति की आजादी की कोई लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए ? मीडिया से जुडे़ होने के कारण आप समझ सकते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी का मैं तो कभी विरोधी नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा मानना है कि अगर अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश हुई तो सबसे ज्यादा मुश्किल मीडिया को ही होगी। इसके बाद भी मैं अब इस मत का हूं कि इस आजादी की एक बार समीक्षा होनी चाहिए। समीक्षा ही नहीं बल्कि लक्ष्मण रेखा भी तय की जानी चाहिए, जिससे इस आजादी की आड़ में गंदा खेल ना खेला जा सके।
मेरा शुरू से मानना रहा है कि "इंडिया अगेंस्ट करप्सन" से जुड़े तमाम लोग ऐसी भाषा इस्तेमाल करते हैं जिसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। संसद की गरिमा के साथ जिस तरह इस टीम ने नंगा नाच किया है, मेरी नजर में ये अक्षम्य अपराध है। हां ये बात सही है कि संसद में दागी सांसद हैं, कई लोगों पर गंभीर अपराध हैं। लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि जब चुनाव लड़ने वालें उम्मीदवारों ने पर्चा दाखिल करने के दौरान हलफनामें में घोषित कर दिया कि उनके खिलाफ ये ये मामले लंबित हैं और न्यायालयों में विचाराधीन हैं। इसके बाद भी जब वो हमारे आपके वोट से चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए तो उन्हें गाली देने के बजाए एक बार खुद का भी मूल्यांकन करना चाहिए। सच तो ये है कि जो लोग दागी और भ्रष्टाचार का रोना रो रहे हैं, वो खुद इतने खुदगर्ज हैं कि वोट की कीमत नहीं जानते। वरना केजरीवाल जैसे लोग चुनाव के वक्त मतदान छोड़ कर गोवा जाने के लिए तैयार ना होते।
आइये मुद्दे की बात करें । ताजा मामला कानपुर निवासी कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी का है। असीम भी इंडिया अगेंस्ट करप्सन से जुड़े हैं और व्यवस्था पर चोट करने वाले उनके कार्टून का मैं भी प्रशंसक हूं और मेरी तरह तमाम और लोग भी उन्हें पसंद करते हैं। लेकिन फिर बात आती है आजादी की मर्यादा की। क्या हमें असीम को ये छूट दे देनी चाहिए कि वो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी कार्टून बनाने को स्वतंत्र हैं। इस कार्टून पर एक नजर डालिए, क्या आपको इस कार्टून में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता है। मेरी तो घोर आपत्ति है। पहले तो महिला को तिरंगे में लपेटा गया है, ये असीम की दूषित मानसिकता को बताने के लिए काफी है। मुझे याद है कि कुछ साल पहले समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां ने भारत माता को " डायन " कहा था, उसके बाद तो पूरे देश में हाय तौबा मच गई थी। मैं भी आजम खां के इस वक्तव्य को सही नहीं मानता हूं। मुझे लगता है कि आजम खां से कहीं ज्यादा घिनौना कृत्य असीम का है। इस कार्टून के जरिए भारत माता को नीचा दिखाने के साथ ही तिरेंगे का भी अपमान किया गया है। लेकिन यहां लोग असीम का समर्थन कर रहे हैं, क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूं ? मीडिया में ये दोहरा मानदंड क्यों है।
अब असीम के इस दूसरे कार्टून को ले लें। मैं कहीं से नेताओं का पक्ष नहीं ले रहा हूं, लेकिन हम ये क्यों भूल जाते हैं कि हम आज भी एक सभ्य समाज में रहते हैं और सभ्य समाज की एक अपनी मर्यादा है, यहां कोई लिखा पढ़ी में कानून तो नहीं है, कि हमें कैसे रहना है, क्या करना है क्या नहीं करना है, लेकिन इतना तो हम सब जानते ही हैं कि सभ्य समाज की क्या परिभाषा है और उसका दायरा क्या है। पता नहीं मैं सही कह रहा हूं या नहीं, पर जितना मैं जानता हूं कार्टून का मकसद यही है कि वहां कुछ लिखने की जरूरत ना पड़े, ऐसा कार्टून बनाया जाए, जिसमें सब कुछ साफ हो जाए । लेकिन अब कार्टूनिस्ट अपनी लक्ष्मण रेखा पार करने लगे हैं और कार्टून के जरिए व्यक्तिगत खुंदस निकालने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि कार्टून बनाने के बाद उसमें कुछ आपत्तिजनक शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। गैंग रेप आफ मदर इंडिया, नेशनल एनीमल ये सब उनकी घटिया सोच को दिखाती है।
असीम का एक ये भी कार्टून है। क्या इसे आप सही मानते हैं। हम संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। हर पांच साल में जब चुनाव होता है तो देश की 121 करोड़ की आबादी सदस्यों को चुनने लिए मतदान करती है। कड़ी धूम, बारिश और ठंड की परवाह किए बगैर हम वोट डालकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को लोकतंत्र के इसी मंदिर में भेजते हैं। लेकिन यहां संसद की तरह तो पहले असीम ने टायलेट को डिजाइन किया, इसके बाद भी उनसे नहीं रहा गया तो अपनी घिनौने विचार को व्यक्त करने के लिए यहां इसे "नेशनल टायलेट" लिखा। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि इसके लिए सिर्फ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज करने से कुछ नहीं होने वाला है। लोकतंत्र की खिल्ली उड़ाने वाले दोषी को फांसी पर भी लटका दिया जाए तो ये सजा कम होगी। आइये एक और कार्टून पर नजर डालते हैं, उसके बाद आप देखें कि असीम की मानसिकता क्या है।
अब इस कार्टून के जरिए आप क्या साबित करना चाहते हैं। आपको नहीं लगता कि यहां जो भी कार्टून हैं वो देश की गरिमा के खिलाफ हैं। अगर कार्टून भ्रष्ट नेता के खिलाफ होता तो मुझे लगता है कि इससे किसी को इतनी तकलीफ नहीं होती। लेकिन यहां तो राष्ट्रीय गौरव यानि तिरंगे का मजाक बनाया गया, फिर संसद कि गरिमा को तार तार करने वाला कार्टून और राष्ट्रीय चिन्ह अशोक की लाट में तीन शेरों की जगह तीन भेड़िए बनाकर सत्यमेव जयते के स्थान पर भ्रष्टमेव जयते लिखा गया है। मैं व्यक्तिगत रूप से इस कार्टून के पक्ष में भी नहीं हूं और ना ही मैं समझता हूं कि इसके जरिए कोई सकारात्मक संदेश ही जनता के बीच पहुंच रहा है। सिर्फ यही नहीं असीम का अगला कार्टून तो देखकर ही उसके प्रति मन में घृणा पैदा करती है। मैं वाकई ये सोचने के लिए मजबूर हो जाता हूं कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यही हैं। पहले इस कार्टून पर नजर
डालिए। अब मैं देश के उन विद्वानों से इस कार्टून के बारे में जानना चाहता हूं, जो उसकी गिरफ्तारी पर हाय तौबा मचा रहे हैं। इसके जरिए देश की जनता को क्या संदेश देने की कोशिश की जा रही है। इस कार्टून के जरिए क्या कसाब को महिमा मंडित करने की कोशिश की जा रही है या फिर ये बताया जा रहा है कि हमारा भारतीय संविधान अब इसी के लायक है कि आतंकवादी इस पर पेशाब करें। कार्टून बनाने की बात तो दूर मैं तो समझता हूं कि किसी भी भारतीय के मन में भारतीय संविधान के प्रति ऐसी दुर्भवना कैसे आ सकती है। अगर आती है तो क्या वो सजा का हकदार नहीं है ? उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए ? अगर देश संविधान की इज्जत करता है, तो हमें उन लोगों की पहचान करनी होगी, जो ऐसे आदमी की गिरफ्तारी के विरोध में सड़क पर निकले हुए हैं। मन में एक सवाल है कि क्या देश की प्रतिष्ठा के खिलाफ इस तरह जहर उगलने वाले के खिलाफ दुनिया के दूसरे देश भी यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, या फिर ऐसी सख्त कार्रवाई करते हैं, जिससे कोई दूसरा आदमी ऐसी हिमाकत न कर सके।
सच कहूं तो मुझे असीम के खिलाफ दर्ज राष्टद्रोह के मामले को लेकर कोई आपत्ति नहीं है, मुझे आपत्ति इस बात पर है कि जो कार्रवाई बहुत पहले करनी चाहिए थी, उसे अंजाम देने में इतना वक्त क्यों लगाया गया, इसके लिए जरूर पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। मुझे पता है कि देश और प्रदेश में कमजोर सरकार है, इसलिए मामला भले दर्ज कर लिया गया हो, लेकिन वो देश में कुछ लोगों के विरोध को झेल नहीं पाएगी। आज नहीं कल असीम को छोड़ दिया जाएगा। मैं अभी देख रहा हूं कि महाराष्ट्र सरकार फिलहाल घुटने पर आ गई है और वो पूरे मामले से सम्मान जनक तरीके से कैसे बाहर निकले, इस पर विचार कर रही है। पुलिस पर दबाव बना दिया गया है कि वो 16 सितंबर के पहले ही असीम को कोर्ट में पेश कर कह दे कि अब जांच पूरी हो गई है। जिससे असीम की रिहाई का रास्ता साफ हो सके।
बहरहाल पुलिस तो अब असीम को छोड़ना चाहती है, लेकिन उसके खिलाफ मामला दर्ज हो गया है और उसे कोर्ट ही छोड़ सकती है। लिहाजा पुलिस के हाथ में अब कुछ नहीं रह गया है। दवाब में पुलिस भले आ गई हो, लेकिन कोर्ट ने आज उसे 24 सितंबर तक जेल भेज दिया है। जेल भेजना कोर्ट की भी मजबूरी थी, क्योंकि हीरो असीम ने जमानत की अर्जी ही नहीं दी। अब देशवासियों की समझ में नहीं आ रहा है कि देशद्रोह जैसा मामला दर्ज करने के बाद पुलिस अब घुटने पर क्यों आ गई? खैर जल्दी ही असीम को विदेशों में तमाम पुरस्कार और सम्मान मिलने का क्रम शुरू हो जाएगा। नेताओं को नेशनल एनीमल और संसद को नेशनल टायलेट बताने वाला अब देश का राष्ट्रीय हीरो होगा, जिससे हर जगह सम्मान मिलेगा। शर्म की बात है..।
मेरा शुरू से मानना रहा है कि "इंडिया अगेंस्ट करप्सन" से जुड़े तमाम लोग ऐसी भाषा इस्तेमाल करते हैं जिसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। संसद की गरिमा के साथ जिस तरह इस टीम ने नंगा नाच किया है, मेरी नजर में ये अक्षम्य अपराध है। हां ये बात सही है कि संसद में दागी सांसद हैं, कई लोगों पर गंभीर अपराध हैं। लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि जब चुनाव लड़ने वालें उम्मीदवारों ने पर्चा दाखिल करने के दौरान हलफनामें में घोषित कर दिया कि उनके खिलाफ ये ये मामले लंबित हैं और न्यायालयों में विचाराधीन हैं। इसके बाद भी जब वो हमारे आपके वोट से चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए तो उन्हें गाली देने के बजाए एक बार खुद का भी मूल्यांकन करना चाहिए। सच तो ये है कि जो लोग दागी और भ्रष्टाचार का रोना रो रहे हैं, वो खुद इतने खुदगर्ज हैं कि वोट की कीमत नहीं जानते। वरना केजरीवाल जैसे लोग चुनाव के वक्त मतदान छोड़ कर गोवा जाने के लिए तैयार ना होते।
आइये मुद्दे की बात करें । ताजा मामला कानपुर निवासी कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी का है। असीम भी इंडिया अगेंस्ट करप्सन से जुड़े हैं और व्यवस्था पर चोट करने वाले उनके कार्टून का मैं भी प्रशंसक हूं और मेरी तरह तमाम और लोग भी उन्हें पसंद करते हैं। लेकिन फिर बात आती है आजादी की मर्यादा की। क्या हमें असीम को ये छूट दे देनी चाहिए कि वो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी कार्टून बनाने को स्वतंत्र हैं। इस कार्टून पर एक नजर डालिए, क्या आपको इस कार्टून में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता है। मेरी तो घोर आपत्ति है। पहले तो महिला को तिरंगे में लपेटा गया है, ये असीम की दूषित मानसिकता को बताने के लिए काफी है। मुझे याद है कि कुछ साल पहले समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां ने भारत माता को " डायन " कहा था, उसके बाद तो पूरे देश में हाय तौबा मच गई थी। मैं भी आजम खां के इस वक्तव्य को सही नहीं मानता हूं। मुझे लगता है कि आजम खां से कहीं ज्यादा घिनौना कृत्य असीम का है। इस कार्टून के जरिए भारत माता को नीचा दिखाने के साथ ही तिरेंगे का भी अपमान किया गया है। लेकिन यहां लोग असीम का समर्थन कर रहे हैं, क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूं ? मीडिया में ये दोहरा मानदंड क्यों है।
अब असीम के इस दूसरे कार्टून को ले लें। मैं कहीं से नेताओं का पक्ष नहीं ले रहा हूं, लेकिन हम ये क्यों भूल जाते हैं कि हम आज भी एक सभ्य समाज में रहते हैं और सभ्य समाज की एक अपनी मर्यादा है, यहां कोई लिखा पढ़ी में कानून तो नहीं है, कि हमें कैसे रहना है, क्या करना है क्या नहीं करना है, लेकिन इतना तो हम सब जानते ही हैं कि सभ्य समाज की क्या परिभाषा है और उसका दायरा क्या है। पता नहीं मैं सही कह रहा हूं या नहीं, पर जितना मैं जानता हूं कार्टून का मकसद यही है कि वहां कुछ लिखने की जरूरत ना पड़े, ऐसा कार्टून बनाया जाए, जिसमें सब कुछ साफ हो जाए । लेकिन अब कार्टूनिस्ट अपनी लक्ष्मण रेखा पार करने लगे हैं और कार्टून के जरिए व्यक्तिगत खुंदस निकालने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि कार्टून बनाने के बाद उसमें कुछ आपत्तिजनक शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। गैंग रेप आफ मदर इंडिया, नेशनल एनीमल ये सब उनकी घटिया सोच को दिखाती है।
असीम का एक ये भी कार्टून है। क्या इसे आप सही मानते हैं। हम संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। हर पांच साल में जब चुनाव होता है तो देश की 121 करोड़ की आबादी सदस्यों को चुनने लिए मतदान करती है। कड़ी धूम, बारिश और ठंड की परवाह किए बगैर हम वोट डालकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को लोकतंत्र के इसी मंदिर में भेजते हैं। लेकिन यहां संसद की तरह तो पहले असीम ने टायलेट को डिजाइन किया, इसके बाद भी उनसे नहीं रहा गया तो अपनी घिनौने विचार को व्यक्त करने के लिए यहां इसे "नेशनल टायलेट" लिखा। मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि इसके लिए सिर्फ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज करने से कुछ नहीं होने वाला है। लोकतंत्र की खिल्ली उड़ाने वाले दोषी को फांसी पर भी लटका दिया जाए तो ये सजा कम होगी। आइये एक और कार्टून पर नजर डालते हैं, उसके बाद आप देखें कि असीम की मानसिकता क्या है।
अब इस कार्टून के जरिए आप क्या साबित करना चाहते हैं। आपको नहीं लगता कि यहां जो भी कार्टून हैं वो देश की गरिमा के खिलाफ हैं। अगर कार्टून भ्रष्ट नेता के खिलाफ होता तो मुझे लगता है कि इससे किसी को इतनी तकलीफ नहीं होती। लेकिन यहां तो राष्ट्रीय गौरव यानि तिरंगे का मजाक बनाया गया, फिर संसद कि गरिमा को तार तार करने वाला कार्टून और राष्ट्रीय चिन्ह अशोक की लाट में तीन शेरों की जगह तीन भेड़िए बनाकर सत्यमेव जयते के स्थान पर भ्रष्टमेव जयते लिखा गया है। मैं व्यक्तिगत रूप से इस कार्टून के पक्ष में भी नहीं हूं और ना ही मैं समझता हूं कि इसके जरिए कोई सकारात्मक संदेश ही जनता के बीच पहुंच रहा है। सिर्फ यही नहीं असीम का अगला कार्टून तो देखकर ही उसके प्रति मन में घृणा पैदा करती है। मैं वाकई ये सोचने के लिए मजबूर हो जाता हूं कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यही हैं। पहले इस कार्टून पर नजर
डालिए। अब मैं देश के उन विद्वानों से इस कार्टून के बारे में जानना चाहता हूं, जो उसकी गिरफ्तारी पर हाय तौबा मचा रहे हैं। इसके जरिए देश की जनता को क्या संदेश देने की कोशिश की जा रही है। इस कार्टून के जरिए क्या कसाब को महिमा मंडित करने की कोशिश की जा रही है या फिर ये बताया जा रहा है कि हमारा भारतीय संविधान अब इसी के लायक है कि आतंकवादी इस पर पेशाब करें। कार्टून बनाने की बात तो दूर मैं तो समझता हूं कि किसी भी भारतीय के मन में भारतीय संविधान के प्रति ऐसी दुर्भवना कैसे आ सकती है। अगर आती है तो क्या वो सजा का हकदार नहीं है ? उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए ? अगर देश संविधान की इज्जत करता है, तो हमें उन लोगों की पहचान करनी होगी, जो ऐसे आदमी की गिरफ्तारी के विरोध में सड़क पर निकले हुए हैं। मन में एक सवाल है कि क्या देश की प्रतिष्ठा के खिलाफ इस तरह जहर उगलने वाले के खिलाफ दुनिया के दूसरे देश भी यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, या फिर ऐसी सख्त कार्रवाई करते हैं, जिससे कोई दूसरा आदमी ऐसी हिमाकत न कर सके।
सच कहूं तो मुझे असीम के खिलाफ दर्ज राष्टद्रोह के मामले को लेकर कोई आपत्ति नहीं है, मुझे आपत्ति इस बात पर है कि जो कार्रवाई बहुत पहले करनी चाहिए थी, उसे अंजाम देने में इतना वक्त क्यों लगाया गया, इसके लिए जरूर पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। मुझे पता है कि देश और प्रदेश में कमजोर सरकार है, इसलिए मामला भले दर्ज कर लिया गया हो, लेकिन वो देश में कुछ लोगों के विरोध को झेल नहीं पाएगी। आज नहीं कल असीम को छोड़ दिया जाएगा। मैं अभी देख रहा हूं कि महाराष्ट्र सरकार फिलहाल घुटने पर आ गई है और वो पूरे मामले से सम्मान जनक तरीके से कैसे बाहर निकले, इस पर विचार कर रही है। पुलिस पर दबाव बना दिया गया है कि वो 16 सितंबर के पहले ही असीम को कोर्ट में पेश कर कह दे कि अब जांच पूरी हो गई है। जिससे असीम की रिहाई का रास्ता साफ हो सके।
बहरहाल पुलिस तो अब असीम को छोड़ना चाहती है, लेकिन उसके खिलाफ मामला दर्ज हो गया है और उसे कोर्ट ही छोड़ सकती है। लिहाजा पुलिस के हाथ में अब कुछ नहीं रह गया है। दवाब में पुलिस भले आ गई हो, लेकिन कोर्ट ने आज उसे 24 सितंबर तक जेल भेज दिया है। जेल भेजना कोर्ट की भी मजबूरी थी, क्योंकि हीरो असीम ने जमानत की अर्जी ही नहीं दी। अब देशवासियों की समझ में नहीं आ रहा है कि देशद्रोह जैसा मामला दर्ज करने के बाद पुलिस अब घुटने पर क्यों आ गई? खैर जल्दी ही असीम को विदेशों में तमाम पुरस्कार और सम्मान मिलने का क्रम शुरू हो जाएगा। नेताओं को नेशनल एनीमल और संसद को नेशनल टायलेट बताने वाला अब देश का राष्ट्रीय हीरो होगा, जिससे हर जगह सम्मान मिलेगा। शर्म की बात है..।
"हर जगह" एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए.
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं
Deleteये सरासर देशद्रोह है। गैर जमानती अपराध माना जाना चाहिए है। किसी पाकिस्तानी काटूनिस्ट ने भी कभी ऐसा घिनौना अपराध नहीं किया होगा, जैसा इस असीम त्रिवेदी ने किया है। माननीय न्यायालय जो संविधान के तहत है। अब उसे निष्पक्ष रहकर इस देशद्रोही को इसके किये की सजा देनी चाहिए। वरना आम जनता में यहीं मैसेज जायेगा कि माननीय न्यायालय भी असीम का सहयोग कर रहा है। जब मकबूल फिदा हुसैन हिन्दु देवियों की पेंटिंग्स बनायी थी तो उनके विरोध में जनविरोध हुआ। मीडिया ने भी विरोध किया। असीम ने संविधान का अपमान किया है। देश का अपमान किया है। प्रत्येक देशवासी का अपमान किया है।
Deleteमैं आपकी बात से पूरी तरह समहत हूं, पर अच्छा होता कि आप खुल कर इस बात को समर्थन देते।
Deleteब्लाग पर बेनामी कमेंट्स से व्यक्ति की विश्वसनीयता पर लोग सवाल खड़े करते हैं..
ब्लाग पर बेनामी कमेंट्स से व्यक्ति की विश्वसनीयता पर लोग सवाल खड़े करते हैं....और फ़िर भी उन्हें स्थान मिल जाता है और प्रकाशित भी कर दिया जाता है :)
Deleteसीमा से बाहर गए, कार्टूनिस्ट असीम |
ReplyDeleteझंडा संसद सिंह बने, बेमतलब में थीम |
बेमतलब में थीम, यहाँ आजम की डाइन |
कितनी लगे निरीह, नहीं अच्छे ये साइन |
अभिव्यक्ति की धार, भोथरी हो ना जाये |
खींचो लक्ष्मण रेख, स्वयं अनुशासन लाये || |
Deleteआपके अंदाज का क्या कहना
बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteसटीक और सार्थक विश्लेषण महेंद्र जी .. हमारे देश की राजनीति का चेहरा इतना वीभत्स हो जायेगा इसकी उम्मीद ना थी.. यही 'भगवाप्रेमी' जो वन्दे मातरम् ना गाने वालों के खिलाफ़ तो फतवे जारी करते हैं .. वही लोग असीम जैसों की 'टुच्चई' पर अपनी राजनितिक रोटियां सेंक रहे हैं.. इस असीम जैसे लोगों को मेरे हिसाब से जूतों की माला पहना कर घूमना चाहिए .. शायद उससे इसको वो 'पब्लिसिटी' मिल जाये जिसका ये भूखा है ..
ReplyDeleteशुक्रिया प्रशांत जी
Deleteआपकी बातों से बिलकुल इत्तफाक रखती हूँ ..महेंद्र जी .....इसके कुछ भाग मै फेसबुक की वाल पर शेयर कर रही हूँ सादर आभार आपका !!
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार..
Deleteबिल्कुल आप इस लेख को ही नहीं ब्लाग के किसी भी लेख को कहीं भी इस्तेमाल कर सकती हैं..
सहमत हूँ... हर बात सीमा में हो तब तक ही ठीक होती है.....
ReplyDeleteजी बिल्कुल
Deleteमैं भी लक्ष्मण रेखा की बात कर रहा हूं...
असीम का सीमा के बाहर जाना मुझे भी अच्छा नहीं लगा !
ReplyDeleteअच्छा लेख ....आभार !
बहुत बहुत आभार
Deleteयहाँ बस इतना ही कहूँगी ....जिस थाली में खाया उसी में छेड़ किया
ReplyDeleteहम सब इस देश में रहते हैं ...और उसी देश की मान मर्यादा इस तरह से धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं ...असीम की इस हरकत पे खुद को शर्मसार महसूस कर रही हूँ इस वक्त और चंद लोग उसकी पकडे जाने पे हंगामा क्यों किया हुए हैं ...ये बात समझ से बाहर हैं ?
यही बात तो समझ से परे है..
Deleteआभार
मर्यादा का निर्वाह जरूरी है...आजादी की भी सीमा-रेखा है|
ReplyDeleteजी मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं
Deleteमेरा सवाल भी यही है
नेताओं को नेशनल एनीमल और संसद को नेशनल टायलेट बताने वाला अब देश का राष्ट्रीय हीरो होगा, जिससे हर जगह सम्मान मिलेगा ! शर्म की बात है.... :(
ReplyDeleteजी दीदी
Deleteये एक बड़ा सवाल है
जब एम एफ चित्र बनाता है तो वह स्वतंत्रता का अभिव्यक्ति है और जब असीम ने बनाये तो वह सीमा लांघ रहा है, वाह मेरे देश के लोग! आप लोग तो वाकई बड़े ही चतुर सुजान हैं, चित भी मेरी पट भी मेरी. उनकी आलोचना में कुछ लिखते हुए कलाम जबाव दे जाती है जो संसद को शर्मसार कर रहे हैं, लेकिन एक कार्टूनिस्ट जिसने सच दिखा दिए, उसका इतना व्यापक विरोध. भारत क्यों इतने वर्ष गुलाम रहा, इस पर चिंतन करना अब आवश्यक नहीं लगता.
ReplyDeleteआप को थोड़ा अपनी सोच को और खोलना होगा
Deleteप्लीज
Dear Mahendra Sir. Waise mujhe likhna ata nahi hai phir vi bina likhe reh nai paa raha hoon. Kuch baaten meri samajh me nai aa rahi hai Jaise Alochana sahi hai ya samalochana? Aur ye soch ko aur kholne ka tatparya kya huwa? Fir niche kahin ek comentetor ko aap keh rehe hain ki bhasha ki sanyamita banaye rakhe aur atarkik log hi nimna bhasa ki prayog par utar aate hain. Aur saath me aap hi Asim k liye gandi aur badbudar jaise sabdo ka prayog kar rahe hain. Mera udesya behas karna ya sach jhuth parakhna nai hai. bus kuch baaten hain jise avivyakt karna chahta hoon. Jahan tak baat asim trivei ki hai ek cartoonist ki hisab se usne aisi koi jaghanya aparadh nai kiya hai jiske liye use social site ki faansi par chadaya jaaye. jara gaur karen. Pehla cartoon bharat mata ka gang rape ho raha hai.(gang rape is means to Rape of a victim by several attackers in rapid succession.) iska ek hi mayne nikalna sayad sahi nai hai. Apna soch thoda aur khol ke dekhe plz. politicians aur buerocrates ki changul me fanskar bharat mata ki maryada ki haani hi ho rahi hai. Aur yahi hai wo brashtachar rupi changul. usiko asim ne cartoon me utar diya to itni hay tauba kyon? kisi ki bhawana ko cartoon me utarna kya deshdroh hai yaa bharat mata ki prati prem nahi hai?
DeleteDusra cartoon, Brhasta meva jayate. Ashok Stambha Humara gaurav hai shan hai Humari pehchan hai. Aur is Ashok Sthamba ka aaj kya haal bana kar rakha hai naukar sahon aur sarkari office ne. Humare yahaan par jo stamp paper ya dalil me ye hi pavitra sthambha ka upayog hota hai aur, jinhe hum buerocrates kehte hai ya naukar sah rupi jeev ki kehani bayan kar rha hai ye bhrasta mev jayate. kya mujhe apni soch aur kholne ki jarurat hai?
Tisra cartoon, national animal (neta suar). desh lok tantrik hai to matbaulta ko pradhanya diya jata hai aaj bahulta me dekhen to neta aur suar me sach me hi koi fark nai 100 me se 70 to hain meri baaton se sehmat nai hai to contemporary ghatanaon se to hain na? so Sach me national animal neta suar.
4th one is, kasab bharatiya sanvidhan k upar mutra bisarjan kar raha hai aur cartoonist pooch raha hai kaun jimmedar hai? isme v cartoonist ki kasab prem jhalakti hai kya? plz soch ko aur kholiye? agar ye baat sahi nai lag raha aap ko to humare diye huwe paise se kasab aur afzal guru jaise log 3tier security me baithkar biriyani kha rahe hain ye humari constitution ki loop holes ki use hi to hai jise cartoon me dikhaya gaya hai.
Aur aakhir me national toilet cartoon. Halanki mujhe vi bura lag raha hai cartoonist ni humari sansad ko national toilet ka darza diya. Par sir aaj ki sachchai yahi hai, apni mandi ko bura kehna mujhe v achchaa nai lag raha haqiqat to yahi hai ki jyadatar netaon ne sach me lok tantra ki is mandir ko toilet ke barabar hi bana diya hai. aur in sab ki jemmedar vi hum log hi hain so mujhe nai lagta asim ne aisa koi bada gunah kiya, sayad hume thoda sa aaina dikhane ki koshis ki jo hume raash nai aa raha hai. jai hind.
आपकी राय का भी स्वागत है। अब आप ऐसा ही सोचिए...
Deleteमेरा मानना है कि जिस तरह आप जीवन में एक अनुशासन को मानते हैं, मतलब अपनी लक्ष्मण रेखा खींचते हैं, मुझे लगता है कि आपको अपने प्रोफेशन में भी वो लक्ष्मण रेखा जरूर खींचनी चाहिए...
Are maharaj, kahan likhne padhne vala aadmi TV me jaakar fans gaya.
ReplyDeleteहाहाहहााह
Deleteक्या कहूं अनुराग जी
किसी शायर की एक लाइन याद आ रही है.....
ReplyDeleteछोटी छोटी बातें करके,बड़े कहां हो जाओगे
पतली गलियों से निकलो फिर खुली सड़क पर आओगे
aapki baat bahut satik hai or sahi bhi mai isse sahmat hu.jab hamare sarkaar ko jaha kadam uthane chahiye waha nahi utthati ye ussi ka parinaam hai ki is tarh ke mansikta ko badawa milta hai..or fir na jaane kitne logo ko lagta hai ki koi seema nahi hai isliye jo man mai aaye wo kaho ya karo.
ReplyDeleteजी, सरकार की कमजोरी की वजह से देश का ये हाल है, वरना ऐसे लोगों की सिर उठाने की हिम्मत नहीं होती..
Deleteकवि धूमल ने बहुत पहले कहा था -गणतंत्री चूहे प्रजातंत्र को कुतर कुतर के खा रहें हैं .कौन सी संसद की बात कर रहें हैं आप जो आपातकाल पहले घोषित करती है राष्ट्रपति के दस्तखत अगले दिन करवाती है अध्यादेश पे .आज गरिमा बची कहाँ है इस देश में इस सरकार में जिसे पूडल चला रहें हैं सोनियावी पूडल .वो वाघा चौकी पे मोमबत्तियां जलाने वाले हिन्दू देवी देवताओं की नग्न तस्वीर बनाने वालों की हिमायत में निकल खुद को सेकुलर कहल वातें हैं .गणेश के चित्र तो जूते चप्पलों बीडी के बंडल पे छपते हैं हमारा देश कब से इतना असहिष्णु हो गया प्रतीकात्मक कार्टूनों को देख के फट गई .क्या कर लेंगे असीम का आप जैसे लेफ्टिए और उनके शुभ चिन्तक .उसने कोई ऐसा अप कर्म नहीं किया जिससे लोग शर्मिंदा हों .
ReplyDeleteदेश में असीम अकेला नहीं है, उसके जैसी गंदी और बदबूदार सोच के और लोग भी हैं..कभी समय मिले तो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को भी पढ़ लीजिएगा..
Deleteभरा नहीं है जो भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।'
.. शर्मा जी एक बात का आगे से जरूर ध्यान रखिए कि बातें मर्यादा में हों । मैं अक्सर देखता हूं अतार्किक बातें करने वाले लोग निम्म स्तर की भाषा पर उतर आते हैं। ये एक फोबिया से ग्रस्त होते हैं, जो हर बात में सोनिया, दिग्विजय का नाम लेकर अपनी कमजोरी को सार्वजनिक करते हैं। वैसे भी मैं इस मत का हूं कि खास विचारधारा से जुड़े लोगों की बातों का कोई अर्थ नहीं होता। बात कुछ भी होगी ये अपना राग अलापते नजर आएंगे ।
आपकी बात सही है.मर्यादाहीन - कुरुचिपूर्ण अभिव्यक्तियाँ और वक्तव्य,किसी भी रूप में हों ,किसी के भी द्वा्रा हों, नहीं सहन किये जाने चाहियें ,असंतुष्ट और क्रोधित होने का यह मतलब नहीं कि सार्वजनिक जीवन में भद्देपन और अशालीनता की बौछार करने लगे
ReplyDeleteजी आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं
Deleteआभार
main apka samarthan karta hoon !
ReplyDeleteशुक्रिया मुकेश जी
Deleteजब यहाँ परिकल्पना को लेकर पोस्ट लिखी गई थी तो ....टिप्पणी करने वाले मर्यादा लाँघ कर टिप्पणी करने आ रहे थे ...और आज जब इतनी समझदारी वाली बात लिखी गई हैं तो ....वो सब टिप्पणी धारी कहां गए ...महेंद्र जी
ReplyDeleteनहीं नहीं, ऐसा मत कहिए,
Deleteजरूरी नहीं कि सभी को मेरी बात पसंद आए।
सभी लोग हर मामले में अपनी तरह से सोचने को स्वतंत्र हैं।
मेरी चिंता सिर्फ ये नहीं है कि वो आज नहीं कल अदालत से छूट जाएगा, मेरी चिंता ये है कि जिसने संसद, तिरंगे और देश के राष्ट्रीय चिन्ह का माखौल बनाया अब देश विदेश में उसके सम्मान का दौर शुरू होगा।
ReplyDeleteलोग इस बहके हुए युवा की तारीफों की पुल बांधेगे और उसके लिए माला फूल लिए सड़कों पर उतरेंगे। उस समय देश और देशभक्त अपने को कितना बौना महसूस करेगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
मर्यादा का निर्वाह जरूरी है..|सटीक और सार्थक विश्लेषण महेंद्र जी .
ReplyDeleteजी आभार
Deleteअभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर या कला और व्यंग्य के नाम पर जो कुछ कहा जा रहा है, उसका विश्लेषण करना ज़रूरी है। इसे राजनीति से ऊपर उठकर करने की ज़रूरत है। असीम के कार्टून प्रेरणा कुछ भी नहीं देते, बस एक घृणा उत्पन्न करते हैं नेता और संसद के प्रति। केवल इससे काम चलने वाला नहीं है।
ReplyDeleteबीमारी बड़ी है तो इलाज के लिए कोशिश करनी चाहिए न कि खुद भी ज़हनी बीमारी का परिचय दिया जाए।
जाने क्यों एक मुजरिम को हीरो बनाने की कोशिश की जा रही है। इस तरह के लोग कार्टून बनाने के नाम पर लोगों की भावनाओं को अर्से से आहत करते आए हैं और अब लोकतंत्र का आदर भी दिल से निकाल देना चाहते हैं।
चंद बुद्धिजीवी (?) शोर मचा रहे हैं कि पूरा देश उसकी गिरफ़्तारी के विरूद्ध है। ऐसा नहीं है। पूरा देश ख़ुश है। ख़ुशी मुकम्मल तब होगी जबकि इसे सज़ा भी दी जाए। ऐसा न हो कि सज़ा राजनीति की भेंट चढ़ जाए।
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मैं आपकी सभी बातों से पूरी तरह सहमत हूं।
Deleteajim ne jo kiya h vo galat h or uski saja to milni chahiye likin kuch log to is pr bhi rajneet ka mudda banayege.
ReplyDeletemahender sir, yhi to sochne wali baat h ki desh mine kitni sharm ki baat h ki log apne rajneetik shakh banane ke liye koi bhi ghinona kaaam kr sakte ho or humari nyaypalika ussse ba-ijjat barri kr degi......
ReplyDeleteशुक्रिया आकाश
Deleteमहेंद्र जी श्रीवास्तव साहब जगह देतें हैं विमत को भी बूझकर अच्छा लगा .आपने टिपण्णी छापी आभारी हूँ
ReplyDeleteआप किस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं वो मुझे पता है। आपका दूसरा कमेंट मुझे रोकना पड़ा, क्योंकि उसमें अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल किया गया है।
Deleteमेरा मानना कि आप अपना पक्ष किसी को गाली दिए बगैर रख सकते हैं, बात की कितनी भी कड़ी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता, बस मर्यादित भाषा जरूरी है।
आपके लेख बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं ..लक्ष्मण रेखा लांघने का नतीजा सबके सामने है फिर भी वही सिलसिला अभी तक जारी है ....
ReplyDeleteसटीक और सार्थक विश्लेषण किया है आपने!
जी आपका समर्थन ये साबित करता है कि आज भी देश मे बहुतायत लोग ये मानते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए, लेकिन एक लक्ष्मण रेखा भी जरूरी है...
Deleteआभार
देश की मर्यादा का निर्वाह जरूरी है..असीम त्रिवेदी द्वारा देश की मर्यादा का उल्लघन किया है ये सरासर देशद्रोह है सजा हर हालत में मिलनी चाहिए|,,,सटीक और सार्थक विश्लेषण महेंद्र जी
ReplyDelete.RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
बिल्कुल,
Deleteबस यही बात मैं भी समझाने की कोशिश कर रहा हूं..
1 pic. Yadi kisi mahilaa ke saath kuchh log galat karate hai to galati kisaki hai? Mahilaa ki yaa un logon ki? Ye sab maanege ki galati un logon ki hai. Ab agar koi patrakaar is ghatanaa ko samaachaar patron me prakaashit karataa hai to dosh kisakaa hai? Kyaa us patrakaar kaa... Jisane news ko publish kiyaa?
ReplyDelete2. Is ghatanaa ko MF husain ke krityon ke saath jodanaa tarksangat nahi hai. Husain ne jo kiyaa thaa vo samaaj me maujud nahi hai. Jabaki aseem ne kewal wahi dikhaayaa hai jo ghatit ho rahaa hai.
3. Rahi baat national toilet ki to waakai ye toilet hai. Bhai aap porn dekhane ki himmat mandir me to nahi kar sakate. Mandir ki ijjat pujaari ke haath me hoti hai. Pujaari ne mandir ko waaki toilet banaa diyaa to koi baat nahi. Lekin aap kah nahi sakate.
Ab ye mat kahe koi ki sab pujaariyon ne milakar mandir ki ijjat ko uchaaiyon par pahuchaa diyaa hai. Aisaa kewal ek wafaadaar congressi hi kah sakataa hai.
मैं आपके विचार से सहमत नहीं हूं, पर आप भी अपनी बात रखने के लिए उतने ही स्वतंत्र हैं जितना मैं....
DeleteHamaare yahan sansad se jyaadaa aasthaa dharm me hai. Aur yahi wajah hai ki log dharm ke naam par udwelit ho jaate hai. Jahaan aasthaa hai wahaan tark ki koi gunjaaish nahi hoti. Aap sahamat hai ye aapaki aasthaa hai.
ReplyDeleteबिल्कुल नहीं
Deleteमैं राष्ट्रीयता को धर्म से नहीं जोड़ता। देश में तिरंगे, राष्ट्रीय चिह्न, संसद और भारत माता का एक उच्च स्थान है, आप व्यक्ति का मजाक बना सकते हैं, पर भारतीयता की कैसे खिल्ली उड़ा सकते हैं ?
Bhaaratiyataa ki khilli kahan udai jaa rahi hai sir, aap dekhenge to paayenge ki vyavasthaa ke aacharan par prashnchinh lagaayaa jaa rahaa hai. aap kasaab waalaa kartoon dekhen... usame upar ek line hai use koi dhyaan me nahi rakh rahaa hai.. usame likhaa hai "" who is responsible".. kul milaa kar baat ye hai ki khilli koi aur udaa rahaa hai.. kalaakaar to ye bataa rahaa hai ki aisaa ho rahaa hai.. aur saath me puchh rahaa hai ki jimmedaar kaun hai... aur haan .. ek post galati se chalaa gayaa hai. us par dhyaan mat dijiyegaa.. aur haan aap se baat kar ke achchhaa lagaa...
Deleteआप सही कह रहे हैं भाई साहब
ReplyDeleteशुक्रिया मिश्रा जी
Deleteबहुत बहुत आभार
Sir, aap bhi abhiyakti ki swatantrataa ke khillaf hai kyaa? Meri do tippaniyon ko aapne publish nahi hone diyaa. Ek kiyaa hai, lekin usame aadhaa hi likhaa hai.
ReplyDeleteनहीं मैं वही कमेंट रोकता हूं जिसमें भाषा की मर्यादा का ध्यान नहीं रखा गया है।
Deleteकोई जरूरी नहीं कड़ी बात कहने के लिए गालियों का इस्तेमाल हो..
मुझे लगता है कि यह कार्टून कुछ इशारा कर रहे हैं, जो हो रहा है उसकी ओर या जो भविष्य में हो सकता है उसकी ओर उन लोगो को जो अभी भी सो रहे हैं. क्योकि जब कोई बच्चा, बूढ़ा या जवान पहले किसी गलत बात का नोर्मल तरीके से विरूद करता है लेकिन जब पानी सर से गुजरने लगता है तो ये तीनो लोग बच्चा, बूढ़ा या जवान नोर्मल तरीके को छोड़ कर जोशीला तरीका अपनाते है ताकि सभी का ध्यान अपनी ओर कर सकें. आपका लेख अच्छा लगा मै आपसे सहमत हूँ. हम लोग तो दिन रत फेसबुक पर शब्दों के द्वारा यह बताने कि कोशिश करतें हैं लेकिन इस बन्दे ने तो विसुअल बना दिया.
ReplyDeleteहो सकता है
Deleteआपकी बात भी सही हो,
मैने तो अपना नजरिया साफ किया है
बाप रे ! मामला इतना पेचीदा है आपको पढ़कर ही बहुत सी बातें साफ़ होती है नहीं तो समाचार सुन कर इतना कुछ समझ में आता ही नहीं है..
ReplyDeleteहाहाहाह,
Deleteबिल्कुल मैने तो सिर्फ एक बात की है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी की कोई लक्ष्मण रेखा नहीं होनी चाहिए..
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर राष्ट्रद्रोह का मामला बनता है या नहीं बनता है , मुझे लगता है कि ये तय करने के लिए हमारे पास न्यायपालिका से बेहतर और कोई नहीं हो सकता सो उसने कर भी दिया है । और जहां तक मर्यादा और लक्ष्मण रेखा खींचने की बात है तो सबसे पहले पत्रकारों और मीडिया पर खींची जानी चाहिए ।
ReplyDeleteअजय सच बताऊं मैं आपको और ब्लागर से थोड़ा हट कर जमीन से जुडा ब्लागर समझता था, कई बार मैने आपको पढ़ा भी है।
Deleteलेकिन मैं गलत था, अब अपने को ही कोस लेता हूं, आपको क्या कहूं। अगर आप आज का ही मेरा लेख पढें तो मैने मीडिया के बारे में अपनी राय साफ कर दी है।
वैसे सुनी सुनाई बातों पर ज्यादा ध्यान देने के बजाए आप ब्लाग के लेखों को पढ़ें तो शायद आपकी समझ ज्यादा विकसित होगी ....
bilkul hi sahi likha hai aapne.
ReplyDeleteशुक्रिया
Delete