आज मन में कुछ अजीब सा चल रहा है, बुरी तरह से उलझा हुआ हूं। सच कहूं तो मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि ये बनावटी बातें हैं, या फिर वाकई हकीकत है। मुझे तो अपने सुने पर ही भरोसा ही नहीं हो रहा है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के बारे में मेरी राय बिल्कुल उनके खिलाफ है। राजनीतिक भ्रष्टाचार की बात हो और मायावती का जिक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। निकम्मे मंत्रिमंडल की बात हो तो मायावती की अगुवाई वाले यूपी सरकार के मंत्रिमंडल को नंबर एक पर रखना होगा। सूबे में आराजकता का जिक्र होने पर भी हमारी नजर यूपी पर ही जा टिकती है। लोकतंत्र को कमजोर करने के मामले में भी मायावती का कोई मुकाबला नहीं हैं। नौकरशाही में भेदभाव, ट्रांसफर पोस्टिंग में वसूली, बाहुबलियों को संरक्षण, जबरन चंदा वसूली, अपनी मूर्तिंयों पर अनाप शनाप खर्च.. कहने का मतलब साफ है कि जितना मैं अभी तक मायावती को जानता था, उनमें कुछ भी ऐसा नहीं है, जिससे मैं उनका समर्थन करुं।
महिलाओं के प्रति भी मायावती में कोई खास हमदर्दी नहीं है। अगर हम गंभीरता से विचार करें तो मुझे लगता है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी ही एक मात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी होगी, जिन्होंने महिला प्रकोष्ठ तक नहीं बनाया है। महिला होते हुए भी महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा के टिकट कम ही दिए जाते हैं। राज्यसभा में तो आज तक उन्होंने किसी को भेजा ही नहीं होगा। मेरी व्यक्तिगत नफरत इस पार्टी और इनकी कार्यप्रणाली से इस कदर है कि मैं किसी भी मां-बाप को ये सलाह नहीं दे सकता कि वो अपनी बेटी का नाम मायावती रखें।
इन तमाम खामियों के बाद भी आज मैं दिल से मायावती को सलाम करता हूं। मेरे मन में उनके प्रति आज एक सम्मान है। उनके प्रति श्रद्धा की और कोई वजह नहीं है, सिर्फ ये कि वो साहित्य की प्रेमी हैं और पूरे दिन जोड तोड की सियासत करने के बाद कम से काम रात में वो एक सामान्य महिला की तरह आम लोगों जैसा सोचती हैं। उनके भीतर भी मां, बहन जैसे रिश्तों की टीस बरकरार है। चलिए अब मैं पूरा वाक्या आपको बताता हूं।
बात बीते रविवार की है, एक टीवी चैनल के दस साल पूरे होने पर जयपुर में भारी भरकम मुशायरे का आयोजन किया गया था, जिसे उस टीवी पर लाइव सुना और देखा जा सकता था। रात के करीब एक बजे बारी आई, जाने माने शायर मुनव्वर राना की। मुनव्वर भाई ने एक से बढकर एक शेर और गजल पढकर हमारी नींद उडा दी थी। एक शेर आप भी सुनिये।
मौला ये तमन्ना है कि जब जान से जाऊं,
जिस शान से आया हूं, उसी शान से जाऊं।
इस शेर के साथ उन्होंने श्रोताओं से बिदा ले लिया और दूसरे शायर अपने अपने कलाम पढने लगे। आधे घंटे बाद यानि रात के डेढ बजे मुशायरे का संचालन कर रहे अनवर भाई खड़े़ हो गए और मंच से उन्होंने जो कुछ कहा, उससे मैं हक्का बक्का रह गया। उन्होंने श्रोताओं को जानकारी दी, उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जयपुर में हो रहे इस मुशायरे को लखनऊ में अपने निवास पर सुन रही हैं और उन्होंने फोन के जरिए मुनव्वर राना से अपील की है कि वो " मां " पर लिखी रचना सुना दें तो मेहरबानी होगी। श्रोताओं ने भी इसका समर्थन किया, लेकिन ना जाने क्यों मेरी आंखें छलक गईं। मैने भी कई बार मुनव्वर राना की " मां " पर लिखी रचना को सुना है, उसमें दर्द है, भावनाओं का एहसास है। मुझे उम्मीद भी थी कि राना भाई ये रचना खुद ही सुनाएंगे, पर उन्होंने नहीं सुनाया। वहां बैठे लोगों ने भी उनसे ये अपील नहीं की, लेकिन मायावती जी ने फोन पर फरमाइश की तो मुझे वाकई अच्छा लगा। सच कहूं तो आज मायावती की मेरी नजर बहुत ऊंची जगह बन गई है। इसलिए मैं कहता हूं कि बहन में भी होता है मां दर्द। यहां भाई राना की दो लाइन का जिक्र ना करुं तो नाइंसाफी होगी।
ऐ अंधेरे देख ले, मुंह तेरा काला हो गया,
मां ने आंखे खोल दीं, घर में उजाला हो गया।
मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह धो देती है,
जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मैं सलाम करता हूं भाई मुनव्वर राना को भी, जिन्होंने मायावती की फरमाइश को सम्मान देते हुए अपनी ये रचना सुनाई। लेकिन इस पूरे वाकये का जब जाने माने शायर भाई राहत इंदौरी ने मजाक बनाया तो थोडा अच्छा नहीं लगा।
वाह क्या बात है, शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे मायावती के इस पहलू के बारे में मालूम होगा। जानकर अच्छा लगा कि अपने नाम के विपरीत छवि रखने वाली मायावती का ये मिजाज भी होगा...
ReplyDeleteसच में आप बहुत ही भावुक हैं महेंद्र भाई.
ReplyDeleteअब मैं और क्या कहूँ आपको.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
oh really. doesnt go wid her image...btw, mahnendra ji, aapke blog ke title bahut badiya hote hain... ek blog in titles par bhi likh daliye :-D
ReplyDeleteमायावती के बारे मे ये जानकर अच्छा लगा। वैसे हर औरत सबसे पहले एक औरत ही होती है उसके बाद राजनीति। चाहे किसी को पता ना चलने दे मगर माँ का सा दिल तो सभी मे होता है।
ReplyDeleteमाँ पर जो मुनव्वर राना जी ने जो लिखा है , उसकी तो बात ही जुदा है.... अब मायावती ने फरमाइश की तो ठीक है, इससे उनका स्वभाव तो नहीं बदल जाता ! कई बार 'वाह वाह ' में भी घपला होता है
ReplyDeleteममता कहीं भी हो , सम्मान के योग्य ही होती है |
ReplyDeleteमुनव्वर राना जी को १५ को ISM DHANBAD हिंदी दिवस के मौके पर आना था |
ReplyDeleteपर बाद में न आने का कारन --
दस्त हो रहे हैं पता चला ||
अफ़सोस दुबारा मुलाकात से वंचित रहा ||
माँ या वा ती ||
आज मायावती की मेरी नजर बहुत ऊंची जगह बन गई है। इसलिए मैं कहता हूं कि बहन में भी होता है मां दर्द।
वैसे हर औरत सबसे पहले एक औरत ही होती है उसके बाद राजनीति।
ReplyDeleteलेकिन उसका बसिक नेचर नही बदल सकता....
इस घटना को सुनकर मन द्रवित हो गया। हर स्त्री में माँ का रूप सबसे ज्यादा भावुक करने वाला होता है। मायावती जी की फरमाईश अच्छी लगी।
ReplyDeleteइस बहाने मुन्नवर राणा जी के चंद अशार फिर पढने का अवसर मिला। रही बात बहन जी की तो वे लखनऊ में राणा जी एक मुशायरा भी रख सकती हैं:)
ReplyDeleteमुनव्वर जी के शेर लाजबाब हैं.हर स्त्री में माँ का दिल होता है चाहे वो किसी भी पद पर हो !मायावती जी का यह वाकया सुनकर अच्छा लगा !अच्छी पोस्ट !
ReplyDeleteभाई महेंद्र जी आपने बहुत ही सुन्दर और स्वस्थ आलोचना किया हर इंसान में भावनाएं होती हैं |राहत इन्दौरी की मैं भी निंदा करता हूँ |आपकी लेखनी काबिलेतारीफ है |बधाई और शुभकामनायें |कुछ लोग बड़े शायर तो हो जाते हैं बड़े इंसान नहीं हो पाते |
ReplyDeleteमायावती जी के मायाजाल के क्या कहने
ReplyDeleteकिन्तु इस बहाने अच्छे शेर पढने को मिले
आभार !
पत्थर भी कभी-कभार रोता है..
ReplyDeleteचाहे कोई हो माँ की ममता से पीछा नही छुडा सकता या सकती हैं।
ReplyDeleteऔरत में हर रूप समाया है ...वो माँ.. बहन ..बेटी है |
ReplyDeleteमायावती भी इस रूप से अलग नहीं है ...................आभार उनके बारे में इस तरह ki जानकारी यहाँ हम सबके साथ साँझा करने के लिए
देरी से आने के लिया माफ़ी चाहूंगी .......
एक औरत की सोच ....हर किसी के लिए ...........
जिन राहों पर बिछने थे ,गुलशन के फूल कलियाँ
उन राहों से चुन चुन के कांटे ,मै हटा रही हूँ || ..........अनु
मित्रों, मैं देख रहा हूं कि ज्यादातर लोगों ने मायावती के साहित्य प्रेम की सराहना की है। मुझे उम्मीद है कि मायावती अपनी इस रुचि को आगे भी बनाएं रखें, शायद उनके काम काज और व्यवहार में भी इसका प्रभाव दिखाई दे।
ReplyDeleteJi yeh hamare saamne ka waqiya hai....aur accha laga yeh jaanker ki koi raat bhar Musheyra dekh sun raha hai....aur hum to ise is liye nahin bhool sakte ki hamen unke foran baad padhne ke liye bula liya gaya...kiya imtehaan tha...
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