Tuesday 7 August 2012

गांधीगिरी की आड़ में नेतागिरी ....


गांधीगिरी से नेतागिरी में कदम रखते ही अन्ना सियासी चाल चलने लगे हैं। अन्ना को पता है कि यहां अपनी चालों से ही शह-मात का खेल खेला जा सकता है। बस फिर क्या आज उन्होंने पहला झटका अपनी ही टीम को दिया, और मंजे हुए नेताओं की तरह अपने ब्लाग पर लोगों को जानकारी दी कि अब "टीम अन्ना" को भंग कर दिया गया है, टीम अन्ना नाम का इस्तेमाल भी आगे से नहीं किया जा सकता। इसकी वजह भी अन्ना ने अपने ब्लाग में साफ किया है। उन्होंने कहा कि है जनलोकपाल के लिए टीम अन्ना का गठन किया गया था। चूंकि अब जनलोकपाल की लड़ाई खत्म हो गई है, इसलिए टीम अन्ना का अस्तित्व भी खत्म हो जाना चाहिए। उन्होंने अपनी टीम से भी कहा है कि अब ये नाम खत्म समझा जाए और मीडिया से भी आग्रह किया है कि इस नाम का इस्तेमाल तत्काल बंद हो जाना चाहिए।

अन्ना की बात कुछ हद तक सही है, भाई जनलोकपाल के लिए टीम अन्ना बनी थी, अब जनलोकपाल का मुद्दा फिलहाल स्थगित या समझ लीजिए कि खत्म हो गया है, क्योंकि टीम ने रास्ता ही बदल कर अपना रुख राजनीति की ओर कर लिया है। चूंकि राजनीति तो अन्ना के अलावा बाकी लोग  ही करने वाले हैं, फिर ये नाम वाकई बेमानी है। चलिए अन्ना ने टीम अन्ना को भंग किया, ये ठीक है। लेकिन ये जानकारी उनके टीम के सदस्यों को भी उनके ब्लाग से हुई। किसी को पता नहीं था कि अन्ना ऐसा कदम उठाने जा रहे हैं। अन्ना के इस कदम से कई सवाल उठ रहे हैं। क्या अन्ना टीम के सदस्यों से संतुष्ट नहीं हैं ? क्या अन्ना को लग रहा था कि टीम अन्ना के नाम का दुरुपयोग किया जा रहा है ? क्या उन्हें लग रहा था कि टीम अन्ना के नाम पर कुछ लोग गलतबयानी कर रहे हैं ? बहरहाल सवाल तो खड़ा होगा ही क्योंकि अन्ना ने किया ही कुछ ऐसा है। अच्छा अन्ना ने टीम को भंग करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया कि वो जल्दी ही अपने राजनीतिक दल का ऐलान करने जा रहे हैं या फिर विकल्प की कोई ठोस रुपरेखा पेश करने वाले हैं।

अन्ना ने ब्लाग में इस मसले पर सिर्फ इतना कहाकि ‘‘ मैने संसद मे अच्छे लोगों को भेजने के लिए विकल्प दिया है। लेकिन मैं किसी पार्टी का हिस्सा नहीं बनूंगा और ना ही मैं चुनाव लडूंगा। सबसे बड़ी बात जो अन्ना ने की है वो ये कि जनलोकपाल बन जाने के बाद मैं वापस महाराष्ट्र चला जाऊंगा और अपनी गतिविधियों में संलग्न हो जाऊंगा। अच्छा अन्ना ने अपनी यहां सफाई भी दी है कि मैने पार्टी बनाने वाले लोगों को साफ कर दिया है कि भले राजनीतिक दल बन जाए, लेकिन ये आंदोलन चलते रहना चाहिए। आंदोलन में पहले हमने जनलोकपाल की मांग की थी ओर अब इस आंदोलन को जीवित रखने के लिए लोगों की मदद से अच्छे व्यक्तियों को संसद में भेजा जाना चाहिए,  जिससे कानून बनाना आसान हो जाए। अन्ना ने ब्लाग के जरिए सारी बातें की, लेकिन इशारों इशारों में। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि अन्ना ने आखिर ये बात क्यों कही कि वो जनलोकपाल बिल के बाद वापस महाराष्ट्र चले जाएंगे। क्या वो दिल्ली में खुद को ठगा सा महसूस कर रहे थे ?

अन्ना सच में दिल्ली में खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि उनके  नाम पर ही यहां भीड़ जमा होती है, उनके ही नाम से करोड़ो रुपये जमा हो रहे हैं, आंदोलन की साख मेरे नाम से ही है, जबकि टीम में दूसरे जितने लोग भी अग्रिम पंक्ति में हैं, जैसे अरविंद केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण समेत और लोग कहीं ना कहीं विवादित हैं। अन्ना को लगता है कि इस आंदोलन से उनकी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाया गया, और अब बात इतनी आगे बढ़ गई है कि वापस लौटने पर उनकी ही किरकिरी होगी। लिहाजा अन्ना ने मौका देखते ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी और साफ कर दिया कि अब टीम अन्ना नाम का अस्तित्व में रहना ठीक नहीं है क्योंकि जिस मकसद को लेकर ये टीम बनी थी अब मकसद खत्म हो गया है। बहरहाल अन्ना के मन में क्या है वो तो वही जानें, लेकिन जिस तरह से उन्होंने ब्लाग के जरिए टीम को भंग किया है, उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। खासतौर पर टीम अन्ना की भूमिका को लेकर।

अब एक सवाल जनता की ओर से... देश भर से लोगों ने इंडिया अगेंस्ट करप्सन को करोडों रुपये का चंदा दिया। लोगों ने जो चंदा दिया वो अरविंद केजरीवाल को राजनीति करने के लिए नहीं दिया है, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में मदद करने के लिए दिया है। ऐसे में ईमानदारी तो यही कहती है कि सभी के पैसे वापस कर दिए जाएं। वैसे भी केजरीवाल ईमानदारी की बहुत बड़ी बड़ी बातें करते हैं, उन्हें तो राजनीति में इसका एक पैसा भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अच्छा ये तो ईमानदारी का दावा करते हैं, इसलिए ऐसा भी नहीं कि इन्होंने चंदा गलत तरीके से लिया होगा, केजरीवाल तो हिसाब किताब के मास्टर हैं,   हमेशा दूसरों से पैसे का हिसाब मांगते रहते हैं फिर उन्हे तो पता होगा ना कि किसने कितना पैसा दिया है। ऐसे में भाई केजरीवाल साहब जनता से पूछ लो कि क्या वो भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने वाले पैसे का इस्तेमाल राजनीति मे इस्तेमाल करने की इजाजत देते भी हैं या नही। अगर नहीं तो उनके पैसे वापस करने का इंतजाम करना चाहिए।

चलिए अब कुछ खरी खरी बातें कर ली जाए। आखिर अन्ना को टीम भंग करने जैसा ऐलान अचानक क्यों करना पड़ा ? क्या अन्ना अपनी ही टीम में खुद को बेगाना महसूस कर रहे थे? क्या अन्ना किसी मजबूरी में टीम के साथ थे ? क्या अन्ना टीम के सदस्यों की कारगुजारी से खुश नहीं थे ? क्या अन्ना अपनी टीम से एक के बाद एक सदस्यों के टीम छोड़ने से दुखी थे ? क्या अन्ना को लग रहा था कि टीम मे सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है ? क्या अन्ना को भी लगने लगा था कि पैसों का हिसाब किताब ठीक से नहीं रखा जा रहा है? सबसे बड़ी बात क्या अन्ना किसी मजबूरी  में टीम के साथ थे ? ये तमाम ऐसे सवाल है जिसका जवाब अब टीम के सदस्यों को देना होगा, क्योंकि अगर ऐसा नहीं था तो अन्ना ने अपने ही साथियों को टीम भंग करने के पहले भरोसे में क्यों नहीं लिया। बहरहाल दिल्ली मे सदस्यों ने मीटिंग कर राजनीतिक पार्टी के सिलसिले में एक प्रीपेशन कमेटी ( तेयारी समिति) गठित कर झेंप मिटाने की कोशिश की है।

वैसे मैने पहले ही इस बारे में सभी को आगाह करने की कोशिश की थी। मैने ये भी बताने की कोशिश की थी अन्ना भी उतने पाक साफ नहीं है। अन्ना हमेशा चरित्र, निष्कलंक जीवन, ईमानदारी के साथ ना जाने किन किन बातों पर जोर देते हैं। लेकिन मै चाहता हूं कि खुद अन्ना ही बताएं कि मुंबई प्रवास के दौरान क्या क्या हुआ। जब वो सिनेमा हाल के बाहर टिकट ब्लैक किया करते थे, जब वो मंदिर के बाहर फूल बेचते थे। उस दौरान क्या क्या हुआ ? ये सारे वाकये खुद अन्ना ही बताएं तो ज्यादा बेहतर है। सेना से अचानक वापस  लौटने पर उन्हें गांव में कैसे शरण मिली, परिवार  के प्रति उनका व्यवहार कैसा रहा, मंदिर मे उन्हें ठिकाना लेने के लिए क्यों  मजबूर होना पड़ा,  महाराष्ट्र पुलिस क्यों उनके पीछे लगी  रही, आर आर पाटिल ने उनकी किस तरह मदद की? इन तमाम सवालों  का जवाब खुद अन्ना दें तो ज्यादा बेहतर है।

चलिए अभी तो दिल्ली की  टीम से अन्ना ने किनारा करने का संकेत दिया है। लेकिन सच ये है कि आने वाले समय मे ये टीम बेनकाब होगी तो सामाजिक आंदोलनों को बहुत ठेस लगने वाला है। जब पता चलेगा कि इस आंदोलन के पीछे किन लोगों का हाथ था, आंदोलन के लिए विदेश की कौन कौन सी संस्थाओं ने फंडिंग किया है। आंदोलन को खड़ा करने में देश के लोगों ने कितना चंदा दिया है और उसका कैसे इस टीम ने दुरुपयोग किया है। ये सारी बातें छिपने वाली नहीं है। मित्रों शायद अब आपको भरोसा हो जाए की बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की ईमारत नहीं खड़ी हो सकती। अब देखिए ना अन्ना गांधीगिरी करते रहे, हम अन्नागिरी में बिजी रहे और टीम नेतागिरी की राह तलाश रही थी।

टूट चुके हैं रामदेव ....

सच तो ये है कि रामदेव को अगर पहले पता होता कि आंदोलन का उन्हें ये खामियाजा भुगतना पड़ सकता है तो शायद वो अपनी दुनिया में मस्त रहते। इस पचड़े में कत्तई ना पड़ते। देखिए ना बेचारे विदेश में आयरलैंड का आनंद भी नहीं उठा पा रहे हैं। वैसे रामदेव को लग रहा था कि देश विदेश में उनके इतने समर्थक हैं,  ये सब देखकर सरकार की सांसे फूल जाएंगी और सरकार उनके आगे अनुलोम विलोम करने लगेगी, लेकिन सरकार ने तो रामदेव और उनके चेलों से सीधे मुंह बात करने के बजाए पुलिस से लाठी ठुकवा दी।

अब सरकार रामदेव के अभिन्न बालकृष्ण को अपने पाले में करने की साजिश कर रही है। रामदेव हमेशा दावा करते रहे हैं कि उनके नाम पर तो कुछ भी नहीं है, इसी बूते पर वो केंद्र सरकार को चुनौती दे रहे थे, लिहाजा अब जेल में बंद बालकृष्ण को सरकार इतना टार्चर करेगी की वो सरकारी गवाह बन जाएं और रामदेव के काले कारनामों का चिट्ठा खोले। अगर बालकृष्ण ने ऐसा करने से इंकार किया तो जाहिर है उन्हे नेपाली टोपी पहना कर देश निकाला करने का रास्ता तैयार किया जाएगा। वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि बालकृष्ण डरपोक है, वो टूट जाएगा। वैसे भी पतंजलि आश्रम में रामदेव के अलावा उसने बहुत सारे लोगों को अपना दुश्मन बना रखा है। ऐसे में बालकृष्ण ज्यादा दबाव झेलने की स्थिति मे नहीं होंगा। जब सीबीआई उसे बताएगी कि उसने जो अपराध किया है उसकी सजा क्या है, जेल में ही चक्की पीसनी पड़ सकती है, तो उसके सामने विकल्प चुनना होगा कि  वो आराम  पतंजलि मे रहना चाहते है या फिर जेल में चक्की पीसेगें।

खैर अन्ना ने जिस तरह अनशन को खत्म किया है, उससे रामदेव पर भी दबाव बन गया है। रामदेव को पता है कि अब सरकार उनसे बात तो करने वाली नहीं है, क्योंकि अन्ना से बात न करके सरकार ने देख लिया कि थोड़ा बहुत हो हल्ला के अलावा कुछ नहीं होने वाला। मीडिया के साथ जिस तरह से अन्ना के चेलों ने गाली गलौच किया है, उससे अब मीडिया भी समझ गई है, इन्हें ज्यादा तवज्जो देने का कोई मतलब नहीं है। बहरहाल आगे आगे देखिए होता है क्या.....  

28 comments:

  1. कंफ्यूस हो गए हैं अब हम भी !
    समय के ही पास इसका हल है .

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    1. जी बिल्कुल
      मैं भी यही कह रहा हूं आगे आगे देखिए

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  2. आपकी पोस्ट पढके यह साफ़ तौर पर पुष्ट हो जाता है :इस देश में दिग्विजय सिंह जी जैसे दुर-मुख मूढ़ -धन्य और भी हैं .नौ अगस्त अब दूर नहीं है .अजब इत्तेफाक है ठीक इसी वक्त कोंग्रेस के कथित चाणक्य दिग्विजय सिंह जी भी राम देव जी का औडिट प्रस्तुत कर रहें हैं .जिस दिन राम देव जी ने कह दिया ओ ए लंगोट बाँध के दिखा गुरु चेले के लेने के देने पड़ जायेंगे .चेला चला है कलावती की रोटी तोड़ने के बाद बड़ी भूमिका निभाने .भैया ये रोड शोज़ क्या थे ?महेंद्र वर्मा जी नोट कर लो आपका पूडल लाल किले पे भले चढ़ जाए लेकिन यह १५ अगस्त पहले जैसा न रहेगा .
    _______________

    ram ram bhai
    सोमवार, 6 अगस्त 2012
    भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से

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    1. सर मुझे आपकी पीडा का पूरा अहसास है।
      बस मैं तो आपका आशीर्वाद ही चाहता हूं।
      लेकिन हो सके तो कभी खुली आंखो से
      ईमानदारी से सब कुछ देखिए, समझ में आ
      जाएगा....

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  3. सच कहा .. सब टाय-टाय फिस होगया लगता है.. आप का कहना ठीक है ।आगे आगे देखिए होता है..

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    1. बिल्कुल सभी को आगे का इंतजार है..

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    2. महेश्वरी जी आप इसे तय तय फ़ीस नहीं कह सकतीं..उन्होंने चिंगारी छोडी है लेकिन इसे आग बनने में समय लगेगा .
      जो इंसान समय और दुश्मन की चाल के हिसाब से अपने लड़ने का तरीका नहीं बदलता वो मूर्ख होता है.
      यहाँ जो कुछ हुआ मेरे विचार में वही सब से सही निर्णय था ,
      मुझे लगता है' तमाशबीन 'किसी एक अनशनकारी के मरने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि कुछ सरकारी इमारतें फूंकी जाती या वहाँ तोड़े जाते ..उस की आड़ में मर-कटाई होती!कल्पना करीए अगर कीस एक की मृत्यु [बलिदान'' इस अनशन में हो जाता तो!
      जो अन्ना के आन्दोलन को फेल कहते हैं वे भी उन तमाशबीनो से कोई कम नहीं है .
      माफ करीयेगा अगर किसी को बुरा लगा है तो.

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    3. अल्पना मेम,
      मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूं, लेकिन आपको पूरे आंदोलन को बहुत ही बारीकी से देखना होगा। आपयो याद होगा कि पहले अनशन पर सिर्फ सरकार ही नहीं संसद तक झुकी नजर आ रही थी, फिर क्यों दूसरे अनशन में सरकार ने अपना रुख बदल लिया।
      दरअसल इस आंदोलन में अन्ना ही यूएसपी हैं, बाकी लोगों का भगवान ही मालिक है। जिस तरह से ये बातें करते हैं, उससे सरकार का कोई भी मंत्री बातचीत के लिए राजी ही नहीं हुआ।
      फिर आपको पता होगा कि अनशन का मतलब सिर्फ अन्न त्याग नहीं है, अनशन का मतलब अहम का भी त्याग है।
      अगर आप अनशन को शुरू से देख रही हों, तो पहली बार किसी अनशनकारी पर ये आरोप लगा कि इनके अनशन में ईमानदारी नहीं है। इसलिए मरने जीने का तो कोई मतलब ही नहीं था। वैसे भी अनशन के पांचवे दिन से ही पूरी टीम इस पर काम करने लगी थी कि कैसे इस अनशन को खत्म किया जाए, आप देखिए जो रास्ता निकाला गया,वो कितना हास्यास्पद है।
      23 लोगों ने अपील की कि आप अनशन खत्म कर दें, और मंच पर तीन लोग नहीं आए। मैं इस बात से सहमत हूं कि भ्रष्टाचार एक बडा मुद्दा है, इस पर संघर्ष होना चाहिए। लेकिन मैं इस मत का हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर कभी ईमानदारी की इमारत नहीं खडी हो सकती।

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    4. मेरे विचार उन सभी प्रवासियों के हो सकते हैं जो इस सारे प्रकरण को शीशे की दीवार से देख रहे हैं.यह बात तो है कि पहले और इस बार में बहुत अंतर रहा .हर पहलू पर शोध की आवश्यकता है ,कोई एक निष्कर्ष इतनी शीघ्र निकलना मुश्किल है.

      हाँ..मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि बेईमानी की बुनियाद पर कभी ईमानदारी की इमारत नहीं खडी हो सकती.
      अब तक तो मैं और मेरे जैसे लोग यही सोच रहे हैं कि अन्ना की टीम ईमानदार है .हो सकता है हम गलतफहमी में हों..अगर ऐसा हुआ तो अन्ना के लिए जनता का पहले जैसा विश्वास पाना कठिन होगा.

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  4. अन्ना के समर्थक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं .... शायद अन्ना भी ॥

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    1. बिल्कुल
      अन्ना खुद को ठगा सा ही महसूस कर रहे होंगे

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    2. बिलकुल ठगा महसूस कर रहे हैं क्योंकि सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया .त्रस्त हो गए होंगे सभी अनशनकारी न केवल अन्ना.!

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  5. गाँधी जी के रास्तों का मुखौटा बना लिया है नेताओं ने

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    1. गांधी जी का अनुसरण मे भी पूरी ईमानदारी नहीं है....

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  6. aandolan shuru karne ki anna ki neeyat me koi khot nahi tha lekin jis tarh se ye khatm karna pada vo durbhagy poorn hai..

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    1. बिल्कुल,
      पूरी टीम ग्रेसफुल तरीका सोच रही थी कि कैसे इस अनशन से छुटकारा मिले

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  7. तिरछे -तिरछे तीर नजर के चलते हैं
    सीधा - सीधा दिल पर निशाना लगता है ....!
    आप क्योँ सच - सच लिखते हैं
    लोगों को सच बैगाना लगता है ..!

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    1. हाहाहााह,
      आप समझ सकते हैं कि मुझे सच लिखने पर भी लोग कैसे कटघरे में खडा करते हैं। कहते हैं कांग्रेसी हूं..
      शायद वो मेरे ब्लाग पर कांग्रेस के बारे में नहीं पढते मेरे विचार

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  8. एक बार फिर से आपकी लेखनी पूरा सच उजागर कर रही है ... आभार इस सार्थक प्रस्‍तुति के लिए

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  9. श्रीवास्तव जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'आधा सच' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 8 अगस्त को 'गांधीगिरी की आड़ में नेतागिरी...' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  10. टीम अन्ना के आन्दोलन का रुख एक दम कैसे बदल गया ...शायद वो लोग भी नहीं समझ पाए ...तो पूरे देश की जनता इस राजनीति खेल को कैसे समझेगी ....और रामदेव जी को अब ऐसा लग रहा होगा कि वो तो बेकार ही इस खेल में उतर कर सरकार को अपना दुश्मन बना बैठे ....आगे आगे देखे होता हैं क्या ....?

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  11. thoughtful post
    If IAC does any corruption Congress got the power they will do what they have to do.
    As per media reports all accounts are available.
    Do you know how much fund is collected by politician parties in cash.

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  12. महेंद्र जी
    संतुलित भाषा के प्रयोग के लिए धन्यबाद
    देखते है आज क्या होता है ?
    राम लीला या रावण लीला
    आपका शुभचिंतक
    कमलेश

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।